महाशिवरात्रि पर्व 2022
ॐ त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् |
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्तीयमामृतात् ||
प्रतिवर्ष फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि के व्रत का पालन किया जाता है, जिसे शिव पार्वती के विवाह का अवसर – शिव अर्थात कल्याण और शक्ति के मिलन का प्रतीक – माना जाता है – अर्थात मंगल के साथ शक्ति का मिलन | किन्तु यह भी जान लेना अत्यन्त आवश्यक है कि शिव-पार्वती का यह मिलन किसी भौतिक अथवा सांसारिक अथवा दैहिक सुख की प्राप्ति के लिए नहीं था, अपितु तारकासुर के आतंक से समस्त ब्रह्माण्ड को मुक्त कराने के निमित्त कार्तिकेय के रूप में सन्तान की प्राप्ति के लिए था – अतः पूर्ण रूपेण आध्यात्मिक था – और इसीलिए इस विवाहोत्सव में किसी प्रकार के सांसारिक रीति रिवाज़ों के लिए स्थान नहीं था | अध्यात्म में किसी भी संस्कार के लिए कोई स्थान नहीं रह जाता, वह इस सबसे बहुत ऊपर का विषय होता है | यही कारण है कि इस दिन पूर्ण भक्ति भाव से शिव और शक्ति की आराधना की जाती है ताकि हम सभी के मनों में जो भी कालुष्य अथवा अज्ञान रूपी असुर विद्यमान है उसे समाप्त किया जा सके |
कुछ पौराणिक मान्यताएँ इस प्रकार की भी हैं कि इसी दिन महादेव के विशालकाय स्वरूप अग्निलिंग से सृष्टि का आरम्भ हुआ था | जो भी मान्यताएँ हों, महाशिवरात्रि का पर्व समस्त हिन्दू समाज में बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है | इसी दिन ऋषि बोधोत्सव भी है, जिस दिन आर्यसमाज के प्रवर्तक स्वामी दयानन्द को सच्चे शिवभक्त का ज्ञान प्राप्त हुआ था और उनके हृदय से उदगार फूटे थे कि सच्चा शिव किसी मन्दिर या स्थान विशेष में विराजमान मूर्ति में निवास नहीं करता, अपितु वह इस सृष्टि के प्राणिमात्र में विराजमान है, और इसलिए प्राणिमात्र की सेवा ही सच्ची ईश्वरभक्ति है |
इस वर्ष मंगलवार पहली मार्च को महाशिवरात्रि का व्रत रखकर दो मार्च को इसका पारायण किया जाएगा | पहली मार्च को सूर्योदय से पूर्व 3:16 पर विष्टि करण और परिघ योग में फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी का उदय होगा जो उसी दिन अर्द्धरात्र्योत्तर एक बजे (दो मार्च की प्रातः भोर से भी पूर्व) तक रहेगी | तिथ्योदय के समय धनु लग्न, परिघ योग तथा विष्टि करण रहेगा, चन्द्रमा श्रवण नक्षत्र पर होगा, मकर राशि में शनि-शुक्र-मंगल-बुध-चन्द्र का पञ्चग्रही योग तथा कुम्भ राशि में सूर्य तथा गुरु का योग रहेगा | सूर्योदय 6:46 पर होगा और इस समय सूर्य तथा गुरु के योग में कुम्भ लग्न आ जाएगी, द्वादश भाव में पञ्चग्रही योग में मकर लग्न रहेगी और चन्द्रमा धनिष्ठा नक्षत्र पर आ जाएगा | ग्यारह बजकर सत्रह मिनट से व्रत के सम्पन्न होने तक शिव योग रहेगा | इस प्रकार ग्रह स्थितियाँ और योग सभी बहुत अनुकूल बन रहे हैं |
सामान्य रूप से निशीथ काल की पूजा इसी दिन मध्य रात्रि में होगी, क्योंकि रात्रि का मध्य भाग निशीथ काल कहलाता है – अर्थात पहली मार्च को मध्यरात्रि में बारह बजकर आठ मिनट से बारह बजकर अट्ठावन मिनट की अवधि में निशीथ काल का अभिषेक होगा | जिन लोगों को रात्रि में अभिषेक नहीं करना है और दिन में ही व्रत रखकर रात्रि में उसका पारायण करना चाहते हैं वे लोग भी इसी दिन व्रत रख सकते हैं | लेकिन जो लोग दिन में कुछ ही देर के लिए व्रत रखना चाहते हैं उन्हें पहली मार्च को दिन में व्रत रखकर उसी दिन अपराह्न तीन बजकर पच्चीस मिनट तक व्रत का पारायण कर देना चाहिए | विशेष रूप से पूजा अर्चना करने वाले भक्त गण भी सारा दिन उपवास रखकर रात्रि में चार प्रहर में चार अभिषेक करते हैं और दूसरे दिन व्रत का पारायण करते हैं… उनके लिए मुहूर्त इस प्रकार हैं…
रात्रि प्रथम प्रहर का अभिषेक – पहली फरवरी को सायं 6:21 से रात्रि 9:27 तक
रात्रि द्वितीय प्रहर का अभिषेक – पहली मार्च को ही रात्रि 9:27 से अर्द्ध रात्रि में 12:33 तक
रात्रि तृतीय प्रहर का अभिषेक – पहली मार्च को अर्द्ध रात्रि में 12:33 से दो मार्च को सूर्योदय से पूर्व 3:39 तक
रात्रि चतुर्थ प्रहर का अभिषेक – दो मार्च को सूर्योदय से पूर्व 3:39 से सूर्योदय के समय 6:45 तक, इसी समय व्रत का पारायण भी
कुछ मित्रों की जिज्ञासा है कि रात्रि में चार प्रहर की पूजा किसलिए की जाती है | तो पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शंकर भगवान निशीथ काल में ही शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए थे – यही कारण है कि मन्दिरों में निशीथ काल में ही लिंगोद्भव पूजा का विधान है | इसके अतिरिक्त, दश के यज्ञ में अपने पति का अपमान हुआ देखकर सती ने आत्मदाह कर लिया था और फिर पर्वतराज हिमालय की पत्नी मैना के गर्भ से उमा के रूप में जन्म लिया और पर्वतसुता होने के कारण पार्वती कहलाईं | शिव पत्नी सती के आत्मदाह के पश्चात तपस्या में लीन हो गए थे | इसी मध्य तारकासुर का आतंक बढ़ा तो ब्रह्मा जी ने बताया कि शिव और पार्वती की सन्तान ही इस असुर का वध करने में समर्थ है | तब नारद जी के कहने पर पार्वती ने शिव को पुनः पति के रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या आरम्भ कर दी | उधर तपस्यारत शंकर को तपस्या से बाहर लाना असम्भव था | तब कामदेव का सहारा लेकर येन केन प्रकारेण शिव को तपस्या से बाहर लाया गया और उन्हें पार्वती के साथ विवाह के लिए प्रेरित किया गया | मान्यता है कि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को शिव-पार्वती का विवाह सम्पन्न हुआ था | इसलिए भी रात्रि भर जागरण करके शिव पार्वती की पूजा अर्चना की जाती है |
पारम्परिक रूप से शिव मन्दिर में जाकर शिव परिवार को रोली, मौली, अक्षत, बिल्व पत्र, धतूरा, कमलगट्टा चन्दन तथा दधि-घृत-मधु-शर्करा-गंगाजल मिश्रित जल – जिसे पञ्चामृत कहा जाता है – अर्पित करने का विधान है | मन्दिर नहीं जा सकते हैं तो घर पर ही शिव परिवार के चित्र अथवा मूर्ति के समक्ष इन सभी वस्तुओं को समर्पित किया जाता है | किन्तु हमारा मानना है कि यदि इतना सब सम्भव नहीं भी हो तो केवल श्रद्धा भक्तिपूर्वक पूर्ण मनोयोग से भगवान शंकर के मन्त्रों का जाप करने से भी औघड़दानी प्रसन्न हो जाते हैं – इसीलिए तो इन्हें औघड़दानी कहा जाता है | भगवान शिव की पूजा अर्चना जहाँ होगी वहाँ आनन्द और आशीर्वाद की वर्षा तो निश्चित रूप से होगी ही | शिवरात्रि के पर्व के साथ बहुत सी कथाएँ भी जुड़ी हुई हैं और उन सभी कथाओं में कुछ न कुछ प्रेरणादायक उपदेश भी निहित हैं | हमारे विचार से :
मात पिता की सेवा ही गणपति का बीज मन्त्र कहलाती |
कृपादृष्टि तब “गं गणपति” की, सकल कष्ट हर कर ले जाती ||
आदिशक्ति माँ जगदम्बा से तब उद्धार जीव का होगा |
और आशीष उमा का तब ही सुख समृद्धि में वृद्धि करेगा ||
कितने तारक और भस्मासुर आ आतंक मचा जाएँ, पर
मिलन शक्ति और शिव का सब आतंकों का तब अन्त करेगा ||
जन जन में जब शिव को और कण कण में शंकर को देखेंगे |
“शं करोतीति शंकरः” यह बीजमन्त्र तब सार्थक होगा ||
जी हाँ, जो शं यानी शान्ति प्रदान करे वह शंकर – किन्तु शंकर भी तभी जन जन को शान्ति और कल्याण प्रदान करेंगे जब हम प्रकृति के कण कण में – प्रत्येक जन मानस में – शंकर का अनुभव करेंगे और न ही प्रकृति को न ही प्रकृति के मध्य निवास कर रहे किसी भी प्राणी को किसी प्रकार की हानि न पहुँचाने का संकल्प लेंगे – तभी वास्तव में शिवाराधन सार्थक माना जाएगा – तभी समस्त शिव परिवार की कृपादृष्टि जगत का कल्याण करेगी और शिव का ताण्डव समस्त प्रकार के दुर्भावों से जगत को मुक्त करेगा – और तभी हमें अनुभव होगा कि हमारा रोम रोम प्रसन्नता से प्रफुल्लित होकर लास्य कर रहा है – जो कि प्रतीक होगा कल्याण का – शान्ति का | साथ ही एक और महत्त्वपूर्ण तथ्य, शिवरात्रि अमावस्या के साथ आती है – यानी चन्द्रमा की नव प्रस्फुटित शीतल किरणों को आगे करके आती है – जो एक प्रकार से अन्धकार अर्थात सभी प्रकार के अज्ञान और कुरीतियों तथा दुर्भावनाओं पर प्रकाश अर्थात ज्ञान और सद्भावनाओं की विजय का भी प्रतीक है |
हम सभी प्रकृति के कण कण में शंकर का वास मानकर सभी के प्रति सद्भावना रखें तथा समाज में व्याप्त अनेक प्रकार की कुरीतियों पर विजय प्राप्त करने का प्रयास करें… इसी कामना के साथ सभी को महाशिवरात्रि पर्व की अनेकशः हार्दिक शुभकामनाएँ… भगवान शंकर सभी के जीवन में शान्ति और कल्याण की पावन गंगा प्रवाहित करें…