वासन्तिक नवरात्र की हार्दिक शुभकामनाएँ
सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके, शरण्ये त्रयम्बके गौरी नारायणी नमोSस्तु ते |
इस वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा यानी बुधवार 22 मार्च से नल नामक विक्रम सम्वत 2080 का आरम्भ हो जाएगा | कुछ ज्योतिषाचार्यों के अनुसार यह पिंगल सम्वत्सर होगा –इस विषय में सदा से ही मतभेद चला रहा है और हमारे विद्वज्जनों को इस पर विचार करने की आवश्यकता है, क्योंकि किसी भी अनुष्ठान आदि में संकल्प लेते समय विक्रम सम्वत का नाम लेना आवश्यक होता है |
वास्तव में तो चैत्र कृष्ण प्रतिपदा से विक्रम सम्वत आरम्भ हो जाता है और इस वर्ष 8 मार्च से विक्रम सम्वत 2080 आरम्भ हो चुका है | किन्तु सर्वमान्य रूप से चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नव वर्ष का आरम्भ माना जाता है | साथ ही शक सम्वत 1945 भी आरम्भ हो जाएगा | पौराणिक मान्यता के अनुसार इसी दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि का निर्माण आरम्भ किया था, इसलिये भी इस तिथि को नव सम्वत्सर के रूप में मनाया जाता है | भारत में वसन्त ऋतु के अवसर पर नूतन वर्ष का आरम्भ मानना इसलिये भी उत्साहवर्द्धक है क्योंकि इस ऋतु में प्रकृति में महत्वपूर्ण परिवर्तन होते हैं तथा चारों ओर हरियाली छाई रहती है और प्रकृति नवीन पत्र-पुष्पों द्वारा अपना नूतन श्रृंगार करती है | ऐसी भी मान्यता है कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को दिन-रात का मान समान रहता है | राशि चक्र के अनुसार भी सूर्य इस ऋतु में राशि चक्र की प्रथम राशि मेष में प्रविष्ट होता है | यही कारण है भारतवर्ष में नववर्ष का स्वागत करने के लिये पूजा अर्चना की जाती है तथा सृष्टि के रचेता ब्रह्मा जी से प्रार्थना की जाती है कि यह वर्ष सबके लिये कल्याणकारी हो |
नवरात्रि के महत्त्व के विषय में विशिष्ट विवरण मार्कंडेय पुराण, वामन पुराण, वाराह पुराण, शिव पुराण, स्कन्द पुराण और देवी भागवत आदि पुराणों में उपलब्ध होता है | इन पुराणों में देवी दुर्गा के द्वारा महिषासुर के मर्दन का उल्लेख उपलब्ध होता है | महिषासुर मर्दन की इस कथा को “दुर्गा सप्तशती” के रूप में देवी माहात्मय के नाम से जाना जाता है | नवरात्रि के दिनों में इसी माहात्मय का पाठ किया जाता है और यह बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक माना जाता है | जिसमें 537 चरणों में सप्तशत यानी 700 मन्त्रों के द्वारा देवी के माहात्मय का जाप किया जाता है | इसमें देवी के तीन मुख्य रूपों – काली अर्थात बल, लक्ष्मी और सरस्वती की पूजा के द्वारा देवी के तीन चरित्रों – मधुकैटभ वध, महिषासुर वध तथा शुम्भ निशुम्भ वध का वर्णन किया जाता है |
जब समस्त शक्तियाँ एक साथ एक रूप में एकत्र हो जाती हैं तब उन्हें दुर्गा कहा जाता है | देवासुर संग्राम में जब महिषासुर ने समस्त देवों को परास्त कर दिया तब देवताओं ने ब्रह्मा जी से प्रार्थना की और उनके साथ शिव और विष्णु के पास जा पहुँचे सहायता माँगने के लिये | ब्रह्मा, विष्णु और महेश महिषासुर के कृत्य से अत्यन्त क्रोधित हुए और इस त्रिमूर्ति के क्रोध से एक विचित्र नारीरूपा आकृति उत्पन्न हुई जिसे दुर्गा कहा गया | क्योंकि यह आकृति “दुर्गा” ब्रह्मा विष्णु महेश के क्रोध का परिणाम थी इसलिये अन्य सभी देवताओं की अपेक्षा अधिक बलशाली भी थीं | साथ ही इस आकृति के समस्त अंग प्रत्यंग भी विविध देवताओं के तेज से ही निर्मित थे इसलिये स्वाभाविक रूप से अत्यन्त