योग – पञ्चांग का चतुर्थ अवयव
पञ्चांग के अवयवों की श्रृंखला में वार, तिथि और नक्षत्र के विषय में संक्षिप्त में अब तक लिख चुके हैं | अब पञ्चांग का चतुर्थ अंग है योग | सूर्य तथा चन्द्रमा की स्थितियों के आधार पर योग की गणना की जाती है | सूर्य और चन्द्र की परस्पर एक विशिष्ट दूरी एक एक योग बनता है | प्रत्येक योग 13 डिग्री 20 मिनट का होता है और कुल 27 योग होते हैं | जिनके नाम हैं: विषकुम्भ, प्रीति, आयुष्मान, सौभाग्य, शोभन, अतिगण्ड, सुकर्मा, धृति, शूल, गण्ड, वृद्धि, ध्रुव, व्याघात, हर्षण, वज्र, सिद्धि, व्यातिपत, वरीयान, परिधि, शिव, साध्य, साध्य, शुभ, शुक्ल, ब्रह्म, इन्द्र और वैधृति | इन सभी योगों के गुण धर्म इनके नामों के अनुसार ही होते हैं | उदाहरण के लिए विषकुम्भ योग को उतना अच्छा नहीं माना जाता जबकि प्रीति, आयुष्मान आदि शुभ योग माने जाते हैं |
27 योगों में से कुल 9 योगों को अशुभ माना जाता है तथा इन अशुभ मुहूर्तों में किसी प्रकार के भी शुभ कार्यों को वर्जित माना जाता है | इनके नामों से ही ज्ञात हो जाता है कि इन्हें किसलिए अशुभ माना गया है | ये अशुभ योग हैं: विषकुम्भ, अतिगण्ड, शूल, गण्ड, व्याघात, वज्र, व्यतिपात, परिघ और वैधृति |
विभिन्न 27 योगों में जन्म लेने वाले जातकों के गुण स्वभाव के विषय में चर्चा “नक्षत्र” की श्रृंखला में करेंगे – क्योंकि यह भी विशद विषय है… अभी हम बात करते हैं पञ्चांग के आधार पर शुभाशुभ मुहूर्त के लिए योगों का क्या महत्त्व है…
विषकुम्भ : जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है – विष से भरा हुआ पात्र – घड़ा | इस योग में इसीलिए कोई शुभ कार्य उचित नहीं माना जाता | किन्तु यदि किसी कोर्ट केस के लिए जाना हो, डॉक्टर के पास जाना हूँ तो इस प्रकार के कार्यों के लिए यह योग अनुकूल माना जाता है |
विषकुम्भ के बाद आने वाले योग प्रीति, आयुष्मान, सौभाग्य तथा शोभन योग अपने नामों के अनुरूप ही शुभफलदायी होते हैं | इन योगों में कोई भी शुभ कार्य किया जा सकता है |
इनके बाद फिर अतिगण्ड योग आता है – इसमें कोई भी कार्य करना शुभ नहीं माना जाता |
सुकर्मा और धृति दोनों योग शुभ माने जाते हैं | विशेष रूप से किसी प्रतियोगिता आदि के लिए तो इन योगों को अत्यन्त ही शुभ माना जाता है |
शूल और गण्ड योग पुनः अशुभ योग माने जाते हैं | यहाँ तक कि ये दोनों योग कोर्ट कचहरी के कार्यों के लिए भी शुभ नहीं माने जाते |
वृद्धि निश्चित रूप से सौभाग्य वर्द्धक योग है | एकाग्रचित्त होकर नवीन योजनाएँ बनाने के लिए, ध्यान आदि के अभ्यास के लिए, औषधि ग्रहण करने के लिए ध्रुव योग को अनुकूल माना जाता है |
व्याघात योग किसी भी कार्य के लिए शुभ नहीं माना जाता | यहाँ तक कि कोर्ट कचहरी के कार्यों में भी विपरीत परिणाम प्राप्त होने की सम्भावना रहती है | किन्तु यदि डॉक्टर किसी मरीज़ की सर्जरी करना चाहता है तो वह इस योग में किया जा सकता है |
हर्षण योग किसी भी कार्य के लिए शुभ माना जाता है |
वज्र योग किसी भी कार्य के लिए अशुभ ही है |
सिद्धि अपने नाम के अनुरूप ही प्रत्येक कार्य को सिद्ध करने वाला योग माना जाता है | जो लोग किसी प्रतियोगिता के लिए जाना चाहते हैं, नौकरी के लिए इंटरव्यू देना है – नई नौकरी पर जाना है – किसी भी कार्य के लिए यह योग शुभ माना जाता है |
व्यातिपत योग में कोई कार्य करने पर उसमें बाधाएँ आने की सम्भावना बनी रहती है
| अतः यह योग भी अशुभ योगों की ही श्रेणी में ही आता है |
वरीयान योग में कोई भी धार्मिक तथा मांगलिक कार्य करना उत्तम रहता है | किन्तु साथ ही सुख सुविधाओं के साधनों में आवश्यकता से अधिक धन भी व्यय हो सकता है |
परिघ योग में धन प्राप्ति के लिए कोई नवीन कार्य करना हो तो अच्छा तो रहता है किन्तु उसमें लड़ाई झगड़ों की भी सम्भावना रहती है |
शिव, साध्य, साध्य, शुभ, शुक्ल, ब्रह्म, इन्द्र – ये सभी योग शुभ माने गए हैं |
वैद्धृति योग एक ओर तो धन में वृद्धि के लिए शुभ माना गया है वहीं दूसरी ओर कोर्ट कचहरी आदि का सामना भी करना पड़ सकता है |
अन्त में, शुभाशुभ मुहूर्त का विचार अवश्य कीजिए पर अन्ध विश्वास मत रखिये | व्यक्ति का कर्म सबसे प्रधान होता है | मान लीजिये आपको कहीं किसी नौकरी के Interview के लिए जाना हो और उस दिन कोई शुभ मुहूर्त नहीं मिल रहा हो तो क्या साक्षात्कार के लिए नहीं जाएँगे ?
अतः यदि कार्य आवश्यक ही हो और कोई शुभ मुहूर्त नहीं भी मिल रहा हो तो व्यक्ति को इस शुभाशुभ मुहूर्त के भय से ऊपर उठकर सकारात्मक भाव के साथ कर्म करते रहना चाहिए… क्योंकि शुभाशुभ के फेर में पड़कर यदि कर्म ही नहीं करेंगे तो सम्भव है बाद में पछताना भी पड़ जाए… अतः कर्मशील रहते हुए निरन्तर प्रगति के पथ पर अग्रसर रहने का प्रयास करना चाहिए…