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सूर्य का वृषभ में गोचर 2023

सूर्य का वृषभ में गोचर 2023

सोमवार 15 मई ज्येष्ठ कृष्ण एकादशी को प्रातः 11:45 के लगभग बव करण और विषकुम्भ योग में आत्मा के कारक भगवान भास्कर अपने मित्र मंगल की राशि मेष से निकल कर अपने शत्रु ग्रह शुक्र की राशि वृषभ में प्रस्थान करेंगे | इस समय सूर्यदेव कृत्तिका नक्षत्र पर होंगे | अभी तक जो राहु-केतु के मध्य भगवान भास्कर भ्रमण कर रहे थे और शनि की तीसरी दृष्टि उन पर आ रही थी उससे उन्हें मुक्ति प्राप्त हो जाएगी | अपनी इस यात्रा के दौरान भगवान भास्कर 25 मई से रोहिणी नक्षत्र तथा आठ जून से मृगशिरा नक्षत्र पर संचार करते हुए अन्त में गुरुवार 15 जून को सायं 6:16 के लगभग मिथुन राशि में प्रस्थान कर जाएँगे | 25 मई को सूर्य के रोहिणी नक्षत्र पर आरूढ़ होने के साथ ही नव-दिवसीय नौतपा भी आरम्भ हो जाएँगे और इसी बीच निर्जला एकादशी का पर्व भी आ जाएगा | वृषभ राशि सूर्य की अपनी सिंह राशि से दशम भाव है तथा सूर्य की उच्च राशि मेष से द्वितीय भाव है | वृषभ राशि के लिए सूर्य चतुर्थेश हो जाता है | इन्हीं समस्त तथ्यों के आधार पर जानने का प्रयास करते हैं कि समस्त राशियों के जातकों पर वृषभ राशि में सूर्य के संक्रमण के क्या सम्भावित परिणाम हो सकते हैं…

किन्तु ध्यान रहे, उपरोक्त परिणाम सामान्य हैं | किसी कुण्डली के विस्तृत फलादेश के लिए केवल एक ही ग्रह के गोचर को नहीं देखा जाता अपितु उस कुण्डली का विभिन्न सूत्रों के आधार पर विस्तृत अध्ययन आवश्यक है |

मेष : आपका पंचमेश आपकी राशि से द्वितीय भाव में प्रवेश करेगा | आपके लिए यह गोचर अनुकूल प्रतीत होता है | आर्थिक स्तर में दृढ़ता आने के संकेत हैं | कार्य में उन्नति तथा धन सम्पत्ति में वृद्धि के योग हैं | पिता अथवा / तथा सन्तान का सहयोग प्राप्त रहेगा | साथ ही आपकी सन्तान की ओर से भी आपको शुभ समाचार प्राप्त हो सकते हैं | आपकी वाणी प्रभावशाली बनी रहेगी जिसका लाभ आपको अपने कार्य में अवश्य प्राप्त होगा | अविवाहित हैं तो अनुकूल जीवन साथी की खोज भी इस अवधि में पूर्ण हो सकती है | सम्बन्धों में माधुर्य बनाए रखने के लिए आपको अपनी वाणी और Temperament पर नियन्त्रण रखने की आवश्यकता है |

वृषभ : आपकी तो राशि में ही आपके चतुर्थेश का गोचर हो रहा है | यदि आप अपने लिए नई प्रॉपर्टी खरीदना चाहते हैं तो आपका वह सपना पूर्ण हो सकता है | किन्तु इस कार्य के लिए कहीं से भी लोन लेना उचित नहीं होगा | आत्मविश्वास में वृद्धि के संकेत हैं | परिवार में आनन्द का वातावरण बना रहा सकता है | कार्य की दृष्टि से भी समय अनुकूल ही प्रतीत होता है | किन्तु माइग्रेन, ज्वर, पित्त आदि से सम्बन्धित समस्याएँ हो सकती हैं, अतः गर्मी से बचने का प्रयास करें और अधिक मात्रा में पेय पदार्थों का सेवन करें | अधिक मिर्च मसाले वाले भोजन से परहेज़ करें |

मिथुन : आपका तृतीयेश आपके द्वादश भाव में गोचर कर रहा है | आपके लिए समय उतना अधिक उत्साहवर्द्धक नहीं प्रतीत होता | एक ओर जहाँ यात्राओं में वृद्धि के संकेत हैं वहीं दूसरी ओर यह आवश्यक नहीं कि यात्राओं से आपको लाभ हो ही जाए | साथ ही यात्राओं पर पैसा भी अधिक खर्च हो सकता है | यात्राओं के दौरान अपने स्वास्थ्य का भी ध्यान रखने की आवश्यकता है – विशेष रूप से आँखों के इन्फेक्शन के प्रति सचेत रहने की आवश्यकता है | आपके छोटे भाई बहनों के लिए कार्य की दृष्टि से यह गोचर अनुकूल प्रतीत होता है तथा उनके साथ आपके सम्बन्धों में भी माधुर्य बना रहने की सम्भावना है |

कर्क : आपका द्वितीयेश आपके लाभ स्थान में गोचर कर रहा है, वास्तव में आपके कार्य तथा आर्थिक दृष्टि से बहुत अच्छे संकेत प्रतीत होते हैं | नवीन प्रोजेक्ट्स आपको प्राप्त हो सकते हैं जो लम्बे समय तक आपको व्यस्त रखते हुए धनलाभ कराने में सक्षम होंगे | साथ ही नौकरी में प्रमोशन, मान सम्मान में वृद्धि तथा व्यवसाय में उन्नति के भी संकेत हैं | वर्तमान कार्य के साथ ही कोई अन्य प्रकार का नया कार्य भी आप इस अवधि में आरम्भ कर सकते हैं | परिवार, मित्रों, बड़े भाई, पिता तथा अधिकारियों का सहयोग भी प्राप्त रहेगा | आपकी सन्तान के लिए भी अनुकूल समय प्रतीत होता है |

सिंह : आपका राश्यधिपति आपके कर्म स्थान में गोचर कर रहा है | निश्चित रूप से कार्य की दृष्टि से समय अत्यन्त उत्साहवर्द्धक प्रतीत होता है | नौकरी में हैं तो पदोन्नति, अपना स्वयं का व्यवसाय है तो उसमें भी उन्नति तथा नए क्लायिन्ट्स बनने की सम्भावना है | आत्मविश्वास में वृद्धि का समय है | आपके कार्य की प्रशंसा होगी तथा धनलाभ भी होने की सम्भावना है | कार्यक्षेत्र में आपके उत्तम प्रदर्शन के लिए आपको किसी पुरूस्कार आदि का लाभ भी हो सकता है | माता पिता तथा परिवार के अन्य लोगों के साथ साथ सहकर्मियों का भी सहयोग प्राप्त होता रहेगा |

कन्या : आपका द्वादशेश आपके भाग्य स्थान में गोचर कर रहा है | निश्चित रूप से भाग्योन्नति का समय प्रतीत होता है | सुख समृद्धि में वृद्धि के संकेत हैं | जिन जातकों का कार्य विदेश से किसी प्रकार सम्बद्ध है उनके लिए विशेष रूप से भाग्यवर्द्धक समय प्रतीत होता है | विदेश यात्राओं में वृद्धि के भी संकेत हैं | अतः आलस्य का त्याग करके अवसर का लाभ उठाने की आवश्यकता है | यदि स्वास्थ्य सम्बन्धी कोई समस्या चल रही है तो उससे भी मुक्ति इस अवधि में सम्भव है | साथ ही आप सपरिवार किसी तीर्थ स्थान की यात्रा के लिए भी जा सकते हैं |

तुला : आपका एकादशेश अष्टम भाव में गोचर कर रहा है | आर्थिक दृष्टि से तो समय अनुकूल है किन्तु स्वास्थ्य की दृष्टि से समय उतना अनुकूल नहीं प्रतीत होता | गुप्त शत्रुओं के प्रति भी सावधान रहने की आवश्यकता है | अपने बॉस से किसी प्रकार का पंगा लेना इस अवधि में उचित नहीं रहेगा | स्वास्थ्य समस्याओं तथा विरोधियों के कारण आप अपने मनोबल में भी कमी का अनुभव कर सकते हैं | किन्तु कार्यस्थल पर आपको अपने सहकर्मियों का सहयोग प्राप्त रहेगा जिसके कारण आप अपने कार्य समय पर पूर्ण करने में सक्षम हो सकते हैं |

वृश्चिक : आपकी राशि से दशमेश आपके सप्तम भाव में गोचर कर रहा है | आपके तथा आपके जीवन साथी के लिए कार्य की दृष्टि से समय विशेष रूप से अनुकूल प्रतीत होता है | कार्य में उन्नति के संकेत हैं | आर्थिक स्थिति में दृढ़ता के संकेत हैं | किसी घनिष्ठ मित्र के माध्यम से आपके कार्य में लाभ की सम्भावना है | किसी पैतृक सम्पत्ति के लाभ की भी सम्भावना है | आपकी सन्तान के लिए भी यह गोचर अनुकूल प्रतीत होता है तथा उसकी ओर से कोई शुभ समाचार आपको प्राप्त हो सकता है | जो लोग पॉलिटिक्स से जुड़े हैं उनके लिए भी समय उत्साहवर्द्धक प्रतीत होता है | अविवाहित हैं तो जीवन साथी की खोज भी इस अवधि में पूर्ण हो सकती है |

धनु : आपका भाग्येश छठे भाव में गोचर कर रहा है | एक ओर विदेश यात्राओं के योग हैं तो वहीं दूसरी ओर कार्य की दृष्टि से भी समय भाग्यवर्द्धक प्रतीत होता है | सम्भव है आपको अपने कार्य में किसी प्रकार के व्यवधान का अनुभव हो, किन्तु आप अपने बुद्धिबल से उस व्यवधान को दूर कर सकते हैं | आप इस समय अपने प्रतियोगियों को परास्त करने में सक्षम हैं इसलिए अवसर का लाभ उठाकर अपने लक्ष्य के प्रति अग्रसर होना ही उचित रहेगा | स्वास्थ्य की दृष्टि से भी समय अनुकूल प्रतीत होता है | किसी पुरानी बीमारी के भी इस अवधि में ठीक हो जाने की सम्भावना है |

मकर : आपका अष्टमेश आपके पञ्चम भाव में गोचर कर रहा है | आपके लिए सूर्य का यह गोचर मिश्रित फल देने वाला प्रतीत होता है | व्यावसायिक रूप से आपके कार्य में तथा मान सम्मान में वृद्धि के संकेत हैं | पॉलिटिक्स से सम्बद्ध लोगों के लिए भी यह गोचर अनुकूल प्रतीत होता है | आपकी सन्तान के लिए विशेष रूप से यह गोचर भाग्यवर्द्धक प्रतीत होता है | आपकी सन्तान उच्च शिक्षा के लिए विदेश भी जा सकती है और यदि नौकरी की तलाश में है तो वह भी पूर्ण हो सकती है | किन्तु सन्तान के स्वास्थ्य का ध्यान रखने की आवश्यकता होगी | साथ ही सन्तान के साथ बहस सम्बन्धों के लिए हानिकारक भी हो सकती है |

कुम्भ : आपकी राशि से सप्तमेश का आपके चतुर्थ भाव में गोचर है | आप अथवा आपका जीवन साथी यदि नया वाहन अथवा घर खरीदना चाहते हैं तो इस अवधि में आपका वह सपना सत्य हो सकता है | नौकरी में हैं तो पदोन्नति के संकेत भी हैं | पॉलिटिक्स में हैं तो आपको कोई पद भी प्राप्त हो सकता है | मान सम्मान में वृद्धि के संकेत हैं | यदि किसी प्रतियोगी परीक्षा के परिणाम की प्रतीक्षा है तो वह आपके पक्ष में आ सकता है | परिवार में किसी बच्चे का जन्म भी हो सकता है |

मीन : आपके षष्ठेश आपके तृतीय भाव में गोचर आपके लिए अनुकूल प्रतीत होता है | छोटे भाई बहनों के साथ सम्बन्धों में सुधार की सम्भावना है | पराक्रम में वृद्धि के संकेत हैं | आप अपने विरोधियों को परास्त करने में समर्थ हो सकते हैं | किसी कोर्ट केस का परिणाम भी आपके पक्ष में आ सकता है | आपके भाई बहनों के लिए भी यह गोचर भाग्यवर्द्धक प्रतीत होता है | साथ ही यदि आप हाथ के कारीगर हैं अथवा Engineer, Architect, Doctor हैं अथवा मीडिया से सम्बन्ध रखते हैं तो आपके लिए यह गोचर विशेष रूप से अनुकूल प्रतीत होता है |

अन्त में, ग्रहों के गोचर अपने नियत समय पर होते ही रहते हैं | सबसे प्रमुख तो व्यक्ति का अपना कर्म होता है | तो, कर्मशील रहते हुए अपने लक्ष्य की ओर हम सभी अग्रसर रहें यही कामना है…

चैत्र नवरात्र 2023 की तिथियाँ

चैत्र नवरात्र 2023 की तिथियाँ

इस वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा यानी बुधवार 22 मार्च से नल नामक विक्रम सम्वत 2080 का आरम्भ हो जाएगा | कुछ ज्योतिषाचार्यों के अनुसार यह पिंगल सम्वत्सर होगा – किन्तु यह इस लेख का विषय नहीं है – इस विषय में सदा से ही मतभेद चला आ रहा है और सभी विद्वज्जनों को मिलकर इस पर विचार करने की आवश्यकता है | यहाँ प्रस्तुत है हिन्दू नव वर्ष तथा साम्वत्सरिक नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ नवरात्रों की तिथियाँ तथा इस वर्ष की ग्रहों की संसद के विषय में संक्षिप्त वर्णन…

21 मार्च को रात्रि 10:54 से 22 मार्च को रात्रि 8:20 तक प्रतिपदा तिथि रहेगी | घट स्थापना मुहूर्त बुधवार 22 मार्च को द्विस्वभाव मीन लग्न में सूर्योदय में 6:23 से 7:32 तक है | मीन लग्नोदय 6:08 पर है, किन्तु सूर्योदय 6:23 पर होने के कारण इसी समय से घट स्थापना का मुहूर्त आरम्भ हो रहा है जो लग्न की समाप्ति 7:32 तक रहेगा | किन्स्तुघ्न करण और शुक्ल योग होगा जो 22 मार्च को प्रातः 9:18 तक रहेगा और उसके बाद ब्रह्म योग आरम्भ हो जाएगा जो 23 मार्च तक रहेगा | इसके अतिरिक्त दो योगकारक गुरु और बुध के साथ सूर्य और चन्द्र कि युति बहुत शुभ संकेत दे रहे हैं | कुछ मित्रों ने प्रश्न किया है कि 19 मार्च से 23 मार्च तक पंचक रहेंगे, तो क्या पंचकों में घट स्थापना की जा सकती है ? उनकी जानकारी के लिए बता दें कि पंचकों में घट स्थापना जैसे कार्य करने पर कोई रोक नहीं होती | हाँ, विद्वानों के अनुसार दक्षिण दिशा की यात्रा, छत बनवाना, चारपाई बनवाना आदि कार्यों का निषेध माना जाता है | वैसे भी हमारा व्यक्तिगत रूप से मानना है कि पंचकों में यदि कुछ अशुभ घटने कि सम्भावना भी है तो घट स्थापना, पूजन आदि के द्वारा वह दूर होकर शुभत्व में ही वृद्धि होगी | अतः हर वर्ष की भाँति इस वर्ष भी नियत मुहूर्त में घट स्थापना की जाएगी…

जिस प्रकार किसी भी देश की सरकार के कार्य को विधिवत नियन्त्रित करने के लिए मन्त्रीमण्डल की आवश्यकता होती है उसी प्रकार ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भी नवग्रहों का मन्त्रीमण्डल समस्त गढ़ नक्षत्रों की गतिविधियों को नियन्त्रित करता है | जिस वार से सम्वत्सर का आरम्भ माना जाता है उसी ग्रह को उस वर्ष का आधिपत्य प्राप्त होता है |

इस वर्ष की आकाशीय संसद में ग्रहों के राजकुमार, बुद्धि-विवेक-चिकित्सा विज्ञान आदि के कारक बुध को वर्ष के अधिपति का तथा समस्त प्रकार के सांसारिक सुख सुविधाओं, समृद्धि और कलाओं आदि के कारक शुक्र को मन्त्री का पद प्राप्त हुआ है | अधिपति बुध, मन्त्री शुक्र दोनों ही ग्रहों में परस्पर मित्रता है | और जब किसी राज्य में राजा और उसके मन्त्री एकमत होकर कार्य करते हैं तो वह देश बहुत शीघ्र प्रगति करता है | इस वर्ष लगभग यही स्थिति बनी रहने की सम्भावना की जा सकती है | जिस सम्वत के राजा बुध होते हैं उस वर्ष पृथ्वी पर वर्षा की स्थिति अच्छी रहती है | यह बात माँ भगवती के वाहन से भी स्पष्ट हो रही है | इस वर्ष चैत्र नवरात्रों में भगवती का आगमन नौका पर हो रहा है | भगवती का नाव पर आना प्रतीक है इस तथ्य का कि नाव के लिए पानी की आवश्यकता होती है और मां अपने साथ धरती पर पानी भी लेकर आएँगी | इस प्रकार यह वर्ष कृषि के लिए उत्तम रहने की सम्भावना है | फसल अच्छी होगी | और जब फसल अच्छी होगी तो निश्चित रूप से सभी क्षेत्रों में सुख समृद्धि की सम्भावना की जा सकती है – जिसके कारक हैं शुक्र | व्यापारी वर्ग के लिए लाभ की सम्भावना की जा सकती है | लेखन, चिकित्सा और शिल्प कला आदि के क्षेत्र में भी प्रगति की सम्भावना की जा सकती है | जन साधारण में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता में वृद्धि होने की सम्भावना की जा सकती है | शुक्र के मन्त्री होने के कारण महिलाओं की उन्नति की सम्भावना भी बन रही है | फिल्म उद्योग, मनोरंजन और फैशन के क्षेत्र में केवल भारत में ही नहीं अपितु विश्व में आकर्षण और रुझान बढ़ेगा और इन क्षेत्रों से सम्बद्ध व्यक्तियों की आर्थिक स्थिति में भी वृद्धि होने की सम्भावना की जा सकती है |

इस वर्ष के सेनापति देवगुरु बृहस्पति हैं और वे ही मेघेश भी हैं | चन्द्रमा सस्येश हैं | सूर्य धनेश हैं | इन समस्त पदों के वितरण को देखते हुए कारण पुनः अच्छी वर्षा और उसके कारण अच्छी फसल की सम्भावना बढ़ जाती है और धनागम के नवीन द्वार खुलने की सम्भावना भी बढ़ जाती है | धान्येश शनि हैं – विश्व के कुछ भागों में इनका अनुकूल प्रभाव दृष्टिगत हो सकता है तो कुछ भागों में कुछ विनाशकारी घटनाएँ भी सम्भव हैं |

इस वर्ष नवरात्रों की तिथियाँ इस प्रकार हैं…

बुधवार 22 मार्च – चैत्र शुक्ल प्रतिपदा / साम्वत्सरिक नवरात्र आरम्भ / नल नामक विक्रम सम्वत 2080 आरम्भ / 21 मार्च को रात्रि 10:54 से 22 मार्च को रात्रि 8:20 तक प्रतिपदा तिथि – घट स्थापना मुहूर्त 22 मार्च को द्विस्वभाव मीन लग्न में सूर्योदय में 6:23 से 7:32 तक – मीन लग्नोदय 6:08 पर है, किन्तु सूर्योदय 6:23 पर होने के कारण इसी समय से घट स्थापना का मुहूर्त आरम्भ हो रहा है जो लग्न की समाप्ति 7:32 तक रहेगा – किन्स्तुघ्न करण और शुक्ल योग / लग्न में दो योगकारक गुरु और बुध के साथ सूर्य और चन्द्र कि युति बहुत शुभ संकेत दे रहे हैं / भगवती के शैलपुत्री रूप की उपासना / गुड़ी पड़वा / युगादि

गुरूवार 23 मार्च – चैत्र शुक्ल द्वितीया / भगवती के ब्रह्मचारिणी रूप की उपासना / मत्स्य जयन्ती

शुक्रवार 24 मार्च – चैत्र शुक्ल तृतीया / भगवती के चन्द्रघंटा रूप की उपासना / गणगौर पूजा

शनिवार 25 मार्च – चैत्र शुक्ल चतुर्थी / भगवती के कूष्माण्डा रूप की उपासना / लक्ष्मी पञ्चमी

रविवार 26 मार्च – चैत्र शुक्ल पञ्चमी / भगवती के स्कन्दमाता रूप की उपासना

सोमवार 27 मार्च – चैत्र शुक्ल षष्ठी / भगवती के कात्यायनी रूप की उपासना

मंगलवार 28 मार्च – चैत्र शुक्ल सप्तमी / भगवती के कालरात्रि रूप की उपासना

बुधवार 29 मार्च – चैत्र शुक्ल अष्टमी / भगवती के महागौरी रूप की उपासना

गुरूवार 30 मार्च – चैत्र शुक्ल नवमी / भगवती के सिद्धिदात्री रूप की उपासना

सभी को साम्वत्सरिक नवरात्र / वासन्तिक नवरात्र और हिन्दू नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ… माँ दुर्गा सभी की मनोकामनाएँ पूर्ण करें…

—–कात्यायनी—–

माघ मास के व्रतोत्सव

माघ मास के व्रतोत्सव

माघ मास – 7 जनवरी 2022 से 5 फरवरी 2023 – के व्रतोत्सव

शुक्रवार ­6 जनवरी को पौष पूर्णिमा के साथ पौष मास समाप्त हो जाएगा और शनिवार 7 जनवरी से कृष्ण प्रतिपदा के साथ माघ मास आरम्भ हो जाएगा | माघ माह का वैदिक नाम है तप तथा इसमें दो नक्षत्र – आश्लेषा और मघा होते हैं | निश्चित रूप से इस माह की शुक्ल चतुर्दशी-पूर्णिमा को मघा नक्षत्र का उदय होने के कारण ही इसका हिन्दी नाम मघा हुआ | मघा का शाब्दिक अर्थ होता है समस्त प्रकार की सुख सुविधाएँ, पुरूस्कार, उपहार, समस्त प्रकार की धन सम्पदा इत्यादि | एक प्रकार की औषधीय वनस्पति तथा एक पुष्प भी मघा कहलाता है | मघा को शुक्र का जन्म नक्षत्र भी माना जाता है और शुक्र को समस्त सांसारिक सुख सुविधाओं का कारक माना गया है | इस मास में बहुत सारे धार्मिक पर्व आते हैं इसलिए इसे बहुत पवित्र मास माना जाता है | साथ ही प्रकृति भी अनुकूल होने लगती है | भगवान भास्कर उत्तरायण हो जाते हैं और अपने पुत्र शनि की मकर राशि में प्रस्थान कर जाते हैं | ठण्ड कम होने लगती है | हेमन्त का प्रस्थान और शिशिर का आगमन हो जाता है | माघ शुक्ल पञ्चमी से वसन्त का आगमन भी हो जाता है | सभी प्रकार के मांगलिक कार्य इस मास में आरम्भ हो जाते हैं | इस माह में संगम तथा अन्य पवित्र नदियों पर कल्पवास अर्थात नदियों के किनारे निवास करने की प्रथा चली आ रही है | माना जाता है कि इस मास में सभी नदियों का जल पवित्र हो जाता है और उसमें स्नान करके देवों का सान्निध्य प्राप्त होता है तथा सभी पापों से मुक्ति प्राप्त हो जाती है…

माघे निमग्ना: सलिले सुशीते विमुक्तपापास्त्रिदिवं प्रयान्ति

तथा

प्रीतये वासुदेवस्य सर्वपापानुत्तये, माघ स्नानं प्रकुर्वीत स्वर्गलाभाय मानव:

इस मास में स्वस्थ रहने के लिए गर्म पानी से स्नान धीरे धीरे बन्द करके शीतल जल से स्नान करने का सुझाव दिया जाता है | साथ ही हल्का भोजन करने के लिए कहा जाता है | तिल और गुड तथा उड़द कि काली दाल का प्रयोग इस माह में अधिक किया जाता है | इसका धार्मिक कारण है कि तिल और गुड तथा उड़द कि काली दाल का सम्बन्ध शनिदेव से माना गया है और इसी कारण ऐसी मान्यता है कि इन खाद्य पदार्थों के सेवन से शनि और सूर्य दोनों कि कृपा प्राप्त होती है | साथ ही, तिल और गुड़ दोनों गर्म प्रकृति के होने के कारण और उड़द कि दाल पौष्टिक होने के कारण स्वास्थ्य के लिए उत्तम भी होते हैं | इसीलिए इस मास में तिल, गुड़ और उड़द की काली दाल कि खिचड़ी का दान किया जाता है तथा सेवन भी किया जाता है |

मान्यताएँ और कथाएँ अनेकों हैं जिनसे इस मास के महत्त्व का पता चलता है | इस मास में आने वाले सभी पर्वों की अग्रिम रूप से अनेकशः हार्दिक शुभकामनाओं के साथ प्रस्तुत है इस माह में आने वाले प्रमुख व्रतोत्सवों की सूची…

शनिवार 7 जनवरी – माघ कृष्ण प्रतिपदा / माघ मास का आरम्भ

मंगलवार 10 जनवरी – माघ कृष्ण तृतीया / संकष्टी चतुर्थी

रविवार 15 जनवरी – माघ कृष्ण अष्टमी / मकर संक्रान्ति / सूर्य का मकर राशि में गोचर / संक्रमण काल 14 जनवरी को रात्रि 8:46 पर / उत्तरायणी / पोंगल

बुधवार 18 जनवरी – माघ कृष्ण एकादशी / षट्तिला एकादशी

गुरूवार 19 जनवरी – माघ कृष्ण द्वादशी / प्रदोष व्रत

शनिवार 21 जनवरी – माघ अमावस्या / मौनी अमावस्या / अन्वाधान / दर्श अमावस्या

रविवार 22 जनवरी – माघ शुक्ल प्रतिपदा / माघ नवरात्र

गुरूवार 26 जनवरी – माघ शुक्ल पञ्चमी / वसन्त पञ्चमी

शनिवार 28 जनवरी – माघ शुक्ल सप्तमी / रथ सप्तमी / भीष्म अष्टमी

बुधवार 1 फरवरी – माघ शुक्ल एकादशी / जया एकादशी

गुरूवार 2 फरवरी – माघ शुक्ल द्वादशी / प्रदोष व्रत

रविवार 5 फरवरी – माघ पूर्णिमा / माघ मास समाप्त

अस्तु, उत्तरायणगामी भगवान भास्कर सभी के हृदयों से अज्ञान का अन्धकार दूर कर ज्ञान का प्रकाश प्रसारित करें – इसी भावना के साथ सभी को माघ मास में आने वाले सभी व्रतोत्सवों कि हार्दिक शुभकामनाएँ…

एकादशी व्रत 2023

एकादशी व्रत 2023

नमस्कार मित्रों ! वर्ष 2022 को विदा करके वर्ष 2023 आने वाला है… सर्वप्रथम सभी को आने वाले वर्ष के लिए अनेकशः हार्दिक शुभकामनाएँ… हर वर्ष की भाँति इस वर्ष भी नूतन वर्ष के आरम्भ से पूर्व प्रस्तुत है वर्ष 2023 में आने वाले सभी एकादशी व्रतों की एक तालिका… वर्ष 2023 का आरम्भ ही एकादशी व्रत के साथ हो रहा है… प्रथम एकादशी होगी पौष मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी – जिसे पुत्रदा एकादशी कहा जाता है…

सभी जानते हैं कि हिन्दू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्त्व है | पद्मपुराण के अनुसार भगवान् श्री कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को एकादशी व्रत का आदेश दिया था और इस व्रत का माहात्म्य बताया था | प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशी होती है, और अधिमास हो जाने पर ये छब्बीस हो जाती हैं | किस एकादशी के व्रत का क्या महत्त्व है तथा किस प्रकार इस व्रत को करना चाहिए इस सबके विषय में विशेष रूप से पद्मपुराण में विस्तार से उल्लेख मिलता है | यदि दो दिन एकादशी तिथि हो तो स्मार्त (गृहस्थ) लोग पहले दिन व्रत रख कर उसी दिन पारायण कर सकते हैं, किन्तु वैष्णवों के लिए एकादशी का पारायण दूसरे दिन द्वादशी तिथि में ही करने की प्रथा है | हाँ, यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पूर्व समाप्त होकर त्रयोदशी तिथि आ रही हो तो पहले दिन ही उन्हें भी पारायण करने का विधान है | सभी जानते हैं कि एकादशी को भगवान् विष्णु के साथ त्रिदेवों की पूजा अर्चना की जाती है | यों तो सभी एकादशी महत्त्वपूर्ण होती हैं, किन्तु कुछ एकादशी जैसे षटतिला, निर्जला, देवशयनी, देवोत्थान, तथा मोक्षदा एकादशी का व्रत प्रायः वे लोग भी करते हैं जो अन्य किसी एकादशी का व्रत नहीं करते | इन सभी एकादशी के विषय में हम समय समय पर लिखते रहे हैं | वर्ष 2023 की शुभकामनाओं के साथ प्रस्तुत है सन् 2023 के लिए एकादशी की तारीखों की एक तालिका – उनके नामों तथा जिस हिन्दी माह में वे आती हैं उनके नाम सहित… वर्ष 2023 में प्रथम एकादशी होगी पौष मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी – जिसे पुत्रदा एकादशी कहा जाता है…

  • सोमवार, 2 जनवरी पौष शुक्ल पुत्रदा (वैकुण्ठ दक्षिण भारत) एकादशी
  • बुधवार, 18 जनवरी माघ कृष्ण षट्तिला एकादशी
  • बुधवार, 1 फरवरी माघ शुक्ल भीष्म / जया एकादशी
  • गुरूवार, 16 फरवरी फाल्गुन कृष्ण विजया एकादशी
  • गुरूवार, 2 मार्च फाल्गुन शुक्ल एकादशी (स्मार्त)
  • शुक्रवार, 3 मार्च फाल्गुन शुक्ल आमलकी / रंगभरी एकादशी (वैष्णव)
  • शनिवार, 18 मार्च       चैत्र कृष्ण पापमोचिनी एकादशी
  • शनिवार, 1 अप्रैल चैत्र शुक्ल कामदा एकादशी
  • रविवार, 16 अप्रैल       वैशाख कृष्ण वरूथिनी एकादशी
  • सोमवार, 1 मई वैशाख शुक्ल मोहिनी एकादशी
  • सोमवार, 15 मई ज्येष्ठ कृष्ण अपरा एकादशी
  • बुधवार, 31 मई ज्येष्ठ शुक्ल निर्जला एकादशी
  • बुधवार, 14 जून आषाढ़ कृष्ण योगिनी एकादशी
  • गुरूवार, 29 जून आषाढ़ शुक्ल देवशयनी एकादशी
  • गुरूवार, 13 जुलाई श्रावण कृष्ण कामिका एकादशी
  • शनिवार, 29 जुलाई श्रावण शुक्ल पद्मिनी एकादशी (अधिक)
  • शुक्रवार, 11 अगस्त श्रावण कृष्ण एकादशी (अधिक – स्मार्त)
  • शनिवार, 12 अगस्त श्रावण कृष्ण परमा एकादशी (अधिक – वैष्णव)
  • रविवार, 27 अगस्त श्रावण शुक्ल पुत्रदा एकादशी
  • रविवार, 10 सितम्बर भाद्रपद कृष्ण अजा एकादशी
  • सोमवार, 25 सितम्बर भाद्रपद शुक्ल परिवर्तिनी/पार्श्व एकादशी (स्मार्त)
  • मंगलवार, 26 सितम्बर भाद्रपद शुक्ल परिवर्तिनी/पार्श्व एकादशी (वैष्णव)
  • मंगलवार, 10 अक्तूबर आश्विन कृष्ण इन्दिरा एकादशी
  • बुधवार, 25 अक्तूबर आश्विन शुक्ल पापांकुशा एकादशी
  • गुरूवार, 9 नवम्बर कार्तिक कृष्ण रमा एकादशी
  • गुरूवार, 23 नवम्बर कार्तिक शुक्ल देवोत्थान / प्रबोधिनी / गुरुवयूर एकादशी
  • शुक्रवार, ­8 दिसम्बर मार्गशीर्ष कृष्ण उत्पन्ना एकादशी
  • शनिवार, 23 दिसम्बर मार्गशीर्ष शुक्ल मोक्षदा / वैकुण्ठ एकादशी

त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) की कृपादृष्टि समस्त जगत पर बनी रहे और सभी स्वस्थ व सुखी रहें, इसी भावना के साथ सभी को वर्ष 2023 की हार्दिक शुभकामनाएँ… वर्ष 2023 का हर दिन, हर तिथि, हर पर्व आपके लिए मंगलमय हो यही कामना है…

उठो देव जागो देव

उठो देव जागो देव

उठो देव जागो देव, पाँवड़ियाँ चटकाओ देव
सिंघाड़े का भोग लगाओ देव, गन्ने का भोग लगाओ देव
मूली और गुड़ का भी आओ मन भर भोग लगाओ देव
चार महीने के सोए देव जागो जागो जागो…
देव उठेंगे कातक मास, नयी टोकरी, नयी कपास
ज़ारे मूसे खेतन जा, खेतन जाके, मूँज कटा
मूँज कटाके, बाण बटा, बाण बटाके, खाट बुना
खाट बुनाके गूँथन दे, गूँथन देके दरी बिछा
दरी बिछाके लोट लगा, लोट लगाके मोटों हो, झोटों हो
चार महीने के सोए देव जागो जागो जागो…
गोरी गाय, कपला गाय, जाको दूध, महापन होए, सहापन होए
जितने अम्बर उडगन होएँ, इतनी या घर गावनियो
चार महीने के सोए देव जागो जागो जागो…
जितने जंगल सीख सलाई, इतनी या घर बहुअन आई
जितने जंगल हीसा रोड़े, इतने या घर बलधन होएँ
चार महीने के सोए देव जागो जागो जागो…
जितने जंगल झाऊ झुंड, इतने या घर जन्मो पूत
ओले क़ोले धरे अनार, ओले क़ोले धरे मंजीरा
चार महीने के सोए देव जागो जागो जागो…

आप सोच रहे होंगे आज ये किस तरह की कविता हमने लिख दी…? जी हाँ, अभी कल देव प्रबोधिनी एकादशी का ऋतु पर्व है – ऐसे में बचपन की कुछ स्मृतियाँ मन में घुमड़ गईं | यों तो उस समय प्रायः सभी परिवारों में होली से लेकर वसन्त, हरियाली तीज, रक्षा बन्धन और श्री कृष्ण जन्माष्टमी के पर्व मनाते मनाते आ जाते थे श्राद्ध पर्व – पर्व इसलिये क्योंकि दिवंगत पूर्वजों के प्रति श्रद्धा सुमन समर्पित करने हेतु समस्त परिवारी जन मिलकर उनकी पसन्द का भोजन बनाते थे आर ब्राह्मण भोज के साथ ही सामाजिक भोज भी हुआ करता था – तो उत्सव जैसा वातावरण बना रहता था | और फिर नवरात्रों से तो हर दिन उत्सव होते ही हैं | और हर उत्सव का एक विधान होता है – एक विधि होती है | बच्चों को और क्या चाहिए होता है – परिवार में सभी लोग एक छत के नीचे इकट्ठा होकर आनन्द मनाएँ |

तो हम बात कर रहे थे देवोत्थान एकादशी की जिसकी विशेष रूप से प्रतीक्षा रहा करती थी – दीपावली और गंगा स्नान के मेले की ही भाँति | और होता यह था कि एकादशी से सप्ताह भर पहले से ही पिताजी के शिष्य किसानों के घरों से गन्ने आने आरम्भ हो जाते थे | एकादशी तक तो इतने गन्ने, गुड़, सिंघाड़े और मूली इकट्ठा हो जाया करती थीं कि मोहल्ले भर में बाँटी जाती थीं पूजा के लिए भी और खाने के लिए भी | और परिवार के सभी लोग जी भर भोग भी लगाते रहते थे गन्नों का | अड़ोस पड़ोस उन दिनों परिवार के ही जैसे हुआ करते थे – तो सबकी मौज आ जाती थी | उन दिनों अधिकाँश शिक्षकों के घरों का यही हाल था | शिक्षक अपने विद्यालय के विद्यार्थियों को घरों में बुलाकर अपनी सन्तान मानकर पूर्ण मनोयोग से पढ़ाते भी थे – सुस्वादु घर का बना भोजन भी शिष्यों के साथ सपरिवार मिल जुल कर ग्रहण करते थे और तिस पर ट्यूशन फीस भी नहीं लेते थे | तो इन शिक्षकों के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए कृषक वर्ग इस तरह की वस्तुएँ समय समय पर श्रद्धाभाव से पहुँचाता रहता था – बार बार मना करने पर भी उनका उत्तर होता था “देखो जी गुरु जी मना मत ना करो… अब तुम इत्ता सारा गियान दो हो हमारे बच्चों को तो हमारा भी कुछ फरज बने अक ना…” और इस तरह माँ पिताजी को चुप करा दिया जाता था | ऐसा आत्मिक सम्बन्ध उन दिनों शिक्षकों-शिष्यों-अभिभावकों का हुआ करता था |

पूजा वाले दिन माँ ने जहाँ दीवार पर रंग बिरंगी दीपावली बनाई होती थी वहीं नीचे ज़मीन पर पीसे हुए चावल के घोल, रोली और हल्दी से माता लक्ष्मी और विष्णु भगवान बनाया करती थीं और फिर घर के मुख्य द्वार से पूजा कक्ष, रसोई और दूसरे कमरों तक मुट्ठी और उँगलियों की सहायता से पैर बनाया करती थीं – बताती थीं ये लक्ष्मी जी के चरण होते थे जो बाहर से भीतर आते बनाए जाते थे | लक्ष्मी-विष्णु जी के चित्र के पास ज़मीन पर ही एक स्थान पर गन्ने, मूली, सिंघाड़े, गेहूँ, खील बताशे और गुड़ इत्यादि रखकर, दीप प्रज्वलित करके कुछ पूजा की जाती थी और उसके बाद किसी थाल को उल्टा करके उस पर ताल देते हुए सारी महिलाएँ ससुर में सुर मिलाकर यही गीत गाया करती थीं | हमारा घर इन समस्त प्रकार की गतिविधियों का केन्द्र हुआ करता था | और ये गीत हम सबको इतना मन भाता था कि इसी गीत को सुनने के लिए हम देव प्रबोधिनी एकादशी की वर्ष भर प्रतीक्षा किया करते थे | और एक बात, इस गीत में गेयता है लेकिन बहुत सी जगहों पर छन्द ठीक भी नहीं हैं – फिर भी जब सारी महिलाएँ समवेत स्वर में गाती थीं तो मन आनन्द से झूम उठता था – यही है लोक गीतों की महिमा… जिनमें व्याकरण का कोई अर्थ ही नहीं रहता… यदि कुछ होता है तो वह है रस, स्वर, लय और भाव… और यही है लोक पर्वों की महत्ता कि बड़ी सरलता से समूची प्रकृति का – प्रकृति के संसाधनों का महत्त्व मानव को समझा देते हैं…

वास्तव में यह पर्व भी ऋतुकालोद्भव पर्व ही है | इसका धार्मिक-आध्यात्मिक महत्त्व होने के साथ ही यह एक सामाजिक लोकपर्व है और नई फसल के स्वागत का पर्व है – प्रकृति का पर्व है | इस गीत में कितनी सुन्दरता से लोकभाषा में कहा गया है कि इस अवसर पर नया बाँस, नया कपास, नयी मूँज सब कुछ उत्पन्न हो जाता है जिससे टोकरी, खाट के बाण, दरी सब कुछ नया बनाया जा सकता है | खेतिहर लोग थे तो इन्हीं समस्त वस्तुओं से चारपाई बिस्तर तथा अन्य भी घर में उपयोग में आने वाली वस्तुएँ बनाते थे | साथ ही गन्ने का रस होता भी पौष्टिक है – व्रत के पारायण के समय यदि इक्षुरस का पान कर लिया जाए तो तुरन्त शक्ति प्राप्त हो जाती है | जितनी भी वस्तुएँ पूजा में रखी जाती हैं सभी पौष्टिकता से भरपूर होती हैं | साथ ही गउओं के अमृततुल्य दूध की महिमा बताई गई है | स्वच्छ निर्मल आकाश में चमकती तारावलियों की भाँति भरे पूरे परिवार हों | गोरी कपिला गउओं का पावन पौष्टिक दूध निरन्तर सबको प्राप्त होता रहे | परिवारों में इतना अधिक आनन्द हो कि नित मंगल गीत गाए जाते रहें | जिस पर्व की भावना इतनी उत्साह और आनन्द से पूर्ण हो भला उसकी प्रतीक्षा वर्ष भर क्यों न रहेगी ?

अस्तु, सभी को देव प्रबोधिनी एकादशी की अनेकशः हार्दिक शुभकामनाएँ…
उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये
त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत्‌ सुप्तं भवेद्दिदम्
उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव
गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिशः
शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव

सूर्य का तुला में गोचर

सूर्य का तुला में गोचर

सोमवार 17 अक्तूबर आश्विन कृष्ण अष्टमी को रात्रि सात बजकर तेईस मिनट के लगभग बालव करण और बालव योग में भगवान भास्कर कन्या राशि से निकल कर शत्रु ग्रह शुक्र की तुला राशि में प्रविष्ट हो जाएँगे | तुला राशि आत्मकारक सूर्य की नीच राशि भी होती है | यहाँ पर मकर राशि से एक अन्य शत्रु ग्रह शनि की दशम दृष्टि भी इन पर रहेगी | साथ ही राहु-केतु के मध्य पहुँच पीड़ित भी हो जाएँगे | सूर्यदेव इस समय चित्रा नक्षत्र पर भ्रमण कर रहे हैं जहाँ से चौबीस अक्तूबर से स्वाति तथा छह नवम्बर से विशाखा नक्षत्र पर भ्रमण करते हुए अन्त में सोलह नवम्बर को रात्रि सात बजकर सोलह मिनट के लगभग मित्र ग्रह मंगल की वृश्चिक राशि में प्रविष्ट हो जाएँगे | तुला राशि के लिए सूर्य लाभेश भी बन जाता है | इन्हीं समस्त तथ्यों के आधार पर जानने का प्रयास करते हैं कि तुला राशि में सूर्य के संक्रमण के जनसाधारण पर क्या सम्भावित प्रभाव हो सकते हैं…

किन्तु ध्यान रहे, ये परिणाम सामान्य हैं | किसी कुण्डली के विस्तृत फलादेश के लिए केवल एक ही ग्रह के गोचर को नहीं देखा जाता अपितु उस कुण्डली का विभिन्न सूत्रों के आधार पर विस्तृत अध्ययन आवश्यक है |

मेष : आपकी राशि से पंचमेश आपके सप्तम भाव में गोचर कर रहा है | अकारण ही आपके स्वभाव में चिडचिडापन आ सकता है जो सम्बन्धों के लिए उचित नहीं होगा, अतः सावधान रहने की आवश्यकता है | विशेष रूप से दाम्पत्य जीवन में तथा प्रेम सम्बन्धों में किसी प्रकार की तनाव की सम्भावना हो सकती है | पार्टनरशिप में कोई कार्य है तो वहाँ भी कुछ समस्या उत्पन्न हो सकती है | अच्छा रहेगा अपने स्वभाव को ठीक रखने के लिए ध्यान का सहारा लें | किन्तु साथ ही यदि आप अविवाहित हैं तो इस अवधि में आपका कहीं विवाह भी सम्भव है | सूर्य की उपासना तथा सूर्य के मन्त्र का जाप आपको बहुत सी समस्याओं से बचा सकता है | आपकी सन्तान का स्वभाव भी कुछ उग्र हो सकता है, किन्तु उसका सहयोग आपको प्राप्त होता रहेगा | कार्य क्षेत्र में उन्नति की सम्भावना इस अवधि में की जा सकती है |

वृषभ : आपकी राशि से चतुर्थेश छठे भाव में गोचर कर रहा है | यदि आपने अपने Temperament पर नियन्त्रण नहीं रखा तो प्रेम सम्बन्धों अथवा पारिवारिक सम्बन्धों में दरार की भी सम्भावना है | सम्पत्ति विषयक कोई विवाद आपके लिए समस्या उत्पन्न कर सकता है | कार्य की दृष्टि से यह गोचर अनुकूल प्रतीत होता है | आप लक्ष्य के प्रति एकाग्रचित्त होकर कार्य करेंगे तथा उसमें सफलता प्राप्ति सम्भव है | यदि कोई कोर्ट केस चल रहा है तो उसका निर्णय आपके पक्ष में आ सकता है | स्वास्थ्य की ओर से सावधान रहने की आवश्यकता है | सरकारी नौकरी अथवा पॉलिटिक्स में हैं तो आपके लिए यह गोचर अनुकूल प्रतीत होता है | यदि आप गर्भवती महिला हैं तो आपके लिए विशेष रूप से सावधान रहने की आवश्यकता है |

मिथुन : आपकी राशि से तृतीयेश का गोचर आपके पञ्चम भाव में हो रहा है | आपके उत्साह में वृद्धि की सम्भावना है | जिसके कारण आप अपने कार्य समय पर पूर्ण करने में सक्षम हो सकते हैं | आपका प्रदर्शन अच्छा रहेगा जिसके कारण आपको सम्मान अथवा पुरूस्कार आदि भी प्राप्त होने की सम्भावना है | नौकरी में यदि आप हैं तो आपके लिए पदोन्नति के साथ ही आय में वृद्धि की भी सम्भावना है | किन्तु विद्यार्थियों के लिए कठिन परिश्रम की आवश्यकता होगी | सन्तान की ओर से किसी प्रकार की चिन्ता हो सकती है | अविवाहित हैं तो जीवन साथी की खोज भी इस अवधि में पूर्ण हो सकती है | यदि कहीं पैसा Invest करना चाहते हैं तो उसके लिए यह गोचर अनुकूल नहीं प्रतीत होता | आपके भाई बहनों के लिए भी यह गोचर यों तो अनुकूल प्रतीत होता है, किन्तु उनके अपने स्वभाव के कारण उन्हें मानसिक और शारीरिक कष्ट का सामना करना पड़ सकता है |

कर्क : आपकी राशि से द्वितीयेश का गोचर आपके चतुर्थ भाव में हो रहा है | भाई बहनों के साथ सम्बन्धों में सुधार की सम्भावना की जा सकती है | आर्थिक दृष्टि से यह गोचर आपके लिए अनुकूल प्रतीत होता है | आपके पिता तथा सहकर्मियों का सहयोग भी आपको प्राप्त रहेगा | आपका यदि स्वयं का व्यवसाय है अथवा मीडिया या आई टी से आपका कोई सम्बन्ध है तो आपके लिए उन्नति का समय प्रतीत होता है | प्रॉपर्टी की खरीद फरोख्त में लाभ की सम्भावना की जा सकती है, किन्तु सभी Documents का भली भाँति निरीक्षण अवश्य कर लें | साथ ही माता जी के स्वास्थ्य की ओर से सावधान रहने की आवश्यकता होगी | जीवन साथी के साथ किसी प्रकार का विवाद आपके पारिवारिक जीवन में अशान्ति का कारण भी बन सकता है, अतः इस ओर से सावधान रहने की आवश्यकता है | साथ ही अपनी वाणी पर संयम रखने की आवश्यकता है |

सिंह : आपके लिए आपके राश्यधिपति का अपनी राशि से तीसरे भाव में गोचर हो रहा है | आपकी प्रतियोगी तथा निर्णायक क्षमता में वृद्धि के साथ ही रचनात्मकता में भी वृद्धि के संकेत हैं | कार्य में प्रगति के साथ आर्थिक स्थिति में भी दृढ़ता की सम्भावना की जा सकती है | आपको किसी घनिष्ठ मित्र के माध्यम से कुछ नवीन प्रोजेक्ट्स इस अवधि में प्राप्त हो सकते हैं | किसी पुराने मित्र से भी इस अवधि में भेंट हो सकती है और उसके माध्यम से भी आपके कार्य में उन्नति की सम्भावना की जा सकती है | किसी प्रकार के पुरूस्कार, सम्मान अथवा पदोन्नति की सम्भावना इस अवधि में की जा सकती है | आवश्यकता है आलस्य से मुक्ति प्राप्त करने की | साथ ही इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि कार्य की अधिकता के कारण आपके स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव न पड़ने पाए | पिता के साथ बहस आपके लिए हित में नहीं रहेगी | इसके लिए योग ध्यान आदि के अभ्यास की आवश्यकता है |

कन्या : आपके लिए आपके द्वादशेश का गोचर आपके दूसरे भाव में हो रहा है | आपको अपने कार्य के सिलसिले में किसी विदेशी मित्र के माध्यम से सहायता प्राप्त हो सकती है | यदि आप किसी सरकारी नौकरी में हैं तो आपका ट्रांसफर किसी ऐसे स्थान पर हो सकता है जो आपके मन के अनुकूल न हो | आपका कार्य विदेश से सम्बन्धित है तो आपकी आय में वृद्धि की सम्भावना भी की जा सकती है | किन्तु खर्चों में भी वृद्धि हो सकती है | अतः बजट बनाकर चलना उचित रहेगा | आपको अपनी वाणी पर नियन्त्रण रखने की आवश्यकता है अन्यथा पारस्परिक सम्बन्धों में कड़वाहट आते देर नहीं लगेगी | जब तक आपका कार्य पूर्ण न हो जाए तब तक उसे सार्वजनिक न करें | साथ ही खान पान पर भी नियन्त्रण रखने की आवश्यकता है | आँखों से सम्बन्धित भी कोई समस्या हो सकती है अतः इस ओर से सावधान रहने की आवश्यकता है |

तुला : आपकी लग्न में ही आपके एकादशेश का गोचर आय में वृद्धि के संकेत दे रहा है | आपके लिए यह गोचर कार्य की दृष्टि से भाग्यवर्द्धक प्रतीत होता है | अपना स्वयं का कार्य है कार्य में प्रगति के साथ ही आर्थिक स्थिति में दृष्ट की भी सम्भावना की जा सकती है | नौकरी में हैं तो पदोन्नति के साथ आय में वृद्धि की सम्भावना है | किन्तु साथ ही किसी घनिष्ठ मित्र अथवा बड़े भाई के विरोध का भी सामना करना पड़ सकता है | जीवन साथी के साथ किसी प्रकार का विवाद भी सम्भव है | आवश्यक है कि आप अपने स्वभाव को नियन्त्रण में रखें | प्राणायाम और ध्यान का अभ्यास आपके लिए सहायक हो सकते हैं | स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है | जीवन साथी के साथ व्यर्थ के विवाद से बचने का प्रयास करें | पार्टनरशिप में कोई कार्य करना चाहते हैं तो अभी उसे स्थगित कर दें |

वृश्चिक : आपकी राशि से दशमेश का गोचर आपके द्वादश में हो रहा है | कार्य से सम्बन्धित विदेश यात्राओं में वृद्धि की सम्भावना है | किन्तु इन यात्राओं के दौरान आपको किसी प्रकार की समस्या का भी सामना करना पड़ सकता है | दूसरी ओर यात्राओं के दौरान कुछ नवीन सम्पर्क भी स्थापित हो सकते हैं जिनके कारण आपको अपने कार्य में लाभ प्राप्त हो सकता है | ड्राइविंग करते समय सावधान रहने की आवश्यकता है | साथ ही स्वास्थ्य का ध्यान रखने की भी आवश्यकता है | कार्य स्थल पर किसी समस्या के कारण मानसिक तनाव हो सकता है | अच्छा यही रहेगा कि इस समय सहकर्मियों अथवा अधीनस्थ लोगों के प्रस्तावों पर विचार करें | साथ ही अपनी समस्याएँ पिता के साथ डिस्कस करें और उनके सुझावों का पालन करें | व्यर्थ की भावनाओं में बहना आपके लिए उचित नहीं रहेगा |

धनु : आपकी राशि के लिए आपका भाग्येश आपके एकादश भाव में गोचर कर रहा है | आपके लिए वास्तव में यह गोचर भाग्यवर्धक प्रतीत होता है | नौकरी में हैं तो पदोन्नति के अवसर प्रतीत होते हैं | अपना स्वयं का कार्य है तो उसमें भी लाभ की सम्भावना है | रुकी हुई पेमेण्ट भी इस अवधि में प्राप्त हो सकती है | आपके लिए पराक्रम और मान सम्मान में वृद्धि के संकेत प्रतीत होते हैं | किसी प्रकार का अवार्ड या सम्मान आदि भी आपको इस अवधि में प्राप्त हो सकता है | धार्मिक और आध्यात्मिक गतिविधियों में रुचि बढ़ सकती है | पिता तथा बड़े भाई और मित्रों का सहयोग आपको प्राप्त रहेगा, किन्तु इन लोगों के साथ व्यर्थ की बहस से बचने की आवश्यकता है | सोच समझ कर कार्य करेंगे तो बहुत से कष्टों से बचे रह सकते हैं | किसी रोग से मुक्ति भी इस अवधि में प्राप्त हो सकती है | आप सपरिवार किसी तीर्थयात्रा पर भी जा सकते हैं |

मकर : आपकी राशि से अष्टमेश का गोचर आपके दशम भाव में हो रहा है | आपके लिए मिश्रित फल देने वाला गोचर प्रतीत होता है | एक ओर अचानक ही किसी ऐसे स्थान से लाभ हो सकता है जहाँ के विषय में आपने सोचा भी नहीं होगा, तो वहीं दूसरी ओर कार्यक्षेत्र में किसी प्रकार के विरोध का भी सामना करना पड़ सकता है | अपने स्वयं के व्यवसाय में उन्नति, नौकरी में पदोन्नति तथा मान सम्मान में वृद्धि के संकेत हैं | वक़ीलों और डॉक्टर्स के लिये यह गोचर भाग्यवर्द्धक प्रतीत होता है | किसी कारणवश आपको निराशा का अनुभव भी हो सकता है | गुप्त शत्रुओं की ओर से भी सावधान रहने की आवश्यकता है | आपके अपने स्वभाव एक कारण परिवार में किसी प्रकार का क्लेश भी सम्भव है, अतः इस ओर से भी सावधान रहने की आवश्यकता है |

कुम्भ : आपका सप्तमेश आपके भाग्य स्थान में गोचर कर रहा है | पार्टनरशिप में जिन लोगों का कार्य है उनके लिए यह गोचर भाग्यवर्धक प्रतीत होता है, किन्तु किसी प्रकार के विवाद की सम्भावना से भी इन्कार नहीं किया जा सकता | साथ ही पॉलिटिक्स से जो लोग सम्बन्ध रखते हैं उन लोगों के लिए भी यह गोचर अनुकूल प्रतीत होता है | उन्हें किसी पद की प्राप्ति भी हो सकती है | लेकिन किसी महिला सहकर्मी के विरोध का सामना भी करना पड़ सकता है | आप जीवन साथी के साथ कहीं तीर्थ यात्रा अथवा विदेश यात्रा के लिए भी जा सकते हैं | धर्म कर्म सम्बन्धित कार्यों में अधिक धन व्यय हो सकता है, अतः पोंगा पंडितों के जाल से बचने की आवश्यकता है | उत्साह में वृद्धि का समय प्रतीत होता है, किन्तु आवश्यकता से अधिक उत्साह तथा अत्यधिक आत्मविश्वास कभी कभी घातक भी हो सकता है अतः सावधान रहने की आवश्यकता है |

मीन : आपका षष्ठेश होकर सूर्य का गोचर आपके अष्टम भाव में हो रहा है | आपके लिए यह गोचर अनुकूल नहीं प्रतीत होता | एक ओर आपके यश और मान सम्मान में वृद्धि की सम्भावना की जा सकती है, तो दूसरी ओर ऐसे लोगों की ओर से सावधान रहने की भी आवश्यकता है जो आपके विरुद्ध किसी प्रकार का षड्यन्त्र करके आपके कार्य में व्यवधान उत्पन्न कर सकते हैं | किसी कोर्ट केस के कारण भी आपको समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है | नौकरी में हैं तो किसी विरोध के कारण उसमें भी समस्या उत्पन्न हो सकती है | तनाव के कारण स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं का सामना भी करना पड़ सकता है | दवाओं के रिएक्शन से बचने की भी आवश्यकता है | दुर्घटना से बचने के लिए सावधानीपूर्वक ड्राइव करें | सूर्य की उपासना आपके लिए आवश्यक प्रतीत होती है |

साथ ही, ग्रहों के गोचर अपने नियत समय पर होते ही रहते हैं | सबसे प्रमुख तो व्यक्ति का अपना कर्म होता है | तो, कर्मशील रहते हुए अपने लक्ष्य की ओर हम सभी अग्रसर रहें यही कामना है…

कार्तिक मास 2022 के व्रतोत्सव

कार्तिक मास 2022 के व्रतोत्सव

कार्तिक मास – 10 अक्टूबर से 8 नवम्बर 2022 – के व्रतोत्सव

रविवार नौ अक्तूबर को शरद पूर्णिमा के साथ आश्विन मास समाप्त हो जाएगा और दस अक्तूबर से कृष्ण प्रतिपदा के साथ कार्तिक माह आरम्भ हो जाएगा | आश्विन मास में एक ओर दिवंगत पूर्वजों के प्रति श्रद्धा का पर्व श्राद्ध पक्ष था तो वहीं दूसरी ओर आश्विन अमावस्या से पितृ गणों को उनके शाश्वत धाम के लिए विदा करके महालया के साथ समस्त हिन्दू समाज भगवती के नौ रूपों की पूजा अर्चना, विजया दशमी तथा शरद पूर्णिमा आदि पर्वों में तल्लीन रहा | कार्तिक मास भी बहुत सारे पर्वों के साथ आता है | मासारम्भ में ही होती है करक चतुर्थी, फिर अहोई अष्टमी, उसके बाद पाँच पर्वों की श्रृंखला दीपावली, देव प्रबोधिनी एकादशी, सूर्योपासना का पर्व छठ पूजा, तुलसी विवाह, बैकुण्ठ चतुर्दशी, देव दिवाली, कार्तिकी पूर्णिमा आदि अनेक पर्व इस माह में आते हैं |

सर्वप्रथम बात करते हैं कार्तिक मास के नाम की | इस मास का वैदिक नाम ऊर्जा है | जैसा कि पहले भी लिखते आए हैं कि जिस माह में जिस नक्षत्र का उदय होता है उसके आधार पर उस माह का नाम रखा जाता है | कार्तिक मास में ऊर्जावान कृत्तिका नक्षत्र प्रमुख होता है – अर्थात इस माह की शुक्ल चतुर्दशी/पूर्णिमा को चन्द्रमा कृत्तिका नक्षत्र पर होता है – इसलिए इसका नाम कार्तिक है | इस वर्ष नौ अक्तूबर को अर्द्धरात्र्योत्तर दो बजकर पच्चीस मिनट के लगभग कार्तिक कृष्ण प्रतिपदा तिथि का आगमन होगा अतः दस अक्तूबर से कार्तिक मास आरम्भ होगा जो आठ नवम्बर को कार्तिक पूर्णिमा के साथ सम्पन्न हो जाएगा | इस मास का बहुत महत्त्व माना गया है | भगवान विष्णु अपनी निद्रा से इसी मास में जागते हैं | स्कन्द पुराण के अनुसार शिव-पार्वती के पुत्र कार्तिकेय अथवा स्कन्द कुमार ने इसी मास में तारकासुर का वध करके ब्रह्माण्ड को उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाई थी | ऐसी भी मान्यता है कि इस मास में भगवान विष्णु धरती पर जल में निवास करते हैं इसलिए पवित्र नदियों में स्नान, दान, उपासना, यज्ञादि का इस मास में विशेष महत्त्व माना गया है | मान्यता है कि इस मास में ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है | दीपदान का भी इस मास में विशेष महत्त्व है – दीपावली और देव दीवाली इसका प्रमाण हैं |

इस वर्ष सोमवार दस अक्टूबर को कार्तिक कृष्ण प्रतिपदा का सूर्योदय छह बजकर तीन मिनट पर कन्या लग्न, बालव करण और व्याघात योग में हो रहा है | लग्न में योगकारक बुध के साथ सूर्य और शुक्र विराजमान हैं तथा दूसरा योगकारक स्वराशिगत होकर चन्द्रमा के साथ मिलकर गजकेसरी योग बना रहा है जो एक अत्यन्त शुभ योग है | साथ ही शनि महाराज भी अपनी ही राशि में विचरण कर रहे हैं | अस्तु, कार्तिक मास में आने वाले सभी पर्वों की अग्रिम रूप से अनेकशः हार्दिक शुभकामनाओं के साथ प्रस्तुत है इस माह में आने वाले व्रतोत्सवों की सूची…

गुरूवार 13 अक्टूबर – कार्तिक कृष्ण चतुर्थी – करक चतुर्थी – करवा चौथ व्रत – तिथि आरम्भ 12 अक्तूबर को अर्द्धरात्र्योत्तर 1:59 के लगभग / तिथि समाप्त 14 अक्तूबर अर्द्धरात्र्योत्तर 3:08 के लगभग / चन्द्र दर्शन दिल्ली रात्रि आठ बजकर नौ मिनट के लगभग / पूजा मुहूर्त मीन लग्न में सायं 4:37 से 6:02 तक / सरगी का मुहूर्त प्रातः 6:20 तक

सोमवार 17 अक्टूबर – कार्तिक कृष्ण अष्टमी – अहोई अष्टमी / राधा कुण्ड स्नान / तुला संक्रान्ति – सूर्य का तुला में संक्रमण रात्रि 7:23 के लगभग / अष्टमी तिथि आरम्भ प्रातः 9:29 पर / तिथि समाप्त 18 अक्तूबर प्रातः 11:57 पर / पूजा मुहूर्त सायं 5:50 से 7:05 तक / तारक दर्शन सायं छह बजकर तेरह मिनट से / चन्द्र दर्शन रात्रि 11:24 के लगभग

शुक्रवार 21 अक्टूबर – कार्तिक कृष्ण एकादशी / रमा एकादशी / गोवत्स द्वादशी

शनिवार 22 अक्टूबर – कार्तिक कृष्ण द्वादशी / धन्वन्तरी त्रयोदशी / धन तेरस पूजा मुहूर्त सायं 7:01 से रात्रि 8:57 तक (प्रदोष काल 5:45 से 8:11 तक), यम दीपक सायं 6:02 से 7:01 तक / प्रदोष व्रत

रविवार 23 अक्तूबर – कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी / काली चौदस मुहूर्त रात्रि 11:40 से अर्धरात्रि 12:31 / हनुमान पूजा

सोमवार 24 अक्तूबर – नरक चतुर्दशी – अभ्यंग स्नान मुहूर्त सूर्योदय से पूर्व 5:06 से 6:27 तक – चर लग्न, लग्न में सूर्य-चन्द्र-बुध-मंगल योग, शकुनि करण और प्रीति योग / केदार गौरी व्रत / अमावस्या तिथ्यारम्भ सायं 5:28 से / दीपावली / वृषभ लग्न में लक्ष्मी पूजन मुहूर्त सायं 6:54 से रात्रि 8:49 तक – चतुष्पद करण, विषकुम्भ योग / प्रदोष काल 5:43 से 8:16 तक / अन्य शुभ मुहूर्त अपराह्न में 5:27 से 7:18 तक लाभ और अमृत मुहूर्त, रात्रि 10:30 से अर्द्ध रात्रि में 12:05 तक लाभ काल, अर्द्धरात्र्योत्तर 1:41 से 6:28 तक शुभ और अमृत काल / महा निशीथ काल 11:40 से 12:31 तक / सिंह काल अर्द्धरात्र्योत्तर 1:25 से 3:41 तक

मंगलवार 25 अक्तूबर – कार्तिक अमावस्या / दर्श अमावस्या

बुधवार 26 अक्तूबर – कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा/द्वितीया / गोवर्धन पूजा / अन्नकूट / यम द्वितीया / भाई दूज

गुरूवार 27 अक्तूबर – कार्तिक शुक्ल द्वितीया 26 अक्तूबर को मध्याह्न 2:42 से 27 अक्तूबर को दिन में 12:45 तक / भाई दूज

शनिवार 29 नवम्बर – कार्तिक शुक्ल पञ्चमी / लाभ पञ्चमी

रविवार 30 अक्तूबर – कार्तिक शुक्ल षष्ठी / छठ पूजा

मंगलवार 1 नवम्बर – कार्तिक शुक्ल अष्टमी / गोपाष्टमी

बुधवार 2 नवम्बर – कार्तिक शुक्ल नवमी / अक्षय नवमी / पंचक आरम्भ मध्याह्न 2:17 पर

शुक्रवार 4 नवम्बर – कार्तिक शुक्ल एकादशी / देव प्रबोधिनी एकादशी / भीष्म पंचक आरम्भ (प्रत्येक मास में शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तक भीष्म पंचक माने जाते हैं और इन्हें किसी भी कार्य के लिए शुभ माना जाता है | किन्तु यदि बीच में सामान्य पंचक आ जाएँ तो उनका विचार मानना आवश्यक हो जाता है |)  

शनिवार 5 नवम्बर – कार्तिक शुक्ल द्वादशी / तुलसी विवाह / प्रदोष व्रत

रविवार 6 नवम्बर – कार्तिक शुक्ल त्रयोदशी / बैकुण्ठ चतुर्दशी / विश्वेश्वर व्रत / पंचक समाप्त अर्द्धरात्रि में 12:04 पर / इनके अतिरिक्त शुक्रवार 4 नवम्बर – कार्तिक शुक्ल एकादशी यानी देवोत्थान एकादशी से सोमवार 7 नवम्बर कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा यानी देव दीवाली तक भीष्म पंचक  

सोमवार 7 नवम्बर – कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी / देव दीवाली / मणिकर्णिका स्नान

मंगलवार 8 नवम्बर – कार्तिक पूर्णिमा / गंगा स्नान पूर्णिमा / पुष्कर स्नान / गुरु नानक जयन्ती / पूर्ण चन्द्र ग्रहण

अन्त में एक बार पुनः करक चतुर्थी, अहोई अष्टमी, पाँच पर्वों की श्रृंखला दीपावली, छठ पूजा, गुरु नानक जयन्ती तथा कार्तिक मास में आने वाले अन्य सभी पर्वों की अनेकशः हार्दिक शुभकामनाएँ…

शुक्र का कन्या राशि में गोचर

शुक्र का कन्या राशि में गोचर

शनिवार 24 सितम्बर, आश्विन कृष्ण चतुर्दशी को शकुनि करण और शुभ योग में रात्रि नौ बजकर तीन मिनट के लगभग समस्त सांसारिक सुख, समृद्धि, विवाह, परिवार सुख, कला, शिल्प, सौन्दर्य, बौद्धिकता, राजनीति तथा समाज में मान प्रतिष्ठा में वृद्धि आदि का कारक शुक्र शत्रु ग्रह सूर्य की सिंह राशि से निकल कर मित्र ग्रह बुध की कन्या राशि में प्रविष्ट हो जाएगा | इस प्रस्थान के समय शुक्र उत्तर फाल्गुनी नक्षत्र पर होगा | यहाँ विचरण करते हुए शुक्र दो अक्तूबर से हस्त नक्षत्र और तेरह अक्तूबर से चित्रा नक्षत्र पर भ्रमण करते हुए अन्त में 18 अक्तूबर को रात्रि 9:40 के लगभग अपनी स्वयं की राशि तुला में प्रवेश कर जाएगा | कन्या राशि में भ्रमण की इस सम्पूर्ण अवधि में शुक्र अस्त ही रहेगा | कन्या राशि शुक्र की वृषभ राशि से पञ्चम भाव तथा तुला राशि से बारहवाँ भाव बनता है, तथा कन्या राशि के लिए शुक्र द्वितीयेश और भाग्येश बन जाता है | शुक्र पर यहाँ रहते हुए गुरु की दृष्टि बनी रहेगी | उत्तर फाल्गुनी नक्षत्र का स्वामी सूर्य, हस्त का नक्षत्र का स्वामी चन्द्रमा तथा चित्रा नक्षत्र का स्वामी ग्रह मंगल है | आइये जानने का प्रयास करते हैं कि प्रत्येक राशि के लिए शुक्र के कन्या राशि में गोचर के सम्भावित परिणाम क्या रह सकते हैं…

मेष : शुक्र आपका द्वितीयेश और सप्तमेश होकर आपके छठे भाव में गोचर करने जा रहा है | एक ओर आपके उत्साह और मनोबल में वृद्धि के संकेत हैं तो वहीं दूसरी ओर आपके लिए यह गोचर चुनौतियों से भरा प्रतीत होता है | उन मित्रों को पहचानकर उनसे दूर होने की आवश्यकता है जो आपसे प्रेम दिखाते हैं लेकिन मन में ईर्ष्या का भाव रखते हैं | पार्टनरशिप में कोई व्यवसाय है तो उसमें व्यवधान उत्पन्न हो सकता है | प्रेम सम्बन्धों और वैवाहिक जीवन में आपकी वाणी के कारण किसी प्रकार की दरार के संकेत हैं | किन्तु यदि आप कलाकार अथवा वक्ता हैं तो आपके कार्य की दृष्टि से अनुकूल समय प्रतीत होता है | किसी कोर्ट केस का निर्णय आपके पक्ष में आ सकता है |

वृषभ : आपका राश्यधिपति तथा षष्ठेश होकर शुक्र आपके पंचम भाव में गोचर कर रहा है | सन्तान के साथ यदि कुछ समय से किसी प्रकार की अनबन चल रही है तो उसके दूर होने की सम्भावना इस अवधि में की जा सकती है | मान सम्मान में वृद्धि के संकेत हैं | नौकरी के लिए इन्टरव्यू दिया है तो उसमें भी सफलता की सम्भावना है | यदि किसी नौकरी में हैं तो उसमें पदोन्नति की सम्भावना भी की जा सकती है | कार्य स्थल में वातावरण आपके अनुकूल रह सकता है | सन्तान के लिए भी यह गोचर अनुकूल प्रतीत होता है | आपके व्यक्तित्व में सकारात्मक परिवर्तन होने की सम्भावना है |

मिथुन : आपका पंचमेश और द्वादशेश होकर शुक्र का गोचर आपकी राशि से चतुर्थ भाव में हो रहा है | उत्साह में वृद्धि का समय प्रतीत होता है | आप कोई नया वाहन अथवा घर खरीदने की योजना बना सकते हैं | किन्तु परिवार में किसी प्रकार के तनाव की भी समभावना है | स्वास्थ्य की दृष्टि से यह गोचर अनुकूल प्रतीत होता है | किन्तु महिलाओं के स्वास्थ्य का ध्यान रखने की आवश्यकता है | आपके तथा आपकी सन्तान की विदेश यात्राओं में भी वृद्धि हो सकती है |

कर्क : आपका चतुर्थेश और एकादशेश होकर शुक्र का गोचर आपकी राशि से तीसरे  भाव में हो रहा है | आपके मित्रों तथा सम्बन्धियों में वृद्धि के योग हैं | भाई बहनों तथा सहकर्मियों के साथ सम्बन्धों में माधुर्य बना रहने की सम्भावना है | आपकी किसी बहन का विवाह भी इस अवधि में सम्भव है | आर्थिक स्थिति में दृढ़ता के संकेत हैं | किसी महिला मित्र के माध्याम से धन प्राप्ति के भी योग बन रहे हैं | प्रॉपर्टी अथवा वाहनों की खरीद फरोख्त में लाभ की सम्भावना है |

सिंह : आपका तृतीयेश और दशमेश होकर शुक्र का गोचर आपकी राशि से दूसरे भाव में हो रहा है | आपकी वाणी तथा व्यक्तित्व में निखार आने के साथ ही आपको किसी प्रकार का पुरूस्कार आदि भी प्राप्त हो सकता है | यदि आप दस्कार हैं, कलाकार हैं अथवा सौन्दर्य प्रसाधनों से सम्बन्धित कोई कार्य आपका है, या मीडिया से किसी प्रकार सम्बद्ध हैं तो आपके कार्य की प्रशंसा के साथ ही आपको कुछ नए प्रोजेक्ट्स भी प्राप्त होने की सम्भावना है | इन प्रोजेक्ट्स के कारण आप बहुत दीर्घ समय तक व्यस्त रह सकते हैं तथा अर्थ लाभ कर सकते हैं |

कन्या : आपका द्वितीयेश और भाग्येश होकर शुक्र आपकी राशि में ही गोचर कर रहा है | आर्थिक रूप से स्थिति में दृढ़ता आने के साथ ही आपके लिए कार्य से सम्बन्धित लम्बी विदेश यात्राओं के योग भी प्रतीत होते हैं | आपको कुछ नवीन प्रोजेक्ट्स भी प्राप्त हो सकते हैं जिनके कारण आप बहुत समय तक व्यस्त रह सकते हैं | आपकी वाणी तथा व्यक्तित्व ऐसा है कि लोग स्वयं ही आपकी ओर आकर्षित हो जाते हैं | धार्मिक और आध्यात्मिक गतिविधियों में आपकी रूचि में वृद्धि हो सकती है | आपकी सन्तान के लिए भी यह गोचर अनुकूल प्रतीत होता है और सन्तान का सुख आपको प्राप्त रहेगा |

तुला : लग्नेश और अष्टमेश होकर शुक्र आपकी राशि से बारहवें भाव में गोचर कर रहा है | स्वास्थ्य की दृष्टि से यह गोचर अनुकूल नहीं प्रतीत होता | लम्बी विदेश यात्राओं के योग हैं, किन्तु इन यात्राओं के दौरान आपको अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखने की तथा दुर्घटना आदि के प्रति सावधान रहने की आवश्यकता है | साथ ही ऐसा कोई कार्य न करें जिसके कारण आपके मान सम्मान की हानि होने की सम्भावना है |

वृश्चिक : आपके लिए आपका सप्तमेश और द्वादशेश होकर शुक्र का गोचर आपके लाभ स्थान में हो रहा है | कार्य से सम्बन्धित यात्राओं में वृद्धि के साथ ही आर्थिक स्थिति में दृढ़ता के भी संकेत हैं | आप अपने जीवन साथी के साथ कहीं देशाटन के लिए भी जा सकते हैं | आपको अपने मित्रों तथा बड़े भाई का सहयोग प्राप्त होता रहेगा | सामाजिक गतिविधियों में वृद्धि के भी संकेत हैं | यदि किसी प्रेम सम्बन्ध में हैं तो वह विवाह में परिणत हो सकता है | दाम्पत्य जीवन में अन्तरंगता के संकेत हैं |

धनु : आपका षष्ठेश और एकादशेश आपकी राशि से दशम भाव में गोचर कर रहा है | उत्साह में वृद्धि के संकेत हैं | यदि आपका कोई कोर्ट केस चल रहा है तो उसके अनुकूल दिशा में प्रगति की सम्भावना है | यदि आप किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं तो उसमें भी आपको सफलता प्राप्त हो सकती है | किन्तु साथ ही विरोधियों की ओर से भी सावधान रहने की आवश्यकता है | किसी बात पर भाई बहनों अथवा बॉस के साथ कोई विवाद भी उत्पन्न हो सकता है | अपने आचरण से थोड़ा Diplomatic होने की आवश्यकता है | साथ ही स्वास्थ्य का भी ध्यान रखने की आवश्यकता है | पैसे के लेन देन के समय सावधान रहें |

मकर : आपका योगकारक आपकी राशि से नवम भाव में गोचर कर रहा है | आपके कार्य में हर प्रकार से लाभ के संकेत हैं | नौकरी में हैं तो पदोन्नति के साथ स्थानान्तरण के भी संकेत हैं | आपका अपना व्यवसाय है तो उसमें भी प्रगति की सम्भावना है | कलाकारों को किसी प्रकार का पुरूस्कार आदि भी प्राप्त हो सकता है | परिवार में धार्मिक अथवा माँगलिक कार्यों के आयोजनों की सम्भावना है | सामाजिक गतिविधियों में वृद्धि के साथ ही मान प्रतिष्ठा में वृद्धि के भी संकेत हैं | लम्बी दूरी की यात्राओं के भी योग हैं |

कुम्भ : आपका योगकारक शुक्र आपकी राशि से अष्टम भाव में गोचर कर रहा है | परिवार में अप्रत्याशित रूप से किसी विवाद के उत्पन्न होने की सम्भावना है | किन्तु साथ ही भौतिक सुख सुविधाओं में वृद्धि की भी सम्भावना है | आपको किसी वसीयत के माध्यम से प्रॉपर्टी अथवा वाहन का लाभ भी हो सकता है | यदि आप स्वयं कोई प्रॉपर्टी अथवा वाहन खरीदना चाहते हैं तो इस विचार को अभी कुछ समय के लिए स्थगित करना ही हित में होगा | परिवार में माँगलिक आयोजन जैसे किसी का विवाह आदि हो सकते हैं जिनके कारण परिवार में उत्सव का वातावरण बन सकता है | साथ ही धार्मिक और आध्यात्मिक गतिविधियों में आपकी रूचि बढ़ सकती है | मन की भावनाओं पर नियन्त्रण रखने की आवश्यकता है |

मीन : आपके लिए तृतीयेश और अष्टमेश होकर शुक्र का गोचर आपके सप्तम भाव में हो रहा है | छोटे भाई बहनों के कारण जीवन साथी के साथ किसी प्रकार का विवाद सम्भव है | आप स्वयं भी इस दौरान ऐसा कोई कार्य न करें जिसके कारण आपकी मान प्रतिष्ठा को किसी प्रकार की हानि होने की सम्भावना हो | कार्यक्षेत्र में आपको कठिन परिश्रम करना पड़ सकता है | अपने, भाई बहनों के तथा जीवन सतही के स्वास्थ्य का भी ध्यान रखने की आवश्यकता है |

