Category Archives: ज्योतिष

महाकुम्भ प्रयागराज

महाकुम्भ प्रयागराज

कुम्भ पर्व हिन्दू धर्मं का एक महत्वपूर्ण पर्व है | प्रयागराज में सोमवार13 जनवरी 2025 पौष पूर्णिमा से आरम्भ होकर बुधवार 26 फरवरी 2025 फाल्गुन कृष्ण त्रयोदशी यानी महाशिवरात्रि तक महाकुम्भ का आयोजन किया जाएगा | हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक में हर बारहवें वर्ष इस पर्व का आयोजन किया जाता है | हरिद्वार और प्रयाग में दो कुम्भ पर्वों के मध्य छः वर्ष के अंतराल पर एक अर्धकुम्भ भी होता है | माना जाता है कि पवित्र गंगा और यमुना के मिलन स्थल पर आर्यों ने प्रयाग तीर्थ की स्थापना की थी | साथ ही माना जाता है कि यहाँ सरस्वती नदी भी गुप्त रूप में गंगा और यमुना से मिलती है | संगम तट पर, जहाँ कुम्भ मेले के आयोजन होता है वहीं भारद्वाज ऋषि का प्राचीन आश्रम भी है | इसे विष्णु नगरी भी कहा जाता है और महाभारत के अनुसार माना जाता है कि सृष्टि की रचना के पश्चात यहीं पर ब्रह्मा ने प्रथम यज्ञ भी किया था | कुम्भ पर्व का आयोजन समुद्र मंथन की पौराणिक कथा से सम्बद्ध है, जब देव दानवों द्वारा समुद्र मंथन से अमृत कुम्भ प्राप्त हुआ | अमृत कुम्भ दानव भी हड़प कर जाना चाहते थे | बारह दिनों तक दैत्य और दानवों में उस कलश के लिये युद्ध होता रहा | इस युद्ध के कारण कलश से अमृत की कुछ बूँदें पृथिवी पर प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में छलक गईं | उस समय चंद्रमा ने घट से प्रस्रवण होने से अमृत की रक्षा की, सूर्य ने घट को फूटने से बचाया, गुरु ने दैत्यों के अपहरण से बचाया और शनि ने इन्द्र के भय से कुम्भ की रक्षा की | अन्त में भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण कर यथाधिकार सबके मध्य उस अमृत का बँटवारा किया तब युद्ध शान्त हुआ | अमृत की खींचा तानी के समय चन्द्रमा ने अमृत को बहने से बचाया | गुरूदेव बृहस्पति ने कलश को छुपा कर रखा | भगवान भास्कर ने कलश को फूटने से बचाया और शनि ने इन्द्र के कोप से रक्षा की | अतः ये समस्त ग्रह जब एक विशिष्ट स्थिति में आते हैं तो कुम्भ मेले का आयोजन किया जाता है |

वास्तव में भचक्र में सभी ग्रह हर क्षण गतिमान रहते हैं और प्रत्येक ग्रह का गोचर एक राशि से दूसरी राशि में समय समय पर होता रहता है | इनमें देवगुरु बृहस्पति की गति गोचर का कुम्भ के आयोजन में बहुत बड़ा योगदान है | साथ ही जब सभी राशि नक्षत्रों पर भ्रमण करता हुआ चन्द्रमा भगवान भास्कर के सान्निध्य में आता है तो धरा पर एक विशेष प्रकार की ऊर्जा का संचार होता है जिसे जान साधारण अनुभव भी करता है | यह ऊर्जा प्राणी मात्र के कल्याण का कारक होती है | और यही ऊर्जा अमृत घट की वे बूँदें हैं जो पृथिवी पर समुद्र मन्थन के बाद चार नगरों में गिरी थीं | अतः सूर्य चन्द्र गुरु तथा शनि की विशेष स्थितियों में विशेष संयोगों में इन सभी कुम्भ मेलों का आयोजन किया जाता है |

कुम्भ मेला हर बारह वर्ष में आता है यह तो सभी जानते हैं | कुम्भ के आयोजन में नवग्रहों में से सूर्य, चन्द्र, गुरु की भूमिका महत्वपूर्ण मानी जाती है | इस वर्ष मौनी अमावस्या 29 जनवरी को सायं छह बजकर छह मिनट के लगभग सूर्य और चन्द्र मकर राशि में समान अंशों में होंगे तथा देवगुरु बृहस्पति वृषभ राशि में चल ही रहे हैं | उस दिन महाकुम्भ का महास्नान होगा | जब गुरु और सूर्य चन्द्र सिंह राशि में होते हैं तब कुम्भ मेला नासिक में आयोजित होता है | गुरु के सिंह राशि और सूर्य के मेष राशि में होने पर कुम्भ मेला उज्जैन में आयोजित किया जाता है | गुरु के सिंह राशि में होने के कारण इन कुम्भ मेलों को सिंहस्थ भी कहा जाता है | सूर्य मेष राशि और गुरु कुम्भ  राशि में होते हैं तब उत्तराखण्ड के चार धामोंबद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्रीके प्रवेश द्वार के रूप में प्रसिद्ध हरिद्वार में कुम्भ मेले का आयोजन होता है | माना जाता है कि जगत गुरु शंकराचार्य जी ने कुम्भ मेले का आयोजन आरम्भ कराया था | वैसे तो हर 12 वर्ष में कुम्भ का मेला लगता है, किन्तु छह वर्षों की अवधि में भी कुम्भ का आयोजन किया जाता है | कुम्भ मेले को तीन वर्गों में बाँटा गया है

पूर्ण कुम्भ मेलाजिसे केवल कुम्भ मेला भी कहा जाता है और यह प्रत्येक बारह वर्षों में प्रयागराज में संगम के तट पर, नासिक में गोदावरी के तट पर, उज्जैन में क्षिप्रा के तट पर तथा हरिद्वार में गंगा नदी के तट पर आयोजित किया जाता है |

अर्ध कुम्भ मेलाअर्थ से ही स्पष्ट हैअर्ध अर्थात आधाप्रयागराज और हरिद्वार में दो पूर्ण कुम्भ मेलों के मध्य में लगभग प्रत्येक छह वर्षों में अर्ध कुम्भ मेले आयोजन किया जाता है |

महाकुम्भजो इस वर्ष यानी 2025 में प्रयागराज में आयोजित किया जा रहा है और यह बारह पूर्ण कुम्भ मेलों के बाद आता है |

चारों तीर्थ नगरों में आने वाले कुम्भ की स्थिति विशेष होती है | एक ओर जहाँ नासिक और उज्जैन के कुम्भ को प्रायः सिंहस्थ कहा जाता है वहीं दूसरी ओर हरिद्वार और प्रयागराज के कुम्भ को अर्ध कुम्भ, पूर्ण कुम्भ और महाकुम्भ कहा जाता है |

वास्तव में कुम्भ का मेला एक ऐसा आयोजन होता है जो खगोल विज्ञान, ज्योतिष, आध्यात्म, अनुष्ठान तथा कर्मकाण्ड की परम्पराओं तथा सामाजिक और सांस्कृतिक रीति रिवाज़ों और प्रथाओं को स्वयं में समाहित किए होने के कारण अत्यन्त समृद्ध होता है | इनमें सभी धर्मों के लोग आते हैं | आध्यात्मिक अनुशासन के कठोर मार्ग की साधना करने वाले साधु तथा नागा साधु भी इनमें सम्मिलित होते हैं | सन्यासी अपना एकान्तवास छोड़कर जान साधारण के मध्य इस अवधि में पहुँच जाते हैं | साथ ही धार्मिक भावनाओं से ओत प्रोत जन साधारण तो इस अवसर पर पवित्र नदियों में स्नान कर तथा इन साधु सन्तों के दर्शन कर पुण्य लाभ प्राप्त करते ही हैं | इस सबके अतिरिक्त अन्य भी अनेक प्रकार के आयोजन इन मेलों में होते हैं जैसेहाथी घोड़ों और रथों पर पारम्परिक अखाड़ों के जुलूस जिन्हेंपेशवाईकहा जाता है, शाही स्नान के समय नागा साधुओं की रस्में तथा अन्य अनेक प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रम सदा से इन कुम्भ मेलों का आकर्षण रहे हैं |

2025 के महाकुम्भ मेले में विशिष्ट स्नान की तिथियाँ इस प्रकार हैं

  1. सोमवार 13 जनवरीपौषपूर्णिमा
  2. मंगलवार 14 जनवरीमकरसंक्रान्ति
  3. बुधवार 29 जनवरीमौनीअमावस्या
  4. सोमवार 3 फरवरीवसन्तपञ्चमी
  5. बुधवार 12 फरवरीमाघीपूर्णिमा
  6. बुधवार 26 फरवरीमहाशिवरात्रि

करवाचौथ व्रत 2024

करवाचौथ व्रत 2024

हम सभी परिचित हैं कि भारत के उत्तरी और पश्चिमी अंचलों में कार्तिक कृष्ण चतुर्थी को करवाचौथ व्रत अथवा करक चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है | करक का अर्थ होता है मिट्टी का पात्र और इसीलिए इस दिन मिट्टी के पात्र से चन्द्रमा को अर्घ्य देने की प्रथा है | इस वर्ष रविवार बीस अक्तूबर को पति, सन्तान तथा परिवार के सभी सदस्यों की दीर्घायु और उत्तम स्वास्थ्य की कामना से महिलाएँ करवाचौथ के व्रत का पालन करेंगी | करवाचौथ के व्रत का पारायण उस समय किया जाता है जब चन्द्र दर्शन के समय चतुर्थी तिथि रहे | इसीलिए यदि प्रातःकाल से चतुर्थी तिथि नहीं भी हो तो प्रायः तृतीया में व्रत रखकर तृतीयाचतुर्थी के सन्धिकालप्रदोष कालमें पूजा अर्चना का विधान है | कुछ स्थानों पर निशीथ कालमध्य रात्रिमें भी करवा चौथ की पूजा अर्चना की जाती है |

इस अवसर पर अन्य देवी देवताओं के साथ शिव परिवार की पूजा अर्चना की जाती है | सबसे पहले अखण्ड सौभाग्यवती माता पार्वती की पूजा की जाती है और फिर उनके पश्चात् श्री गणेश तथा शेष शिव परिवार की अर्चना की जाती है | चतुर्थी तिथि वैसे भी विघ्नहर्ता गणपति के लिए समर्पित होती है | करक चतुर्थी को प्रातःकाल सरगी लेने से पूर्व स्नानादि से निवृत्त होकर महिलाएँ संकल्प लेती हैंमम सुखसौभाग्यपुत्रपौत्रादि सुस्थिरश्रीप्राप्तये करकचतुर्थीव्रतमहं करिष्ये…” अर्थात अपने पति पुत्र पौत्रादि के सुख सौभाग्य की कामना से तथा स्थिर लक्ष्मी प्राप्त करने के उद्देश्य से मैं ये करक चतुर्थी का व्रत कर रही हूँ | इसके पश्चात माता पार्वती की पूजानमः शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं सन्ततिशुभाम्‌प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे ||” मन्त्र से की जाती है | तत्पश्चात गणेश, शंकर, कार्तिकेय आदि की पूजा करने के बाद दुग्ध अथवा जल से पूर्ण करक यानी करवे में कुछ दक्षिणा डालकर परिवार की बुज़ुर्ग महिलाओं अथवा अन्य किसी भी सम्माननीय महिला को दान किया जाता है | करवा दान करते समयकरकं क्षीरसम्पूर्णं तोयपूर्णमथापि वाददामि रत्नसंयुक्तं चिरञ्जीवतु मे पतिः ||” जिसका अर्थ है कि हे शंकरप्रिया, मैं अपने पति की दीर्घायु की कामना से रत्न (अथवा दक्षिणा) सहित दुग्ध अथवा जल से परिपूर्ण करवा यानी मिट्टी का पात्र दान कर रही हूँऔर फिर अन्त में चन्द्र दर्शन करके व्रत का पारायण किया जाता है |

इस वर्ष करवाचौथ के मुहूर्त:

चतुर्थी तिथि का आरम्भरविवार 20 अक्तूबर प्रातः 6:46 पर

चतुर्थी तिथि समाप्त सोमवार 21 अक्तूबर सूर्योदय से पूर्व 4:16 पर

20 अक्तूबर को सूर्योदय – 6:25 पर, सरगी – 6:25 तकबवकरणऔरव्यातिपतयोगमें

सायंकालीन पूजा का मुहूर्तसायं 5:46 से 7:02 तक मेष लग्न, बालवकरणऔरवरीयानयोगमें

अभिजित मुहूर्त मेंप्रातः 11:43 से 12:28 तक

चन्द्र दर्शन दिल्ली और उत्तराखण्ड तथा उसके आस पास के क्षेत्रों में रात्रि 7:54 के लगभग सम्भव है | शेष शहरों में वहाँ के पञ्चांग के अनुसार देखा जाएगा | चन्द्र दर्शन के समय वृषभ लग्न में चन्द्रमा भी अपनी उच्च राशि में रोहिणी नक्षत्र पर विचरण करेगा, साथ ही गुरुदेव के साथ मिलकर गज केसरी योग भी बना रहा है |

सरगी की प्रथा आरम्भ होने का सबसे बड़ा कारण यही है कि पहले छोटी आयु की बच्चियों के विवाह हो जाया करते थे | ऐसे में परिवार के लोगों को लगता था कि सारा दिन इतनी छोटी बच्ची के लिए भूखा प्यासा रहना कठिन होगाजिस कारण से एक ऐसा नियम ही बना दिया गया कि बच्चियाँ सूर्योदय से पूर्व कुछ हल्का भोजन जैसे फल इत्यादि ग्रहण कर लें ताकि सारा दिन उन्हें इस भोजन का पोषण उपलब्ध होता रहे | आज की भाँति अन्न से बने किसी खाद्य पदार्थ का भोजन नहीं किया जाता था क्योंकि ऐसा भोजन इस समय करना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है, साथ ही अन्न आलस्य का कारण भी होता है और व्रत उपवास में आलस्य के लिए कोई स्थान नहीं होता |

