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शनि का मीन राशि में गोचर

मिथुन तथा कर्क राशियों के लिए शनि का मीन में गोचर

इस वर्ष शनिवार 29 मार्च, चैत्र अमावस्या को रात्रि 9:46 के लगभग किंस्तुघ्न करण और ब्रह्म योग में शनि का गोचर मीन राशि में हो जाएगा, जहाँ 3 जून 2027 तक भ्रमण करने के बाद मंगल की राशि मेष में पहुँच जाएँगे | यद्यपि मेष में वक्री होकर 20 अक्टूबर 2027 को एक बार फिर से रेवती नक्षत्र और मीन राशि में आएँगे और चार दिन बाद 24 दिसम्बर 2027 से मार्गी होते हुए 23 फरवरी 2028 को मेष राशि और अश्वनी नक्षत्र पर वापस पहुँच जाएँगे | धीमी गति के कारण लम्बी यात्रा है शनि की अतः इस बीच शनि कई बार अस्त भी रहेगा और कई बार वक्री चाल भी चलेगा | इन्हीं सब तथ्यों को ध्यान में रखते हुए जानने का प्रयास करेंगे शनि के मीन राशि में गोचर के मिथुन तथा कर्क राशि के जातकों पर क्या सम्भावित प्रभाव हो सकते हैं 

किन्तु ध्यान रहे, ये सभी परिणाम सामान्य हैं | किसी कुण्डली के विस्तृत फलादेश के लिए केवल एक ही ग्रह के गोचर को नहीं देखा जाता अपितु उस कुण्डली का विभिन्न सूत्रों के आधार पर विस्तृत अध्ययन आवश्यक है | क्योंकि शनि का जहाँ तक प्रश्न है तोशं करोति शनैश्चरतीति च शनि:” अर्थात, जो शान्ति और कल्याण प्रदान करे और धीरे चले वह शनिअतः शनिदेव का गोचर कहीं भी हो, घबराने की या भयभीत होने की आवश्यकता नहीं हैअपने कर्म की दिशा सुनिश्चित करके आगे बढ़ेंगे तो कल्याण ही होगाअतः धैर्यपूर्वक शनि की चाल पर दृष्टि रखते हुए कर्मरत रहियेनिश्चित रूप से गुरुदेव की कृपा से शनि के इस गोचर में भी कुछ तो अमृत प्राप्त होगा, क्योंकि गुरु की राशियों में स्थित शनि शुभ फल देने में समर्थ होता हैअस्तु, 

मिथुनआपके लिए राशि से अष्टमेश और नवमेश होकर आपके कर्म स्थान में गोचर कर

मिथुन
मिथुन

रहा है जहाँ से उसकी दृष्टियाँ आपके बारहवें, चतुर्थ और सप्तम भावों पर रहेंगी | आपका राश्यधिपति तथा चतुर्थेश बुध शनि का मित्र है | आरम्भ में शनि आपके योगकारक ग्रह गुरुदेव की राशि पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र पर रहेगा | अतः ये परिस्थितियाँ आपके लिए अत्यन्त भाग्यवर्धक प्रतीत होती है | यदि आपका स्वयं का व्यवसाय है तो उसमें आपको लाभ हो सकता है | यदि नौकरी में हैं तो उसमें भी पदोन्नति और ट्रांसफर की संभावना है | आय में वृद्धि की भी सम्भावना है | कार्यक्षेत्र में आप अपनी क्षमता सिद्ध करने के प्रयास में रहेंगे जिसमें आपको सफलता प्राप्त हो सकती है | यद्यपि ऐसी संभावनाएँ भी हैं कि कार्यभार की अधिकता हो जाए | किन्तु कार्य में प्रगति और सफलता के लिए कठोर परिश्रम की निश्चित रूप से आवश्यकता होती है | साथ ही कार्य पूर्ण निष्ठा और ईमानदारी से करने की आवश्यकता है | विशेष रूप से यदि आपका कार्य विदेश से सम्बन्ध रखता है तो विदेश यात्राओं में वृद्धि की भी सम्भावना है |

इस अवधि में आपके ख़र्चों पर तो नियन्त्रण रहेगा, किन्तु पारिवारिक जीवन में उतार चढ़ाव की सम्भावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता | वक्री शनि की स्थिति में आपको अपने माता पिता के स्वास्थ्य का ध्यान रखने की विशेष रूप से आवश्यकता होगी | साथ ही दाम्पत्य जीवन में कुछ समस्या की सम्भावना प्रतीत होती है | यदि आपने धैर्य से काम लिया और अपने व्यवहार को सन्तुलित रखा तो बहुत सारी समस्याओं से बचे रह सकते हैं | साथ ही, यदि अविवाहित हैं तो इस अवधि में आपका विवाह भी सम्भव है | ऐसी भी सम्भावना है कि आप अपने किसी सहकर्मी  के साथ ही विवाह बन्धन में बँध जाएँ |

स्वास्थ्य इस अवधि में उत्तम रहने की सम्भावना है, किन्तु फिर भी अपनी जीवन शैली में सुधार की आवश्यकता है |

कर्कशनिदेव आपके लिए सप्तमेश तथा अष्टमेश हैं और आपकी राशि से नवम भाव में

कर्क
कर्क

चाँदी के पाए के साथ गोचर कर रहे हैं तथा वहाँ से उनकी दृष्टियाँ आपके लाभ स्थान, तृतीय भाव और छठे भाव पर रहेंगी | नवमेश शुक्र तथा तृतीयेश बुध के साथ शनि की मित्रता है | शनि के इस गोचर शनि की ढैया भी समाप्त हो जाएगी | आपके कार्य में जो बाधाएँ अभी तक ढैया के कारण आ रही थींऐसा प्रतीत होता है वे बाधाएँ भी धीरे धीरे दूर होनी आरम्भ हो जाएँगी और सफलता प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होना आरम्भ हो जाएगा | आर्थिक स्थिति में सुधार की सम्भावना की जा सकती है | जातकों को अचानक ही किसी ऐसे स्थान से धन की प्राप्ति हो सकती है जहाँ के विषय में आपने कल्पना भी नहीं की होगी |

इस अवधि में आपके साहस, पराक्रम और निर्णायक क्षमता में वृद्धि की सम्भावना की जा सकती है जिसके कारण आप अपने कार्य समय पर पूर्ण करके उसका लाभ उठा सकते हैं | आप स्वतः ही अपने विरोधियों को परास्त करने में भी समर्थ होंगे | यदि आप किसी नौकरी में हैं तो उसमें प्रमोशन की सम्भावना की जा सकती है | 

दाम्पत्य जीवन अथवा प्रेम सम्बन्धों में यदि किसी प्रकार की समस्या चल रही है तो वह भी इस अवधि में दूर हो सकती है | यदि अविवाहित हैं तो विवाह के योग भी बन रहे हैं |

स्वास्थ्य का जहाँ तक प्रश्न है, तो किसी पुराने रोग से मुक्ति इस अवधि में सम्भव है | किन्तु वक्री शनि की अवस्था में आपको सावधान रहने की आवश्यकता होगी |

अन्त में बस इतना ही कि यदि कर्म करते हुए भी सफलता नहीं प्राप्त हो रही हो तो किसी अच्छे ज्योतिषी के पास दिशानिर्देश के लिए अवश्य जाइए, किन्तु अपने कर्म और प्रयासों के प्रति निष्ठावान रहियेक्योंकि ग्रहों के गोचर तो अपने नियत समय पर होते ही रहते हैं, केवल आपके कर्म और उचित प्रयास ही आपको जीवन में सफल बना सकते हैंअगले लेख में सिंह तथा कन्या राशि पर शनि के मीन राशि में गोचर पर वार्ता होगी

अष्ट वसु

अष्ट वसु

हमारी एक मित्र ने हमसे वसुओं के विषय में प्रश्न किया था । व्यस्तताओं के कारण समय पर इस विषय में कुछ नहीं लिख सके । अष्ट वसुओं के विषय में कुछ लिख पाना इतना सरल भी नहीं है, क्योंकि अनेकों पौराणिक सन्दर्भ और मान्यताएं इस विषय में हैं और इनके पृथक पृथक नाम पृथक पृथक पुराणों में उपलब्ध होते हैं । बहरहाल, विषय पर आगे बढ़ते हैं ।

वसु – जिनके कारण पृथिवी वसुधा, वसुन्धरा, वसुमती इत्यादि नामों से पुकारी जाती है । तो सबसे पहले हमें वसु शब्द की निष्पत्ति और उसके भाव को समझने की आवश्यकता है । सामान्यतः वसु का अर्थ धन सम्पदा आदि से किया जाता है – जो बहुत सीमा तक उचित भी है । धरती माता की कोख में अमूल्य निधियाँ भरी हैं, जिनके कारण वह वसुन्धरा कहलाती है । लाखो, करोड़ों वर्षो से अनेक प्रकार की धातुओं को, रत्नादिकों को पृथ्वी के गर्भ में पोषण मिला है । और सबसे महान तथा जीवनदायी रत्न तो वसुधा से प्राप्त अन्न, जल, वनस्पतियां ही हैं – जिनके अभाव में जीवन का कोई अस्तित्व ही नहीं । यहां जिन वसुओं के विषय में प्रश्न है वे आठ मौलिक देवता हैं जिन्हें “अष्ट-वसु” कहा जाता है और ये आठों वसु प्रकृति के आठ तत्वों का प्रतिनिधित्व करते हैं – ब्रह्माण्डीय प्राकृतिक घटनाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं और तैंतीस देवी देवताओं में गिने जाते हैं । वसु का अर्थ है निवास करने वाला और यह शब्द वस धातु में उप प्रत्यय लगाकर बना है । इस प्रकार रत्नगर्भा के हृदय में निवास करने वाली रत्नराशि वसु कहलाई ।

ये वसु तैंतीस देवताओं में से आठ हैं । वेदों में तैंतीस कोटि अर्थात तैंतीस प्रकार के देवी देवता उनके रूप गुण धर्मादि के आधार पर बताए गए हैं, जिन्हें हमारे विद्वानों ने तैंतीस करोड़ बना दिया है । ये तैंतीस देवी देवता हैं – 12 आदित्य, 11 रुद्र, 8 वसु, इन्द्र और प्रजापति । कुछ स्थानों पर प्रजापति के स्थान पर अश्विनी कुमारों का उल्लेख भी मिलता है । प्रजापति ब्रह्मा के लिए कहा गया है । 12 आदित्यों में एक विष्णु स्वयं हैं और 11 रुद्रों में एक शिव भी हैं । इन सभी को उस परम सत्ता ने ब्रह्माण्ड के सुचारू रूप से संचालन के लिए अलग अलग कार्य सौंपे हुए हैं ।

यहां हम बात कर रहे हैं अष्ट वसुओं की । आठ पदार्थों की ही भांति इन आठ वसुओं को भी समझा जाना चाहिए । इन सभी का जन्म दक्ष की पुत्री तथा धर्म की पत्नी अदिति के गर्भ से हुआ था जो भगवान शिव की पत्नी सती की बहिन थीं । जैसा कि ऊपर लिखा है, इन आठों वसुओं के अलग अलग पौराणिक ग्रन्थों में अलग अलग नाम उपलब्ध होते हैं । उदाहरण के लिए स्कन्द, विष्णु तथा हरिवंश पुराणों में आठ वसुओं के नाम हैं:- आप, ध्रुव, सोम, धर, अनिल, अनल, प्रत्यूष और प्रभाष । भागवत पुराण के अनुसार द्रोण, प्राण, ध्रुव, अर्क, अग्नि, द्यौ, वसु और विभावसु नाम हैं । महाभारत में आप (अप्) के स्थान में ‘अह:’ और शिवपुराण में ‘अयज’ नाम दिया है । ऋग्वेद के अनुसार ये पृथ्वीवासी देवता हैं और अग्नि इनके नायक हैं ।

इनके मानव रूप में जन्म के विषय में भी पृथक पृथक पौराणिक ग्रन्थों में पृथक पृथक कथाएँ उपलब्ध होती हैं । जिनमें प्रसिद्ध कथा है कि पितृशाप के कारण एक बार वसुओं को गर्भवास भुगतना पड़ा, फलस्वरूप उन्होंने नर्मदा नदी के तट पर बारह वर्षों तक घोर तपस्या की । तपस्या के बाद भगवान शंकर ने इन्हें वरदान दिया । तत्पश्चात वसुओं ने वही शिवलिंग स्थापित करके स्वर्ग की ओर प्रस्थान किया । एक अन्य कथा के अनुसार वसुओं में सबसे छोटे वसु द्यौ ने एक दिन वशिष्ठ की गाय नंदिनी को लालचवश चुरा लिया था । वशिष्ठ को जब पता चला तो उन्होंने आठों वसुओं को मनुष्य योनि में जन्म लेने का श्राप दे दिया । वसुओं के क्षमा मांगने पर महर्षि ने सात वसुओं के तो श्राप की अवधि केवल एक वर्ष कर दी, किन्तु द्यौ नाम के वसु ने क्योंकि उनकी धेनु का अपहरण किया था अत: उन्हें दीर्घकाल तक मनुष्य योनि में निसंतान रहने के साथ ही महान विद्वान और वीर होने के साथ साथ स्त्री के भोग का त्याग करने का भी श्राप दिया । इसी श्राप के कारण इनका जन्म शांतनु की पत्नी गंगा के गर्भ से हुआ । सात पुत्रों को गंगा ने जल में फेंक दिया था, किन्तु आठवें भीष्म को बचा लिया गया था ।

नाम चाहे जो भी हों और मान्यताएँ तथा कथाएँ चाहे जितनी भी प्रचलित हों, इतना अवश्य माना जाता है कि इन सबका प्रकृति और पञ्च महाभूतों से सम्बन्ध है – पृथिवी, जल, अग्नि, वायु और आकाश तथा सूर्य, चन्द्र और नक्षत्र । जैसे :

