महाशिवरात्रि महापर्व 2025
ॐ त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् |
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्तीयमामृतात् ||
प्रतिवर्ष फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि के व्रत का पालन किया जाता है, जिसे शिव पार्वती के विवाह का अवसर माना जाता है – अर्थात मंगल के साथ शक्ति का मिलन | किन्तु यह भी जान लेना अत्यन्त आवश्यक है कि शिव–पार्वती का यह मिलन किसी भौतिक अथवा सांसारिक अथवा दैहिक सुख की प्राप्ति के लिए नहीं था, अपितु तारकासुर के आतंक से समस्त ब्रह्माण्ड को मुक्त कराने के निमित्त कार्तिकेय के रूप में सन्तान की प्राप्ति के लिए था – अतः पूर्ण रूपेण आध्यात्मिक था – और इसीलिए इस विवाहोत्सव में किसी प्रकार के सांसारिक रीति रिवाज़ों के लिए स्थान नहीं था | अध्यात्म में किसी भी संस्कार के लिए कोई स्थान नहीं रह जाता, वह इस सबसे बहुत ऊपर का विषय होता है | यही कारण है कि इस दिन पूर्ण भक्ति भाव से शिव और शक्ति की आराधना की जाती है ताकि हम सभी के मनों में जो भी कालुष्य अथवा अज्ञान रूपी असुर विद्यमान है उसे समाप्त किया जा सके |
कुछ पौराणिक मान्यताएँ इस प्रकार की भी हैं कि इसी दिन महादेव के विशालकाय स्वरूप अग्निलिंग से सृष्टि का आरम्भ हुआ था | जो भी मान्यताएँ हों, महाशिवरात्रि का पर्व समस्त हिन्दू समाज में बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है | इसी दिन ऋषि बोधोत्सव भी है, जिस दिन आर्यसमाज के प्रवर्तक स्वामी दयानन्द को सच्चे शिवभक्त का ज्ञान प्राप्त हुआ था और उनके हृदय से उदगार फूटे थे कि सच्चा शिव किसी मन्दिर या स्थान विशेष में विराजमान मूर्ति में निवास नहीं करता, अपितु वह इस सृष्टि के प्राणिमात्र में विराजमान है, और इसलिए प्राणिमात्र की सेवा ही सच्ची ईश्वरभक्ति है |
इस वर्ष बुधवार 26 फरवरी को प्रातः ग्यारह बजकर आठ मिनट के लगभग चतुर्दशी तिथि का आरम्भ होगा, जो 27 फरवरी को प्रातः 8:54 तक रहेगी | इस प्रकार 26 फरवरी को महा शिवरात्रि के व्रत का पालन किया जाएगा | सामान्य रूप से निशीथ काल की पूजा इसी दिन मध्य रात्रि में होगी, क्योंकि रात्रि का मध्य भाग निशीथ काल कहलाता है – अर्थात 26 फ़रवरी को मध्यरात्रि में बारह बजकर आठ मिनट से एक बजे तक की अवधि में निशीथ काल का अभिषेक होगा | 27 को सूर्योदय काल में 6:48 से 8:54 तक व्रत का पारायण का समय है | जिन लोगों को रात्रि में अभिषेक नहीं करना है और दिन में ही व्रत रखकर रात्रि में उसका पारायण करना चाहते हैं वे लोग भी इसी दिन व्रत रख सकते हैं | विशेष रूप से पूजा अर्चना करने वाले भक्त गण भी सारा दिन उपवास रखकर रात्रि में चार प्रहर में चार अभिषेक करते हैं और दूसरे दिन व्रत का पारायण करते हैं… उनके लिए मुहूर्त इस प्रकार हैं…
रात्रि प्रथम प्रहर का अभिषेक – 26 फरवरी को सायं 6:19 से रात्रि 9:26 तक
रात्रि द्वितीय प्रहर का अभिषेक – 26 फरवरी को ही रात्रि 9:26 से अर्द्ध रात्रि में 12:34 तक
रात्रि तृतीय प्रहर का अभिषेक – 26 फरवरी को अर्द्ध रात्रि में 12:34 से 27 फरवरी को सूर्योदय से पूर्व 3:41 तक
रात्रि चतुर्थ प्रहर का अभिषेक – 27 फरवरी को सूर्योदय से पूर्व 3:41 से सूर्योदय के समय 6:48 तक, इसी समय व्रत का पारायण भी
कुछ मित्रों की जिज्ञासा है कि रात्रि में चार प्रहर की पूजा किसलिए की जाती है | तो पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शंकर भगवान निशीथ काल में ही शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए थे – यही कारण है कि मन्दिरों में निशीथ काल में ही लिंगोद्भव पूजा का विधान है | इसके अतिरिक्त, दश के यज्ञ में अपने पति का अपमान हुआ देखकर सती ने आत्मदाह कर लिया था और फिर पर्वतराज हिमालय की पत्नी मैना के गर्भ से उमा के रूप में जन्म लिया और पर्वतसुता होने के कारण पार्वती कहलाईं | शिव पत्नी सती के आत्मदाह के पश्चात तपस्या में लीन हो गए थे | इसी मध्य तारकासुर का आतंक बढ़ा तो ब्रह्मा जी ने बताया कि शिव और पार्वती की सन्तान ही इस असुर का वध करने में समर्थ है | तब नारद जी के कहने पर पार्वती ने शिव को पुनः पति के रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या आरम्भ कर दी | उधर तपस्यारत शंकर को तपस्या से बाहर लाना असम्भव था | तब कामदेव का सहारा लेकर येन केन प्रकारेण शिव को तपस्या से बाहर लाया गया और उन्हें पार्वती के साथ विवाह के लिए प्रेरित किया गया | मान्यता है कि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को शिव–पार्वती का विवाह सम्पन्न हुआ था | इसलिए भी रात्रि भर जागरण करके शिव पार्वती की पूजा अर्चना की जाती है |
पारम्परिक रूप से इस दिन शिवलिंग पर दधि–घृत–मधु–शर्करा–गंगाजल मिश्रित जल – जिसे पञ्चामृत कहा जाता है – का अर्घ्य देकर समस्त शिव परिवार पर चन्दन, अक्षत, बिल्व पत्र और धतूरा अर्पित करने का विधान है | जिनमें प्रमुख वस्तुओं के नाम तथा उनकी उपादेयता निम्नवत है…
सुगन्धित जल : भौतिक सुख सुविधाओं की उपलब्धि के लिए जल में चन्दन आदि की सुगन्धि मिलाकर उस जल से शिवलिंग को अभिषिक्त किया जाता है |
मधु अर्थात शहद : अच्छे स्वास्थ्य तथा जीवन साथी की मंगलकामना के लिए मधु से शिवलिंग का अभिषेक किया जाता है |
गंगाजल : समस्त प्रकार के तनावों से मुक्तिदाता माना जाता है गंगाजल को | इसी भावना से गंगाजल द्वारा शिवलिंग को अभिसिंचित करने की प्रथा है | पौराणिक मान्यता के अनुसार जब भगवान शिव ने समुद्र मन्थन के समय हलाहल पान कर लिया तो इसी गंगाजल को कलश में भर भर कर देवताओं के प्रवेश द्वार माया नगरी – आज का हरिद्वार – से देवगण ले गए थे और उससे भगवान शिव का अभिषेक करके उनके हलाहल के ताप को शान्त किया गया था |
गौ दुग्ध तथा गौ धृत : गाय का दूध और घी पौष्टिकता प्रदान करने के साथ ताप को भी शान्त करता है | हृष्ट पुष्ट रहने के लिए गाय के दूध और घी से शिवलिंग को स्नान कराया जाता है |
बिल्व पत्र और धतूरा : सांसारिक तापों से मुक्ति के लिए बिल्व पत्रों तथा धतूरे से शिवलिंग का श्रृंगार किया जाता है | ऐसी मान्यता है कि धतूरा भगवान शंकर का सबसे अधिक प्रिय पदार्थ है और बिल्व को अमर वृक्ष तथा बिल्व पत्र को अमर पत्र और बिल्व फल को अमर फल की संज्ञा दी जाती है |
किन्तु हमारी मान्यता है कि केवल जल तथा बिल्व पत्र के साथ श्रद्धा, भक्ति और पूर्ण आस्था तथा विश्वास का गंगाजल एक साथ मिलाकर उस जल से यदि शिवलिंग को अभिषिक्त किया जाए तो भोले शंकर को उससे बढ़कर और कुछ प्रिय हो ही नहीं हो सकता | और यदि कुछ भी उपलब्ध न हो, शिवालय भी कहीं बहुत दूरी पर हो, तो अपने मन से बड़ा और कौन सा शिवालय होगा और मन की श्रद्धा भक्ति तथा विश्वास से बढ़कर और कौन सा गंगाजल या अभिषेक की सामग्री होगी जो भोला भण्डारी को प्रिय होगी ? इसी श्रद्धा, भक्ति और पूर्ण आस्था तथा विश्वास के गंगाजल के साथ अपने मन के शिवालय में विराजमान भगवान शंकर के अभिषेक करें तथा मानव सेवा करते हुए शिव को प्रसन्न करें – श्रद्धा भक्तिपूर्वक पूर्ण मनोयोग से भगवान शंकर के मन्त्रों का जाप करें – औघड़दानी इतने भर से ही प्रसन्न हो जाते हैं – इसीलिए तो इन्हें औघड़दानी कहा जाता है | भगवान शिव की पूजा अर्चना जहाँ होगी वहाँ आनन्द और आशीर्वाद की वर्षा तो निश्चित रूप से होगी ही | शिवरात्रि के पर्व के साथ बहुत सी कथाएँ भी जुड़ी हुई हैं और उन सभी कथाओं में कुछ न कुछ प्रेरणादायक उपदेश भी निहित हैं | किन्तु हमारे विचार से जो शं यानी शान्ति प्रदान करे वह शंकर – किन्तु शंकर भी तभी जन जन को शान्ति और कल्याण प्रदान करेंगे जब हम प्रकृति के कण कण में – प्रत्येक जन मानस में – शंकर का अनुभव करेंगे…
अस्तु, हम सभी प्रकृति के कण कण में शंकर का वास मानकर सभी के प्रति सद्भावना रखें तथा समाज में व्याप्त अनेक प्रकार की कुरीतियों पर विजय प्राप्त करने का प्रयास करें… इसी कामना के साथ सभी को महाशिवरात्रि पर्व की अनेकशः हार्दिक शुभकामनाएँ… भगवान शंकर सभी के जीवन में शान्ति और कल्याण की पावन गंगा प्रवाहित करें…