सूर्य ग्रहण और उससे सम्बन्धित भ्रान्तियाँ
आज मार्गशीर्ष अमावस्या को वर्ष का अन्तिम सूर्यग्रहण लग रहा है | यह आंशिक सूर्यग्रहण भारतीय समयानुसार प्रातः दस बजकर उनसठ मिनट से आरम्भ होकर दोपहर तीन बजकर सात मिनट तक रहेगा | हमारे कुछ मित्रों ने जानना चाहा है कि सोशल मीडिया पर इस ग्रहण को लेकर बहुत से पोस्ट आ रही हैं कि यह ग्रहण बहुत ख़तरनाक है इसलिए पूरी सावधानी बरतें | तो अपने मित्रों से सबसे पहले तो यही कहना चाहेंगे – जो हमने अपने कल के लेख में लिखा भी है – कि यह ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा इसलिए इसके विषय में किसी भी प्रकार की भ्रान्ति में आने की अथवा सूतक आदि को मानने की आवश्यकता नहीं है | यह ग्रहण अंटार्कटिका, दक्षिण अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिणी अमेरिका में ही दिखाई देगा |
ग्रहण के विषय में हम पूर्व में भी बहुत कुछ लिख चुके हैं | अतः पौराणिक कथाओं के विस्तार में नहीं जाएँगे | ज्योतिष के अनुसार यदि देखें तो यह एक खगोलीय घटना मात्र है और खगोल वैज्ञानिकों की खोज के विषय हैं क्योंकि ग्रहण के आध्यात्मिक महत्त्व के साथ ही संसार भर के वैज्ञानिकों के लिए यह अवसर किसी उत्सव से कम नहीं होता जब वे सौर मण्डल में हो रहे परिवर्तनों का अध्ययन करते हैं | तो इस विषय पर हम नहीं जाएँगे | क्योंकि विज्ञान और आस्था में भेद होता है |
हम यहाँ बात करते हैं हिन्दू धार्मिक मान्यताओं और आस्थाओं की, क्योंकि सभी धार्मिक आस्थाओं में कोई न कोई महत्त्वपूर्ण कारण अवश्य निहित होता है – अनर्गल ही कोई बात नहीं की जाती है | भारतीय हिन्दू मान्यताओं तथा भविष्य पुराण, नारद पुराण आदि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सूर्य और चन्द्र ग्रहण अत्यन्त अद्भुत ज्योतिषीय घटनाएँ हैं जिनका समूची प्रकृति पर तथा जन जीवन पर प्रभाव पड़ता है |
धार्मिक तथा पौराणिक दृष्टिकोण की मानें तो ग्रहण की अवधि में उपवास रखना चाहिए, बालों में कंघी आदि नहीं करनी चाहिए, गर्भवती महिलाओं को न तो बाहर निकलना चाहिए, न ही चाकू कैंची आदि से सम्बन्धित कोई कार्य करना चाहिए, अन्यथा गर्भस्थ शिशु पर ग्रहण का बुरा प्रभाव पड़ता है (यद्यपि इसका कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है) तथा ग्रहण समाप्ति पर स्नानादि से निवृत्त होकर दानादि कर्म करने चाहियें | साथ ही जिन राशियों के लिए ग्रहण का अशुभ प्रभाव हो उन्हें विशेष रूप से ग्रहण शान्ति के उपाय करने चाहियें | इसके अतिरिक्त ऐसा भी माना जाता है कि पितृ दोष निवारण के लिए, मन्त्र सिद्धि के लिए तथा धार्मिक अनुष्ठानों के लिए ग्रहण की अवधि बहुत उत्तम होती है |
यदि व्यावहारिक रूप से देखें तो इसे इस प्रकार समझना चाहिए कि जिस प्रकार वर्षाकाल में जब सूर्य को मेघों का समूह ढक लेता है उस समय प्रायः बहुत से लोगों की भूख प्यास कम हो जाती है, पाचन क्रिया भी दुर्बल हो जाती है, शरीर में आलस्य की सी स्थिति हो जाती है | इसका कारण है कि सूर्य समस्त चराचर जगत की आत्मा है – परम ऊर्जा और चेतना का स्रोत है | बादलों से ढका होने के कारण सूर्य से प्राप्त वह ऊर्जा एवं चेतना जीवों तक नहीं पहुँच पाती और उनमें इस प्रकार के परिवर्तन आरम्भ हो जाते हैं | इसी प्रकार यद्यपि चाँद घटता बढ़ता रहता हैं, किन्तु जब बादलों के कारण आकाश में चन्द्रमा के दर्शन नहीं होते तब भी समूची प्रकृति पर भावनात्मक प्रभाव पड़ना आरम्भ हो जाता है | ग्रहण में भी यह स्थिति होती है |
सूर्य और चन्द्रमा के मध्य जब पृथिवी आ जाती है और चन्द्रमा पर पृथिवी की छाया पड़ने लगती है तो उसे चन्द्र ग्रहण कहा जाता है, और जब सूर्य तथा पृथिवी के मध्य चन्द्रमा आ जाता है तो सूर्य का बिम्ब चन्द्रमा के पीछे कुछ समय के लिए ढक जाता है – इसे सूर्य ग्रहण कहा जाता है | चन्द्र ग्रहण के समय चन्द्रमा की शीतल किरणें प्राणियों तक नहीं पहुँच पातीं | ज्योतिषीय सिद्धान्तों के अनुसार चन्द्रमा को मन का कारक माना गया है | अतः चन्द्रग्रहण का मन की स्थिति पर व्यापक प्रभाव माना जाता है | तथा सूर्य ग्रहण के समय सूर्य की किरणें पूर्णतः स्वच्छ रूप में प्राणियों तक नहीं पहुँच पातीं | जिसका मनुष्यों के पाचन क्षमता, उनकी कार्य क्षमता आदि पर व्यापक प्रभाव माना जाता है | यही कारण है ग्रहण की स्थिति में कुछ भी भोजन आदि तथा अन्य कार्यों के लिए मना किया जाता है | क्योंकि न तो इस अवधि में किया गया भोजन पचाने में हमारी पाचन प्रणाली सक्षम होती है और न ही इस अवधि में उतनी अधिक कुशलता से कोई कार्य सम्भव हो पाता है | आपने देखा भी होगा कि जब पूर्ण सूर्य ग्रहण होता है – जब दिन में रात्रि के जैसा अन्धकार छा जाता है – तो मनुष्यों पर ही इसका प्रभाव नहीं पड़ता बल्कि सारी प्रकृति को रात का अनुभव होने लगता है और समूची प्रकृति मानो निद्रा देवी की गोद में समा जाती है – सारे पशु पक्षी तक अपने अपने घोसलों और दूसरे निवासों में छिप जाते हैं – क्योंकि उन्हें लगता है कि अब रात हो गई है और हमें सो जाना चाहिए | जब सारी प्रकृति ही ग्रहण के प्रति इतनी सम्वेदनशील है तो फिर मनुष्य तो स्वभावतः ही सम्वेदनशील होता है |
अतः हमारा अपना मानना है कि ग्रहण जैसी आकर्षक खगोलीय घटना से भयभीत होने की अपेक्षा इसके सौन्दर्य को निहार कर प्रकृति के इस सौन्दर्य की सराहना करने की आवश्यकता है… क्योंकि इन सब बातों का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है, केवल जन साधारण की अपनी मान्यताओं, निष्ठाओं तथा आस्थाओं पर निर्भर करता है… हाँ, व्रत उपवास आदि का पालन यदि इस अवधि में किया जाए तो स्वास्थ्य की दृष्टि से उत्तम ही रहेगा…
बहरहाल, मान्यताएँ और निष्ठाएँ, आस्थाएँ जिस प्रकार की भी हों और विज्ञान के साथ उनका सम्बन्ध स्थापित हो या नहीं, हमारी तो यही कामना है कि सब लोग स्वस्थ तथा सुखी रहें, दीर्घायु हों ताकि भविष्य में भी इस प्रकार की भव्य खगोलीय घटनाओं के साक्षी बन सकें…