प्रार्थना क्या किस हेतु और कब

प्रार्थना क्या किस हेतु और कब

प्रार्थना क्या, किस हेतु और कब

हमारी एक मित्र ने कुछ दिन पूर्व हमसे एक प्रश्न किया था कि प्रार्थना क्या, किस हेतु और कब की चाहिये | हम सम्भवतः इसका उत्तर देने के लिए योग्य पात्र तो नहीं हैं, किन्तु फिर भी – हमें जो समझ आता है वो लिख रहे हैं…

हमारे विचार से परमात्मा से अथवा किसी भी व्यक्ति या प्राणी से अपने मन की बात “निवेदन” करना ही प्रार्थना कहलाता है | और जब हम “परमात्मा” की बात करते हैं तो जैसे कि इसके अर्थ से ही ध्वनित होता है – परम + आत्मा – अर्थात अपनी अन्तरात्मा – जो हमारे सहित सभी जीवों में एक समान है और वह अनादि अनन्त है – न कभी वह जन्मा था न कभी उसका अन्त होगा – न कभी उसे किसी प्रकार की कोई हानि ही पहुँचाई जा सकती है – वह इस सबसे परे है – वह तो क्षीण हो चुके शरीर रूपी अपने पुराने वस्त्रों को उतार नवीन कलेवर धारण कर पुनः पुनः आता रहता है | और यही परमात्मतत्व ईश्वर कहलाता है |

प्रार्थना शब्द की उत्पत्ति प्र उपसर्गपूर्वक अर्थ में शब्द से हुई है | प्र का अर्थ है प्रकर्षेण अर्थात तीव्र उत्कंठा के साथ – तथा अर्थना का अर्थ है इच्छा करना – निवेदन करना | इस प्रकार प्रार्थना का शाब्दिक अर्थ हुआ अपने से विशिष्ट से दीनता पूर्वक पूर्ण उत्कंठा के साथ कुछ इच्छा रखना अथवा याचना करना | विचार पूर्वक देखें तो इच्छा करना और याचना दोनों ही प्रार्थना का प्रयोजन हैं – किन्तु याचना में संकल्प का बल नहीं होता जबकि इच्छा करने में संकल्प शक्ति दृढ़ होती है | याचक को केवल अपनी बात निवेदन करने के अतिरिक्त और कुछ करने की आवश्यकता नहीं होती – जबकि इच्छा करने में आत्म गौरव, आत्म सन्तुष्टि तथा आत्म विश्वास जैसी भावनाएँ भी जागृत होने लगती हैं | किन्तु यदि सामान्य रूप से देखा जाए तो प्रार्थना ही याचना भी है और प्रार्थना ही इच्छा भी है | अपने से विशिष्ट के समक्ष प्रार्थना करते समय व्यक्ति के मन का अहंकार आदि भाव नष्ट हो जाते हैं तथा व्यक्ति के मन तथा स्वभाव में विनम्रता तथा निरभिमानता जैसे गुण विकसित हो जाते हैं | लौकिक स्तर पर अपने से अधिक सामर्थ्य वाले व्यक्ति के समक्ष प्रार्थना की जाती है, वहीं आध्यात्मिक स्तर पर परमात्मा के समक्ष निवेदन किया जाता है | और परमात्मा – जैसा कि ऊपर लिखा – अपना आत्मा ही निरन्तर अभ्यास के द्वारा परमात्मतत्व के स्तर पर पहुँच जाता है और जब हम ईश्वर अथवा किसी भी विशिष्ट के समक्ष किसी प्रकार की प्रार्थना कर रहे होते हैं तो वास्तव में हम अपनी आत्मा को ही इतना दृढ़संकल्पशाली बना रहे होते हैं कि उसकी प्रार्थना स्वीकार करके वह विशिष्ट उस इच्छा को पूर्ण करने के लिए प्रतिबद्ध हो जाए | ये विशिष्ट कोई भी हो सकता है – माता पिता, अन्य गुरुजनों और प्रियजनों के समक्ष भी विनम्रता पूर्वक जो बातें रखी जाती हैं वे भी प्रार्थना ही कहलाती हैं | यहाँ तक कि प्रस्तर प्रतिमा, पशु पक्षी, चित्र – अर्थात कोई भी वह वस्तु जिसे हम प्राणवान मानते हैं तथा कोई भी जीव – जब हम विनम्रता पूर्वक उसके समक्ष समर्पण भाव से अपने हृदय की बात रखते हैं तो उसे ही प्रार्थना कहा जाता है |

प्रार्थना के माध्यम से हम अपनी अथवा दूसरों की इच्छाओं को पूर्ण करने का प्रयास करते हैं | ये जितने भी तन्त्र मन्त्र यज्ञ यागादि हैं सब प्रार्थना के ही अलग अलग रूप हैं | प्रार्थना सूक्ष्म स्तर पर कार्य करती है | जब कोई व्यक्ति पूर्ण मनोयोग से प्रार्थना कर रहा होता है तब उसके चारों ओर इस प्रकार की आभा प्रसारित हो जाती है जो दीख तो नहीं पड़ती किन्तु प्रार्थना करने वाले व्यक्ति के हृदय को – उसके आस पास के वातावरण को – प्रकृति को – इतना सशक्त बना देती है कि वह व्यक्ति या तो अपनी समस्याओं का समाधान करने में समर्थ हो जाता है – अथवा स्वयं को सहर्ष समस्याओं के अनुरूप ढाल लेता है |

प्रार्थना व्यक्तिगत स्तर भी की जा सकती है और सामूहिक स्तर पर भी | किन्तु इतना निश्चित है कि जिस भी स्तर पर की जाए – प्रकृति में अनुकूल परिवर्तन आरम्भ हो जाते हैं |

प्रार्थना करने के लिए न तो कोई समय निश्चित होता है न ही किसी प्रकार का कोई नियम है | नियम है तो मात्र इतना कि पूर्ण मनोयोग से समर्पण भाव से विनम्रता पूर्वक अपनी बात उस तत्व के समक्ष प्रस्तुत की जाए जिसकी हम प्रार्थना कर रहे हैं | इतना अवश्य है कि प्रार्थना करते समय मन तथा वातावरण शान्त और अनुकूल स्थिति में होना चाहिए |

प्रार्थना सदैव एकान्त में की जानी चाहिए | हेतु का जहाँ तक प्रश्न है – तो ये व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है कि वह किस हेतु प्रार्थना कर रहा है – किन्तु किसी अन्य को कष्ट पहुँचाने के उद्देश्य से नहीं की जानी चाहिए | साथ ही यदि किसी प्राणी – अर्थात मनुष्य गुरु आदि – के समक्ष कोई प्रार्थना निवेदित कर रहे हैं तो उसके समय तथा मनोभावों का ध्यान रखना भी आवश्यक है |

आशा है हमारी मित्र हमारे इस उत्तर से सन्तुष्ट हुई होंगी…