अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस की शुभकामनाएँ
हर पल चेतन मैं हूँ
मैं ही शिव हूँ, मैं पार्वती, मैं आदिशक्ति माँ दुर्गा भी |
मैं जननी सकल जगत की हूँ, मैं ब्रह्मा और मैं ही वाणी ||
जब कहीं कोई अन्याय लखूँ, ले हाथ सुदर्शन चल पड़ती |
विष्णु के सम मोहिनी बनी, भस्मासुर भस्म मैं कर देती ||
बन लक्ष्मी रूप, जगत को मैं धन शक्ति पूर्ण हूँ कर देती |
पर देख महिष का नर्तन, दुर्गा बन संहार मैं कर देती ||
नारद की वीणा के तारों में सुर मुझसे ही है भरता |
उपनिषदों वेद पुराण में, है कथा मेरी ही तो रहती ||
इस जन्म मरण की क्रीड़ा को मैं ही हूँ सत्य बना देती |
मैं आदिशक्ति, मैं हूँ अनन्त, मैं रुद्र, मैं ही हूँ रुद्राणी ||
मैं शून्य, मैं ही कोलाहल भी, मैं मुखर मौन का गायन भी |
मैं सदा रिक्त, परिपूर्ण भी हूँ, मुझमें ही अमृत भी, विष भी ||
मैं भद्रा भी, मैं काली भी, मैं चामुण्डा भी, चण्डी भी |
तो बन अनुराग जगत को मोहपाश में कभी बाँध लेती ||
में ही विराग बन हर जन को शंकर हूँ कभी बना देती |
तो नव सर्जन हित सकल प्रकृति में ब्रह्मरूप भी हूँ मैं ही ||
हर मन्त्रों और दिग्बन्धों में, हर युग में हर सम्वत्सर में
हूँ लक्ष्य मैं ही, मैं ही प्रयास, हूँ मानस का संकल्प मैं ही ||
शिव का ताण्डव भी मैं ही हूँ, नटराज बनी नर्तन करती |
शंकर करने हित रुद्र रूप, मैं ही हूँ लास्य लसा देती ||
जग को मुझ पर विश्वास अटल, तो क्यों सन्देह पलें मन में |
मैं बनकर अमर वेल मरुथल को स्नेह सरिस हूँ कर देती ||
मेरी गति द्रुत, ध्वनि कल कल छल, मैं सतत प्रवाहित नदिया सी |
उल्लास चपल, उन्माद तरल, हर मन में हूँ मैं भर देती ||
कैसे तुम रोक सकोगे गति को मेरी, हर पल चेतन मैं |
बन प्राणवायु, सम्पूर्ण जगत को जीवनदान मैं हूँ करती ||
इन्हीं पंक्तियों के साथ सभी को महिला दिवस की अनेकशः हार्दिक शुभकामनाएँ… कात्यायनी…