संकष्टी चतुर्थी
माघ कृष्ण चतुर्थी
प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रविनायकम् |
भक्तावासं स्मरेन्नित्यमायु: कामार्थसिद्धये ||
हिन्दू मान्यता के अनुसार ऋद्धि सिद्धिदायक भगवन गणेश किसी भी शुभ कार्य में सर्वप्रथम पूजनीय माने जाते हैं | गणेश जी को विघ्नहर्ता माना जाता है, यही कारण है कि कोई भी शुभ कार्य आरम्भ करने से पूर्व गणपति का आह्वाहन और स्थापन हिन्दू मान्यता के अनुसार आवश्यक माना जाता है | चतुर्थी तिथि भगवान गणेश को समर्पित मानी जाती है और इस दिन गणपति की उपासना बहुत फलदायी मानी जाती है |
माह के दोनों पक्षों में दो बार चतुर्थी आती है | इनमें पूर्णिमा के बाद आने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है और अमावस्या के बाद आने वाली शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहा जाता है | इस प्रकार यद्यपि संकष्टी चतुर्थी का व्रत हर माह में होता है, किन्तु माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी का विशेष महत्त्व माना जाता है |
इस वर्ष कल यानी दस जनवरी को माघ कृष्ण चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी का व्रत किया
जाएगा – जिसे आम भाषा में सकट चौथ भी कहा जाता है | कल दिन में बारह बजकर दस मिनट के लगभग मीन लग्न, बव करण और आयुष्मान योग में चतुर्थी तिथि का आरम्भ होगा, जो ग्यारह जनवरी को दिन में 2:31 तक रहेगी | यद्यपि उदया तिथि ग्यारह जनवरी को है, किन्तु चन्द्रदर्शन के साथ इस व्रत का पारायण किया जाता है इसलिए कल ही यह व्रत किया जाएगा | कल चन्द्र दर्शन रात्रि 8:41 पर होगा | तिथ्योदय के समय चन्द्रमा मघा नक्षत्र पर सिंह राशि में होगा, गुरु तथा बुध के राशि परिवर्तन से बहुत शुभ योग भी बन रहे हैं, साथ ही शनि और शुक्र एक साथ कुम्भ राशि में भ्रमण कर रहे हैं – इस प्रकार ये कुछ बहुत शुभ योग इस अवसर पर बन रहे हैं | इस व्रत को माघ मास में होने के कारण माघी भी कहा जाता है तथा इसमें तिल के सेवन का विधान होने के कारण तिलकुट चतुर्थी और भगवान् श्री गणेश कि पूजा होने के कारण वक्रतुंडी चतुर्थी भी कहा जाता है | उत्तर भारत में तथा मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में इस व्रत की विशेष मान्यता है और विशेष रूप से माताएँ अपनी सन्तान की मंगल कामना से इस व्रत को करती हैं | राजस्थान में अलवर से 60 किलोमीटर दूर सकट नाम का एक गाँव भी है जहाँ “सकट चौथ माता” का मन्दिर है और उस मन्दिर में भैरव तथा गणपति कि मूर्तियाँ भी विराजमान हैं | इस मन्दिर में सकट चौथ के दिन विशेष रूप से पूजा अर्चना की जाती है |
इस दिन संकष्टी माता या सकट माता की उदारता से सम्बन्धित कथा का भी पठन
और श्रवण किया जाता है | कथा अनेक रूपों में है – अपने अपने परिवार और समाज की प्रथा के अनुसार कहीं भगवान शंकर और गणेश जी की कथा का श्रवण किया जाता है कि किन परिस्थितियों में गणेश जी को हाथी का सर लगाया गया था | कहीं कुम्हार की कहानी भी कही सुनी जाती है | तो कहीं गणेश जी और बूढ़ी माई की कहानी तो कहीं साहूकारनी की कहानी कही सुनी जाती है | किन्तु, जैसी कि अन्य हिन्दू व्रतोत्सवों की कथाओं के साथ कोई न कोई नैतिक सन्देश जुड़ा होता है, इन कथाओं में भी कुछ इसी प्रकार के सन्देश निहित हैं कि कष्ट के समय घबराना नहीं चाहिए अपितु साहस से बुद्धि पूर्वक कार्य करना चाहिए, माता पिता की सेवा परम धर्म है, लालच और ईर्ष्या अन्ततः कष्टप्रद ही होती है तथा मन में लिए संकल्प को अवश्य पूर्ण करना चाहिए |
साथ ही, पूजा में जो तिलकुट का प्रयोग किया जाता है वह भी ऋतु के अनुसार ही है – तिल और गुड़ का कूट बनाकर भोग लगाया जाता है जो कडकडाती ठण्ड में कुछ शान्ति प्राप्त करने का तथा स्वस्थ बने रहने का अच्छा उपाय है…
अस्तु ! हम सभी परस्पर प्रेम और सौहार्द की भावना के साथ ऋद्धि सिद्धिदायक विघ्नहर्ता भगवान गणेश का आह्वाहन करें और प्रार्थना करें कि गणपति सभी को सभी प्रकार के कष्टों से मुक्त रखें… इसी कामना के साथ सभी को संकष्टी चतुर्थी के व्रत की हार्दिक शुभकामनाएँ…