श्री राम जन्म महोत्सव
ततो यज्ञे समाप्ते तु ऋतूनां षटसमत्ययु:
ततश्च द्वादशे मासे चैत्रे नावमिके तिथौ ||
नक्षत्रेSदितिदैवत्ये सर्वोच्चसंस्थेषु पञ्चसु |
ग्रहेषु कर्कटे लग्ने वाक्पताविन्दुना सह ||
प्रोद्यमाने जगन्नाथं सर्वलोकनमस्कृतम् |
कौसल्याजनयद्रामं दिव्यलक्षणसंयुतम् || वा. रा. बालकाण्ड 18/8-10
यज्ञ समाप्ति के पश्चात जब छह ऋतुएँ बीत गईं तब बारहवें मास में चैत्र शुक्ल नवमी को पुनर्वसु नक्षत्र और कर्क लग्न में कौशल्या देवी ने दिव्य लक्षणों से युक्त सर्वलोकवन्दित जगदीश्वर श्री राम को जन्म दिया | उस समय उस समय सूर्य मेष में दशम भाव में, मंगल मकर में सप्तम में, शनि तुला में चतुर्थ में, गुरु कर्क में लग्न में, और शुक्र मीन का होकर नवम भाव में – इस प्रकार ये पाँच ग्रह अपनी अपनी उच्च राशियों में विराजमान थे, तथा लग्न में चन्द्रमा के साथ बृहस्पति विराजमान थे | कल चैत्र शुक्ल नवमी को एक ओर जहाँ कन्या पूजन के साथ वासन्तिक नवरात्र सम्पन्न होंगे वहीं दूसरी ओर भगवान श्री राम का जन्म महोत्सव भी धूम धाम से मनाया जाएगा… भगवान श्री राम के जन्मदिवस पर सभी को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ… सन्त कबीर की इस वाणी के साथ…
एक राम दशरथ का बेटा, एक राम घट घट में बैठा |
एक राम है जगत पसारा, एक राम जगत से न्यारा ||
यदि राम शब्द की व्युत्पत्ति पर विचार करें तो “रम्” धातु में “घञ्” प्रत्यय लगाकर “राम” शब्द निष्पन्न होता है – जिसका अर्थ है रमण करना, निवास करना | भगवान श्री राम सभी के हृदयों में रमण अर्थात निवास करते हैं और सभी भक्त गण उनमें रमण करते हैं अर्थात उनका ध्यान करते हैं – यही शाब्दिक और भाव अर्थ राम शब्द का है – “रमते कणे कणे इति रामः” – विष्णुसहस्रनाम पर अपने भाष्य में आदि शंकराचार्य पद्मपुराण का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए कहते हैं – नित्यानन्द स्वरूप भगवान में योगीजन रमण करते हैं इसलिए वे “राम” हैं |
भगवान श्री राम के जन्म और जीवन की घटनाओं के विषय में संसार में प्रायः हर कोई परिचित है | पौराणिक कथनों के अनुसार वैवस्वत मनु के दस पुत्र थे- इल, इक्ष्वाकु, कुशनाम, अरिष्ट, धृष्ट, नरिष्यन्त, करुष, महाबली, शर्याति और पृषध – इन्हीं में से इक्ष्वाकु के कुल में भगवान श्री राम का जन्म हुआ था जो अपने उच्चादर्शों, वचनबद्धता तथा कर्तव्य निष्ठता के कारण मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए | भगवान श्री राम की एक बहिन भी थी जिसका नाम शान्ता था और जिसे माता कौशल्या ने अपनी नि:सन्तान बहिन वर्षिणी को सौंप दिया था | भगवान श्री राम के जीवन अनेकों ऐसी घटनाएँ घटित हुईं कि साधारण मनुष्य उनसे विचलित हो जाए – किन्तु श्री राम तनिक विचलित हुए बिना कर्तव्य के मार्ग पर अग्रसर रहते हुए अपने उत्तरदायित्वों का निर्वाह करते रहे – जो उन्हें समस्त मनुष्यों में पुरुषोत्तम बनाता है |
वास्तव में भगवान श्री राम हिन्दू धर्म और आस्था के प्रतीक हैं… वे प्रतीक हैं मानवीय उच्चादर्शों के… वे प्रतीक हैं सन्तुलित और मर्यादित जीवन शैली के… मन्दिरों में जितनी भी भगवान श्री राम और माता जानकी की प्रतिमाएँ हैं वे केवल प्रस्तर प्रतिमा मात्र ही नहीं हैं, अपितु प्रतीक हैं उन महान आदर्शों की जिनका पालन करते करते ही नर के रूप में अवतरित नारायण मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए… यही कारण है कि भगवान श्री राम केवल भारतीयों के ही नहीं अपितु विश्व के कण कण में