कालसर्प दोष
नमस्कार मित्रों ! अभी पिछले कुछ दिनों से कालसर्प योग के विषय में विद्वान् लोग जन साधारण को सावधान कर रहे हैं | तो लिखने का लोभ संवरण नहीं कर पाए | जी हाँ, नव वर्ष का आरम्भ ही कालसर्प योग के साथ हुआ था जो अभी कुछ समय और जन साधारण को कष्ट पहुँचा सकता है | इस समय राहु-केतु क्रमशः वृषभ और वृश्चिक राशियों में भ्रमण कर रहे हैं – जहाँ से 17 मार्च को प्रातः छह बजकर इक्कीस मिनट के लगभग 18 माह के बाद क्रमशः मेष और तुला राशियों में आ जाएँगे | लेकिन शेष सभी ग्रह इस समय भी राहु-केतु के मध्य ही रहेंगे | चौबीस अप्रैल को अर्द्ध रात्रि में सवा बारह बजे के लगभग बुध वृषभ राशि में पहुँचकर कालसर्प योग को समाप्त कर देगा |
सबसे पहले जानते हैं कि कालसर्प योग होता क्या है | जब किसी व्यक्ति की कुण्डली में राहु केतु के मध्य सारे ग्रह आ जाते हैं तब उसे कालसर्प दोष कहा जाता है | ज्योतिषियों का मानना है कि यदि किसी की जन्मकुण्डली में कालसर्प दोष है तो उसके कारण व्यक्ति को आर्थिक व शारीरिक समस्याओं का सामना तो करना ही पड़ता है साथ ही सन्तान सम्बन्धी कष्ट भी उस व्यक्ति को हो सकता है | बड़े से बड़े धनाढ्य परिवार में जन्म लिया हुआ जातक भी जब कालसर्प दोष में होता है तो उसे भयंकर अभावों का सामना करना पड़ सकता है – और ऐसा व्यवहार में देखा भी गया है | राहु और केतु को एक राशि से दूसरी राशि में पहुँचने में लगभग 18 महीने अर्थात डेढ़ वर्ष का समय लगता है | और इस देश वर्ष की अवधि में अनेक बार कालसर्प योग बनता है |
किन्तु कालसर्प दोष सदा ही अशुभ फल नहीं देता | किस व्यक्ति पर इसका क्या प्रभाव हो सकता है यह जानने के लिए व्यक्ति की कुण्डली का व्यापक अध्ययन और विश्लेषण किया जाना आवश्यक है | अक्सर बहुत से विद्वान् कालसर्प दोष से लोगों को इतना भयभीत कर देते हैं कि वह उनके बताए अनुसार उपाय करने में ही अपना बहुत सा धन और मानसिक शान्ति नष्ट कर देता है | इसलिए यदि कोई पण्डित जी आपको कालसर्प के दोष से भयभीत करने का प्रयास करते हैं तो आपको घबराने की कोई आवश्यकता नहीं है | दो तीन ज्योतिषियों से अपनी कुण्डली का व्यापक विश्लेषण करवाएँ और उसके बाद ही किसी निष्कर्ष पर पहुँचें | साथ ही, कालसर्प दोष के निवारण हेतु जो भी उपाय बताए जाएँ उनके साथ साथ जो भी आपका इष्ट हो उसका ध्यान करना मत भूलिए…
कालसर्प दोष मुख्य रूप से बारह प्रकार के होते हैं जिनका निर्धारण किसी जातक की कुण्डली का अध्ययन करके ही किया जा सकता है और उनके प्रभाव भी कुण्डली के बारहों भावों में राहु-केतु के गोचर के आधार पर ही होते हैं तथा उन्हीं के अनुसार उनके निवारण के उपाय भी भिन्न भिन्न होते हैं | जिनके विषय में विस्तार के साथ चर्चा आने वाले समय में करेंगे | किन्तु अभी, सामान्य रूप से कालसर्प दोष के निराकरण के लिए जो विधान किया जाता है उस पर चर्चा करते हैं | निश्चित रूप से पहली जनवरी 2022 का सूर्योदय सात बजकर तेरह मिनट पर कालसर्प दोष में ही हुआ है | इस समय धनु लग्न थी और केतु बारहवें भाव में मंगल के साथ था तथा राहु छठे भाव में | कोरोना का प्रकोप लगभग दो वर्षों से समस्त संसार झेल ही रहा है | न जाने कितने लोगों ने अपने प्रियजनों को इस अवधि में खोया है सभी जानते हैं | किन्तु इसके लिए केवल कालसर्प दोष को ही उत्तरदायी नहीं माना जा सकता – और भी बहुत से कारण हैं |
