पर्वों के सम्बन्ध में अन्धविश्वास
कहाँ तक उचित
“ध्रियते लोकोऽनेन, वा धारयतीति धर्मः |”
आज अहोई अष्टमी है, और करवाचौथ तथा अहोई अष्टमी सम्पन्न होने के साथ ही पर्वों की श्रृंखला दीपावली का उल्लासमय पर्व आरम्भ होने वाला है, सर्वप्रथम सभी को इन पर्वों की मिठास और प्रकाश से युक्त उल्लासमय हार्दिक शुभकामनाएँ…
श्रावण मास से ही समूचे हिन्दू समाज में व्रतोत्सव और पर्वों का उल्लासमय तथा श्रद्धा भक्ति से परिपूर्ण वातावरण बन जाता है | एक ओर नभ में उमड़ घुमड़ चल रहे मेघराज के उत्सवों के साथ श्रावण मास समर्पित होता है भगवान शंकर को, तो कर्म और बुद्धि के सन्तुलन तथा साधना के द्वारा जीवन में सफलता की ओर अग्रसर रहने का सन्देश देता हुआ भाद्रपद मास भी श्री कृष्ण जन्म महोत्सव, पजूसन और क्षमावाणी पर्व, अनन्त चतुर्दशी तथा श्राद्ध पर्वों से सम्पन्न होता है | भारतीय दर्शनों के अनुसार आत्मा कभी नष्ट नहीं होता – वह अजर अमर होता है – और यही कारण है कि दिवंगतों के प्रति शोक न मनाकर उनके प्रति श्रद्धा सुमन समर्पित किये जाते हैं और इस का उत्सव होता है श्राद्ध पक्ष | उसके सम्पन्न होते ही आश्विन मास में भगवती के नौ रूपों की उपासना का पर्व शारदीय नवरात्र आरम्भ हो जाते हैं | तत्पश्चात विजया दशमी और शरद पूर्णिमा के साथ आश्विन मास सम्पन्न होता है तो करक चतुर्थी और अहोई अष्टमी के साथ ही पाँच पर्वों की श्रृंखला दीपावली तथा छठ पूजा के उत्सव आरम्भ हो जाते हैं | उसके पश्चात कार्तिक पूर्णिमा को होता है गुरुपर्व – सिखों के प्रथम गुरु नानकदेव जी का जन्म महोत्सव – जिसे प्रकाश पर्व के नाम से भी जाना जाता है | इस प्रकार श्रावण मास से न केवल कार्तिक मास तक बल्कि सूर्य के उत्तरायण होने तक पर्वों, उत्सवों तथा व्रतोपवासों का क्रम निरन्तर चलता रहता है | और ये सभी पर्व और उत्सव धार्मिक तथा आध्यात्मिक भावनाओं से ओत प्रोत होते हैं | यही तो है भारतीय दर्शन की विशेषता | क्योंकि परम सत्य के ज्ञान की ओर सभी की प्रवृत्ति होती है और धर्म इसी परम सत्य के ज्ञान का एक साधन माना जाता है तथा धर्म का अन्तिम लक्ष्य होता है प्राणिमात्र का कल्याण | निश्चित रूप से प्रत्येक व्यक्ति को अपने अपने धर्म का पालन करना चाहिए – जैसा कहा भी गया है “स्वधर्मे निधनं श्रेयं परधर्मे भयावह” |
किन्तु मनुष्य के धर्म के मार्ग पर चलने की इसी लालसा के कारण लगभग प्रत्येक पर्व के सन्दर्भ में बहुत से अन्धविश्वास भी पूर्ण निष्ठा और आस्था के साथ सोशल मीडिया पर परोसे जाते रहते हैं | धर्म का चरम लक्ष्य होता है संसार को हर प्रकार के ताप से मुक्त कर उसे अनन्त सुख की अन्तिम सीमा तक पहुँचाकर सदा के लिये आनन्दमय बना देना | जिस धर्म का लक्ष्य इतना पावन है, इतना विशाल है – उस धर्म में किसी प्रकार के अन्धविश्वास के लिए स्थान ही नहीं रह जाता है |
उदाहरण के लिए, करवाचौथ के अवसर पर चन्द्र दर्शन न होने की स्थिति में किस प्रकार जल दिया जा सकता है इस विषय में विद्वानों के विचार जानने का सौभाग्य प्राप्त हुआ | एक अत्यन्त विद्वत्तापूर्ण जानकारी प्राप्त हुई कि यदि बादलों के कारण, कुहासे के कारण या वर्षा आदि के कारण चन्द्रमा के दर्शन न हो सकें तो भगवान शिव की जटाओं में जो अर्धचन्द्र शोभायमान है उसके दर्शन करके जल दिया जा सकता है – अथवा किसी कागज़ पर चन्द्रमा की आकृति बनाकर उसके दर्शन करके जल दिया जा सकता है | इसी प्रकार से एक और अत्यन्त महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हुई कि करवाचौथ के दिन किस राशि वाली महिला को किस रंग की साड़ी पहननी चाहिए – और ये ज्ञान तो नवरात्रों के दिनों में मिल जाता है कि भगवती के किस रूप की पूजा करते समय महिला को किस रंग की साड़ी पहननी चाहिए | दीपावली पर घर में नई झाड़ू लाकर उसकी पूजा की जानी चाहिए | और ये अन्ध विश्वास केवल सोशल मीडिया के युग में ही प्रसारित होते हों ऐसा भी नहीं है, हमें याद है जब हम बच्चे थे तब एक अन्धविश्वास प्रचलित थे कि दीपावली की रात को घर के दरवाज़े खुले छोड़कर सोना चाहिए क्योंकि उससे लक्ष्मी घर में आती है | पिताजी समझाते भी थे कि ऐसा करके आप किसी दुर्घटना को न्यौता दे रहे हैं – पर अनहोनी की आशंका और जो अपने पास है उससे भी अधिक की लालसा में लोग इन अन्धविश्वासों का पालन भी करते थे | वो तो दरवाज़े खुले छोड़कर जब घरों में चोरियाँ होने लगीं तब सबने स्वयं ही इस अन्धविश्वास से किनारा कर लिया | इसी प्रकार के बहुत से अन्धविश्वास लगभग सभी पर्वों के विषय में प्रसारित होते रहते हैं | और इनमें से कोई भी नियम या कह लीजिये अन्धविश्वास पुरुषों के लिए नहीं होता, केवल महिलाओं के लिए होता है |
हमारा मानना है कि यदि किसी कारणवश करवा चौथ पर चन्द्रमा के अथवा अहोई अष्टमी पर तारे के दर्शन न भी हो पाएँ तो कोई बात नहीं – प्रकृति अपने रूप बदलती रहती है और हमें उसके इस परिवर्तन का स्वागत भी करना चाहिए | चन्द्रमा अथवा तारे के दर्शन न होने की स्थिति में अपने परिवार की प्रथा के अनुसार पूजा अर्चना आदि से निवृत्त होकर इनके उदय होने के समय के कुछ देर बाद इनका मन ही मन ध्यान करके अर्घ्य समर्पित कर सकते हैं |
यहाँ एक बात हम आप सभी से जानना चाहते हैं – क्या सनातनी संस्कृति में भगवान अर्थात परमात्मा किसी प्रकार के दिखावे से प्रसन्न होता है ? जहाँ तक हम समझते हैं भगवान तो भावों का भूखा होता है | किसी भी स्थिति में किसी भी स्थान पर यदि भावपूर्ण मन से सत्य निष्ठा और आस्था के साथ उसे पुकारा जाएगा तो निश्चित रूप से वह अपने भक्त के पास दौड़ा चला आएगा – और इस प्रकार की अनेकों कथाएँ हमारे पुराणों में उपलब्ध भी होती हैं | भोले बाबा की जटाओं के चन्द्र को देखकर अथवा कागज़ पर बने चन्द्रमा के दर्शन करके अर्घ्य समर्पित करने में कोई बुराई नहीं है – लेकिन क्या हम पूर्ण श्रद्धा और आस्था युक्त मन से चन्द्रमा का स्मरण करके अर्घ्य नहीं समर्पित कर सकते ? क्या राशि विशेष की महिला किसी विशेष रंग की साड़ी धारण करेगी तभी उसका सुख सौभाग्य अखण्ड बनेगा ? एक बार विचार अवश्य करें इन बातों पर | क्योंकि इस प्रकार के अन्धविश्वास को प्रोत्साहित करना न तो सनातन संस्कृति में ही मान्य है और न ही भारतीय वैदिक दर्शन के अनुरूप है – जिसका एकमात्र लक्ष्य है समस्त प्रकार के दिखावे, ढोंग, आडम्बरों का त्याग करके अपनी बुद्धि से लोक कल्याणार्थ धर्म का पालन करते हुए परमात्मतत्व की उपलब्धि – तभी हमें सच्चा आनन्द और शान्ति प्राप्त हो सकती है | धर्म की उस भावना को स्मरण करके ही हम प्राणिमात्र का तथा स्वयं का भी कल्याण कर सकते हैं |
एक और बात, जैसा कि हमने पहले भी एक लेख में लिखा है, प्रायः पर्वों के अवसर पर उन पर्वों से सम्बन्धित धार्मिक कथाएं केवल भारत में ही नहीं, बल्कि संसार के हर देश में कही सुनी या पढ़ी जाती हैं | वे कथाएं भले ही वैज्ञानिक अथवा तार्किक स्तर पर खरी न उतरती हों, किन्तु इतना अवश्य है कि उन सबके पीछे कोई न कोई नैतिक शिक्षा अवश्य होती है | कथाओं के माध्यम से तथा धर्म की भावना से जो शिक्षाएँ जन साधारण को दी जाती हैं वे सहज बोधगम्य होती हैं, इसीलिए सम्भवतः इस प्रकार की नैतिक कथाओं को पर्वों के साथ जोड़ा गया होगा | और हमारा ऐसा मानना है कि नैतिक मूल्यों से युक्त ये कथाएँ हमें भी अपने बच्चों को अवश्य सुनानी चाहियें – उनमें निहित सन्देश के विषय में बताते हुए |
अस्तु, हम सभी सोच विचार कर हर कार्य करते हुए, जीवमात्र के प्रति स्नेह, समता तथा करुणा का भाव रखते हुए आगे बढ़ते रहें इसी भावना के साथ सभी को दीपोत्सव के पाँचों पर्वों की अनेकशः हार्दिक शुभकामनाएँ… सभी स्वस्थ रहें, सुखी रहें, समृद्ध रहें, तथा सभी के हृदय हर्षोल्लास की स्वर्णिम आभा से प्रकाशित रहें…