शिव षडाक्षर स्तोत्रम्
कर्पूगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम् |
सदावसन्तं हृदयारविन्दे भवं भवानी सहितन्नमामि ||
सोमवार 28 अगस्त – श्रावण मास का अन्तिम प्रदोष – भगवान शिव की पूजा अर्चना का दिन | सभी जानते हैं कि प्रत्येक मास के शुक्ल और कृष्ण दोनों पक्षों की त्रयोदशी को प्रदोष के व्रत का पालन किया जाता है | अर्थात हर हिन्दू मास में दो प्रदोष पड़ते हैं | इस वर्ष श्रावण में अधिक मास होने के कारण इस मास में चार प्रदोष आए हैं | इस व्रत के दौरान सारा दिन निर्जल व्रत रखकर सन्ध्या समय शिव-पार्वती की पूजा अर्चना करके व्रत का पारायण किया जाता है | कार्य में सफलता के लिए, मनोकामना सिद्धि के लिए, परिवार की सुख समृद्धि के लिए तथा इन सबसे भी बढ़कर सन्तान के सुख की कामना से इस व्रत का पालन किया जाता है | जिन लोगों की सन्तान को किसी प्रकार का कोई कष्ट होता है अथवा सन्तान के कार्य में कोई विघ्न आ रहा होता है उन लोगों को प्रदोष के व्रत की सलाह दी जाती है | इसके अतिरिक्त बिना किसी समस्या के भी प्रदोष का व्रत रखा जा सकता है – इस कामना के साथ कि हमारी सन्तान सुखी रहे तथा परिवार में सुख समृद्धि बनी रहे | प्रायः उन महिलाओं को भी प्रदोष के व्रत की सलाह दी जाती है जिनके कोई सन्तान नहीं हो रही है अथवा सन्तान पैदा होने में या गर्भ धारण करने में कोई समस्या आ रही है |
सूर्यास्त से तुरन्त पूर्व और तुरन्त बाद का कुछ समय प्रदोष काल कहलाता है | यों प्रदोष सप्ताह में सातों दिन हो सकता है किसी न किसी तिथि का – क्योंकि संध्याकाल में कोई न कोई तिथि बदल सकती है | लेकिन इस अवधि में यदि त्रयोदशी तिथि होती है तो उस प्रदोष का विशेष महत्त्व माना गया है और उसे भगवान शिव की पूजा अर्चना के लिए समर्पित किया गया है | माना जाता है कि समुद्र मन्थन के दौरान जो हलाहल समुद्र में से निकला था भगवान शंकर ने प्रदोषकाल में ही उस हलाहल का पान किया था |
ऐसी भी मान्यता है कि विशेष रूप से त्रयोदशी युक्त प्रदोषकाल भगवान शिव और पार्वती को बहुत प्रिय है और इस अवधि में वे इतने अधिक प्रसन्नचित्त होते हैं कि केवल एक दीप जलाकर प्रार्थना की जाए तब भी वे प्रसन्न हो जाते हैं और इसीलिए भक्तों की सारी मनोकामनाएँ पूर्ण कर देते हैं |
किसी भी पूजा में – किसी भी धार्मिक अनुष्ठान में – रीति रिवाज़ों का पालन आवश्यक हो जाता है | किन्तु हमारे विचार से यदि किसी कारण वश समस्त रीति रिवाज़ों का पालन नहीं भी किया जाए तब भी किसी प्रकार से चिन्तित होने की आवश्यकता नहीं है | हम किसी ऐसे स्थान पर हैं या ऐसी परिस्थिति में हैं जहाँ हमें पूजा के लिए निर्दिष्ट विशिष्ट सामग्री उपलब्ध नहीं है अथवा व्रत के पारायण के समय सेवन करने योग्य भोजन उपलब्ध नहीं है तो उसके कारण हमारी आस्था में कोई व्यवधान नहीं आना चाहिए | किसी भी पूजा अर्चना का मर्म उस परमात्मतत्व के प्रति आस्था है | यदि मन में आस्था है तो बिना किसी रीति रिवाज़ का पालन किये भी केवल नाम जपने भर से ईश्वर प्रसन्न हो जाते हैं | इसलिए आवश्यकता है किसी भी प्रकार के अन्धविश्वास से बचने की, किसी भी प्रकार की कट्टरपंथी से बचने की |