धर अर्थात धारण करने के गुण धर्म के कारण अर्थात पृथिवी । उनकी पत्नी द्यौ हैं जिनका सम्बन्ध आकाश से है । धरा है तब ही प्राणी मात्र का अस्तित्व और आश्रय है । जो धारण करती है । कुछ भी धारण करने की सामर्थ्य – वह कोई वस्तु भी हो सकती है और विचार भी हो सकता है ।

आप अर्थात जल की वर्षा अन्तरिक्ष से होती है जो नदियों से होता हुआ समुद्र में पहुँचता है और पुनः वाष्पीकृत होकर बरसने के लिए तत्पर हो जाता है । जीवन के लिए अमृत यह जल ही है । जल न हो तो जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती । इसी के कारण मानव शरीर के सारे रस बनते हैं और यही समूची प्रकृति को – समूची धरा को – समस्त वसुओं की जननी बनाता है ।

अनल का अर्थ ही है अग्नि – ऊर्जा । जब हम अग्नि में आहुति देते हैं तो यह माना जाता है कि यह अग्नि के माध्यम से भगवान तक पहुंचता है और बुराई को अच्छाई में बदल देता है और उदारतापूर्वक आशीर्वाद भी देता है । जीवन का आधार यही ऊर्जा है । अग्नि तत्व थोड़ा भी बिगड़ जाए तो शरीर के अंग समुचित रूप से कार्य नहीं कर सकते ।

अनिल का अर्थ भी सर्व विदित है – वायु और अन्तरिक्ष के देव हैं । इन्हें दिशाओं का रक्षक माना जाता है । इसी से हमें जीवित रहने के लिए प्राणवायु प्राप्त होती है । क्योंकि यह तत्व हमारी चेतना को – हमारी विचार शक्ति को प्रभावित करता है इसी कारण से यह हमारी स्मरण शक्ति को भी प्रभावित करता है | यदि यह तत्व विकृत हो जाए तो भ्रम और द्विविधा की स्थिति उत्पन्न हो जाती है व्यक्ति के लिए |

द्यौ का अर्थ भी सर्व विदित है – आकाश और इनका एक नाम प्रभाष भी है । अन्तरिक्ष की दिव्य उपस्थिति सर्वव्यापी है और वह सुनिश्चित करती है कि मन की शान्ति, आनन्द और समृद्धि बनी रहे । ये आकाश के पिता और देवी पृथ्वी की पत्नी माने गए हैं और इसीलिए इन्हें सम्मिलित रूप से द्यावापृथ्वी कहा जाता है । वह वर्षा के देवता इन्द्र के भी पिता माने जाते हैं ।

सोम अपने नाम के अनुरूप ही अपनी किरणों से अमृत की वर्षा करने वाले चन्द्र देव हैं । ये सभी प्रकार की भावनाओं अर्थात मन को नियंत्रित करते हैं तथा व्यक्तित्व निर्मित करते हैं । जिस प्रकार चन्द्र सूर्य के प्रकाश से भासित होता है उसी प्रकार मन भी चेतना के प्रकाश से ही प्रकाशित अर्थात् एकाग्र होता है ।

ध्रुव अटल होने के कारण नक्षत्रों के देव हैं । किसी भी विचार को केन्द्रित करने के लिए इसी अटल भाव की आवश्यकता होती है । किसी भी ऊर्जा के प्रवाह का केन्द्र बिन्दु ।

प्रत्यूष अथवा आदित्य सूर्य देव हैं जो प्रकाश तथा ऊर्जा और प्राण अर्थात जीवनी शक्ति के दाता हैं । यह वसु नेतृत्व के गुण प्रदान करते हैं, एक उज्ज्वल भविष्य और अचल सम्पत्ति प्रदान करने वाले माने जाते हैं ।

मान्यताएं और कथाएं चाहे जितनी भी हों, इतना सत्य है कि प्रकृति की ये शक्तियां मनुष्य के अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि ये ऐसी ऊर्जाएं हैं जो हमारे जीवन को सुचारू और संतुलित रूप से सञ्चालन में और हमारे जीवन तथा विचारों को सकारात्मकता प्रदान करने के लिए हमारे साथ निरन्तर “वास” करती हैं ।
—– कात्यायनी

 

गुरु का वृषभ में गोचर

गुरु का वृषभ में गोचर

बुधवार एक मई, वैशाख कृष्ण अष्टमी को दिन में एक बजे के लगभग शुभ योग और बालव करण में देवगुरु बृहस्पति अपने मित्र मंगल की मेष राशि से निकाल कर शत्रु ग्रह शुक्र की वृषभ राशि में प्रस्थान कर जाएँगे, जहाँ 14 मई 2025 तक विश्राम करने का पश्चात एक अन्य शत्रु ग्रह बुध की मिथुन राशि में पहुँच जाएँगे | गुरुदेव इस समय कृत्तिका नक्षत्र पर विचरण कर रहे हैं | वृषभ राशि में भ्रमण करते हुए गुरुदेव 3 मई से 3 जून तक अस्त भी रहेंगे – जिसे सामान्य भाषा में तारा डूबना कहा जाता है और इस समय विवाह जैसे मांगलिक कार्यों की मनाही होती है | इसके अतिरिक्त नौ अक्टूबर 2024 से वक्री होते हुए 28 नवम्बर को रोहिणी नक्षत्र पर वापस आ जाएँगे | यहाँ से 4 फरवरी 2025 से मार्गी होते हुए पुनः दस अप्रैल 2025 को मृगशिर नक्षत्र पर आकर दस मई 2025 को रात्रि में 10:36 के लगभग मिथुन राशि में प्रविष्ट हो जाएँगे | कृत्तिका नक्षत्र के स्वामी सूर्य से गुरु की मित्रता है, रोहिणी नक्षत्र के स्वामी शुक्र और गुरु की परस्पर शत्रुता है तथा मृगशिर नक्षत्र के स्वामी मंगल के साथ गुरुदेव की मित्रता है | इस प्रकार इतना तो स्पष्ट है कि शत्रु ग्रह की राशि में गोचर करते हुए भी गुरुदेव अधिकाँश समय अपने मित्र ग्रहों के नक्षत्रों पर आरूढ़ रहेंगे | साथ ही यह भी सत्य है कि देवगुरु बृहस्पति तथा दैत्यगुरु भार्गव शुक्र दोनों ही ग्रह शुभ ग्रह माने जाते हैं | गुरु जहाँ ज्ञान, विज्ञान, बुद्धि, धर्म और आध्यात्म, राजनीति, कूटनीति के साथ-साथ भाग्य वृद्धि, विवाह तथा सन्तान और पिता के सुख के कारक हैं, तो वहीं शुक्र भौतिक सुख और ऐश्वर्य, भोग विलास, रोमांस, विवाह, सौन्दर्य तथा समस्त प्रकार की कलाओं के स्वामी हैं | अतः व्यावहारिक दृष्टि से देखा जाए तो ये दोनों ग्रह जब किसी न किसी रूप में परस्पर मिल जाएँ अथवा एक दूसरे के प्रभाव में आ जाएँ तो निश्चित रूप से कुछ चमत्कार की सम्भावना तो की ही जा सकती है |

राशियों की यदि बात करें तो, गुरु की एक राशि धनु के लिए वृषभ छठा भाव तथा दूसरी राशि मीन के लिए तीसरा भाव हो जाता है | वृषभ राशि के लिए गुरु अष्टमेश और एकादशेश हो जाता है | यहाँ उपस्थित होने पर गुरु की दृष्टियाँ कन्या, वृश्चिक तथा मकर राशियों पर रहेंगी, इस प्रकार धनु, मीन और वृषभ के साथ साथ ये तीनों राशियाँ भी इस गोचर से प्रभावित होंगी | इन्हीं समस्त तथ्यों के आधार जानने का प्रयास करते हैं कि सभी बारह राशियों के जातकों के लिए गुरु के वृषभ में गोचर के क्या सम्भावित परिणाम रह सकते हैं | “सम्भावित” इसलिए, क्योंकि ये सभी परिणाम चन्द्र राशि पर आधारित हैं, और चन्द्रमा एक राशि में लहभाग सवा दो दिन रहता है और इस अवधि में अनगिनत बच्चों का जन्म हो जाता है – और सबही के लिए तो कोई ग्रह एक समान नहीं हुआ करता | साथ ही, सबसे प्रमुख तो व्यक्ति अपना कर्म होता है जो किसी भी ग्रह दशा को अपने अनुकूल बनाने की सामर्थ्य रखता है…

प्रस्तुत है सभी बारह राशियों के जातकों के लिए गुरु के वृषभ में गोचर के सम्भावित परिणाम…

मेष : आपके लिए गुरु नवमेश तथा द्वादशेश है और आपके दूसरे भाव में गोचर कर रहा है, जहाँ से उसकी दृष्टियाँ आपकी राशि से छठे, आठवें और दशम भावों पर आ रही हैं | आपके लिए यह गोचर भाग्यवर्धक प्रतीत होता है | कार्यक्षेत्र में प्रगति के संकेत प्रतीत होते हैं | किसी जॉब में हैं तो वहाँ कोई प्रमोशन भी सम्भव है | अपने स्वयं का कार्य है तो आपको कुछ नवीन प्रोजेक्ट्स का लाभ हो सकता है जिनके कारण आप वर्ष भर व्यस्त रहते हुए धनोपार्जन कर सकते हैं | बहुत समय से यदि कुछ कार्य रुके हुए हैं अथवा उनमें किन्हीं कारणों से व्यवधान की स्थिति चल रही है तो वे कार्य भी पुनः आरम्भ होकर पूर्णता को प्राप्त हो सकते हैं | यदि कहीं से ऋण लिया हुआ है तो इस अवधि में उससे भी मुक्ति सम्भव है | किसी पुराने रोग से मुक्ति भी इस अवधि में सम्भव है | पैतृक सम्पत्ति का लाभ सम्भव है | कार्य के सिलसिले में दूर पास की यात्राओं के योग भी प्रतीत होते हैं | कलाकारों के लिए, अध्ययन अध्यापन के क्षेत्र से सम्बद्ध व्यक्तियों के लिए तथा राजनीति से सम्बन्ध रखने वाले जातकों के लिए यह गोचर बहुत अनुकूल प्रतीत होता है | माँ सम्मान में वृद्धि के साथ हाई आपको किसी पुरस्कार आदि से भी सम्मानित किया जा सकता है | धार्मिक और आध्यात्मिक गतिविधियों में वृद्धि के संकेत प्रतीत होते हैं |

वृषभ: आपके लिए आपके अष्टमेश और एकादशेश का गोचर आपकी लग्न में ही हो रहा है जहाँ से उसकी दृष्टियाँ आपके पँचम, सप्तम और नवम भावों पर रहेंगी | आपकी सोच इस अवधि में सकारात्मक बनी रहेगी जिसका लाभ आपको पारिवारिक और व्यावसायिक दोनों क्षेत्रों में दिखाई देगा | परिवार में प्रसन्नता का वातावरण बना रहेगा | सुख और भोग विलास के साधनों में वृद्धि की भी सम्भावना है | आप किसी नौकरी में हैं तो आपकी पदोन्नति के साथ हाई अर्थ लाभ और किसी पुरस्कार आदि की प्राप्ति की भी सम्भावना है | आपके साहस और निर्णायक क्षमता में वृद्धि के कारण आप न केवल अपने कार्य समय पर पूर्ण करने में सक्षम होंगे, अपितु अपनें अधीनस्थ कर्मचारियों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बन सकते हैं दूर पास की यात्राओं के भी योग प्रतीत होते हैं जो आपके लिए कार्य की दृष्टि से लाभदायक रहेंगी | नौकरी में अच्छा इंक्रीमेंट और बोनस प्राप्त हो सकता है जिसके कारण आप अपने ऋणों का समय पर भुगतान करके उनसे मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं | साथ ही आप अपनी फ़िज़ूलख़र्ची बन्द करके पैसा कहीं इन्वेस्ट भी कर सकते हैं ताकि भविष्य में उसका लाभ प्राप्त हो सके | दाम्पत्य जीवन में भी प्रगाढ़ता और आनन्द के संकेत प्रतीत होते हैं | धार्मिक और आध्यात्मिक गतिविधियों में वृद्धि के संकेत हैं | शारीरिक और मानसिक समस्याओं से मुक्ति के संकेत हैं |

मिथुन : आपके लिए गुरु आपका सप्तमेश और दशमेश होकर योगकारक हो जाता है और इस समय आपके बारहवें भाव में गोचर करेगा | यहाँ से गुरु की दृष्टियाँ आपके चतुर्थ भाव, छठे भाव तथा आठवें भाव पर होंगी | आपके लिए यह गोचर बहुत अधिक अनुकूल नहीं प्रतीत होता | कार्य स्थल पर कुछ कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है | अचानक हाई विरोध के सवार मुखर हो सकते हैं | अच्छा यही रहेगा कि अपने आँख कान खुले रखकर शान्ति के साथ अपने कार्य करते रहें | पिता अथवा जीवन साथी के साथ किसी प्रकार का माँ मटाव भी सम्भव है | इस अवधि में आपको कार्य के सिलसिले में यात्राएँ करनी पड़ सकती हैं जिनमें थकान बहुत अधिक होगी | यात्राओं के दौरान आपको अपने स्वास्थ्य का भी ध्यान रखने की आवश्यकता होगी | स्वास्थ्य अथवा कोर्ट कचहरी के चक्कर में धन भी बहुत अधिक ख़र्च हो सकता है जिसके कारण आपका बजट गड़बड़ा सकता है अतः इस ओर से सावधान रहने की आवश्यकता है | आपको लीवर तथा पेट से सम्बन्धित कोई बीमारी गम्भीर रूप धारण कर सकती है अतः अपने खान पर नियंत्रण रखने तथा समय पर डॉक्टर को दिखाने की आवश्यकता है | गर्भवती महिलाओं को भी विशेष रूप से सावधान रहने की आवश्यकता है | यदि कोई प्रेम प्रसंग चल रहा है तो उसे अभी विवाह की स्थिति तक न ले जाना ही आपके हित में रहेगा |

कर्क : आपके लिए गुरु आपका षष्ठेश तथा भाग्येश होकर आपके लाभ स्थान में गोचर कर रहा है, जहाँ से उसकी दृष्टियाँ आपके तृतीय भाव, पँचम भाव तथा सप्तम भावों पर हैं | आपके लिए या गोचर अनुकूल तथा भाग्यवर्धक प्रतीत होता है | जीवन में किसी क्षेत्र में यदि बहुत समय से कुछ बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है तो अब उन बाधाओं से मुक्ति का समय प्रतीत होता है | उच्च शिक्षा प्राप्त के रहे छात्रों को अनुकूल परिणाम प्राप्त हो सकते हैं | किसी नौकरी में हैं तो पदोन्नति सम्भव है | अपना स्वयं का व्यवसाय है तो उसमें भी प्रगति और धनलाभ की सम्भावनाएँ हैं | पार्टनरशिप में जिन लोगों का व्यवसाय है उनके लिए विशेष रूप से यह गोचर भाग्यवर्धक प्रतीत होता है | कोई नवीन प्रोजेक्ट भी इस अवधि में आप आरम्भ कर सकते हैं | कार्य से सम्बन्धित यात्राओं में वृद्धि की सम्भावना है | आय के नवीन स्रोत आपके समक्ष उपस्थित हो सकते हैं | सन्तान के जन्म के कारण उत्सव का वातावरण बनेगा | आपको अपने जीवन साथी के माध्यम से भी अर्थ लाभ की सम्भावना है | आपकी सन्तान की ओर से कोई शुभ समाचार इस अवधि में आपको प्राप्त हो सकता है | आध्यात्मिक गतिविधियों में वृद्धि की सम्भावना है |

सिंह : आपके लिए आपके पंचमेश और अष्टमेश का गोचर आपके दशम भाव में हो रहा है, जहाँ से आपके द्वितीय भाव, चतुर्थ भाव तथा छठे भाव पर उसकी दृष्टियाँ हैं | कार्य क्षेत्र में आपको सफलता प्राप्त होने के योग प्रतीत होते हैं | यदि आप एक वक़ील हैं, डॉक्टर हैं अथवा इन दोनों क्षेत्रों में से किसी क्षेत्र में अध्ययनरत हैं तो आपके लिए यह गोचर अत्यन्त भाग्यवर्धक प्रतीत होता है | पोलिटिक्स से सम्बद्ध जातकों के लिए भी यह गोचर अनुकूल फल देने वाला प्रतीत होता है | आपको कुछ विशेष ज़िम्मेदारियाँ आपकी पार्टी की ओर से दी जा सकती हैं जिनके कारण आपकी व्यसत्ताएँ भी बढ़ सकती हैं | जिन लोगों का पैतृक व्यवसाय है अथवा जो लोग प्रॉपर्टी से सम्बद्ध व्यवसाय में हैं उनके लिए भी यह गोचर अनुकूल प्रतीत होता है | आप अपने निवास को Renovate भी करा सकते हैं | सुख सुविधाओं के साधनों में भी रुचि बढ़ सकती है | कोई नवीन प्रॉपर्टी भी आप इस अवधि में ख़रीद सकते हैं | आपकी वाणी प्रभावशाली रहेगी जिसका लाभ आपको अपने कार्य में निश्चित रूप से प्राप्त होगा | किन्तु इसके साथ ही स्वास्थ्य का भी ध्यान रखने की आवश्यकता है | विशेष रूप से पेट और लीवर से सम्बन्धित समस्याएँ गम्भीर रूप धारण कर सकती है, अतः अपने खान पान पर नियंत्रण रखने की विशेष रूप से आवश्यकता है |

कन्या : आपके लिए चतुर्थेश तथा सप्तमेश होकर गुरु योगकारक हो जाता है और इस समय आपके भाग्य स्थान में गोचर करेगा जहाँ से उसकी दृष्टियाँ आपकी लग्न पर, तृतीय भाव पर तथा पँचम भावों पर रहेंगी | आपके लिए, आपकी सन्तान के लिए तथा छोटे भाई बहनों के लिए यह गोचर अत्यन्त भाग्यवर्धक प्रतीत होता है | एक ओर जहाँ आर्थिक स्थिति में सुधार और दृढ़ता की सम्भावना है वहीं प्रॉपर्टी से सम्बन्धित मामलों में भी लाभ की सम्भावना प्रतीत होती है | भौतिक सुख सुविधाओं में वृद्धि के साथ हाई आप कोई नवीन प्रॉपर्टी भी इस अवधि में ख़रीद सकते हैं | नौकरी में हैं तो पदोन्नति की सम्भावना है | अपने स्वयं का व्यवसाय है, अथवा पार्टनरशिप में कोई व्यवसाय कर रहे हैं तो उसमें भी उन्नति और अर्थ लाभ की सम्भावना है | परिवार में आनन्द का वातावरण बना रहेगा | समाज में मान सम्मान तथा प्रतिष्ठा में वृद्धि की सम्भावना है | उच्च शिक्षा के लिए विदेश जा सकते हैं अथवा अपनी सन्तान को भेज सकते हैं | छात्रों को अनुकूल परिणाम की सम्भावना की जा सकती है | आपके जीवन साथी के माध्यम से भी अर्थ लाभ की सम्भावना है | कार्य के सिलसिले में दूर पास की यात्राओं के योग भी प्रतीत होते हैं | नौकरी में हैं तो अधिकारी वर्ग का सहयोग आपको उपलब्ध रहेगा | धार्मिक तथा आध्यात्मिक गतिविधियों में वृद्धि हो सकती है | छोटे भाई बहनों के साथ यदि कुछ समय से मतभेद चल रहा है तो वह भी इस अवधि में दूर हो सकता है |

तुला : आपके लिए गुरु आपका तृतीयेश तथा षष्ठेश है और आपके अष्टम भाव में गोचर कर रहा है, जहाँ से इसकी दृष्टियाँ आपके द्वादश भाव, द्वितीय भाव तथा चतुर्थ भाव पर आ रही हैं | अष्टम भाव से जीवन में आकस्मिक घटनाओं का विचार किया जाता है | आपके लिए यह गोचर कुछ अधिक अनुकूल नहीं प्रतीत होता | सर्वप्रथम तो अचानक ही ऐसी यात्राएँ करनी पड़ सकती हैं जिनके कारण धन की हानि होने के साथ ही कष्ट भी प्राप्त हो सकता है | यदि यात्रा करनी पड़ जाए तो अपने महत्त्वपूर्ण काग़ज़ों को सम्हाल कर रखने की आवश्यकता है | परिवारजनो के साथ सम्पत्ति को लेकर भी किसी प्रकार का वैमनस्य भी सम्भव है | इससे पूर्व कि विवाद कोर्ट तक पहुँचे, बात को सम्हालने का प्रयास आपके हित में होगा, अन्यथा धन और सम्मान दोनों की हानि सम्भव है | नौकरी और व्यवसाय में भी कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है | यदि कहीं पैसा इन्वेस्ट किया हुआ तो उसकी वापसी में सन्देह है | कार्य स्थल पर कुछ गुप्त शत्रु आपकी छवि धूमिल करने का प्रयास कर सकते हैं, अतः अपने आँख और कान खुले रखने की आवश्यकता है | यदि आपने अपनी वाणी पर नियंत्रण नहीं रखा तो आपको उसका परिणाम भुगतना पड़ सकता है | साथ ही खान पान पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है | आपके लिए यह समय आत्म मन्थन का समय है, अतः हर ओर से ध्यान हटाकर बृहस्पति के मन्त्र का जाप करें तथा भविष्य के लिए योजनाएँ तैयार करें |

वृश्चिक : आपके लिए आपके द्वितीयेश तथा पंचमेश का गोचर आपके सप्तम भाव में हो रहा है, जहाँ से आपके लाभ स्थान, लग्न तथा तृतीय भाव पर उसकी दृष्टियाँ हैं | आपके लिए यह गोचर भाग्यवर्धक रहने की सम्भावना है | यदि विवाह की योजना है तो वह इस अवधि में सम्भव है | विवाहित हैं तो दाम्पत्य जीवन में आनन्द रहेगा तथा आप सन्तान के लिए भी प्रयास कर सकते हैं | आपके वर्तमान व्यवसाय में लाभ की आशा की जा सकती है | कोई नवीन कार्य भी आप इस अवधि में आरम्भ कर सकते हैं | आपको अपने कार्य में मित्रों का तथा परिवार जनों का पूर्ण सहयोग प्राप्त रहेगा | बहन भाइयों के साथ सम्बन्धों में मधुरता में वृद्धि होगी | समाज में माँ सम्मान में वृद्धि के योग हैं | आपको तथा आपके जीवन साथी के लिए अर्थलभ सम्भव है | यदि कहीं पैसा इन्वेस्ट किया हुआ तो उसकी वापसी भी इस अवधि में सम्भव है | अध्ययन अध्यापन से सम्बन्धित जिनका कार्य है उनके लिए भी समय अनुकूल प्रतीत होता है | आपकी वाणी इस समय अत्यन्त प्रभावशाली है जिसका लाभ आपको अपने कार्य में निश्चित रूप से प्राप्त होगा | आपका कोई शोध प्रबन्ध इस अवधि में पूर्ण होकर प्रकाशित हो सकता है और उसके कारण आपको कोई पुरस्कार भी प्राप्त हो सकता है | कार्य से सम्बन्धित यात्राएँ सुखकर तथा लाभदायक रहेंगी | सन्तान की ओर से कोई शुभ समाचार प्राप्त हो सकता है | छात्रों के लिए अनुकूल परिणाम की आशा की जा सकती है |

धनु : आपके लिए आपका लग्नेश और चतुर्थेश होकर योगकारक हो जाता है तथा इस समय आपके छठे भाव में गोचर करेगा, जहाँ से इसकी दृष्टियाँ आपके दशम, द्वादश तथा द्वितीय भाव पर रहेंगी | छठे भाव से क़ानूनी समस्याओं, स्वास्थ्य तथा प्रतियोगिता इत्यादि का विचार किया जाता है | आपके लिए यह गोचर मिश्रित फल देने वाला प्रतीत होता है | आपको अपने प्रयासों में सफलता तो प्राप्त होगी, किन्तु उसके लिए आपको अधिक प्रयास करने की आवश्यकता होगी | आपको अपने स्वयं के अथवा परिवार में किसी व्यक्ति के स्वास्थ्य से सम्बन्धित समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है तथा उनके कारण पैसा भी अधिक खर्च हो सकता है | आपको स्वयं को अथवा परिवार में किसी अन्य व्यक्ति को अस्पताल में भी भर्ती होना पड़ सकता है | जिन परिवारजनों के लिए आप पूर्ण रूप से समर्पित हैं उन्हीं के साथ मन मुटाव के चलते आपको मानसिक कष्ट का भी आपको अनुभव हो सकता है | यदि किसी नौकरी में हैं तो अपने अधिकारी वर्ग को प्रसन्न रखने के लिए भी आपको बहुत अधिक प्रयास करना पड़ सकता है | विवाहित हैं तो ससुराल पक्ष की ओर से भी किसी प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है | आय से अधिक ख़र्च होने के कारण आपका बजट भी गड़बड़ा सकता है | आपके लिए आवश्यक है कि कार्य से सम्बन्धित अपनी योजनाओं के विषय में अपने मित्रों से कुछ विचार विमर्श न करें | साथ ही बृहस्पति के मन्त्र का जाप आपके लिए विपरीत प्रभाव को कम करेगा |

मकर : आपके लिए गुरु आपके तृतीय और द्वादश भावों का स्वामी है तथा आपके योगकारक शुक्र की राशि में पँचम भाव में गोचर करेगा, जहाँ से उसकी दृष्टियाँ आपके भाग्य स्थान, लाभ स्थान तथा लग्न पर रहेंगी | परिवार में किसी बच्चे के जन्म के कारण आनन्द और उत्सव का वातावरण बनेगा | यदि जीवन साथी की तलाश है तो वह इस अवधि में पूर्ण हो सकती है | आपकी सन्तान उच्च शिक्षा के लिए कहीं विदेश जा सकती है | आप यदि किसी नौकरी में हैं तो पदोन्नति के साथ ही किसी अन्य स्थान पर ट्रांसफ़र की भी सम्भावना है | आर्थिक दृष्टि से यह ट्रांसफ़र आपके हित में रहेगा | हाथ के कारीगरों के लिए विशेष रूप से यह गोचर अनुकूल प्रतीत होता है | आपकी कलाकृतियों की एग्जीविशन लग सकती हैं जिनमें आपके कार्य की प्रशंसा होगी | इन प्रदर्शनियों के लिए आपको दूर पास की यात्राओं के अवसर भी उपलब्ध हो सकते हैं | आपका अपना स्वयं का व्यवसाय है अथवा आप अपने पैतृक व्यवसाय में हैं या उनके साथ पार्टनरशिप में कोई कार्य कर रहे हैं तो आपके लिए व्यापार में उन्नति और अर्थलाभ की सम्भावना प्रबल है | पिता, बड़े भाई, मित्रों तथा अधिकारी वर्ग का सहयोग आपको उपलब्ध रहेगा | परिवार में माँगलिक कार्यों का आयोजन हो सकता है | आपकी रुचि धार्मिक गतिविधियों में बढ़ सकती है | स्वास्थ्य की दृष्टि से भी यह गोचर अनुकूल प्रतीत होता है |

