नौतपा 2025
मंगलवार 13 मई, ज्येष्ठ कृष्ण प्रतिपदा से ज्येष्ठ मासारम्भ हो चुका है जो 11 जून को ज्येष्ठ पूर्णिमा के साथ पूर्ण हो जाएगा | इस दिन भगवान भास्कर कृत्तिका नक्षत्र पर आरूढ़ होंगे | रविवार 25 मई को प्रातः 9:31 के लगभग ये रोहिणी नक्षत्र पर पहुँच जाएँगे और इसी के साथ ही नौ दिवसीय नौतपा भी आरम्भ हो जाएगा | यहाँ से रविवार 8 जून को प्रातः 7:18 पर मृगशिर नक्षत्र पर पहुँच जाएँगे | इस प्रकार 25 मई से 8 जून तक नौतपा तपेंगे | तो सबसे पहले तो जानने का प्रयास करते हैं कि नौतपा कहते किसे हैं और इनके क्या परिणाम होते हैं |
ज्येष्ठ मास में भगवान भास्कर अपने प्रचण्ड स्वरूप में आकाश के बिलकुल मध्य में ही आ जाते हैं – बिलकुल सर के ऊपर – और सूर्य की किरणें धरती पर लम्बवत पड़ने लगती हैं | इतनी भयंकर गर्मी पड़ती है कि प्रकृति बेहाल हो जाती है | लू के थपेड़े हर किसी के लिए समस्या उत्पन्न करते रहते हैं | कभी कभी तो पारा सम्भावना से भी अधिक ऊपर पहुँच जाता है | और इसी तपती गर्मी में आते हैं वे नौ दिन जब गर्मी अपने शिखर पर होती है | भगवान भास्कर जब रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करते हैं तब से लेकर नौ दिनों की अवधि नौतपा का नाम से जानी जाती है | इसे इस प्रकार भी समझ सकते हैं कि वृषभ में जब सूर्य भगवान दस अंशों से बीस अंशों के मध्य विचरण करते हैं तो यह अवधि नौतपा के नाम से जानी जाती है | 27 नक्षत्रों पर लगभग पन्द्रह पन्द्रह दिनों के लिए सूर्य विचरण करता है | इसी क्रम में जब ज्येष्ठ मास में सूर्य रोहिणी नक्षत्र पर आता है तो यह अवधि नौतपा की अवधि कहलाती है | नौतपा प्रायः 25 मई के आस पास ही आरम्भ होते हैं |
रोहिणी नक्षत्र में भगवान भास्कर के प्रवेश करते ही धरती का तापमान अत्यन्त तीव्रता से बढ़ना आरम्भ हो जाता है | माना जाता है कि यदि इन नौ दिनों में बारिश न हो और शीतल बयार प्रवाहित न हो तो आने वाले दिनों में अच्छी बारिश की सम्भावना रहती है | इसी को मौसम वैज्ञानिक Heat wave या लू वाले दिन भी कहते हैं | सामान्य भाषा में इस अवधि को नौतपा, नवतपा और रोहिणी के नाम से पुकारा जाता है | यद्यपि इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है, किन्तु फिर भी प्राचीन काल में जब मौसम विज्ञान नहीं विकसित हुआ था उस समय इसी प्रकार की ज्योतिषीय गतिविधियों के आधार पर कृषक गण “कितनी वर्षा इस वर्ष होगी” इसका अनुमान लगाया करते थे जो बिलकुल सटीक बैठता था | घाघ की कहावतें भी बहुत प्रसिद्ध हुआ करती थीं – तपै नवतपा नव दिन जोय, तौ पुन बरखा पूरन होय | आज भी वैज्ञानिक आधार न होते हुए भी मौसम वैज्ञानिक इस तथ्य को स्वीकार करते हैं कि इस अवधि में बारिश हो जाए तो मानसून में वर्षा कम देखने को मिलती है, और इस अवधि में अच्छा ताप तपे तो बारिश बहुत अच्छी होती है…
ज्येष्ठमासे सीतपक्षे आर्द्रादि दशतारका: |
सजला निर्जला ज्ञेया निर्जला सजलास्तथा ||
ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष में आर्द्रा नक्षत्र से लेकर दश नक्षत्रों – आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, मघा, पूर्वा फाल्गुनी, उत्तर फाल्गुनी, हस्त, चित्रा और स्वाति नक्षत्रों – में यदि वर्षा हो जाए तो फिर वर्षा काल में इन दश नक्षत्रों में वर्षा नहीं होती | वहीं यदि दूसरी ओर इन नक्षत्रों में तीव्र गर्मी पड़े तो वर्षाकाल में अच्छी वर्षा की सम्भावना की जा सकती है |
