जलाशयों के सम्मान का पर्व
ज्येष्ठ मास आरम्भ हो चुका है और मंगलवार 30 मई को गंगा दशहरा का पर्व है – जिसे गंगावतरण भी कहा जाता है, और उसके दूसरे दिन निर्जला एकादशी है – जिसे भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है | गंगा दशहरा वास्तव में दश दिवसीय पर्व है जो ज्येष्ठ शुक्ल प्रतिपदा से आरम्भ होकर ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को सम्पन्न होता है | इस वर्ष 20 मई से गंगा दशहरा का पर्व आरम्भ हुआ है और 30 जून को इसका समापन होगा | मान्यता है कि महाराज भगीरथ के अखण्ड तप से प्रसन्न होकर इसी दिन माँ गंगा पृथिवी पर उतरी थीं और अपने साथ स्वर्ग का अमृत भी लेकर आई थीं | इससे पूर्व गंगा ब्रह्मा के कमण्डल में निवास कर रही थीं – इसके दूसरे ही दिन आता है निर्जला एकादशी का व्रत, जिसमें जल भी ग्रहण न करने का संकल्प लिया जाता है इसीलिए इसे निर्जला एकादशी कहते हैं | 29 मई को प्रातः 11:50 के लगभग दशमी तिथि का आरम्भ होगा सिंह लग्न, तैतिल करण और वज्र योग में दशमी तिथि का आरम्भ होगा जो 30 मई को दिन में एक बजकर आठ मिनट तक रहेगी | 29 और 30 मई को सूर्योदय 5:24 पर है | 30 मई को सूर्योदय से पूर्व 4:29 पर हस्त नक्षत्र भी उदय हो रहा है, अतः इसी समय से स्नान का पुण्य काल आरम्भ हो जाएगा |
हम सभी इस तथ्य से भली भाँति परिचित हैं कि भारत के जन मानस की धार्मिक आस्था इतनी विशाल है कि हर जड़ चेतन को सम्मान की दृष्टि से देखती है | और इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि हमारे ऋषि मुनियों से सृष्टि के आरम्भिक काल में जिस प्रकार से प्रकृति में परिवर्तन देखे होंगे तो एक ओर उन्हें आश्चर्य हुआ होगा और दूसरी ओर उन्होंने उन परिवर्तनों के लाभ हानि का विचार किया होगा – जन साधारण पर उनके अनुकूल और प्रतिकूल प्रभावों को देखकर कभी भय के कारण तो कभी श्रद्धा के वशीभूत होकर उनके मस्तक प्रकृति के कण कण के प्रति नत हुए होंगे और उनके सम्मान में उनके मुख से पवित्र ऋचाएँ फूट उठी होंगी | गंगा तथा अन्य नदियों की पूजा और अर्चना को भी हम उसी रूप में देख सकते हैं | साथ ही इस सत्य का भी भान होता है कि उस समय में लोग पर्यावरण के प्रति कितने अधिक सचेत थे | इसी हेतु गंगा दशहरा हमारे लिए जलाशयों के सम्मान का पर्व है |
गंगा का जल इतना पवित्र माना गया है कि वर्षों तक भी उसका उपयोग किया जा सकता है | जहाँ से गंगा नदी का उद्गम होता है वहाँ चूने की पहाड़ियाँ हैं, देवदार और अन्य औषधि के गुणों से युक्त वनस्पतियाँ यहाँ उपलब्ध होती हैं | गंगा नदी विश्व भर में अपनी शुद्धीकरण क्षमता के कारण प्रसिद्ध है | लम्बे समय से प्रचलित इसकी शुद्धीकरण की मान्यता का वैज्ञानिक आधार भी है | माना जाता है कि इस नदी के जल में कुछ इस प्रकार के तत्व होते हैं जो किसी प्रकार के हानिकारक सूक्ष्म जीवों को जीवित ही नहीं रहने देते | साथ ही इसके जल में प्राणवायु यानी ऑक्सीजन की मात्रा को बनाए रखने की भी असाधारण क्षमता है | सम्भवतः इसीलिए इसका जल वर्षों तक घरों में रखने के बाद भी उपयोगी बना रहता है और अमृततुल्य माना जाता है | माँ के समान गंगा नदी और उसकी अन्य सहायक नदियाँ हमारा सिंचन और पोषण करती हुई हमें तुष्टि प्रदान करती हैं |
