श्री हनुमान जन्म महोत्सव

श्री हनुमान जन्म महोत्सव

श्री हनुमान जन्म महोत्सव
अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं, दनुजवनकृशानं ज्ञानिनामग्रगण्यम् |
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशम्, रघुपति प्रियभक्तं वातजातं नमामि ||

अतुल बल के धाम, स्वर्ण के पर्वत के समान कान्तियुक्त शरीर वाले, दैत्यरूपी वन के लिए अग्नि रूप, ज्ञानियों में अग्रगण्य, सम्पूर्ण गुणों के निधान, वानरों के स्वामी, श्री रघुनाथ जी के प्रिय भक्त पवनपुत्र श्री हनुमान जी को हम नमन करते हैं |

गुरुवार 6 अप्रैल को हनुमान जयन्ती है और हमारी एक प्रिय मित्र ने कल हमसे हनुमान जी के जन्म के विषय में प्रश्न किया कि वर्ष में कितनी बार उनका जन्मदिन मनाया जाता है | हम इस विषय के ज्ञाता तो नहीं हैं, क्योंकि केसरीनन्दन पवनपुत्र अंजनासुत हनुमान जी – जो स्वयं भगवान आदिशिव के आठ रुद्रावतारों में से एक हैं – उनके जन्म के विषय में लिख पाने की सामर्थ्य हम जैसे अल्पबुद्धिजनों में कैसे हो सकती है ? यह विषय विशद और गहन शोध का विषय है | तथापि जो कुछ पढ़ा अथवा सुना है उसी के आधार पर कुछ लिखने का प्रयास कर रहे हैं |

हनुमान जयन्ती वर्ष में दो बार मनाई जाती है | बल्कि हम कहेंगे कि दो बार नहीं – चार बार | पहली हिन्‍दू पञ्चाङ्ग के अनुसार चैत्र शुक्‍ल पूर्णिमा को – जो मार्च-अप्रैल के मध्य आती है – इस वर्ष 6 अप्रैल को मनाई जाएगी | और दूसरी कार्तिक कृष्‍ण चतुर्दशी अर्थात नरक चतुर्दशी – जिसे छोटी दीवाली भी कहा जाता है – उस दिन मनाई जाती है – जो अक्टूबर-नवम्बर में आती है – इस वर्ष 12 नवम्बर को मनाई जाएगी | उत्तर भारत के अधिकाँश परिवारों में इस दिन हनुमान जी का रोट बनाकर उसका हनुमान जी को भोग लगाया जाता है और फिर उसे प्रसाद रूप में ग्रहण किया जाता है | इसके अतिरिक्त तमिलानाडु और केरल में हनुमान जयन्ती मार्गशीर्ष अमावस्या को मनाई जाती है – जो इस वर्ष 12 दिसम्बर को होगी | उड़ीसा में वैशाख कृष्ण प्रतिपदा को – जो इस वर्ष 6 अप्रैल को होगी, क्योंकि 6 अप्रैल को प्रातः दस बजकर पाँच मिनट के लगभग प्रतिपदा तिथि आरम्भ हो जाएगी |

अधिकाँश में जो मान्यताएँ हैं उनके आधार पर कुछ विद्वानों की धारणा है कि हनुमान जी का जन्म चैत्र शुक्ल एकादशी को मघा नक्षत्र में हुआ था…

चैत्रेमासि सिते मक्षे हरिदिन्यां मघाभिधे |

नक्षत्रे स समुत्पन्नो हनुमान रिपुसूदनः ||

तो कुछ की मान्यता है कि कल्पभेद से चैत्र पूर्णिमा को हनुमान जी का जन्म हुआ था…

महाचैत्री पूर्णिमायां समुत्पन्नोऽञ्जनीसुतः।

वदन्ति कल्पभेदेन बुधा इत्यादि केचन।।

वायु पुराण के अनुसार आश्विन शुक्ल चतुर्दशी को स्वाति नक्षत्र और मेष लग्न में हनुमान जी का जन्म हुआ था…

आश्विनस्यासिते पक्षे स्वात्यां भौमे चतुर्दशी |

मेषलग्नेऽञ्जनी गर्भात् स्वयं जातो हरः शिवः ||

कुछ विद्वानों का मानना है कि हनुमान जी का जन्म कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मंगलवार के दिन, स्वाति नक्षत्र और मेष लग्न में हुआ था और इस विषय में कुछ पौराणिक ग्रन्थों के श्लोक प्रमाण रूप में प्रस्तुत करते हैं…