व्याप्त हैं… जिसका सबसे बड़ा प्रमाण यही है कि यद्यपि वाल्मीकि रामायण को श्री राम के जीवन चरित्र पर सबसे अधिक प्रामाणिक ग्रन्थ माना जाता है, किन्तु केवल भारत में ही नहीं वरन विश्व भर में भगवान राम के जीवन के सन्दर्भ में असंख्य ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं जिनमें उन देशों की संस्कृति के अनुसार राम चरित्र का वर्णन किया गया है | भारत की बात करें तो सर्वप्रथम तो महर्षि वेदव्यास ने ही महाभारत के आरण्यक पर्व में “रामोपाख्यान” के रूप में राम कथा वर्णित की है | इसके अतिरिक्त महाभारत के ही द्रोण पर्व और शान्ति पर्व में रामकथा के सन्दर्भ उपलब्ध होते हैं |
इनके अतिरिक्त दशरथ जातक, अनामक जातक तथा दशरथ कथानक नाम से तीन जातक कथाएँ बौद्ध परम्परा में उपलब्ध होती हैं | जैन साहित्य में राम कथा से सम्बन्धित अनेकों ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं – जिनमें आचार्य विमलसूरि द्वारा रचित प्राकृत भाषा में “पउमचरयं”, आचार्य रविषेण द्वारा रचित संस्कृत ग्रन्थ “पद्मपुराण”, स्वयंभू द्वारा अपभ्रंश में रचित “पउमचरिउ” तथा आचार्य गुणभद्र द्वारा संस्कृत में रचित “उत्तरपुराण” प्रमुख हैं | जैन परम्परा के अनुसार राम का मूल नाम “पद्म” था | राम कथा अन्य अनेक भारतीय भाषाओं में भी लिखी गई है | हिन्दी में कम से कम 11, मराठी में 8, बंगला में 25, तमिल में 12, तेलुगु में 12 तथा उड़िया में 6 रामायण उपलब्ध होती हैं – जिनमें गोस्वामी तुलसीदास रचित श्री राम चरित मानस को धर्म ग्रन्थ का स्थान प्राप्त है | गुजराती, मलयालम, कन्नड़, असमी, उर्दू, अरबी, फ़ारसी आदि भाषाओं में भी राम कथाएँ लिखी गई हैं | विदेशों में भी तिब्बती, पूर्वी तुर्किस्तान, इंडोनेशिया, जावा, बर्मा आदि देशों की भी अपनी अपनी रामायण हैं – जिनमें निश्चित रूप से उन देशों की धार्मिक सांस्कृतिक और सामाजिक मानयताओं के अनुसार राम कथा को रचा गया है |
वर्तमान में प्रचलित बहुत से राम-कथानकों में आर्ष रामायण, अद्भुत रामायण, कृत्तिवास रामायण, बिलंका रामायण, मैथिल रामायण, सर्वार्थ रामायण, तत्वार्थ रामायण, प्रेम रामायण, संजीवनी रामायण, उत्तर रामचरितम्, रघुवंशम्, प्रतिमानाटकम्, कम्ब रामायण, भुशुण्डि रामायण, अध्यात्म रामायण, राधेश्याम रामायण, श्री राघवेन्द्रचरितम्, मन्त्र रामायण, योगवाशिष्ठ, हनुमन्नाटकम्, आनन्द रामायण आदि का विशेष महत्त्व है |
इस सबसे हमें यही समझ आता है कि राम केवल एक मनुष्य मात्र नहीं है – वरन राम शब्द से आशय परब्रह्म से है… परमात्मतत्व से है… जो किसी भी जन्म मरण से परे है… किसी भी सांसारिकता से ऊपर है… किन्तु नर के रूप में कुछ महान आदर्शों की स्थापना के लिए वही परम तत्व नर के विग्रह में लीला रचता रहता है… और उस लीला के माध्यम से यही सिद्ध करने का प्रयास करता है कि उत्तम कर्मों द्वारा नर ही नारायण की पदवी प्राप्त कर लेता है… राम – एक ऐसा चरित्र जिसका सम्बन्ध न किसी धर्म से है न जाति से, न किसी देश से है न किसी विशिष्ट भाषा भाषी से… उसका सम्बन्ध तो समस्त विश्व से है… समस्त ब्रह्माण्ड से है…
भगवान श्री राम के प्रकाश की एक किरण भी यदि हम सबके हृदयों को प्रकाशित कर दे तो वास्तव में समूची धरा पर पुनः राम राज्य की स्थापना हो जाए… इसी भावना के साथ सभी को श्री राम जन्म महोत्सव की अनेकशः हार्दिक शुभकामनाएँ…
लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम् |
कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये ||