श्रावण मास के व्रतोत्सव

श्रावण मास के व्रतोत्सव

श्रावण मास के व्रतोत्सव

श्रावण मास – 14 जुलाई से 12 अगस्त – के व्रतोत्सव

बुधवार तेरह जुलाई को अर्द्धरात्रि में बारह बजकर आठ मिनट पर आषाढ़ पूर्णिमा – जिसे व्यास अथवा गुरु पूर्णिमा भी कहा जाता है – समाप्त होकर श्रावण कृष्ण प्रतिपदा तिथि का आगमन हो जाएगा और इसी समय से भगवान शंकर के लिए समर्पित श्रावण मास आरम्भ हो जाएगा | सूर्योदय चौदह जुलाई को 5:32 पर मिथुन लग्न, बालव करण और वैधृति योग में तथा इस समय मंगल, बुध, शनि और गुरु स्वराशिगत होकर एक शुभ योग बना रहे हैं | इसी समय से श्रावण मास का आरम्भ माना जाएगा |

श्रावण माह का वैदिक नाम नभ है तथा इसमें श्रवण और धनिष्ठा नक्षत्रों का समावेश होता है | नभ नामक वैदिक माह की शुक्ल चतुर्दशी-पूर्णिमा को श्रवण नक्षत्र का उदय होता है अतः इस माह का हिन्दी नाम श्रावण है | “नभ शब्द से ही आभास हो जाता है इस मास में नभ की क्रियाशीलता का – मेघों की क्रीड़ाओं का – यही कारण है कि यह मास चातुर्मास अर्थात वर्षाकाल के चार महीनों में से एक है |

श्रावण मास भगवान शिव को अत्यन्त प्रिय है जिसका कारण बताया जाता है कि भगवान शिव इसी महीने में पृथ्वी पर अवतरित होकर अपनी ससुराल गए थे और वहाँ उनका स्वागत अर्घ्य और जलाभिषेक से किया गया था | माना जाता है कि प्रत्येक वर्ष इसी माह में भगवान शिव अपनी ससुराल आते हैं | पृथिवीवासियों के लिए शिव कृपा पाने का यह उत्तम समय होता है | ऐसी भी मान्यता है कि मार्कंडेय ऋषि ने इसी मास में अपनी दीर्घायु के लिए घोर तपस्या करके भगवान शिव को प्रसन्न किया था और उस तप के फलस्वरूप जो मन्त्र शक्तियाँ उन्हें प्राप्त हुईं उनके समक्ष यमराज भी नतमस्तक हो गए थे | ऐसी भी कथा है कि इसी मास में भगवान शंकर ने समुद्र मन्थन से प्राप्त हलाहल को अपने कंठ में धारण कर लिया थे जिसके कारण उनका कंठ नीला पड़ गया था, तब उस विष के प्रभाव को समाप्त करने के लिए देवों ने उनका जल से अभिषेक किया था और इसी घटना के प्रतीक स्वरूप भगवान शंकर के जलाभिषेक की प्रथा है | साथ ही चातुर्मास में भगवान विष्णु घोर निद्रा में लीन हो जाते हैं तब संसार के संचालन का भार भगवान शिव पर आ जाता है – इस कारण से भी यह मास भगवान शंकर की उपासना के लिए उत्तम मास माना जाता है |

पौराणिक मान्यताएँ जितनी भी हों, यदि व्यावहारिक दृष्टि से देखा जाए तो श्रावण मास का महत्त्व वर्षाकाल में मनाए जाने वाले उत्सवों जैसे हरियाली तीज और रक्षा बन्धन आदि के कारण और भी अधिक बढ़ जाता है | वर्षा के कारण जो स्वच्छ और ताज़ा हवा प्राप्त होती है वह समस्त प्रकृति को एक अनोखे आनन्द से भर देती है | ऐसे सुहावने मौसम में भला किसका मन होगा जो सामाजिक उत्तरदायित्वों के विषय में सोच विचार करे | स्वास्थ्य की दृष्टि से देखें तो वर्षा के कारण रोगों के संक्रमण में भी वृद्धि हो जाती है – क्योंकि यह ऋतुओं का सन्धिकाल होता है | अतः इस महीने में खान पान पर नियन्त्रण रखने का सुझाव दिया जाता है |

अस्तु, इस मास में आने वाले सभी पर्वों की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ प्रस्तुत है मास के प्रमुख व्रतोत्सवों की सूची…

गुरूवार 14 जुलाई – श्रावण कृष्ण प्रतिपदा / श्रावण मास का आरम्भ

श्रावण मास के व्रतोत्सवों की सूची
श्रावण मास के व्रतोत्सवों की सूची

शुक्रवार 15 जुलाई – श्रावण कृष्ण द्वितीया / सर्वार्थसिद्धि योग सूर्योदय से सायं 5:31 तक

शनिवार 16 जुलाई – श्रावण कृष्ण तृतीया / जय पार्वती व्रत सम्पन्न / कर्क संक्रान्ति / सूर्य का कर्क में गोचर रात्रि 10:57 के लगभग / पंचक आरम्भ सूर्योदय से पूर्व 4:18 पर / चोर पंचक (सूर्योदय से पूर्व लगने के कारण)

मंगलवार 19 जुलाई – श्रावण कृष्ण षष्ठी / सर्वार्थ सिद्धि योग सूर्योदय से दिन में 12:11 तक

बुधवार 20 जुलाई – श्रावण कृष्ण सप्तमी / पंचक समाप्त दिन में 12:51 पर 

गुरूवार 21 जुलाई – श्रावण कृष्ण सप्तमी / सर्वार्थसिद्धि योग सूर्योदय से दोपहर 2:17 तक

शनिवार 23 जुलाई – श्रावण कृष्ण दशमी / अमृतसिद्धि योग सायं सात बजकर तीन मिनट से (एकादशी आरम्भ प्रातः 11:28 पर) रात्रि पर्यन्त

रविवार 24 जुलाई – श्रावण कृष्ण एकादशी / कामिका एकादशी

सोमवार 25 जुलाई – श्रावण कृष्ण द्वादशी / प्रदोष व्रत / अमृतसिद्धि योग सूर्योदय से रात्रि पर्यन्त

गुरूवार 28 जुलाई – श्रावण अमावस्या / अन्वाधान / दर्श अमावस्या

रविवार 31 जुलाई – श्रावण शुक्ल तृतीया / हरियाली तीज / मधुस्रवा तीज

मंगलवार 2 अगस्त – श्रावण शुक्ल पञ्चमी / नाग पञ्चमी  

बुधवार 3 अगस्त – श्रावण शुक्ल षष्ठी / कल्कि जयन्ती / सर्वार्थ सिद्धि योग सूर्योदय से सायं 6:23 तक    

सोमवार 8 अगस्त – श्रावण शुक्ल एकादशी / पुत्रदा एकादशी    

मंगलवार 9 अगस्त – श्रावण शुक्ल द्वादशी / प्रदोष व्रत

गुरूवार 11 अगस्त – श्रावण शुक्ल चतुर्दशी / रक्षा बन्धन  

शुक्रवार 12 अगस्त – श्रावण पूर्णिमा / गायत्री जयन्ती / वरलक्ष्मी व्रत

हम सभी श्रावण मास की वर्षा की बूँदों में भीजकर मस्त हुए अपनी उमंगों आकांक्षाओं की ऊँची पेंग बढाते हुए सबके साथ स्नेहपूर्ण व्यवहार करें ताकि रक्षा बन्धन का मूलभूत उद्देश्य – परस्पर भाईचारा – पूर्ण हो सके…