अमावस्या और पूर्णिमा व्रत 2024

अमावस्या और पूर्णिमा व्रत 2024

अमावस्या और पूर्णिमा व्रत 2024

नमस्कार मित्रों ! वर्ष 2023 को विदा करके वर्ष 2024 आने वाला है… सर्वप्रथम सभी को इस नववर्ष की अनेकशः हार्दिक शुभकामनाएँ… हर वर्ष की भाँति इस वर्ष भी नूतन वर्ष के आरम्भ से पूर्व प्रस्तुत है वर्ष 2024 में आने वाली सभी अमावस्याओं और पूर्णिमा व्रत की एक तालिका…

एकादशी और प्रदोष व्रत के बाद पूर्णिमा और अमावस्या आती हैं | वैदिक पञ्चांग के अनुसार मास के तीस दिनों को चन्द्रमा की कलाओं के आधार पर पन्द्रह-पन्द्रह दिनों के दो

अमावस्या 2024
अमावस्या 2024

पक्षों में विभाजित किया गया है – जिनमें शुक्ल प्रतिपदा से लेकर पूर्णिमा तक के पन्द्रह दिन शुक्ल पक्ष कहलाते हैं तथा कृष्ण प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक के पन्द्रह दिन कृष्ण पक्ष के अन्तर्गत आते हैं | इस प्रकार प्रत्येक वर्ष में बारह अमावस्या और बारह ही पूर्णिमा तिथि उदय होती हैं | जो लोग मास को अमान्त मानते हैं उनके अनुसार अमावस्या को मास की समाप्ति होकर उसके दूसरे दिन यानी शुक्ल प्रतिपदा से दूसरे मास का आरम्भ होता है, और जो लोग मास को पूर्णिमान्त मानते हैं उनके अनुसार पूर्णिमा को एक मास पूरा होकर कृष्ण प्रतिपदा से दूसरा मास आरम्भ होता है | इस प्रकार वर्ष भर में बारह पूर्णिमा और बारह ही अमावस्या आती हैं और अमावस्या का स्वामी पितृगणों को माना गया है |

कुछ अमावस्याओं को उनके मास के नाम से ही जाना जाता है, किन्तु कुछ अमावस्याएँ दर्श अमावस्या कहलाती हैं | ऐसा इसलिए कि यों तो हर अमावस्या को पितृगणों के लिए तर्पण किया जाता है, किन्तु कुछ अमावस्याओं को पितृगणों का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है अतः उस अमावस्या को पितरों का तर्पण अत्यन्त शुभ माना जाता है और उसे दर्श अमावस्या कहा जाता है |

इस दिन अन्वाधान की प्रक्रिया भी होती है, जब वैष्णव समाज के लोग उपवास रखकर भगवान विष्णु के सभी रूपों की तथा पितृगणों की पूजा अर्चना करते हैं और एक दूसरे को शान्ति और सुख की प्राप्ति के लिए शुभकामनाएँ देते हैं | माना जाता है कि अन्वाधान और इशिता अथवा इष्टि का उपवास रखने से सुख शान्ति की प्राप्ति तथा सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है |

साथ ही प्रत्येक अमावस्या तिथि माता लक्ष्मी के लिए भी समर्पित होती है अतः इस दिन लक्ष्मी का भी विशेष महत्त्व माना गया है | इसके अतिरिक्त ज्योतिष शास्त्र के अनुसार चन्द्रमा मन का कारक होता है और अमावस्या के दिन चन्द्रमा के दर्शन नहीं होते | साथ ही धर्मग्रन्थों में चन्द्रमा को सोलहवीं कला को “अमा” कहा गया है | इस दिन चन्द्रमा और सूर्य दोनों प्रायः एक ही राशि में होते हैं | इन्हीं सब कारणों से इस दिन सूर्यदेव तथा चन्द्र दोनों की ही उपासना को विशेष महत्त्व दिया गया है | सूर्य ग्रहण की आकर्षक खगोलीय घटना भी जब घटती है तो उस दिन अमावस्या तिथि ही होती है – जब चन्द्रमा के विपरीत दिशा में सूर्य होने के कारण पृथिवी पर चन्द्रमा की छाया पड़ती है और सूर्य हमें दिखाई नहीं पड़ता – अर्थात सूर्य तथा पृथिवी के मध्य में चन्द्रमा आ जाता है |

