जय माँ सरस्वती

जय माँ सरस्वती

जय माँ सरस्वती

माता सरस्वती – जो समस्त प्रकार के ज्ञान विज्ञान की अधिष्ठात्री देवी हैं – समस्त कलाओं की दात्री हैं – की उपासना का दिन है वसन्त पञ्चमी का पावन पर्व – माघ शुक्ल पञ्चमी यानी पाँच फरवरी –जब माघ मास लगभग समाप्त होने को होता है तब ठण्ड की विदाई के साथ जब वसन्त ऋतु का आगमन होता है, उस समय मानों ऋतुराज के स्वागत हेतु समस्त धरा अपने हरे घाघरे के साथ सरसों का पीला उत्तरीय और पलाश के पीत पुष्पों की चूनर ओढ़ लेती है… और वृक्षों की टहनियों रूपी अपने हाथों में ढाक के श्वेत पुष्पों के चन्दन से ऋतुराज के माथे पर तिलक लगाकर लाल पुष्पों के दीपों से कामदेव के प्रिय मित्र का आरता उतारती है… आज ही के दिन माँ वाणी का प्रादुर्भाव माना जाता है… जो कुन्द के श्वेत पुष्प, धवल चन्द्र, श्वेत तुषार तथा धवल हार के सामान गौरवर्ण हैं… जो शुभ्र वस्त्रों से आवृत हैं… हाथों में जिनके उत्तम वीणा सुशोभित है… जो श्वेत पद्मासन पर विराजमान हैं… ब्रह्मा विष्णु महेश आदि देव जिनकी वन्दना करते हैं… तथा जो समस्त प्रकार की जड़ता को दूर करने में समर्थ हैं… ऐसी भगवती सरस्वती हमारा उद्धार करें तथा जन जन के हृदयों में नवीन आशा और विश्वास का संचार करें… माँ वाणी – सरस्वती – विद्या की – ज्ञान की देवी हैं… और जब हम ज्ञान विज्ञान की बात करते हैं तो उसका अर्थ केवल पुस्तकीय ज्ञान ही नहीं होता… ज्ञान का अर्थ है शक्ति प्राप्त करना, सम्मान प्राप्त करना… ज्ञानार्जन करके व्यक्ति न केवल भौतिक जीवन में प्रगति कर सकता है अपितु मोक्ष की ओर भी अग्रसर हो सकता है… पुराणों में कहा गया है “सा विद्या या विमुक्तये” (विष्णु पुराण 1/19/41) अर्थात ज्ञान वही होता है जो व्यक्ति को मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर करे… और मोक्ष का अर्थ शरीर से मुक्ति नहीं है… मोक्ष का अर्थ है समस्त प्रकार के भयों से मुक्ति, समस्त प्रकार के सन्देहों से मुक्ति, समस्त प्रकार के अज्ञान – कुरीतियों – दुर्भावनाओं से मुक्ति – ताकि व्यक्ति के समक्ष उसका लक्ष्य स्पष्ट हो सके और उस लक्ष्य तक पहुँचने का मार्ग प्रशस्त हो सके…

कुछ प्रदेशों में इस दिन शिशुओं को पहला अक्षराभ्यास आरम्भ कराया जाता है | किसी अन्य दिन अक्षरारम्भ कराने के लिए जहाँ मुहूर्त की बात होती है वहीं इस दिन मुहूर्त निकलने की कोई आवश्यकता नहीं होती क्योंकि इसे “अबूझ” मुहूर्त कहा जाता है – अर्थात यह तिथि प्रत्येक कार्य के लिए शुभ मानी जाती है – अर्थात जब कोई भी शुभ मुहूर्त न मिल रहा हो तो बिना मुहूर्त देखे ही इस दिन समस्त शुभ तथा मांगलिक कार्य किये जा सकते हैं | कितना विचित्र संयोग है कि इस दिन एक ओर जहाँ ज्ञान विज्ञान की अधिष्ठात्री देवी माँ सरस्वती को श्रद्धा सुमन समर्पित किये जाते हैं वहीं दूसरी ओर प्रेम के देवता कामदेव और उनकी पत्नी रति को भी स्नेह सुमनों के हार से आभूषित किया जाता है… क्योंकि वसन्त कामदेव की ही तो सन्तान है…

इस अवसर पर वाग्देवी (ऋग्वेद में माँ सरस्वती के दो रूप उपलब्ध होते हैं – वाग्देवी और सरस्वती) को श्रद्धा सहित नमन करते हुए प्रस्तुत है सरस्वती स्तोत्रम्… सरस्वती गायत्री के साथ…

ॐ वाग्देव्यै च विद्महे कामराजाय धीमहि तन्नो देवि प्रचोदयात – सरस्वती गायत्री

माता सरस्वती
माता सरस्वती

पावका नः सरस्वती वाजेभिर्वाजिनीवतीयज्ञं वष्टु धियावसुः

चोदयित्री सूनृतानां चेतन्ती सुमतीनाम्यज्ञं दधे सरस्वती

महो अर्णः सरस्वती प्र चेतयति केतुनाधियो विश्वा वि राजति

ऋग्वेद – 1/3/10-12

हे माता सरस्वती आपको जो यज्ञ हम समर्पित कर रहे हैं उसके द्वारा आपका प्रदत्त ज्ञान हमारे मनों में सदा निवास करे | माँ सरस्वती हमें सत्य के लिए प्रेरित करती रहें और हमारी सद्बुद्धि को जागृत करती रहें | माता सरस्वती को हम यज्ञ समर्पित करते हैं | विश्व में ज्ञान का प्रकाश प्रसारित करने वाली माँ सरस्वती हमारी बुद्धि में भी वृद्धि करें |

या कुन्देन्दु तुषारहारधवला या शुभ्र वस्त्रावृता

या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना |

या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभितिभिर्देवैः सदा वन्दिता

सा मां पातु भगवती सरस्वती नि:शेषजाड्यापहा ||

जो कुन्द के श्वेत पुष्प, धवल चन्द्र, श्वेत तुषार तथा धवल हार के सामान गौरवर्ण हैं, जो शुभ्र वस्त्रों से आवृत हैं, हाथों में जिनके उत्तम वीणा सुशोभित है, जो श्वेत पद्मासन पर विराजमान हैं, ब्रह्मा विष्णु महेश आदि देव जिनकी वन्दना करते हैं तथा जो समस्त प्रकार की जड़ता को दूर करने में समर्थ हैं ऐसी भगवती सरस्वती हमारा उद्धार करें |

लक्ष्मीर्मेघा धरा पुष्टिर्गौरी तुष्टि: प्रभा धृति :

एताभि पाहि तनुभिरष्टाभिर्मा सरस्वति ||

लक्ष्मी, मेघा, धरा, पुष्टि, गौरी, तुष्टि, प्रभा और धृति इन अष्ट मूर्तियों सहित हे माता सरस्वती हमारी रक्षा करो |

सरस्वत्यै नमो नित्यं भद्रकाल्यै नमो नमः

वेदवेदान्तवेदांगविद्यास्थानेभ्यः एव च ||

जो समस्त वेद, वेदान्त, वेदांग तथा समस्त विद्याओं का मूल स्थान हैं ऐसी माता भद्रकाली सरस्वती को हम प्रणाम करते हैं |

सरस्वति महाभागे विद्ये कमललोचने

विद्यारूपे विशालाक्षि विद्यां देहि नमोSस्तु ते ||

हे महाभाग्यवती, ज्ञानरूपा, कमल के सामान नेत्रों वाली तथा ज्ञान की दात्री देवी माँ सरस्वति हमारा समस्त अज्ञान दूर कर हमें ज्ञान का प्रकाश प्रदान करो, हम तुम्हें प्रणाम करते हैं |

सरस्वती पूजन के पावन पर्व पर हमारी सभी के लिए यही कामना है कि माँ वाणी हम सबके हृदयों से अज्ञान का अन्धकार दूर कर ज्ञान का प्रसारित करें… और कामदेव के प्रिय सखा तथा पुत्र ऋतुराज वसन्त का वासन्ती पर्व सभी का मनों में निरन्तर अविरल उत्साह उमंग की वासन्ती मलय पवन प्रवाहित करता रहे… इसी भावना के साथ सभी को सरस्वती पूजन और वसन्त पञ्चमी की हार्दिक शुभकामनाएँ…