मेष संक्रान्ति

मेष संक्रान्ति

मेष संक्रान्ति

“ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् |” यजु. ३६/३

हम सब उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुख स्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को अपनी अन्तरात्मा में धारण करें, और वह ब्रह्म हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे |

संक्रान्ति शब्द का अर्थ है संक्रमण करना – प्रस्थान करना | इस प्रकार किसी भी ग्रह का एक राशि से दूसरी राशि पर संक्रमण अथवा संक्रमण संक्रान्ति ही होता है | किन्तु सूर्य का संक्रमण सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण माना जाता है | नवग्रहों में सूर्य को राजा माना जाता है तथा सप्ताह के दिन रविवार का स्वामी रवि अर्थात सूर्य को ही माना जाता है | सूर्य का शाब्दिक अर्थ है सबका प्रेरक, सबको प्रकाश देने वाला, सबका प्रवर्तक होने के कारण सबका कल्याण करने वाला | यजुर्वेद में सूर्य को “चक्षो सूर्योSजायत” कहकर सूर्य को ईश्वर का नेत्र माना गया है | सूर्य केवल स्थूल प्रकाश का ही संचार नहीं करता, अपितु सूक्ष्म अदृश्य चेतना का भी संचार करता है | यही कारण है कि सूर्योदय के साथ ही समस्त जड़ चेतन जगत में चेतनात्मक हलचल बढ़ जाती है | इसीलिए ऋग्वेद में आदित्यमण्डल के मध्य में स्थित सूर्य को सबका प्रेरक, अन्तर्यामी तथा परमात्मस्वरूप माना गया है – सूर्यो आत्मा जगतस्य…”

वेद उपनिषद आदि में सूर्य के महत्त्व के सम्बन्ध में अनेकों उक्तियाँ उपलब्ध होती हैं | जैसे सूर्योपनिषद का एक मन्त्र है “आदित्यात् ज्योतिर्जायते | आदित्याद्देवा जायन्ते | आदित्याद्वेदा जायन्ते | असावादित्यो ब्रह्म |” अर्थात आदित्य से प्रकाश उत्पन्न होता है, आदित्य से ही समस्त देवता उत्पन्न हुए हैं, आदित्य ही वेदों का भी कारक है और इस प्रकार आदित्य ही ब्रह्म है | अथर्ववेद के अनुसार “संध्यानो देवः सविता साविशदमृतानि |” अर्थात् सविता देव में अमृत तत्वों का भण्डार निहित है | तथा “तेजोमयोSमृतमयः पुरुषः |” अर्थात् यह परम पुरुष सविता तेज का भण्डार और अमृतमय है | इत्यादि इत्यादि

छान्दोग्योपनिषद् में सूर्य को प्रणव माना गया है | ब्रह्मवैवर्तपुराण में सूर्य को परमात्मा कहा गया है | गायत्री मन्त्र में तो है ही भगवान् सविता की महिमा का वर्णन – सूर्य का एक नाम सविता भी है – सविता सर्वस्य प्रसविता – सबकी सृष्टि करने वाला – यही त्रिदेव के रूप में जगत की रचना, पालन तथा संहार का कारण है | आत्मा का कारक, प्राणों का कारक, जीवनी शक्ति का – ऊर्जा का कारक सूर्य ही माना जाता है | यही कारण है कि सूर्य की संक्रान्ति का सबसे अधिक महत्त्व माना जाता है | सूर्योपासना से न केवल ऊर्जा, प्रकाश, आयु, आरोग्य, ऐश्वर्य आदि की उपलब्धि होती है बल्कि एक साधक के लिए साधना का मार्ग भी प्रशस्त होता है |

सूर्य को एक राशि से दूसरी राशि पर जाने में पूरा एक वर्ष का समय लगता है – और

पुथांडू
पुथांडू

यही अवधि सौर मास कहलाती है | वर्ष भर में कुल बारह संक्रान्तियाँ होती हैं | बारह सौर मासों के नाम हैं – मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्‍चिक, धनु, मकर, कुम्भ और मीन | आन्ध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, केरल, उड़ीसा, पंजाब और गुजरात में संक्रान्ति के दिन ही मास का आरम्भ होता है | जबकि बंगाल और असम में संक्रान्ति के दिन महीने का अन्त माना जाता है | यों तो सूर्य की प्रत्येक संक्रान्ति महत्त्वपूर्ण होती है, किन्तु मेष, कर्क, धनु और मकर की संक्रान्तियाँ विशेष महत्त्व की मानी जाती हैं |

