माघ कृष्ण चतुर्थी

माघ कृष्ण चतुर्थी

माघ कृष्ण चतुर्थी

संकष्टी चतुर्थी 

प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रविनायकम् |

भक्तावासं स्मरेन्नित्यमायु: कामार्थसिद्धये ||

हिन्दू मान्यता के अनुसार ऋद्धि सिद्धिदायक भगवन गणेश किसी भी शुभ कार्य में सर्वप्रथम पूजनीय माने जाते हैं | गणेश जी को विघ्नहर्ता माना जाता है, यही कारण है कि कोई भी शुभ कार्य आरम्भ करने से पूर्व गणपति का आह्वाहन और स्थापन हिन्दू मान्यता के अनुसार आवश्यक माना जाता है | चतुर्थी तिथि भगवान गणेश को समर्पित मानी जाती है और इस दिन गणपति की उपासना बहुत फलदायी मानी जाती है |

माह के दोनों पक्षों में दो बार चतुर्थी आती है | इनमें पूर्णिमा के बाद आने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है और अमावस्या के बाद आने वाली शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहा जाता है | इस प्रकार यद्यपि संकष्टी चतुर्थी का व्रत हर माह में होता है, किन्तु माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी का विशेष महत्त्व माना जाता है | 

इस वर्ष शुक्रवार 17 जनवरी को माघ कृष्ण चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी का व्रत किया जाएगाजिसे विघ्न विनाशक गणपति की पूजा अर्चना के कारण लम्बोदर संकष्टी चतुर्थीआँचलिक बोली में संकट चतुर्थीवक्रतुंडी चतुर्थीतिलकुटा चौथसकट चौथ के नाम से भी जाना जाता है | इस व्रत को माघ मास में होने के कारण माघी भी कहा जाता है तथा इसमें तिल के सेवन का विधान होने के कारण तिलकुट चतुर्थी भी कहा जाता है | उत्तर भारत में तथा मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में इस व्रत की विशेष मान्यता है और विशेष रूप से माताएँ अपनी सन्तान की मंगल कामना से इस व्रत को करती हैं | हमने सुना है अलवर से लगभग 60 किलोमीटर की दूर पर सकट माता का मन्दिर भी है जिसकी दूर दूर तक मान्यता है और अपनी मनोकामना सिद्धि के लिए जैन साधारण वहाँ पहुँचता भी है | इस वर्ष संकष्टी चतुर्थी के दिन यानी 17 जनवरी को सूर्योदय से पूर्व चार बजकर छह मिनट पर वृश्चिक लग्न, धनु राशि, बव करण और सौभाग्य योग में चतुर्थी तिथि का आरम्भ हो रहा है जो दूसरे दिन यानी 18 जनवरी को प्रातः 8:30 तक रहेगी | भगवान भास्कर मकर राशि में विचरण कर रहे हैं तथा शनि देव स्वराशिगत हैं शुक्र के साथ | इन ग्रह स्थितियों के कारण बहुत शुभ योग भी इस दिन बन रहे हैं |  सकट चौथ के पूजन के लिए मुहूर्त धनु लग्न में प्रातः पाँच बजकर पाँच मिनट से लग्न की समाप्ति तक यानी सात बजकर सात मिनट तक रहेगा | किन्तु सामाजिक पर्व होने के कारण अपने परिवार की मान्यताओं के अनुसार किसी भी समय गणपति और सकट माता की पूजा इस दिन की जा सकती है | चन्द्र दर्शन रात्रि नौ बजकर नौ मिनट पर होना है अतः चन्द्रमा को अर्घ्य देने का समय रात्रि में नौ बजकर नौ मिनट से आरम्भ हो रहा है | सभी को संकष्टी चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाएँ

गणपति की पूजा अर्चना के साथ ही संकष्टी माता या सकट माता की उदारता से सम्बन्धित कथा का भी पठन और श्रवण इस दिन किया जाता है | कथा अनेक रूपों में हैअपने अपने परिवार और समाज की प्रथा के अनुसार कहीं भगवान शंकर और गणेश जी की कथा का श्रवण किया जाता है कि किन परिस्थितियों में गणेश जी को हाथी का सर लगाया गया था | कहीं कुम्हार की कहानी भी कही सुनी जाती है | तो कहीं कहीं गणेश जी और बूढ़ी माई की कहानी तो कहीं साहूकारनी की कहानी कही सुनी जाती है | कहीं जेठानी और देवरानी की कहानी कही सुनी जाती है | कुछ अन्य मान्यताएँ भी हैं, जैसे मान्यता है कि इसी दिन भगवान् शंकर ने अपने पुत्र गणेश के शरीर पर हाथी का सिर लगाया था और माता पार्वती अपने पुत्र को इसी रूप में पाकर अत्यन्त प्रसन्न हो गई थीं | एक और कथा कही सुनी जाती है कि भगवान विष्णु जब माता लक्ष्मी से विवाह करने जा रहे थे तब उन्होंने गणेश जी के भारी भरकम शरीर और बहुत अधिक भोजन करने के कारण उनका अपमान किया जिसके कारण बारातियों को बहुत सी बाधाओं का सामना करना पड़ा और अन्त में गणेश जी को मनाया गया तब कहीं जाकर विवाह कार्य निर्विघ्न सम्पन्न हुआ |

किन्तु, जैसी कि अन्य हिन्दू व्रतोत्सवों की इन समस्त लोक कथाओं का कोई पौराणिक अथवा वैज्ञानिक महत्त्व नहीं है, किन्तु इन सब के साथ कोई न कोई नैतिक सन्देश अवश्य जुड़ा होता है | इन संकष्टी चतुर्थी की कथाओं में भी कुछ इसी प्रकार के सन्देश निहित हैं कि कष्ट के समय घबराना नहीं चाहिए अपितु साहस से बुद्धि पूर्वक कार्य करना चाहिए, माता पिता की सेवा परम धर्म है, लालच और ईर्ष्या अन्ततः कष्टप्रद ही होती है, किसी भी व्यक्ति का आकलन उसके रूप रंग तथा धनी निर्धन आदि होने के आधार पर नहीं करना चाहिए, समस्त प्राणिमात्र में अपनी आत्मा का निवास मानते हुए सबके साथ सम्मान दया तथा करना का व्यवहार करना चाहिए तथा मन में लिए संकल्प को अवश्य पूर्ण करना चाहिए | 

साथ ही, पूजा में जो तिलकुट का प्रयोग किया जाता है वह भी ऋतु के अनुसार ही हैतिल और गुड़ का कूट बनाकर भोग लगाया जाता है जो कडकडाती ठण्ड में कुछ शान्ति प्राप्त करने का अच्छा उपाय है | ऐसा भी माना जाता है कि तिल में फाइबर और एंटीऑक्सीडेंट की मात्रा अधिक होने के कारण रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है | ऐसा भी ज्ञात हुआ है कि तिल में जो एंटीऑक्सीडेंट होता है वह अनेक प्रकार के कैंसर की सम्भावनाओं को क्षीण करता है | तिलों के सर्दियों में सेवन से जोड़ों में दर्द नहीं होता, स्निग्ध बनी रहती है | बालों के लिए भी तिल उपयोग लाभकारी माना जाता है | वैसे ये सब दादी नानी के नुस्ख़े हैं, मूल रूप से तो ये सब डॉक्टर्स के विषय हैंवही इस दिशा में जानकारी दें तो अच्छा होगा |

अस्तु ! हम सभी परस्पर प्रेम और सौहार्द की भावना के साथ ऋद्धि सिद्धिदायक विघ्नहर्ता भगवान गणेश का आह्वाहन करें और प्रार्थना करें कि गणपति सभी को सभी प्रकार के कष्टों से मुक्त रखेंइसी कामना के साथ सभी को संकष्टी चतुर्थी के व्रत की हार्दिक शुभकामनाएँ