श्री कृष्ण जन्म महोत्सव

श्री कृष्ण जन्म महोत्सव

श्री कृष्ण जन्म महोत्सव

भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को भगवान श्री कृष्ण का जन्म महोत्सव मनाया जाता है | इस वर्ष गुरूवार 18 अगस्त को भगवान श्री कृष्ण का 5249वाँ जन्म दिवस मनाया जाएगा | 18 अगस्त को रात्रि नौ बजकर बीस मिनट पर अष्टमी तिथि का उदय होगा – और भगवान श्री कृष्ण का जन्म क्योंकि अर्द्धरात्रि में हुआ था इसलिए 18 अगस्त को ही जन्माष्टमी का व्रत स्मार्त लोग करेंगे | 19 अगस्त को रात्रि ग्यारह बजे के लगभग अष्टमी तिथि का समापन होगा अतः वैष्णवों की जन्माष्टमी 19 अगस्त को होगी | श्री कृष्ण जन्म महोत्सव उस समय मनाया जाता है जब अर्द्ध रात्रि में अष्टमी तिथि हो और रोहिणी नक्षत्र हो – क्योंकि इसी मुहूर्त में श्री कृष्ण का जन्म हुआ था | किन्तु इस वर्ष जन्माष्टमी की पूजा के समय रोहिणी नक्षत्र नहीं प्राप्त हो रहा है | 19 अगस्त को अर्द्धरात्र्योत्तर 1:53 के लगभग रोहिणी नक्षत्र का उदय होगा किन्तु इस समय अष्टमी तिथि नहीं होगी | अतः स्मार्त और वैष्णवों की जन्माष्टमी क्रमशः 18 और 19 अगस्त को ही मनाई जाएँगी | जो लोग निशीथ कला में पूजा करते हैं उनके लिए अर्द्धरात्रि में बारह बजकर तीन मिनट से बारह बजकर सैंतालीस मिनट के मध्य मुहूर्त है | इस वर्ष जन्माष्टमी पर दो बहुत शुभ योग बन रहे हैं – वृद्धि योग और ध्रुव योग | सभी को श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ…

उससे पूर्व सत्रह अगस्त यानी भाद्रपद कृष्ण षष्ठी को भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम – जिन्हें बलभद्र और हलायुध भी कहा जाता है और जो भगवान विष्णु के अष्टम अवतार तथा शेषनाग के भी अवतार माने जाते हैं – का जन्मदिवस है | हलायुध नाम होने के कारण ही भाद्रपद कृष्ण षष्ठी को हल षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है | सर्वप्रथम सभी को बलभद्र जयन्ती और श्री कृष्ण जन्म महोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ…

भगवान् श्री कृष्ण का जन्म महोत्सव दो दिन धूम धाम के साथ मनाया जाता है | दो दिन इसलिए कि प्रथम दिन स्मार्तों की जन्माष्टमी होती है और दूसरे दिन वैष्णवों की | प्रायः जन सामान्य के मन में जिज्ञासा होती है कि पञ्चांग में स्मार्तों का व्रत और वैष्णवों का व्रत लिखा होता, पर स्मार्त और वैष्णव की व्याख्या क्या है ?

सामान्य रूप से जो लोग शिव की उपासना करते हैं उन्हें शैव कहा जाता है, जो लोग भगवान् विष्णु के उपासक होते हैं उन्हें वैष्णव कहा जाता है और जो लोग माँ भगवती यानी शक्ति के उपासक होते हैं वे शाक्त कहलाते हैं | किन्तु इसी को कुछ सरल बनाने की प्रक्रिया में केवल दो ही मत व्रत उपवास आदि के लिए प्रचलित हैं – स्मार्त और वैष्णव | जो लोग पञ्चदेवों के उपासक होते हैं वे स्मार्त कहलाते हैं – पञ्चदेवों के अन्तर्गत गणेश, द्वादश आदित्य, रूद्र, विष्णु और माँ भगवती को अंगीकार किया गया है | जो लोग नित्य नैमित्तिक कर्म के रूप में इन पाँच देवताओं की पूजा अर्चना करते हैं वे स्मार्त कहलाते हैं और ये लोग गृहस्थ धर्म का पालन करते हैं | जो लोग केवल भगवान् विष्णु की उपासना करते हैं और मस्तक पर तिलक, भुजाओं पर चक्र और शंख आदि धारण करते हैं तथा प्रायः सन्यासी होते हैं उन्हें वैष्णव कहा जाता है |

स्मार्तों के लिए श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पहले दिन होती है – जिस दिन अर्द्ध रात्रि को अष्टमी तिथि रहे तथा वैष्णवों की जन्माष्टमी दूसरे दिन होती है | कुछ लोग इसे इस प्रकार भी मानते हैं कि जिस दिन मथुरा में श्री कृष्ण का जन्म हुआ था उस दिन स्मार्तों की जन्माष्टमी होती है और दूसरे दिन जब कृष्ण को नन्दनगरी में पाया गया उस दिन वैष्णवों की जन्माष्टमी होती है जिसे नन्दोत्सव के नाम से भी जाना जाता है |