इन बारह संक्रान्तियों को सप्ताह के सात दिनों में अलग अलग नामों अथवा वर्गों में विभाजित किया गया है | ये सात वर्ग हैं – रविवार की संक्रान्ति घोरा, सोमवार की ध्वांक्षी, मंगलवार की महोदरी, बुधवार की मंदाकिनी, गुरूवार की मन्दा, शुक्रवार की मिश्रिता तथा शनिवार की राक्षसी कहलाती है | इनके नक्षत्रों की युति के आधार पर पृथक पृथक परिणाम माने गए हैं जो किसी अन्य लेख में…

हम बात कर रहे हैं मेष संक्रान्ति की | इस संक्रान्ति का महत्त्व इसलिए भी माना जाता है क्योंकि इस दिन भगवान सूर्य उत्तरायण की अपनी आधी यात्रा पूर्ण कर लेते

बैसाखी
बैसाखी

हैं | साथ ही रबी की फसल इस समय तक पक जाती है इसलिए इसे पंजाब में वैशाखी के रूप में पूर्ण हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है | इसके अतिरिक्त 13 अप्रैल 1699 को जब सिख पन्थ के दसवें गुरु श्री गोबिन्द सिंह जी ने मुगलों के अत्याचारों से संघर्ष करने के लिए आनन्दपुर साहिब में खालसा पन्थ की स्थापना की थी उस दिन सायंकाल में सूर्य का मेष राशि में संक्रमण हुआ था | इसलिए भी सिख धर्म में इसका विशेष महत्त्व है | इसी दिन से पंजाब में नववर्ष का

रोंगली बिहू
रोंगली बिहू

आरम्भ माना जाता है | बैसाखी को सुख समृद्धि का पर्व माना जाता है | भारत एक अन्य प्रान्तों में भी इसे अलग अलग नामों से नव वर्ष तथा कृषि के सन्दर्भ में मनाया जाता है | असम का नववर्ष “रोंगाली बिहू”, तमिलनाडु का नव वर्ष “पुथांडू”, केरल का नव वर्ष “विशू”, बंगाल का नववर्ष “पोइला बैसाख” तथा बिहार का “सतुवानी” भी मेष संक्रान्ति को ही मनाया जाता है | सतुवानी में भी केवल सत्तू का आहार ग्रहण किया जाता है – इसका कारण सम्भवतः यह रहा होगा कि इस माह से गर्मी बहुत अधिक पड़ने लगती है, और सत्तू उस गर्मी को कम करके शीतलता प्रदान करता है…

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन पवित्र नदियों में स्नान का तथा दानादि का विशेष महत्त्व माना जाता है | विशेष रूप से इस दिन अन्न का दान किया जाता है | क्योंकि संक्रान्ति का सीधा सम्बन्ध कृषि, प्रकृति तथा ऋतु परिवर्तन से होता है | इस

विशु कनी
विशु कनी

वर्ष कल 14 अप्रैल यानी गुरूवार चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को प्रातः 8:41 के लगभग भगवान् भास्कर अपने एक मित्र गुरु की राशि मीन से निकल कर दूसरे मित्र मंगल की राशि मेष तथा अश्विनी नक्षत्र पर भ्रमण करने के लिए प्रस्थान करेंगे | मेष सूर्य की उच्च राशि भी है इसलिए भी इस संक्रान्ति का विशेष महत्त्व है | सूर्योदय इस दिन 5:57 पर है अतः पुण्यकाल भी इसी समय से आरम्भ हो जाएगा | वैशाखी भी मेष संक्रान्ति के ही अनुसार मनाने की प्रथा है इसीलिए किसी वर्ष 13 अप्रैल तो किसी वर्ष 14 अप्रैल को मनाई जाती है | इस वर्ष चौदह अप्रैल को यानी कल वैशाखी मनाई जाएगी | वैसे इस प्रकार के मस्ती भरे पर्व मनाने के लिए तिथि या मुहूर्त क्या देखना… जिस दिन और जिस समय जन मानस मस्ती में झूम उठे उसी दिन उत्सव है… आज ही मना लेते हैं…

भगवान भास्कर की स्वर्ण रश्मियों का प्रकाश हम सभी के जीवन में ज्ञान, सुख, समृद्धि तथा स्वास्थ्य की स्वर्णिम आभा प्रसारित करे इसी भावना के साथ सभी को बैसाखी, रोंगाली बिहू, पुथांडू, विशू, पोइला बैसाख और सतुवानी के साथ मेष संक्रान्ति की अनेकानेक हार्दिक शुभकामनाएँ….