ऐसी मान्यता है कि सती ने अपने पति शिव के अपमान का बदला लेने के लिए अपने पिता दक्ष के यज्ञ का विध्वंस करने हेतु उनके यज्ञ की अग्नि में आत्मदाह कर लिया था | उसके बाद वे महाराज हिमालय की पुत्री के रूप में उनकी पत्नी मैना के गर्भ से पार्वती के रूप में उत्पन्न हुईं | उस समय भगवान शंकर को पतिरूप में प्राप्त करने के लिए बहुत से अन्य उपवासों के साथ इस व्रत का भी पालन किया था | अतः यह व्रत और इसकी पूजा शिवपार्वती को समर्पित होती है |

करवाचौथ एक आँचलिक पर्व है और उन अंचलों में इसके सम्बन्ध में बहुत सी कथाएँ प्रचलित हैं, व्रत के दौरान जिनका श्रवण सौभाग्यवती महिलाएँ करती हैं | उन सबमें महाभारत की एक कथा हमें विशेष रूप से आकर्षित करती है | इसके अनुसार अर्जुन शक्तिशाली अस्त्र प्राप्त करने के उद्देश्य से पर्वतों में तपस्या करने चले गए और बहुत समय तक वापस नहीं लौटे | द्रौपदी इस बात से बहुत चिन्तित थीं | तब भगवान कृष्ण ने उन्हें पार्वती के व्रत की कथा सुनाकर कार्तिक कृष्ण चतुर्थी का व्रत करने की सलाह दी थी |

करवाचौथ का पालन उत्तर भारत में प्रायः सभी विवाहित हिन्दू महिलाएँ चिर सौभाग्य की कामना से करती हैं | कुछ स्थानों पर उन लड़कियों से भी यह व्रत कराया जाता है जो विवाह योग्य होती हैं अथवा जिनका विवाह तय हो चुका है | यह व्रत पारिवारिक परम्पराओं तथा स्थानीय रीति रिवाज़ के अनुसार किया जाता है | व्रत की कहानियाँ भी पारिवारिक मान्यताओं के ही अनुसार अलग अलग हैं | लेकिन कहानी कोई भी हो, एक बात हर कहानी में समान है कि बहन को व्रत में भूखा प्यासा देख भाइयों ने नकली चाँद दिखाकर बहन को व्रत का पारायण करा दिया, जिसके फलस्वरूप उसके पति के साथ अशुभ घटना घट गई |

कथा एक लोक कथा ही है | किन्तु इस लोक कथा में इस विशेष दुर्घटना का चित्र खींचकर एक बात पर विशेष रूप से बल दिया गया है कि जिस दिन व्यक्ति नियम संयम और धैर्य का पालन करना छोड़ देगा उसी दिन से उसके कार्यों में बाधा पड़नी आरम्भ हो जाएगी | नियमों का धैर्य के साथ पालन करते हुए यदि कार्यरत रहे तो समय अनुकूल बना रह सकता है | वैसे भी यदि व्यावहारिक दृष्टिकोण से देखा जाए तोसौभाग्यशब्द से तात्पर्य केवलअखण्ड सुहागसे ही नहीं है, अपितु सौभाग्य का अर्थ है अच्छा भाग्य. .. जो प्राप्त होता है अच्छे तथा पूर्ण संकल्प से किये गए कर्मों सेअतः हम सभी नियम संयम की डोर को मज़बूती से थामे हुए सोच विचार कर हर कार्य करते हुए आगे बढ़ते रहें, इसी कामना के साथ सभी महिलाओं को करवाचौथ की हार्दिक शुभकामनाएँ

——-कात्यायनी

गुरु का वृषभ में गोचर

गुरु का वृषभ में गोचर

बुधवार एक मई, वैशाख कृष्ण अष्टमी को दिन में एक बजे के लगभग शुभ योग और बालव करण में देवगुरु बृहस्पति अपने मित्र मंगल की मेष राशि से निकाल कर शत्रु ग्रह शुक्र की वृषभ राशि में प्रस्थान कर जाएँगे, जहाँ 14 मई 2025 तक विश्राम करने का पश्चात एक अन्य शत्रु ग्रह बुध की मिथुन राशि में पहुँच जाएँगे | गुरुदेव इस समय कृत्तिका नक्षत्र पर विचरण कर रहे हैं | वृषभ राशि में भ्रमण करते हुए गुरुदेव 3 मई से 3 जून तक अस्त भी रहेंगे – जिसे सामान्य भाषा में तारा डूबना कहा जाता है और इस समय विवाह जैसे मांगलिक कार्यों की मनाही होती है | इसके अतिरिक्त नौ अक्टूबर 2024 से वक्री होते हुए 28 नवम्बर को रोहिणी नक्षत्र पर वापस आ जाएँगे | यहाँ से 4 फरवरी 2025 से मार्गी होते हुए पुनः दस अप्रैल 2025 को मृगशिर नक्षत्र पर आकर दस मई 2025 को रात्रि में 10:36 के लगभग मिथुन राशि में प्रविष्ट हो जाएँगे | कृत्तिका नक्षत्र के स्वामी सूर्य से गुरु की मित्रता है, रोहिणी नक्षत्र के स्वामी शुक्र और गुरु की परस्पर शत्रुता है तथा मृगशिर नक्षत्र के स्वामी मंगल के साथ गुरुदेव की मित्रता है | इस प्रकार इतना तो स्पष्ट है कि शत्रु ग्रह की राशि में गोचर करते हुए भी गुरुदेव अधिकाँश समय अपने मित्र ग्रहों के नक्षत्रों पर आरूढ़ रहेंगे | साथ ही यह भी सत्य है कि देवगुरु बृहस्पति तथा दैत्यगुरु भार्गव शुक्र दोनों ही ग्रह शुभ ग्रह माने जाते हैं | गुरु जहाँ ज्ञान, विज्ञान, बुद्धि, धर्म और आध्यात्म, राजनीति, कूटनीति के साथ-साथ भाग्य वृद्धि, विवाह तथा सन्तान और पिता के सुख के कारक हैं, तो वहीं शुक्र भौतिक सुख और ऐश्वर्य, भोग विलास, रोमांस, विवाह, सौन्दर्य तथा समस्त प्रकार की कलाओं के स्वामी हैं | अतः व्यावहारिक दृष्टि से देखा जाए तो ये दोनों ग्रह जब किसी न किसी रूप में परस्पर मिल जाएँ अथवा एक दूसरे के प्रभाव में आ जाएँ तो निश्चित रूप से कुछ चमत्कार की सम्भावना तो की ही जा सकती है |

राशियों की यदि बात करें तो, गुरु की एक राशि धनु के लिए वृषभ छठा भाव तथा दूसरी राशि मीन के लिए तीसरा भाव हो जाता है | वृषभ राशि के लिए गुरु अष्टमेश और एकादशेश हो जाता है | यहाँ उपस्थित होने पर गुरु की दृष्टियाँ कन्या, वृश्चिक तथा मकर राशियों पर रहेंगी, इस प्रकार धनु, मीन और वृषभ के साथ साथ ये तीनों राशियाँ भी इस गोचर से प्रभावित होंगी | इन्हीं समस्त तथ्यों के आधार जानने का प्रयास करते हैं कि सभी बारह राशियों के जातकों के लिए गुरु के वृषभ में गोचर के क्या सम्भावित परिणाम रह सकते हैं | “सम्भावित” इसलिए, क्योंकि ये सभी परिणाम चन्द्र राशि पर आधारित हैं, और चन्द्रमा एक राशि में लहभाग सवा दो दिन रहता है और इस अवधि में अनगिनत बच्चों का जन्म हो जाता है – और सबही के लिए तो कोई ग्रह एक समान नहीं हुआ करता | साथ ही, सबसे प्रमुख तो व्यक्ति अपना कर्म होता है जो किसी भी ग्रह दशा को अपने अनुकूल बनाने की सामर्थ्य रखता है…

प्रस्तुत है सभी बारह राशियों के जातकों के लिए गुरु के वृषभ में गोचर के सम्भावित परिणाम…

मेष : आपके लिए गुरु नवमेश तथा द्वादशेश है और आपके दूसरे भाव में गोचर कर रहा है, जहाँ से उसकी दृष्टियाँ आपकी राशि से छठे, आठवें और दशम भावों पर आ रही हैं | आपके लिए यह गोचर भाग्यवर्धक प्रतीत होता है | कार्यक्षेत्र में प्रगति के संकेत प्रतीत होते हैं | किसी जॉब में हैं तो वहाँ कोई प्रमोशन भी सम्भव है | अपने स्वयं का कार्य है तो आपको कुछ नवीन प्रोजेक्ट्स का लाभ हो सकता है जिनके कारण आप वर्ष भर व्यस्त रहते हुए धनोपार्जन कर सकते हैं | बहुत समय से यदि कुछ कार्य रुके हुए हैं अथवा उनमें किन्हीं कारणों से व्यवधान की स्थिति चल रही है तो वे कार्य भी पुनः आरम्भ होकर पूर्णता को प्राप्त हो सकते हैं | यदि कहीं से ऋण लिया हुआ है तो इस अवधि में उससे भी मुक्ति सम्भव है | किसी पुराने रोग से मुक्ति भी इस अवधि में सम्भव है | पैतृक सम्पत्ति का लाभ सम्भव है | कार्य के सिलसिले में दूर पास की यात्राओं के योग भी प्रतीत होते हैं | कलाकारों के लिए, अध्ययन अध्यापन के क्षेत्र से सम्बद्ध व्यक्तियों के लिए तथा राजनीति से सम्बन्ध रखने वाले जातकों के लिए यह गोचर बहुत अनुकूल प्रतीत होता है | माँ सम्मान में वृद्धि के साथ हाई आपको किसी पुरस्कार आदि से भी सम्मानित किया जा सकता है | धार्मिक और आध्यात्मिक गतिविधियों में वृद्धि के संकेत प्रतीत होते हैं |

वृषभ: आपके लिए आपके अष्टमेश और एकादशेश का गोचर आपकी लग्न में ही हो रहा है जहाँ से उसकी दृष्टियाँ आपके पँचम, सप्तम और नवम भावों पर रहेंगी | आपकी सोच इस अवधि में सकारात्मक बनी रहेगी जिसका लाभ आपको पारिवारिक और व्यावसायिक दोनों क्षेत्रों में दिखाई देगा | परिवार में प्रसन्नता का वातावरण बना रहेगा | सुख और भोग विलास के साधनों में वृद्धि की भी सम्भावना है | आप किसी नौकरी में हैं तो आपकी पदोन्नति के साथ हाई अर्थ लाभ और किसी पुरस्कार आदि की प्राप्ति की भी सम्भावना है | आपके साहस और निर्णायक क्षमता में वृद्धि के कारण आप न केवल अपने कार्य समय पर पूर्ण करने में सक्षम होंगे, अपितु अपनें अधीनस्थ कर्मचारियों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बन सकते हैं दूर पास की यात्राओं के भी योग प्रतीत होते हैं जो आपके लिए कार्य की दृष्टि से लाभदायक रहेंगी | नौकरी में अच्छा इंक्रीमेंट और बोनस प्राप्त हो सकता है जिसके कारण आप अपने ऋणों का समय पर भुगतान करके उनसे मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं | साथ ही आप अपनी फ़िज़ूलख़र्ची बन्द करके पैसा कहीं इन्वेस्ट भी कर सकते हैं ताकि भविष्य में उसका लाभ प्राप्त हो सके | दाम्पत्य जीवन में भी प्रगाढ़ता और आनन्द के संकेत प्रतीत होते हैं | धार्मिक और आध्यात्मिक गतिविधियों में वृद्धि के संकेत हैं | शारीरिक और मानसिक समस्याओं से मुक्ति के संकेत हैं |

मिथुन : आपके लिए गुरु आपका सप्तमेश और दशमेश होकर योगकारक हो जाता है और इस समय आपके बारहवें भाव में गोचर करेगा | यहाँ से गुरु की दृष्टियाँ आपके चतुर्थ भाव, छठे भाव तथा आठवें भाव पर होंगी | आपके लिए यह गोचर बहुत अधिक अनुकूल नहीं प्रतीत होता | कार्य स्थल पर कुछ कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है | अचानक हाई विरोध के सवार मुखर हो सकते हैं | अच्छा यही रहेगा कि अपने आँख कान खुले रखकर शान्ति के साथ अपने कार्य करते रहें | पिता अथवा जीवन साथी के साथ किसी प्रकार का माँ मटाव भी सम्भव है | इस अवधि में आपको कार्य के सिलसिले में यात्राएँ करनी पड़ सकती हैं जिनमें थकान बहुत अधिक होगी | यात्राओं के दौरान आपको अपने स्वास्थ्य का भी ध्यान रखने की आवश्यकता होगी | स्वास्थ्य अथवा कोर्ट कचहरी के चक्कर में धन भी बहुत अधिक ख़र्च हो सकता है जिसके कारण आपका बजट गड़बड़ा सकता है अतः इस ओर से सावधान रहने की आवश्यकता है | आपको लीवर तथा पेट से सम्बन्धित कोई बीमारी गम्भीर रूप धारण कर सकती है अतः अपने खान पर नियंत्रण रखने तथा समय पर डॉक्टर को दिखाने की आवश्यकता है | गर्भवती महिलाओं को भी विशेष रूप से सावधान रहने की आवश्यकता है | यदि कोई प्रेम प्रसंग चल रहा है तो उसे अभी विवाह की स्थिति तक न ले जाना ही आपके हित में रहेगा |

कर्क : आपके लिए गुरु आपका षष्ठेश तथा भाग्येश होकर आपके लाभ स्थान में गोचर कर रहा है, जहाँ से उसकी दृष्टियाँ आपके तृतीय भाव, पँचम भाव तथा सप्तम भावों पर हैं | आपके लिए या गोचर अनुकूल तथा भाग्यवर्धक प्रतीत होता है | जीवन में किसी क्षेत्र में यदि बहुत समय से कुछ बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है तो अब उन बाधाओं से मुक्ति का समय प्रतीत होता है | उच्च शिक्षा प्राप्त के रहे छात्रों को अनुकूल परिणाम प्राप्त हो सकते हैं | किसी नौकरी में हैं तो पदोन्नति सम्भव है | अपना स्वयं का व्यवसाय है तो उसमें भी प्रगति और धनलाभ की सम्भावनाएँ हैं | पार्टनरशिप में जिन लोगों का व्यवसाय है उनके लिए विशेष रूप से यह गोचर भाग्यवर्धक प्रतीत होता है | कोई नवीन प्रोजेक्ट भी इस अवधि में आप आरम्भ कर सकते हैं | कार्य से सम्बन्धित यात्राओं में वृद्धि की सम्भावना है | आय के नवीन स्रोत आपके समक्ष उपस्थित हो सकते हैं | सन्तान के जन्म के कारण उत्सव का वातावरण बनेगा | आपको अपने जीवन साथी के माध्यम से भी अर्थ लाभ की सम्भावना है | आपकी सन्तान की ओर से कोई शुभ समाचार इस अवधि में आपको प्राप्त हो सकता है | आध्यात्मिक गतिविधियों में वृद्धि की सम्भावना है |

सिंह : आपके लिए आपके पंचमेश और अष्टमेश का गोचर आपके दशम भाव में हो रहा है, जहाँ से आपके द्वितीय भाव, चतुर्थ भाव तथा छठे भाव पर उसकी दृष्टियाँ हैं | कार्य क्षेत्र में आपको सफलता प्राप्त होने के योग प्रतीत होते हैं | यदि आप एक वक़ील हैं, डॉक्टर हैं अथवा इन दोनों क्षेत्रों में से किसी क्षेत्र में अध्ययनरत हैं तो आपके लिए यह गोचर अत्यन्त भाग्यवर्धक प्रतीत होता है | पोलिटिक्स से सम्बद्ध जातकों के लिए भी यह गोचर अनुकूल फल देने वाला प्रतीत होता है | आपको कुछ विशेष ज़िम्मेदारियाँ आपकी पार्टी की ओर से दी जा सकती हैं जिनके कारण आपकी व्यसत्ताएँ भी बढ़ सकती हैं | जिन लोगों का पैतृक व्यवसाय है अथवा जो लोग प्रॉपर्टी से सम्बद्ध व्यवसाय में हैं उनके लिए भी यह गोचर अनुकूल प्रतीत होता है | आप अपने निवास को Renovate भी करा सकते हैं | सुख सुविधाओं के साधनों में भी रुचि बढ़ सकती है | कोई नवीन प्रॉपर्टी भी आप इस अवधि में ख़रीद सकते हैं | आपकी वाणी प्रभावशाली रहेगी जिसका लाभ आपको अपने कार्य में निश्चित रूप से प्राप्त होगा | किन्तु इसके साथ ही स्वास्थ्य का भी ध्यान रखने की आवश्यकता है | विशेष रूप से पेट और लीवर से सम्बन्धित समस्याएँ गम्भीर रूप धारण कर सकती है, अतः अपने खान पान पर नियंत्रण रखने की विशेष रूप से आवश्यकता है |

कन्या : आपके लिए चतुर्थेश तथा सप्तमेश होकर गुरु योगकारक हो जाता है और इस समय आपके भाग्य स्थान में गोचर करेगा जहाँ से उसकी दृष्टियाँ आपकी लग्न पर, तृतीय भाव पर तथा पँचम भावों पर रहेंगी | आपके लिए, आपकी सन्तान के लिए तथा छोटे भाई बहनों के लिए यह गोचर अत्यन्त भाग्यवर्धक प्रतीत होता है | एक ओर जहाँ आर्थिक स्थिति में सुधार और दृढ़ता की सम्भावना है वहीं प्रॉपर्टी से सम्बन्धित मामलों में भी लाभ की सम्भावना प्रतीत होती है | भौतिक सुख सुविधाओं में वृद्धि के साथ हाई आप कोई नवीन प्रॉपर्टी भी इस अवधि में ख़रीद सकते हैं | नौकरी में हैं तो पदोन्नति की सम्भावना है | अपने स्वयं का व्यवसाय है, अथवा पार्टनरशिप में कोई व्यवसाय कर रहे हैं तो उसमें भी उन्नति और अर्थ लाभ की सम्भावना है | परिवार में आनन्द का वातावरण बना रहेगा | समाज में मान सम्मान तथा प्रतिष्ठा में वृद्धि की सम्भावना है | उच्च शिक्षा के लिए विदेश जा सकते हैं अथवा अपनी सन्तान को भेज सकते हैं | छात्रों को अनुकूल परिणाम की सम्भावना की जा सकती है | आपके जीवन साथी के माध्यम से भी अर्थ लाभ की सम्भावना है | कार्य के सिलसिले में दूर पास की यात्राओं के योग भी प्रतीत होते हैं | नौकरी में हैं तो अधिकारी वर्ग का सहयोग आपको उपलब्ध रहेगा | धार्मिक तथा आध्यात्मिक गतिविधियों में वृद्धि हो सकती है | छोटे भाई बहनों के साथ यदि कुछ समय से मतभेद चल रहा है तो वह भी इस अवधि में दूर हो सकता है |

तुला : आपके लिए गुरु आपका तृतीयेश तथा षष्ठेश है और आपके अष्टम भाव में गोचर कर रहा है, जहाँ से इसकी दृष्टियाँ आपके द्वादश भाव, द्वितीय भाव तथा चतुर्थ भाव पर आ रही हैं | अष्टम भाव से जीवन में आकस्मिक घटनाओं का विचार किया जाता है | आपके लिए यह गोचर कुछ अधिक अनुकूल नहीं प्रतीत होता | सर्वप्रथम तो अचानक ही ऐसी यात्राएँ करनी पड़ सकती हैं जिनके कारण धन की हानि होने के साथ ही कष्ट भी प्राप्त हो सकता है | यदि यात्रा करनी पड़ जाए तो अपने महत्त्वपूर्ण काग़ज़ों को सम्हाल कर रखने की आवश्यकता है | परिवारजनो के साथ सम्पत्ति को लेकर भी किसी प्रकार का वैमनस्य भी सम्भव है | इससे पूर्व कि विवाद कोर्ट तक पहुँचे, बात को सम्हालने का प्रयास आपके हित में होगा, अन्यथा धन और सम्मान दोनों की हानि सम्भव है | नौकरी और व्यवसाय में भी कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है | यदि कहीं पैसा इन्वेस्ट किया हुआ तो उसकी वापसी में सन्देह है | कार्य स्थल पर कुछ गुप्त शत्रु आपकी छवि धूमिल करने का प्रयास कर सकते हैं, अतः अपने आँख और कान खुले रखने की आवश्यकता है | यदि आपने अपनी वाणी पर नियंत्रण नहीं रखा तो आपको उसका परिणाम भुगतना पड़ सकता है | साथ ही खान पान पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है | आपके लिए यह समय आत्म मन्थन का समय है, अतः हर ओर से ध्यान हटाकर बृहस्पति के मन्त्र का जाप करें तथा भविष्य के लिए योजनाएँ तैयार करें |

वृश्चिक : आपके लिए आपके द्वितीयेश तथा पंचमेश का गोचर आपके सप्तम भाव में हो रहा है, जहाँ से आपके लाभ स्थान, लग्न तथा तृतीय भाव पर उसकी दृष्टियाँ हैं | आपके लिए यह गोचर भाग्यवर्धक रहने की सम्भावना है | यदि विवाह की योजना है तो वह इस अवधि में सम्भव है | विवाहित हैं तो दाम्पत्य जीवन में आनन्द रहेगा तथा आप सन्तान के लिए भी प्रयास कर सकते हैं | आपके वर्तमान व्यवसाय में लाभ की आशा की जा सकती है | कोई नवीन कार्य भी आप इस अवधि में आरम्भ कर सकते हैं | आपको अपने कार्य में मित्रों का तथा परिवार जनों का पूर्ण सहयोग प्राप्त रहेगा | बहन भाइयों के साथ सम्बन्धों में मधुरता में वृद्धि होगी | समाज में माँ सम्मान में वृद्धि के योग हैं | आपको तथा आपके जीवन साथी के लिए अर्थलभ सम्भव है | यदि कहीं पैसा इन्वेस्ट किया हुआ तो उसकी वापसी भी इस अवधि में सम्भव है | अध्ययन अध्यापन से सम्बन्धित जिनका कार्य है उनके लिए भी समय अनुकूल प्रतीत होता है | आपकी वाणी इस समय अत्यन्त प्रभावशाली है जिसका लाभ आपको अपने कार्य में निश्चित रूप से प्राप्त होगा | आपका कोई शोध प्रबन्ध इस अवधि में पूर्ण होकर प्रकाशित हो सकता है और उसके कारण आपको कोई पुरस्कार भी प्राप्त हो सकता है | कार्य से सम्बन्धित यात्राएँ सुखकर तथा लाभदायक रहेंगी | सन्तान की ओर से कोई शुभ समाचार प्राप्त हो सकता है | छात्रों के लिए अनुकूल परिणाम की आशा की जा सकती है |

धनु : आपके लिए आपका लग्नेश और चतुर्थेश होकर योगकारक हो जाता है तथा इस समय आपके छठे भाव में गोचर करेगा, जहाँ से इसकी दृष्टियाँ आपके दशम, द्वादश तथा द्वितीय भाव पर रहेंगी | छठे भाव से क़ानूनी समस्याओं, स्वास्थ्य तथा प्रतियोगिता इत्यादि का विचार किया जाता है | आपके लिए यह गोचर मिश्रित फल देने वाला प्रतीत होता है | आपको अपने प्रयासों में सफलता तो प्राप्त होगी, किन्तु उसके लिए आपको अधिक प्रयास करने की आवश्यकता होगी | आपको अपने स्वयं के अथवा परिवार में किसी व्यक्ति के स्वास्थ्य से सम्बन्धित समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है तथा उनके कारण पैसा भी अधिक खर्च हो सकता है | आपको स्वयं को अथवा परिवार में किसी अन्य व्यक्ति को अस्पताल में भी भर्ती होना पड़ सकता है | जिन परिवारजनों के लिए आप पूर्ण रूप से समर्पित हैं उन्हीं के साथ मन मुटाव के चलते आपको मानसिक कष्ट का भी आपको अनुभव हो सकता है | यदि किसी नौकरी में हैं तो अपने अधिकारी वर्ग को प्रसन्न रखने के लिए भी आपको बहुत अधिक प्रयास करना पड़ सकता है | विवाहित हैं तो ससुराल पक्ष की ओर से भी किसी प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है | आय से अधिक ख़र्च होने के कारण आपका बजट भी गड़बड़ा सकता है | आपके लिए आवश्यक है कि कार्य से सम्बन्धित अपनी योजनाओं के विषय में अपने मित्रों से कुछ विचार विमर्श न करें | साथ ही बृहस्पति के मन्त्र का जाप आपके लिए विपरीत प्रभाव को कम करेगा |

मकर : आपके लिए गुरु आपके तृतीय और द्वादश भावों का स्वामी है तथा आपके योगकारक शुक्र की राशि में पँचम भाव में गोचर करेगा, जहाँ से उसकी दृष्टियाँ आपके भाग्य स्थान, लाभ स्थान तथा लग्न पर रहेंगी | परिवार में किसी बच्चे के जन्म के कारण आनन्द और उत्सव का वातावरण बनेगा | यदि जीवन साथी की तलाश है तो वह इस अवधि में पूर्ण हो सकती है | आपकी सन्तान उच्च शिक्षा के लिए कहीं विदेश जा सकती है | आप यदि किसी नौकरी में हैं तो पदोन्नति के साथ ही किसी अन्य स्थान पर ट्रांसफ़र की भी सम्भावना है | आर्थिक दृष्टि से यह ट्रांसफ़र आपके हित में रहेगा | हाथ के कारीगरों के लिए विशेष रूप से यह गोचर अनुकूल प्रतीत होता है | आपकी कलाकृतियों की एग्जीविशन लग सकती हैं जिनमें आपके कार्य की प्रशंसा होगी | इन प्रदर्शनियों के लिए आपको दूर पास की यात्राओं के अवसर भी उपलब्ध हो सकते हैं | आपका अपना स्वयं का व्यवसाय है अथवा आप अपने पैतृक व्यवसाय में हैं या उनके साथ पार्टनरशिप में कोई कार्य कर रहे हैं तो आपके लिए व्यापार में उन्नति और अर्थलाभ की सम्भावना प्रबल है | पिता, बड़े भाई, मित्रों तथा अधिकारी वर्ग का सहयोग आपको उपलब्ध रहेगा | परिवार में माँगलिक कार्यों का आयोजन हो सकता है | आपकी रुचि धार्मिक गतिविधियों में बढ़ सकती है | स्वास्थ्य की दृष्टि से भी यह गोचर अनुकूल प्रतीत होता है |

कुम्भ : गुरु आपके द्वितीय और एकादश भावों का स्वामी है तथा इस समय आपके लिए योगकारक ग्रह शुक्र की राशि में आपके चतुर्थ भाव में गोचर करेगा | यहाँ से गुरु की दृष्टियाँ आपके अष्टम भाव, दशम भाव तथा बारहवें भाव पर रहेंगी | चतुर्थ भाव से मुख्य रूप से मानसिक शक्ति, भौतिक सुख सुविधाओं, परिवार तथा माता का विचार किया जाता है | एक ओर जहाँ किन्हीं कारणों से आप मानसिक अशान्ति का अनुभव कर सकते हैं, वहीं दूसरी ओर आपकी आर्थिक स्थिति में सुधार तथा दृढ़ता आने की भी सम्भावना है | हाँ इतना अवश्य है कि आपको बजट बनाकर चलना होगा ताकि अनावश्यक ख़र्चों से बचा जा सके | जो लोग अध्ययन अध्यापन के क्षेत्र में कार्यरत हैं, मैनेजमेंट जैसे किसी व्यवसाय में हैं अथवा कम्प्यूटर आदि से सम्बन्धित कोई कार्य है तो उनके लिए यह गोचर बहुत अनुकूल रह सकता है | कार्य स्थल पर चली आ रही समस्याओं से मुक्ति की आशा इस अवधि में की जा सकती है | आपकी अपने कार्य से सम्बन्धित कोई पुस्तक इस अवधि में प्रकाशित हो सकती है जिसके कारण आपको कोई पुरस्कार आदि भी प्राप्त हो सकता है | आपका स्वयं का व्यवसाय है तो आप उसका भी विस्तार इस अवधि में कर सकते हैं | यदि आपका कार्य विदेश से सम्बन्धित है तो आपके लिए यह गोचर अत्यन्त अनुकूल फल दे सकता है | साथ ही पोलिटिक्स से सम्बन्ध रखने वाले जातकों के लिए भी यह गोचर अनुकूल प्रतीत होता है | किन्तु जैसा कि पूर्व में लिखा है, सम्भवतः कार्य की अधिकता के कारण अथवा सन्तुष्ट न होने के अपने स्वभाव के कारण आपको मानसिक अशान्ति अथवा तनाव का अनुभव हो सकता है | इसके लिए यदि आप ध्यान और प्राणायाम के अभ्यास करते हैं तो ये आपके लिए उचित रहेंगे |

मीन : आपके लिए गुरु आपका लग्नेश और दशमेश होकर आपके लिए योगकारक हो जाता है और इस समय आपके तृतीय भाव में गोचर करने जा रहा है, जहाँ से इसकी दृष्टियाँ आपके सप्तम भाव, भाग्य स्थान तथा लाभ स्थान पर रहेंगी | आपके तथा आपके जीवन साथी के लिए पराक्रम और उत्साह में वृद्धि के संकेत हैं | यह गोचर आपके लिए भाग्यवर्धक प्रतीत होता है | हाथ के कारीगरों, कलाकारों, मीडिया आदि से सम्बन्ध रखने वाले जातकों तथा लेखन आदि से जुड़े जातकों के लिए तो यह गोचर निश्चित रूप से अत्यन्त अनुकूल प्रतीत होता है | आपके कार्य की प्रशंसा के साथ ही आपकी आर्थिक स्थिति भी सुदृढ़ होने की सम्भावना है | अपना स्वयं का व्यवसाय है और उसमें यदि कुछ समय से समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था तो अब उन समस्याओं से मुक्ति का समय प्रतीत होता है | आपको अधिकारी वर्ग का, पिता का, भाई बहनों, जीवन साथी तथा मित्रों का समुचित सहयोग इस अवधि में उपलब्ध रहेगा | परिवार में आनन्द का वातावरण बना रहेगा जिसके कारण आपक पूर्ण मनोयोग से अपने कार्य पूर्ण करने में सक्षम होंगे | कुछ नवीन प्रोजेक्ट्स भी आपको प्राप्त हो सकते हैं जिनके कारण आप दीर्घ समय तक व्यस्त रहते हुए अर्थ लाभ कर सकते हैं | धार्मिक और आध्यात्मिक गतिविधियों में आपकी रुचि में वृद्धि की सम्भावना है | आप तीर्थाटन के लिए भी जा सकते हैं | किन्तु इतना ध्यान रहे कि पोंग पण्डितों के झाँसे में न आने पाएँ |

अन्त में, सबसे प्रमुख व्यक्ति का अपना कर्म होता है | यदि हम कर्मशील रहते हुए अपने लक्ष्य की ओर हम सभी अग्रसर रहे तो निश्चित रूप से गुरुदेव हमारी सहायता अवश्य करेंगे |

 

 

वर्ष 2024 मे पञ्चक

वर्ष 2024 मे पञ्चक

नमस्कार मित्रों ! वर्ष 2023 को विदा करके वर्ष 2024 आने वाला है… सर्वप्रथम सभी को वर्ष 2024 के लिये अनेकशः हार्दिक शुभकामनाएँ… हर वर्ष की भाँति इस वर्ष भी नूतन वर्ष के आरम्भ से पूर्व प्रस्तुत है वर्ष 2024 में आने वाले पञ्चकों की एक तालिका… किन्तु तालिका प्रस्तुत करने से पूर्व आइये जानते हैं कि पञ्चक वास्तव में होते क्या हैं |

पञ्चकों का निर्णय चन्द्रमा की स्थिति से होता है | घनिष्ठा से रेवती तक पाँच नक्षत्र पञ्चक समूह में आते हैं | अर्थात घनिष्ठा, शतभिषज, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद और रेवती नक्षत्रों में जब चन्द्रमा होता है तब यह स्थिति नक्षत्र पञ्चक – पाँच विशिष्ट नक्षत्रों का समूह – कहलाती है | इनमें दो नक्षत्र – पूर्वा भाद्रपद और रेवती – सात्विक नक्षत्र हैं, तथा शेष तीन – शतभिषज धनिष्ठा और उत्तरभाद्रपद – तामसी नक्षत्र हैं | इन पाँचों नक्षत्रों में चन्द्रमा क्रमशः कुम्भ और मीन राशियों पर भ्रमण करता है | अर्थात चन्द्रमा के मेष राशि में आ जाने पर पञ्चक समाप्त हो जाते हैं | इस प्रकार वर्ष भर में कई बार पञ्चकों का समय आता है |

वास्तव में तो धनिष्ठा के तृतीय चरण से लेकर रेवती के अन्त तक का समय पञ्चक का समय माना जाता है – यानी धनिष्ठा के दो पाद, शतभिषज, दोनों भाद्रपद और रेवती के चारों पाद पञ्चक समूह में आते हैं | पञ्चकों को प्रायः किसी भी शुभ कार्य के लिए अशुभ माना गया है | इस अवधि में बच्चे का नामकरण तो नितान्त ही वर्जित है | ऐसी भी मान्यता है कि पञ्चक में यदि किसी का स्वर्गवास हो जाए तो पञ्चकों के समाप्त होने की प्रतीक्षा करनी चाहिए और उसकी समस्त क्रियाएँ पञ्चकों की समाप्ति पर कुछ शान्ति उपायों के साथ सम्पन्न करनी चाहियें | अर्थात पञ्चक काल में शव का दाह संस्कार नहीं करना चाहिए अन्यथा परिवार के लिए शुभ नहीं होता |

पञ्चकों के अलग अलग वार के अनुसार अलग अलग फल होते हैं | जैसे सोमवार को यदि पञ्चकों का आरम्भ हो तो उन्हें राज पञ्चक कहा जाता है जो शुभ माना जाता है | यदि “राज पञ्चक” की मान्यता को मानें तो इसका अर्थ यह हुआ कि इस अवधि में कोई शुभ कार्य भी किया जा सकता है | इसके अतिरिक्त रविवार को आरम्भ होने वाले पञ्चकों को रोग पञ्चक माना जाता है, शुक्रवार को आरम्भ होने वाले पञ्चकों को चोर पञ्चक और मंगलवार को आरम्भ होने वाले पञ्चकों को अग्नि पञ्चक माना जाता है | नाम से ही स्पष्ट है कि मान्यता के अनुसार इन पञ्चकों में रोग, आग लगने अथवा चोरी आदि का भय हो सकता है | जैसे धनिष्ठा नक्षत्र में कोई कार्य आरम्भ करने से अग्नि का भय हो सकता है, शतभिषज में क्लेश का भय, पूर्वाभाद्रपद रोगकारक, उत्तर भाद्रपद में दण्ड का भय तथा रेवती नक्षत्र में कोई कार्य आरम्भ करने पर धनहानि का भय माना जाता है | इनके अतिरिक्त गुरुवार और बुधवार को आरम्भ होने वाले पञ्चकों को सदा शुभ माना जाता है |

कुछ अन्य कार्यों की भी मनाही पञ्चकों के दौरान होती है – जैसे दक्षिण दिशा की यात्रा नहीं करनी चाहिए | लेकिन आज के प्रतियोगिता के युग में यदि किसी व्यक्ति का नौकरी के लिए इन्टरव्यू उसी दिन हो और उसे दक्षिण दिशा की ही यात्रा करनी पड़ जाए तो वह कैसे इस नियम का पालन कर सकता है ? यदि पञ्चकों के भय से वह इन्टरव्यू देने नहीं जाएगा तो जो कार्य उसे मिलने की सम्भावना हो सकती थी वह कार्य उसके हाथ से निकल कर किसी और को मिल सकता है |

एक और मान्यता है कि पञ्चकों के एक विशेष नक्षत्र में लकड़ी इत्यादि इकट्ठा करने का या छत आदि डलवाने का कार्य नहीं करना चाहिए | लेकिन आज जिस प्रकार की व्यस्तताओं में हर व्यक्ति घिरा हुआ है उसके चलते ऐसा भी तो हो सकता है कि व्यक्ति को उसी दिन अपने ऑफिस से अवकाश मिला हो और उसी दिन उसे वह कार्य सम्पन्न करना हो ?

ऐसी भी मान्यता है कि इस अवधि में किया कोई भी कार्य पाँचगुना फल देता है | इस स्थिति में तो इस अवधि में किये गए शुभ कार्यों का फल भी पाँच गुना प्राप्त होना चाहिए – केवल अशुभ कार्यों का ही फल पाँच गुणा क्यों हो ? सम्भवतः इसी विचार के चलते कुछ लोगों ने ऐसा विचार किया कि पञ्चक केवल अशुभ ही नहीं होते, शुभ भी हो सकते हैं | इसीलिए पञ्चकों में सगाई, विवाह आदि शुभ कार्य करना अच्छा माना जाता है | पञ्चक के अन्तर्गत आने वाले तीन नक्षत्र – पूर्वा भाद्रपद, उत्तर भाद्रपद और रेवती – में से कोई यदि रविवार को आए तो वह बहुत शुभ योग तथा कार्य में सफलता प्रदान करने वाला माना जाता है |

इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए हमारी ऐसी मान्यता है कि ज्योतिष के प्राचीन सूत्रों को – प्राचीन मान्यताओं को – आज की परिस्थितियों के अनुकूल उन पर शोध कार्य करके यदि संशोधित नहीं किया जाएगा तो उनका वास्तविक लाभ उठाने से हम वंचित रह सकते हैं | वैसे भी ज्योतिष के आधार पर कुण्डली का फल कथन करते समय भी देश-काल-व्यक्ति का ध्यान रखना आवश्यक होता है | तो फिर विशिष्ट शुभाशुभ कालों पर भी इन सब बातों पर विचार करना चाहिए | साथ ही हर बात का उपाय होता है | किसी भी बात से भयभीत होने की अपेक्षा यदि उसके उपायों पर ध्यान दिया जाए तो उस निषिद्ध समय का भी सदुपयोग किया जा सकता है |

तोअपने कर्तव्य कर्मों का पालन करते हुए हम सभी का जीवन मंगलमय रहे और सब सुखी रहें… इसी भावना के साथ प्रस्तुत है वर्ष 2024 में आने वाले पञ्चकों की एक तालिका…

शनिवार 13 जनवरी रात्रि 11:35  से गुरूवार 18 जनवरी अर्धरात्रयोत्तर 03:33 तक – मृत्यु पञ्चक

शनिवार 10 फ़रवरी प्रातः 10:02 से बुधवार 14 फ़रवरी प्रातः 10:43 तक – मृत्यु पञ्चक

शुक्रवार 08 मार्च रात्रि 9:20 से मंगलवार 12 मार्च रात्रि 8:29 तक – चोर पञ्चक

शुक्रवार 05 अप्रैल प्रातः 07:12 से मंगलवार 09 अप्रैल प्रातः 07:32 तक – चोर पञ्चक

गुरूवार 02 मई दिन में 2:32 से सोमवार 06 मई सायं 5:43 तक

बुधवार 29 मई रात्रि 8:06 से सोमवार 03 जून अर्ध रात्रि में 01:40 तक

बुधवार 26 जून अर्ध रात्रि में 01:49 से रविवार 30 जून प्रातः 07:34 तक

मंगलवार 23 जुलाई प्रातः 09:20 से शनिवार 27 जुलाई दिन में 1 बजे तक – अग्नि पञ्चक

सोमवार 19 अगस्त रात्रि 7 बजे से शुक्रवार 23 अगस्त रात्रि 7:54 तक – राज पञ्चक

सोमवार 16 सितम्बर प्रातः 05:44 से शुक्रवार 20 सितम्बर प्रातः 05:15 तक – राज पञ्चक

रविवार 13 अक्टूबर अपराह्न 3:44 से गुरूवार 17 अक्टूबर सायं 4:20 तक – रोग पञ्चक

शनिवार 09 नवम्बर रात्रि 11:27 से गुरूवार 14 नवम्बर अर्धरात्रयोत्तर  03:11 तक – मृत्यु पञ्चक

शनिवार 07 दिसम्बर प्रातः 05:07 से बुधवार 11 दिसम्बर प्रातः 11:48 तक – मृत्यु पञ्चक

अन्त में इतना हीकि ज्योतिष के प्राचीन सूत्रों को – प्राचीन मान्यताओं को – आज की परिस्थितियों के अनुकूल उन पर शोध कार्य करके यदि संशोधित नहीं किया जाएगा तो उनका वास्तविक लाभ उठाने से हम वंचित रह सकते हैं | वैसे भी ज्योतिष के आधार पर कुण्डली का फल कथन करते समय भी देश-काल-व्यक्ति का ध्यान रखना आवश्यक होता है | तो फिर विशिष्ट शुभाशुभ काल निर्णय के लिए भी इन सब बातों पर विचार करना चाहिए | साथ ही हर बात का उपाय होता है |

अन्त में यही कहेंगे कि किसी भी प्रकार के अन्धविश्वास से भयभीत होने की अपेक्षा अपने कर्म पर बल देना चाहिए… इसी भावना के साथ वर्ष 2024 की सभी को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ…

 

अमावस्या और पूर्णिमा व्रत 2024

अमावस्या और पूर्णिमा व्रत 2024

नमस्कार मित्रों ! वर्ष 2023 को विदा करके वर्ष 2024 आने वाला है… सर्वप्रथम सभी को इस नववर्ष की अनेकशः हार्दिक शुभकामनाएँ… हर वर्ष की भाँति इस वर्ष भी नूतन वर्ष के आरम्भ से पूर्व प्रस्तुत है वर्ष 2024 में आने वाली सभी अमावस्याओं और पूर्णिमा व्रत की एक तालिका…

एकादशी और प्रदोष व्रत के बाद पूर्णिमा और अमावस्या आती हैं | वैदिक पञ्चांग के अनुसार मास के तीस दिनों को चन्द्रमा की कलाओं के आधार पर पन्द्रह-पन्द्रह दिनों के दो

अमावस्या 2024
अमावस्या 2024

पक्षों में विभाजित किया गया है – जिनमें शुक्ल प्रतिपदा से लेकर पूर्णिमा तक के पन्द्रह दिन शुक्ल पक्ष कहलाते हैं तथा कृष्ण प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक के पन्द्रह दिन कृष्ण पक्ष के अन्तर्गत आते हैं | इस प्रकार प्रत्येक वर्ष में बारह अमावस्या और बारह ही पूर्णिमा तिथि उदय होती हैं | जो लोग मास को अमान्त मानते हैं उनके अनुसार अमावस्या को मास की समाप्ति होकर उसके दूसरे दिन यानी शुक्ल प्रतिपदा से दूसरे मास का आरम्भ होता है, और जो लोग मास को पूर्णिमान्त मानते हैं उनके अनुसार पूर्णिमा को एक मास पूरा होकर कृष्ण प्रतिपदा से दूसरा मास आरम्भ होता है | इस प्रकार वर्ष भर में बारह पूर्णिमा और बारह ही अमावस्या आती हैं और अमावस्या का स्वामी पितृगणों को माना गया है |

कुछ अमावस्याओं को उनके मास के नाम से ही जाना जाता है, किन्तु कुछ अमावस्याएँ दर्श अमावस्या कहलाती हैं | ऐसा इसलिए कि यों तो हर अमावस्या को पितृगणों के लिए तर्पण किया जाता है, किन्तु कुछ अमावस्याओं को पितृगणों का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है अतः उस अमावस्या को पितरों का तर्पण अत्यन्त शुभ माना जाता है और उसे दर्श अमावस्या कहा जाता है |

इस दिन अन्वाधान की प्रक्रिया भी होती है, जब वैष्णव समाज के लोग उपवास रखकर भगवान विष्णु के सभी रूपों की तथा पितृगणों की पूजा अर्चना करते हैं और एक दूसरे को शान्ति और सुख की प्राप्ति के लिए शुभकामनाएँ देते हैं | माना जाता है कि अन्वाधान और इशिता अथवा इष्टि का उपवास रखने से सुख शान्ति की प्राप्ति तथा सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है |

साथ ही प्रत्येक अमावस्या तिथि माता लक्ष्मी के लिए भी समर्पित होती है अतः इस दिन लक्ष्मी का भी विशेष महत्त्व माना गया है | इसके अतिरिक्त ज्योतिष शास्त्र के अनुसार चन्द्रमा मन का कारक होता है और अमावस्या के दिन चन्द्रमा के दर्शन नहीं होते | साथ ही धर्मग्रन्थों में चन्द्रमा को सोलहवीं कला को “अमा” कहा गया है | इस दिन चन्द्रमा और सूर्य दोनों प्रायः एक ही राशि में होते हैं | इन्हीं सब कारणों से इस दिन सूर्यदेव तथा चन्द्र दोनों की ही उपासना को विशेष महत्त्व दिया गया है | सूर्य ग्रहण की आकर्षक खगोलीय घटना भी जब घटती है तो उस दिन अमावस्या तिथि ही होती है – जब चन्द्रमा के विपरीत दिशा में सूर्य होने के कारण पृथिवी पर चन्द्रमा की छाया पड़ती है और सूर्य हमें दिखाई नहीं पड़ता – अर्थात सूर्य तथा पृथिवी के मध्य में चन्द्रमा आ जाता है |

यों तो धार्मिक दृष्टि से प्रत्येक अमावस्या का ही महत्त्व है, किन्तु उनमें से भी कुछ अमावस्याओं का अधिक महत्त्व माना गया ही – जो हैं – सोमवती अर्थात सोमवार को आने वाली अमावस्या, भौमवती अर्थात मंगलवार को आने वाली अमावस्या, शनि अमावस्या, मौनी अमावस्या, दीपावली अमावस्या तथा पितृविसर्जनी अमावस्या का भी बहुत महत्त्व शास्त्रों में माना गया है |

इसी प्रकार प्रायः सभी हिन्दू परिवारों में पूर्णिमा के व्रत को बहुत महत्त्व दिया जाता है | इसका कारण सम्भवतः यही है कि इस दिन चन्द्रमा अपनी समस्त कलाओं के साथ प्रकाशित होकर जगत का समस्त अन्धकार दूर करने का प्रयास करता है | साथ ही चन्द्रमा का सम्बन्ध भगवान शिव के साथ माना जाने के कारण भी सम्भवतः पूर्णिमा के व्रत को इतना अधिक महत्त्व पुराणों में दिया गया होगा | साथ ही बारह मासों की बारह पूर्णिमा के दिन कोई न कोई विशेष पर्व अवश्य रहता है | जैसे मतावलम्बी पौष पूर्णिमा को पुष्याभिषेक यात्रा आरम्भ करते हैं | वैशाख पूर्णिमा भगवान् बुद्ध के लिए समर्पित है और इस प्रकार बौद्ध मतावलम्बियों के लिए भी इसका महत्त्व बहुत अधिक बढ़ जाता है | कार्तिक पूर्णिमा के दिन समस्त सिख समुदाय गुरु नानक देव का जन्म दिवस प्रकाश पर्व के रूप में बड़ी धूम धाम से मनाता है | अमावस्या की हाई भाँति एक आकर्षक खगोलीय घटना चन्द्रग्रहण भी पूर्णिमा को ही घटित होती है जब चन्द्र राहु और केतु एक समान अंशों पर आ जाते हैं और चन्द्रमा पर पृथिवी की छाया पड़ती है | माना जाता है समुद्र में ज्वार भी पूर्ण चन्द्रमा की रात्रि को ही उत्पन्न होता है |

पूर्णिमा के व्रत की तिथि के विषय में कुछ आवश्यक बातों पर हमारे विद्वज्जन बल देते हैं | सर्वप्रथम तो यह कि पूर्णिमा का व्रत पूर्णिमा के दिन भी किया जा सकता है और चतुर्दशी के दिन भी | किन्तु किस दिन किया जाना है यह निर्भर करता है इस बात पर कि पहले दिन पूर्णिमा किस समय आरम्भ हो रही है और दूसरे दिन किस समय तक रहेगी | यदि चतुर्दशी की मध्याह्न में पूर्णिमा आरम्भ होती है तो उस दिन पूर्णिमा का व्रत किया जाता है | किन्तु यदि मध्याह्न के बाद किसी समय अथवा सायंकाल में पूर्णिमा आरम्भ होती है तो इस दिन पूर्णिमा का व्रत नहीं किया जाता, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस स्थिति में पूर्णिमा में चतुर्दशी का दोष आ गया है | इस स्थिति में दूसरे दिन ही पूर्णिमा का व्रत किया जाता है |

यों प्रत्येक पूर्णिमा का ही धार्मिक दृष्टि से महत्त्व है – किन्तु इनमें भी कार्तिक पूर्णिमा, माघ पूर्णिमा, शरद पूर्णिमा, गुरु पूर्णिमा, श्रावण पूर्णिमा तथा बुद्ध पूर्णिमा का विशेष महत्त्व माना गया है |

अस्तु, प्रस्तुत है वर्ष 2024 में आने वाली सभी अमावस्याओं और पूर्णिमा व्रत की एक तालिका…

  • गुरुवार 11 जनवरी – पौष अमावस्या – दर्श अमावस्या / अन्वाधान
  • गुरुवार 25 जनवरी – पौष पूर्णिमा – शाकम्भरी पूर्णिमा
  • शुक्रवार 9 फरवरी – माघी अमावस्या – मौनी अमावस्या / दर्श अमावस्या/ अन्वाधान
  • शनिवार 24 फरवरी – माघ पूर्णिमा
  • रविवार 10 मार्च – फाल्गुन अमावस्या – दर्श अमावस्या / अन्वाधान
  • सोमवार 25 मार्च – फाल्गुन पूर्णिमा – वसन्त पूर्णिमा / होली / धुलैंडी
  • सोमवार8 अप्रैल – चैत्र अमावस्या – सोमवती अमावस्या / अन्वाधान / दर्श अमावस्या
  • मंगलवार 23 अप्रैल – चैत्र पूर्णिमा – हनुमान जन्मोत्सव
  • मंगलवार 7 मई – वैशाख अमावस्या– अन्वाधान / दर्श अमावस्या /
  • बुधवार 8 मई – वैशाख अमावस्या – इष्टि
  • गुरुवार 23 मई – वैशाख पूर्णिमा – बुद्ध पूर्णिमा / कूर्म जयन्ती
  • गुरुवार 6 जून – ज्येष्ठ अमावस्या– अन्वाधान / दर्श अमावस्या / वट सावित्री अमावस्या / शनि जयन्ती
  • शुक्रवार 21 जून – ज्येष्ठ पूर्णिमा – वट पूर्णिमा व्रत
  • शुक्रवार 5 जुलाई – आषाढ़ अमावस्या– दर्श अमावस्या / अन्वाधान
  • रविवार 21 जुलाई – आषाढ़ पूर्णिमा – गुरु पूर्णिमा / व्यास पूजा
  • रविवार 4 अगस्त – श्रावण अमावस्या – अन्वाधान / दर्श
  • सोमवार 19 अगस्त – श्रावण पूर्णिमा– श्रावणी / रक्षा बन्धन / गायत्री जयन्ती
  • सोमवार 2 सितम्बर – भाद्रपद अमावस्या– सोमवती अमावस्या / अन्वाधान / दर्श अमावस्या / पिठौरी अमावस्या
  • मंगलवार 17 सितम्बर – श्राद्ध पूर्णिमा / गणपति विसर्जन / अनन्त चतुर्दशी
  • बुधवार 18 सितम्बर – भाद्रपद पूर्णिमा / पितृपक्ष आरम्भ
  • बुधवार 2 अक्तूबर – आश्विन अमावस्या – पितृ विसर्जिनी / दर्श अमावस्या / अन्वाधान
  • बुधवार 16 अक्टूबर – शरद पूर्णिमा / कोजागरी व्रत
  • गुरुवार 17 अक्टूबर – आश्विन पूर्णिमा
  • शुक्रवार1 नवम्बर – कार्तिक अमावस्या – अन्वाधान / दर्श अमावस्या दीपावली / लक्ष्मी पूजा
  • शुक्रवार 15 नवम्बर – कार्तिक पूर्णिमा – देव दिवाली / मणिकर्णिका स्नान
  • शनिवार30 नवम्बर – मार्गशीर्ष अमावस्या – दर्श अमावस्या
  • रविवार 1 दिसम्बर – मार्गशीर्ष अमावस्या – अन्वाधान
  • रविवार 15 दिसम्बर – मार्गशीर्ष पूर्णिमा
  • सोमवार 30 दिसम्बर – पौष अमावस्या / सोमवती अमावस्या / दर्श अमावस्या / अन्वाधान

चन्द्रमा प्रतीक है सुख, शान्ति और प्रेम का तथा भगवान समस्त चराचर में ऊर्जा और प्राणों का संचार करते हैं चन्द्रमा की धवल चन्द्रिका सूर्य किरणों के साथ मिलकर सभी के जीवन में सुख, शान्ति और प्रेम का धवल प्रकाश प्रसारित करे इसी कामना के साथ सभी को वर्ष 2024 के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ…

एकादशी व्रत 2024

एकादशी व्रत 2024

नमस्कार मित्रों ! वर्ष 2023 को विदा करके वर्ष 2024 आने वाला है… सर्वप्रथम सभी को आने वाले वर्ष के लिए अनेकशः हार्दिक शुभकामनाएँ… हर वर्ष की भाँति इस वर्ष भी नूतन वर्ष के आरम्भ से पूर्व प्रस्तुत है वर्ष 2024 में आने वाले सभी एकादशी व्रतों की एक तालिका… वर्ष 2024 का आरम्भ ही एकादशी व्रत के साथ हो रहा है… प्रथम एकादशी होगी पौष मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी – जिसे पुत्रदा एकादशी कहा जाता है…

सभी जानते हैं कि हिन्दू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्त्व है | पद्मपुराण के अनुसार भगवान् श्री कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को एकादशी व्रत का आदेश दिया था और इस व्रत का माहात्म्य बताया था | प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशी होती है, और अधिमास हो जाने पर ये छब्बीस हो जाती हैं | किस एकादशी के व्रत का क्या महत्त्व है तथा किस प्रकार इस व्रत को करना चाहिए इस सबके विषय में विशेष रूप से पद्मपुराण में विस्तार से उल्लेख मिलता है | यदि दो दिन एकादशी तिथि हो तो स्मार्त (गृहस्थ) लोग पहले दिन व्रत रख कर उसी दिन पारायण कर सकते हैं, किन्तु वैष्णवों के लिए एकादशी का पारायण दूसरे दिन द्वादशी तिथि में ही करने की प्रथा है | हाँ, यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पूर्व समाप्त होकर त्रयोदशी तिथि आ रही हो तो पहले दिन ही उन्हें भी पारायण करने का विधान है | सभी जानते हैं कि एकादशी को भगवान् विष्णु के साथ त्रिदेवों की पूजा अर्चना की जाती है | यों तो सभी एकादशी महत्त्वपूर्ण होती हैं, किन्तु कुछ एकादशी जैसे षटतिला, निर्जला, देवशयनी, देवोत्थान, तथा मोक्षदा एकादशी का व्रत प्रायः वे लोग भी करते हैं जो अन्य किसी एकादशी का व्रत नहीं करते | इन सभी एकादशी के विषय में हम समय समय पर लिखते रहे हैं | वर्ष 2024 की शुभकामनाओं के साथ प्रस्तुत है सन् 2024 के लिए एकादशी की तारीखों की एक तालिका – उनके नामों तथा जिस हिन्दी माह में वे आती हैं उनके नाम सहित… वर्ष 2024 में प्रथम एकादशी होगी पौष मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी – जिसे पुत्रदा एकादशी कहा जाता है

  • रविवार 7 जनवरी – पौष कृष्ण सफला एकादशी
  • रविवार 21 जनवरी – पौष शुक्ल पुत्रदा एकादशी
  • मंगलवार 6 फ़रवरी – माघ कृष्ण षटतिला एकादशी
  • मंगलवार 20 फरवरी – माघ शुक्ल जया एकादशी
  • बुधवार 6 मार्च – फाल्गुन कृष्ण विजया एकादशी
  • बुधवार 20 मार्च – फाल्गुन शुक्ल आमलकी एकादशी
  • शुक्रवार 5 अप्रैल – चैत्र कृष्ण पापमोचिनी एकादशी
  • शुक्रवार 19 अप्रैल – चैत्र शुक्ल कामदा एकादशी
  • शनिवार 4 मई – वैशाख कृष्ण बरूथिनी एकादशी
  • रविवार 19 मई – वैशाख शुक्ल मोहिनी एकादशी
  • रविवार 2 जून – ज्येष्ठ कृष्ण अपरा एकादशी स्मार्त
  • सोमवार 3 जून – ज्येष्ठ कृष्ण अपरा एकादशी वैष्णव
  • मंगलवार 18 जून – ज्येष्ठ शुक्ल निर्जला एकादशी
  • मंगलवार 2 जुलाई – आषाढ़ कृष्ण योगिनी एकादशी
  • बुधवार 17 जुलाई – आषाढ़ शुक्ल देवशयनी एकादशी
  • बुधवार 31 जुलाई – श्रावण कृष्ण कामिका एकादशी
  • शुक्रवार 16 अगस्त – श्रावण शुक्ल पुत्रदा एकादशी
  • गुरुवार 29 अगस्त – भाद्रपद कृष्ण अजा एकादशी
  • शनिवार 14 सितम्बर – भाद्रपद शुक्ल परिवर्तिनी एकादशी
  • शनिवार 28 सितम्बर – आश्विन कृष्ण इन्दिरा एकादशी
  • रविवार 13 अक्टूबर – आश्विन शुक्ल पापांकुशा एकादशी स्मार्त
  • सोमवार 14 अक्टूबर – आश्विन शुक्ल पापांकुशा एकादशी वैष्णव
  • रविवार 27 अक्टूबर – कार्तिक कृष्ण रमा एकादशी स्मार्त
  • सोमवार 28 अक्टूबर – कार्तिक कृष्ण रमा एकादशी वैष्णव
  • मंगलवार 12 नवम्बर – कार्तिक शुक्ल देवोत्थान एकादशी
  • मंगलवार 26 नवम्बर – मार्गशीर्ष कृष्ण उत्पन्ना एकादशी
  • बुधवार 11 दिसम्बर – मार्गशीर्ष शुक्ल मोक्षदा एकादशी
  • गुरुवार 26 दिसम्बर – पौष शुक्ल सफला एकादशी

त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) की कृपादृष्टि समस्त जगत पर बनी रहे और सभी स्वस्थ व सुखी रहें, इसी भावना के साथ सभी को वर्ष 2023 की हार्दिक शुभकामनाएँ वर्ष 2023 का हर दिनहर तिथिहर पर्व आपके लिए मंगलमय हो यही कामना है

—–कात्यायनी

माँ भगवती की उपासना का पर्व

माँ भगवती की उपासना का पर्व

शारदीय नवरात्र

आश्विन और चैत्र माह की शुक्ल प्रतिपदा से माँ भगवती की उपासना के नवदिवसीय पर्व नवरात्र आरम्भ हो जाते हैं और घट स्थापना के साथ समूचा देश माँ भगवती की आस्था में तल्लीन हो जाता है | आश्विन मास के नवरात्र – जिन्हें शारदीय नवरात्र भी कहा जाता है – महालया और पितृ विसर्जिनी अमावस्या के दूसरे दिन से आरम्भ होते हैं |

ॐ यान्तु पितृगणाः सर्वे, यतः स्थानादुपागताः |

सर्वे ते हृष्टमनसः, सवार्न् कामान् ददन्तु मे ||

ये लोकाः दानशीलानां, ये लोकाः पुण्यकर्मणां |

सम्पूर्णान् सवर्भोगैस्तु, तान् व्रजध्वं सुपुष्कलान ||

इहास्माकं शिवं शान्तिः, आयुरारोगयसम्पदः |

वृद्धिः सन्तानवगर्स्य, जायतामुत्तरोत्तरा ||

समस्त पितृगण हमारे द्वारा किये गए तर्पण से प्रसन्न होकर अपनी सन्तानों को सौभाग्य का आशीष प्रदान कर अपने अपने लोकों को वापस जाएँ – कल भाद्रपद अमावस्या – यानी पितृपक्ष का अन्तिम श्राद्ध – महालया को – गायत्री मन्त्र के साथ इन उपरोक्त मन्त्रों का श्रद्धापूर्वक जाप करते हुए पितृगणों को ससम्मान विदा किया जाता है और उसके साथ ही आरम्भ हो जाता है नवरात्रों का उल्लासमय पर्व | कितनी विचित्र बात है कि एक ओर पितरों को सम्मान के साथ विदा किया जाता है तो दूसरी ओर माँ दुर्गा का आगमन होता है और उनके स्वागत के रूप में आरम्भ हो जाती है महिषासुरमर्दिनी के मन्त्रों के मधुर उच्चारण के साथ नवरात्रों में माँ भगवती के नौ रूपों की पूजा अर्चना और इसका समापन दसवें दिन धूम धाम से देवी की प्रतिमा विसर्जन के साथ होता है | एक ओर मृतात्माओं के प्रति श्रद्धा का पर्व श्राद्धपक्ष के रूप में और दूसरी ओर उसके तुरन्त बाद नवजीवन के रूप में देवी भगवती की उपासना का पर्व नवरात्र के रूप में – मृत्यु और नवजीवन का कितना अनूठा संगम है ये – और ऐसा केवल भारतीय संस्कृति में ही सम्भव है |

महालया अर्थात पितृविसर्जनी अमावस्या को श्राद्ध पक्ष का समापन हो जाता है | महालया का अर्थ ही है महान आलय अर्थात महान आवास – अन्तिम आवास – शाश्वत आवास | श्राद्ध पक्ष के इन पन्द्रह दिनों में अपने पूर्वजों का आह्वान करते हैं कि हमारे असत् आवास अर्थात पञ्चभूतात्मिका पृथिवी पर आकर हमारा आतिथ्य स्वीकार करें, और महालया के दिन पुनः अपने अस्तित्व में विलीन हो अपने शाश्वत धाम को प्रस्थान करें | और उसी दिन से आरम्भ हो जाता है अज्ञान रूपी महिष का वध करने वाली महिषासुरमर्दिनी की उपासना का उत्साहमय पर्व शारदीय नवरात्र | इस समय माँ भगवती से भी प्रार्थना की जाती है कि वे अपने महान अर्थात शाश्वत आवास अर्थात आलय को कुछ समय के लिए छोड़कर पृथिवी पर आएँ और हमारा आतिथ्य स्वीकार करें तथा नवरात्रों के अन्तिम दिन हम उन्हें ससम्मान उनके शाश्वत आलय के लिए उन्हें विदा करेंगे अगले बरस पुनः हमारा आतिथ्य स्वीकार करने की प्रार्थना के साथ | यही कारण है कि नवरात्रों के लिए दुर्गा प्रतिमा बनाने वाले कारीगर महालया के दिन धूम धाम से उत्सव मनाकर भगवती के नेत्रों को आकार देते हैं | वर्तमान का तो नहीं मालूम, लेकिन हमारी पीढ़ी के लोगों को ज्ञात होगा कि महालया यानी पितृविसर्जनी अमावस्या के दिन प्रातः चार बजे से आकाशवाणी पर श्री वीरेन्द्र कृष्ण भद्र के गाए महिषासुरमर्दिनी का प्रसारण किया जाता था और सभी केन्द्र इसे रिले करते थे | हम सभी भोर में ही रेडियो ट्रांजिस्टर ऑन करके बैठ जाते थे और पूरे भक्ति भाव से उस पाठ को सुना करते थे |

वह देवी ही समस्त प्राणियों में चेतन आत्मा कहलाती है और वही सम्पूर्ण जगत को चैतन्य रूप से व्याप्त करके स्थित है | इस प्रकार अज्ञान का नाश होकर जीव का पुनर्जन्म – आत्मा का शुद्धीकरण होता है – ताकि आत्मा जब दूसरी देह में प्रविष्ट हो तो सत्वशीला हो…

“या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभिधीयते, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः |
चितिरूपेण या कृत्स्नमेतद्वाप्य स्थित जगत्, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ||” (श्री दुर्गा सप्तशती पञ्चम अध्याय)

अस्तु, सर्वप्रथम तो, माँ भगवती सभी का कल्याण करें और सभी की मनोकामनाएँ पूर्ण करें, इस आशय के साथ सभी को शारदीय नवरात्र की हार्दिक शुभकामनाएँ…

इस वर्ष रविवार 15 अक्तूबर से शारदीय नवरात्र आरम्भ हो रहे हैं | वास्तव में लौकिक दृष्टि से यदि देखा जाए तो हर माँ शक्तिस्वरूपा माँ भगवती का ही प्रतिनिधित्व करती है – जो अपनी सन्तान को जन्म देती है, उसका भली भाँति पालन पोषण करती है और किसी भी विपत्ति का सामना करके उसे परास्त करने के लिए सन्तान को भावनात्मक और शारीरिक बल प्रदान करती है, उसे शिक्षा दीक्षा प्रदान करके परिवार – समाज और देश की सेवा के योग्य बनाती है – और इस सबके साथ ही किसी भी विपत्ति से उसकी रक्षा भी करती है | इस प्रकार सृष्टि में जो भी जीवन है वह सब माँ भगवती की कृपा के बिना सम्भव ही नहीं | इस प्रकार भारत जैसे देश में जहाँ नारी को भोग्या नहीं वरन एक सम्माननीय व्यक्तित्व माना जाता है वहाँ नवरात्रों में भगवती की उपासना के रूप में उन्हीं आदर्शों को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया जाता है |

इसी क्रम में यदि आरोग्य की दृष्टि से देखें तो दोनों ही नवरात्र ऋतु परिवर्तन के समय आते हैं | चैत्र नवरात्र में सर्दी को विदा करके गर्मी का आगमन हो रहा होता है और शारदीय नवरात्रों में गर्मी को विदा करके सर्दी के स्वागत की तैयारी की जाती है | वातावरण के इस परिवर्तन का प्रभाव मानव शरीर और मन पर पड़ना स्वाभाविक ही है | अतः हमारे पूर्वजों ने व्रत उपवास आदि के द्वारा शरीर और मन को संयमित करने की सलाह दी ताकि हमारे शरीर आने वाले मौसम के अभ्यस्त हो जाएँ और ऋतु परिवर्तन से सम्बन्धित रोगों से उनका बचाव हो सके तथा हमारे मन सकारात्मक विचारों से प्रफुल्लित रह सकें |

आध्यात्मिक दृष्टि से नवरात्र के दौरान किये जाने वाले व्रत उपवास आदि प्रतीक है समस्त गुणों पर विजय प्राप्त करके मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर होने के | माना जाता है कि नवरात्रों के प्रथम तीन दिन मनुष्य अपने भीतर के तमस से मुक्ति पाने का प्रयास करता है, उसके बाद के तीन दिन मानव मात्र का प्रयास होता है अपने भीतर के रजस से मुक्ति प्राप्त करने का और अन्तिम तीन दिन पूर्ण रूप से सत्व के प्रति समर्पित होते हैं ताकि मन के पूर्ण रूप से शुद्ध हो जाने पर हम अपनी अन्तरात्मा से साक्षात्कार का प्रयास करें – क्योंकि वास्तविक मुक्ति तो वही है |

इस प्रक्रिया में प्रथम तीन दिन दुर्गा के रूप में माँ भगवती के शक्ति रूप को जागृत करने का प्रयास किया जाता है ताकि हमारे भीतर बहुत गहराई तक बैठे हुए तमस अथवा नकारात्मकता को नष्ट किया जा सके | उसके बाद के तीन दिनों में देवी की लक्ष्मी के रूप में उपासना की जाती है कि वे हमारे भीतर के भौतिक रजस को नष्ट करके जीवन के आदर्श रूपी धन को हमें प्रदान करें जिससे कि हम अपने मन को पवित्र करके उसका उदात्त विचारों एक साथ पोषण कर सकें | और जब हमारा मन पूर्ण रूप से तम और रज से मुक्त हो जाता है तो अन्तिम तीन दिन माता सरस्वती का आह्वाहन किया जाता है कि वे हमारे मनों को ज्ञान के उच्चतम प्रकाश से आलोकित करें ताकि हम अपने वास्तविक स्वरूप – अपनी अन्तरात्मा – से साक्षात्कार कर सकें |

नवरात्रि के महत्त्व के विषय में विवरण मार्कंडेय पुराण, वामन पुराण, वाराह पुराण, शिव पुराण, स्कन्द पुराण और देवी भागवत आदि पुराणों में उपलब्ध होता है | इन पुराणों में देवी दुर्गा के द्वारा महिषासुर के मर्दन का उल्लेख उपलब्ध होता है | महिषासुर मर्दन की इस कथा को “दुर्गा सप्तशती” के रूप में देवी माहात्म्य के नाम से जाना जाता है | नवरात्रि के दिनों में इसी माहात्म्य का पाठ किया जाता है और यह बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक माना जाता है | जिसमें 537 चरणों में 700 मन्त्रों के द्वारा देवी के माहात्म्य का जाप किया जाता है | इसमें देवी के तीन मुख्य रूपों – काली अर्थात बल, लक्ष्मी और सरस्वती की पूजा के द्वारा देवी के तीन चरित्रों – मधुकैटभ वध, महिषासुर वध तथा शुम्भ निशुम्भ वध का वर्णन किया जाता है | पितृ पक्ष की अमावस्या को महालया के दिन पितृ तर्पण के बाद से आरम्भ होकर नवमी तक चलने वाले इस महान अनुष्ठान का समापन दशमी को प्रतिमा विसर्जन के साथ होता है | इन नौ दिनों में दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है | ये नौ रूप सर्वज्ञ महात्मा वेद भगवान के द्वारा ही प्रतिपादित हुए हैं |

“प्रथमं शैलपुत्रीति द्वितीयं ब्रह्मचारिणी, तृतीयं चन्द्रघंटेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् |

पञ्चमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनी तथा सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ||

नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा प्रकीर्तिता:, उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना ||

अस्तु, माँ भगवती को नमन करते हुए सभी को शारदीय नवरात्र – आश्विन नवरात्र – की हार्दिक शुभकामनाएँ…

जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी

दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोSतु ते…

आश्विन मास 2023 के व्रतोत्सव

आश्विन मास 2023 के व्रतोत्सव

आश्विन मास – 30 सितम्बर से 28 अक्टूबर 2023 – के व्रतोत्सव

शुक्रवार 29 सितम्बर को प्रौष्ठपदी पूर्णिमा के साथ भाद्रपद मास समाप्त होकर शनिवार तीस सितम्बर से कृष्ण प्रतिपदा के साथ आश्विन मास आरम्भ हो जाएगा जो 28 अक्तूबर को शरद पूर्णिमा के साथ समाप्त हो जाएगा | वैदिक कैलेन्डर का सप्तम मास आश्विन मास – बहुत से पर्वों का – व्रत उपवासों का महीना होता है | सर्वप्रथम बात करते हैं आश्विन मास के नाम की | जिस मास में जिस नक्षत्र का उदय होता है उसके आधार पर उस मास का नाम रखा जाता है | अश्विन मास में आश्विन नक्षत्र होता है – अर्थात इस मास की चतुर्दशी/पूर्णिमा को चन्द्रमा आश्विन नक्षत्र पर होता है – इसलिए इसका नाम आश्विन पड़ा | आश्विन नक्षत्र का नाम अश्विनी कुमारों के नाम पर रखा गया है जो देवताओं के वैद्य भी कहे जाते हैं | इस मास का वैदिक नाम ईश है | साथ ही आश्विन का एक अर्थ “नासत्य” भी होता है – अर्थात जो सत्य न हो | जो इसी बात से विदित हो जाता है कि इस मास का आरम्भ होता है दिवंगत पूर्वजों के प्रति सम्मान और श्रद्धा के पर्व श्राद्ध पक्ष से – जो द्योतक है इस सत्य का कि जगत असत्य है, माया है, इसके लोभ मोह में नहीं फँसना चाहिए | इसके अतिरिक्त भी और भी बहुत से पर्व इस मास में आते हैं | भगवती के नौ रूपों की पूजा अर्चना का नव दिवसीय अनुष्ठान आश्विन नवरात्र जिन्हें शारदीय नवरात्र के नाम से भी जाना जाता है, विजया दशमी तथा आश्विन पूर्णिमा जिसे शरद पूर्णिमा भी कहा जाता है सभी इसी मास में आते हैं | वर्षा रानी अपने प्रियतम ऊदे भूरे मेघों के साथ अपने निवास को वापस लौट जाती हैं और उनके स्थान पर श्वेत धूप अपने मित्र नील नभ के साथ आ विराजती हैं | साथ ही हल्की हल्की ठण्ड का आभास भी इस मास में होना आरम्भ हो जाता है – जो अश्विनी शब्द का एक अन्य अर्थ है | और ये सभी अर्थ आश्विन नाम को सार्थक सिद्ध करते हैं | लोक भाषा में इसे “क्वार” का महीना भी कहते हैं – अश्विनी कुमार के “कुमार” शब्द का अपभ्रंश होते होते कुमार से “क्वार” बन गया |

इस वर्ष शुक्रवार 29 सितम्बर को अपराह्न 3:28 के लगभग मकर लग्न, बालव करण और वृद्धि योग में प्रतिपदा तिथि का आगमन होगा, सूर्योदय काल में 30 सितम्बर को प्रतिपदा तिथि होने के कारण इसी दिन से आश्विन मास का आरम्भ माना जाएगा | सूर्योदय इस दिन 6:13 पर कन्या लग्न, कौलव करण और ध्रुव योग में होगा | अस्तु, सर्वप्रथम मासारम्भ में दिवंगत पूर्वजों के प्रति श्रद्धा सुमन समर्पित करते हुए सभी को इस मास में आने वाले नवरात्रोत्सव, विजया दशमी तथा शरद पूर्णिमा की अग्रिम रूप से अनेकशः हार्दिक शुभकामनाओं के साथ प्रस्तुत है इस मास में आने वाले व्रतोत्सवों की सूची…

शुक्रवार 29 सितम्बर – प्रौष्ठपदी पूर्णिमा / पूर्णिमा का श्राद्ध / भाद्रपद मास समाप्त

शनिवार 30 सितम्बर – आश्विन कृष्ण प्रतिपदा / प्रतिपदा का श्राद्ध

रविवार 1 अक्टूबर – आश्विन कृष्ण द्वितीय / द्वितीया का श्राद्ध

सोमवार 2 अक्टूबर – आश्विन कृष्ण तृतीया / तृतीया का श्राद्ध

मंगलवार 3 अक्टूबर – आश्विन कृष्ण चतुर्थी / चतुर्थी का श्राद्ध

बुधवार 4 अक्टूबर – आश्विन कृष्ण पञ्चमी / पञ्चमी का श्राद्ध

गुरुवार 5 अक्टूबर – आश्विन कृष्ण षष्ठी / षष्ठी का श्राद्ध

शुक्रवार 6 अक्टूबर – आश्विन कृष्ण सप्तमी / सप्तमी का श्राद्ध

शनिवार 7 अक्टूबर – आश्विन कृष्ण अष्टमी / अष्टमी का श्राद्ध

रविवार 8 अक्टूबर – आश्विन कृष्ण नवमी / नवमी का श्राद्ध

सोमवार 9 अक्टूबर – आश्विन कृष्ण दशमी / दशमी का श्राद्ध

मंगलवार 10 अक्टूबर – आश्विन कृष्ण एकादशी / एकादशी का श्राद्ध

बुधवार 11 अक्टूबर – आश्विन कृष्ण द्वादशी / द्वादशी का श्राद्ध

गुरुवार 12 अक्टूबर – आश्विन कृष्ण त्रयोदशी / त्रयोदशी का श्राद्ध

शुक्रवार 13 अक्टूबर – आश्विन कृष्ण चतुर्दशी / चतुर्दशी का श्राद्ध

शनिवार 14 अक्टूबर – आश्विन अमावस्या / पितृविसर्जनी अमावस्या / महालया

रविवार 15 अक्टूबर – आश्विन शुक्ल प्रतिपदा / 14 अक्तूबर को रात्रि 11:25 के लगभग किन्स्तुघ्न करण, वैद्धृति योग और मिथुन लग्न में प्रतिपदा तिथि का आगमन – जो 15 तारीख को अर्द्धरात्रि में 12:32 तक रहेगी | 15 तारीख को सूर्योदय 6:21 पर कन्या लग्न में होगा | इस समय भी किन्तुघ्न करण और वैद्धृति योग रहेगा तथा सूर्य और चन्द्र दोनों ही चित्रा नक्षत्र पर होंगे | अतः घट स्थापना 15 सितम्बर को कन्या लग्न में प्रातः 6:21 से लग्न की समाप्ति 6:38 तक / अभिजित मुहूर्त प्रातः 11:44 से 12:30 तक / शारदीय नवरात्र / प्रथम नवरात्र / भगवती के शैलपुत्री रूप की उपासना / महाराजा अग्रसेन जयन्ती

सोमवार 16 अक्टूबर – आश्विन शुक्ल द्वितीया / द्वितीय नवरात्र / भगवती के ब्रह्मचारिणी रूप की उपासना

मंगलवार 17 अक्टूबर – आश्विन शुक्ल तृतीया / तृतीय नवरात्र / भगवती के चन्द्रघंटा रूप की उपासना

बुधवार 18 अक्टूबर – आश्विन शुक्ल चतुर्थी / चतुर्थ नवरात्र / भगवती के कूष्माण्डा रूप की उपासना / तुला संक्रान्ति / सूर्य का तुला राशि में संक्रमण 17 तारीख को अर्द्धरात्र्योत्तर (18 को सूर्योदय से पूर्व) 1:30 पर / 18 को सूर्योदय 6:23 पर / सूर्योदय से दिन में 12 बजे तक पुण्य काल

गुरुवार 19 अक्टूबर – आश्विन शुक्ल पञ्चमी / पञ्चम नवरात्र / भगवती के स्कन्दमाता रूप की उपासना

शुक्रवार 20 अक्टूबर – आश्विन शुक्ल षष्ठी / छठा नवरात्र / भगवती के कात्यायनी रूप की उपासना / सरस्वती आह्वाहन पूजा मुहूर्त प्रातः 6:25 से 8:52 तक

शनिवार 21 अक्तूबर – आश्विन शुक्ल सप्तमी / सप्तम नवरात्र / भगवती के कालरात्रि रूप की उपासना / सरस्वती पूजा मुहूर्त प्रातः 6:25 से 8:17 तक

रविवार 22 अक्तूबर – आश्विन शुक्ल अष्टमी / अष्टम नवरात्र / भगवती के महागौरी रूप की उपासना / सरस्वती बलिदान मुहूर्त प्रातः 6:26 से 7:19 तक / सरस्वती विसर्जन मुहूर्त सायं 6:44 से अर्द्ध रात्रि में 12:21 तक

सोमवार 23 अक्तूबर – आश्विन शुक्ल नवमी / नवम नवरात्र / भगवती के सिद्धिदात्री रूप की उपासना

मंगलवार 24 अक्तूबर – आश्विन शुक्ल दशमी / प्रतिमा विसर्जन मुहूर्त प्रातः 6:27 से 8:42 तक / विजया दशमी मुहूर्त मध्याह्न 1:58 से 2:43 तक / अपराजिता देवी की उपासना / विद्यारम्भ / माधवाचार्य जयन्ती

बुधवार 25 अक्टूबर – आश्विन शुक्ल एकादशी / पापांकुशा एकादशी

गुरुवार 26 अक्टूबर – आश्विन शुक्ल द्वादशी / प्रदोष व्रत

शनिवार 28 अक्तूबर – आश्विन पूर्णिमा व्रत / शरद पूर्णिमा / कोजागरी पूर्णिमा / मीराबाई जयन्ती / वाल्मीकि जयन्ती / आश्विन मास समाप्त

अन्त में एक बार पुनः मासारम्भ में दिवंगत पूर्वजों के प्रति श्रद्धा सुमन समर्पित करते हुए सभी को इस मास में आने वाले नवरात्रोत्सव, विजया दशमी तथा शरद पूर्णिमा की अग्रिम रूप से अनेकशः हार्दिक शुभकामनाएँ…

श्राद्ध पर्व 2023 की तिथियाँ

श्राद्ध पर्व 2023 की तिथियाँ

भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी यानी अनन्त चतुर्दशी – गुरुवार 28 सितम्बर को क्षमावाणी के साथ जैन मतावलम्बियों के दशलाक्षण पर्व का समापन हो जाएगा | इसी दिन अनन्त चतुर्दशी का पावन पर्व भी मनाया जाएगा | इस दिन अनन्त भगवान की पूजा करके संकटों से रक्षा करने वाला अनन्त सूत्र बाँधा जाता है | उसके दूसरे दिन भाद्रपद अथवा प्रौष्ठपदी पूर्णिमा के दिन पूर्णिमा का श्राद्ध होकर सोलह दिनों का श्राद्ध पक्ष आरम्भ हो जाएगा जो 14 अक्तूबर को महालया के साथ सम्पन्न हो जाएगा और रविवार 15 अक्तूबर से कलश स्थापना के साथ भगवती की उपासना के दशदिवसीय पर्व शारदीय नवरात्र आरम्भ हो जाएँगे | इस वर्ष श्रावण मास में अधिक मास होने के कारण कुछ विलम्ब से श्राद्ध पक्ष का आरम्भ हो रहा है |

श्राद्ध को अनेक स्थानों पर “कनागत” भी कहा जाता है | कनागत शब्द की व्युत्पत्ति कन्या शब्द से हुई है – कन्यायां गतः सूर्यः इति कन्यागतः – अर्थात इस समय सूर्य प्रायः कन्या राशि में विद्यमान रहता है इस कारण से इस पक्ष को “कन्यागतः” कहा जाता था – जो कालान्तर में अपभ्रंश होता हुआ “कनागत” बन गया | चन्द्रमा की गति के अनुसार कभी इसमें कुछ दिनों का अन्तर हो भी सकता है, किन्तु प्रायः श्राद्ध पक्ष के समाप्त होते होते भगवान भास्कर कन्या राशि में प्रस्थान कर जाते हैं | इस वर्ष भी रविवार 17 सितम्बर भाद्रपद शुक्ल तृतीया को दोपहर 1:31 के लगभग सूर्य का संक्रमण कन्या राशि में हो जाएगा और 18 अक्तूबर तक भगवान भास्कर वहीं भ्रमण करेंगे |

यों तो आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से 15 दिन के पितृ पक्ष का आरम्भ माना जाता है | किन्तु जिनके प्रियजन पूर्णिमा को ब्रह्मलीन हुए हैं, जिनकी अकाल मृत्यु हुई है अथवा जिनके देहावसान की तिथि के विषय में ज्ञात नहीं है उनका श्राद्ध पक्ष आरम्भ होने से एक दिन पूर्व अर्थात भाद्रपद पूर्णिमा को करने का विधान है |

श्राद्ध कर्म करने के लिए दिन में चार मुहूर्त श्रेयस्कर माने गए हैं – कुतुप मुहूर्त – जो प्रायः प्रातः 11:30 से 12:30 के मध्य होता है, अभिजित मुहूर्त – यह प्रतिदिन परिवर्तित होता रहता है – किन्तु प्रायः कुतुप काल के आस पास ही आता है, रोहिणी मुहूर्त – नाम से ही स्पष्ट है – रोहिणी नक्षत्र का समय, और मध्याह्न काल – यदि प्रथम तीन मुहूर्त न मिलें तो मध्याह्न काल में श्राद्ध कर्म करना चाहिए | किन्तु हमारी स्वयं की मान्यता है कि अपनी सुविधानुसार जिस समय चाहे पितृगणों के लिए तर्पणादि कार्य किये जा सकते हैं – हमारे पूर्वज हमें कभी हानि तो नहीं ही पहुँचाएँगे अपितु हम पर सदा कृपादृष्टि ही बनाए रखेंगे – आवश्यकता है श्रद्धापूर्वक हृदय से उनका स्मरण करने की |

इस वर्ष श्राद्ध की तिथियाँ इस प्रकार रहेंगी…

शुक्रवार 29 सितम्बर – पूर्णिमा श्राद्ध

शनिवार 30 सितम्बर – प्रतिपदा श्राद्ध

पितृपक्ष 2023 की तिथियाँ
पितृपक्ष 2023 की तिथियाँ

रविवार 1 अक्टूबर – द्वितीया श्राद्ध

सोमवार 2 अक्टूबर – तृतीया श्राद्ध

मंगलवार 03 अक्टूबर – चतुर्थी श्राद्ध

बुधवार 04 अक्टूबर – पञ्चमी श्राद्ध

गुरुवार 05 अक्टूबर – षष्ठी श्राद्ध

शुक्रवार 06 अक्टूबर – सप्तमी श्राद्ध

शनिवार 07 अक्टूबर – अष्टमी श्राद्ध

रविवार 08 अक्टूबर – नवमी श्राद्ध

सोमवार 09 अक्टूबर – दशमी श्राद्ध

मंगलवार 10 अक्टूबर – एकादशी श्राद्ध

बुधवार 11 अक्टूबर – द्वादशी श्राद्ध

गुरुवार 12 अक्टूबर – त्रयोदशी श्राद्ध

शुक्रवार 13 अक्तूबर – चतुर्दशी श्राद्ध

शनिवार 14 अक्टूबर – सर्व पितृ अमावस्या / वर्ष का अन्तिम सूर्य ग्रहण अमेरिका, कनाडा, मैक्सिको, ब्राजील, पेरू, पराग्वे, जमैका, क्यूबा, इक्वाडोर, ग्वाटेमाला आदि देशों में दिखाई देगा, भारत में नहीं दिखाई देगा अतः यहाँ सूतक आदि के नियम भी लागू नहीं होंगे

आज हम जो कुछ भी हैं उन्हीं अपने पूर्वजों के कारण हैं… हमारा अस्तित्व उन्हीं के कारण है… उनके उपकारों का कुछ मोल तो नहीं दिया जा सकता, किन्तु उनके प्रति श्रद्धा सुमन तो समर्पित किये ही जा सकते हैं… तो आइये श्रद्धापूर्वक अपने पूर्वजों का स्मरण करते हुए समर्पित करें उनके प्रति श्रद्धा-सुमन…

श्रद्धा का पर्व श्राद्ध पर्व

श्रद्धा का पर्व श्राद्ध पर्व

शुक्रवार 29 सितम्बर भाद्रपद पूर्णिमा से सोलह दिनों का दिवंगत पूर्वजों के प्रति श्रद्धा का पर्व श्राद्ध पक्ष आरम्भ हो रहा है – जो पितृ विसर्जिनी अमावस्या और महालया के साथ सम्पन्न हो जाएगा |  हिन्दू समाज में अपने दिवंगत पूर्वजों के सम्मान में पूरे सोलह दिन श्रद्धा सुमन समर्पित किये जाएँगे – तर्पण दानादि किया जाएगा | और पितृ विसर्जिनी अमावस्या को…

ॐ यान्तु पितृगणाः सर्वे, यतः स्थानादुपागताः |

सर्वे ते हृष्टमनसः, सर्वान् कामान् ददन्तु मे ||

ये लोकाः दानशीलानां, ये लोकाः पुण्यकर्मणां |

सम्पूर्णान् सवर्भोगैस्तु, तान् व्रजध्वं सुपुष्कलान ||

इहास्माकं शिवं शान्तिः, आयुरारोगयसम्पदः |

वृद्धिः सन्तानवगर्स्य, जायतामुत्तरोत्तरा ||

मन्त्रों के साथ अगले वर्ष पुनः हमारा अतिथि स्वीकार करने की प्रार्थना के साथ ससम्मान उन्हें उनके शाश्वत धाम के लिए विदा किया जाएगा | श्राद्ध शब्द की निष्पत्ति ही “श्रद्धा” से हुई है – श्रद्धया इदं श्राद्धम्‌ – जो श्रद्धापूर्वक किया जाए वह श्राद्ध है, अथवा – श्रद्धया दीयते इति श्राद्धम् – अर्थात जो श्रद्धापूर्वक दिया जाए वह श्राद्ध है | यही कारण है कि श्राद्ध पर्व को उत्सव की भाँति सम्पन्न किया जाता है | “उत्सव” इसलिए क्योंकि ये सोलह दिन – भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन अमावस्या तक – हम सभी पूर्ण श्रद्धा के साथ अपने पूर्वजों का स्मरण करते हैं – उनकी पसन्द के भोजन बनाकर ब्रह्मभोज कराते हैं और स्वयं भी प्रसाद रूप में ग्रहण करते हैं – सुपात्रों को दान दक्षिणा से सम्मानित करते हैं – और अन्तिम दिन उन्हें पुनः आने का निमन्त्रण देकर सम्मान पूर्वक उनके शाश्वत धाम के लिए विदा करते हैं | इस दिन उन पूर्वजों के लिए भी तर्पण किया जाता है जिनके देहावसान की तिथि न ज्ञात हो अथवा भ्रमवश जिनका श्राद्ध करना भूल गए हों | साथ ही उन आत्माओं की शान्ति के लिए भी तर्पण किया जाता है जिनके साथ हमारा कभी कोई सम्बन्ध या कोई परिचय ही नहीं रहा – अर्थात् अपरिचित लोगों की भी आत्मा को शान्ति प्राप्त हो – ऐसी उदात्त विचारधारा हिन्दू और भारतीय संस्कृति की ही देन है |

गीता में कहा गया है “श्रद्धावांल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रिय:, ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति | अज्ञश्चाश्रद्दधानश्च संशयात्मा विनश्यति, नायंलोकोsस्ति न पारो न सुखं संशयात्मनः ||” (4/39,40) – अर्थात आरम्भ में तो दूसरों के अनुभव से श्रद्धा प्राप्त करके मनुष्य को ज्ञान प्राप्त होता है, परन्तु जब वह जितेन्द्रिय होकर उस ज्ञान को आचरण में लाने में तत्पर हो जाता है तो उसे श्रद्धाजन्य शान्ति से भी बढ़कर साक्षात्कारजन्य शान्ति का अनुभव होता है | किन्तु दूसरी ओर श्रद्धा रहित और संशय से युक्त पुरुष नाश को प्राप्त होता है | उसके लिये न इस लोक में सुख होता है और न परलोक में | इस प्रकार श्रद्धावान होना चारित्रिक उत्थान का, ज्ञान प्राप्ति का तथा एक सुदृढ़ नींव वाले पारिवारिक और सामाजिक ढाँचे का एक प्रमुख सोपान है | और जिस राष्ट्र के परिवार तथा समाज की नींव सुदृढ़ होगी उस राष्ट्र का कोई बाल भी बाँका नहीं कर सकता |

प्रायः सभी के मनों में यह उत्सुकता बनी रहती है कि श्राद्ध पर्व मनाने की प्रथा हिन्दू संस्कृति में कब से चली आ रही है | तो पितृ पक्ष तो आदिकाल से मान्य रहा है | वेदों के अनुसार पाँच प्रकार के यज्ञ माने गए हैं – ब्रह्म यज्ञ, देव यज्ञ, पितृ यज्ञ, वैश्वदेव यज्ञ तथा अतिथि यज्ञ | इनमें जो पितृ यज्ञ है उसी का विस्तार पुराणों में “श्राद्ध” के नाम से उपलब्ध होता है | वेदों में प्रायः श्रद्धा पूर्वक किये गए कर्म को श्राद्ध कहा गया है – साथ ही जिस कर्म से माता पिता तथा आचार्य गण तृप्त हों उस कार्य को तर्पण कहा गया है – अर्थात तृप्त करने की क्रिया – तृप्यते अनेन इति तर्पण: | अर्थात जो स्वजन अपने शरीर को छोड़कर चले गए हैं चाहे वे किसी भी रूप में अथवा किसी भी लोक में हों, उनकी तृप्ति और उन्नति के लिए श्रद्धा के साथ जो शुभ संकल्प और तर्पण किया जाता है, वह श्राद्ध है | पौराणिक मान्यताओं के अनुसार आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक ब्रह्माण्ड की ऊर्जा तथा उस ऊर्जा के साथ पितृगण पृथिवी पर विचरण करते हैं अतः श्रद्धा पूर्वक उन्हें तृप्त करने के लिए श्राद्ध पर्व में तर्पण आदि का कार्य किया जाता है | श्राद्ध पक्ष के अन्तिम दिन आश्विन अमावस्या को अपना अपना भाग लेकर तृप्त हुए समस्त पितृ गण उसी ब्रह्माण्डीय ऊर्जा के साथ अपने लोकों को वापस लौट जाते हैं | अर्थात अपने पूर्वजों, माता पिता तथा आचार्य के प्रति सत्यनिष्ठ होकर श्रद्धापूर्वक किये गए कर्म से जब हमारे ये आदरणीय तृप्त हो जाते हैं उसे श्राद्ध-तर्पण कहा जाता है | और इसी पितृ यज्ञ से पितृ ऋण भी पूर्ण हो जाता है | अथर्ववेद में कथन है:

अभूद्दूत: प्रहितो जातवेदा: सायं न्यन्हे उपवन्द्यो नृभि:

प्रादा: पितृभ्य: स्वधया ते अक्षन्नद्धि त्वं देव प्रयता हवींषि (18/4/65)

हमारे ये पितृ गण प्रभु के दूत हैं जो हमें हितकर और प्रिय ज्ञान देते हैं | पितृगणों को भोजन कराने के बाद यज्ञ से शेष भोजन को ही हमें ग्रहण करना चाहिए |

इस प्रकार के बहुत से मन्त्र उपलब्ध होते हैं | इसके अतिरिक्त विभिन्न देवी देवताओं से सम्बन्धित वैदिक ऋचाओं में से अनेक ऐसी हैं जिन्हें पितरों तथा मृत्यु की प्रशस्ति में गाया गया है | पितृ गणों का आह्वान किया गया है कि वे धन, समृद्धि और बल प्रदान करें | साथ ही पितृ गणों की वर, अवर और मध्यम श्रेणियाँ भी बताई गई हैं | अग्नि से प्रार्थना की गई है कि वह मृतकों को पितृलोक तक पहुँचाने में सहायक हो तथा वंशजों के दान पितृगणों तक पहुँचाकर मृतात्मा को भीषण रूप में भटकने से रक्षा करें | पितरों से प्रार्थना की गई है कि वे अपने वंशजों के निकट आएँ, उनका आसन ग्रहण करें, पूजा स्वीकार करें और उनके क्षुद्र अपराधों को क्षमा करें | उनका आह्वान व्योम में नक्षत्रों के रचयिता के रूप में किया गया है | उनके आशीर्वाद में दिन को जाज्वल्यमान और रजनी को अंधकारमय बताया है | परलोक में दो ही मार्ग हैं : देवयान और पितृयान | पितृगणों से यह भी प्रार्थना की जाती है कि देवयान से मर्त्यो की सहायता के लिये अग्रसर हों | कहा गया है कि ज्ञानोपार्जन करने वाले व्यक्ति मरणोपरान्त देवयान द्वारा सर्वोच्च ब्राह्मण पद प्राप्त करते हैं | पूजा पाठ एवं जन कार्य करने वाले दूसरी श्रेणी के व्यक्ति रजनी और आकाश मार्ग से होते हुए पुन: पृथ्वी पर लौट आते हैं और इसी नक्षत्र में जन्म लेते हैं | इस प्रकार वेदों में वर्णित कर्तव्य कर्मों में श्राद्ध संस्कारों के उल्लेख उपलब्ध होते हैं जिनका पालन भी गृहस्थ लोग करते हैं |

पुराण काल में देखें तो भगवान श्री राम के द्वारा श्री दशरथ और जटायु को गोदावरी नदी पर जलांजलि देने का उल्लेख मिलता है तथा भरत के द्वारा दशरथ के लिए दशगात्र – मरणोपरान्त दस दिनों तक किये जाने वाले कर्म – विधान का उल्लेख रामचरितमानस में उपलब्ध होता है:

एहि बिधि दाह क्रिया सब कीन्ही | बिधिवत न्हाइ तिलांजलि दीन्ही ||
सोधि सुमृति सब बेद पुराना | कीन्ह भरत दसगात बिधाना || (अयोध्याकाण्ड)

रामायण के बाद महाभारत के अनुशासन पर्व में भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को भिन्न भिन्न नक्षत्रों में किये जाने वाले काम्य श्राद्धों के विषय में बताया है (अनुशासन पर्व 89/1-15) | साथ ही श्राद्ध कर्म के अन्तर्गत दानादि के महत्त्व और दान के लिए सुपात्र व्यक्ति को भी परिभाषित किया है (अनुशासन पर्व अध्याय 145/50) | इसी में आगे वृत्तान्त आता है कि श्राद्ध का उपदेश महर्षि नेमि – जिन्हें श्री कृष्ण का चचेरा भाई बताया गया है और जो जैन धर्म के बाइसवें तीर्थंकर नेमिनाथ बने – ने अत्रि मुनि को दिया था और बाद में अन्य महर्षि भी श्राद्ध कर्म करने लगे |

इस समस्त श्राद्ध और तर्पण कर्म की वास्तविकता तो यही है कि माता पिता तथा अपने पूर्वजों की पूजा से बड़ी कोई पूजा नहीं होती | जीवन के संघर्षों में उलझ कर कहीं हम अपने पूर्वजों को विस्मृत न कर दें इसीलिए हमारे महान मनीषियों ने वर्ष के एक माह के पूरे सोलह दिन ही इस कार्य के लिए निश्चित कर दिए ताकि इस अवधि में केवल इसी कार्य को पूर्ण आस्था के साथ पूर्ण किया जा सके | “कन्यायां गत: सूर्य: इति कन्यागत: (कनागत) अर्थात आश्विन मास में जब कन्या राशि में सूर्य हो उस समय कृष्ण पक्ष पितृगणों के लिए समर्पित किया गया है |

भगवान श्री कृष्ण ने गीता में स्वयं को पितरों में श्रेष्ठ अर्यमा कहा है :

अनन्तश्चास्मि नागानां वरुणो यादसामहम् |
पितृ़णामर्यमा चास्मि यमः संयमतामहम् ||10/29

नागों के नाना भेदों में मैं अनन्त हूँ अर्थात् नागराज शेष हूँ, जल सम्बन्धी देवों में उनका राजा वरुण हूँ, पितरों में अर्यमा नामक पितृराज हूँ और शासन करने वालों में यमराज हूँ |

इस प्रकार पितृ तर्पण की प्रथा – पितृयज्ञ का इतिहास अत्यन्त प्राचीन है – हाँ उसकी प्रक्रिया में समय के परिवर्तन के साथ परिवर्तन और परिवर्धन अवश्य हुआ है | हम सभी श्राद्ध पर्व में अपने पितृगणों को यथाशक्ति प्रसन्न करके पितृ विसर्जिनी अमावस्या को उन्हें अगले वर्ष पुनः आगमन की प्रार्थना के साथ विदा करें…