किन्तु ध्यान रहे, ये समस्त फल सामान्य हैं | व्यक्ति विशेष की कुण्डली का व्यापक अध्ययन करके ही किसी निश्चित परिणाम पर पहुँचा जा सकता है | साथ ही, ग्रहों के गोचर अपने नियत समय पर होते ही रहते हैं – यह एक ऐसी खगोलीय घटना है जिसका प्रभाव मानव सहित समस्त प्रकृति पर पड़ता है अवश्य, किन्तु वास्तव में तो सबसे प्रमुख तो व्यक्ति का अपना कर्म होता है | तो, कर्मशील रहते हुए अपने लक्ष्य की ओर हम सभी अग्रसर रहें यही कामना है…

पितृ तर्पण और श्राद्ध

पितृ तर्पण और श्राद्ध

श्राद्ध पक्ष चल रहा है जो पितृ विसर्जिनी अमावस्या और महालया के साथ सम्पन्न हो जाएगा | हिन्दू समाज में अपने दिवंगत पूर्वजों के सम्मान में पूरे सोलह दिन श्रद्धा सुमन समर्पित किये जाएँगे – तर्पण दानादि किया जाएगा | और पितृ विसर्जिनी अमावस्या को…

ॐ यान्तु पितृगणाः सर्वे, यतः स्थानादुपागताः |

सर्वे ते हृष्टमनसः, सर्वान् कामान् ददन्तु मे ||

ये लोकाः दानशीलानां, ये लोकाः पुण्यकर्मणां |

सम्पूर्णान् सवर्भोगैस्तु, तान् व्रजध्वं सुपुष्कलान ||

इहास्माकं शिवं शान्तिः, आयुरारोगयसम्पदः |

वृद्धिः सन्तानवगर्स्य, जायतामुत्तरोत्तरा ||

मन्त्रों के साथ अगले वर्ष पुनः हमारा अतिथि स्वीकार करने की प्रार्थना के साथ ससम्मान उन्हें उनके शाश्वत धाम के लिए विदा किया जाएगा | श्राद्ध पर्व को उत्सव की भाँति सम्पन्न किया जाता है | “उत्सव” इसलिए क्योंकि ये सोलह दिन – भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन अमावस्या तक – हम सभी पूर्ण श्रद्धा के साथ अपने पूर्वजों का स्मरण करते हैं – उनकी पसन्द के भोजन बनाकर ब्रह्मभोज कराते हैं और स्वयं भी प्रसाद रूप में ग्रहण करते हैं – सुपात्रों को दान दक्षिणा से सम्मानित करते हैं – और अन्तिम दिन उन्हें पुनः आने का निमन्त्रण देकर सम्मान पूर्वक उनके शाश्वत धाम के लिए विदा करते हैं | इस दिन उन पूर्वजों के लिए भी तर्पण किया जाता है जिनके देहावसान की तिथि न ज्ञात हो अथवा भ्रमवश जिनका श्राद्ध करना भूल गए हों | साथ ही उन आत्माओं की शान्ति के लिए भी तर्पण किया जाता है जिनके साथ हमारा कभी कोई सम्बन्ध या कोई परिचय ही नहीं रहा – अर्थात् अपरिचित लोगों की भी आत्मा को शान्ति प्राप्त हो – ऐसी उदात्त विचारधारा हिन्दू और भारतीय संस्कृति की ही देन है |

गीता में कहा गया है “श्रद्धावांल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रिय:, ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति | अज्ञश्चाश्रद्दधानश्च संशयात्मा विनश्यति, नायंलोकोsस्ति न पारो न सुखं संशयात्मनः ||” (4/39,40) – अर्थात आरम्भ में तो दूसरों के अनुभव से श्रद्धा प्राप्त करके मनुष्य को ज्ञान प्राप्त होता है, परन्तु जब वह जितेन्द्रिय होकर उस ज्ञान को आचरण में लाने में तत्पर हो जाता है तो उसे श्रद्धाजन्य शान्ति से भी बढ़कर साक्षात्कारजन्य शान्ति का अनुभव होता है | किन्तु दूसरी ओर श्रद्धा रहित और संशय से युक्त पुरुष नाश को प्राप्त होता है | उसके लिये न इस लोक में सुख होता है और न परलोक में | इस प्रकार श्रद्धावान होना चारित्रिक उत्थान का, ज्ञान प्राप्ति का तथा एक सुदृढ़ नींव वाले पारिवारिक और सामाजिक ढाँचे का एक प्रमुख सोपान है | और जिस राष्ट्र के परिवार तथा समाज की नींव सुदृढ़ होगी उस राष्ट्र का कोई बाल भी बाँका नहीं कर सकता |

प्रायः सभी के मनों में यह उत्सुकता बनी रहती है कि श्राद्ध पर्व मनाने की प्रथा हिन्दू संस्कृति में कब से चली आ रही है | तो पितृ पक्ष तो आदिकाल से मान्य रहा है | वेदों के अनुसार पाँच प्रकार के यज्ञ माने गए हैं – ब्रह्म यज्ञ, देव यज्ञ, पितृ यज्ञ, वैश्वदेव यज्ञ तथा अतिथि यज्ञ | इनमें जो पितृ यज्ञ है उसी का विस्तार पुराणों में “श्राद्ध” के नाम से उपलब्ध होता है | वेदों में प्रायः श्रद्धा पूर्वक किये गए कर्म को श्राद्ध कहा गया है – साथ ही जिस कर्म से माता पिता तथा आचार्य गण तृप्त हों उस कार्य को तर्पण कहा गया है – अर्थात तृप्त करने की क्रिया | अर्थात जो स्वजन अपने शरीर को छोड़कर चले गए हैं चाहे वे किसी भी रूप में अथवा किसी भी लोक में हों, उनकी तृप्ति और उन्नति के लिए श्रद्धा के साथ जो शुभ संकल्प और तर्पण किया जाता है, वह श्राद्ध है | पौराणिक मान्यताओं के अनुसार आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक ब्रह्माण्ड की ऊर्जा तथा उस ऊर्जा के साथ पितृगण पृथिवी पर विचरण करते हैं अतः श्रद्धा पूर्वक उन्हें तृप्त करने के लिए श्राद्ध पर्व में तर्पण आदि का कार्य किया जाता है | श्राद्ध पक्ष के अन्तिम दिन आश्विन अमावस्या को अपना अपना भाग लेकर तृप्त हुए समस्त पितृ गण उसी ब्रह्माण्डीय ऊर्जा के साथ अपने लोकों को वापस लौट जाते हैं | अर्थात अपने पूर्वजों, माता पिता तथा आचार्य के प्रति सत्यनिष्ठ होकर श्रद्धापूर्वक किये गए कर्म से जब हमारे ये आदरणीय तृप्त हो जाते हैं उसे श्राद्ध-तर्पण कहा जाता है | और इसी पितृ यज्ञ से पितृ ऋण भी पूर्ण हो जाता है | अथर्ववेद में कथन है:

अभूद्दूत: प्रहितो जातवेदा: सायं न्यन्हे उपवन्द्यो नृभि:

प्रादा: पितृभ्य: स्वधया ते अक्षन्नद्धि त्वं देव प्रयता हवींषि (18/4/65)

हमारे ये पितृ गण प्रभु के दूत हैं जो हमें हितकर और प्रिय ज्ञान देते हैं | पितृगणों को भोजन कराने के बाद यज्ञ से शेष भोजन को ही हमें ग्रहण करना चाहिए |

इस प्रकार के बहुत से मन्त्र उपलब्ध होते हैं | इसके अतिरिक्त विभिन्न देवी देवताओं से सम्बन्धित वैदिक ऋचाओं में से अनेक ऐसी हैं जिन्हें पितरों तथा मृत्यु की प्रशस्ति में गाया गया है | पितृ गणों का आह्वान किया गया है कि वे धन, समृद्धि और बल प्रदान करें | साथ ही पितृ गणों की वर, अवर और मध्यम श्रेणियाँ भी बताई गई हैं | अग्नि से प्रार्थना की गई है कि वह मृतकों को पितृलोक तक पहुँचाने में सहायक हो तथा वंशजों के दान पितृगणों तक पहुँचाकर मृतात्मा को भीषण रूप में भटकने से रक्षा करें | पितरों से प्रार्थना की गई है कि वे अपने वंशजों के निकट आएँ, उनका आसन ग्रहण करें, पूजा स्वीकार करें और उनके क्षुद्र अपराधों को क्षमा करें | उनका आह्वान व्योम में नक्षत्रों के रचयिता के रूप में किया गया है | उनके आशीर्वाद में दिन को जाज्वल्यमान और रजनी को अंधकारमय बताया है | परलोक में दो ही मार्ग हैं : देवयान और पितृयान | पितृगणों से यह भी प्रार्थना की जाती है कि देवयान से मर्त्यो की सहायता के लिये अग्रसर हों | कहा गया है कि ज्ञानोपार्जन करने वाले व्यक्ति मरणोपरान्त देवयान द्वारा सर्वोच्च ब्राह्मण पद प्राप्त करते हैं | पूजापाठ एवं जनकार्य करने वाले दूसरी श्रेणी के व्यक्ति रजनी और आकाश मार्ग से होते हुए पुन: पृथ्वी पर लौट आते हैं और इसी नक्षत्र में जन्म लेते हैं | इस प्रकार वेदों में वर्णित कर्तव्य कर्मों में श्राद्ध संस्कारों के उल्लेख उपलब्ध होते हैं जिनका पालन भी गृहस्थ लोग करते हैं |

पुराण काल में देखें तो भगवान श्री राम के द्वारा श्री दशरथ और जटायु को गोदावरी नदी पर जलांजलि देने का उल्लेख मिलता है तथा भरत के द्वारा दशरथ के लिए दशगात्र – मरणोपरान्त दस दिनों तक किये जाने वाले कर्म – विधान का उल्लेख रामचरितमानस में उपलब्ध होता है:

एहि बिधि दाह क्रिया सब कीन्ही | बिधिवत न्हाइ तिलांजलि दीन्ही ||
सोधि सुमृति सब बेद पुराना | कीन्ह भरत दसगात बिधाना || (अयोध्याकाण्ड)

रामायण के बाद महाभारत के अनुशासन पर्व में भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को भिन्न भिन्न नक्षत्रों में किये जाने वाले काम्य श्राद्धों के विषय में बताया है (अनुशासन पर्व 89/1-15) | साथ ही श्राद्ध कर्म के अन्तर्गत दानादि के महत्त्व और दान के लिए सुपात्र व्यक्ति को भी परिभाषित किया है (अनुशासन पर्व अध्याय 145/50) | इसी में आगे वृत्तान्त आता है कि श्राद्ध का उपदेश महर्षि नेमि – जिन्हें श्री कृष्ण का चचेरा भाई बताया गया है और जो जैन धर्म के बाइसवें तीर्थंकर नेमिनाथ बने – ने अत्रि मुनि को दिया था और बाद में अन्य महर्षि भी श्राद्ध कर्म करने लगे |

इस समस्त श्राद्ध और तर्पण कर्म की वास्तविकता तो यही है कि माता पिता तथा अपने पूर्वजों की पूजा से बड़ी कोई पूजा नहीं होती | जीवन के संघर्षों में उलझ कर कहीं हम अपने पूर्वजों को विस्मृत न कर दें इसीलिए हमारे महान मनीषियों ने वर्ष के एक माह के पूरे सोलह दिन ही इस कार्य के लिए निश्चित कर दिए ताकि इस अवधि में केवल इसी कार्य को पूर्ण आस्था के साथ पूर्ण किया जा सके | “कन्यायां गत: सूर्य: इति कन्यागत: (कनागत) अर्थात आश्विन मास में जब कन्या राशि में सूर्य हो उस समय कृष्ण पक्ष पितृगणों के लिए समर्पित किया गया है |

भगवान श्री कृष्ण ने गीता में स्वयं को पितरों में श्रेष्ठ अर्यमा कहा है :

अनन्तश्चास्मि नागानां वरुणो यादसामहम् |
पितृ़णामर्यमा चास्मि यमः संयमतामहम् ||10/29

नागों के नाना भेदों में मैं अनन्त हूँ अर्थात् नागराज शेष हूँ, जल सम्बन्धी देवों में उनका राजा वरुण हूँ, पितरों में अर्यमा नामक पितृराज हूँ और शासन करने वालों में यमराज हूँ |

इस प्रकार पितृ तर्पण की प्रथा – पितृयज्ञ का इतिहास अत्यन्त प्राचीन है – हाँ उसकी प्रक्रिया में समय के परिवर्तन के साथ परिवर्तन और परिवर्धन अवश्य हुआ है | हम सभी पितृ विसर्जिनी अमावस्या को अपने सभी पितृ गणों को अगले वर्ष पुनः आगमन की प्रार्थना के साथ विदा करें…

शारदीय नवरात्र 2022 की तिथियाँ

शारदीय नवरात्र 2022 की तिथियाँ

(कैलेण्डर)

रविवार 25 सितम्बर को पितृविसर्जनी अमावस्या यानी महालया है और उसके दूसरे दिन यानी सोमवार 26 सितम्बर आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से शारदीय नवरात्र आरम्भ हो जाएँगे | महालया अर्थात पितृविसर्जनी अमावस्या को श्राद्ध पक्ष का समापन हो जाता है | महालया का अर्थ ही है महान आलय अर्थात महान आवास – अन्तिम आवास – शाश्वत आवास | श्राद्ध पक्ष के इन पन्द्रह दिनों में अपने पूर्वजों का आह्वान करते हैं कि हमारे असत् आवास अर्थात पञ्चभूतात्मिका पृथिवी पर आकर हमारा आतिथ्य स्वीकार करें, और महालया के दिन पुनः अपने अस्तित्व में विलीन हो अपने शाश्वत धाम को प्रस्थान करें | और उसी दिन से आरम्भ हो जाता है अज्ञान रूपी महिष का वध करने वाली महिषासुरमर्दिनी की उपासना का उत्साहमय पर्व शारदीय नवरात्र | इस समय माँ भगवती से भी प्रार्थना की जाती है कि वे अपने महान अर्थात शाश्वत आवास अर्थात आलय को कुछ समय के लिए छोड़कर पृथिवी पर आएँ और हमारा आतिथ्य स्वीकार करें तथा नवरात्रों के अन्तिम दिन हम उन्हें ससम्मान उनके शाश्वत आलय के लिए उन्हें विदा करेंगे अगले बरस पुनः हमारा आतिथ्य स्वीकार करने की प्रार्थना के साथ | यही कारण है कि नवरात्रों के लिए दुर्गा प्रतिमा बनाने वाले कारीगर महालया के दिन धूम धाम से उत्सव मनाकर भगवती के नेत्रों को आकार देते हैं | वर्तमान का तो नहीं मालूम, लेकिन हमारी पीढ़ी के लोगों को ज्ञात होगा कि महालया यानी पितृविसर्जनी अमावस्या के दिन प्रातः चार बजे से आकाशवाणी पर श्री वीरेन्द्र कृष्ण भद्र के गाए महिषासुरमर्दिनी का प्रसारण किया जाता था और सभी केन्द्र इसे रिले करते थे | हम सभी भोर में ही रेडियो ट्रांजिस्टर ऑन करके बैठ जाते थे और पूरे भक्ति भाव से उस पाठ को सुना करते थे |

वह देवी ही समस्त प्राणियों में चेतन आत्मा कहलाती है और वही सम्पूर्ण जगत को चैतन्य रूप से व्याप्त करके स्थित है | इस प्रकार अज्ञान का नाश होकर जीव का पुनर्जन्म – आत्मा का शुद्धीकरण होता है – ताकि आत्मा जब दूसरी देह में प्रविष्ट हो तो सत्वशीला हो…

“या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभिधीयते, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः |
चितिरूपेण या कृत्स्नमेतद्वाप्य स्थित जगत्, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ||” (श्री दुर्गा सप्तशती पञ्चम अध्याय)

अस्तु, सर्वप्रथम तो, माँ भगवती सभी का कल्याण करें और सभी की मनोकामनाएँ पूर्ण करें, इस आशय के साथ सभी को शारदीय नवरात्र की हार्दिक शुभकामनाएँ…

वास्तव में लौकिक दृष्टि से यदि देखा जाए तो हर माँ शक्तिस्वरूपा माँ भगवती का ही प्रतिनिधित्व करती है – जो अपनी सन्तान को जन्म देती है, उसका भली भाँति पालन पोषण करती है और किसी भी विपत्ति का सामना करके उसे परास्त करने के लिए सन्तान को भावनात्मक और शारीरिक बल प्रदान करती है, उसे शिक्षा दीक्षा प्रदान करके परिवार – समाज और देश की सेवा के योग्य बनाती है – और इस सबके साथ ही किसी भी विपत्ति से उसकी रक्षा भी करती है | इस प्रकार सृष्टि में जो भी जीवन है वह सब माँ भगवती की कृपा के बिना सम्भव ही नहीं | इस प्रकार भारत जैसे देश में जहाँ नारी को भोग्या नहीं वरन एक सम्माननीय व्यक्तित्व माना जाता है वहाँ नवरात्रों में भगवती की उपासना के रूप में उन्हीं आदर्शों को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया जाता है |

इसी क्रम में यदि आरोग्य की दृष्टि से देखें तो दोनों ही नवरात्र ऋतु परिवर्तन के समय आते हैं | चैत्र नवरात्र में सर्दी को विदा करके गर्मी का आगमन हो रहा होता है और शारदीय नवरात्रों में गर्मी को विदा करके सर्दी के स्वागत की तैयारी की जाती है | वातावरण के इस परिवर्तन का प्रभाव मानव शरीर और मन पर पड़ना स्वाभाविक ही है | अतः हमारे पूर्वजों ने व्रत उपवास आदि के द्वारा शरीर और मन को संयमित करने की सलाह दी ताकि हमारे शरीर आने वाले मौसम के अभ्यस्त हो जाएँ और ऋतु परिवर्तन से सम्बन्धित रोगों से उनका बचाव हो सके तथा हमारे मन सकारात्मक विचारों से प्रफुल्लित रह सकें |

आध्यात्मिक दृष्टि से नवरात्र के दौरान किये जाने वाले व्रत उपवास आदि प्रतीक है समस्त गुणों पर विजय प्राप्त करके मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर होने के | माना जाता है कि नवरात्रों के प्रथम तीन दिन मनुष्य अपने भीतर के तमस से मुक्ति पाने का प्रयास करता है, उसके बाद के तीन दिन मानव मात्र का प्रयास होता है अपने भीतर के रजस से मुक्ति प्राप्त करने का और अन्तिम तीन दिन पूर्ण रूप से सत्व के प्रति समर्पित होते हैं ताकि मन के पूर्ण रूप से शुद्ध हो जाने पर हम अपनी अन्तरात्मा से साक्षात्कार का प्रयास करें – क्योंकि वास्तविक मुक्ति तो वही है |

इस प्रक्रिया में प्रथम तीन दिन दुर्गा के रूप में माँ भगवती के शक्ति रूप को जागृत करने का प्रयास किया जाता है ताकि हमारे भीतर बहुत गहराई तक बैठे हुए तमस अथवा नकारात्मकता को नष्ट किया जा सके | उसके बाद के तीन दिनों में देवी की लक्ष्मी के रूप में उपासना की जाती है कि वे हमारे भीतर के भौतिक रजस को नष्ट करके जीवन के आदर्श रूपी धन को हमें प्रदान करें जिससे कि हम अपने मन को पवित्र करके उसका उदात्त विचारों एक साथ पोषण कर सकें | और जब हमारा मन पूर्ण रूप से तम और रज से मुक्त हो जाता है तो अन्तिम तीन दिन माता सरस्वती का आह्वाहन किया जाता है कि वे हमारे मनों को ज्ञान के उच्चतम प्रकाश से आलोकित करें ताकि हम अपने वास्तविक स्वरूप – अपनी अन्तरात्मा – से साक्षात्कार कर सकें |

नवरात्रि के महत्त्व के विषय में विवरण मार्कंडेय पुराण, वामन पुराण, वाराह पुराण, शिव पुराण, स्कन्द पुराण और देवी भागवत आदि पुराणों में उपलब्ध होता है | इन पुराणों में देवी दुर्गा के द्वारा महिषासुर के मर्दन का उल्लेख उपलब्ध होता है | महिषासुर मर्दन की इस कथा को “दुर्गा सप्तशती” के रूप में देवी माहात्म्य के नाम से जाना जाता है | नवरात्रि के दिनों में इसी माहात्म्य का पाठ किया जाता है और यह बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक माना जाता है | जिसमें 537 चरणों में 700 मन्त्रों के द्वारा देवी के माहात्म्य का जाप किया जाता है | इसमें देवी के तीन मुख्य रूपों – काली अर्थात बल, लक्ष्मी और सरस्वती की पूजा के द्वारा देवी के तीन चरित्रों – मधुकैटभ वध, महिषासुर वध तथा शुम्भ निशुम्भ वध का वर्णन किया जाता है | पितृ पक्ष की अमावस्या को महालया के दिन पितृ तर्पण के बाद से आरम्भ होकर नवमी तक चलने वाले इस महान अनुष्ठान का समापन दशमी को प्रतिमा विसर्जन के साथ होता है | इन नौ दिनों में दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है | ये नौ रूप सर्वज्ञ महात्मा वेद भगवान के द्वारा ही प्रतिपादित हुए हैं |

“प्रथमं शैलपुत्रीति द्वितीयं ब्रह्मचारिणी, तृतीयं चन्द्रघंटेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् |

पञ्चमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनी तथा सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ||

नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा प्रकीर्तिता:, उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना ||

प्रायः लोग देवी के वाहन के विषय में बात करते हैं, तो इसके विषय में देवी भागवत महापुराण में कहा गया है :

शशि सूर्य गजरुढा शनिभौमै तुरंगमे, गुरौशुक्रे च दोलायां बुधे नौकाप्रकीर्तिता

अर्थात नवरात्र का आरम्भ यदि सोमवार या रविवार से हो तो भगवती का वाहन हाथी होता है, शनिवार या मंगलवार को हो तो अश्व, शुक्रवार या गुरूवार को हो डोली तथा बुधवार को हो तो नौका भगवती का वाहन होता है | इस वर्ष क्योंकि सोमवार से नवरात्र आरम्भ हो रहे हैं अतः भगवती का वाहन हाथी है | साथ ही पाँच अक्टूबर बुधवार को नवरात्र सम्पन्न हो रहे हैं – बुधवार अथवा शुक्रवार को यदि नवरात्र सम्पन्न हों तो भगवती की विदा भी हाथी पर ही मानी जाती है | भगवती का वाहन यदि हाथी हो तो वह अत्यन्त शुभ माना जाता है और माना जाता है कि उस वर्ष वर्षा उत्तम होने के कारण फसल अच्छी होती है तथा देश में अन्न के भण्डार भरे रहते हैं और सम्पन्नता बनी रहती है |

इसके अतिरिक्त प्रथम नवरात्र को कुछ बहुत ही शुभ योग बन रहे हैं – जैसे : प्रातः 8:03 तक शुक्ल योग तथा उसके बाद ब्रह्म योग है / शनि गुरु बुध स्वराशिगत हैं / सूर्योदय काल में कन्या लग्न में शुक्र बुध सूर्य चन्द्र का योग बन रहा है / कन्या लग्न के दोनों योगकारक स्वराशिगत हैं… तो प्रस्तुत है इस वर्ष के नवरात्रों की तिथियों की तालिका

रविवार 25 सितम्बर – आश्विन अमावस्या / पितृविसर्जनी अमावस्या / महालया

सोमवार 26 सितम्बर – आश्विन शुक्ल प्रतिपदा तिथि सूर्योदय से पूर्व 3:25 से 27 सितम्बर को सूर्योदय से पूर्व 3:08 तक / सूर्योदय 6:11 पर अतः घट स्थापना 26 सितम्बर को कन्या लग्न में प्रातः 6:11 से लग्न की समाप्ति 7:51 तक अमृत काल में / अभिजित मुहूर्त प्रातः 11:48 से 12:36 तक / शारदीय नवरात्र आरम्भ / प्रथम नवरात्र / भगवती के शैलपुत्री रूप की उपासना /महाराजा अग्रसेन जयन्ती

मंगलवार 27 सितम्बर – आश्विन शुक्ल द्वितीया / द्वितीय नवरात्र / भगवती के ब्रह्मचारिणी रूप की उपासना

बुधवार 28 सितम्बर – आश्विन शुक्ल तृतीया / तृतीय नवरात्र / भगवती के चन्द्रघंटा रूप की उपासना

गुरूवार 29 सितम्बर – आश्विन शुक्ल चतुर्थी / चतुर्थ नवरात्र / भगवती के कूष्माण्डा रूप की उपासना

शुक्रवार 30 सितम्बर – आश्विन शुक्ल पञ्चमी / पञ्चम नवरात्र / भगवती के स्कन्दमाता रूप की उपासना

शनिवार 1 अक्टूबर – आश्विन शुक्ल षष्ठी / षष्टं नवरात्र / भगवती के कात्यायनी रूप की उपासना / सरस्वती आह्वाहन पूजा

रविवार 2 अक्तूबर – आश्विन शुक्ल सप्तमी / सप्तम नवरात्र / भगवती के कालरात्रि रूप की उपासना / सरस्वती पूजा

सोमवार 3 अक्तूबर – आश्विन शुक्ल अष्टमी / अष्टम नवरात्र / भगवती के महागौरी रूप की उपासना / सरस्वती बलिदान

मंगलवार 4 अक्तूबर – आश्विन शुक्ल नवमी / नवम नवरात्र / भगवती के सिद्धिदात्री रूप की उपासना / सरस्वती विसर्जन

बुधवार 5 अक्तूबर – आश्विन शुक्ल दशमी / विजया दशमी / प्रतिमा विसर्जन / अपराजिता देवी की उपासना / विद्यारम्भ / माधवाचार्य जयन्ती

तो आइये, माँ भगवती अपने सभी रूपों में समस्त जगत का कल्याण करें इसी कामना के साथ आह्वाहन-स्थापन करें भगवती का और व्यतीत करें कुछ समय उनके सान्निध्य में…