भाद्रपद शुक्ल तृतीया हरतालिका
हरतालिका तीज, वाराह जयन्ती और विश्वकर्मा संक्रान्ति
ज्योतिष तथा धर्म ग्रन्थों में भाद्रपद शुक्ल तृतीया का बड़ा महत्त्व है | इसी दिन हरतालिका तीज होती है तथा भगवान विष्णु के तृतीय अवतार वाराह की जयन्ती मनाई जाती है | इस वर्ष 17 सितम्बर को प्रातः 11:08 के लगभग तृतीया तिथि का आगमन हो जाएगा जो 18 को दिन में 12:39 तक रहेगी | सूर्योदय काल में 18 सितम्बर को तृतीया होगी अतः इसी दिन हरतालिका तीज का व्रत रखा जाएगा | भगवान विष्णु के दस अवतारों में से तृतीय अवतार वाराह अवतार की जयन्ती 17 सितम्बर को मनाई जाएगी | 17 को ही विश्वकर्मा पूजा संक्रान्ति भी होगी – जो कन्या संक्रान्ति के दिन की जाती है | सूर्य का कन्या राशि में संक्रमण 17 को दिन में 1:31 के लगभग होगा और यही विश्वकर्मा पूजा का मुहूर्त है | तीनों पर्वों की सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ…
जैसा कि सभी जानते हैं कि वर्ष भर में इस प्रकार की तीन तृतीया आती हैं | श्रावण शुक्ल तृतीया को हरियाली तीज, उसके बाद भाद्रपद कृष्ण तृतीया को कजरी तीज और अब भाद्रपद शुक्ल तृतीया को हरतालिका तीज | तीनों ही तृतीया यानी तीज के व्रत समर्पित होते हैं भगवान शिव और माता पार्वती को | इनमें सबसे कठिन पूजा
होती है हरतालिका तीज की क्योंकि कुछ स्थानों पर तीन दिनों तक महिलाएँ व्रत रखती हैं और भाद्रपद शुक्ल तृतीया को उसका पारायण करती हैं | इस दिन शिव पार्वती की मिट्टी की प्रतिमा बनाकर उसकी पूजा की जाती है | प्रातःकाल की पूजा का मुहूर्त सूर्योदय काल यानी छह बजकर सात मिनट से लेकर 8:34 तक है | प्रथम दिन प्रदोष काल में मिट्टी की प्रतिमा स्थापित करके उसके सम्मुख रात्रि पर्यन्त पूजा आदि करके प्रातः पारायण किया जाएगा |
कहा जाता है कि भगवान शिव ने पार्वती जी को उनके पूर्व जन्म का स्मरण कराने के उद्देश्य से इस व्रत के माहात्म्य की कथा कही थी | एक अन्य मान्यता भी है जिसके अनुसार हरतालिका शब्द दो शब्दों हरत अर्थात हरण करना और आलिका अर्थात महिला मित्र से मिलकर बना है | इस सन्दर्भ में एक कथा है कि पार्वती के पिता विष्णु के साथ उनका विवाह करना चाहते थे लेकिन पार्वती शिव को अपना पति मान चुकी थीं | तब उनकी सखियों ने उन्हें गुपचुप घोर वनों में ले जाकर छिपा दिया ताकि उनकी इच्छा के विरुद्ध उनका विवाह भगवान विष्णु के साथ न किया जा सके | कर्नाटक में गौरी हब्बा के नाम से यह व्रत किया जाता है और इस दिन स्वर्ण गौरी व्रत रखा जाता है | नाम चाहे जो भी हो, इस व्रत में भगवान शंकर और माता पार्वती की पूजा करके उनका आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है | महिलाएँ पूरा दिन और रात निर्जल उपवास रखकर दूसरे दिन माता पार्वती को भोग लगाकर और जल पीकर उपवास का पारायण करती हैं | वास्तव में बहुत कठिन होता है ये उपवास |
इसी दिन भगवान विष्णु के वाराह रूप में अवतार की जयन्ती भी मनाई जाती है | मान्यता है कि इसी दिन भगवान विष्णु ने वाराह रूप में जन्म लेकर हिरण्याक्ष नामक राक्षस का अन्त किया था | भगवान विष्णु के दशावतारों में से तीसरा अवतार वाराहावतार माना जाता है | राक्षस हिरण्याक्ष ने जब पृथ्वी को जल में डुबो दिया था तब भगवान विष्णु वाराह अवतार लेकर पृथ्वी का कल्याण किया था | इस अवतार में
