गुरु मेरी दृष्टि में

गुरु मेरी दृष्टि में

गुरु मेरी दृष्टि में

अभी कुछ दिनों में देवगुरु बृहस्पति राशि परिवर्तन करने जा रहे हैं | उनके राशि परिवर्तन पर बात करें, उससे पूर्व गुरु के विषय में संक्षेप में कुछ बात हो जाए | नवग्रहों की बात करते समय देवगुरु बृहस्पति की चर्चा की जाए तो हिन्दू धर्म के नवग्रहों में देवगुरु बृहस्पति की उपासना ज्ञान, विज्ञान, बुद्धि, धर्म और आध्यात्म के साथसाथ भाग्य वृद्धि, विवाह तथा सन्तान सुख की प्राप्ति के लिए की जाती है | जातक की कुण्डली में गुरु पिता का कारक भी होता है और कन्या की कुण्डली में पति के लिए भी गुरु को देखा जाता है | गुरु या शुक्र में से कोई एक अथवा दोनों ही यदि अस्त हों तो उस स्थिति में प्रायः विवाह की अनुमति Vedic Astrologer नहीं देते | साथ ही माना जाता है कि यदि किसी व्यक्ति का गुरु बली हो तो वह व्यक्ति विद्वान् होता है तथा उसे अपने ज्ञान के ही कारण यश और धन की प्राप्ति होती है | प्रायः देखा जाता है कि यदि किसी के घर में बहुत अधिक धर्म ग्रन्थ रखे हों तो देखते के साथ ही लोग बोल देते हैं कि इस व्यक्ति का बृहस्पति प्रबल होगा | जैसा कि ऊपर ही लिखा है, इन्हें देवगुरु की उपाधि से विभूषित किया गया है अतः इन्हेंगुरुभी सम्बोधित किया जाता है | ये शील और धर्म के अवतार माने जाते हैं | नवग्रहों के समूह का नायक माने जाने के कारण इन्हें गणपति भी कहा जाता है | ज्ञान और वाणी के देवता गुरु नेबार्हस्पत्य सूत्रकी रचना भी की थी | इनका वर्ण पीला है तथा इनके हाथों में दण्ड, कमण्डल और जपमाला शोभायमान रहते हैं | इसी से इनके महत्त्व का ज्ञान हो जाता है | पीला रंग प्रतीक है आनन्द का, उत्साह का, सकारात्मकता और जीवनी शक्ति का | इसी प्रकार कमण्डलजिसका उपयोग तपस्वी, सन्यासी और योगीजन अपने लिए जल और भोज्य पदार्थ आदि ग्रहण करने के लिए भिक्षा पात्र के रूप में करते हैंप्रतिनिधित्व करता है एक सरल और आत्म निर्भर जीवन का | और जपमाला आध्यात्मिक अभ्यास, ध्यान तथा प्रार्थना की प्रतीक होती है | किसी भी क्षेत्र में सफलता के लिए उससे सम्बन्धित विषय पर यदि ध्यान लगाकर उसका अध्ययन किया जाए तो सफलता निश्चित हो जाती है | इसी से देवगुरु के व्यक्तित्व का ज्ञान हो जाता है | गुरु जिसकी कुण्डली में प्रबल होगा अथवा उत्तम स्थिति में होगा वह निश्चित रूप से एक सफल व्यक्ति होगा | साथ ही, गुरुदेव का क्रोध भी बड़ा प्रबल होता है | यदि कहीं अनुचित आचरण देख लें तो फिर उनके क्रोध से बचना कठिन हो जाता है | ऐसा ही स्वभाव जातक का भी गुरु की प्रबलता के कारण हो सकता हैअनुचित अथवा अन्याय इन्हें पसन्द नहीं होता |

दैत्यगुरु शुक्राचार्य के ये कट्टर विरोधी हैं | इस विषय में भी एक पौराणिक कथा उपलब्ध होती है कि अंगिरस मुनि से भार्गव शुक्र और बृहस्पति दोनों एक साथ शिक्षा ग्रहण करते थे | अंगिरस अपने पुत्र बृहस्पति पर अधिक ध्यान देते थे और शुक्र के साथ भेद भाव करते थे | इस बात से खिन्न होकर शुक्र ने अंगिरस से शिक्षा लेनी बन्द कर दी | माना जाता है कि  तभी से शुक्र और बृहस्पति में शत्रुता का भाव हो गया और शुक्र ने दैत्यों का साथ देना आरम्भ कर दिया | ऋग्वेद के अनुसार बृहस्पति को अंगिरस मुनि और उनकी पत्नी स्मृति का पुत्र माना गया है | माना जाता है कि इन्होने प्रभास तीर्थ के निकट भगवान् शिव की तपस्या करके उन्हें प्रसन्न किया और देवगुरु की पदवी तथा नवग्रह मण्डल में स्थान प्राप्त किया |

धनु और मीन दो राशियों तथा पुनर्वसु, विशाखा और पूर्वा भाद्रपद नक्षत्रों का स्वामित्व गुरु के पास है | कर्क इनकी उच्च राशि तथा मकर नीच राशि है | सूर्य, चन्द्रमा और मंगल के साथ इनकी मित्रता है, बुध तथा शुक्र शत्रु ग्रह हैं और शनि के साथ ये तटस्थ भाव में रहते हैं | इनका तत्व आकाश है तथा ये पूर्व और उत्तर दिशा तथा शीत ऋतु के स्वामी माने जाते हैं | क्योंकि इनका तत्व आकाश है अतः जिस व्यक्ति की कुण्डली में गुरु अच्छी स्थिति में होगा उस व्यक्ति के जीवन में निरन्तर प्रगति और विस्तार की सम्भावना रहती है | इन जातकों का व्यवसाय मुख्य रूप से अध्ययनअध्यापन, लेखन, खगोल तथा ज्योतिष विद्या से सम्बन्धित ज्ञान, गणित तथा बैंक आदि से सम्बन्धित कार्य, वक़ालत अथवा फाइनेंस कम्पनी से सम्बन्धित कार्य माना जाता है | आधुनिक समय में कंप्यूटर तथा इण्टरनेट जैसे टैक्निकल ज्ञान भी इनके क्षेत्र में आते हैं | पवित्र अथवा धार्मिक स्थल, बुद्धि और ज्ञान, वेद वेदान्त और तर्क शास्त्र का ज्ञान, बड़े भाई तथा पुत्र पौत्र आदि का प्रतिनिधित्व गुरु के पास है | साथ ही जिनका गुरु प्रभावशाली होता है वे लोग कुछ भारी शरीर के होते हैं | यदि किसी व्यक्ति की कुण्डली में गुरु अच्छी स्थिति में नहीं अथवा पीड़ित है तो उसे मधुमेह तथा पेट से सम्बन्धित रोगों की सम्भावना रहती है | सोलह वर्ष की गुरुदेव की दशा होती है तथा ये एक राशि में बारह से तेरह महीने तक भ्रमण करते हैं, किन्तु कभी कभी वक्री, मार्गी अथवा अतिचारी होने की स्थिति में एक राशि में एक या दो माह अधिक भी रुक जाते हैं |

गुरु को बली बनाने अथवा उन्हें प्रसन्न करने के लिए Vedic Astrologer बहुत से मन्त्रों का जाप का सुझाव देते हैं | उन्हीं में से प्रस्तुत हैं कुछ मन्त्रआप अपनी सुविधानुसार किसी भी एक मन्त्र का जाप कर सकते हैं

वैदिक मन्त्र : ॐ बृहस्पते अति यदर्यो अर्हाद् द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु

यद्दीदयच्छवस ऋतुप्रजात तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम्

पौराणिक मन्त्र :

ॐदेवानांचऋषीणांगुरुंकांचनसन्निभम्

बुद्धिभूतंत्रिलोकेशंतंनमामिबृहस्पतिम्

तन्त्रोक्त मन्त्र : ॐ ऎं क्रीं बृहस्पतये नम: अथवा ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरुवे नम: अथवा ॐ श्रीं श्रीं गुरवे नम:

बीज मन्त्र : ॐ बृं बृहस्पतये नम:

गायत्री मन्त्र : ॐअंगिरोजातायविद्महेवाचस्पतेधीमहितन्नोगुरुप्रचोदयात्

अथवा ॐ आंगिरसाय विद्महे दिव्यदेहाय धीमहि तन्नो जीव:प्रचोदयात्

देवगुरु बृहस्पति सभी के ज्ञान का विस्तार करें