“ॐ नमः शिवाय” यह मन्त्र स्वयं में कितना पूर्ण है यह जानने के लिए प्रस्तुत है शिवषडाक्षर (ॐ न मः शि वा य) स्तोत्र… शिव पञ्चाक्षर स्तोत्रम् में भी ॐ नमः शिवाय के ही पाँच अक्षरों को आधार बनाया गया है, अन्तर इतना है कि शिव षडाक्षर स्तोत्रम् में ॐ को भी लिया गया है… दोनों के ही रचयिता आदि शंकराचार्य हैं… सम्भव है अलग अलग समय दोनों स्तोत्रों की रचना होने के कारण दोनों अलग हैं…
ॐकार बिन्दुसंयुक्तं नित्यं ध्यायन्ति योगिनः |
कामदं मोक्षदं चैव “ॐकाराय” नमो नमः ||
सभी योगियों के हृदयचक्र में जो ॐकार के रूप में विद्यमान हैं, योगीजन निरन्तर जिसका ध्यान करते हैं और जो समस्त प्रकार की कामनाओं को पूर्ण करने के साथ साथ मोक्ष के पथ पर भी अग्रसर करते हैं ऐसे उस परम तत्व को नमस्कार है – जिसे “ॐकार” के नाम से जाना जाता है | ॐकार संयुक्त वर्ण नहीं है अपितु स्वर, स्पर्श और ऊष्म वर्णों को अभिव्यक्त करने वाला पूर्ण बीजमन्त्र है – और इसी के बिन्दु अर्थात नाद पर – स्वर पर ध्यानावस्थित होकर ही परमात्मतत्व का ज्ञान किया जा सकता है ऐसी योगियों की मान्यता है | ॐ-कार के इसी महत्त्व के कारण ॐ-कार को योगीजन नमन करते हैं |
नमन्ति ऋषयो देवा नमन्ति अप्सरसां गणा: |
नरा नमन्ति देवेशं “नकाराय” नमो नमः ||
“न” अर्थात न-कार उस देवाधिदेव का प्रतिनिधित्व करता है जिसको समस्त ऋषिगण, समस्त देवता, समस्त अप्सराएँ और गण, तथा सभी मनुष्य अर्थात नर नमन करते हैं – अतः उस “न-कार” को हमारा नमस्कार है |
महादेवं महात्मानं महाध्यानपरायणम् |
महापापहरं देवं “मकाराय” नमो नमः ||
महादेव, परमात्मतत्व, नित्य अखण्ड ध्यान में लीन, समस्त पापों को हरने वाले देव का प्रतिनिधित्व “म” अर्थात म-कार करता है, अतः इस “म-कार” के प्रति हम श्रद्धानत हैं |
शिवं शान्तं जगन्नाथं लोकानुग्रहकारकम् |
शिवमेकपदं नित्यं “शिकाराय” नमो नमः ||
“शि” अर्थात शि-कार शिव अर्थात कल्याण, शान्तप्रकृति, समस्त चराचर के स्वामी, समस्त लोकों पर उपकार करने वाले, परमपद सत्य सनातन नित्य शिव का प्रतिनिधित्व करता है, अतः उस “शि-कार” के लिए हम नमन करते हैं |
वाहनं वृषभो यस्य वासुकिः कण्ठभूषणम् |
वामे शक्तिधरं देवं “वकाराय” नमो नमः ||
जिनका वाहन वृषभ है, जिनके कण्ठ का आभूषण है वासुकी, जिनके वामांग में स्वयं शक्ति विराजमान हैं – ऐसे देव का द्योतक है वर्ण “व” अर्थात व-कार, अतः “व-कार” के लिए हमारा नमस्कार |
यत्र तत्र स्थितो देवः सर्वव्यापी महेश्वरः |
यो गुरु: सर्वदेवानां “यकाराय” नमो नमः ||
महेश्वर सर्वत्र स्थित हैं – सर्वव्यापी हैं तथा समस्त देवों के गुरु हैं, और “य” वर्ण अर्थात य-कार इन्हीं महादेव का द्योतक है – अतः य-कार के लिए भी हमारा नमस्कार |
षडाक्षरमिदं स्तोत्रं यः पठेच्छिवसन्निधौ |
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ||
भगवान शिव के सान्निध्य में बैठकर अर्थात भगवान शिव को अपने अन्तस् में विराजमान कर जो इस षडाक्षर स्तोत्र का पाठ करता है वह शिवलोक को प्राप्त करके शिव के साथ विचरण करता है अर्थात कल्याण को प्राप्त होता है |
||इति श्री रुद्रयामले उमामहेश्वरसम्वादे शिवषडाक्षर स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ||
हम ईश्वर के प्रति – अपनी आत्मा के प्रति – पूर्ण हृदय से आस्थावान रहते हुए पूर्ण निष्ठा के साथ अपने कर्तव्य कर्म करते रहें… महादेव प्रसन्न रहेंगे और सुख सौभाग्य स्वयमेव निकट बने रहेंगे…