लेकिन अभी बात कर रहे हैं कालसर्प दोष की – तो इसके लिए प्रमुख रूप से तो भगवान शिव की उपासना का विधान है | विशेष रूप से प्रदोष के दिन यदि इस कार्य को किया जाए तो वह विशेष फलदायी माना जाता है | और यदि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी अर्थात महाशिवरात्रि के दिन इस उपाय को कर लिया जाए तो उसे तो अत्यधिक अनुकूल फल देने वाला मानते हैं |
इसके लिए आप अपने घर में ही शिवलिंग का अभिषेक कर सकते हैं | शिवलिंग नहीं भी है तो भगवान शंकर की प्रतिमा अथवा चित्र रखकर उसके समक्ष बैठकर उपासना की जा सकती है | अपने समक्ष भोले बाबा का एक चित्र अथवा प्रतिमा अथवा शिवलिंग रख लें | मिट्टी का भी शिवलिंग बना सकते हैं | उसे एक पात्र में रख दें और गाय के दूध में गाय का घी, गंगाजल, मधु, चन्दन तथा हल्दी मिलाकर श्रद्धा पूर्वक उस प्रतिमा का अभिषेक करें | उसके बाद या तो चाँदी का सर्प किसी पात्र में रख लें | यदि चाँदी का सर्प नहीं ला सकते हैं तो किसी कागज़ पर सर्प का आकार बनाकर उसे किसी पात्र में या दीवार के सहारे खड़ा कर लें और और जिस जल से भोले शंकर का अभिषेक किया था उसी जल से इस सर्प को भी अभिषिक्त करें तथा रक्त-श्वेत पुष्पों और अक्षत चन्दन आदि से इसकी पूजा करके कम से कम एक सौ आठ बार महामृत्युंजय मन्त्र का जाप करें | महामृत्युंजय मन्त्र का जितना अधिक जाप करेंगे उतना ही अच्छा रहेगा | बाद में फल मिष्टान्न आदि का भोग लगाकर प्रसाद रूप में परिवार सहित ग्रहण करें | और एक महत्त्वपूर्ण बात, किसी भी मन्त्र का जाप यदि स्वयं ही श्रद्धा भक्तिपूर्वक किया जाए तब ही उसका अनुकूल फल प्राप्त होता है… अतः जितना सम्भव हो स्वयं ही इस मन्त्र का जाप करें…
तो, प्रस्तुत है महामृत्युंजय मन्त्र…
ॐ ह्रौं जूँ सः ॐ | ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ |
ॐ त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् |
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ||
ॐ स्वः भुवः भू: ॐ | ॐ सः जूँ ह्रौं ॐ |
त्रयम्बकम् – जिनकी इच्छाशक्ति, क्रियाशक्ति और ज्ञानशक्ति ये तीन विश्व का निर्माण करने वाली माताएँ हैं | अथवा जिनके त्रीणि अम्बकानि – तीन नेत्र हैं – ज्योतिषियों के अनुसार भूत, भविष्य और वर्तमान ये तीन नेत्र भगवान शंकर के माने जाते हैं, सांख्य सत्व, रजस और तमस इन तीन गुणों को भगवान शिव के तीन नेत्र मानता है, और याज्ञिक पृथिवीद्यौरन्तरिक्षौ अर्थात पृथिवी, द्यु तथा अन्तरिक्ष इन तीनों लोकों को महादेव के तीन नेत्र मानते हैं |
सुगन्धिम् – जो समस्त तत्वों को उनके वास्ताविक रूप – वास्तविक सुगन्धि – को बनाए रखने की सामर्थ्य प्रदान करता है | अर्थात किसी प्रकार का विकार किसी तत्व में नहीं आने देता |
पुष्टिवर्धनम् – जो समस्त चराचर का पालन करने वाला है – पौष्टिकता प्रदान करने वाला है |
यजामहे – ऐसे उस परमेश्वर का हम यजन करते हैं |
उर्वारुकमिव मृत्योर्बन्धनात् – जिस प्रकार पका हुआ बिल्वफल बिना किसी कष्ट के वृक्ष के बन्धन से मुक्त हो जाता है उसी प्रकार हम भी जन्म-मरण रूपी अज्ञान के बन्धन से मुक्त हो जाएँ |
अमृतात मा मुक्षीय – और उस अमर प्रकाशस्वरूप ब्रह्म से कभी हमारा सम्बन्ध छूटने न पाए |
ऐसी उदात्त भावना जिस मन्त्र की है उसके जाप से निश्चित रूप से न केवल कालसर्प दोष वरन सभी प्रकार के कष्टों से सबको मुक्ति प्राप्त हो, और कोरोना की भयावहता से मुक्त होकर पुनः जन जीवन सामान्य गति पर लौट आए यही हमारी सबके लिए मंगलकामना है… साथ ही, यदि हम सभी ने अपनी जीवन शैली में थोड़ा सा सुधार कर लिया और अपने कर्त्तव्य कर्मों को पूर्ण निष्ठा का साथ करते रहे तो किसी भी प्रकार का दोष हमारा कुछ अनर्थ नहीं कर सकता…