ऊर्जे कृष्णचतुर्दश्यां भौमे स्वात्यां सदाशिव: |

मेषे लगने अंजनागर्भात् प्रादुर्भूतो महेश्वर: || – अगस्त्य संहिता

इन सभी मतों में से चैत्र पूर्णिमा और कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के मत अधिक प्रचलित हैं | ये दोनों ही मत तर्क संगत प्रतीत होते हैं, किन्तु इनके कारणों में भिन्नता है | इनमें से चैत्र पूर्णिमा को अभिनन्दन महोत्सव के रूप में मनाया जाता है और कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को उनके जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है | चैत्र पूर्णिमा के विषय में कथा प्रचलित है कि उस दिन सूर्य को फल समझकर हनुमान जी ने उन्हें खाने के लिए आकाश में छलाँग लगा दी थी | निश्चित रूप से उसी समय जिसका जन्म हुआ हो वह शिशु तो ऐसा नहीं कर सकता – हनुमान जी इस समय तक कुछ बड़े बालक हो चुके होंगे | जैसा कि वाल्मीकि रामायण में जाम्बवन्त उन्हें बताते हैं कि…

अभ्युत्थितं ततः सूर्यं बालो दृष्ट्वा महावने |

फलं चेति जिघृक्षुस्त्वमुत्प्लुत्याभ्युत्पतो दिवम् ||

  • वा. रा. किष्किन्धाकाण्ड सर्ग 66 श्लोक 21

बाल्यावस्था में एक विशाल वन के भीतर तुमने एक दिन नवोदित सूर्य को देखा और उसे कोई फल समझकर उसे पकड़ने के लिए आकाश में उछल पड़े |

साथ ही यह भी कि हनुमान जी अजन्मा हैं और वे प्रकट हुए थे | श्री गोस्वामी तुलसीदास जी ने हनुमान चालीसा में लिखा भी है कि “चारों युग प्रताप तुम्हारा, है परसिद्ध जगत उजियारा |” तो चारों युग पढ़कर प्रश्न किया जा सकता है कि क्या सतयुग में भी हनुमान जी थे? तुलसीदास जी के इस कथन का अभिप्राय यही है कि ईश्वर समय व दिशाओं की सीमाओं से परे है | समय व दिशाएँ तो नश्वर जगत के लिए होती हैं – यह नश्वर जगत जो न जाने कितनी बार नष्ट होता है और पुनः अस्तित्व में आ जाता है | जबकि हनुमान जी हर काल – हर युग में विद्यमान हैं – साकार अथवा निराकार रूप में श्री रामभक्तों के कल्याण के लिए सदा उपस्थित रहते हैं | जहाँ जहाँ श्री राम के चरित्र का गान किया जाता है वहाँ वहाँ हनुमान जी निश्चित रूप से उपस्थित रहते हैं | उनके अजन्मा होने का प्रमाण तुलसीदास जी को वाल्मीकि रामायण के इस श्लोक से प्राप्त हुआ जिसमें जाम्बवन्त हनुमान जी को उनके जन्म का वृत्तान्त सुनाते हैं कि वो एक गुफा में दिव्य रुप में पाए गए थे –

एवमुक्ता ततः तुष्टा जननी ते महाकपेः |

गुहायाम् त्वं महाबाहो प्रजज्ञे प्लवगर्षभ ||

  • वा. रा. किष्किन्धाकाण्ड सर्ग 66 श्लोक 20

हे महाकपि हनुमान! जब पवनदेव के वरदान को तुम्हारी माता ने सुना तो वो प्रसन्न और अनुग्रहित हो गईं और उन्होंने तुम्हें दिव्य रुप से एक गुफा में प्राप्त किया |

इस सबको पढ़ सुनकर हमें तो यही प्रतीत होता है कि कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को हनुमान जी का जन्म हुआ होगा | यद्यपि इस विषय में भी एक कथा है कि सीता जी ने हनुमान जी की भक्ति और समर्पण को देखकर उनको अमरता का वरदान दिया था और उस दिन कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी थी |

अस्तु, बहुत सी कथाओं को सुनने पढ़ने के बाद यही कहना चाहेंगे कि जब तक विद्वज्जन किसी ठोस निर्णय पर नहीं पहुँच जाते तब तक दोनों ही तिथियों को हनुमान जन्म महोत्सव मनाया जाना तर्कसंगत है – भले ही चैत्र पूर्णिमा को अभिनन्दन दिवस के रूप में हनुमान जी का जन्म महोत्सव मनाया जाए अथवा कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को उनका जन्म महोत्सव मनाया जाए – भारतीय जन मानस की आस्था का केन्द्र होने के कारण दोनों ही तिथियाँ महत्त्वपूर्ण हैं… भगवान् श्री राम के अनन्य भक्त श्री हनुमान सभी श्री राम भक्तों की सहायता करें इसी कामना के साथ हनुमान जन्म महोत्सव की सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ…

मनोजवं मारुततुल्यवेगं, जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम् |

वातात्मजं वानरयूथमुख्यं, श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ||