शनि का मीन राशि में गोचर 

शनि का मीन राशि में गोचर 

शनि का मीन राशि में गोचर 

न्यायाधीश, कर्म व सेवा के ग्रह माने जाने वाले शनि देव सबसे धीमी गति से चलने वाला ग्रह माना जाता है | यों तो हर ग्रह का प्रभाव सभी बारह राशियों के जातकों पर पड़ता है, किन्तु शनि, गुरु और राहुकेतु ऐसे ग्रह हैं जिनका विशेष रूप से प्रभाव का अध्ययन किया जाना चाहिए | इस वर्ष शनिवार 29 मार्च, चैत्र अमावस्या को रात्रि 9:46 के लगभग किंस्तुघ्न करण और ब्रह्म योग में शनि का गोचर मीन राशि में हो जाएगा | शनि इस समय पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र पर भ्रमण कर रहा है जहाँ से 28 अप्रैल को उत्तर भाद्रपद नक्षत्र पर पहुँच जाएगा | यहाँ से 13 जुलाई को शनि वक्री होना आरम्भ होगा और तीन अक्टूबर को पुनः पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र पर पहुँच जाएगा | 28 नवम्बर से शनिदेव मार्गी होना आरम्भ होंगे और 20 जनवरी 2026 को पुनः उत्तर भाद्रपद नक्षत्र पर पहुँच जाएँगे | 8 मार्च 2026 को शनि अस्त होकर 12 अप्रैल को पुनः उदित होगा | 17 मई को रेवती नक्षत्र पर पहुँच जाएगा | यहाँ से 27 जुलाई को एक बार पुनः वक्री हना आरम्भ होगा और 9 अक्टूबर को उत्तर भाद्रपद नक्षत्र पर पुनः वापस पहुँच जाएगा | यहाँ से 11 दिसम्बर को मार्गी होना आरम्भ होते हुए 8 फरवरी 2027 को रेवती नक्षत्र पर पुनः पहुँच जाएगा | 21 मार्च 2027 को अस्त होकर फिर 25 अप्रैल को उदय हो जाएगा और 3 जून को सूर्योदय से पूर्व 5:29 पर मेश राशि तथा अश्विनी नक्षत्र पर पहुँच जाएगा | इस प्रकार मीन राशि की अपनी इस यात्रा में शनिदेव दो बार वक्री होकर नक्षत्र परिवर्तन करेंगे और दो बार अस्त होकर पुनः उदित होंगे | यद्यपि मेष में वक्री होकर 20 अक्टूबर 2027 को एक बार फिर से रेवती नक्षत्र और मीन राशि में आएँगे और चार दिन बाद 24 दिसम्बर 2027 से मार्गी होते हुए 23 फरवरी 2028 को मेष राशि और अश्वनी नक्षत्र पर वापस पहुँच जाएँगे | धीमी गति के कारण ही शनि एक राशि पर अपने ढाई वर्ष की यात्रा में अनेक बार अस्त भी होता है और वक्री भी होता है | सामान्यतः शनि के वक्री होने पर व्यापार में मन्दी, राजनीतिक दलों में मतभेद, जन साधारण में अशान्ति तथा प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़ और आँधी तूफ़ान आदि की सम्भावनाएँ अधिक रहती हैं | साथ ही जिन राशियों पर साढ़ेसाती अथवा ढैया का प्रभाव होता है उन्हें विशेष रूप से सावधान रहने की आवश्यकता होती है | 

वैदिक ज्योतिष के अनुसार शनि को कर्म और सेवा का कारक माना जाता है | यही कारण है कि शनि के वक्री अथवा मार्गी होने का प्रभाव व्यक्ति के कर्मक्षेत्र पर भी पड़ता है | शनि को अनुशासनकर्ता भी माना जाता है और मीन राशि राशिचक्र का द्वादश भाव होने के कारण व्यय और मोक्ष आदि की राशि मानी जाती है | अतः कह सकते हैं कि गुरुदेव की इस राशि में शनिदेव के आने से जातक को उसकी नकारात्मकताओं से मुक्ति प्राप्त हो सकती हैकिन्तु सम्भव है कुछ जातकों को संघर्ष का सामना भी करना पड़ जाए | एक बात और, ध्यान रहे, ये सभी परिणाम सामान्य हैं | किसी कुण्डली के विस्तृत फलादेश के लिए केवल एक ही ग्रह के गोचर को नहीं देखा जाता अपितु उस कुण्डली का विभिन्न सूत्रों के आधार पर विस्तृत अध्ययन आवश्यक है | 

साथ ही, किसी भी ग्रह के गोचर पर विचार करते समय उसके मित्र, शत्रु तथा सम ग्रहों पर और उसकी उच्च नीच तथा दग्ध आदि अवस्थाओं पर और उसकी दृष्टियों आदि पर भी विचार आवश्यक है | जैसे शनि की ही बात करें तो, इस समय शनि गुरु की राशि में प्रवेश कर रहा है जो कि शनि के लिए सम ग्रह है और गुरु की राशि में आने के कारण शनि आध्यात्म, दर्शन तथा सद्गुणों में वृद्धि कर सकता है | मीन राशि पर भ्रमण करते हुए शनि की तीसरी दृष्टि अपने मित्र ग्रह की राशि वृषभ पर रहेगीजिसका अधिपति ग्रह शुक्र और शनि परम मित्र हैं तथा एक दूसरे के लिए योगकारक भी हैं | सप्तम दृष्टि सिंह पर होगीजिसके अधिपति ग्रह सूर्य के साथ शनि की शत्रुता है | दशम दृष्टि वृश्चिक पर रहेगीजिसका अधिपति ग्रह मंगल शनि का मित्र है | इनमें से वृषभ राशि के लिए शनि नवमेश यानी भाग्येश और दशमेश यानी कर्मेश होकर योगकारक बन जाता है, सिंह के लिए षष्ठेश और सप्तमेश है तथा वृश्चिक के लिए शनि तृतीयेश और चतुर्थेश है | इन्हीं समस्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए अगले लेखों में जानने का प्रयास करेंगे शनि के मीन राशि में गोचर के समस्त बारह राशियों के जातकों पर क्या प्रभाव सम्भव हैं 

क्योंकि शनि का जहाँ तक प्रश्न है तोशं करोति शनैश्चरतीति च शनि:” अर्थात, जो शान्ति और कल्याण प्रदान करे और धीरे चले वह शनि | अतः शनिदेव का गोचर कहीं भी हो, घबराने की अथवा भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है, अपने कर्म की दिशा सुनिश्चित करके आगे बढ़ेंगे तो कल्याण ही होगा, अतः धैर्यपूर्वक शनि की चाल पर दृष्टि रखते हुए कर्मरत रहिये, निश्चित रूप से मीन राशि के स्वामी गुरुदेव की कृपा से शनि के वहाँ गोचर से कुछ तो अमृत प्राप्त होगाक्योंकि गुरु की राशियों में स्थित शनि शुभ फल देने में समर्थ होता है | साथ ही,  मीन राशि भावनात्मक और आध्यात्मिक गहनता प्रदान करने वाली राशि मानी जाती है | जब शनिदेव इस राशि में गोचर करेंगे, तो जान साधारण में आध्यात्मिकता भावना और रचनात्मक अभिव्यक्ति में वृद्धि होगी | मानसिक और आध्यात्मिक विकास के प्रति जन साधारण में उत्सुकता बढ़ेगी |  आवश्यकता है व्यावहारिक कर्तव्यों को सन्तुलित करते हुए कर्म करने की

जब भी शनि राशि परिवर्तन करते हैं और चन्द्रमा से द्वितीय, पञ्चम अथवा नवम भाव में जाते हैं, तो इसे चाँदी का पाया कहा जाता है | इस प्रकार, राशिचक्र की तीन राशियों के लिए शनि का राशि परिवर्तन अत्यन्त लाभकारी सिद्ध हो सकता है | साथ ही राशियों के साढ़ेसाती और ढैया भी चलती रहेगी | उदाहरण के लिए, कुम्भ राशि के लिए एक ओर तो साढ़ेसाती का अन्तिम चरण आरम्भ हो जाएगा, तो वहीं दूसरी ओर राशि से द्वितीय भाव में चाँदी के पाए से प्रस्थान करेंगेइस प्रकार कुम्भ राशि के लिए शनि का मीन मीन में गोचर लाभदायक हो सकता है | मीन राशि के लिए साढ़ेसाती का द्वितीय चरण आरम्भ हो जाएगा | मेष राशि के लिए साढ़ेसाती का प्रथम चरण आरम्भ होने जा रहा है | वृश्चिक राशि से पञ्चम भाव और कर्क राशि से नवम भाव में शनि का गोचर चाँदी के पाए से होने जा रहा हैजिनमें वृश्चिक के स्वामी मंगल का तो शनि मित्र ग्रह है, किन्तु कर्क के स्वामी चन्द्र से शनि की शत्रुता है | इनके अतिरिक्त सिंह राशि से अष्टम भाव और धनु राशि से चतुर्थ भाव में गोचर करने के कारण इन दोनों राशियों पर शनि की ढाई वर्ष की ढैया भी आरम्भ हो जाएगी |

अगले लेख में मेष और वृषभ राशियों के लिए शनि के मीन में गोचर के सम्भावित परिणामों पर संक्षेप में चर्चा करेंगे