घर में शिवलिंग की स्थापना

घर में शिवलिंग की स्थापना

घर में शिवलिंग की स्थापना

ॐ त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् |

उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्तीयमामृतात् ||

आज आषाढ़ शुक्ल द्वादशी – प्रदोष व्रत | यह प्रदोष इसलिए महत्त्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि इसके दो दिन बाद भगवान शंकर को समर्पित श्रावण मास आरम्भ हो जाता है | इस वर्ष 14 जुलाई से श्रावण मास का आरम्भ हो रहा है इसलिए आज विशेष रूप से शिव परिवार की उपासना की जा रही है | इसी बात को लेकर हमारी एक मित्र ने हमसे प्रश्न किया कि शिवलिंग की पूजा घर में की जा सकती है या नहीं, और यदि नहीं की जा सकती तो उसके क्या कारण हैं ? हम पूर्व में भी अनेक बार बोल चुके हैं कि इन सब विषयों पर लिखने अथवा बोलने के लिये हम उपयुक्त पात्र नहीं हैं – तथापि विद्वानों की बातें सुनकर और कुछ शास्त्रों का अध्ययन करके अपनी स्थूल बुद्धि से जो कुछ समझ सके वही सब लिखने का प्रयास कर रहे हैं…

शिवलिंग के विषय में सबसे पहले इस बात को जान लेना आवश्यक है कि शिवलिंग कोई साधारण पत्थर नहीं होता अपितु अत्यन्त ऊर्जा से युक्त एक लिंग अर्थात चिह्न होता है जिसमें देवाधिदेव भगवान शंकर के तीनों रूपों – ब्रह्मा – संसार की उत्पत्ति के कारण, विष्णु – संसार के पालक तथा महेश – संसार के लय के कारक त्रिदेवों का उनकी शक्तियों के साथ वास होता है जिसके कारण यह अत्यन्त ऊर्जावान बन जाता है तथा प्रत्येक क्षण – अनवरत – एक असाधारण ऊर्जा का प्रवाह शिवलिंग से प्रवाहित रहता है | इस ऊर्जा को यदि नियन्त्रित करने का प्रयास नहीं किया गया तो यह कष्टप्रद भी हो सकती है | इसीलिए शिवलिंग को जल से भरे पात्र में रखा जाता है तथा इस प्रकार का प्रबन्ध किया जाता है कि निरन्तर इस पर जलधारा प्रवाहित होती रहे | और इसीलिए इसे किसी बन्द और अँधेरे कक्ष में नहीं अपितु ऐसे स्थान पर स्थापित किया जाता है जहाँ पूर्ण रूप से प्राकृतिक प्रकाश हो और वायु का समुचित प्रवाह हो |

ऐसा नहीं है कि घर में शिवलिंग नहीं रख सकते | किन्तु घर में यदि रखते हैं तो उसकी प्राण प्रतिष्ठा नहीं की जानी चाहिए | साथ ही छोटा सा शिवलिंग घर में रखा जा सकता है | बड़ा रखना हो तो उसे पूजा गृह में ही रखा जाना चाहिए | इसके अतिरिक्त यदि आप प्रतिदिन महादेव को जलाभिषेक करने में असमर्थ हैं तो कदापि शिवलिंग को घर में नहीं रखना चाहिए | जलाभिषेक के द्वारा लिंग से प्रसारित ऊर्जा शान्तिदायक बनी रहती है | यदि आप सोचते हैं कि सप्ताह में एक बार जलाभिषेक बहुत है, अथवा प्रतिदिन आवश्यकता नहीं है – तो आप भूल कर रहे हैं – क्योंकि इस स्थिति में शिवलिंग से निःसृत ऊर्जा परिवार में अशान्ति का कारण बन सकती है |

तुलसी, सिन्दूर हल्दी भगवान शंकर को नहीं चढ़ाया जाता और दुग्ध मिश्रित जल से शिवलिंग का अभिषेक करके चन्दन समर्पित किया जाता है | साथ ही शिवलिंग के निकट शिव परिवार के चित्र अवश्य रखें | जिस पात्र में जल भरकर उसमें शिवलिंग को विराजित किया है उस पात्र को प्रतिदिन स्वच्छ जल से साफ करना चाहिए | मिट्टी के गमले अथवा पात्र में शिवलिंग को स्थापित नहीं करना चाहिए | शिवलिंग के ऊपर जल का पात्र सदैव लटकाना चाहिए – इस प्रकार कि उससे निरन्तर जलधारा प्रवाहित होती रहे और लिंग का अभिषेक होता रहे | शिवलिंग का पात्र इस प्रकार रखा जाना चाहिए कि लिंग से नीचे आने वाली जलधारा का प्रवाह उत्तर दिशा में रहे |

समुद्र मन्थन से उपलब्ध हलाहल को भगवान शिव ने स्वयं पान करके उसे कण्ठ में रोक लिया था जिससे उनके कण्ठ और शरीर में अत्यधिक ताप उत्पन्न हो गया था और उनका कण्ठ नीला पड़ गया था – इसी कारण भोले बाबा को नीलकण्ठ भी कहा जाता है | हलाहल की दाहकता के शमन के लिए सभी देवों ने जल, दुग्ध और चन्दनादि शीतल वस्तुओं की वर्षा उन पर की | उसी के प्रतीक स्वरूप भी आदिदेव शिव का इन समस्त वस्तुओं से अभिषेक किया जाता है |

ये सब तो थीं पुराणों और विद्वज्जनों से ज्ञात बातें | हमारे स्वयं के अनुभव तथा अध्ययनादि के आधार पर हमारा मानना है कि भगवान शंकर ही नहीं वरन किसी भी देवी देवता की मूर्ति यदि घर में रखनी हो तो उसकी प्राण प्रतिष्ठा नहीं की जानी चाहिए – हाँ पूजा अर्चना विधिवत की जानी चाहिए | प्राण प्रतिष्ठा का अर्थ हो गया कि हम उस मूर्ति अथवा लिंग को ऊर्जावान बना रहे हैं – जागृत कर रहे हैं | घर परिवार में अनेक प्रकार की अशुद्धियाँ – शारीरिक-मानसिक–भावनात्मक – प्राकृतिक रूप से विद्यमान रहती हैं जिसके कारण इन मूर्तियों में प्राकृतिक ऊर्जा कल्याणकारी नहीं रहेगी | हम सम्मानपूर्वक उचित स्थान और आसन पर देव मूर्तियों की प्रतिष्ठा करेंगे तभी वे हमारे लिए कल्याणकारी सिद्ध हो सकती हैं – अपमान अथवा अशुद्ध स्थान पर तो परिवार के लोग भी नहीं बैठना चाहेंगे – फिर ये तो देव प्रतिमाएँ हैं | इसीलिए किसी भी अनुष्ठान आदि के पश्चात मूर्तियों के रूप में प्रतिष्ठित देवी देवताओं को पुनः आगमन की प्रार्थना के साथ उनका विसर्जन करने की प्रथा है | हाँ यदि घर के बाहर अथवा घर में ही मुख्य आवास से हटकर कहीं एकान्त में उत्तर, पूर्व अथवा ईशान कोण में स्थान हो तो वहाँ पूजा स्थल बनाकर उसमें अपने इष्ट की स्थापना कर सकते हैं |

व्यावहारिक रूप से भी देखें तो भगवान शिव मानव जीवन के सभी अमंगल रूपी हलाहल का स्वयं पान करके मंगल रूपी अमृत की वर्षा करते रहते हैं | शिवलिंग की स्थापना के समय विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए कि पूजा कक्ष या तो खुला हुआ हो अथवा प्रकाश और वायु के आवागमन का समुचित प्रबन्ध हो और निरन्तर जलाभिषेक होता रहे ताकि लिंग से निःसृत ऊर्जा शान्त बनी रहे… साथ ही शिवलिंग यदि घर में है तो प्रतिदिन उसका अभिषेक भी आवश्यक है… इसके अतिरिक्त शिवलिंग छोटा सा होना चाहिए, बड़ा हो तो उसे पूजा के स्थान पर ही प्रतिष्ठित करना चाहिए… भगवान शंकर सभी के जीवन को सुख, समृद्धि, आनन्द तथा शान्ति से पुष्ट करते रहें… यही कामना है…

नमः शिवायास्तु निरामयाय नमः शिवायास्तु मनोमयाय |
नमः शिवायास्तु सुरार्चिताय तुभ्यं सदा भक्तकृपापराय ||