भगवान का शरीर आधा मनुष्य का और आधा वाराह अर्थात शूकर का माना गया है | इनकी शक्ति अथवा पत्नी देवी वाराही हैं जो भगवती पार्वती की अवतार मानी जाती हैं | वाराह देवता जंगली सूअर सहित समस्त जंगली पशुओं का भी प्रतिनिधित्व करते हैं और इस प्रकार देखा जाए तो इस तथ्य के भी द्योतक हैं कि मानव विकास के क्रम में जीवन पृथिवी पर आने के बाद जंगली पशुओं के रूप में विकसित हुआ |
वास्तव में तो भगवान विष्णु के दसों अवतार सृष्टि में मानव के जन्म से लेकर उसके विकास की समूची प्रक्रिया के ही द्योतक हैं – सबसे प्रथम मत्स्यावतार – जो द्योतक है इस बात का कि पृथिवी पर जीवन जल से आरम्भ हुआ | दूसरा कूर्म अथवा कच्छपावतार – कछुआ जल से पृथिवी की ओर बढ़ते जीवन को दर्शाता है | तृतीय वाराहावतार – प्रतीक है इस तथ्य का कि मानव विकास के क्रम में जीवन पृथिवी पर आने के बाद वनों की ओर बढ़कर जंगली पशुओं के रूप में विकसित हुआ | चतुर्थ नृसिंह अवतार – अर्थात जंगली जीवों में जब बुद्धि का विकास आरम्भ हुआ तो वे मनुष्य के रूप में विकसित होने लगा, किन्तु अभी आधा पशुत्व शेष रहा | पञ्चम अवतार वामनावतार – अर्थात नृसिंह के माध्यम से मानव के रूप में आने वाला जीव आरम्भ में बौना था | छठा अवतार परशुराम के रूप में हुआ – जो प्रतीक है इस बात का कि विकास के क्रम में मनुष्य को अस्त्रों की आवश्यकता भी पड़ सकती है – शत्रु से बचाव के साथ साथ गुफाओं और वनों में जीवित रहने के लिए भोजन सामग्री एकत्र करने के लिए |
सप्तम अवतार है भगवान श्री राम के रूप में – धरती पर जब मानव समाज में वृद्धि होने लगी तो मनुष्य उच्छ्रंखल होकर स्वयं अपना ही विनाश न कर बैठें इसके लिए प्रजा तथा समाज का ताना बाना बुनने की आवश्यकता होती है | मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम इसी तथ्य का प्रतीक हैं | इसी क्रम में अष्टम अवतार भगवान श्री कृष्ण का हुआ – जिन्होंने समाज को सिखाया कि सामाजिक ढाँचे की सीमाओं में रहते हुए भी किस प्रकार से प्रगति करते हुए आनन्द का अनुभव किया जा सकता है | नवम अवतार हुआ भगवान बुद्ध के रूप में – जिन्होंने नृसिंह से आगे बढ़ चुके मानव के सहज स्वभाव की खोज करते हुए अन्तिम ज्ञान की खोज की |
अभी दशम अवतार होना शेष है – जिसके लिए मान्यता है कि कल्कि भगवान के रूप में भगवान विष्णु का दशम अवतार होगा जिसके द्वारा कलियुग में पाप का अन्त होगा | कह सकते हैं कि जिस प्रकार द्वापर और कलियुग के सन्धिकाल में भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ उसी प्रकार कलियुग और सतयुग के सन्धिकाल – अर्थात कलियुग के अन्त और सत्ययुग के आरम्भ के काल में कल्कि भगवान का अवतार होगा | इसके साक्ष्य हमें श्रीमद्भागवत और कल्कि पुराण में उपलब्ध होते हैं |
ईश्वर चाहे कितने भी रूपों में धरा पर उतर आएँ, उद्देश्य सबका एक ही होता है – मानव मात्र स्वधर्म का पालन करते हुए अपने कर्तव्य कर्म में लीन रहे ताकि उसके लिए अध्यात्म का मार्ग प्रशस्त हो सके | सभी को विश्वकर्मा संक्रान्ति, वाराह अवतार और हरतालिका तीज की हार्दिक शुभकामनाएँ… इस भावना से कि हम सभी अपने अपने कर्तव्य कर्मों का पालन करते हुए प्रगति के मार्ग पर अग्रसर रहे…