कुम्भ : गुरु आपके द्वितीय और एकादश भावों का स्वामी है तथा इस समय आपके लिए योगकारक ग्रह शुक्र की राशि में आपके चतुर्थ भाव में गोचर करेगा | यहाँ से गुरु की दृष्टियाँ आपके अष्टम भाव, दशम भाव तथा बारहवें भाव पर रहेंगी | चतुर्थ भाव से मुख्य रूप से मानसिक शक्ति, भौतिक सुख सुविधाओं, परिवार तथा माता का विचार किया जाता है | एक ओर जहाँ किन्हीं कारणों से आप मानसिक अशान्ति का अनुभव कर सकते हैं, वहीं दूसरी ओर आपकी आर्थिक स्थिति में सुधार तथा दृढ़ता आने की भी सम्भावना है | हाँ इतना अवश्य है कि आपको बजट बनाकर चलना होगा ताकि अनावश्यक ख़र्चों से बचा जा सके | जो लोग अध्ययन अध्यापन के क्षेत्र में कार्यरत हैं, मैनेजमेंट जैसे किसी व्यवसाय में हैं अथवा कम्प्यूटर आदि से सम्बन्धित कोई कार्य है तो उनके लिए यह गोचर बहुत अनुकूल रह सकता है | कार्य स्थल पर चली आ रही समस्याओं से मुक्ति की आशा इस अवधि में की जा सकती है | आपकी अपने कार्य से सम्बन्धित कोई पुस्तक इस अवधि में प्रकाशित हो सकती है जिसके कारण आपको कोई पुरस्कार आदि भी प्राप्त हो सकता है | आपका स्वयं का व्यवसाय है तो आप उसका भी विस्तार इस अवधि में कर सकते हैं | यदि आपका कार्य विदेश से सम्बन्धित है तो आपके लिए यह गोचर अत्यन्त अनुकूल फल दे सकता है | साथ ही पोलिटिक्स से सम्बन्ध रखने वाले जातकों के लिए भी यह गोचर अनुकूल प्रतीत होता है | किन्तु जैसा कि पूर्व में लिखा है, सम्भवतः कार्य की अधिकता के कारण अथवा सन्तुष्ट न होने के अपने स्वभाव के कारण आपको मानसिक अशान्ति अथवा तनाव का अनुभव हो सकता है | इसके लिए यदि आप ध्यान और प्राणायाम के अभ्यास करते हैं तो ये आपके लिए उचित रहेंगे |

मीन : आपके लिए गुरु आपका लग्नेश और दशमेश होकर आपके लिए योगकारक हो जाता है और इस समय आपके तृतीय भाव में गोचर करने जा रहा है, जहाँ से इसकी दृष्टियाँ आपके सप्तम भाव, भाग्य स्थान तथा लाभ स्थान पर रहेंगी | आपके तथा आपके जीवन साथी के लिए पराक्रम और उत्साह में वृद्धि के संकेत हैं | यह गोचर आपके लिए भाग्यवर्धक प्रतीत होता है | हाथ के कारीगरों, कलाकारों, मीडिया आदि से सम्बन्ध रखने वाले जातकों तथा लेखन आदि से जुड़े जातकों के लिए तो यह गोचर निश्चित रूप से अत्यन्त अनुकूल प्रतीत होता है | आपके कार्य की प्रशंसा के साथ ही आपकी आर्थिक स्थिति भी सुदृढ़ होने की सम्भावना है | अपना स्वयं का व्यवसाय है और उसमें यदि कुछ समय से समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था तो अब उन समस्याओं से मुक्ति का समय प्रतीत होता है | आपको अधिकारी वर्ग का, पिता का, भाई बहनों, जीवन साथी तथा मित्रों का समुचित सहयोग इस अवधि में उपलब्ध रहेगा | परिवार में आनन्द का वातावरण बना रहेगा जिसके कारण आपक पूर्ण मनोयोग से अपने कार्य पूर्ण करने में सक्षम होंगे | कुछ नवीन प्रोजेक्ट्स भी आपको प्राप्त हो सकते हैं जिनके कारण आप दीर्घ समय तक व्यस्त रहते हुए अर्थ लाभ कर सकते हैं | धार्मिक और आध्यात्मिक गतिविधियों में आपकी रुचि में वृद्धि की सम्भावना है | आप तीर्थाटन के लिए भी जा सकते हैं | किन्तु इतना ध्यान रहे कि पोंग पण्डितों के झाँसे में न आने पाएँ |

अन्त में, सबसे प्रमुख व्यक्ति का अपना कर्म होता है | यदि हम कर्मशील रहते हुए अपने लक्ष्य की ओर हम सभी अग्रसर रहे तो निश्चित रूप से गुरुदेव हमारी सहायता अवश्य करेंगे |

 

 

वर्ष 2024 मे पञ्चक

वर्ष 2024 मे पञ्चक

नमस्कार मित्रों ! वर्ष 2023 को विदा करके वर्ष 2024 आने वाला है… सर्वप्रथम सभी को वर्ष 2024 के लिये अनेकशः हार्दिक शुभकामनाएँ… हर वर्ष की भाँति इस वर्ष भी नूतन वर्ष के आरम्भ से पूर्व प्रस्तुत है वर्ष 2024 में आने वाले पञ्चकों की एक तालिका… किन्तु तालिका प्रस्तुत करने से पूर्व आइये जानते हैं कि पञ्चक वास्तव में होते क्या हैं |

पञ्चकों का निर्णय चन्द्रमा की स्थिति से होता है | घनिष्ठा से रेवती तक पाँच नक्षत्र पञ्चक समूह में आते हैं | अर्थात घनिष्ठा, शतभिषज, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद और रेवती नक्षत्रों में जब चन्द्रमा होता है तब यह स्थिति नक्षत्र पञ्चक – पाँच विशिष्ट नक्षत्रों का समूह – कहलाती है | इनमें दो नक्षत्र – पूर्वा भाद्रपद और रेवती – सात्विक नक्षत्र हैं, तथा शेष तीन – शतभिषज धनिष्ठा और उत्तरभाद्रपद – तामसी नक्षत्र हैं | इन पाँचों नक्षत्रों में चन्द्रमा क्रमशः कुम्भ और मीन राशियों पर भ्रमण करता है | अर्थात चन्द्रमा के मेष राशि में आ जाने पर पञ्चक समाप्त हो जाते हैं | इस प्रकार वर्ष भर में कई बार पञ्चकों का समय आता है |

वास्तव में तो धनिष्ठा के तृतीय चरण से लेकर रेवती के अन्त तक का समय पञ्चक का समय माना जाता है – यानी धनिष्ठा के दो पाद, शतभिषज, दोनों भाद्रपद और रेवती के चारों पाद पञ्चक समूह में आते हैं | पञ्चकों को प्रायः किसी भी शुभ कार्य के लिए अशुभ माना गया है | इस अवधि में बच्चे का नामकरण तो नितान्त ही वर्जित है | ऐसी भी मान्यता है कि पञ्चक में यदि किसी का स्वर्गवास हो जाए तो पञ्चकों के समाप्त होने की प्रतीक्षा करनी चाहिए और उसकी समस्त क्रियाएँ पञ्चकों की समाप्ति पर कुछ शान्ति उपायों के साथ सम्पन्न करनी चाहियें | अर्थात पञ्चक काल में शव का दाह संस्कार नहीं करना चाहिए अन्यथा परिवार के लिए शुभ नहीं होता |

पञ्चकों के अलग अलग वार के अनुसार अलग अलग फल होते हैं | जैसे सोमवार को यदि पञ्चकों का आरम्भ हो तो उन्हें राज पञ्चक कहा जाता है जो शुभ माना जाता है | यदि “राज पञ्चक” की मान्यता को मानें तो इसका अर्थ यह हुआ कि इस अवधि में कोई शुभ कार्य भी किया जा सकता है | इसके अतिरिक्त रविवार को आरम्भ होने वाले पञ्चकों को रोग पञ्चक माना जाता है, शुक्रवार को आरम्भ होने वाले पञ्चकों को चोर पञ्चक और मंगलवार को आरम्भ होने वाले पञ्चकों को अग्नि पञ्चक माना जाता है | नाम से ही स्पष्ट है कि मान्यता के अनुसार इन पञ्चकों में रोग, आग लगने अथवा चोरी आदि का भय हो सकता है | जैसे धनिष्ठा नक्षत्र में कोई कार्य आरम्भ करने से अग्नि का भय हो सकता है, शतभिषज में क्लेश का भय, पूर्वाभाद्रपद रोगकारक, उत्तर भाद्रपद में दण्ड का भय तथा रेवती नक्षत्र में कोई कार्य आरम्भ करने पर धनहानि का भय माना जाता है | इनके अतिरिक्त गुरुवार और बुधवार को आरम्भ होने वाले पञ्चकों को सदा शुभ माना जाता है |

कुछ अन्य कार्यों की भी मनाही पञ्चकों के दौरान होती है – जैसे दक्षिण दिशा की यात्रा नहीं करनी चाहिए | लेकिन आज के प्रतियोगिता के युग में यदि किसी व्यक्ति का नौकरी के लिए इन्टरव्यू उसी दिन हो और उसे दक्षिण दिशा की ही यात्रा करनी पड़ जाए तो वह कैसे इस नियम का पालन कर सकता है ? यदि पञ्चकों के भय से वह इन्टरव्यू देने नहीं जाएगा तो जो कार्य उसे मिलने की सम्भावना हो सकती थी वह कार्य उसके हाथ से निकल कर किसी और को मिल सकता है |

एक और मान्यता है कि पञ्चकों के एक विशेष नक्षत्र में लकड़ी इत्यादि इकट्ठा करने का या छत आदि डलवाने का कार्य नहीं करना चाहिए | लेकिन आज जिस प्रकार की व्यस्तताओं में हर व्यक्ति घिरा हुआ है उसके चलते ऐसा भी तो हो सकता है कि व्यक्ति को उसी दिन अपने ऑफिस से अवकाश मिला हो और उसी दिन उसे वह कार्य सम्पन्न करना हो ?

ऐसी भी मान्यता है कि इस अवधि में किया कोई भी कार्य पाँचगुना फल देता है | इस स्थिति में तो इस अवधि में किये गए शुभ कार्यों का फल भी पाँच गुना प्राप्त होना चाहिए – केवल अशुभ कार्यों का ही फल पाँच गुणा क्यों हो ? सम्भवतः इसी विचार के चलते कुछ लोगों ने ऐसा विचार किया कि पञ्चक केवल अशुभ ही नहीं होते, शुभ भी हो सकते हैं | इसीलिए पञ्चकों में सगाई, विवाह आदि शुभ कार्य करना अच्छा माना जाता है | पञ्चक के अन्तर्गत आने वाले तीन नक्षत्र – पूर्वा भाद्रपद, उत्तर भाद्रपद और रेवती – में से कोई यदि रविवार को आए तो वह बहुत शुभ योग तथा कार्य में सफलता प्रदान करने वाला माना जाता है |

इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए हमारी ऐसी मान्यता है कि ज्योतिष के प्राचीन सूत्रों को – प्राचीन मान्यताओं को – आज की परिस्थितियों के अनुकूल उन पर शोध कार्य करके यदि संशोधित नहीं किया जाएगा तो उनका वास्तविक लाभ उठाने से हम वंचित रह सकते हैं | वैसे भी ज्योतिष के आधार पर कुण्डली का फल कथन करते समय भी देश-काल-व्यक्ति का ध्यान रखना आवश्यक होता है | तो फिर विशिष्ट शुभाशुभ कालों पर भी इन सब बातों पर विचार करना चाहिए | साथ ही हर बात का उपाय होता है | किसी भी बात से भयभीत होने की अपेक्षा यदि उसके उपायों पर ध्यान दिया जाए तो उस निषिद्ध समय का भी सदुपयोग किया जा सकता है |

तोअपने कर्तव्य कर्मों का पालन करते हुए हम सभी का जीवन मंगलमय रहे और सब सुखी रहें… इसी भावना के साथ प्रस्तुत है वर्ष 2024 में आने वाले पञ्चकों की एक तालिका…

शनिवार 13 जनवरी रात्रि 11:35  से गुरूवार 18 जनवरी अर्धरात्रयोत्तर 03:33 तक – मृत्यु पञ्चक

शनिवार 10 फ़रवरी प्रातः 10:02 से बुधवार 14 फ़रवरी प्रातः 10:43 तक – मृत्यु पञ्चक

शुक्रवार 08 मार्च रात्रि 9:20 से मंगलवार 12 मार्च रात्रि 8:29 तक – चोर पञ्चक

शुक्रवार 05 अप्रैल प्रातः 07:12 से मंगलवार 09 अप्रैल प्रातः 07:32 तक – चोर पञ्चक

गुरूवार 02 मई दिन में 2:32 से सोमवार 06 मई सायं 5:43 तक

बुधवार 29 मई रात्रि 8:06 से सोमवार 03 जून अर्ध रात्रि में 01:40 तक

बुधवार 26 जून अर्ध रात्रि में 01:49 से रविवार 30 जून प्रातः 07:34 तक

मंगलवार 23 जुलाई प्रातः 09:20 से शनिवार 27 जुलाई दिन में 1 बजे तक – अग्नि पञ्चक

सोमवार 19 अगस्त रात्रि 7 बजे से शुक्रवार 23 अगस्त रात्रि 7:54 तक – राज पञ्चक

सोमवार 16 सितम्बर प्रातः 05:44 से शुक्रवार 20 सितम्बर प्रातः 05:15 तक – राज पञ्चक

रविवार 13 अक्टूबर अपराह्न 3:44 से गुरूवार 17 अक्टूबर सायं 4:20 तक – रोग पञ्चक

शनिवार 09 नवम्बर रात्रि 11:27 से गुरूवार 14 नवम्बर अर्धरात्रयोत्तर  03:11 तक – मृत्यु पञ्चक

शनिवार 07 दिसम्बर प्रातः 05:07 से बुधवार 11 दिसम्बर प्रातः 11:48 तक – मृत्यु पञ्चक

अन्त में इतना हीकि ज्योतिष के प्राचीन सूत्रों को – प्राचीन मान्यताओं को – आज की परिस्थितियों के अनुकूल उन पर शोध कार्य करके यदि संशोधित नहीं किया जाएगा तो उनका वास्तविक लाभ उठाने से हम वंचित रह सकते हैं | वैसे भी ज्योतिष के आधार पर कुण्डली का फल कथन करते समय भी देश-काल-व्यक्ति का ध्यान रखना आवश्यक होता है | तो फिर विशिष्ट शुभाशुभ काल निर्णय के लिए भी इन सब बातों पर विचार करना चाहिए | साथ ही हर बात का उपाय होता है |

अन्त में यही कहेंगे कि किसी भी प्रकार के अन्धविश्वास से भयभीत होने की अपेक्षा अपने कर्म पर बल देना चाहिए… इसी भावना के साथ वर्ष 2024 की सभी को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ…

 

अमावस्या और पूर्णिमा व्रत 2024

अमावस्या और पूर्णिमा व्रत 2024

नमस्कार मित्रों ! वर्ष 2023 को विदा करके वर्ष 2024 आने वाला है… सर्वप्रथम सभी को इस नववर्ष की अनेकशः हार्दिक शुभकामनाएँ… हर वर्ष की भाँति इस वर्ष भी नूतन वर्ष के आरम्भ से पूर्व प्रस्तुत है वर्ष 2024 में आने वाली सभी अमावस्याओं और पूर्णिमा व्रत की एक तालिका…

एकादशी और प्रदोष व्रत के बाद पूर्णिमा और अमावस्या आती हैं | वैदिक पञ्चांग के अनुसार मास के तीस दिनों को चन्द्रमा की कलाओं के आधार पर पन्द्रह-पन्द्रह दिनों के दो

अमावस्या 2024
अमावस्या 2024

पक्षों में विभाजित किया गया है – जिनमें शुक्ल प्रतिपदा से लेकर पूर्णिमा तक के पन्द्रह दिन शुक्ल पक्ष कहलाते हैं तथा कृष्ण प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक के पन्द्रह दिन कृष्ण पक्ष के अन्तर्गत आते हैं | इस प्रकार प्रत्येक वर्ष में बारह अमावस्या और बारह ही पूर्णिमा तिथि उदय होती हैं | जो लोग मास को अमान्त मानते हैं उनके अनुसार अमावस्या को मास की समाप्ति होकर उसके दूसरे दिन यानी शुक्ल प्रतिपदा से दूसरे मास का आरम्भ होता है, और जो लोग मास को पूर्णिमान्त मानते हैं उनके अनुसार पूर्णिमा को एक मास पूरा होकर कृष्ण प्रतिपदा से दूसरा मास आरम्भ होता है | इस प्रकार वर्ष भर में बारह पूर्णिमा और बारह ही अमावस्या आती हैं और अमावस्या का स्वामी पितृगणों को माना गया है |

कुछ अमावस्याओं को उनके मास के नाम से ही जाना जाता है, किन्तु कुछ अमावस्याएँ दर्श अमावस्या कहलाती हैं | ऐसा इसलिए कि यों तो हर अमावस्या को पितृगणों के लिए तर्पण किया जाता है, किन्तु कुछ अमावस्याओं को पितृगणों का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है अतः उस अमावस्या को पितरों का तर्पण अत्यन्त शुभ माना जाता है और उसे दर्श अमावस्या कहा जाता है |

इस दिन अन्वाधान की प्रक्रिया भी होती है, जब वैष्णव समाज के लोग उपवास रखकर भगवान विष्णु के सभी रूपों की तथा पितृगणों की पूजा अर्चना करते हैं और एक दूसरे को शान्ति और सुख की प्राप्ति के लिए शुभकामनाएँ देते हैं | माना जाता है कि अन्वाधान और इशिता अथवा इष्टि का उपवास रखने से सुख शान्ति की प्राप्ति तथा सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है |

साथ ही प्रत्येक अमावस्या तिथि माता लक्ष्मी के लिए भी समर्पित होती है अतः इस दिन लक्ष्मी का भी विशेष महत्त्व माना गया है | इसके अतिरिक्त ज्योतिष शास्त्र के अनुसार चन्द्रमा मन का कारक होता है और अमावस्या के दिन चन्द्रमा के दर्शन नहीं होते | साथ ही धर्मग्रन्थों में चन्द्रमा को सोलहवीं कला को “अमा” कहा गया है | इस दिन चन्द्रमा और सूर्य दोनों प्रायः एक ही राशि में होते हैं | इन्हीं सब कारणों से इस दिन सूर्यदेव तथा चन्द्र दोनों की ही उपासना को विशेष महत्त्व दिया गया है | सूर्य ग्रहण की आकर्षक खगोलीय घटना भी जब घटती है तो उस दिन अमावस्या तिथि ही होती है – जब चन्द्रमा के विपरीत दिशा में सूर्य होने के कारण पृथिवी पर चन्द्रमा की छाया पड़ती है और सूर्य हमें दिखाई नहीं पड़ता – अर्थात सूर्य तथा पृथिवी के मध्य में चन्द्रमा आ जाता है |

यों तो धार्मिक दृष्टि से प्रत्येक अमावस्या का ही महत्त्व है, किन्तु उनमें से भी कुछ अमावस्याओं का अधिक महत्त्व माना गया ही – जो हैं – सोमवती अर्थात सोमवार को आने वाली अमावस्या, भौमवती अर्थात मंगलवार को आने वाली अमावस्या, शनि अमावस्या, मौनी अमावस्या, दीपावली अमावस्या तथा पितृविसर्जनी अमावस्या का भी बहुत महत्त्व शास्त्रों में माना गया है |

इसी प्रकार प्रायः सभी हिन्दू परिवारों में पूर्णिमा के व्रत को बहुत महत्त्व दिया जाता है | इसका कारण सम्भवतः यही है कि इस दिन चन्द्रमा अपनी समस्त कलाओं के साथ प्रकाशित होकर जगत का समस्त अन्धकार दूर करने का प्रयास करता है | साथ ही चन्द्रमा का सम्बन्ध भगवान शिव के साथ माना जाने के कारण भी सम्भवतः पूर्णिमा के व्रत को इतना अधिक महत्त्व पुराणों में दिया गया होगा | साथ ही बारह मासों की बारह पूर्णिमा के दिन कोई न कोई विशेष पर्व अवश्य रहता है | जैसे मतावलम्बी पौष पूर्णिमा को पुष्याभिषेक यात्रा आरम्भ करते हैं | वैशाख पूर्णिमा भगवान् बुद्ध के लिए समर्पित है और इस प्रकार बौद्ध मतावलम्बियों के लिए भी इसका महत्त्व बहुत अधिक बढ़ जाता है | कार्तिक पूर्णिमा के दिन समस्त सिख समुदाय गुरु नानक देव का जन्म दिवस प्रकाश पर्व के रूप में बड़ी धूम धाम से मनाता है | अमावस्या की हाई भाँति एक आकर्षक खगोलीय घटना चन्द्रग्रहण भी पूर्णिमा को ही घटित होती है जब चन्द्र राहु और केतु एक समान अंशों पर आ जाते हैं और चन्द्रमा पर पृथिवी की छाया पड़ती है | माना जाता है समुद्र में ज्वार भी पूर्ण चन्द्रमा की रात्रि को ही उत्पन्न होता है |

पूर्णिमा के व्रत की तिथि के विषय में कुछ आवश्यक बातों पर हमारे विद्वज्जन बल देते हैं | सर्वप्रथम तो यह कि पूर्णिमा का व्रत पूर्णिमा के दिन भी किया जा सकता है और चतुर्दशी के दिन भी | किन्तु किस दिन किया जाना है यह निर्भर करता है इस बात पर कि पहले दिन पूर्णिमा किस समय आरम्भ हो रही है और दूसरे दिन किस समय तक रहेगी | यदि चतुर्दशी की मध्याह्न में पूर्णिमा आरम्भ होती है तो उस दिन पूर्णिमा का व्रत किया जाता है | किन्तु यदि मध्याह्न के बाद किसी समय अथवा सायंकाल में पूर्णिमा आरम्भ होती है तो इस दिन पूर्णिमा का व्रत नहीं किया जाता, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस स्थिति में पूर्णिमा में चतुर्दशी का दोष आ गया है | इस स्थिति में दूसरे दिन ही पूर्णिमा का व्रत किया जाता है |

यों प्रत्येक पूर्णिमा का ही धार्मिक दृष्टि से महत्त्व है – किन्तु इनमें भी कार्तिक पूर्णिमा, माघ पूर्णिमा, शरद पूर्णिमा, गुरु पूर्णिमा, श्रावण पूर्णिमा तथा बुद्ध पूर्णिमा का विशेष महत्त्व माना गया है |

अस्तु, प्रस्तुत है वर्ष 2024 में आने वाली सभी अमावस्याओं और पूर्णिमा व्रत की एक तालिका…

  • गुरुवार 11 जनवरी – पौष अमावस्या – दर्श अमावस्या / अन्वाधान
  • गुरुवार 25 जनवरी – पौष पूर्णिमा – शाकम्भरी पूर्णिमा
  • शुक्रवार 9 फरवरी – माघी अमावस्या – मौनी अमावस्या / दर्श अमावस्या/ अन्वाधान
  • शनिवार 24 फरवरी – माघ पूर्णिमा
  • रविवार 10 मार्च – फाल्गुन अमावस्या – दर्श अमावस्या / अन्वाधान
  • सोमवार 25 मार्च – फाल्गुन पूर्णिमा – वसन्त पूर्णिमा / होली / धुलैंडी
  • सोमवार8 अप्रैल – चैत्र अमावस्या – सोमवती अमावस्या / अन्वाधान / दर्श अमावस्या
  • मंगलवार 23 अप्रैल – चैत्र पूर्णिमा – हनुमान जन्मोत्सव
  • मंगलवार 7 मई – वैशाख अमावस्या– अन्वाधान / दर्श अमावस्या /
  • बुधवार 8 मई – वैशाख अमावस्या – इष्टि
  • गुरुवार 23 मई – वैशाख पूर्णिमा – बुद्ध पूर्णिमा / कूर्म जयन्ती
  • गुरुवार 6 जून – ज्येष्ठ अमावस्या– अन्वाधान / दर्श अमावस्या / वट सावित्री अमावस्या / शनि जयन्ती
  • शुक्रवार 21 जून – ज्येष्ठ पूर्णिमा – वट पूर्णिमा व्रत
  • शुक्रवार 5 जुलाई – आषाढ़ अमावस्या– दर्श अमावस्या / अन्वाधान
  • रविवार 21 जुलाई – आषाढ़ पूर्णिमा – गुरु पूर्णिमा / व्यास पूजा
  • रविवार 4 अगस्त – श्रावण अमावस्या – अन्वाधान / दर्श
  • सोमवार 19 अगस्त – श्रावण पूर्णिमा– श्रावणी / रक्षा बन्धन / गायत्री जयन्ती
  • सोमवार 2 सितम्बर – भाद्रपद अमावस्या– सोमवती अमावस्या / अन्वाधान / दर्श अमावस्या / पिठौरी अमावस्या
  • मंगलवार 17 सितम्बर – श्राद्ध पूर्णिमा / गणपति विसर्जन / अनन्त चतुर्दशी
  • बुधवार 18 सितम्बर – भाद्रपद पूर्णिमा / पितृपक्ष आरम्भ
  • बुधवार 2 अक्तूबर – आश्विन अमावस्या – पितृ विसर्जिनी / दर्श अमावस्या / अन्वाधान
  • बुधवार 16 अक्टूबर – शरद पूर्णिमा / कोजागरी व्रत
  • गुरुवार 17 अक्टूबर – आश्विन पूर्णिमा
  • शुक्रवार1 नवम्बर – कार्तिक अमावस्या – अन्वाधान / दर्श अमावस्या दीपावली / लक्ष्मी पूजा
  • शुक्रवार 15 नवम्बर – कार्तिक पूर्णिमा – देव दिवाली / मणिकर्णिका स्नान
  • शनिवार30 नवम्बर – मार्गशीर्ष अमावस्या – दर्श अमावस्या
  • रविवार 1 दिसम्बर – मार्गशीर्ष अमावस्या – अन्वाधान
  • रविवार 15 दिसम्बर – मार्गशीर्ष पूर्णिमा
  • सोमवार 30 दिसम्बर – पौष अमावस्या / सोमवती अमावस्या / दर्श अमावस्या / अन्वाधान

चन्द्रमा प्रतीक है सुख, शान्ति और प्रेम का तथा भगवान समस्त चराचर में ऊर्जा और प्राणों का संचार करते हैं चन्द्रमा की धवल चन्द्रिका सूर्य किरणों के साथ मिलकर सभी के जीवन में सुख, शान्ति और प्रेम का धवल प्रकाश प्रसारित करे इसी कामना के साथ सभी को वर्ष 2024 के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ…

एकादशी व्रत 2024

एकादशी व्रत 2024

नमस्कार मित्रों ! वर्ष 2023 को विदा करके वर्ष 2024 आने वाला है… सर्वप्रथम सभी को आने वाले वर्ष के लिए अनेकशः हार्दिक शुभकामनाएँ… हर वर्ष की भाँति इस वर्ष भी नूतन वर्ष के आरम्भ से पूर्व प्रस्तुत है वर्ष 2024 में आने वाले सभी एकादशी व्रतों की एक तालिका… वर्ष 2024 का आरम्भ ही एकादशी व्रत के साथ हो रहा है… प्रथम एकादशी होगी पौष मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी – जिसे पुत्रदा एकादशी कहा जाता है…

सभी जानते हैं कि हिन्दू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्त्व है | पद्मपुराण के अनुसार भगवान् श्री कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को एकादशी व्रत का आदेश दिया था और इस व्रत का माहात्म्य बताया था | प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशी होती है, और अधिमास हो जाने पर ये छब्बीस हो जाती हैं | किस एकादशी के व्रत का क्या महत्त्व है तथा किस प्रकार इस व्रत को करना चाहिए इस सबके विषय में विशेष रूप से पद्मपुराण में विस्तार से उल्लेख मिलता है | यदि दो दिन एकादशी तिथि हो तो स्मार्त (गृहस्थ) लोग पहले दिन व्रत रख कर उसी दिन पारायण कर सकते हैं, किन्तु वैष्णवों के लिए एकादशी का पारायण दूसरे दिन द्वादशी तिथि में ही करने की प्रथा है | हाँ, यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पूर्व समाप्त होकर त्रयोदशी तिथि आ रही हो तो पहले दिन ही उन्हें भी पारायण करने का विधान है | सभी जानते हैं कि एकादशी को भगवान् विष्णु के साथ त्रिदेवों की पूजा अर्चना की जाती है | यों तो सभी एकादशी महत्त्वपूर्ण होती हैं, किन्तु कुछ एकादशी जैसे षटतिला, निर्जला, देवशयनी, देवोत्थान, तथा मोक्षदा एकादशी का व्रत प्रायः वे लोग भी करते हैं जो अन्य किसी एकादशी का व्रत नहीं करते | इन सभी एकादशी के विषय में हम समय समय पर लिखते रहे हैं | वर्ष 2024 की शुभकामनाओं के साथ प्रस्तुत है सन् 2024 के लिए एकादशी की तारीखों की एक तालिका – उनके नामों तथा जिस हिन्दी माह में वे आती हैं उनके नाम सहित… वर्ष 2024 में प्रथम एकादशी होगी पौष मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी – जिसे पुत्रदा एकादशी कहा जाता है

  • रविवार 7 जनवरी – पौष कृष्ण सफला एकादशी
  • रविवार 21 जनवरी – पौष शुक्ल पुत्रदा एकादशी
  • मंगलवार 6 फ़रवरी – माघ कृष्ण षटतिला एकादशी
  • मंगलवार 20 फरवरी – माघ शुक्ल जया एकादशी
  • बुधवार 6 मार्च – फाल्गुन कृष्ण विजया एकादशी
  • बुधवार 20 मार्च – फाल्गुन शुक्ल आमलकी एकादशी
  • शुक्रवार 5 अप्रैल – चैत्र कृष्ण पापमोचिनी एकादशी
  • शुक्रवार 19 अप्रैल – चैत्र शुक्ल कामदा एकादशी
  • शनिवार 4 मई – वैशाख कृष्ण बरूथिनी एकादशी
  • रविवार 19 मई – वैशाख शुक्ल मोहिनी एकादशी
  • रविवार 2 जून – ज्येष्ठ कृष्ण अपरा एकादशी स्मार्त
  • सोमवार 3 जून – ज्येष्ठ कृष्ण अपरा एकादशी वैष्णव
  • मंगलवार 18 जून – ज्येष्ठ शुक्ल निर्जला एकादशी
  • मंगलवार 2 जुलाई – आषाढ़ कृष्ण योगिनी एकादशी
  • बुधवार 17 जुलाई – आषाढ़ शुक्ल देवशयनी एकादशी
  • बुधवार 31 जुलाई – श्रावण कृष्ण कामिका एकादशी
  • शुक्रवार 16 अगस्त – श्रावण शुक्ल पुत्रदा एकादशी
  • गुरुवार 29 अगस्त – भाद्रपद कृष्ण अजा एकादशी
  • शनिवार 14 सितम्बर – भाद्रपद शुक्ल परिवर्तिनी एकादशी
  • शनिवार 28 सितम्बर – आश्विन कृष्ण इन्दिरा एकादशी
  • रविवार 13 अक्टूबर – आश्विन शुक्ल पापांकुशा एकादशी स्मार्त
  • सोमवार 14 अक्टूबर – आश्विन शुक्ल पापांकुशा एकादशी वैष्णव
  • रविवार 27 अक्टूबर – कार्तिक कृष्ण रमा एकादशी स्मार्त
  • सोमवार 28 अक्टूबर – कार्तिक कृष्ण रमा एकादशी वैष्णव
  • मंगलवार 12 नवम्बर – कार्तिक शुक्ल देवोत्थान एकादशी
  • मंगलवार 26 नवम्बर – मार्गशीर्ष कृष्ण उत्पन्ना एकादशी
  • बुधवार 11 दिसम्बर – मार्गशीर्ष शुक्ल मोक्षदा एकादशी
  • गुरुवार 26 दिसम्बर – पौष शुक्ल सफला एकादशी

त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) की कृपादृष्टि समस्त जगत पर बनी रहे और सभी स्वस्थ व सुखी रहें, इसी भावना के साथ सभी को वर्ष 2023 की हार्दिक शुभकामनाएँ वर्ष 2023 का हर दिनहर तिथिहर पर्व आपके लिए मंगलमय हो यही कामना है

—–कात्यायनी

प्रदोष व्रत 2024

प्रदोष व्रत 2024

कर्पूगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम् |

सदावसन्तं हृदयारविन्दे भवं भवानी सहितन्नमामि ||

प्रत्येक माह के शुक्ल और कृष्ण दोनों पक्षों की द्वादशी अथवा त्रयोदशी को प्रदोष के व्रत का पालन किया जाता है | अर्थात हर हिन्दू माह में दो प्रदोष पड़ते हैं | इस व्रत के दौरान सारा दिन निर्जल व्रत रखकर सन्ध्या समय शिव-पार्वती की पूजा अर्चना करके व्रत का पारायण किया जाता है | कार्य में सफलता के लिए, मनोकामना सिद्धि के लिए, परिवार की सुख समृद्धि के लिए तथा इन सबसे भी बढ़कर सन्तान के सुख की कामना से इस व्रत का पालन किया जाता है | जिन लोगों की सन्तान को किसी प्रकार कोई कष्ट होता है अथवा सन्तान के कार्य में कोई विघ्न आ रहा होता है उन लोगों को प्रदोष के व्रत की सलाह दी जाती है | इसके अतिरिक्त बिना किसी समस्या के भी प्रदोष का व्रत रखा जा सकता है – इस कामना के साथ कि हमारी सन्तान सुखी रहे तथा परिवार में सुख समृद्धि बनी रहे | प्रायः उन महिलाओं को भी प्रदोष के व्रत की सलाह दी जाती है जिनके कोई सन्तान नहीं हो रही है अथवा सन्तान पैदा होने में या गर्भ धारण करने में कोई समस्या आ रही है |

इस व्रत को रखने के भी दो विधान हैं | एक तो ये कि 24 घंटे का निर्जल व्रत रखकर उसके बाद अगले दिन संध्या काल में पारायण किया जाता है | व्रत की इस विधि में रात्रि जागरण करके रात भर भगवान शिव के अभिषेक किये जाते हैं | और दूसरी विधि है कि दिन भर निर्जल व्रत रखकर सन्ध्या काल में व्रत का पारायण किया जाए | दोनों ही विधियों में एक ही बात का ध्यान रखना आवश्यक होता है कि शिव-पार्वती की पूजा का समय संध्याकाळ ही होता है – अर्थात सूर्यास्त से तुरन्त पूर्व और तुरन्त बाद का कुछ समय – वही प्रदोषकाल कहलाता है | यों प्रदोष सप्ताह में सातों दिन होता है किसी न किसी तिथि का – क्योंकि संध्याकाल में कोई न कोई तिथि तो होगी ही | लेकिन इस अवधि में यदि त्रयोदशी तिथि होती है तो उस काल के प्रदोष का विशेष महत्त्व माना गया है और उसे भगवान शिव की पूजा अर्चना के लिए समर्पित किया गया है | माना जाता है कि समुद्र मन्थन के दौरान जो हलाहल समुद्र में से निकला था भगवान शंकर ने प्रदोषकाल में ही उस हलाहल का पान किया था |

ऐसी भी मान्यता है कि विशेष रूप से त्रयोदशी युक्त प्रदोषकाल भगवान शिव और पार्वती को बहुत प्रिय है और इस अवधि में वे इतने अधिक प्रसन्नचित्त होते हैं कि केवल एक दीप जलाकर प्रार्थना की जाए तब भी वे प्रसन्न हो जाते हैं और इसीलिए भक्तों की सारी मनोकामनाएँ पूर्ण कर देते हैं |

सोमवार, मंगलवार अथवा शनिवार को आने वाले प्रदोष अत्यधिक शुभ माने जाते हैं और उन्हें क्रमशः सोम प्रदोष, भौम प्रदोष तथा शनि प्रदोष के नाम से जाना जाता है |

साथ ही व्रत के पारायण के समय भोजन के विषय में भी कुछ लोकमान्यताएँ हैं जिनके अनुसार केवल एक ही प्रकार के अन्न का सेवन व्रत के पारायण के समय करना चाहिए |

किसी भी पूजा में – किसी भी धार्मिक अनुष्ठान में – रीति रिवाज़ों का पालन आवश्यक हो जाता है | किन्तु हमारे विचार से यदि किसी कारण वश समस्त रीति रिवाज़ों का पालन नहीं भी किया जाए तब भी किसी प्रकार से चिन्तित होने की आवश्यकता नहीं है | हम किसी ऐसे स्थान पर हैं या ऐसी परिस्थिति में हैं जहाँ हमें पूजा के लिए निर्दिष्ट विशिष्ट सामग्री उपलब्ध नहीं है अथवा व्रत के पारायण के समय सेवन करने योग्य भोजन उपलब्ध नहीं है तो उसके कारण हमारी आस्था में कोई व्यवधान नहीं आना चाहिए | किसी भी पूजा अर्चना का मर्म उस परमात्मतत्व के प्रति आस्था है | यदि मन में आस्था है तो बिना किसी रीति रिवाज़ का पालन किये भी केवल नाम जपने भर से ईश्वर प्रसन्न हो जाते हैं |

तो आवश्यकता है किसी भी प्रकार के अन्धविश्वास से बचने की, किसी भी प्रकार की कट्टरपंथी से बचने की | हम ईश्वर के प्रति – अपनी आत्मा के प्रति – पूर्ण हृदय से आस्थावान रहते हुए पूर्ण निष्ठा के साथ अपने कर्तव्य कर्म करते रहें… सुख सौभाग्य स्वयमेव निकट बने रहेंगे…

वर्ष के आरम्भ में नौ जनवरी पौष कृष्ण त्रयोदशी को प्रथम प्रदोष व्रत है… प्रस्तुत है वर्ष 2024 में आने वाले सभी प्रदोष व्रत की एक तालिका…

मंगलवार 9 जनवरी         भौम प्रदोष व्रत          पौष कृष्ण त्रयोदशी

मंगलवार, 23 जनवरी       भौम प्रदोष व्रत          पौष शुक्ल त्रयोदशी

बुधवार, 7 फरवरी           प्रदोष व्रत              माघ कृष्ण द्वादशी

बुधवार, 21 फरवरी          प्रदोष व्रत             माघ शुक्ल द्वादशी

शुक्रवार, 8 मार्च            प्रदोष व्रत              फाल्गुन कृष्ण द्वादशी

शुक्रवार, 22 मार्च           प्रदोष व्रत              फाल्गुन शुक्ल त्रयोदशी

शनिवार, 6 अप्रैल          शनि प्रदोष व्रत          चैत्र कृष्ण द्वादशी

रविवार, 21 अप्रैल          प्रदोष व्रत              चैत्र शुक्ल त्रयोदशी

रविवार, 5 मई             प्रदोष व्रत             वैशाख कृष्ण द्वादशी

सोमवार, 20 मई           सोम प्रदोष व्रत         वैशाख शुक्ल द्वादशी

मंगलवार, 4 जून           भौम प्रदोष व्रत          ज्येष्ठ कृष्ण त्रयोदशी

बुधवार, 19 जून           प्रदोष व्रत          ज्येष्ठ शुक्ल द्वादशी

बुधवार, 3 जुलाई          प्रदोष व्रत           आषाढ़ कृष्ण द्वादशी

गुरुवार, 18 जुलाई         प्रदोष व्रत           आषाढ़ शुक्ल द्वादशी

गुरुवार, 1 अगस्त         प्रदोष व्रत           श्रावण कृष्ण द्वादशी

शनिवार, 17 अगस्त       शनि प्रदोष व्रत       श्रावण शुक्ल द्वादशी

शनिवार, 31 अगस्त       शनि प्रदोष व्रत      भाद्रपद कृष्ण त्रयोदशी

रविवार, 15 सितम्बर       प्रदोष व्रत          भाद्रपद शुक्ल द्वादशी

रविवार, 29 सितम्बर       प्रदोष व्रत         आश्विन कृष्ण द्वादशी

मंगलवार, 15 अक्टूबर      भौम प्रदोष व्रत     आश्विन शुक्ल त्रयोदशी

मंगलवार, 29 अक्टूबर      भौम प्रदोष व्रत     कार्तिक कृष्ण द्वादशी

बुधवार, 13 नवम्बर        प्रदोष व्रत          कार्तिक शुक्ल द्वादशी

गुरुवार, 28 नवम्बर        प्रदोष व्रत          मार्गशीर्ष कृष्ण त्रयोदशी

शुक्रवार, 13 दिसम्बर       प्रदोष व्रत          मार्गशीर्ष शुक्ल त्रयोदशी

शनिवार, 28 दिसम्बर      शनि प्रदोष व्रत      पौष कृष्ण त्रयोदशी

अन्त में एक बार पुनः वर्ष 2024 के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ, इस आशा और विश्वास के साथ कि औघड़दानी भोले बाबा सपरिवार समस्त जगत पर अपनी कृपादृष्टि बनाए रहें…

श्राद्ध पर्व 2023 की तिथियाँ

श्राद्ध पर्व 2023 की तिथियाँ

भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी यानी अनन्त चतुर्दशी – गुरुवार 28 सितम्बर को क्षमावाणी के साथ जैन मतावलम्बियों के दशलाक्षण पर्व का समापन हो जाएगा | इसी दिन अनन्त चतुर्दशी का पावन पर्व भी मनाया जाएगा | इस दिन अनन्त भगवान की पूजा करके संकटों से रक्षा करने वाला अनन्त सूत्र बाँधा जाता है | उसके दूसरे दिन भाद्रपद अथवा प्रौष्ठपदी पूर्णिमा के दिन पूर्णिमा का श्राद्ध होकर सोलह दिनों का श्राद्ध पक्ष आरम्भ हो जाएगा जो 14 अक्तूबर को महालया के साथ सम्पन्न हो जाएगा और रविवार 15 अक्तूबर से कलश स्थापना के साथ भगवती की उपासना के दशदिवसीय पर्व शारदीय नवरात्र आरम्भ हो जाएँगे | इस वर्ष श्रावण मास में अधिक मास होने के कारण कुछ विलम्ब से श्राद्ध पक्ष का आरम्भ हो रहा है |

श्राद्ध को अनेक स्थानों पर “कनागत” भी कहा जाता है | कनागत शब्द की व्युत्पत्ति कन्या शब्द से हुई है – कन्यायां गतः सूर्यः इति कन्यागतः – अर्थात इस समय सूर्य प्रायः कन्या राशि में विद्यमान रहता है इस कारण से इस पक्ष को “कन्यागतः” कहा जाता था – जो कालान्तर में अपभ्रंश होता हुआ “कनागत” बन गया | चन्द्रमा की गति के अनुसार कभी इसमें कुछ दिनों का अन्तर हो भी सकता है, किन्तु प्रायः श्राद्ध पक्ष के समाप्त होते होते भगवान भास्कर कन्या राशि में प्रस्थान कर जाते हैं | इस वर्ष भी रविवार 17 सितम्बर भाद्रपद शुक्ल तृतीया को दोपहर 1:31 के लगभग सूर्य का संक्रमण कन्या राशि में हो जाएगा और 18 अक्तूबर तक भगवान भास्कर वहीं भ्रमण करेंगे |

यों तो आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से 15 दिन के पितृ पक्ष का आरम्भ माना जाता है | किन्तु जिनके प्रियजन पूर्णिमा को ब्रह्मलीन हुए हैं, जिनकी अकाल मृत्यु हुई है अथवा जिनके देहावसान की तिथि के विषय में ज्ञात नहीं है उनका श्राद्ध पक्ष आरम्भ होने से एक दिन पूर्व अर्थात भाद्रपद पूर्णिमा को करने का विधान है |

श्राद्ध कर्म करने के लिए दिन में चार मुहूर्त श्रेयस्कर माने गए हैं – कुतुप मुहूर्त – जो प्रायः प्रातः 11:30 से 12:30 के मध्य होता है, अभिजित मुहूर्त – यह प्रतिदिन परिवर्तित होता रहता है – किन्तु प्रायः कुतुप काल के आस पास ही आता है, रोहिणी मुहूर्त – नाम से ही स्पष्ट है – रोहिणी नक्षत्र का समय, और मध्याह्न काल – यदि प्रथम तीन मुहूर्त न मिलें तो मध्याह्न काल में श्राद्ध कर्म करना चाहिए | किन्तु हमारी स्वयं की मान्यता है कि अपनी सुविधानुसार जिस समय चाहे पितृगणों के लिए तर्पणादि कार्य किये जा सकते हैं – हमारे पूर्वज हमें कभी हानि तो नहीं ही पहुँचाएँगे अपितु हम पर सदा कृपादृष्टि ही बनाए रखेंगे – आवश्यकता है श्रद्धापूर्वक हृदय से उनका स्मरण करने की |

इस वर्ष श्राद्ध की तिथियाँ इस प्रकार रहेंगी…

शुक्रवार 29 सितम्बर – पूर्णिमा श्राद्ध

शनिवार 30 सितम्बर – प्रतिपदा श्राद्ध

पितृपक्ष 2023 की तिथियाँ
पितृपक्ष 2023 की तिथियाँ

रविवार 1 अक्टूबर – द्वितीया श्राद्ध

सोमवार 2 अक्टूबर – तृतीया श्राद्ध

मंगलवार 03 अक्टूबर – चतुर्थी श्राद्ध

बुधवार 04 अक्टूबर – पञ्चमी श्राद्ध

गुरुवार 05 अक्टूबर – षष्ठी श्राद्ध

शुक्रवार 06 अक्टूबर – सप्तमी श्राद्ध

शनिवार 07 अक्टूबर – अष्टमी श्राद्ध

रविवार 08 अक्टूबर – नवमी श्राद्ध

सोमवार 09 अक्टूबर – दशमी श्राद्ध

मंगलवार 10 अक्टूबर – एकादशी श्राद्ध

बुधवार 11 अक्टूबर – द्वादशी श्राद्ध

गुरुवार 12 अक्टूबर – त्रयोदशी श्राद्ध

शुक्रवार 13 अक्तूबर – चतुर्दशी श्राद्ध

शनिवार 14 अक्टूबर – सर्व पितृ अमावस्या / वर्ष का अन्तिम सूर्य ग्रहण अमेरिका, कनाडा, मैक्सिको, ब्राजील, पेरू, पराग्वे, जमैका, क्यूबा, इक्वाडोर, ग्वाटेमाला आदि देशों में दिखाई देगा, भारत में नहीं दिखाई देगा अतः यहाँ सूतक आदि के नियम भी लागू नहीं होंगे

आज हम जो कुछ भी हैं उन्हीं अपने पूर्वजों के कारण हैं… हमारा अस्तित्व उन्हीं के कारण है… उनके उपकारों का कुछ मोल तो नहीं दिया जा सकता, किन्तु उनके प्रति श्रद्धा सुमन तो समर्पित किये ही जा सकते हैं… तो आइये श्रद्धापूर्वक अपने पूर्वजों का स्मरण करते हुए समर्पित करें उनके प्रति श्रद्धा-सुमन…

भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी 2023

भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी 2023

गणेश चतुर्थी, ऋषि पञ्चमी और पर्यूषण पर्व

मंगलवार 19 सितम्बर – भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी – गणेश चतुर्थी – दश दिवसीय गणपति पूजन के पर्व का आरम्भ | यों चतुर्थी तिथि का आगमन 18 सितम्बर को दिन

गणेश चतुर्थी
गणेश चतुर्थी

में 12:40 के लगभग वृश्चिक लग्न, वणिज करण और इन्द्र योग में होगा | किन्तु हिन्दुओं के अधिकाँश पर्वों में उदया तिथि को महत्त्व दिया जाता है अतः 19 सितम्बर को गणेश चतुर्थी का पर्व मनाया जाएगा | इसी दिन दोपहर 1:44 के लगभग पञ्चमी तिथि का आगमन होने के कारण जैन समुदाय के दशलाक्षण पर्व जिन्हें पर्यूषण पर्व और साम्वत्सरिक पर्व भी कहा जाता है – आरम्भ हो रहे हैं | सूर्योदय काल में क्योंकि पञ्चमी तिथि उसके दूसरे दिन यानी बीस सितम्बर को होगी अतः ऋषि पञ्चमी का उपवास बीस सितम्बर को रखा जाएगा | सर्वप्रथम सभी को इन पर्वों की अनेकशः हार्दिक शुभकामनाएँ…

जहाँ तक ऋषि पञ्चमी का प्रश्न है तो यह पर्व न होकर एक उपवास है जो सप्तर्षियों को समर्पित होता है | आरम्भ में सभी वर्णों का पुरुष समुदाय यह उपवास करता था, किन्तु अब अधिकाँश में महिलाएँ ही इस उपवास को रखती हैं | इस दिन स्नान आदि से निवृत्त होकर सातों ऋषियों की प्रतिमाओं को पञ्चामृत से स्नान कराया जाता है | उसके बाद उन्हें चन्दन कपूर आदि सुगन्धित द्रव्यों का लेप करके पुष्प-धूप-दीप-वस्त्र-यज्ञोपवीत-नैवेद्य इत्यादि समर्पित करके अर्घ्य प्रदान किया जाता है | अर्घ्य प्रदान करने के लिए मन्त्र है:

कश्यपोत्रिर्भरद्वाजो विश्वामित्रोय गौतम:
जमदग्निर्वसिष्ठश्च सप्तैते ऋषय: स्मृता:
गृह्णन्त्वर्ध्य मया दत्तं तुष्टा भवत मे सदा ||

अर्थात काश्यप, अत्रि, भारद्वाज, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि और वशिष्ठ इन सातों

ऋषि-पञ्चमी
ऋषि-पञ्चमी

ऋषियों को हम अर्घ्य प्रदान करते हैं, ये सदा हम पर प्रसन्न रहें |

इस व्रत में केवल शाक-कन्द-मूल-फल आदि का भोजन करने का विधान है | मान्यता है कि सात वर्ष तक निरन्तर जो व्यक्ति इस व्रत का पालन करता है उसे समस्त प्रकार का सुख सौभाग्य प्राप्त होता है | सप्तम वर्ष में इस व्रत का उद्यापन किया जाता है जिसमें सात ब्राह्मणों को आमन्त्रित करके उन्हें यथाशक्ति दान दक्षिणा आदि भेंट करके भोजन कराके विदा किया जाता है |

भाद्रपद कृष्ण द्वादशी को श्वेताम्बर जैन सम्प्रदाय के अष्टदिवसीय पजूसन पर्व का आरम्भ हुआ था – जिसे अष्ट+अह्निका होने के कारण अष्टाह्निका भी कहा जाता है | पजूसन पर्व समाप्त होते ही दूसरे दिन से भाद्रपद शुक्ल पञ्चमी से दिगम्बरों के दशदिवसीय पर्यूषण पर्व का आरम्भ हो जाता है, जो इस वर्ष 19 सितम्बर से आरम्भ हो रहा है तथा भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा (अनन्त चतुर्दशी) को सम्पन्न होगा | इस पर्व का आध्यात्मिक महत्त्व इसके लौकिक महत्त्व से कहीं अधिक गहन है | जिस प्रकार नवरात्र पर्व संयम और आत्म शुद्धि का पर्व होता है, उसी भाँति पर्यूषण पर्व भी – जिसका विशेष अंग है दशलाक्षण व्रत – संयम और आत्म शुद्धि के त्यौहार हैं | नवरात्र और दशलाक्षण दोनों में ही त्याग, तप, उपवास, परिष्कार, संकल्प, स्वाध्याय और आराधना पर बल दिया जाता है । यदि उपवास न भी हो तो भी यथासम्भव तामसिक भोजन तथा कृत्यों से दूर रहने का प्रयास किया जाता है | भारत के अन्य दर्शनों की भाँति जैन दर्शन का भी अन्तिम लक्ष्य सत्यशोधन करके उसी परमानन्द की उपलब्धि करना है | और इसे ही तत्वज्ञान कहा जाता है |

जैन धर्म के अन्तिम तीर्थंकर महावीर के आचार विचार का सीधा और स्पष्ट प्रतिबिम्ब मुख्यतया आचारांगसूत्र में देखने को मिलता है | उसमें जो कुछ कहा गया है उस सबमें साध्य, समता या सम पर ही पूर्णतया भार दिया गया है | सम्यग्दृष्टिमूलक और सम्यग्दृष्टिपोषक जो जो आचार विचार हैं वे सब सामयिक रूप से जैन परम्परा में पाए जाते हैं | गृहस्थ और त्यागी सभी के लिये छह आवश्यक कर्म बताए गए हैं | जिनमें मुख्य “सामाइय” (जिस प्रकार सन्ध्या वन्दन ब्राह्मण परम्परा का आवश्यक अंग है उसी प्रकार जैन परम्परा में सामाइय हैं) हैं | त्यागी हो या गृहस्थ, वह जब भी अपने अपने अधिकार के अनुसार धार्मिक जीवन को स्वीकार करता है तभी उसे यह प्रतिज्ञा करनी पड़ती है “करोमि भन्ते सामाइयम् |” जिसका अर्थ है कि मैं समता अर्थात् समभाव की प्रतिज्ञा करता हूँ | मैं पापव्यापार अथवा सावद्ययोग का यथाशक्ति त्याग करता हूँ | साम्यदृष्टि जैन परम्परा के आचार विचार दोनों ही में है | और समस्त आचार विचार का केन्द्र है अहिंसा | अहिंसा पर प्रायः सभी पन्थ बल देते हैं | किन्तु जैन परम्परा में अहिंसा तत्व पर जितना अधिक बल दिया गया है और इसे जितना व्यापक बनाया गया है उतना बल और उतनी व्यापकता अन्य परम्पराओं में सम्भवतः नहीं है | मनुष्य, पशु पक्षी, कीट पतंग आदि जीवित प्राणी ही नहीं, वनस्पति, पार्थिव-जलीय आदि सूक्ष्मातिसूक्ष्म जन्तुओं तक की हिंसा से आत्मौपम्य की भावना द्वारा निवृत्त होने को कहा गया है | आत्मौपम्य की भावना अर्थात् समस्त प्राणियों की आत्मा को अपनी ही आत्मा मानना | इस प्रकार विचार में जिस साम्य दृष्टि पर बल दिया गया है वही इस पर्यूषण पर्व का आधार है | और इस प्रकार सम्यग्दृष्टि के पालन द्वारा आत्मा को मिथ्यात्व, विषय व कषाय से मुक्त करने का प्रयास किया जाता है |

पर्यूषण पर्व की अट्ठाई में बीच में साम्वत्सरिक पर्व आता है जो पर्यूषण का ही नही वरन् जैन धर्म का भी प्राण है | इस दिन साम्वत्सरिक प्रतिक्रमण किया जाता है जिसके द्वारा वर्ष भर में किए गए पापों का प्रायश्चित्त करते हैं | साम्वत्सरिक प्रतिक्रमण के बीच में ही सभी चौरासी लाख जीव योनि से क्षमा याचना की जाती है | यह क्षमा याचना सभी जीवों से वैर भाव मिटा कर मैत्री करने के लिए होती है | क्योंकि इस पर्व में दश लक्षणों का पालन किया जाता है | ये दश हैं – क्षमा, विनम्रता, माया का विनाश, निर्मलता, सत्य अर्थात आत्मसत्य का ज्ञान – और यह तभी सम्भव है जबकि व्यक्ति मितभाषी हो तथा स्थिर मन वाला हो, संयम – इच्छाओं और भावनाओं पर नियन्त्रण, तप – मन में सभी प्रकार की इच्छाओं का अभाव हो जाने पर

पर्यूषण पर्व
पर्यूषण पर्व

ध्यान की स्थिति को प्राप्त करना, त्याग – किसी पर भी अधिकार की भावना का त्याग, परिग्रह का निवारण और ब्रह्मचर्य – आत्मस्थ होना – केवल अपने भीतर स्थित होकर ही स्वयं को नियन्त्रित किया जा सकता है अन्यथा तो आत्मा इच्छाओं के अधीन रहती है – का पालन किया जाता है तथा क्षमायाचना और क्षमादान दिया जाता है और इसीलिए इसे क्षमावाणी पर्व भी कहा जाता है |

सच्चा सुख और सच्ची शान्ति प्राप्त करने के लिये एकमात्र उपाय यही है कि व्यक्ति अपनी जीवन प्रवृत्ति का सूक्ष्मता से अवलोकन करे | और जहाँ कहीं, किसी के साथ, किसी प्रकार भी की हुई भूल के लिये – चाहे वह छोटी से छोटी ही क्यों न हो – नम्रतापूर्वक क्षमायाचना करे और दूसरे को उसकी पहाड़ सी भूल के लिये भी क्षमादान दे | सामाजिक स्वास्थ्य के लिये तथा स्वयं को जागृत और विवेकी बनाने के लिये यह व्यवहार नितान्त आवश्यक और महत्त्वपूर्ण है | इस पर्व पर इसीलिये क्षमायाचना और क्षमादान का क्रम चलता है | जिसके लिये सभी जैन मतावलम्बी संकल्प लेते हैं “खम्मामि सव्व जीवेषु सव्वे जीवा खमन्तु में, मित्ति में सव्व भू ए सू वैरम् मज्झणम् केण वि | अर्थात् समस्त जीवों को मैं क्षमा करता हूँ और  सब जीव मुझे क्षमा करे | सब जीवों के साथ मेरा मैत्री भाव रहे, किसी के साथ भी वैर-भाव नहीं रहे | और इस प्रकार क्षमादान देकर तथा क्षमा माँग कर व्यक्ति संयम और विवेक का अनुसरण करता है, आत्मिक शान्ति का अनुभव करता है | किसी प्रकार के भी क्रोध के लिये तब स्थान नहीं रहता और इस प्रकार समस्त जीवों के प्रति प्रेम की भावना तथा मैत्री का भाव विकसित होता है | आत्मा तभी शुद्ध रह सकती है जब वह अपने से बाहर हस्तक्षेप न करे और न ही किसी बाहरी तत्व से विचलित हो | क्षमा-भाव इसका मूल मन्त्र है | यह केवल जैन परम्परा तक ही नहीं वरन् समाजव्यापी क्षमापना में सन्निहित है | मन को स्वच्छ उदार एवं विवेकी बनाकर समाज के संगठन की दिशा में इससे बड़ा और क्या प्रयत्न हो सकता है |

अस्तु, इसी के साथ समस्त चराचर से क्षमायाचना सहित सभी को गणेश चतुर्थी, ऋषि पञ्चमी और पर्यूषण पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ…

भाद्रपद शुक्ल तृतीया हरतालिका

भाद्रपद शुक्ल तृतीया हरतालिका

हरतालिका तीज, वाराह जयन्ती और विश्वकर्मा संक्रान्ति

ज्योतिष तथा धर्म ग्रन्थों में भाद्रपद शुक्ल तृतीया का बड़ा महत्त्व है | इसी दिन हरतालिका तीज होती है तथा भगवान विष्णु के तृतीय अवतार वाराह की जयन्ती मनाई जाती है | इस वर्ष 17 सितम्बर को प्रातः 11:08 के लगभग तृतीया तिथि का आगमन हो जाएगा जो 18 को दिन में 12:39 तक रहेगी | सूर्योदय काल में 18 सितम्बर को तृतीया होगी अतः इसी दिन हरतालिका तीज का व्रत रखा जाएगा | भगवान विष्णु के दस अवतारों में से तृतीय अवतार वाराह अवतार की जयन्ती 17 सितम्बर को मनाई जाएगी | 17 को ही विश्वकर्मा पूजा संक्रान्ति भी होगी – जो कन्या संक्रान्ति के दिन की जाती है | सूर्य का कन्या राशि में संक्रमण 17 को दिन में 1:31 के लगभग होगा और यही विश्वकर्मा पूजा का मुहूर्त है | तीनों पर्वों की सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ…

 जैसा कि सभी जानते हैं कि वर्ष भर में इस प्रकार की तीन तृतीया आती हैं | श्रावण शुक्ल तृतीया को हरियाली तीज, उसके बाद भाद्रपद कृष्ण तृतीया को कजरी तीज और अब भाद्रपद शुक्ल तृतीया को हरतालिका तीज | तीनों ही तृतीया यानी तीज के व्रत समर्पित होते हैं भगवान शिव और माता पार्वती को | इनमें सबसे कठिन पूजा

हरतालिका तीज
हरतालिका तीज

होती है हरतालिका तीज की क्योंकि कुछ स्थानों पर तीन दिनों तक महिलाएँ व्रत रखती हैं और भाद्रपद शुक्ल तृतीया को उसका पारायण करती हैं | इस दिन शिव पार्वती की मिट्टी की प्रतिमा बनाकर उसकी पूजा की जाती है | प्रातःकाल की पूजा का मुहूर्त सूर्योदय काल यानी छह बजकर सात मिनट से लेकर 8:34 तक है | प्रथम दिन प्रदोष काल में मिट्टी की प्रतिमा स्थापित करके उसके सम्मुख रात्रि पर्यन्त पूजा आदि करके प्रातः पारायण किया जाएगा |

कहा जाता है कि भगवान शिव ने पार्वती जी को उनके पूर्व जन्म का स्मरण कराने के उद्देश्य से इस व्रत के माहात्म्य की कथा कही थी | एक अन्य मान्यता भी है जिसके अनुसार हरतालिका शब्द दो शब्दों हरत अर्थात हरण करना और आलिका अर्थात महिला मित्र से मिलकर बना है | इस सन्दर्भ में एक कथा है कि पार्वती के पिता विष्णु के साथ उनका विवाह करना चाहते थे लेकिन पार्वती शिव को अपना पति मान चुकी थीं | तब उनकी सखियों ने उन्हें गुपचुप घोर वनों में ले जाकर छिपा दिया ताकि उनकी इच्छा के विरुद्ध उनका विवाह भगवान विष्णु के साथ न किया जा सके | कर्नाटक में गौरी हब्बा के नाम से यह व्रत किया जाता है और इस दिन स्वर्ण गौरी व्रत रखा जाता है | नाम चाहे जो भी हो, इस व्रत में भगवान शंकर और माता पार्वती की पूजा करके उनका आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है | महिलाएँ पूरा दिन और रात निर्जल उपवास रखकर दूसरे दिन माता पार्वती को भोग लगाकर और जल पीकर उपवास का पारायण करती हैं | वास्तव में बहुत कठिन होता है ये उपवास |

इसी दिन भगवान विष्णु के वाराह रूप में अवतार की जयन्ती भी मनाई जाती है | मान्यता है कि इसी दिन भगवान विष्णु ने वाराह रूप में जन्म लेकर हिरण्याक्ष नामक राक्षस का अन्त किया था | भगवान विष्णु के दशावतारों में से तीसरा अवतार वाराहावतार माना जाता है | राक्षस हिरण्याक्ष ने जब पृथ्वी को जल में डुबो दिया था तब भगवान विष्णु वाराह अवतार लेकर पृथ्वी का कल्याण किया था | इस अवतार में

वाराहावतार
वाराहावतार

भगवान का शरीर आधा मनुष्य का और आधा वाराह अर्थात शूकर का माना गया है | इनकी शक्ति अथवा पत्नी देवी वाराही हैं जो भगवती पार्वती की अवतार मानी जाती हैं | वाराह देवता जंगली सूअर सहित समस्त जंगली पशुओं का भी प्रतिनिधित्व करते हैं और इस प्रकार देखा जाए तो इस तथ्य के भी द्योतक हैं कि मानव विकास के क्रम में जीवन पृथिवी पर आने के बाद जंगली पशुओं के रूप में विकसित हुआ |

वास्तव में तो भगवान विष्णु के दसों अवतार सृष्टि में मानव के जन्म से लेकर उसके विकास की समूची प्रक्रिया के ही द्योतक हैं – सबसे प्रथम मत्स्यावतार – जो द्योतक है इस बात का कि पृथिवी पर जीवन जल से आरम्भ हुआ | दूसरा कूर्म अथवा कच्छपावतार – कछुआ जल से पृथिवी की ओर बढ़ते जीवन को दर्शाता है | तृतीय वाराहावतार – प्रतीक है इस तथ्य का कि मानव विकास के क्रम में जीवन पृथिवी पर आने के बाद वनों की ओर बढ़कर जंगली पशुओं के रूप में विकसित हुआ | चतुर्थ नृसिंह अवतार – अर्थात जंगली जीवों में जब बुद्धि का विकास आरम्भ हुआ तो वे मनुष्य के रूप में विकसित होने लगा, किन्तु अभी आधा पशुत्व शेष रहा | पञ्चम अवतार वामनावतार – अर्थात नृसिंह के माध्यम से मानव के रूप में आने वाला जीव आरम्भ में बौना था | छठा अवतार परशुराम के रूप में हुआ – जो प्रतीक है इस बात का कि विकास के क्रम में मनुष्य को अस्त्रों की आवश्यकता भी पड़ सकती है – शत्रु से बचाव के साथ साथ गुफाओं और वनों में जीवित रहने के लिए भोजन सामग्री एकत्र करने के लिए |

सप्तम अवतार है भगवान श्री राम के रूप में – धरती पर जब मानव समाज में वृद्धि होने लगी तो मनुष्य उच्छ्रंखल होकर स्वयं अपना ही विनाश न कर बैठें इसके लिए प्रजा तथा समाज का ताना बाना बुनने की आवश्यकता होती है | मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम इसी तथ्य का प्रतीक हैं | इसी क्रम में अष्टम अवतार भगवान श्री कृष्ण का हुआ – जिन्होंने समाज को सिखाया कि सामाजिक ढाँचे की सीमाओं में रहते हुए भी किस प्रकार से प्रगति करते हुए आनन्द का अनुभव किया जा सकता है | नवम अवतार हुआ भगवान बुद्ध के रूप में – जिन्होंने नृसिंह से आगे बढ़ चुके मानव के सहज स्वभाव की खोज करते हुए अन्तिम ज्ञान की खोज की |

अभी दशम अवतार होना शेष है – जिसके लिए मान्यता है कि कल्कि भगवान के रूप में भगवान विष्णु का दशम अवतार होगा जिसके द्वारा कलियुग में पाप का अन्त होगा | कह सकते हैं कि जिस प्रकार द्वापर और कलियुग के सन्धिकाल में भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ उसी प्रकार कलियुग और सतयुग के सन्धिकाल – अर्थात कलियुग के अन्त और सत्ययुग के आरम्भ के काल में कल्कि भगवान का अवतार होगा | इसके साक्ष्य हमें श्रीमद्भागवत और कल्कि पुराण में उपलब्ध होते हैं |

ईश्वर चाहे कितने भी रूपों में धरा पर उतर आएँ, उद्देश्य सबका एक ही होता है – मानव मात्र स्वधर्म का पालन करते हुए अपने कर्तव्य कर्म में लीन रहे ताकि उसके लिए अध्यात्म का मार्ग प्रशस्त हो सके | सभी को विश्वकर्मा संक्रान्ति, वाराह अवतार और हरतालिका तीज की हार्दिक शुभकामनाएँ… इस भावना से कि हम सभी अपने अपने कर्तव्य कर्मों का पालन करते हुए प्रगति के मार्ग पर अग्रसर रहे…