महिला सशक्तीकरण और योग

महिला सशक्तीकरण और योग

महिला सशक्तीकरण और योग

हम सभी जानते हैं कि हमारे माननीय प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के प्रयासों के फलस्वरूप हर वर्ष 21 जून को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर योग दिवस का आयोजन किया जाता है समस्त विश्व में | हर वर्ष कोई किसी नवीन विषय के साथ इस दिवस का आयोजन किया जाता है | इस वर्ष की थीम है “महिला सशक्तीकरण के लिए योग” | किन्तु हम विषय पर आएँ, उससे पूर्व कुछ बात कर ली जाए कि योग कहते किसे हैं | क्योंकि योग का नियमित अभ्यास महिलाओं के लिए भी उसी प्रकार लाभदायक है जिस प्रकार पुरुषों के लिए |

“योग” शब्द ‘युज समाधौ’ आत्मनेपदी धातु में घञ् प्रत्यय लगाकर बना है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है समाधि अर्थात चित्त वृत्तियों का निरोध | इसके अतिरिक्त “युजिर योग” तथा “युज संयमने” रूप में भी इसका प्रयोग होता है जिसका अर्थ होता है क्रमशः योगफल अर्थात गुणन अथवा जोड़ तथा नियमन | श्रीमद्भगवद्गीता में कथन है “योगः कर्मसु कौशलम्” अर्थात कर्म में कुशलता ही योग है | इसके अतिरिक्त विविध दर्शनों में दार्शनिक – आध्यात्मिक आदि पृथक पृथक अर्थों में योग शब्द का प्रयोग हुआ है | पतञ्जलि योगसूत्र में, कहा गया है “योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः” अर्थात चित्त की वृत्तियों का निरोध योग है | किन्तु चित्तवृत्तियों के प्रवाह का ही नाम तो चित्त है | पूर्ण निरोध का अर्थ होगा चित्त के अस्तित्व का पूर्ण लोप, चित्ताश्रय समस्त स्मृतियों और संस्कारों का निःशेष हो जाना | उस स्थिति में भगवान श्रीकृष्ण के कथन “योगस्थः कुरु कर्माणि” अर्थात योग में स्थित होकर कर्म करो – इस वाक्य का क्या अर्थ रह जाएगा | इस प्रकार विविध दर्शनों के आधार पर – अध्यात्मिक दृष्टिकोण से – योग की अनेकानेक परिभाषाएँ उपलब्ध होती हैं – जो सब एक विशद विवेचना का विषय है | यहाँ हम आधुनिक सन्दर्भों में योग के विषय में बात कर रहे हैं |

योग के प्रामाणिक ग्रन्थों में चार प्रकार के योगों का वर्णन उपलब्ध होता है : मन्त्रयोगों हष्ष्चैव लययोगस्तृतीयकः | चतुर्थो राजयोगः (शिवसंहिता 5/11) अर्थात मन्त्र योग, हठ योग, लय योग और राजयोग | महर्षि पतंजलि ने पातंजल योग दर्शन “अथयोग अनुशासनम्” शब्द से प्रारम्भ किया है इससे स्पष्ट है कि उन्होंने जीवन के आदर्शों में अनुशासन को महत्व दिया है | पतंजलि योग का विकास आठ क्रमों में होता है इसलिए इसे अष्टांग योग भी कहा जाता है और इन आठों अंगों का अभ्यास करने से पूर्व साधक के लिए षट्कर्म करना अति आवश्यक होता है – जो हैं – नेति, नौलि, धौति, वस्ति, कपाल भाति और त्राटक |

योग के आठ चरण अनुशासन के व्यवस्थित मार्ग की खोज करते हैं | ये आठ चरण हैं – यम और नियम – जो कायिक वाचिक तथा मानसिक संयम के लिए योग के नैतिक नियमों का निर्माण करते हैं तथा व्यक्ति के मानसिक व्यवहार को उचित रूप प्रदान करने में सहायक होते हैं | आसनों का उद्देश्य है शारीरिक स्वास्थ्य तथा शरीर को स्थिरता प्रदान करना | प्राणायाम प्राण अर्थात जीवनी शक्ति को नियन्त्रित करने की प्रक्रिया है और यह नियन्त्रण प्राण के सर्वाधिक स्थूल स्वरूप श्वास पर नियन्त्रण के द्वारा प्राप्त होता है | मन को नियन्त्रित करने के लिए आवश्यक है सर्वप्रथम श्वास को नियन्त्रित किया जाए | प्रत्याहार का अर्थ है इन्द्रिय निग्रह – जो मानसिक शान्ति के लिए अत्यन्त आवश्यक है | ये पाँचों अंग बाह्य अंग कहलाते हैं |

राजयोग के आन्तरिक अंगों का लक्ष्य है मन को अनुशासित करना | धारणा का अर्थ है ध्यान और एकाग्रता – धारण करना – मन को एक केन्द्र पर एकाग्र करना – धारण करना | दीर्घ अवधि तक धारणा का अभ्यास ध्यान की स्थिति को ले जाता है जिसे मन की एकाग्रता भी कह सकते हैं | जबकि दीर्घकालिक ध्यान समाधि अर्थात आत्मज्ञान की स्थिति को ले जाता है | यहाँ मन ऊपर उठ जाता है और साधक आत्मा के विषय में जागरूक होकर स्वयं को उससे युत (युज) कर लेता है | इसी स्थिति को सत्-चित्-आनन्द की स्थिति कहा जाता है | व्यक्ति अपनी चेतना का प्रसार करता है और अन्तिम सत्य के साथ एकाकार हो जाता है – तादात्म्य स्थापित कर लेता है | ये तीनों राजयोग के आन्तरिक अंग हैं | स्वास्थ्य की दृष्टि से यदि देखें तो सामान्यतः रोग किसी भी शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक तथा आध्यात्मिक कारणों से तथा असन्तुलित जीवन शैली के कारण उत्पन्न होते हैं |

इनके अतिरिक्त बन्ध और मुद्राएँ प्राणायाम से सम्बद्ध साधनाएँ हैं | इनको योग की उच्चतर साधना के रूप में देखा जाता है क्योंकि इनमें मुख्य रूप से श्वसन पर नियन्त्रण के साथ कतिपय शारीरिक और मानसिक पद्धतियों को अंगीकार किया जाता है | योगाभ्यासों में जो श्वास प्रश्वास को नियन्त्रित करके तथा बन्ध आदि लगाकर जो विभिन्न प्रकार की आसन आदि लगाने की क्रियाएँ की जाती हैं वे योग मुद्राएँ कहलाती हैं | आसन से शरीर की हड्डियाँ लचीली और मजबूत होती हैं, जबकि मुद्राओं के द्वारा शारीरिक और मानसिक शक्तियों का विकास होता है | जितने भी योग से सम्बन्धित प्राचीन ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं सभी में हस्त मुद्राओं सहित कुल मिलाकर पचास से साठ मुद्राओं का उल्लेख प्राप्त होता है |

भारत में सहस्रों वर्षों से पूजा अर्चना और सन्ध्या वन्दन के समय मुद्राओं का उपयोग होता रहा है | मनुष्य केवल शरीर और मन का मेल ही नहीं है, अपितु भावनाएँ और इच्छाएँ भी मनुष्य की मनुष्यता का एक अंग हैं | हमारे ऋषि मुनियों ने इस तथ्य को समझा और कुछ नैतिक मूल्यों के साथ धर्म की सत्ता प्रकाश में आई | जिसमें ऋषि मुनियों ने धार्मिक क्रियाओं के साथ मुद्राओं को जोड़ दिया |

वास्तव में शरीर की अपनी एक भाषा होती है | एक मूक और बधिर व्यक्ति भी शरीर तथा हाथों की मुद्राओं के माध्यम से सामान्य व्यक्तियों के समान बात कर सकता है | और नृत्यों में तो सारी बातें – समस्त अभिनय – मुद्राओं के माध्यम से ही होता है | हम कह सकते हैं कि नृत्य यदि एक भाषा है तो मुद्राएँ उसके शब्द हैं – नृत्य और अभिनय के भावों को अभिव्यक्त करने का माध्यम हैं | इस प्रकार अनादि काल से मुद्राओं का मानव के जीवन में महत्त्व रहा है | हमारे मनीषियों ने इन मुद्राओं अनेक वर्षों तक कठिन साधना करके शोध कार्य किये और मानव जीवन में मुद्राओं के महत्त्व को समझने समझाने का प्रयास किया | संस्कृत में तो मुद्राओं का अर्थ ही है शरीर के हाव भाव (अंग विन्यास) अथवा प्रवृत्ति | व्यक्ति के बैठने से अथवा खड़े होने से अनुमान हो जाता है कि उस व्यक्ति के मन में क्या चल रहा होगा | व्यक्ति का अंग विन्यास बहुत सीमा तक बता देता है कि वह व्यक्ति किसी प्रकार के अवसाद से ग्रस्त है अथवा किसी प्रकार के अत्यन्त आनन्द का अनुभव कर रहा है अथवा क्रोध में है इत्यादि इत्यादि |

हमारा शरीर पाँच तत्वों से मिलकर बना है – जल, वायु, अग्नि, आकाश और पृथिवी | इनमें से प्रत्येक तत्व का शरीर के विभिन्न क्रिया कलापों तथा समस्त विशिष्ट और महत्त्वपूर्ण कार्यों से सम्बन्ध होता है | हमारे हाथों की पाँचों अँगुलियाँ इन्हीं पाँच तत्वों का प्रतिनिधित्व करती हैं | हमारे हाथ के अँगूठे अग्नि तत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं, तर्जनी अँगुली वायु तत्व का प्रतिनिधित्व करती है, मध्यमा को आकाश तत्व का प्रतिनिधि माना जाता है, अनामिका प्रतिनिधित्व करती है पृथिवी तत्व का तथा कनिष्ठिका को जल तत्व का प्रतिनिधित्व प्राप्त है | अँगुलियों के इन पाँचों वर्गों से अलग अलग शक्ति धाराएँ प्रवाहित होती हैं जो किसी कारणवश असन्तुलित हो जाती हैं | अँगुलियों को विभिन्न प्रकार से आपस में मिलाकर जो मुद्राएँ बनाते हैं उनसे उन विविध तत्वों के सम्मिश्रण के कारण ये असन्तुलित शक्तियाँ सन्तुलित होने लग जाती हैं और शरीर में उन तत्वों असन्तुलन से उत्पन्न दोष दूर होने लगते हैं | अर्थात हमारे हाथों की दसों अँगुलियों से निर्मित मुद्राएँ शरीर में ऊर्जा के प्रवाह को नियन्त्रित कर स्वास्थ्य लाभ का मार्ग प्रशस्त करती हैं |

कुछ हस्त मुद्राओं का उपयोग कुण्डलिनी अथवा ऊर्जा के स्रोत को जागृत करने के लिए किया जाता है, कुछ का अभ्यास आरोग्य प्राप्ति तथा दीर्घायु की कामना से किया जाता है, तो कुछ का प्रयोग अष्ट सिद्धियों की प्राप्ति के लिए भी किया जाता है |

षट्कर्म विषाक्तता दूर करने की प्रक्रियाएँ हैं तथा शरीर में संचित विष को निकालने में सहायक होते हैं |

इस प्रकार वास्तव में योग बहुत सूक्ष्म विज्ञान पर आधारित एक आध्यात्मिक विषय है जो मन एवं शरीर के बीच सामंजस्य स्थापित करने पर ध्यान देता है | साथ ही, यह स्वस्थ जीवन – यापन की कला एवं विज्ञान है | योग से सम्बन्धित ग्रन्थों के अनुसार योगाभ्यास से व्यक्ति की चेतना ब्रह्माण्डीय चेतना से युत हो जाती है जो मन एवं शरीर, मानव एवं प्रकृति के बीच परिपूर्ण सामंजस्य का द्योतक है |

इस वर्ष योग दिवस की थीम है नारी सशक्तिकरण में योग की भूमिका | तो यहाँ कहना चाहेंगे कि नियमित योगाभ्यास करने वाली महिलाओं में अपनी आन्तरिक प्रतिभा, कौशल तथा शक्तियों के प्रति जागरूकता उत्पन्न हो जाती है | उनकेआत्मविश्वास में वृद्धि होती है जिसके कारण उनकी निर्णायक क्षमता में भी वृद्धि होती है और वे स्वयं अपने तथा परिवार के लिए निर्णय ले सकती हैं | किसी भी प्रकार की चुनौती का साहस के साथ सामना करने में सक्षम हो जाती हैं क्योंकि उनकी मानसिक और शारीरिक शक्ति में वृद्धि के साथ ही मन और शरीर में सन्तुलन बना रहता है | प्रसव काल की उस सुखद पीड़ा को सरलता से सहन करने की सामर्थ्य तथा उस समय के लिए आवश्यक शक्ति उन्हें योग के माध्यम से प्राप्त होती है | योग इनकी मांसपेशियों को बलिष्ठ बनाने के साथ ही उनके भावनात्मक तनाव को कम करके में सहायता कर सकता है |

महर्षि पतंजलि के राजयोग में  इसमें मार्गों की शिक्षाएँ समाविष्ट हैं और यही कारण है कि किसी भी स्वभाव और किसी भी परिवेश के व्यक्ति इनका अभ्यास कर सकते हैं | यह तीन दिशाओं में कार्य करता है – शारीरिक, आध्यात्मिक और मानसिक और इस प्रकार साधक पूर्ण आत्मज्ञान की ओर अग्रसर होता जाता है | यह एक व्यवस्थित और वैज्ञानिक अनुशासन है जो मनुष्य को चरम सत्य की ओर ले जाता है | यही कारण है कि राजयोग उस आधुनिक समाज के लिए भी पूर्ण रूप से अनुकूल है जिसका धर्म ही हर बात में सन्देह करना बन गया है |

अस्तु, अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर आइये संकल्प लें कि शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, आध्यात्मिक स्वास्थ्य के लिए प्रतिदिन नियत समय पर योगाभ्यास अवश्य करेंगे | हम सभी स्वस्थ रहते हुए सुख के भागी बनें यही कामना है…
—–कात्यायनी