चैत्र नवरात्र 2024 की तिथियाँ
इस वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा यानी मंगलवार नौ अप्रैल से पिंगल नामक विक्रम सम्वत 2081 तथा क्रोधी नामक शक सम्वत 1946 आरम्भ हो जाएगा | यद्यपि जो लोग कृष्ण प्रतिपदा से मासारम्भ मानते हैं उनके अनुसार विक्रम सम्वत् 2081 चैत्र कृष्ण प्रतिपदा अर्थात् 26 मार्च से आरम्भ हो चुका है | किन्तु अधिकांश भारत में शुक्ल प्रतिपदा से मासारम्भ माना जाता है अतः चैत्र शुक्ल प्रतिपदा यानी नौ अप्रैल से विक्रम सम्वत् 2081 आरम्भ होगा | इसी दिन घट स्थापना करके माँ दुर्गा के प्रथम स्वरूप “शैलपुत्री” की उपासना के साथ ही चैत्र नवरात्र – जिन्हें वासन्तिक और साम्वत्सरिक नवरात्र भी कहा जाता है – के रूप में माँ भवानी के नवरूपों की पूजा अर्चना आरम्भ हो जाएगी जो बुधवार 17 अप्रैल को भगवान श्री राम के जन्मदिवस रामनवमी और कन्या पूजन के साथ सम्पन्न होगी | इसी दिन उगडी और गुडी पर्व भी है | सर्वप्रथम सभी को उगडी और गुडी पर्व, हिन्दू नव वर्ष तथा साम्वत्सरिक नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाएँ…
प्रतिपदा तिथि आठ अप्रैल को रात्रि 11:50 पर आरम्भ होकर नौ अप्रैल को रात्रि 8:30 पर समाप्त होगी | नौ अप्रैल को सूर्योदय छः बजकर एक मिनट पर वैधृति योग, किंस्तुघ्न करण तथा मीन लग्न में है अतः कलश स्थापना का मुहूर्त भी 6:01 से 10:16 तक रहेगा | इसके अतिरिक्त जो लोग कुछ विलम्ब से घट स्थापना करना चाहते हैं वे अभिजित मुहूर्त में प्रातः 11:57 से 12:48 तक भी कर सकते हैं | किन्तु साथ ही व्यक्तिगत रूप से घट स्थापना का मुहूर्त जानने के लिए अपने ज्योतिषी से अपनी कुण्डली के अनुसार मुहूर्त ज्ञात करना होगा |
जिस प्रकार किसी भी देश की सरकार के कार्य को विधिवत नियन्त्रित करने के लिए मन्त्रीमण्डल की आवश्यकता होती है उसी प्रकार ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भी नवग्रहों का मन्त्रीमण्डल समस्त ग्रह नक्षत्रों की गतिविधियों को नियन्त्रित करता है | जिस वार से सम्वत्सर का आरम्भ माना जाता है उसी ग्रह को उस वर्ष का आधिपत्य प्राप्त होता है | इस प्रकार विद्वानों की मानें तो इस वर्ष का राजा तथा वित्त मन्त्री मंगल तथा मन्त्री का पद शनिदेव को दिया गया है | इसके अतिरिक्त रक्षा मन्त्रालय तथा जल मन्त्रालय यानी दुर्गेश और मेघेश भी शनि महाराज ही होंगे | धान्येश यानी कृषि मन्त्रालय चन्द्रमा के पास होगा तथा रसेश गुरुदेव होंगे | मंगल के राजा होने के कारण अग्नि आदि का भय रह सकता है तथा सम्भव है वर्षा में भी कमी देखी जाए जिस कारण कृषि व्यवस्था प्रभावित हो सकती है तथा प्रजा के समक्ष कुछ कठिनाइयाँ उपस्थित हो सकती हैं | मेघेश शनि होने के कारण भी यह स्थिति प्रतीत होती है | शनि दुर्गेश भी हैं अतः दुर्गों अर्थात् राष्ट्रों के मध्य तनाव की स्थिति भी उत्पन्न हो सकती है | सम्भवतः वैश्विक स्तर पर उग्रता की स्थिति दृष्टिगत हो सकती है |
इस वर्ष भगवती का आगमन भी अश्व पर हो रहा है, और हम देख रहे हैं पिछले कुछ वर्षों से माता के नवरात्रि में आगमन तथा प्रस्थान के वाहन का भी विचार किया जाता है । पहले यज्ञ के समय अग्नि के वास पर तो विचार किया जाता था किन्तु माता के वाहन को अधिक महत्त्व नहीं दिया जाता था – क्योंकि वाहन के अतिरिक्त और बहुत से महत्त्वपूर्ण तथ्यों पर विचार किया जाता है | फिर भी जन साधारण की उत्सुकता निवारण हेतु बता दें कि इस वर्ष माता का आगमन मंगल को हो रहा है अतः अश्व पर सवार होकर आएँगी, जो बहुत शुभ नहीं माना जाता – इसके पीछे सम्भवतः धारणा यह रही होगी कि अश्व पर सवार होकर प्रायः युद्ध यज्ञ में जाया जाता था | यही कारण है कि माता का वाहन यदि अश्व हो तो उसे सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में उथल पुथल का संकेत तथा प्राकृतिक आपदाओं का संकेत माना जाता है | किन्तु ध्यान देने योग्य है कि राजनीतिक उठा पटक तो समस्त विश्व के पटल पर निरन्तर होती ही रहती है, और भारत में तो चुनावों का मौसम है तो निश्चित रूप से राजनीतिक उथल पुथल का समय है | और चुनावों के समय समाज पर भी पूरा प्रभाव पड़ता ही है | रही प्राकृतिक आपदाओं की बात – तो वे भी निरन्तर कहीं न कहीं घटित होती ही रहती हैं | अतः हमारे विचार से इस विषय में चिन्ता की आवश्यकता नहीं है | वैसे भी अश्व की सवारी का एक सकारात्मक पक्ष भी तो है – अश्व पर विजयी जन सवार होते हैं, अश्व तीव्र गति का प्रतीक है – अर्थात तीव्र गति से सुख समृद्धि में वृद्धि भी तो हो सकती है | अश्व उपलब्धियों का, शक्ति का, ऊर्जा का तथा शान्ति का प्रतीक होते हैं | फिर भी यदि आप माता के आगमन के वाहन से चिन्तित हैं तो उसकी आवश्यकता नहीं है – क्योंकि जाते जाते भगवती अच्छी बारिश, सुख समृद्धि तथा हर क्षेत्र में उन्नति का आशीर्वाद देकर जाएँगी – क्योंकि बुधवार 17 अप्रैल को नवरात्रि के समापन पर देवी गज पर आरूढ़ होकर प्रस्थान करेंगी | साथ ही इस वर्ष के ब्रह्माण्ड की संसद में रसेश गुरु और कृषि मन्त्रालय चन्द्रमा के पास होने के कारण परिस्थितियाँ उतनी विकट नहीं होंगी | देवगुरु और चन्द्रमा मिलकर परिस्थियों में सुधार भी कर सकते हैं और बहुत सारी अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर उथल पुथल के चलते हुए भी सभी प्रकार के खाद्यान्नों और फसलों के उत्पादन में वृद्धि दृष्टिगत हो सकती है | सरकार अनेक लोक कल्याण के कार्य कर सकती है | साथ ही आम जन में धार्मिक आस्था में भी वृद्धि की सम्भावना की जा सकती है | साथ ही इस वर्ष जिस दिन नवरात्र आरम्भ हो रहे हैं उस दिन चन्द्रमा भी अश्वनी नक्षत्र पर है – और मंगलवार को यदि चन्द्रमा अश्वनी नक्षत्र पर आरूढ़ हो तो अमृत सिद्धि योग बनता है – यह भी एक शुभ संकेत जानना चाहिए | साथ ही पिंगल सम्वत्सर का देवता इन्द्र है जो निश्चित रूप से वर्षा को प्रभावित कर सकता है |
नवरात्रि के महत्त्व के विषय में विशिष्ट विवरण मार्कंडेय पुराण, वामन पुराण, वाराह पुराण, शिव पुराण, स्कन्द पुराण और देवी भागवत आदि पुराणों में उपलब्ध होता है | इन पुराणों में देवी दुर्गा के द्वारा महिषासुर के मर्दन का उल्लेख उपलब्ध होता है | महिषासुर मर्दन की इस कथा को “दुर्गा सप्तशती” के रूप में देवी माहात्मय के नाम से जाना जाता है | नवरात्रि के दिनों में इसी माहात्मय का पाठ किया जाता है और यह बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक माना जाता है | जिसमें 537 चरणों में सप्तशत यानी 700 मन्त्रों के द्वारा देवी के माहात्मय का जाप किया जाता है | इसमें देवी के तीन मुख्य रूपों – काली अर्थात बल, लक्ष्मी और सरस्वती की पूजा के द्वारा देवी के तीन चरित्रों – मधुकैटभ वध, महिषासुर वध तथा शुम्भ निशुम्भ वध का वर्णन किया जाता है |
इस वर्ष नवरात्रों की तिथियाँ इस प्रकार हैं…
मंगलवार 9 अप्रैल – चैत्र शुक्ल प्रतिपदा / साम्वत्सरिक नवरात्र आरम्भ / आठ अप्रैल रात्रि 11:50 से नौ अप्रैल को रात्रि 8:30 तक प्रतिपदा तिथि – घट स्थापना मुहूर्त नौ अप्रैल को द्विस्वभाव मीन लग्न में प्रातः छः बजकर एक मिनट से – वैधृति योग, किंस्तुघ्न करण / भगवती के शैलपुत्री रूप की उपासना / गुड़ी पड़वा / युगादि
बुधवार 10 अप्रैल – चैत्र शुक्ल द्वितीया / भगवती के ब्रह्मचारिणी रूप की उपासना / मत्स्य जयन्ती
गुरुवार 11 अप्रैल – चैत्र शुक्ल तृतीया / भगवती के चन्द्रघंटा रूप की उपासना / गणगौर पूजा / मत्स्य जयन्ती
शुक्रवार 12 अप्रैल – चैत्र शुक्ल चतुर्थी / भगवती के कूष्माण्डा रूप की उपासना / लक्ष्मी पञ्चमी
शनिवार 13 अप्रैल – चैत्र शुक्ल पञ्चमी / भगवती के स्कन्दमाता रूप की उपासना / मेष संक्रान्ति – सूर्य का मेष राशि में संक्रमण रात्रि 9:15 पर / बैसाखी
रविवार 14 अप्रैल – चैत्र शुक्ल षष्ठी / भगवती के कात्यायनी रूप की उपासना / विशु / यमुना षष्ठी
सोमवार 15 अप्रैल – चैत्र शुक्ल सप्तमी / भगवती के कालरात्रि रूप की उपासना / पोहिला बैसाख
मंगलवार 16 अप्रैल – चैत्र शुक्ल अष्टमी / भगवती के महागौरी रूप की उपासना
बुधवार 17 अप्रैल – चैत्र शुक्ल नवमी / भगवती के सिद्धिदात्री रूप की उपासना / रामनवमी / स्वामी नारायण जयन्ती
माँ भगवती अपने नवरूपों में सभी का कल्याण करें… सभी को नव सम्वत्सर तथा नवरात्र की अग्रिम रूप से हार्दिक शुभकामनाएँ…