कृष्ण बनना वास्तव में बहुत कठिन है | क्योंकि कृष्ण, एक ऐसा व्यक्तित्व जो अव्यक्त होते हुए भी व्यक्त ब्रह्म है, जो मूलतः नर और नारायण दोनों है, जो स्वयंभू हैं | द्युलोक जिनका मस्तक है, आकाश नाभि, पृथिवी चरण, अश्विनी कुमार नासिका, सूर्य चन्द्र तथा समस्त देवता जिनकी विभिन्न देहयष्टियाँ हैं | जो प्रलयकाल के अन्त में ब्रह्मस्वरूप में प्रकट हुए तथा सृष्टि का विस्तार किया |

देश भर में श्री कृष्ण के अनेक रूपों की उपासना की जाती है | जैसे जगन्नाथ पुरी में भगवान् जगन्नाथ के रूप में समस्त जगत यानी संसार के नाथ यानी स्वामी हैं | केरल के गुरुवयूर में बालरूप में विद्यमान हैं, उडुपी में भी हाथ में मक्खन लिए हुए बालक के रूप में प्रतिष्ठित हैं – जो प्रतीक है इस तथ्य का यदि मनुष्य का मन नन्द के माखन चोर लला के समान निश्छल और मधुर रहेगा तो संसार में केवल प्रेम ही प्रेम प्रसारित होगा | विश्व प्रसिद्ध बाँके बिहारी मन्दिर में हाथ में वंशी थामे नृत्य की मुद्रा में तिरछे खड़े हैं और सन्देश दे रहे हैं कि जन मानस में परस्पर एक दूसरे के प्रति और समस्त जड़ चेतन के प्रति सद्भावना, प्रेम तथा सहयोग का भाव होगा तो विश्व में अशान्ति का कोई कारण ही नहीं होगा और जन जन का मन प्रेम की मस्ती में नृत्य कर उठेगा |

राजस्थान के प्रसिद्ध नाथद्वारा में श्रीनाथ जी के रूप में हाथ पर गोवर्धन पर्वत उठाए मानों घोषणा कर रहे हैं कि प्रकृति से भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है, अपितु आवश्यकता है प्रकृति को हानि पहुँचाए बिना उसके साथ प्रेम और आत्मीयता का सम्बन्ध स्थापित करने की – तब प्रकृति भी प्रतिदान स्वरूप न केवल हमारी सुरक्षा करेगी अपितु हमारा समुचित भरण पोषण भी करेगी |

इसी तरह से गुजरात में श्री कृष्ण रणछोड़ के रूप में उपस्थित हैं | जरासंध के साथ युद्ध के समय कृष्ण युद्धभूमि से भाग आए | सबने समझा पीठ दिखाकर भागे हैं, किन्तु पूर्ण रूप से योजना बनाकर फिर से युद्ध के लिए वापस लौटे | रणछोड़ का चरित्र भी वास्तव में सन्देश देता है कि किसी भी कार्य को यदि सुनियोजित विधि से किया जाएगा तो सफलता निश्चित है, साथ ही ये भी कि यदि कभी असफलता का सामना हो भी जाए तो उससे घबराकर पलायन नहीं कर जाना चाहिए अपितु स्वयं को उस परीक्षा के लिए पुनः पूर्ण रूप से तैयार करके आगे बढ़ना चाहिए |

कहीं एक स्थान पर – सम्भवतः चेन्नई में – भगवान् कृष्ण मूँछों के साथ दिखाई देते हैं | मूँछें प्रतीक हैं पुरुषत्व का – और भगवान् कृष्ण का तो जन्म ही इसी कारण हुआ था कि उन्हें पृथिवी से अधर्म और अत्याचार का अन्त करके धर्म और सदाचार की पुनरस्थापना करनी थी – और इस कार्य के लिए पूर्ण पौरुष की आवश्यकता थी |

इस प्रकार अनेक स्थानों पर भगवान् श्री कृष्ण की अनेकों रूपों में पूजा अर्चना की जाती है, किन्तु उन सभी रूपों का सन्देश केवल यही है कि समस्त जड़ चेतन के प्रति दया, करुणा, प्रेम और सहृदयता का भाव रखते हुए परस्पर सहयोग करते हुए सुनियोजित रीति से यदि कार्य किया जाएगा तो न केवल विश्व में शान्ति और आनन्द का वातावरण विद्यमान रहेगा अपितु मनुष्य को अपने लक्ष्य की प्राप्ति में भी सफलता प्राप्त होगी | और उस सबसे भी अधिक ये कि जब व्यक्ति अपने समस्त भावों का अभाव करके भक्ति की पराकाष्ठा पर पहुँच जाता है तब वह अपने ईश्वर – अपने ब्रह्म – अपनी आत्मा – के साथ एकरूप हो जाता है – कोई भेद दोनों में नहीं रह जाता – और यही है वास्तविक मोक्ष…
अस्तु, भगवान् श्री कृष्ण के महान चरित्र से प्रेरणा लेते हुए हम सभी निःस्वार्थ भाव से कर्म करते हुए निःस्वार्थ प्रेम, सद्भावना और सहयोग के मार्ग पर अग्रसर रहे तथा प्रकृति की रक्षा का संकल्प अपने मन में धारण करें… इसी कामना के साथ सभी को समस्त कलाओं से युक्त परम पुरुष भगवान् श्री कृष्ण के जन्म महोत्सव – श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई और अनेकशः हार्दिक शुभकामनाएँ…