आमन्त्रण और निमन्त्रण
कल किन्हीं मित्र ने वेबिनार के लिए निमन्त्रण दिया – हमें कुछ परिहास सूझा और पूछ लिया “फिर से सोच लीजिए आमन्त्रण या निमन्त्रण… क्योंकि “निमन्त्रित” करेंगी तो भोजन की व्यवस्था भी करनी होगी उसके लिए… और ज़ूम पर ये कैसे सम्भव होगा…?”
प्रायः लोग आमन्त्रण और निमन्त्रण दोनों का अभिप्राय एक ही मान लेते हैं – जबकि मूलार्थ एक होते हुए भी भाव के गाम्भीर्य में अन्तर है | बात ऐसी है कि दोनों ही शब्दों में “मन्त्र” को एक ही स्थान पर लिया गया है – “आ उपसर्ग पूर्वक मन्त्र” और “नि उपसर्गपूर्वक मन्त्र” | इन्हीं उपसर्गों के कारण दोनों शब्दों के शब्दार्थ वही रहते हैं – बुलाना, लेकिन भाव विशिष्ट हो जाते हैं | यही वह वैशिष्ट्य है जिसके कारण हमारे मनीषियों ने आमन्त्रण और निमन्त्रण दो पृथक पृथक शब्दों का प्रयोग पृथक पृथक अवसरों के लिए आरम्भ किया |
आमन्त्रण शब्द में पूर्ण सम्मानपूर्वक किसी को आमन्त्रित करने का भाव निहित है, वहीं दूसरी ओर निमन्त्रण की भी मूलभूत भावना तो वही है किन्तु उसमें भोजन आदि का आयोजन भी सम्मिलित है | आपने देखा होगा कि मंच पर किसी प्रस्तुति के लिए, किसी मीटिंग आदि के लिए जो बुलावा आता है उस पर “आमन्त्रण” लिखा होता है – हम आपको अमुक कार्यक्रम में आमन्त्रित करते हैं | किन्तु ब्याह शादी या अन्य किसी इसी प्रकार के अन्य समारोह में – जहाँ भोजन अथवा जलपान आदि की भी व्यवस्था हो वहाँ “निमन्त्रण पत्र” भेजा जाता है – “न्यौता” अथवा “नौतना” जैसे सामान्य बोलचाल के शब्द भी इसी “निमन्त्रण” से ही निकले हुए शब्द हैं | अँग्रेज़ी में दोनों स्थानों पर “इनविटेशन” शब्द का प्रयोग किया जा सकता है – किन्तु संस्कृत-हिन्दी में उनके भावों की गहराई को देखते हुए उन्हें अलग अलग शब्द दिए गए हैं – और यही सौन्दर्य विशेषता है इन भाषाओं की |
आमन्त्रण किसी विशेष लक्ष्य को ध्यान में रखकर दिया जाता है किन्तु निमन्त्रण में लक्ष्य के साथ साथ लोकाचार का भी ध्यान रखा जाता है |
दूसरे शब्दों में कहें तो मीटिंग, सेमिनार, समाज सेवा के कार्य, कला-संस्कृति अथवा साहित्यिक गतिविधियों में प्रस्तोता अथवा श्रोता या दर्शक के रूप में आपको आमन्त्रित किया जाता है – आज कोरोना जैसी परिस्थितियों के चलते इन कार्यक्रमों में आपकी शारीरिक उपस्थिति आवश्यक नहीं – आजकल सब ऑनलाइन अर्थात हमारी एक मित्र के शब्दों में “आभासीय” भी हो सकता है | जबकि “निमन्त्रण” में शारीरिक उपस्थिति आवश्यक होती है क्योंकि वहाँ उत्सव समारोह के साथ साथ भोजनादि का प्रबन्ध भी होता है जो ऑनलाइन में सम्भव ही नहीं |
और भी सरल शब्दों में कहें तो आमन्त्रण को “ऑफिशियल इनविटेशन” यानी औपचारिक आमन्त्रण कह सकते हैं – जहाँ कार्यक्रम के सम्पन्न होने पर या उससे पूर्व कुछ जलपान की व्यवस्था हो भी सकती है – किन्तु आवश्यक नहीं है | निमन्त्रण “पर्सनल इनविटेशन” यानी व्यक्तिगत न्यौता है जिसमें जलपान भोजनादि की व्यवस्था आवश्यक है |
पाणिनीय सूत्र 3-3-162 में आमन्त्रण और निमन्त्रण दोनों शब्दों का प्रयोग हुआ है | इसकी टीका में इन दोनों में अन्तर बताया गया है – “नियतरूपेण आह्वानं नियोगकरणम् | आमन्त्रणम् कामचारेण आह्वानम् आगच्छेत् वा न वा | अर्थात् निमन्त्रण का प्रयोग तब किया जाता है जब निमन्त्रित व्यक्ति का आना आवश्यक समझा जाता है जबकि आमन्त्रण – कामचार से बुलाना, आना न आना आमन्त्रित व्यक्ति की इच्छा पर निर्भर करता है |