शारदीय नवरात्र 2022 की तिथियाँ
(कैलेण्डर)
रविवार 25 सितम्बर को पितृविसर्जनी अमावस्या यानी महालया है और उसके दूसरे दिन यानी सोमवार 26 सितम्बर आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से शारदीय नवरात्र आरम्भ हो जाएँगे | महालया अर्थात पितृविसर्जनी अमावस्या को श्राद्ध पक्ष का समापन हो जाता है | महालया का अर्थ ही है महान आलय अर्थात महान आवास – अन्तिम आवास – शाश्वत आवास | श्राद्ध पक्ष के इन पन्द्रह दिनों में अपने पूर्वजों का आह्वान करते हैं कि हमारे असत् आवास अर्थात पञ्चभूतात्मिका पृथिवी पर आकर हमारा आतिथ्य स्वीकार करें, और महालया के दिन पुनः अपने अस्तित्व में विलीन हो अपने शाश्वत धाम को प्रस्थान करें | और उसी दिन से आरम्भ हो जाता है अज्ञान रूपी महिष का वध करने वाली महिषासुरमर्दिनी की उपासना का उत्साहमय पर्व शारदीय नवरात्र | इस समय माँ भगवती से भी प्रार्थना की जाती है कि वे अपने महान अर्थात शाश्वत आवास अर्थात आलय को कुछ समय के लिए छोड़कर पृथिवी पर आएँ और हमारा आतिथ्य स्वीकार करें तथा नवरात्रों के अन्तिम दिन हम उन्हें ससम्मान उनके शाश्वत आलय के लिए उन्हें विदा करेंगे अगले बरस पुनः हमारा आतिथ्य स्वीकार करने की प्रार्थना के साथ | यही कारण है कि नवरात्रों के लिए दुर्गा प्रतिमा बनाने वाले कारीगर महालया के दिन धूम धाम से उत्सव मनाकर भगवती के नेत्रों को आकार देते हैं | वर्तमान का तो नहीं मालूम, लेकिन हमारी पीढ़ी के लोगों को ज्ञात होगा कि महालया यानी पितृविसर्जनी अमावस्या के दिन प्रातः चार बजे से आकाशवाणी पर श्री वीरेन्द्र कृष्ण भद्र के गाए महिषासुरमर्दिनी का प्रसारण किया जाता था और सभी केन्द्र इसे रिले करते थे | हम सभी भोर में ही रेडियो ट्रांजिस्टर ऑन करके बैठ जाते थे और पूरे भक्ति भाव से उस पाठ को सुना करते थे |
वह देवी ही समस्त प्राणियों में चेतन आत्मा कहलाती है और वही सम्पूर्ण जगत को चैतन्य रूप से व्याप्त करके स्थित है | इस प्रकार अज्ञान का नाश होकर जीव का पुनर्जन्म – आत्मा का शुद्धीकरण होता है – ताकि आत्मा जब दूसरी देह में प्रविष्ट हो तो सत्वशीला हो…
“या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभिधीयते, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः |
चितिरूपेण या कृत्स्नमेतद्वाप्य स्थित जगत्, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ||” (श्री दुर्गा सप्तशती पञ्चम अध्याय)
अस्तु, सर्वप्रथम तो, माँ भगवती सभी का कल्याण करें और सभी की मनोकामनाएँ पूर्ण करें, इस आशय के साथ सभी को शारदीय नवरात्र की हार्दिक शुभकामनाएँ…
वास्तव में लौकिक दृष्टि से यदि देखा जाए तो हर माँ शक्तिस्वरूपा माँ भगवती का ही प्रतिनिधित्व करती है – जो अपनी सन्तान को जन्म देती है, उसका भली भाँति पालन पोषण करती है और किसी भी विपत्ति का सामना करके उसे परास्त करने के लिए सन्तान को भावनात्मक और शारीरिक बल प्रदान करती है, उसे शिक्षा दीक्षा प्रदान करके परिवार – समाज और देश की सेवा के योग्य बनाती है – और इस सबके साथ ही किसी भी विपत्ति से उसकी रक्षा भी करती है | इस प्रकार सृष्टि में जो भी जीवन है वह सब माँ भगवती की कृपा के बिना सम्भव ही नहीं | इस प्रकार भारत जैसे देश में जहाँ नारी को भोग्या नहीं वरन एक सम्माननीय व्यक्तित्व माना जाता है वहाँ नवरात्रों में भगवती की उपासना के रूप में उन्हीं आदर्शों को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया जाता है |
इसी क्रम में यदि आरोग्य की दृष्टि से देखें तो दोनों ही नवरात्र ऋतु परिवर्तन के समय आते हैं | चैत्र नवरात्र में सर्दी को विदा करके गर्मी का आगमन हो रहा होता है और शारदीय नवरात्रों में गर्मी को विदा करके सर्दी के स्वागत की तैयारी की जाती है | वातावरण के इस परिवर्तन का प्रभाव मानव शरीर और मन पर पड़ना स्वाभाविक ही है | अतः हमारे पूर्वजों ने व्रत उपवास आदि के द्वारा शरीर और मन को संयमित करने की सलाह दी ताकि हमारे शरीर आने वाले मौसम के अभ्यस्त हो जाएँ और ऋतु परिवर्तन से सम्बन्धित रोगों से उनका बचाव हो सके तथा हमारे मन सकारात्मक विचारों से प्रफुल्लित रह सकें |
आध्यात्मिक दृष्टि से नवरात्र के दौरान किये जाने वाले व्रत उपवास आदि प्रतीक है समस्त गुणों पर विजय प्राप्त करके मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर होने के | माना जाता है कि नवरात्रों के प्रथम तीन दिन मनुष्य अपने भीतर के तमस से मुक्ति पाने का प्रयास करता है, उसके बाद के तीन दिन मानव मात्र का प्रयास होता है अपने भीतर के रजस से मुक्ति प्राप्त करने का और अन्तिम तीन दिन पूर्ण रूप से सत्व के प्रति समर्पित होते हैं ताकि मन के पूर्ण रूप से शुद्ध हो जाने पर हम अपनी अन्तरात्मा से साक्षात्कार का प्रयास करें – क्योंकि वास्तविक मुक्ति तो वही है |
इस प्रक्रिया में प्रथम तीन दिन दुर्गा के रूप में माँ भगवती के शक्ति रूप को जागृत करने का प्रयास किया जाता है ताकि हमारे भीतर बहुत गहराई तक बैठे हुए तमस अथवा नकारात्मकता को नष्ट किया जा सके | उसके बाद के तीन दिनों में देवी की लक्ष्मी के रूप में उपासना की जाती है कि वे हमारे भीतर के भौतिक रजस को नष्ट करके जीवन के आदर्श रूपी धन को हमें प्रदान करें जिससे कि हम अपने मन को पवित्र करके उसका उदात्त विचारों एक साथ पोषण कर सकें | और जब हमारा मन पूर्ण रूप से तम और रज से मुक्त हो जाता है तो अन्तिम तीन दिन माता सरस्वती का आह्वाहन किया जाता है कि वे हमारे मनों को ज्ञान के उच्चतम प्रकाश से आलोकित करें ताकि हम अपने वास्तविक स्वरूप – अपनी अन्तरात्मा – से साक्षात्कार कर सकें |
नवरात्रि के महत्त्व के विषय में विवरण मार्कंडेय पुराण, वामन पुराण, वाराह पुराण, शिव पुराण, स्कन्द पुराण और देवी भागवत आदि पुराणों में उपलब्ध होता है | इन पुराणों में देवी दुर्गा के द्वारा महिषासुर के मर्दन का उल्लेख उपलब्ध होता है | महिषासुर मर्दन की इस कथा को “दुर्गा सप्तशती” के रूप में देवी माहात्म्य के नाम से जाना जाता है | नवरात्रि के दिनों में इसी माहात्म्य का पाठ किया जाता है और यह बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक माना जाता है | जिसमें 537 चरणों में 700 मन्त्रों के द्वारा देवी के माहात्म्य का जाप किया जाता है | इसमें देवी के तीन मुख्य रूपों – काली अर्थात बल, लक्ष्मी और सरस्वती की पूजा के द्वारा देवी के तीन चरित्रों – मधुकैटभ वध, महिषासुर वध तथा शुम्भ निशुम्भ वध का वर्णन किया जाता है | पितृ पक्ष की अमावस्या को महालया के दिन पितृ तर्पण के बाद से आरम्भ होकर नवमी तक चलने वाले इस महान अनुष्ठान का समापन दशमी को प्रतिमा विसर्जन के साथ होता है | इन नौ दिनों में दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है | ये नौ रूप सर्वज्ञ महात्मा वेद भगवान के द्वारा ही प्रतिपादित हुए हैं |
“प्रथमं शैलपुत्रीति द्वितीयं ब्रह्मचारिणी, तृतीयं चन्द्रघंटेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् |
पञ्चमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनी तथा सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ||
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा प्रकीर्तिता:, उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना ||
प्रायः लोग देवी के वाहन के विषय में बात करते हैं, तो इसके विषय में देवी भागवत महापुराण में कहा गया है :
शशि सूर्य गजरुढा शनिभौमै तुरंगमे, गुरौशुक्रे च दोलायां बुधे नौकाप्रकीर्तिता
अर्थात नवरात्र का आरम्भ यदि सोमवार या रविवार से हो तो भगवती का वाहन हाथी होता है, शनिवार या मंगलवार को हो तो अश्व, शुक्रवार या गुरूवार को हो डोली तथा बुधवार को हो तो नौका भगवती का वाहन होता है | इस वर्ष क्योंकि सोमवार से नवरात्र आरम्भ हो रहे हैं अतः भगवती का वाहन हाथी है | साथ ही पाँच अक्टूबर बुधवार को नवरात्र सम्पन्न हो रहे हैं – बुधवार अथवा शुक्रवार को यदि नवरात्र सम्पन्न हों तो भगवती की विदा भी हाथी पर ही मानी जाती है | भगवती का वाहन यदि हाथी हो तो वह अत्यन्त शुभ माना जाता है और माना जाता है कि उस वर्ष वर्षा उत्तम होने के कारण फसल अच्छी होती है तथा देश में अन्न के भण्डार भरे रहते हैं और सम्पन्नता बनी रहती है |
इसके अतिरिक्त प्रथम नवरात्र को कुछ बहुत ही शुभ योग बन रहे हैं – जैसे : प्रातः 8:03 तक शुक्ल योग तथा उसके बाद ब्रह्म योग है / शनि गुरु बुध स्वराशिगत हैं / सूर्योदय काल में कन्या लग्न में शुक्र बुध सूर्य चन्द्र का योग बन रहा है / कन्या लग्न के दोनों योगकारक स्वराशिगत हैं… तो प्रस्तुत है इस वर्ष के नवरात्रों की तिथियों की तालिका…
रविवार 25 सितम्बर – आश्विन अमावस्या / पितृविसर्जनी अमावस्या / महालया
सोमवार 26 सितम्बर – आश्विन शुक्ल प्रतिपदा तिथि सूर्योदय से पूर्व 3:25 से 27 सितम्बर को सूर्योदय से पूर्व 3:08 तक / सूर्योदय 6:11 पर अतः घट स्थापना 26 सितम्बर को कन्या लग्न में प्रातः 6:11 से लग्न की समाप्ति 7:51 तक अमृत काल में / अभिजित मुहूर्त प्रातः 11:48 से 12:36 तक / शारदीय नवरात्र आरम्भ / प्रथम नवरात्र / भगवती के शैलपुत्री रूप की उपासना /महाराजा अग्रसेन जयन्ती
मंगलवार 27 सितम्बर – आश्विन शुक्ल द्वितीया / द्वितीय नवरात्र / भगवती के ब्रह्मचारिणी रूप की उपासना
बुधवार 28 सितम्बर – आश्विन शुक्ल तृतीया / तृतीय नवरात्र / भगवती के चन्द्रघंटा रूप की उपासना
गुरूवार 29 सितम्बर – आश्विन शुक्ल चतुर्थी / चतुर्थ नवरात्र / भगवती के कूष्माण्डा रूप की उपासना
शुक्रवार 30 सितम्बर – आश्विन शुक्ल पञ्चमी / पञ्चम नवरात्र / भगवती के स्कन्दमाता रूप की उपासना
शनिवार 1 अक्टूबर – आश्विन शुक्ल षष्ठी / षष्टं नवरात्र / भगवती के कात्यायनी रूप की उपासना / सरस्वती आह्वाहन पूजा
रविवार 2 अक्तूबर – आश्विन शुक्ल सप्तमी / सप्तम नवरात्र / भगवती के कालरात्रि रूप की उपासना / सरस्वती पूजा
सोमवार 3 अक्तूबर – आश्विन शुक्ल अष्टमी / अष्टम नवरात्र / भगवती के महागौरी रूप की उपासना / सरस्वती बलिदान
मंगलवार 4 अक्तूबर – आश्विन शुक्ल नवमी / नवम नवरात्र / भगवती के सिद्धिदात्री रूप की उपासना / सरस्वती विसर्जन
बुधवार 5 अक्तूबर – आश्विन शुक्ल दशमी / विजया दशमी / प्रतिमा विसर्जन / अपराजिता देवी की उपासना / विद्यारम्भ / माधवाचार्य जयन्ती
तो आइये, माँ भगवती अपने सभी रूपों में समस्त जगत का कल्याण करें इसी कामना के साथ आह्वाहन-स्थापन करें भगवती का और व्यतीत करें कुछ समय उनके सान्निध्य में…