रूपवती भी थीं | दुर्गा को सभी देवताओं ने अपने अपने अस्त्र भेंट में दे दिए | “समस्त देवानां तेजोराशि समुद्भवा” दुर्गा और भी अधिक शक्तिशाली हो गई थीं | अब देवी देवताओं को महिषासुर से मुक्ति दिलाने चलीं | महिषासुर देवी पर मुग्ध हो गया और उनके समक्ष विवाह का प्रस्ताव रख दिया | देवी ने कहा कि यदि वह उन्हें युद्ध में परास्त कर देगा तो वे उसके साथ विवाह कर लेंगी | युद्ध आरम्भ हुआ जो नौ दिनों तक (देवताओं के नौ दिन) चला | अन्त में दुर्गा ने चन्द्रिका का रूप धारण किया और महिषासुर को अपने पैरों के नीचे गिराकर उसका सर काट डाला | इसी घटना की स्मृति में नौ दिनों तक दुर्गा पूजा का अनुष्ठान चलता है | इन नौ दिनों में दुर्गा के विविध रूपों की पूजा की जाती है | ये नौ रूप सर्वज्ञ महात्मा वेद भगवान के द्वारा ही प्रतिपादित हुए हैं |
“प्रथमं शैलपुत्रीति द्वितीयं ब्रह्मचारिणी, तृतीयं चन्द्रघंटेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् |
पञ्चमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनी तथा सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ||
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा प्रकीर्तिता:, उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना ||
मनोनुकूल फलप्राप्ति की कामना से देवी की अर्चना की जाती है | ये समस्त रूप सम्मिलित भाव से इस तथ्य का भी समर्थन करते हैं कि शक्ति सर्वाद्या है | उसका प्रभाव महान है | उसकी माया बड़ी कठोर तथा अगम्य है तथा उसका माहात्म्य अकथनीय है | और इन समस्त रूपों का सम्मिलित रूप है वह प्रकृति अथवा योगशक्ति जो समस्त चराचर जगत का उद्गम है तथा जिसके द्वारा भगवान समस्त जगत को धारण किये हुए हैं |
आश्विन मास और चैत्र मास में शुक्ल प्रतिपदा से आरम्भ होकर नवमी तक शारदीय और वासन्तिक या साम्वत्सरिक नवरात्रों में नौ दिनों में माँ दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती के साथ नौ देवियों तथा कन्याओं की पूजा का अनुष्ठान उदाहरण है इस तथ्य का जो “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता” के द्वारा प्रतिपादित किया गया है कि भारत में नारी भोग्या न होकर सम्माननीया है, वो माँ बहन और पत्नी तीनों ही रूपों में शक्ति भी है तो लक्ष्मी भी है और ज्ञान की दात्री भी है | साथ ही, समस्त देवों द्वारा दुर्गा को अपनी अपनी शक्तियाँ प्रदान करना इस तथ्य को भी सामने लाता है कि नारी को – कन्या सन्तान को – “आश्रिता” न बनाकर – बोझ न मानकर – यदि पूर्ण रूप से सशक्त करने का – स्वावलम्बी बनाने का प्रयास किया जाए तो वह न केवल अपनी स्वयं की अपितु परिवार, समाज और देश की न केवल रक्षा कर पाने में समर्थ होगी बल्कि इनका मान और गौरव भी बढ़ाएगी |
वासन्तिक नवरात्र को राम नवरात्र भी कहा जाता है और नवमी को रामनवमी के नाम से जाना जाता है क्योंकि इसी दिन भगवान् श्री राम का जन्म हुआ था | भगवान् राम की जन्मपत्री बनाकर उनके भविष्य का फलकथन आचार्यों ने किया था | महाराज दशरथ को पुत्रेष्टि यज्ञ करते हुए जब छह ऋतुएँ व्यतीत हो गईं तब द्वादश मास पूरे हो जाने पर कौशल्या ने दिव्या लक्षणों से युक्त श्री राम को जन्म दिया – उस समय चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की शुक्ल नवमी थी, पुनर्वसु नक्षत्र और कर्क लग्न थी, सूर्य मेष में दशम भाव में, मंगल मकर में सप्तम में, शनि तुला में चतुर्थ में, गुरु कर्क में लग्न में, और शुक्र मीन का होकर नवम भाव में – इस प्रकार ये पाँच ग्रह अपनी अपनी उच्च राशियों में विराजमान थे | लग्न में गुरु के साथ चन्द्रमा भी था…
