पौष मास के व्रतोत्सव

पौष मास के व्रतोत्सव

पौष मास के व्रतोत्सव

पौष मास – 8 दिसम्बर 2022 से 6 जनवरी 2023 – के प्रमुख व्रतोत्सव

गुरूवार 8 दिसम्बर को मार्गशीर्ष पूर्णिमा के साथ मार्गशीर्ष मास समाप्त हो जाएगा और इसी दिन से कृष्ण प्रतिपदा के साथ पौष मास आरम्भ हो जाएगा – अर्थात इस मास की पूर्णिमा को चन्द्रमा पुष्य नक्षत्र पर रहेगा | पौष मास वैदिक पञ्चांग का दशम मास है | मान्यता है कि अगर इस महीने में सूर्य देव की आराधना की जाए तो व्यक्ति को 11 हजार रश्मियों के साथ स्वास्थ्य प्राप्त होता है | इस माह में भग नाम से सूर्य देव की उपासना का विशेष महत्त्व है | माना जाता है कि इस माह में पूजा-अर्चना और उपासना करने से मनुष्य को तुरन्त फल की प्राप्ति होती है | ऐसा सम्भवतः इसलिए भी कि हेमन्त ऋतु के इस माह में कडाके सर्दी पड़ती है तो भगवान भास्कर ही अपनी धवल धूप द्वारा उस शीत लहर से प्राणियों की रक्षा कर सकते हैं |

इस मास में सूर्य धनु राशि में विचरण करता है अतः इसे धनु मास भी कहा जाता है | शास्त्रों में ऐश्वर्य, धर्म, यश, श्री, ज्ञान और वैराग्य को ही भग कहा गया है और जो इनसे युक्त हो उन्हें भगवान – भग से युक्त – माना गया है | वहीं दूसरी ओर मान्यता यह भी है कि इस मास में मांगलिक कार्य नहीं करने चाहिये | हमारे विचार से सांसारिक कार्यों को निषिद्ध करने के पीछे बहुत से धार्मिक, सांसारिक तथा व्यावसायिक कारण भी निश्चित रूप से थे – जिनका स्पष्टीकरण हम “सूर्य का धनु राशि में संक्रमण” लेख में कर चुके हैं | अतः हम इस मास को अशुभ नहीं मानते | देवगुरु बृहस्पति जिन महीनों के अधिपति हों और वहाँ आत्मा का – प्राण का कारक सूर्य भी वहाँ पहुँच जाए – तो वह मास तो और भी अधिक शुभ होना चाहिए | पौष मास का नक्षत्र तो है भी पुष्टिकारक पुष्य नक्षत्र | ऋषि-मुनियों का उद्देश्य सिर्फ यही था कि लोग कुछ समय धार्मिक कार्यों में रूचि लेकर आध्यात्मिक रूप से आत्मोन्नति का प्रयास किया जा सके |

पौष कृष्ण प्रतिपदा का आरम्भ 19 दिसम्बर को प्रातः दस बजकर पाँच मिनट पर होगा, किन्तु 20 नवम्बर को सूर्योदय काल में प्रतिपदा होने के कारण इसी दिन से पौष मास का आरम्भ हो रहा है | इस मास में आने वाले सभी पर्वों की अग्रिम रूप से अनेकशः हार्दिक शुभकामनाओं के साथ प्रस्तुत है इस माह में आने वाले प्रमुख व्रतोत्सवों की सूची…

गुरूवार 8 दिसम्बर – पौष कृष्ण प्रतिपदा / पौष मास का आरम्भ

रविवार 11 दिसम्बर – पौष कृष्ण तृतीया / संकष्टी चतुर्थी

सोमवार 19 दिसम्बर – पौष कृष्ण एकादशी / सफला एकादशी

बुधवार 21 दिसम्बर – पौष कृष्ण त्रयोदशी / प्रदोष व्रत

सोमवार 2 जनवरी – पौष शुक्ल एकादशी / पुत्रदा एकादशी

बुधवार 4 जनवरी – पौष शुक्ल त्रयोदशी / प्रदोष व्रत

शुक्रवार 6 जनवरी – पौष पूर्णिमा /

शनिवार 15 जनवरी – पौष शुक्ल त्रयोदशी / प्रदोष व्रत

सोमवार 17 जनवरी – पौष शुक्ल पूर्णिमा / शाकम्भरी पूर्णिमा / भगवती के शाकम्भरी रूप की उपासना (प्रायः सभी नवरात्र शुक्ल प्रतिपदा से आरम्भ होते हैं, केवल शाकम्भरी नवरात्र ही ऐसे नवरात्र हैं जो आठ दिनों तक चलते हैं और पौष शुक्ल अष्टमी से आरम्भ होकर पौष पूर्णिमा को सम्पन्न होते हैं | किसी तिथि की हानि अथवा वृद्धि के कारण किसी वर्ष ये सात अथवा नौ दिन के भी हो सकते हैं | माना जाता है कि पृथिवी पर जब अकाल पड़ा और अन्न का अभाव हो गया तब भगवती ने शाकम्भरी का रूप धारण करके उस कष्ट से पृथिवीवासियों को मुक्ति दिलाई | इसीलिए इन्हें फल, सब्ज़ी, वनस्पतियों, औषधियों आदि की देवी भी कहा जाता है | जैसा कि श्री दुर्गा सप्तशती में कथन भी है :-

ततोSहमखिलं लोकमात्मदेहसमुद्भवै: |

भरिष्यामि सुरा: शाकैरावृष्टे प्राणधारकै: |

शाकम्भरीति विख्यातिं तदा यास्याम्यहं भुवि || 

अर्थात – भगवती आशीर्वाद देती हैं कि जब तक वर्षा नहीं होगी तब तक मैं अपने शरीर से उत्पन्न शाकों वारा समस्त संसार का भरण पोषण करूँगी और ये शाक ही सबके प्राणों की रक्षा करेंगे |

अस्तु, शाकम्भरी देवी के रूप में माँ भगवती सभी का पालन पोषण करते हुए सभी की रक्षा करें इसी भावना के साथ सभी को शाकम्भरी पूर्णिमा की अनेकशः हार्दिक शुभकामनाएँ…