यों तो धार्मिक दृष्टि से प्रत्येक अमावस्या का ही महत्त्व है, किन्तु उनमें से भी कुछ अमावस्याओं का अधिक महत्त्व माना गया ही – जो हैं – सोमवती अर्थात सोमवार को आने वाली अमावस्या, भौमवती अर्थात मंगलवार को आने वाली अमावस्या, शनि अमावस्या, मौनी अमावस्या, दीपावली अमावस्या तथा पितृविसर्जनी अमावस्या का भी बहुत महत्त्व शास्त्रों में माना गया है |

इसी प्रकार प्रायः सभी हिन्दू परिवारों में पूर्णिमा के व्रत को बहुत महत्त्व दिया जाता है | इसका कारण सम्भवतः यही है कि इस दिन चन्द्रमा अपनी समस्त कलाओं के साथ प्रकाशित होकर जगत का समस्त अन्धकार दूर करने का प्रयास करता है | साथ ही चन्द्रमा का सम्बन्ध भगवान शिव के साथ माना जाने के कारण भी सम्भवतः पूर्णिमा के व्रत को इतना अधिक महत्त्व पुराणों में दिया गया होगा | साथ ही बारह मासों की बारह पूर्णिमा के दिन कोई न कोई विशेष पर्व अवश्य रहता है | जैसे मतावलम्बी पौष पूर्णिमा को पुष्याभिषेक यात्रा आरम्भ करते हैं | वैशाख पूर्णिमा भगवान् बुद्ध के लिए समर्पित है और इस प्रकार बौद्ध मतावलम्बियों के लिए भी इसका महत्त्व बहुत अधिक बढ़ जाता है | कार्तिक पूर्णिमा के दिन समस्त सिख समुदाय गुरु नानक देव का जन्म दिवस प्रकाश पर्व के रूप में बड़ी धूम धाम से मनाता है | अमावस्या की हाई भाँति एक आकर्षक खगोलीय घटना चन्द्रग्रहण भी पूर्णिमा को ही घटित होती है जब चन्द्र राहु और केतु एक समान अंशों पर आ जाते हैं और चन्द्रमा पर पृथिवी की छाया पड़ती है | माना जाता है समुद्र में ज्वार भी पूर्ण चन्द्रमा की रात्रि को ही उत्पन्न होता है |

पूर्णिमा के व्रत की तिथि के विषय में कुछ आवश्यक बातों पर हमारे विद्वज्जन बल देते हैं | सर्वप्रथम तो यह कि पूर्णिमा का व्रत पूर्णिमा के दिन भी किया जा सकता है और चतुर्दशी के दिन भी | किन्तु किस दिन किया जाना है यह निर्भर करता है इस बात पर कि पहले दिन पूर्णिमा किस समय आरम्भ हो रही है और दूसरे दिन किस समय तक रहेगी | यदि चतुर्दशी की मध्याह्न में पूर्णिमा आरम्भ होती है तो उस दिन पूर्णिमा का व्रत किया जाता है | किन्तु यदि मध्याह्न के बाद किसी समय अथवा सायंकाल में पूर्णिमा आरम्भ होती है तो इस दिन पूर्णिमा का व्रत नहीं किया जाता, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस स्थिति में पूर्णिमा में चतुर्दशी का दोष आ गया है | इस स्थिति में दूसरे दिन ही पूर्णिमा का व्रत किया जाता है |

यों प्रत्येक पूर्णिमा का ही धार्मिक दृष्टि से महत्त्व है – किन्तु इनमें भी कार्तिक पूर्णिमा, माघ पूर्णिमा, शरद पूर्णिमा, गुरु पूर्णिमा, श्रावण पूर्णिमा तथा बुद्ध पूर्णिमा का विशेष महत्त्व माना गया है |

अस्तु, प्रस्तुत है वर्ष 2024 में आने वाली सभी अमावस्याओं और पूर्णिमा व्रत की एक तालिका…