ततो यज्ञे समाप्ते तु ऋतूनां षट्समत्ययु: |
ततश्च द्वादशे मासे चैत्रे नावमिके तिथौ ||
नक्षत्रेऽदितिदैवत्ये स्वोच्चसंस्थेषु पञ्चसु |
ग्रहेषु कर्कटे लग्ने वाक्पताविन्दुना सह ||
प्रोद्यमाने जगन्नाथं सर्वलोकनमस्कृतम् |
कौसल्याऽजनयद्रामं सर्वलक्षणसंयुतम् ||
विष्णोरर्धं महाभागं पुत्रमैक्ष्वाकुवर्धनम्… वा. रा. बालकाण्ड 1/18/8–10
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से भारतीय हिन्दू नव सम्वत्सर का आरम्भ हो जाता है | जो लगभग पूरे भारतवर्ष में किसी न किसी नाम से मनाया जाता है | महाराष्ट्र में गुडी पर्व के नाम से मनाया जाता है | उत्तर प्रदेश, हरयाणा, पंजाब, उत्तराखण्ड, मध्य प्रदेश में नवरात्र के नाम से इस पर्व की धूम रहती है | आंध्रप्रदेश और कर्नाटक में युगादि तथा आन्ध्र और तेलंगाना में उगडि तिथि कहकर इस सत्य की उद्घोषणा की जाती है कि भारतीय नव वर्ष चैत्र प्रतिपदा से ही आरम्भ होता है, न कि पहली जनवरी से | पंजाब में बैसाखी, कश्मीर में नवरेह, मणिपुर में सजिबु नोंगमा पानबा या मेइतेई चेइराओबा, सिंध में चेती चंड, गोवा और केरल में सम्वत्सर पड़वो और अन्य राज्यों में विशु, चित्रैय, तिरुविजा इत्यादि अनेकों नामों से इसी समय नव वर्ष मनाया जाता है |
ईसा से 57 वर्ष पूर्व मालवा के प्रतापी राजा विक्रमादित्य ने देशवासियों को शकों के अत्याचारी शासन से मुक्त किया था और उस विजय को अमर बनाने के लिये विक्रम सम्वत का प्रवर्तन किया था | भारतीय परम्परा में चक्रवर्ती राजा विक्रमादित्य शौर्य, पराक्रम तथा प्रजा हितैषी कार्यों के लिए प्रसिद्ध हैं | ज्ञान-विज्ञान, कला, संस्कृति को विक्रमादित्य ने बहुत प्रोत्साहन दिया था | धन्वन्तरी जैसे महान वैद्य, वाराहमिहिर जैसे प्रकाण्ड ज्योतिषी, तथा कालिदास जैसे महान कवि उनकी सभा के नवरत्नों में थे |
यह अत्यन्त प्राचीन सम्वत गणित की दृष्टि से भी अत्यन्त सुगम है, क्योंकि इस सम्वत के अनुसार तिथि अंश दिनमान आदि सभी की गणना सूर्य-चन्द्र की गति पर आधारित हैं, और इस प्रकार यह पूर्ण रूप से वैज्ञानिक भी है | प्राचीन काल में नवीन सम्वत चलाने की विधि थी कि जिस नरेश को भी अपना संवत चलाना होता था उसे सम्वत आरम्भ करने से एक दिन पूर्व उन सब प्रजाजनों का ऋण अपनी ओर से चुका देना होता था जिन्होंने किसी से भी किसी प्रकार का ऋण ले रखा हो, और ऐसा राजा लोग प्रायः अपनी विजय के उपलक्ष्य में करते थे | महाराज विक्रमादित्य ने पहले शकों को पराजित किया और फिर देश के सम्पूर्ण ऋण को, चाहे वह जिस व्यक्ति का रहा हो, स्वयं देकर अपने नाम से इस सम्वत का आरम्भ किया था, जो सम्राट पृथिवीराज के शासन काल तक चला | आज भले ही ईसवी सन का बोलबाला जीवन के हर क्षेत्र में हो, किन्तु भारतीय संस्कृति की पहचान यह विक्रम सम्वत ही है और विवाह मुंडन गृह प्रवेश जैसे समस्त शुभ कार्यों तथा श्राद्ध तर्पण आदि सामाजिक कार्यों का अनुष्ठान इसी सम्वत की भारतीय पंचांग पद्धति के अनुसार ही किया जाता है |
अस्तु, सभी को साम्वत्सरिक नवरात्र या वासन्तिक नवरात्र और हिन्दू नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ | माँ दुर्गा सभी की मनोकामनाएँ पूर्ण करें |
देवी प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद, प्रसीद मातर्जगतोऽखिलस्य |
प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं, त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य ||
—–कात्यायनी—–