गुरु परब देव दीवाली और कार्तिकी पूर्णिमा

गुरु परब देव दीवाली और कार्तिकी पूर्णिमा

गुरु परब देव दीवाली और कार्तिकी पूर्णिमा

हिन्दू धर्म में पूर्णिमा तिथि का विशेष स्थान होता है | प्रत्येक माह की पूर्णिमा को कोई न कोई महत्त्वपूर्ण पर्व अवश्य होता है | फाल्गुन पूर्णिमा को होली, शरद पूर्णिमा, रक्षा बन्धन इत्यादि लगभग सभी बड़े पर्व पूर्णिमा के दिन ही मनाए जाते हैं | कार्तिकी पूर्णिमा भी इसका अपवाद नहीं है | इस वर्ष 7 नवम्बर को सायं 4:15 पर पूर्णिमा तिथि आरम्भ होगी और 8 नवम्बर को सायं 4:31 तक रहेगी | आठ नवम्बर को चन्द्र ग्रहण है अतः विद्वानों के अनुसार देव दीवाली सात नवम्बर को ही मनाई जाएगी | ग्रहण आठ नवम्बर को सायं 5:32 पर मेष राशि में लगेगा और 6:19 तक रहेगा, और विद्वानों की मानें तो प्रातः 8:10 से ग्रहण का सूतक आरम्भ हो जाएगा | यद्यपि हमारे विचार से ग्रहण एक अत्यन्त आकर्षक खगोलीय घटना है, तथापि विद्वज्जनों के अनुसार इस दिन राहु-केतु-चन्द्र-सूर्य-शुक्र-बुध सम-सप्तक भाव में रहने के कारण और मेष राशि पर ग्रहण होने के कारण मेष राशि, चन्द्र की राशि कर्क, सूर्य की राशि सिंह, बुध की राशि मिथुन और कन्या तथा शुक्र की राशि वृषभ और तुला के जातकों के लिए विशेष रूप से सावधान रहने की आवश्यकता है |

तो हम बात कर रहे थे देव दीवाली और कार्तिकी पूर्णिमा की | पूरे कार्तिक माह में पूजा, अनुष्ठान, जप, तप और दीपदान का विशेष महत्व होता है | इसी माह में देवी लक्ष्मी जन्म हुआ था और इसी माह में भगवान श्री हरि विष्णु चार माह की योग निद्रा से जागे थे | यही कारण है कि कार्तिक पूर्णिमा बहुत धूम धाम से मनाई जाती है | इस दिन एक ओर तो मास भर से चला आ रहा कार्तिक स्नान धूम धाम के साथ सम्पन्न किया जाता है, तो वहीं देव दीवाली के उपलक्ष्य में दीपों से पवित्र नदियों के तट, देवालय तथा घर आँगन जगमगा उठते हैं और साथ ही गुरु पर्व की धूम रहती है | इसे त्रिपुरारी पूर्णिमा और प्रकाश परब के नाम से भी जाना जाता है |

सिख समुदाय के प्रथम गुरु श्री नानक देव जी का जन्म महोत्सव इस दिन बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है | गुरुद्वारों में सबद कीर्तन, गुरु वाणी का पाठ, लंगरों के आयोजन जगह जगह किये जाते हैं | सभी गुरुद्वारों को प्रकाश में स्नान करा दिया जाता है | गुरु नानकदेव जी का पूरा ही जीवन और शिक्षाएँ न केवल सिख समुदाय के लिए बल्कि समूची मानव जाति के जीवन में नैतिकता वीरता का एक उत्तम मार्ग प्रशस्त करता है और इसीलिए उनका जन्मदिन प्रकाश परब के नाम से मनाया जाता है | इस वर्ष आठ नवम्बर को प्रकाश पर्व मनाया जाएगा |

कार्तिक पूर्णिमा को ही देव दीवाली मनाई जाती है | इस दिन एक ओर तो तुलसी विवाह सम्पन्न किया जाता है | वहीं दूसरी ओर मान्यता है कि इसी दिन भगवान शिव ने तारकासुर राक्षस के तीन असुर पुत्रों यानी त्रिपुरासुर का वध किया था | इसी विजय के उपलक्ष्य में देवों ने समस्त त्रिलोकी को दीपों से प्रकाशित किया था | इसी कारण भगवान शंकर का नाम त्रिपुरारी पड़ा और इसी कारण से इस पूर्णिमा को त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहा जाता है | साथ ही ऐसा भी माना जाता है कि इस दिन सभी देव पृथिवी पर आकर गंगा स्नान करके दीपोत्सव मनाते हैं | इसीलिए इसे देव दीवाली कहा जाता है और सभी देवालयों तथा गंगा घाटों पर दीप प्रज्वलित करके गंगा स्नान करने तथा दीप दान करने की प्रथा है | वृन्दा (तुलसी) का प्राकट्य भी इसी दिन माना जाता है | ऐसी भी मान्यता है कि भगवान विष्णु का मत्स्यावतार भी इसी दिन हुआ था | मान्यता यह भी है कि भगवान श्री कृष्ण द्वारा शरद पूर्णिमा को रचाया गया महारास कार्तिक पूर्णिमा को ही सम्पन्न हुआ था |

जहाँ तक तुलसी विवाह का प्रश्न है, तो प्रायः देवोत्थान एकादशी को तुलसी विवाह सम्पन्न किया जाता है | पद्मपुराण के अनुसार कार्तिक शुक्ल नवमी को तुलसी पूजन के साथ विवाह कार्य आरम्भ हो जाते हैं और नवमी से एकादशी तक व्रत रखकर एकादशी को विवाह सम्पन्न करके द्वादशी को व्रत का पारायण किया जाता है | किन्तु कुछ लोग कार्तिक शुक्ल एकादशी से तुलसी पूजन आरम्भ करके पंचम दिन यानी पूर्णिमा को विवाह कार्य सम्पन्न करते हैं | तुलसी विवाह के आयोजन हिन्दू रीति रिवाज़ों के साथ सम्पन्न किये जाते हैं | नवमी से द्वादशी तक तुलसी विवाह सम्पन्न हो अथवा एकादशी से पूर्णिमा तक – यह उत्सव सांसारिक रीति रिवाज़ों से युक्त होने के बाद भी पूर्ण रूप से मांगलिक और आध्यात्मिक उत्सव है | तुलसी के माध्यम से वास्तव में भगवान नारायण का ही आह्वाहन किया जाता है |

प्रत्येक पर्व की ही भाँति इस पर्व के सन्दर्भ में भी बहुत सी मान्यताएँ हैं – बहुत सी कथाएँ हैं – जन श्रुतियाँ भी और पौराणिक भी – इसी से इस पर्व की महानता का भान हो जाता है… तुलसी-शालिग्राम पूजन और विवाह आध्यात्मिक होते हुए भी प्रतीक है इस तथ्य का कि प्रकृति के समस्त वन पर्वत नदियाँ जीव मात्र के कल्याण के लिए हैं… उनका सम्मान करेंगे… उनके प्रति श्रद्धा पूर्वक आभार व्यक्त करेंगे तभी मनुष्य का कल्याण ये समस्त प्राकृतिक संसाधन करेंगे… अन्यथा प्रकृति भले ही कुपित न हो – किन्तु अपनी रत्नराशि को स्वयं में ही समेट कर मानव को शिक्षा अवश्य ही प्रदान करेगी…

हम सभी अपने प्राकृतिक संसाधनों का सम्मान करते हुए अध्यात्म मार्ग पर अग्रसर रहें और स्वस्थ तथा सुखी जीवन व्यतीत करें… साथ ही गुरु नानक देव जी के नैतिकता और वीरता तथा साहस के मार्ग पर चलते हुए अपने भीतर के त्रिपुरासुर का नाश करें… इसी भावना के साथ सभी को आने वाले पर्वों देव दिवाली, गुरु नानक जयन्ती तथा कार्तिकी पूर्णिमा की अनेकशः हार्दिक शुभकामनाएँ…