होलाष्टक 2025
इस वर्ष गुरुवार 6 मार्च को प्रातः 10:51 के लगभग विष्टि करण और विषकुम्भ योग में फाल्गुन शुक्ल अष्टमी तिथि का आरम्भ होगा जो सात मार्च को प्रातः 9:18 तक रहेगी | इस प्रकार उदया तिथि के अनुसार शुक्रवार सात मार्च से होलाष्टक आरम्भ हो जाएँगे | 10 मार्च को रंग की एकादशी है – जो फाल्गुन एकादशी और आमलकी एकादशी भी कहलाती है | उसके बाद तेरह मार्च को फाल्गुन पूर्णिमा है जिसे वसन्त पूर्णिमा और छोटी होली के नाम से भी जाना जाता है | इसी दिन होलिका दहन किया जाता है | और फिर 14 मार्च को प्रातः रंगों की बरसात के साथ ही होलाष्टक समाप्त हो जाएँगे |
फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से आरम्भ होकर पूर्णिमा तक की आठ दिनों की अवधि होलाष्टक के नाम से जानी जाती है और चैत्र कृष्ण प्रतिपदा को होलाष्टक समाप्त हो जाते हैं | होलाष्टक से ही होली के पर्व का आरम्भ हो जाता है | ज्योतिषी इसे “होलाष्टक दोष” की संज्ञा देते हैं और कुछ स्थानों पर इस अवधि में बहुत से शुभ कार्यों की मनाही होती है | ज्योतिषियों की मान्यता है कि इस अवधि में विवाह संस्कार, मुण्डन, भवन निर्माण अथवा गृह प्रवेश आदि नहीं करना चाहिए न ही कोई नया कार्य इस अवधि में आरम्भ करना चाहिए | ऐसा करने से अनेक प्रकार के कष्ट, क्लेश, विवाह सम्बन्ध विच्छेद, रोग आदि अनेक प्रकार की अशुभ बातों की सम्भावना बढ़ जाती है | किन्तु जन्म और मृत्यु के बाद किये जाने वाले संस्कारों के करने पर प्रतिबन्ध नहीं होता |
इस विषय में एक कथा भी प्रचलित है कि सती के द्वारा उनके पिता दक्ष के यज्ञ में पति भगवान शंकर के अपमान व्यथित होकर आत्माहुति देने के बाद जब भगवान् शंकर दक्ष के यज्ञ का विध्वंस करके ध्यानावस्थित हो गए उस समय तारकासुर ने अपने उत्पात बढ़ा दिए | तारकासुर का वध केवल भगवान् शिव और पार्वती की सन्तान ही कर सकती थी | नारद के कहने पर पार्वती ने घोर तपस्या की शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए, लेकिन शिव का ध्यान भंग नहीं हुआ | जो कोई भी उनकी साधना भंग करने का प्रयास करता वही उनके कोप का भागी बनता | तब कामदेव ने अपना बाण छोड़कर भोले शंकर का ध्यान भंग करने का साहस किया | कामदेव के इस अपराध का परिणाम वही हुआ जिसकी कल्पना सभी देवों ने की थी – भगवान शंकर ने अपने क्रोध की ज्वाला में कामदेव को भस्म कर दिया | अन्त में कामदेव की पत्नी रति के तप से प्रसन्न होकर शिव ने कामदेव को पुनर्जीवन देने का आश्वासन दिया | माना जाता है कि फाल्गुन शुक्ल अष्टमी को ही भगवान शिव ने कामदेव को भस्म किया था और बाद में रति ने आठ दिनों तक उनकी प्रार्थना की थी |
वैसे व्यावहारिक रूप से पंजाब और उत्तर प्रदेश के कुछ भागों में होलाष्टक का विचार अधिक किया जाता है, अन्य अंचलों में होलाष्टक का कोई दोष प्रायः नहीं माना जाता |
फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से ही होलिका दहन के स्थान को स्वच्छ करके वहाँ होलिका और प्रह्लाद के प्रतीक स्वरूप दो दण्ड स्थापित कर दिए जाते थे और उनके मध्य में घास फूस उपलों तथा लकड़ी आदि का ढेर लगा दिया जाता था | लेकिन एक बात ध्यान देने योग्य है कि इस अवसर पर भी इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता था कि वृक्षों की कटाई न करनी पड़े, और इसके लिए वृक्षों से अपने आप हाई गिरी हुई लकड़ियों और घास फूस को होलिका दहन के स्थान पर एकत्र किया जाता था | इससे विदित होता है कि उस समय प्रकृति का कितना सम्मान किया जाता था और अनावश्यक हाई वृक्षों की कटाई इत्यादि नहीं की जाती थी |
कृष्ण भक्त इस पर्व को राधा कृष्ण की कथा से जोड़ते हैं | राधा जी की जन्मस्थली बरसाने में इस दिन लड्डू बाँटे जाते हैं और अष्टमी से रंगों का खेल आरम्भ हो जाता है | माना जाता है की इसी दिन भगवान् कृष्ण श्री राधा जी और उनके परिवारजनों से मिलने के लिए बरसाने पहुँचे थे |
काशी विश्वनाथ मन्दिर में भी होली का त्यौहार धूम धाम से मनाया जाता है | वहाँ रंग की एकादशी से इस पर्व का आरम्भ हो जाता है | मान्यता है कि इसी दिन भगवान् शंकर माता पार्वती को अपने घर लाने के लिए निकले थे |
मान्यताएँ चाहें जो भी हों, इतना निश्चित है कि होलाष्टक आरम्भ होते ही मौसम में भी परिवर्तन आना आरम्भ हो जाता है | सर्दियाँ जाने लगती हैं और मौसम में हल्की सी गर्माहट आ जाती है जो बड़ी सुखकर प्रतीत होती है | वास्तव में होली का पर्व प्रकृति का पर्व है | प्रकृति के कण कण में वसन्त की छटा व्याप्त होती है जो समस्त जड़ चेतन को मन्त्रमुग्ध करती प्रेम और उत्साह के रंगों से सराबोर कर देती है | कोई विरक्त ही होगा जो ऐसे सुहाने मदमस्त कर देने वाले मौसम में ब्याह शादी या ऐसी ही अन्य सांसारिक बातों के विषय में विचार करेगा | जनसाधारण का रसिक मन तो ऐसे में सारे काम काज भुलाकर वसन्त और फाग की मस्ती में झूम ही उठेगा…
तो, क्यों न स्वयं को सभी प्रकार के सामाजिक रीति रिवाज़ों और मान्यताओं के बन्धन से मुक्त करके इस अवधि को वसन्त और फाग के हर्ष और उल्लास के साथ पूर्ण रूप से प्रकृति के सान्निध्य में व्यतीत किया जाए…
रंगों के पर्व की अभी से सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ…