खगोल शास्त्र के अनुसार वृषभ राशि के तारा मण्डल में कृत्तिका, रोहिणी और मृगशिरा नक्षत्र आते हैं – “वृषभो बहुलाशेषं रोहिण्योऽर्धम् च मृगशिरसः” – जिनमें कृत्तिका पर सूर्य का, रोहिणी पर चन्द्र का, तथा मृगशिरा पर मंगल का स्वामित्व माना जाता है | इन तीनों नक्षत्रों पर सूर्य सबसे अधिक गर्मी प्रदान करता है | इनमें से भी शीतल प्रकृति रोहिणी क्रान्ति वृत्त सूर्य के सर्वाधिक निकट माना जाता है | निश्चित रूप से शीत प्रकृति रोहिणी पर जब सूर्य पूर्ण रूप से आ जाएगा तो शीत और उष्ण मिलकर आँधियों आदि में वृद्धि ही करेंगे |
इस वर्ष गुरुवार 25 मई को प्रात: 9:31 के लगभग सूर्यदेव रोहिणी नक्षत्र पर आरूढ़ होंगे जहाँ वे आठ जून को प्रातः 7:18 तक रहेंगे | अतः 25 मई से आठ जून तक गर्मी अधिक रहने की सम्भावना है | इस अवधि में तेज़ गर्म हवाएँ भी चल सकती हैं | नौतपा – जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट है – आरम्भ के नौ दिनों की अवधि को कहा जाता है – किन्तु व्यवहार में यही देखा गया है कि जितने दिन सूर्य रोहिणी पर रहता है उतने दिन गर्मी बहुत भयानक पड़ती है | इसका एक कारण यह भी माना जाता है कि सूर्य और पृथिवी के मध्य की दूरी बहुत कम हो जाती है | इसी अवधि में अथवा इसके कुछ दिन इधर उधर ज्येष्ठ गंगा दशहरा और निर्जला एकादशी आ जाती है जो इस वर्ष क्रमशः 5 और 6 जून को है |
ज्योतिषीय आधार पर यदि प्रकृति के इस परिवर्तन की विवेचना करें तो सूर्य ताप का प्रतीक है और चन्द्रमा शीतलता का | रोहिणी नक्षत्र का अधिपति ग्रह भी चन्द्रमा ही है | सूर्य जब चन्द्रमा के नक्षत्र रोहिणी पर गोचर करता है तो इस नक्षत्र पर सूर्य के ताप का प्रभाव आ जाता है और धरती तक चन्द्रमा की शीतलता नहीं पहुँच पाती | ताप अधिक होने के कारण आँधी तूफ़ान जैसी घटनाएँ भी दृष्टिगत होने लगती हैं | जिसका सीधा प्रभाव समस्त चराचर पर पड़ता है | एक ओर समस्त वनस्पतियाँ सूखनी आरम्भ हो जाती हैं तो वहीं दूसरी ओर मानव शरीर में भी परिवर्तन आरम्भ हो जाते हैं और लू के प्रभाव के कारण बहुत सी शारीरिक समस्याओं का सामना करना पड़ जाता है | शरीर में पानी की कमी से बचने के लिए ही इस अवधि में प्रायः शीतल पेय पदार्थों तथा खीरा ककड़ी खरबूजा तरबूज आदि रसीले तथा शीतल फलों के सेवन की सलाह दी जाती है | साथ ही अधिक तला भुना मिर्च मसालों का भोजन जितना सम्भव हो न किया जाए | इसके अतिरिक्त शीतली प्राणायाम को गर्मी के ताप से बचने के लिए उपयोगी माना जाता है |
रोहिणी नक्षत्र पर सूर्य के भ्रमण करने के कारण भीषण गर्मी, धूल भरी आँधी, वर्षा आदि की सम्भावनाओं में वृद्धि हो जाती है इसलिए किसी भी प्रकार की सामाजिक गतिविधियों अथवा दूर की यात्राओं के लिए मना किया जाता था | किन्तु आजकल तो प्रत्येक क्षेत्र में इतने अधिक साधन हो गए हैं कि इन सभी बातों का कोई विशेष प्रभाव जन जीवन पर नहीं पड़ता |
अन्त में यही कहेंगे कि मौसम कैसा भी हो, जिसे मार्ग पर चलना है वह मौसम अथवा ऋतुओं से भयभीत होकर बैठ नहीं रह सकता | अतः, हम सभी नौतपा की भीषण गर्मी के ताप को तपस्वी के समान सहन करते हुए और गर्मी के दुष्प्रभाव से बचने के लिए शीतल पेय पदार्थों तथा रसीले फलों का सेवन करते हुए अपने अपने मार्ग पर अग्रसर रहें यही कामना है…
—–कात्यायनी