इसके साथ ही आर्थिक, सामाजिक, कृषि आदि के स्तर पर भी इसका विशेष महत्त्व है | प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर तटों वाली गंगा नदी का जल अनादि काल से कृषि में तो महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता ही आ रहा है, अपनी सहायक नदियों सहित बहुत बड़े क्षेत्र के लिए वर्ष भर सिचाई का कभी न समाप्त होने वाला स्रोत भी बना हुआ है |
धार्मिक दृष्टि से यदि देखें तो अनेक धार्मिक अवधारणाओं में गंगा नदी को देवी के रूप में निरूपित किया गया है | अनेक तीर्थ स्थल इसी नदी के किनारे बसे हुए हैं | सम्भवतः इसी कारण हिन्दू मान्यता में व्यक्ति के अन्तिम समय में गंगाजल उसके मुँह में डालने की तथा गंगा के पवित्र जल में अस्थियों को प्रवाहित करने की प्रथा चली आ रही है | कुम्भ जैसा महान और विशाल पर्व तो पूर्ण रूप से गंगा से ही जुड़ा हुआ है |
जो नदी हमारे लिए इतनी उपयोगी है कि उसके बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती, भला उसके प्रति जन मानस श्रद्धा से नत क्यों नहीं होगा ? साथ ही, पूर्ण श्रद्धा और आस्था के साथ जिस भी किसी वस्तु अथवा व्यक्ति की पूजा अर्चना की जाएगी उसे किसी प्रकार का कष्ट पहुँचाने – उसे प्रदूषित करने का विचार भी मन कैसे आ पाएगा ? किन्तु समस्या यही है कि हम अपनी नदियों के प्रति उसी आस्था और श्रद्धा को भुला बैठे हैं और उनके स्वच्छन्द गति से प्रवाहित होते अमृततुल्य जल को प्रदूषित करने में कोई कमी नहीं छोड़ रहे हैं | यद्यपि कोरोना काल में लॉक डाउन के समय जिन नदियों के जल को हमारी सरकारें करोड़ों रूपये खर्च करके भी साफ़ नहीं कर पाई थीं – नदियों का वही जल इस स्वतः ही कहीं हीरे तो कहीं पन्ने जैसे दमक उठा था | क्योंकि गंगा जैसी पवित्र नदियों के घाटों पर जहाँ करोड़ों लोगों का मेला सा लगा रहता था और वे अपना सारा कचरा उन नदियों के जल में फेंकने में कोई संकोच नहीं करते थे, लॉक डाउन के कारण लोगों का वहाँ जाना बन्द हो गया था और गंगा आदि नदियों के जल को स्वतः ही पुनः अपने वास्तविक रूप में आने का अवसर प्राप्त हो गया था – संसार को जीवन दान देने वाली नदियों के जल को एक प्रकार से पुनर्जीवन प्राप्त हो गया था | किन्तु अब पुनः वही स्थिति है |
गंगा दशहरा के पावन पर्व पर दान पुण्य करने के साथ क्यों न हम सब संकल्प लें कि
अब अपनी प्रकृति को – अमृततुल्य दुग्ध के रूप में अपने हृदय के अमृत से हमें पुष्ट और बलिष्ठ बनाने वाली माँ के समान हमें अपने अमृत जल से सींचने वाली नदियों को हम फिर से मैला नहीं होने देंगे… और साथ ही यह भी नहीं भूलना चाहिए कि नदी का सम्मान नारी का सम्मान है… यह संकल्प आज हमने ले लिया और दृढ़ता के साथ इसका पालन किया तब ही गंगा दशहरा के अवसर पर माँ गंगा के लिए समर्पित हमारी अर्चना सार्थक होगी…
रसपूर्ण, दीप्तिमती तथा पवित्र करने वाली नदियाँ माता के समान हमारी रक्षा करें और हमें तुष्टि पुष्टि प्रदान करें, इसी भावना के साथ सभी को गंगा दशहरा की हार्दिक शुभकामनाएँ…
समुद्रज्येष्ठाः सलिलस्य मध्यात्पुनाना यन्त्यनिविशमानाः |
इन्द्रो या वज्री वृषभो रराद ता आपो देवीरिह मामवन्तु ||
या आपो दिव्या उत वा स्रवन्ति खनित्रिमा उत वा याः स्वयंजाः |
समुद्रार्था याः शुचयः पावकास्ता आपो देवीरिह मामवन्तु ||
यासां राजा वरुणो याति मध्ये सत्यानृते अवपश्यञ्जनानाम् |
मधुश्चुतः शुचयो याः पावकास्ता आपो देवीरिह मामवन्तु ||
यासु राजा वरुणो यासु सोमो विश्वे देवा यासूर्जं मदन्ति |
वैश्वानरो यास्वग्निः प्रविष्टस्ता आपो देवीरिह मामवन्तु || – ऋग्वेद 7/49/1-7/49/4