दीपोत्सव के पाँचों पर्वों की पूजा के मुहूर्त
सभी जानते हैं कि कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को प्रकाश का पर्व दीपोत्सव मनाया जाता है और लक्ष्मी पूजन किया जाता है | इस दिन माता लक्ष्मी के साथ भगवान गणेश, मां सरस्वती और कुबेर जी की पूजा–अर्चना की जाती है | मान्यता है कि दीपावली के दिन मां लक्ष्मी धरती पर भ्रमण के लिए आती हैं | ऐसे में देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए लोग तरह–तरह के उपाय भी करते हैं | माता लक्ष्मी के चरण जिस भी घर–आंगन में पड़ते हैं वहां धन–धान्य और सुख–समृद्धि की वर्षा होती है | यह दीपोत्सव वास्तव में पाँच पर्वों की एक शृंखला के रूप में मनाया जाता है | प्रस्तुत है दीपोत्सव के इन पाँच पर्वों की पूजा के लिए इस वर्ष के शुभ मुहूर्त…
धन्वन्तरी त्रयोदशी (धनतेरस) – दीपोत्सव के पाँच पर्वों की शृंखला का प्रथम पर्व होता है धन्वन्तरी त्रयोदशी, जिसे लोग आम भाषा में धनतेरस भी कहते हैं| इस विषय में अलग से लिखेंगे| यहाँ धन्वन्तरी त्रयोदशी की पूजा के मुहूर्त के सम्बन्ध में| इस वर्ष मंगलवार 29 अक्तूबर को प्रातः 10:31 से तीस अक्टूबर को दिन में 1:15 तक त्रयोदशी तिथि है | इस प्रकार धन्वन्तरी त्रयोदशी 29 अक्टूबर को मनाई जाएगी | इसी दिन प्रदोष व्रत भी है| इस दिन प्रदोष काल सायं 5:38 से 8:13 तक है तथा वृषभ लग्न सायं 6:31 से रात्रि 8:27 तक रहेगी | इस प्रकार 6:31 से 8:27 तक धन्वन्तरी त्रयोदशी के लिए पूजा का मुहूर्त है| प्रदोष काल में भी पूजा की जाती है|
नरक चतुर्दशी (रूप चतुर्दशी) – बुधवार 30 अक्टूबर को दिन में 1:15 से 31 अक्टूबर को अपराह्न 3:52 तक चतुर्दशी / 31 को सूर्योदय 6:32 पर/ अभ्यंग स्नान सूर्योदय से पूर्व ब्रह्म मुहूर्त में 5:20 से सूर्योदय तक |
लक्ष्मी पूजन और दीपोत्सव के मुहूर्त – अमावस्या तिथि गुरुवार 31 अक्तूबर को अपराह्न 3:52 से लेकर पहली नवम्बर को सायं 6:16 तक रहेगी | इस वर्ष लक्ष्मी पूजन और दीपावली को लेकर विद्वानों में मतभेद है जिसके कारण भ्रम की स्थिति बनी हुई है| यद्यपि इस भ्रम को दूर करने के प्रयास भी विद्वानों के द्वारा किए गए हैं, किन्तु फिर भी कुछ लोग अभी भी उलझन में हैं | यहाँ हम कहना चाहेंगे कि विद्वानों की ऐसी मान्यता है कि लक्ष्मी पूजन के लिए अमावस्या तिथि के निर्धारण के लिए उदया तिथि को नहीं देखा जाता है– क्योंकि लक्ष्मी पूजन प्रदोष काल में अथवा रात्रि में किया जाता है| पूजन के समय अमावस्या तिथि आवश्यक होती है | किन्तु ऐसा भी माना जाता है कि एक दिन यदि अमावस्या तिथि प्रदोष व्यापिनी है किन्तु दूसरे दिन तीन प्रहर से अधिक समय तक अमावस्या है – भले ही वह प्रदोष अथवा निशीथ व्यापिनी नहीं है और प्रतिपदा सायंकाल में ही आ गई है – तो भी – पूर्व दिन की अपेक्षा दूसरे दिन की अमावस्या को महत्त्व दिया जाता है| इस वर्ष सभी पञ्चांगों में यद्यपि 31 अक्टूबर को अपराह्न 3:55 पर चतुष्पद करण और प्रीति योग में अमावस्या तिथि का आगमन हो रहा है जो प्रदोष व्यापिनी अमावस्या है, और पहली नवम्बर को सायं छह बजकर सोलह मिनट पर प्रतिपदा तिथि का आगमन हो रहा है, अतः 31 अक्टूबर को ही दीपावली पूजन और लक्ष्मी पूजन किया जाना चाहिए | किन्तु फिर भी – क्योंकि पहली नवम्बर को तीन प्रहर से अधिक समय तक अमावस्या है तथा इस दिन भी प्रदोष व्यापिनी ही है, अतः दीपावली और लक्ष्मी पूजन नैमित्तिक कर्म होने के कारण 31 अक्टूबर और पहली नवम्बर दोनों दिन ही अपनी सुविधानुसार लक्ष्मी पूजा की जा सकती है| यहाँ हम दोनों ही दिनों के मुहूर्त लिख रहे हैं…
31 अक्टूबर को दीपावली और लक्ष्मी पूजन के शुभ मुहूर्त:
- प्रदोष काल – सायं 5:36 से रात्रि 8:11 तक
- वृषभ लग्न – सायं 6:20 से रात्रि 8:15 तक – यही समय जन साधारण के लिए लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त है|
- ब्रह्म मुहूर्त– सूर्योदय से पूर्व 4:49 से 5:41 तक
- अभिजीत मुहूर्त– प्रातः 11:42 से 12:27 तक
- विजय मुहूर्त– दिन में 1:55 से 2:39 तक
- अमृत काल – सायं 5:32 से 7:20 तक
- निशीथ काल – रात्रि 11:39 से अर्धरात्रि में 12:31 तक
- सिंह लग्न – अर्धरात्रि में 12:55 से अर्धरात्र्योत्तर (पहली नवम्बर को सूर्योदय से पूर्व) 3:12 तक
पहली नवम्बर को दीपावली और लक्ष्मी पूजन मुहूर्त:
- प्रदोष काल – सायं 5:36 से 8:11 तक
- सर्वसाधारण के लिए वृषभ लग्न – सायं 6:20 से 8:15 तक |
- प्रातः मुहूर्त (चर, लाभ, अमृत) – प्रातः 6:33 से 10:42 तक
- अपराह्न मुहूर्त (चर) – सायं 4:13 से 5:36 तक
- अपराह्न मुहूर्त (शुभ) – दोपहर 12:4 से 1:27 तक
- अभिजित मुहूर्त– प्रातः 11:43 से 12:28 तक |
- निशीथ काल – रात्रि 11:39 से अर्धरात्रि में 12:31 तक
- सिंह लग्न – पहली नवम्बर को अर्धरात्रि में 12:50 से अर्धरात्र्योत्तर (दो नवम्बर को सूर्योदय से पूर्व) 3:7 तक
गोवर्धन पूजा, बलि प्रतिपदा और अन्नकूट – प्रतिपदा तिथि शुक्रवार एक नवम्बर को सायं 6:16 से दो नवम्बर को रात्रि 8:21 तक | गोवर्धन पूजा और बलि प्रतिपदा का प्रातःकालीन मुहूर्त दो नवम्बर को प्रातः 6:34 से 8:46 तक, सायंकालीन मुहूर्त दो नवम्बर को ही अपराह्न 3:23 से सायं 5:35 तक, दिन में अन्नकूट |
भाई दूज (यम द्वितीया) – द्वितीया तिथि रविवार दो नवम्बर को रात्रि 8:21 पर आरम्भ होगी और तीन नवम्बर को रात्रि दस बजकर पाँच मिनट तक रहेगी | इस स्थिति में भाई दूज तीन नवम्बर को मनाई जाएगी और तिलक करने का शुभ मुहूर्त है दिन में एक बजकर दस मिनट से तीन बजकर बाईस मिनट तक |
सभी को इन सभी पर्वों की हार्दिक शुभकामनाएँ…
——-कात्यायनी