  • गुरुवार 11 जनवरी – पौष अमावस्या – दर्श अमावस्या / अन्वाधान
  • गुरुवार 25 जनवरी – पौष पूर्णिमा – शाकम्भरी पूर्णिमा
  • शुक्रवार 9 फरवरी – माघी अमावस्या – मौनी अमावस्या / दर्श अमावस्या/ अन्वाधान
  • शनिवार 24 फरवरी – माघ पूर्णिमा
  • रविवार 10 मार्च – फाल्गुन अमावस्या – दर्श अमावस्या / अन्वाधान
  • सोमवार 25 मार्च – फाल्गुन पूर्णिमा – वसन्त पूर्णिमा / होली / धुलैंडी
  • सोमवार8 अप्रैल – चैत्र अमावस्या – सोमवती अमावस्या / अन्वाधान / दर्श अमावस्या
  • मंगलवार 23 अप्रैल – चैत्र पूर्णिमा – हनुमान जन्मोत्सव
  • मंगलवार 7 मई – वैशाख अमावस्या– अन्वाधान / दर्श अमावस्या /
  • बुधवार 8 मई – वैशाख अमावस्या – इष्टि
  • गुरुवार 23 मई – वैशाख पूर्णिमा – बुद्ध पूर्णिमा / कूर्म जयन्ती
  • गुरुवार 6 जून – ज्येष्ठ अमावस्या– अन्वाधान / दर्श अमावस्या / वट सावित्री अमावस्या / शनि जयन्ती
  • शुक्रवार 21 जून – ज्येष्ठ पूर्णिमा – वट पूर्णिमा व्रत
  • शुक्रवार 5 जुलाई – आषाढ़ अमावस्या– दर्श अमावस्या / अन्वाधान
  • रविवार 21 जुलाई – आषाढ़ पूर्णिमा – गुरु पूर्णिमा / व्यास पूजा
  • रविवार 4 अगस्त – श्रावण अमावस्या – अन्वाधान / दर्श
  • सोमवार 19 अगस्त – श्रावण पूर्णिमा– श्रावणी / रक्षा बन्धन / गायत्री जयन्ती
  • सोमवार 2 सितम्बर – भाद्रपद अमावस्या– सोमवती अमावस्या / अन्वाधान / दर्श अमावस्या / पिठौरी अमावस्या
  • मंगलवार 17 सितम्बर – श्राद्ध पूर्णिमा / गणपति विसर्जन / अनन्त चतुर्दशी
  • बुधवार 18 सितम्बर – भाद्रपद पूर्णिमा / पितृपक्ष आरम्भ
  • बुधवार 2 अक्तूबर – आश्विन अमावस्या – पितृ विसर्जिनी / दर्श अमावस्या / अन्वाधान
  • बुधवार 16 अक्टूबर – शरद पूर्णिमा / कोजागरी व्रत
  • गुरुवार 17 अक्टूबर – आश्विन पूर्णिमा
  • शुक्रवार1 नवम्बर – कार्तिक अमावस्या – अन्वाधान / दर्श अमावस्या दीपावली / लक्ष्मी पूजा
  • शुक्रवार 15 नवम्बर – कार्तिक पूर्णिमा – देव दिवाली / मणिकर्णिका स्नान
  • शनिवार30 नवम्बर – मार्गशीर्ष अमावस्या – दर्श अमावस्या
  • रविवार 1 दिसम्बर – मार्गशीर्ष अमावस्या – अन्वाधान
  • रविवार 15 दिसम्बर – मार्गशीर्ष पूर्णिमा
  • सोमवार 30 दिसम्बर – पौष अमावस्या / सोमवती अमावस्या / दर्श अमावस्या / अन्वाधान

चन्द्रमा प्रतीक है सुख, शान्ति और प्रेम का तथा भगवान समस्त चराचर में ऊर्जा और प्राणों का संचार करते हैं चन्द्रमा की धवल चन्द्रिका सूर्य किरणों के साथ मिलकर सभी के जीवन में सुख, शान्ति और प्रेम का धवल प्रकाश प्रसारित करे इसी कामना के साथ सभी को वर्ष 2024 के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ…