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नौतपा 2025

नौतपा 2025

मंगलवार 13 मई, ज्येष्ठ कृष्ण प्रतिपदा से ज्येष्ठ मासारम्भ हो चुका है जो 11 जून को ज्येष्ठ पूर्णिमा के साथ पूर्ण हो जाएगा | इस दिन भगवान भास्कर कृत्तिका नक्षत्र पर आरूढ़ होंगे | रविवार 25 मई को प्रातः 9:31 के लगभग ये रोहिणी नक्षत्र पर पहुँच जाएँगे और इसी के साथ ही नौ दिवसीय नौतपा भी आरम्भ हो जाएगा | यहाँ से रविवार 8 जून को प्रातः 7:18 पर मृगशिर नक्षत्र पर पहुँच जाएँगे | इस प्रकार 25 मई से 8 जून तक नौतपा तपेंगे | तो सबसे पहले तो जानने का प्रयास करते हैं कि नौतपा कहते किसे हैं और इनके क्या परिणाम होते हैं |

ज्येष्ठ मास में भगवान भास्कर अपने प्रचण्ड स्वरूप में आकाश के बिलकुल मध्य में ही आ जाते हैंबिलकुल सर के ऊपरऔर सूर्य की किरणें धरती पर लम्बवत पड़ने लगती हैं | इतनी भयंकर गर्मी पड़ती है कि प्रकृति बेहाल हो जाती है | लू के थपेड़े हर किसी के लिए समस्या उत्पन्न करते रहते हैं | कभी कभी तो पारा सम्भावना से भी अधिक ऊपर पहुँच जाता है | और इसी तपती गर्मी में आते हैं वे नौ दिन जब गर्मी अपने शिखर पर होती है | भगवान भास्कर जब रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करते हैं तब से लेकर नौ दिनों की अवधि नौतपा का नाम से जानी जाती है | इसे इस प्रकार भी समझ सकते हैं कि वृषभ में जब सूर्य भगवान दस अंशों से बीस अंशों के मध्य विचरण करते हैं तो यह अवधि नौतपा के नाम से जानी जाती है | 27 नक्षत्रों पर लगभग पन्द्रह पन्द्रह दिनों के लिए सूर्य विचरण करता है | इसी क्रम में जब ज्येष्ठ मास में सूर्य रोहिणी नक्षत्र पर आता है तो यह अवधि नौतपा की अवधि कहलाती है | नौतपा प्रायः 25 मई के आस पास ही आरम्भ होते हैं |

रोहिणी नक्षत्र में भगवान भास्कर के प्रवेश करते ही धरती का तापमान अत्यन्त तीव्रता से बढ़ना आरम्भ हो जाता है | माना जाता है कि यदि इन नौ दिनों में बारिश न हो और शीतल बयार प्रवाहित न हो तो आने वाले दिनों में अच्छी बारिश की सम्भावना रहती है | इसी को मौसम वैज्ञानिक Heat wave या लू वाले दिन भी कहते हैं | सामान्य भाषा में इस अवधि को नौतपा, नवतपा और रोहिणी के नाम से पुकारा जाता है | यद्यपि इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है, किन्तु फिर भी प्राचीन काल में जब मौसम विज्ञान नहीं विकसित हुआ था उस समय इसी प्रकार की ज्योतिषीय गतिविधियों के आधार पर कृषक गणकितनी वर्षा इस वर्ष होगीइसका अनुमान लगाया करते थे जो बिलकुल सटीक बैठता था | घाघ की कहावतें भी बहुत प्रसिद्ध हुआ करती थींतपै नवतपा नव दिन जोय, तौ पुन बरखा पूरन होय | आज भी वैज्ञानिक आधार न होते हुए भी मौसम वैज्ञानिक इस तथ्य को स्वीकार करते हैं कि इस अवधि में बारिश हो जाए तो मानसून में वर्षा कम देखने को मिलती है, और इस अवधि में अच्छा ताप तपे तो बारिश बहुत अच्छी होती है

ज्येष्ठमासे सीतपक्षे आर्द्रादि दशतारका: |

सजला निर्जला ज्ञेया निर्जला सजलास्तथा ||

ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष में आर्द्रा नक्षत्र से लेकर दश नक्षत्रोंआर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, मघा, पूर्वा फाल्गुनी, उत्तर फाल्गुनी, हस्त, चित्रा और स्वाति नक्षत्रोंमें यदि वर्षा हो जाए तो फिर वर्षा काल में इन दश नक्षत्रों में वर्षा नहीं होती | वहीं यदि दूसरी ओर इन नक्षत्रों में तीव्र गर्मी पड़े तो वर्षाकाल में अच्छी वर्षा की सम्भावना की जा सकती है |

खगोल शास्त्र के अनुसार वृषभ राशि के तारा मण्डल में कृत्तिका, रोहिणी और मृगशिरा नक्षत्र आते हैं – “वृषभो बहुलाशेषं रोहिण्योऽर्धम् मृगशिरसः” – जिनमें कृत्तिका पर सूर्य का, रोहिणी पर चन्द्र का, तथा मृगशिरा पर मंगल का स्वामित्व माना जाता है | इन तीनों नक्षत्रों पर सूर्य सबसे अधिक गर्मी प्रदान करता है | इनमें से भी शीतल प्रकृति रोहिणी क्रान्ति वृत्त सूर्य के सर्वाधिक निकट माना जाता है | निश्चित रूप से शीत प्रकृति रोहिणी पर जब सूर्य पूर्ण रूप से आ जाएगा तो शीत और उष्ण मिलकर आँधियों आदि में वृद्धि ही करेंगे |

इस वर्ष गुरुवार 25 मई को प्रात: 9:31 के लगभग सूर्यदेव रोहिणी नक्षत्र पर आरूढ़ होंगे जहाँ वे आठ जून को प्रातः 7:18 तक रहेंगे | अतः 25 मई से आठ जून तक गर्मी अधिक रहने की सम्भावना है | इस अवधि में तेज़ गर्म हवाएँ भी चल सकती हैं | नौतपाजैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट हैआरम्भ के नौ दिनों की अवधि को कहा जाता हैकिन्तु व्यवहार में यही देखा गया है कि जितने दिन सूर्य रोहिणी पर रहता है उतने दिन गर्मी बहुत भयानक पड़ती है | इसका एक कारण यह भी माना जाता है कि सूर्य और पृथिवी के मध्य की दूरी बहुत कम हो जाती है | इसी अवधि में अथवा इसके कुछ दिन इधर उधर ज्येष्ठ गंगा दशहरा और निर्जला एकादशी आ जाती है जो इस वर्ष क्रमशः 5 और 6 जून को है |

ज्योतिषीय आधार पर यदि प्रकृति के इस परिवर्तन की विवेचना करें तो सूर्य ताप का प्रतीक है और चन्द्रमा शीतलता का | रोहिणी नक्षत्र का अधिपति ग्रह भी चन्द्रमा ही है | सूर्य जब चन्द्रमा के नक्षत्र रोहिणी पर गोचर करता है तो इस नक्षत्र पर सूर्य के ताप का प्रभाव आ जाता है और धरती तक चन्द्रमा की शीतलता नहीं पहुँच पाती | ताप अधिक होने के कारण आँधी तूफ़ान जैसी घटनाएँ भी दृष्टिगत होने लगती हैं | जिसका सीधा प्रभाव समस्त चराचर पर पड़ता है | एक ओर समस्त वनस्पतियाँ सूखनी आरम्भ हो जाती हैं तो वहीं दूसरी ओर मानव शरीर में भी परिवर्तन आरम्भ हो जाते हैं और लू के प्रभाव के कारण बहुत सी शारीरिक समस्याओं का सामना करना पड़ जाता है | शरीर में पानी की कमी से बचने के लिए ही इस अवधि में प्रायः शीतल पेय पदार्थों तथा खीरा ककड़ी खरबूजा तरबूज आदि रसीले तथा शीतल फलों के सेवन की सलाह दी जाती है | साथ ही अधिक तला भुना मिर्च मसालों का भोजन जितना सम्भव हो न किया जाए | इसके अतिरिक्त शीतली प्राणायाम को गर्मी के ताप से बचने के लिए उपयोगी माना जाता है |

रोहिणी नक्षत्र पर सूर्य के भ्रमण करने के कारण भीषण गर्मी, धूल भरी आँधी, वर्षा आदि की सम्भावनाओं में वृद्धि हो जाती है इसलिए किसी भी प्रकार की सामाजिक गतिविधियों अथवा दूर की यात्राओं के लिए मना किया जाता था | किन्तु आजकल तो प्रत्येक क्षेत्र में इतने अधिक साधन हो गए हैं कि इन सभी बातों का कोई विशेष प्रभाव जन जीवन पर नहीं पड़ता |

अन्त में यही कहेंगे कि मौसम कैसा भी हो, जिसे मार्ग पर चलना है वह मौसम अथवा ऋतुओं से भयभीत होकर बैठ नहीं रह सकता | अतः, हम सभी नौतपा की भीषण गर्मी के ताप को तपस्वी के समान सहन करते हुए और गर्मी के दुष्प्रभाव से बचने के लिए शीतल पेय पदार्थों तथा रसीले फलों का सेवन करते हुए अपने अपने मार्ग पर अग्रसर रहें यही कामना है

—–कात्यायनी

 

गुरु मिथुन में

गुरु मिथुन में

शनि महाराज के राशि परिवर्तन के बाद अब गुरुदेव राशि परिवर्तन करने जा रहे हैं | बुधवार चौदह मई, वैशाख कृष्ण द्वितीया को रात्रि 10:37 के लगभग गर करण और शिव योग में देवगुरु बृहस्पति शत्रु ग्रह शुक्र की वृषभ राशि से निकलकर दूसरे शत्रु ग्रह बुध की मिथुन राशि में प्रस्थान कर जाएँगे | अपने इस गोचर में गुरुदेव दो बार राशि परिवर्तन करेंगे जिसके कारण गुरु अतिचारी हो जाएँगे | शनि के बाद गुरु ऐसा दूसरा ग्रह है जिसकी गति धीमी होती है और एक राशि से दूसरी राशि पर जाने में इसे लगभग बारह से तेरह महीनों का समय लग सकता है | इस समय गुरुदेव मृगशिर नक्षत्र पर आरूढ़ हैं | मिथुन राशि में भ्रमण करते हुए 18 अक्टूबर को रात्रि 8:35 के लगभग गुरु अतिचारी होकर अपनी उच्च राशि में कर्क में पहुँच जाएँगे | 11 नवम्बर को रात्रि 9:51 पर गुरु वक्री होना आरम्भ होंगे और इसी अवस्था में पाँच दिसम्बर को सायं 7:26 के लगभग वापस मिथुन राशि में पहुँच जाएँगे | जहाँ 11 मार्च को प्रातः 9:24 तक वक्री रहने के बाद मार्गी होना आरम्भ होंगे, और फिर दो जून 2026 को पुनर्वसु नक्षत्र पर रहते हुए ही अपनी उच्च की राशि कर्क में प्रस्थान कर जाएँगे | इस बीच नौ जून से नौ जुलाई तक गुरुदेव अस्त भी रहेंगे | इस अवधि में गुरु मृगशिर, आर्द्रा और पुनर्वसु नक्षत्रों पर रहेंगे | जिनमें मृगशिर नक्षत्र का स्वामी मंगल है जिसके साथ गुरुदेव की मित्रता है, आर्द्रा नक्षत्र का स्वामित्व राहु को प्राप्त है जिसके साथ सामान्य सम्बन्ध गुरुदेव के हैं, तथा पुनर्वसु नक्षत्र का अधिपति स्वयं गुरुदेव हैं | गुरु के मिथुन राशि में गोचर की अवधि में अतिचारी होने के कारण ऐसी मान्यता है कि प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि हो सकती है, राजनैतिक दलों तथा राष्ट्रों के मध्य संघर्ष में वृद्धि हो सकती हैवर्तमान में जिस प्रकार की स्थितियाँ हाल भी रही हैंऔर ऐसा बुधजिसका स्वभाव पारद के समान माना जाता हैकी प्रकृति के कारण सम्भव है, तथा रोगों का संक्रमण बढ़ सकता है | गुरु एक शुभ ग्रह है तथा इसे ज्ञान, विज्ञान, बुद्धि, धर्म और आध्यात्म, राजनीति, कूटनीति के साथसाथ भाग्य वृद्धि, विवाह तथा सन्तान और पिता के सुख के कारक हैं तथा मिथुन राशि बुध की राशि है जिसका सम्बन्ध Communication, singing, वाणी, बुद्धि इत्यादि से माना जाता है | भाचक्र की तीसरी राशि है | सामान्य रूप से जान साधारण के लिए यह समय नवीन विचारों के आदान प्रदान का, बौद्धिक तथा सामाजिक गतिविधियों में वृद्धि का रह सकता है |

राशियों की यदि बात करें तो, गुरु और बुध परस्पर एक दूसरे के लिए योगकारक भी हैं | गुरु की एक राशि धनु से मिथुन राशि सप्तम भाव तथा दूसरी राशि मीन से मिथुन चतुर्थ भाव है | इसी प्रकार मिथुन के लिए गुरु सप्तमेश और दशमेश है | अतः बुध और गुरु में भले ही शत्रुता हो लेकिन इनकी चारों राशियोंमिथुन, कन्या, धनु और मीन के लिए तो यह गोचर अत्यन्त शुभ रहने वाला प्रतीत होता है | मिथुन राशि से गुरु की पञ्चम दृष्टि तुला राशि पर, सप्तम दृष्टि स्वयं गुरु की राशि धनु पर तथा नवम दृष्टि कुम्भ राशि पर रहेगी | इस प्रकार इन राशियों के लिए भी अनुकूल फलों की ही सम्भावना की जा सकती है | इसके अतिरिक्त अतिचारी होने की स्थिति में गुरु जितने समय का कर्क राशि में रहेगा उतनी अवधि में वहाँ से भी उसके फल प्राप्त होंगेऔर ध्यान रहेकर्क राशि में गुरु उच्च का हो जाता है | उसके विषय में बाद में लिखेंगे | इन्हीं समस्त तथ्यों के आधार जानने का प्रयास करते हैं कि सभी बारह राशियों के जातकों के लिए गुरु के मिथुन में गोचर के क्या सम्भावित परिणाम रह सकते हैं | “सम्भावितइसलिए, क्योंकि ये सभी परिणाम चन्द्र राशि पर आधारित हैं, और चन्द्रमा एक राशि में लगभग सवा दो दिन रहता है और इस अवधि में अनगिनत बच्चों का जन्म हो जाता हैऔर सबही के लिए तो कोई ग्रह एक समान नहीं हुआ करता | साथ ही, सबसे प्रमुख तो व्यक्ति अपना कर्म होता है जो किसी भी ग्रह दशा को अपने अनुकूल बनाने की सामर्थ्य रखता है

प्रस्तुत है सभी बारह राशियों के जातकों के लिए गुरु के मिथुन राशि में गोचर के सम्भावित परिणाम

मेष : राशिचक्र की प्रथम राशि | आपके लिए गुरु नवमेश तथा द्वादशेश होकर आपकी राशि से तृतीय भाव में गोचर कर रहा हैजो मुख्य रूप से पराक्रम का तथा छोटे भाई बहनों का भाव है | यहाँ से इसकी दृष्टियाँ आपके सप्तम भाव, भाग्य स्थान तथा लाभ स्थानों पर रहेंगी | भाग्य में वृद्धि के योग बन रहे हैं | यात्राओं मेंविशेष रूप से धार्मिक यात्राओं में वृद्धि की सम्भावना की जा सकती है | किसी नौकरी में हैं तो वहाँ प्रमोशन की सम्भावना भी दिखाई देती है | अपना स्वयं का व्यवसाय है अथवा पार्टनरशिप में कोई कार्य है तो उसमें भी प्रगति और आर्थिक लाभ का समय प्रतीत होता है | अधिकारी वर्ग और सहकर्मियों का सहयोग आपको प्राप्त रहेगा |  यदि पार्टनरशिप में कोई नवीन कार्य भी आरम्भ करना चाहते हैं तो उसके लिए भी यह गोचर अनुकूल प्रतीत होता है | विशेष रूप से  हाथ के कारीगरों, कलाकारों, मीडिया आदि से सम्बन्ध रखने वाले जातकों तथा लेखन आदि से जुड़े जातकों के लिए तो यह गोचर निश्चित रूप से अत्यन्त अनुकूल प्रतीत होता है | आपके कार्य की प्रशंसा के साथ ही आपकी आर्थिक स्थिति भी सुदृढ़ होने की सम्भावना है | अपनी प्रतिभा के प्रदर्शन के लिए देश विदेश में यात्राओं में भी वृद्धि की सम्भावना है जहाँ आपके कार्य की प्रशंसा की जाएगी और आपको कुछ सम्मान आदि भी प्राप्त हो सकता है | अपना स्वयं का व्यवसाय है और उसमें यदि कुछ समय से समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था तो अब उन समस्याओं से मुक्ति का समय प्रतीत होता है | आपको अधिकारी वर्ग का, पिता का, भाई बहनों, जीवन साथी तथा मित्रों का समुचित सहयोग इस अवधि में उपलब्ध रहेगा | परिवार में आनन्द का वातावरण बना रहेगा जिसके कारण आप पूर्ण मनोयोग से अपने कार्य पूर्ण करने में सक्षम होंगे | कुछ नवीन प्रोजेक्ट्स भी आपको प्राप्त हो सकते हैं जिनके कारण आप दीर्घ समय तक व्यस्त रहते हुए अर्थ लाभ कर सकते हैं | मान सम्मान में तथा सामाजिक कार्यों में वृद्धि की सम्भावना है | यदि अविवाहित हैं तो इस वर्ष जीवन साथी की खोज भी पूर्ण हो सकती है | एक और महत्त्वपूर्ण तथ्य, आपकी साढ़ेसाती का प्रथम चरण आरम्भ हो चुका है, किन्तु गुरु के इस गोचर से साढ़ेसाती के यदि कोई दुष्परिणाम हैं भी तो उनमें भी कमी आने की सम्भावना है |

वृषभ : आपके लिए आपकी राशि से अष्टमेश तथा एकादशेश होकर गुरु का गोचर आपके द्वितीय भाव में होने जा रहा हैजो धन का भाव है, वाणी का भाव है, परिवार तथा संचित धन का भाव है | यहाँ से गुरु की दृष्टियाँ आपके छठे भाव, अष्टम भाव तथा दशम भाव पर रहेंगी | आपके लिए कार्य में उन्नति के संकेत हैं | नौकरी में पदोन्नति के साथ ही आय में वृद्धि की भी सम्भावना है | अपना स्वयं का व्यवसाय है तो उसमें भी प्रगति और अर्थ लाभ के संकेत हैं | कुछ नवीन प्रोजेक्ट्स का लाभ हो सकता है जिनके कारण आप वर्ष भर व्यस्त रहते हुए धनोपार्जन कर सकते हैं | पैतृक सम्पत्ति से भी लाभ की सम्भावना की जा सकती है | साथ ही अचानक ही किसी वसीयत अथवा किसी ऐसे स्थान से लाभ की सम्भावना की जा सकती है जहाँ के विषय में आपने कल्पना ही नहीं की होगी | कार्य स्थल पर सहकर्मियों तथा अधिकारी वर्ग के साथ आपके सम्बन्ध सौहार्दपूर्ण रहेंगे जिसके कारण आप अपना कार्य सुचारू रूप से करने में सक्षम होंगे | स्वास्थ्य की दृष्टि से चौदह जून से दस जुलाई के मध्य ख़ान पर नियन्त्रण रखने की आवश्यकता है | साथ ही इस अवधि में बॉस से किसी प्रकार का पंगा आपके हित में नहीं रहेगा | बहुत समय से यदि कुछ कार्य रुके हुए हैं अथवा उनमें किन्हीं कारणों से व्यवधान की स्थिति चल रही है तो वे कार्य भी पुनः आरम्भ होकर पूर्णता को प्राप्त हो सकते हैं | यदि कहीं से ऋण लिया हुआ है तो इस अवधि में उससे भी मुक्ति सम्भव है | किसी पुराने रोग से मुक्ति भी इस अवधि में सम्भव है | पैतृक सम्पत्ति का लाभ सम्भव है | कार्य के सिलसिले में दूर पास की यात्राओं के योग भी प्रतीत होते हैं | कलाकारों के लिए, अध्ययन अध्यापन के क्षेत्र से सम्बद्ध व्यक्तियों के लिए तथा राजनीति से सम्बन्ध रखने वाले जातकों के लिए यह गोचर बहुत अनुकूल प्रतीत होता है | माँ सम्मान में वृद्धि के साथ हाई आपको किसी पुरस्कार आदि से भी सम्मानित किया जा सकता है |

मिथुन : आपके लिए तो योगकारक होकर गुरुदेव का गोचर स्वयं आपकी राशि में ही हो रहा है और यहाँ से आपके पञ्चम भाव, सप्तम भाव तथा नवम भावों पर इसकी दृष्टियाँ रहेंगी | पञ्चम भाव से शिक्षा तथा सन्तान आदि का विचार किया जाता है, सप्तम भाव से दाम्पत्य जीवन तथा अन्य किसी भी प्रकार की पार्टनरशिप का और नवम भाव भाग्य तथा धर्म का स्थान होता है | आपके विचारों तथा आपके व्यक्तित्व में सकारात्मक परिवर्तनों की सम्भावना की जा सकती है | आपकी सन्तान की और से आपको कोई शुभ समाचार प्राप्त हो सकता है | छात्रों के लिए यह गोचर अनुकूल फल देने वाला प्रतीत होता है | यदि आप स्वयं भी उच्च शिक्षा की तैयारी कर रहे हैं तो आपके लिए भी अनुकूल फलों की सम्भावना की जा सकती है | भाग्य आपके अनुकूल रहेगा | रुके हुए कार्य भी इस अवधि में पूर्ण हो सकते हैं | नौकरी की तलाश में हैं तो आपके मन के अनुकूल जॉब मिलने की सम्भावना है | अपना स्वयं का व्यवसाय है तो उसमें भी प्रगति की सम्भावना है | आपकी सोच इस अवधि में सकारात्मक बनी रहेगी जिसका लाभ आपको पारिवारिक और व्यावसायिक दोनों क्षेत्रों में दिखाई देगा | परिवार में प्रसन्नता का वातावरण बना रहेगा | सुख और भोग विलास के साधनों में वृद्धि की भी सम्भावना है | आप किसी नौकरी में हैं तो आपकी पदोन्नति के साथ ही अर्थ लाभ और किसी पुरस्कार आदि की प्राप्ति की भी सम्भावना है | आपके साहस और निर्णायक क्षमता में वृद्धि के कारण आप केवल अपने कार्य समय पर पूर्ण करने में सक्षम होंगे, अपितु अपनें अधीनस्थ कर्मचारियों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बन सकते हैं दूर पास की यात्राओं के भी योग प्रतीत होते हैं जो आपके लिए कार्य की दृष्टि से लाभदायक रहेंगी | नौकरी में अच्छा इंक्रीमेंट और बोनस प्राप्त हो सकता है जिसके कारण आप अपने ऋणों का समय पर भुगतान करके उनसे मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं  | साथ ही आप अपनी फ़िज़ूलख़र्ची बन्द करके पैसा कहीं इन्वेस्ट भी कर सकते हैं ताकि भविष्य में उसका लाभ प्राप्त हो सके | दाम्पत्य जीवन में भी प्रगाढ़ता और आनन्द के संकेत प्रतीत होते हैं | धार्मिक और आध्यात्मिक गतिविधियों में वृद्धि के संकेत हैं | शारीरिक और मानसिक समस्याओं से मुक्ति के संकेत हैं | सन्तान के जन्म की भी सम्भावना है | यदि अविवाहित हैं तो इस अवधि में विवाह की भी सम्भावना है | धार्मिक गतिविधियों में वृद्धि हो सकती है |

कर्क : आपकी राशि से बारहवें भाव में गुरु का गोचर होने जा रहा है जहाँ से उसकी दृष्टियाँ आपके चतुर्थ भाव, छठे भाव तथा अष्टम भावों पर रहेंगी | गुरु आपके लिए षष्ठेश तथा नवमेश है तथा आपकी राशि के स्वामी ग्रह चन्द्र से उसकी मित्रता है | आपकी राशि में आकर गुरु उच्च का हो जाता है | द्वादश भाव व्यय, रोग तथा आध्यात्मिक गतिविधियों से सम्बन्ध रखता है | चतुर्थ भाव परिवार का, अचल सम्पत्ति का, वाहन का, भोग विलास की सुख सुविधाओं तथा माता का भाव कहा जाता है | परिवार में वातावरण कैसा रहेगा इसके लिए भी चतुर्थ भाव की ही देखा जाता है | आपकी राशि के लिए, क्योंकि गुरु उच्चगामीयानी अपनी उच्च राशि की ओर धीरे धीरे बढ़ रहे हैंहो रहे हैं और योगकारक हैं अतः अनुकूल फलों की ही सम्भावना की जा सकती है | धार्मिक गतिविधियों में वृद्धि की सम्भावना है | तीर्थस्थानों की यात्रा भी कर सकते हैं परिवार सहित | भौतिक सुख सुविधाओं पर पैसा अधिक खर्च कर सकते हैं | किसी वसीयत के माध्यम से सम्पत्ति का लाभ सम्भव है | आप स्वयं भी कोई नवीन सम्पत्ति ख़रीद सकते हैं | किन्तु यदि सम्पत्ति बेचना चाहते हैं तो अभी ऐसा ही करें | जो लोग प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं उनके लिए अनुकूल परिणामों की सम्भावना की जा सकती है | कंप्यूटर के क्षेत्र से जिनका सम्बन्ध है, जिन लोगों का सम्बन्ध अध्ययन अध्यापन के क्षेत्र से है उन लोगों के लिए भी गुरु का यह गोचर अनुकूल परिणाम दे सकता है | कार्य के सिलसिले में देश विदेश की यात्राओं में भी वृद्धि की सम्भावना है | परिवार में सुख शान्ति की सम्भावना है | पॉलिटिक्स से जुड़े लोगों के लिए भी किसी अतिरिक्त कार्यभार तथा मान सम्मान की सम्भावना की जा सकती है | स्वास्थ्य अथवा कोर्ट कचहरी के चक्कर में धन भी बहुत अधिक ख़र्च हो सकता है जिसके कारण आपका बजट गड़बड़ा सकता है अतः इस ओर से सावधान रहने की आवश्यकता है | आपको लीवर तथा पेट से सम्बन्धित कोई बीमारी गम्भीर रूप धारण कर सकती है अतः अपने खान पर नियन्त्रण रखने तथा समय पर डॉक्टर को दिखाने की आवश्यकता है | गर्भवती महिलाओं को भी विशेष रूप से सावधान रहने की आवश्यकता है | यदि कोई प्रेम प्रसंग चल रहा है तो उसे अभी विवाह की स्थिति तक ले जाना ही आपके हित में रहेगा |

सिंह : आपके लिए गुरुदेव पञ्चमेश तथा अष्टमेश होकर आपकी राशि से एकादश भाव में गोचर करने जा रहे हैं | एकादश भाव लाभ स्थान होता है, बड़े भाई बहनों के लिए भी इस भाव को देखा जाता है, उच्च अधिकारियों आदि के लिए भी एकादश भाव को ही देखा जाता है | यहाँ से गुरुदेव की दृष्टियाँ आपके तृतीय भाव यानी पराक्रम के भाव, पञ्चम यानी सन्तान और उच्च शिक्षा के भाव तथा सप्तम यानी किसी भी प्रकार की पार्टनरशिप के भावों पर रहेंगी | आपके लिए प्रत्येक कार में सफलता की सम्भावना की जा सकती है | जीवन में किसी क्षेत्र में यदि बहुत समय से कुछ बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है तो अब उन बाधाओं से मुक्ति का समय प्रतीत होता है | आपके उत्साह और पराक्रम में वृद्धि के साथ ही आपकी आय में भी वृद्धि की सम्भावना है | यदि किसी नौकरी में हैं तो अधिकारी वर्ग का सहयोग और कृपा आप पर रहेगी और आपकी पदोन्नति भी हो सकती है | आप अपने कार्य से सम्बन्धित एडवांस कोर्स कर सकते हैं | उच्च शिक्षा के लिए अनुकूल समय प्रतीत होता है | उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे छात्रों को अनुकूल परिणाम प्राप्त हो सकते हैं | सन्तान तथा भाई बहनों के साथ सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध बने रहेंगे | आपकी सन्तान की ओर से भी कोई शुभ समाचार प्राप्त हो सकता है | दाम्पत्य जीवन में माधुर्य के साथ ही यदि अभी तक अविवाहित हैं तो जीवन साथी की खोज भी इस अवधि में पूर्ण हो सकती है | पॉलिटिक्स से सम्बन्ध जातकों को अनुकूल फल प्राप्ति की सम्भावना है | एक महत्त्वपूर्ण बात, आपके लिए शनि की ढैया आरम्भ हो चुकी है, उस ढैया के दुष्परिणाम भी यदि कुछ होते हैं तो उनमें भी गुरुदेव के इस गोचर से कमी आने की सम्भावना है | आप इस अवधि में जो भी कार्य करेंगे सोच विचार कर ही करेंगे जिनका लाभ आपको प्राप्त होगा | अपना स्वयं का व्यवसाय है तो उसमें भी प्रगति और धनलाभ की सम्भावनाएँ हैं | पार्टनरशिप में जिन लोगों का व्यवसाय है उनके लिए विशेष रूप से यह गोचर भाग्यवर्धक प्रतीत होता है | कोई नवीन प्रोजेक्ट भी इस अवधि में आप आरम्भ कर सकते हैं | कार्य से सम्बन्धित यात्राओं में वृद्धि की सम्भावना है | आय के नवीन स्रोत आपके समक्ष उपस्थित हो सकते हैं | सन्तान के जन्म के कारण उत्सव का वातावरण बनेगा | आपको अपने जीवन साथी के माध्यम से भी अर्थ लाभ की सम्भावना है | आपकी सन्तान की ओर से कोई शुभ समाचार इस अवधि में आपको प्राप्त हो सकता है | आध्यात्मिक गतिविधियों में वृद्धि की सम्भावना है |

कन्या : आपके लिए गुरुदेव चतुर्थेश और सप्तमेश होकर आपके लिए योगकारक हो जाते हैं और आपकी राशि से दशम भाव यानी कर्म के भाव में योगकारक की ही राशि में प्रस्थान करने जा रहे हैं | यहाँ से उनकी दृष्टियाँ आपके द्वितीय भाव, चतुर्थ भाव तथा छठे भावों पर रहेंगी | छठा भाव रोग का भाव, कानूनी प्रक्रिया का भाव तथा शत्रु का भाव माना जाता है | साथ ही मेडिकल प्रोफेशन के लिए और वक़ालत के लिए भी दशम और छठे भाव के ग्रहों को मिलाकर देखा जाता है | यदि आप इन दोनों में से किसी व्यवसाय में हैं तो आपके लिए यह गोचर अनुकूल फल प्रदान कर सकता है | अन्य जातकों के लिए, यदि आपने समझदारी से काम नहीं लिया और अपने आँख कान खुले नहीं रखे तो तो सम्भव है कार्य स्थल पर कुछ छोटी मोटी समस्याओं का सामना करना पड़ जाएकिन्तु इस ओर से चिन्तित होने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि आप स्वयं अपने बुद्धि बल, अपनी वाणी तथा अपने प्रयासों से इन समस्याओं का निदान कर सकने में समर्थ होंगे | परिवार के सदस्यों के साथ सम्बन्ध सौहार्दपूर्ण बने रहने की सम्भावना है तथा उनका सहयोग भी आपको प्राप्त रहेगा | कार्य में प्रगति तथा आय में वृद्धि की सम्भावना की जा सकती है | सामाजिक गतिविधियों में वृद्धि के साथ ही माँ सम्मान में भी वृद्धि की सम्भावना है | यदि कोई कोर्ट केस चल रहा है तो उसका अनुकूल परिणाम सकता है | किसी लम्बी बीमारी से मुक्ति भी इस अवधि में सम्भव है | पोलिटिक्स से सम्बद्ध जातकों के लिए भी यह गोचर अनुकूल फल देने वाला प्रतीत होता है | आपको कुछ विशेष ज़िम्मेदारियाँ आपकी पार्टी की ओर से दी जा सकती हैं जिनके कारण आपकी व्यसत्ताएँ भी बढ़ सकती हैं | जिन लोगों का पैतृक व्यवसाय है अथवा जो लोग प्रॉपर्टी से सम्बद्ध व्यवसाय में हैं उनके लिए भी यह गोचर अनुकूल प्रतीत होता है | आप अपने निवास को Renovate भी करा सकते हैं | सुख सुविधाओं के साधनों में भी रुचि बढ़ सकती है | कोई नवीन प्रॉपर्टी भी आप इस अवधि में ख़रीद सकते हैं | आपकी वाणी प्रभावशाली रहेगी जिसका लाभ आपको अपने कार्य में निश्चित रूप से प्राप्त होगा | किन्तु इसके साथ ही स्वास्थ्य का भी ध्यान रखने की आवश्यकता है | विशेष रूप से पेट और लीवर से सम्बन्धित समस्याएँ गम्भीर रूप धारण कर सकती है, अतः अपने खान पान पर नियन्त्रण रखने की विशेष रूप से आवश्यकता है |

तुला : आपके लिए तृतीयेश और षष्ठेश होकर गुरु का गोचर आपके भाग्य स्थान में होने जा रहा है जहाँ से इसकी दृष्टियाँ आपकी राशि पर, तृतीय भाव पर तथा पञ्चम भाव पर रहेंगी | आपके लिए यह गोचर अनुकूल प्रतीत होता है | आपके उत्साह, निर्णायक क्षमता, उत्साह तथा पराक्रम में वृद्धि के कारण आप कुछ नवीन योजनाओं पर विचार कर सकते हैं | सम्बन्धित व्यक्तियों को यदि अपनी योजनाएँ बताएँगे तो उनका क्रियान्वयन भी सम्भव है | आपके व्यवहार में सकारात्मकता में वृद्धि के कारण आप बहुत सोच विचार कर ही कार्य करेंगे जिसका शुभ परिणाम भी आपको प्राप्त होगा | नौकरी में हैं तो पदोन्नति की सम्भावना है | आपके जीवन साथी के माध्यम से भी अर्थ लाभ की सम्भावना है | कार्य के सिलसिले में दूर पास की यात्राओं के योग भी प्रतीत होते हैं | नौकरी में हैं तो अधिकारी वर्ग का सहयोग आपको उपलब्ध रहेगा | अपने स्वयं का व्यवसाय है, अथवा पार्टनरशिप में कोई व्यवसाय कर रहे हैं तो उसमें भी उन्नति और अर्थ लाभ की सम्भावना है | परिवार में आनन्द का वातावरण बना रहेगा | समाज में मान सम्मान तथा प्रतिष्ठा में वृद्धि की सम्भावना है | आपकी सन्तान की ओर से कोई शुभ समाचार इस अवधि में प्राप्त हो सकता है | साय ही, यदि आप भी कोई एडवाँस कोर्स करना चाहते हैं तो उसके लिए भी यह गोचर अनुकूल प्रतीत होता है | किन्तु ध्यान रहे, आवश्यकता से अधिक उत्साह कभी कभी हानिकारक भी हो सकता है | आपके लिए एक ओर जहाँ आर्थिक स्थिति में सुधार और दृढ़ता की सम्भावना है वहीं प्रॉपर्टी से सम्बन्धित मामलों में भी लाभ की सम्भावना प्रतीत होती है | भौतिक सुख सुविधाओं में वृद्धि के साथ हाई आप कोई नवीन प्रॉपर्टी भी इस अवधि में ख़रीद सकते हैं | यदि कोई न्यायिक प्रक्रिया चल रही है तो उसमें आरम्भ में कुछ प्रतिकूलता आपको अनुभव हो सकती है, किन्तु बाद में सम्भव है निर्णय आपके पक्ष में जाए | इसके लिए आपको अपनी बुद्धि से काम लेना होगा | स्वास्थ्य की दृष्टि से समय अनुकूल प्रतीत होता है | फिर भी जितना सम्भव हो समय समय पर डॉक्टर से चैकअप अवश्य कराते रहें | छात्रों को अनुकूल परिणाम की सम्भावना की जा सकती है | धार्मिक तथा आध्यात्मिक गतिविधियों में वृद्धि हो सकती है | छोटे भाई बहनों के साथ यदि कुछ समय से मतभेद चल रहा है तो वह भी इस अवधि में दूर हो सकता है |

वृश्चिक : आपके लिए गुरु आपकी राशि से द्वितीयेश और पञ्चमेश है तथा आपके अष्टम भाव में गोचर कर रहा है | यहाँ से गुरुदेव की दृष्टि आपके बारहवें भाव, द्वितीय भाव तथा चतुर्थ भावों पर रहेंगी | यद्यपि गुरु अपने योगकारक की ही राशि में गोचर कार रहा है किन्तु हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि अष्टम भाव में शत्रु ग्रह की राशि है | एक तो अष्टम भाव दूसरे शत्रु ग्रह की राशि | अष्टम भाव से जीवन में आकस्मिक घटनाओं का विचार किया जाता है | आपके लिए इस गोचर को कुछ अधिक अनुकूल नहीं कहा जा सकता | अचानक ही कुछ समस्याओं का सामना आपको करना पड़ सकता है | अचानक ही ऐसी यात्राएँ करनी पड़ सकती हैं जिनके कारण धन की हानि होने के साथ ही कष्ट भी प्राप्त हो सकता है | यदि यात्रा करनी पड़ जाए तो अपने महत्त्वपूर्ण काग़ज़ों को सम्हाल कर रखने की आवश्यकता है | परिवारजनो के साथ सम्पत्ति को लेकर भी किसी प्रकार का वैमनस्य भी सम्भव है | इससे पूर्व कि विवाद कोर्ट तक पहुँचे, बात को सम्हालने का प्रयास आपके हित में होगा, अन्यथा धन और सम्मान दोनों की हानि सम्भव है | नौकरी और व्यवसाय में भी कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है | यदि कहीं पैसा इन्वेस्ट किया हुआ तो उसकी वापसी में सन्देह है | कार्य स्थल पर कुछ गुप्त शत्रु आपकी छवि धूमिल करने का प्रयास कर सकते हैं, अतः अपने आँख और कान खुले रखने की आवश्यकता है | यदि आपने अपनी वाणी पर नियंत्रण नहीं रखा तो आपको उसका परिणाम भुगतना पड़ सकता है | वास्तव में तो आपके लिए यह समय आत्म मन्थन का समय है, अतः हर ओर से ध्यान हटाकर बृहस्पति के मन्त्र का जाप करें तथा भविष्य के लिए योजनाएँ तैयार करें | विदेश यात्राओं पर धन ख़र्च हो सकता है | यद्यपि किसी वसीयत के माध्यम से अथवा किसी ऐसे स्रोत से धन सम्पत्ति का लाभ भी हो सकता है जहाँ के विषय में आपने कल्पना भी नहीं की होगी | किन्तु उसे स्वीकार करने से पूर्व भली भाँति सारे Documents का निरीक्षण अवश्य करा लें कि यह सम्पत्ति किसी विवाद में तो फँसी हुई नहीं है | एक बात अनुकूल प्रतीत होती है, यदि आपकी कहीं से पेमेण्ट रुकी हुई है अथवा किसी को लोन दिया हुआ है तो इस अवधि में उसकी रिकवरी हो सकती हैयदि आपने उचित प्रयास किया तो | स्वास्थ्य का भी विशेष रूप से ध्यान रखने की आवश्यकता है क्योंकि स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं पर धन अधिक व्यय हो सकता है | इसके लिए अपने ख़ान पान और जीवन शैली को सन्तुलित करने की आवश्यकता होगी |

धनु :  आपके लिए गुरुदेव लग्नेश और चतुर्थेश होकर स्वयं ही योगकारक हैं और एक दूसरे योगकारक की राशि में आपके सप्तम भाव में प्रस्थान करने जा रहे हैंजहाँ से इनकी दृष्टियाँ आपके लाभ स्थान, लग्न तथा तृतीय भावों पर रहेंगी | आपके लिए यह गोचर बहुत अधिक शुभ रहने वाला प्रतीत होता है | आपके पराक्रम में वृद्धि के साथ ही आपके लिए सम्भावनाओं के अनेक अवसर उपस्थित हो सकते हैंआवश्यकता है संकोच त्याग कर सोच समझकर उन पर ध्यान देने की | नौकरी में हैं तो अधिकारी वर्ग का सहयोग आपको उपलब्ध रहेगा तथा आपकी पदोन्नति के साथ ही आपकी आय में भी वृद्धि की सम्भावना की जा सकती है | अपना स्वयं का व्यवसाय है अथवा पार्टनरशिप में कोई व्यवसाय है तो उसमें प्रगति तथा अर्थ लाभ की सम्भावना है | पार्टनरशिप में यदि कोई नवीन व्यवसाय आरम्भ करने की योजना है तो उसके लिए भी यह समय अनुकूल प्रतीत होता है | आपके व्यवहार और व्यक्तित्व तथा वाणी एक ऐसा सकारात्मक परिवर्तन इस अवधि में परिलक्षित होगा कि बहुत सारे लोग आपका अनुसरण कर सकते हैं और इस सबका लाभ भी आपको प्राप्त होगा | किसी प्रकार पुरुस्कार और सम्मान आदि की सम्भावना इस अवधि में की जा सकती है | आपको अपने कार्य में मित्रों का तथा परिवारजनों का पूर्ण सहयोग प्राप्त रहेगा | बहन भाइयों के साथ सम्बन्धों में मधुरता में वृद्धि होगी | सामाजिक गतिविधियों में वृद्धि तथा मान सम्मान में वृद्धि के योग हैं | आपके जीवन साथी के लिए भी अर्थलाभ का समय है | यदि कहीं पैसा इन्वेस्ट किया हुआ तो उसकी वापसी भी इस अवधि में सम्भव है | अध्ययन अध्यापन से सम्बन्धित जिनका कार्य है उनके लिए भी समय अनुकूल प्रतीत होता है | आपका कोई शोध प्रबन्ध इस अवधि में पूर्ण होकर प्रकाशित हो सकता है और उसके कारण आपको कोई पुरस्कार भी प्राप्त हो सकता है | कार्य से सम्बन्धित यात्राएँ सुखकर तथा लाभदायक रहेंगी | सन्तान की ओर से कोई शुभ समाचार प्राप्त हो सकता है | छात्रों के लिए अनुकूल परिणाम की आशा की जा सकती है | राजनीति से जुड़े लोगों के लिए भी यह समय अत्यन्त अनुकूल प्रतीत होता है और उन्हें अपने दल में कोई महत्त्वपूर्ण पद प्राप्त हो सकता है | अविवाहित हैं तो जीवन साथी की खोज भी इस अवधि में पूर्ण हो सकती है | और एक महत्त्वपूर्ण बात, आपकी शनि की ढैया आरम्भ हो चुकी है, किन्तु गुरुदेव के इस गोचर से ढैया के दुष्परिणाम यदि कोई हैं तो उनमें भी कमी आने की सम्भावना है |

मकर : आपके लिए गुरु आपकी राशि से तृतीयेश और द्वितीयेश है तथा इस समय आपकी राशि से छठे भाव में गोचर करने जा रहा है | यहाँ से इसकी दृष्टियाँ आपके कर्म स्थान, बारहवें भाव तथा धन भाव पर रहेंगी | छठे भाव से क़ानूनी समस्याओं, स्वास्थ्य तथा प्रतियोगिता इत्यादि का विचार किया जाता है | आपके लिए यह गोचर मिश्रित फल देने वाला प्रतीत होता है | आपको अपने प्रयासों में सफलता तो प्राप्त होगी, किन्तु उसके लिए आपको अधिक प्रयास करने की आवश्यकता होगी | आपको अपने स्वयं के अथवा परिवार में किसी व्यक्ति के स्वास्थ्य से सम्बन्धित समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है तथा उनके कारण पैसा भी अधिक खर्च हो सकता है | आपको स्वयं को अथवा परिवार में किसी अन्य व्यक्ति को अस्पताल में भी भर्ती होना पड़ सकता है | साथ ही बीमारी के चलते आपके कार्य पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ेगा | यदि इन समस्याओं से बचना है तो अपने खान पान तथा अपनी जीवन शैली को नियन्त्रित करने की आवश्यकता होगी | कार्य स्थल अथवा व्यापार से सम्बन्धित कोई लीगल केस का सामना भी करना पड़ सकता है | जिन परिवारजनों के लिए आप पूर्ण रूप से समर्पित हैं उन्हीं के साथ मन मुटाव के चलते आपको मानसिक कष्ट का भी आपको अनुभव हो सकता है | यदि किसी नौकरी में हैं तो अपने अधिकारी वर्ग को प्रसन्न रखने के लिए भी आपको बहुत अधिक प्रयास करना पड़ सकता है | विवाहित हैं तो ससुराल पक्ष की ओर से भी किसी प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है | आय से अधिक ख़र्च होने के कारण आपका बजट भी गड़बड़ा सकता है | आपके लिए आवश्यक है कि कार्य से सम्बन्धित अपनी योजनाओं के विषय में अपने मित्रों से कुछ विचार विमर्श करें | अपने टैक्स आदि समय पर भरते रहें और किसी अच्छे वक़ील से परामर्श करें | यदि ऐसा कर लेंगे तो फिर आपके लिए यह गोचर अनुकूल भी हो सकता है | ज्योतिष का लाभ ही यह है कि आपको एक दिशा मिल जाए ताकि उस पर चलकर आप आगे बढ़ सकें | चिन्ता की आवश्यकता नहीं है | यदि आरम्भ का कुछ समय आपने अच्छे से निकाल लिया तो फिर धीरे धीरे परिस्थियाँ स्वयं ही अनुकूल होने लग जाएँगी तथा आपके स्वास्थ्य में भी सुधार होने लग जाएगा | यह गोचर विशेष रूप से स्वास्थ्य सेवाओं से सम्बद्ध जातकों के लिए तथा लीगल प्रोफेशन से जुड़े लोगों के लिए अनुकूल प्रतीत होता है | घर अथवा ऑफिस में कार्य रहे सहायकों पर दृष्टि रखने की आवश्यकता है | यों आपकी निर्णायक क्षमता और आपकी बुद्धि में वृद्धि होने की सम्भावना है जिसके कारण आप अपनी समस्याओं से स्वयं के प्रयासों से ही मुक्ति प्राप्त करने में सक्षम होंगे | साथ ही बृहस्पति के मन्त्र का जाप आपके लिए विपरीत प्रभाव को कम करेगा |

कुम्भ : आपके लिए गुरु का मिथुन में गोचर अत्यन्त अनुकूल प्रतीत होता है | गुरु आपके लिए द्वितीयेश और एकादशेश है तथा इस समय आपकी राशि से पञ्चम भाव में गोचर करने जा रहा है, यहाँ से गुरु की दृष्टियाँ आपके भाग्य स्थान, लाभ स्थान तथा स्वयं आपकी राशि पर रहेंगी जो बहुत ही शुभ संकेत हैं | यद्यपि आपके लिए साढ़ेसाती का यह तीसरा  और अन्तिम चरण है, किन्तु गुरु के इस गोचर से साढ़ेसाती के दुष्परिणाम यदि हैं भी तो उनमें भी कमी हो सकती है और गुरु का यह गोचर आपके लिए अत्यन्त भाग्यवर्धक सिद्ध हो सकता है | आप यदि किसी नौकरी में हैं तो पदोन्नति के साथ ही किसी अन्य स्थान पर ट्रांसफ़र की भी सम्भावना है | यह ट्रांसफर आपके हित में रहेगा | हाथ के कारीगरों के लिए विशेष रूप से यह गोचर अनुकूल प्रतीत होता है | आपकी कलाकृतियों की एग्जीविशन लग सकती हैं जिनमें आपके कार्य की प्रशंसा होगी | इन प्रदर्शनियों के लिए आपको दूर पास की यात्राओं के अवसर भी उपलब्ध हो सकते हैं | आपका अपना स्वयं का व्यवसाय है अथवा आप अपने पैतृक व्यवसाय में हैं या उनके साथ पार्टनरशिप में कोई कार्य कर रहे हैं तो आपके लिए व्यापार में उन्नति और अर्थलाभ की सम्भावना प्रबल है | पिता, बड़े भाई, मित्रों तथा अधिकारी वर्ग का सहयोग आपको उपलब्ध रहेगा | उच्च शिक्षा का प्रयास यदि आप कर रहे हैं तो उसमें भी सफलता के साथ ही तुरन्त ही कोई मनोनुकूल नौकरी भी आपको प्राप्त हो सकती है | आप मनोरंजन के लिए सपरिवार यात्राएँ भी कर सकते हैं | धार्मिक गतिविधियों में भी वृद्धि की सम्भावना है और आप तीर्थ यात्राओं के लिए भी जा सकते हैं | सन्तान की ओर से भी शुभ समाचार प्राप्त हो सकते हैं | परिवार में किसी बच्चे के जन्म के कारण आनन्द और उत्सव का वातावरण बनेगा | यदि जीवन साथी की तलाश है तो वह इस अवधि में पूर्ण हो सकती है | आपकी सन्तान उच्च शिक्षा के लिए कहीं विदेश जा सकती है | आपकी रुचि धार्मिक गतिविधियों में बढ़ सकती है | स्वास्थ्य की दृष्टि से भी यह गोचर अनुकूल प्रतीत होता है | परिवार में माँगलिक कार्यों का आयोजन हो सकता है | सामाजिक गतिविधियों के साथ ही पद प्रतिष्ठा और मान सम्मान में भी वृद्धि के संकेत हैं | यद्यपि जितने समय गुरुदेव अतिचारी रहेंगेयानी 18 अक्टूबर से पाँच दिसम्बर तक का समयआपके स्वास्थ्य की दृष्टि से कुछ अधिक अच्छा नहीं रहेगा | किन्तु इस अवधि में यदि आपने अपने अपने ख़ान पान और जीवन शैली को नियन्त्रित कर लिया, अपनी वाणी को नियन्त्रित कर लिया तो यह समय भी अनुकूल ही रहेगा |

मीन : आपकी राशि के लिए गुरुदेव लग्नेश और दशमेश होकर योगकारक हो जाते हैं और दूसरे योगकारक की राशि में  चतुर्थ भाव में भ्रमण करने जा रहे हैं, जहाँ से इनकी दृष्टियाँ आपकी राशि से अष्टम भाव, दशम भाव तथा बारहवें भावों पर रहेंगी | आपके लिए यह गोचर मिश्रित फल देने वाला प्रतीत होता है | चतुर्थ भाव से मुख्य रूप से मानसिक शक्ति, भौतिक सुख सुविधाओं, परिवार तथा माता का विचार किया जाता है | एक ओर जहाँ साढ़ेसाती का दूसरा चरण होने के कारण आप मानसिक अशान्ति का अनुभव कर सकते हैं, वहीं दूसरी ओर आपकी आर्थिक स्थिति में सुधार तथा दृढ़ता आने की भी सम्भावना है | इस अवधि में आपके खर्चों में वृद्धि हो सकती है |  विशेष रूप से पारिवारिक सुख सुविधाओं पर आप बहुत अधिक ख़र्च कर सकते हैं | परिवार में किसी का शादी ब्याह भी ख़र्चों का कारण हो सकता है | परिवार के साथ यात्राओं पर आप जा सकते हैं जिनके कारण भी ख़र्चों में वृद्धि हो सकती है | अतः आपको बजट बनाकर चलना होगा ताकि अनावश्यक ख़र्चों से बचा जा सके | कार्य में सफलता के लिए कुछ अधिक परिश्रम करना पड़ सकता है | किन्तु वहीं दूसरी ओर  कार्यक्षेत्र में अनुकूल परिणाम भी प्राप्त हो सकते हैं | आपको अपने अधिकारी वर्ग का सहयोग प्राप्त रहेगा जिसके कारण कार्य क्षेत्र में आपकी पदोन्नति भी हो सकती है | जो लोग अध्ययन अध्यापन के क्षेत्र में कार्यरत हैं, मैनेजमेंट जैसे किसी व्यवसाय में हैं अथवा कम्प्यूटर आदि से सम्बन्धित कोई कार्य है तो उनके लिए यह गोचर बहुत अनुकूल रह सकता है | कार्य स्थल पर चली रही समस्याओं से मुक्ति की आशा इस अवधि में की जा सकती है | आपकी अपने कार्य से सम्बन्धित कोई पुस्तक इस अवधि में प्रकाशित हो सकती है जिसके कारण आपको कोई पुरस्कार आदि भी प्राप्त हो सकता है | आपका स्वयं का व्यवसाय है तो आप उसका भी विस्तार इस अवधि में कर सकते हैं | यदि प्रॉपर्टी बेचना चाहते हैं तो अभी इस योजना को स्थगित करना होगा | कार्य के सिलसिले में देश विदेश की यात्राओं में वृद्धि होगी | इन यात्राओं इन आपके कार्य में तो सफलता प्राप्त होगी किन्तु स्वास्थ्य के प्रति सावधान रहना होगा | गुरुदेव के अतिचारी होने की स्थिति में आपको कुछ विशेष प्रकार से लाभ भी हो सकते हैं | आपकी पदोन्नति होकर आपका ट्रांसफर किसी अनुकूल स्थान पर हो सकता है | आपके व्यक्तित्व और व्यवहार में सकारात्मक परिवर्तन के कारण आपका व्यक्तित्व प्रभावशाली बना रहेगा जिसका लाभ आपको जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में प्राप्त होगा | साथ ही पॉलिटिक्स से सम्बन्ध रखने वाले जातकों के लिए भी यह गोचर अनुकूल प्रतीत होता है | किन्तु जैसा कि पूर्व में लिखा है, सम्भवतः कार्य की अधिकता के कारण अथवा सन्तुष्ट होने के अपने स्वभाव के कारण आपको मानसिक अशान्ति अथवा तनाव का अनुभव हो सकता है | इसके लिए यदि आप ध्यान और प्राणायाम के अभ्यास करते हैं तो ये आपके लिए उचित रहेंगे |

अन्त में पुनः यही कहेंगे, क्योंकि ये सभी परिणाम चन्द्र राशि पर आधारित हैं, और चन्द्रमा एक राशि में लगभग सवा दो दिन रहता है और इस अवधि में अनगिनत बच्चों का जन्म हो जाता हैऔर सबही के लिए तो कोई ग्रह एक समान नहीं हुआ करता | किसी भी ग्रह के गोचर का फलकथन करते समय ज्योतिष के अन्य सूत्रों पर भी ध्यान देना आवश्यक है  साथ ही, सबसे प्रमुख तो व्यक्ति अपना कर्म होता है जो किसी भी ग्रह दशा को अपने अनुकूल बनाने की सामर्थ्य रखता है

गुरु की दृष्टियाँ

गुरु की दृष्टियाँ

पिछले दिनों शनि के राशि परिवर्तन के सिलसिले में हमने देवगुरु बृहस्पति के विषय में बात की थी | आज गुरुदेव की तीन दृष्टियों के विषय में बात करते हैं | जैसा पहले भी बताया हैसभी ग्रहों की सप्तम दृष्टि होती हैयानी जिस भाव में उनकी स्थिति होती है उसके सामने वाले भाव यानी सप्तम भाव पर प्रत्येक ग्रह की दृष्टि होती हैइसे सम दृष्टि भी कहा जाता है | किन्तु गुरु, शनि और मंगल को तीन तीन दृष्टियाँ प्राप्त हैं और ये तीनों ग्रह जिस भाव में स्थित होते हैं उसके साथ साथ तीन अन्य भावों को भी प्रभावित करते हैं | शनि की दृष्टियों के विषय में हम पूर्व में लिख चुके हैं | आज गुरु की दृष्टियों के विषय में बात करते हैं | गुरु को तीन भावों पर दृष्टियाँ प्राप्त हैंजिस भाव में गुरु की स्थिति होती है उस भाव से पञ्चम भाव पर पञ्चम दृष्टि, सप्तम भाव पर सप्तम दृष्टि और नवम भाव  पर नवम दृष्टि |

गुरु की दृष्टियों के विषय में एक लोककथा भी प्रचलित है कि एक बार देवगुरु बृहस्पति ने देखा कि पृथिवी पर असंख्य लोग उचित दिशा निर्देश न मिलने के कारण दुःखी हैं | उन्होंने, सभी पृथिवीवासियों की मनोकामनाएँ पूर्ण हों और सुख शान्ति रहे इसके लिए भगवान विष्णु से निवेदन किया | तब भगवान विष्णु ने उनके दयापूर्ण हृदय को जानकर उन्हें दो अतिरिक्त दृष्टियाँ प्रदान कर दीं और उन्होंने अपने स्थान से पञ्चम, सप्तम तथा नवम भावों को देखना आरम्भ कर दिया और जिसका लाभ जान साधारण को होने लगा | बृहस्पति ने देखा कि बहुत सारे किसान उदास बैठे हैं |  उन्होंने उन्हें पञ्चम दृष्टि से देखा तो उन किसानों ने अपनी बुद्धि, विवेक और ज्ञान से खेती की नवीन तकनीक विकसित कीं और नवीन फ़सलें उगानी आरम्भ कर दीं | किसानों समृद्ध हो गए | इसी प्रकार की कथाएँ शेष दोनों दृष्टियों के विषय में भी हैं | ये एक जनश्रुति अथवा कोई उत्तर पौराणिक काल की कथा हो सकती है, किन्तु गुरुदेव की इन तीनों ही दृष्टियों में तथ्य निहित है | आज इसी पर बात करेंगे |

काल पुरुष की कुण्डली में पञ्चम भाव सन्तान सुख, शिक्षा, ज्ञान, साहस, रचनात्मकता, उच्च शिक्षा तथा इनसे प्राप्त होने वाले यश, पद, प्रसिद्धि के साथ ही प्रेम और रोमांस आदि की बुद्धि के लिए देखा जाता है | व्यक्ति के ज्ञान और समझ में जब वृद्धि होगी तभी वह उचित दिशा में प्रयास करेगा | पञ्चम भाव के ग्रह की दशा अन्तर्दशा में विवाह के योग भी बनते हैं क्योंकि जातक की बुद्धि और भावना उस ओर जाती है |

सप्तम भाव प्रतिनिधित्व करता है विवाह का, जीवन साथी के स्वभाव इत्यादि का, वैवाहिक जीवन किस प्रकार का रहेगाइस बात का, तथा किसी भी तरह की व्यावसायिक तथा सामाजिक पार्टनरशिप का | इसके अतिरिक्त राज्य सत्ता के सुख के लिए भी इस भाव को देखा जाता है |

नवम भाव भाग्य का और धर्म का भाव कहाँ जाता है | साथ ही व्यक्ति के पिता, उच्च शिक्षा, कार्य में सफलता, धार्मिक गतिविधियों, पौत्र, पूर्व जन्म के अर्जित कर्मों तथा पद प्रतिष्ठा और लम्बी यात्राओं के लिए भी नवम भाव को देखा जाता है |

अब, जिस जिस भाव पर भी गुरु की ये तीनों दृष्टियाँ पड़ेंगीनिश्चित रूप से उस भाव से सम्बन्धित शुभ फलों में वृद्धि ही होगी, क्योंकि गुरु की दृष्टियों को गंगाजल की भाँति  पवित्र माना जाता है | मान लीजिए गुरुदेव जातक की कुण्डली में लग्न में विराजमान हैं, तो वहाँ से उनकी पञ्चम दृष्टि पञ्चम भाव पर पड़ेगी | इस अवस्था में व्यक्ति के ज्ञान विज्ञान में वृद्धि होगी, जिसके परिणाम स्वरूप वह अपने क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने में सक्षम रहेगा | और जब अपने प्रोफेशन में उसे सफलता प्राप्त हो जाएगी तो वह शान्त चित्त हो घर गृहस्थी के विषय में भी सोचेगा और विवाह का प्रयास करेगा | ऐसा भी सम्भव है कि वह पार्टनरशिप में कोई कार्य आरम्भ कर दे और उस कारण से उसकी आर्थिक स्थिति दृढ़ हो जाए | इन दोनों ही बातों में गुरु की सप्तम भाव पर सप्तम दृष्टि से बल मिलेगा | इसके बाद वह सन्तान के लिए प्रयास करेगायहाँ पुनः पञ्चम दृष्टि काम आएगी | विवाह हो गया, कार्य में सफलता भी प्राप्त हो गई, अच्छी सन्तान भी प्राप्त हो गईतो अब वह अध्यात्म के मार्ग पर प्रवृत्त होने का प्रयास करेगा और धर्म कर्म में उसकी रुचि में वृद्धि होगीयहाँ नवम भाव पर नवम दृष्टि की भूमिका आती है | इसी प्रकार से समस्त भावों के लिए समझना चाहिए |

एक और उदाहरण प्रस्तुत करते हैं | मान लीजिए गुरुदेव जातक की कुण्डली में तृतीय भाव में विराजमान हैं | तृतीय भाव पराक्रम का भाव है, भाई बहनों का भाव, हाथ की कारीगरी का भाव है | तो यहाँ बैठकर गुरुदेव जातक के पराक्रम में वृद्धि कर रहे हैं | यहाँ से उनकी पञ्चम दृष्टि जाती है सप्तम भाव पर, सप्तम दृष्टि नवम भाव पर तथा नवम दृष्टि लाभ स्थान पर | तो सप्तम भाव के जो भी फल हैं उनमें वृद्धि होगी और जातक पूर्ण निष्ठा के साथ अपना कार्य करते हुए सफलता प्राप्त करके आगे बढ़ेगा | नवम भाव के फल यानी धर्म कार्यों में उसकी रुचि बढ़ेगी तथा उसे पिता का सहयोग और आशीर्वाद भी प्राप्त होगा | अपने पराक्रम तथा धार्मिक स्वभाव और व्यवहार कुशलता के कारण तथा उसकी सहायक प्रवृत्ति के कारण उसे अपने छोटे बड़े भाई बहनों और अधिकारी वर्ग का सहयोग प्राप्त होगा और उसे अपने व्यवसाय में लाभ प्राप्त होगा अथवा उसकी पदोन्नति होगीयदि वह किसी नौकरी में है तोक्योंकि लाभ स्थान बड़े भाई बहनों, अधिकारी वर्ग, तथा कार्य में आर्थिक लाभ आदि के लिए देखा जाता है |

इसी प्रकार समस्त भावों के लिए समझना चाहिए | यहाँ एक बात और स्पष्ट करना चाहेंगे कि यद्यपि गुरु की दृष्टियाँ सदैव शुभ ही होती हैं, किन्तु गुरु यदि अपनी नीच की राशि मकर में विद्यमान है तो उसके शुभ फल नहीं प्राप्त होंगे | इसके अतिरिक्त, यदि राहु केतु के मध्य है तो व गुरु चाण्डाल योग बनाता है, अस्त है अथवा बहुत कम अंशों यानी शैशवावस्था में है अथवा वृद्ध है अर्थात् बहुत अधिक अंशों में है तो इन सभी परिस्थितियों में उसके पूर्ण फल या तो प्राप्त नहीं होंगे अथवा बहुत प्रयासों के बाद, बहुत सारी बाधाओं को पार करके शुभ फल प्राप्त होंगे | क्योंकि राहुकेतु उसे पूर्ण रूप से कार्य नहीं करने देंगे, बच्चा अथवा वृद्ध तो वैसे ही उतने अधिक शक्तिशाली नहीं होते, और अस्त होने पर तो उसमें सामर्थ्य ही नहीं रहेगी | यही कारण है कि जब गुरु अस्त होता है तो विवाह आदि माँगलिक कार्य नहीं किए जाते |

किन्तु अन्त में वही बात पुनः दोहराएँगे कि ग्रहों के प्रभाव जान जीवन पर पड़ते हैं, किन्तु केवल उन्हीं के भरोसे नहीं बैठ रहना चाहिए | जब तक प्रयास नहीं करेंगे तब तक कैसे शुभ परिणाम प्राप्त होंगे | सबसे प्रमुख तो व्यक्ति के अपने कर्म होते हैंअन्यथा तो सामने चाय का कप रखा रहता हैलेकिन जब तक आप हाथ बढ़ाकर उसे उठाकर अपने होठों तक नहीं ले जाएँगे तब तक चाय का आनन्द नहीं ले सकेंगे | अतः भाग्यवादी न बनकर कर्मशील बनें यही कामना है

गुरु मेरी दृष्टि में

गुरु मेरी दृष्टि में

अभी कुछ दिनों में देवगुरु बृहस्पति राशि परिवर्तन करने जा रहे हैं | उनके राशि परिवर्तन पर बात करें, उससे पूर्व गुरु के विषय में संक्षेप में कुछ बात हो जाए | नवग्रहों की बात करते समय देवगुरु बृहस्पति की चर्चा की जाए तो हिन्दू धर्म के नवग्रहों में देवगुरु बृहस्पति की उपासना ज्ञान, विज्ञान, बुद्धि, धर्म और आध्यात्म के साथसाथ भाग्य वृद्धि, विवाह तथा सन्तान सुख की प्राप्ति के लिए की जाती है | जातक की कुण्डली में गुरु पिता का कारक भी होता है और कन्या की कुण्डली में पति के लिए भी गुरु को देखा जाता है | गुरु या शुक्र में से कोई एक अथवा दोनों ही यदि अस्त हों तो उस स्थिति में प्रायः विवाह की अनुमति Vedic Astrologer नहीं देते | साथ ही माना जाता है कि यदि किसी व्यक्ति का गुरु बली हो तो वह व्यक्ति विद्वान् होता है तथा उसे अपने ज्ञान के ही कारण यश और धन की प्राप्ति होती है | प्रायः देखा जाता है कि यदि किसी के घर में बहुत अधिक धर्म ग्रन्थ रखे हों तो देखते के साथ ही लोग बोल देते हैं कि इस व्यक्ति का बृहस्पति प्रबल होगा | जैसा कि ऊपर ही लिखा है, इन्हें देवगुरु की उपाधि से विभूषित किया गया है अतः इन्हेंगुरुभी सम्बोधित किया जाता है | ये शील और धर्म के अवतार माने जाते हैं | नवग्रहों के समूह का नायक माने जाने के कारण इन्हें गणपति भी कहा जाता है | ज्ञान और वाणी के देवता गुरु नेबार्हस्पत्य सूत्रकी रचना भी की थी | इनका वर्ण पीला है तथा इनके हाथों में दण्ड, कमण्डल और जपमाला शोभायमान रहते हैं | इसी से इनके महत्त्व का ज्ञान हो जाता है | पीला रंग प्रतीक है आनन्द का, उत्साह का, सकारात्मकता और जीवनी शक्ति का | इसी प्रकार कमण्डलजिसका उपयोग तपस्वी, सन्यासी और योगीजन अपने लिए जल और भोज्य पदार्थ आदि ग्रहण करने के लिए भिक्षा पात्र के रूप में करते हैंप्रतिनिधित्व करता है एक सरल और आत्म निर्भर जीवन का | और जपमाला आध्यात्मिक अभ्यास, ध्यान तथा प्रार्थना की प्रतीक होती है | किसी भी क्षेत्र में सफलता के लिए उससे सम्बन्धित विषय पर यदि ध्यान लगाकर उसका अध्ययन किया जाए तो सफलता निश्चित हो जाती है | इसी से देवगुरु के व्यक्तित्व का ज्ञान हो जाता है | गुरु जिसकी कुण्डली में प्रबल होगा अथवा उत्तम स्थिति में होगा वह निश्चित रूप से एक सफल व्यक्ति होगा | साथ ही, गुरुदेव का क्रोध भी बड़ा प्रबल होता है | यदि कहीं अनुचित आचरण देख लें तो फिर उनके क्रोध से बचना कठिन हो जाता है | ऐसा ही स्वभाव जातक का भी गुरु की प्रबलता के कारण हो सकता हैअनुचित अथवा अन्याय इन्हें पसन्द नहीं होता |

दैत्यगुरु शुक्राचार्य के ये कट्टर विरोधी हैं | इस विषय में भी एक पौराणिक कथा उपलब्ध होती है कि अंगिरस मुनि से भार्गव शुक्र और बृहस्पति दोनों एक साथ शिक्षा ग्रहण करते थे | अंगिरस अपने पुत्र बृहस्पति पर अधिक ध्यान देते थे और शुक्र के साथ भेद भाव करते थे | इस बात से खिन्न होकर शुक्र ने अंगिरस से शिक्षा लेनी बन्द कर दी | माना जाता है कि  तभी से शुक्र और बृहस्पति में शत्रुता का भाव हो गया और शुक्र ने दैत्यों का साथ देना आरम्भ कर दिया | ऋग्वेद के अनुसार बृहस्पति को अंगिरस मुनि और उनकी पत्नी स्मृति का पुत्र माना गया है | माना जाता है कि इन्होने प्रभास तीर्थ के निकट भगवान् शिव की तपस्या करके उन्हें प्रसन्न किया और देवगुरु की पदवी तथा नवग्रह मण्डल में स्थान प्राप्त किया |

धनु और मीन दो राशियों तथा पुनर्वसु, विशाखा और पूर्वा भाद्रपद नक्षत्रों का स्वामित्व गुरु के पास है | कर्क इनकी उच्च राशि तथा मकर नीच राशि है | सूर्य, चन्द्रमा और मंगल के साथ इनकी मित्रता है, बुध तथा शुक्र शत्रु ग्रह हैं और शनि के साथ ये तटस्थ भाव में रहते हैं | इनका तत्व आकाश है तथा ये पूर्व और उत्तर दिशा तथा शीत ऋतु के स्वामी माने जाते हैं | क्योंकि इनका तत्व आकाश है अतः जिस व्यक्ति की कुण्डली में गुरु अच्छी स्थिति में होगा उस व्यक्ति के जीवन में निरन्तर प्रगति और विस्तार की सम्भावना रहती है | इन जातकों का व्यवसाय मुख्य रूप से अध्ययनअध्यापन, लेखन, खगोल तथा ज्योतिष विद्या से सम्बन्धित ज्ञान, गणित तथा बैंक आदि से सम्बन्धित कार्य, वक़ालत अथवा फाइनेंस कम्पनी से सम्बन्धित कार्य माना जाता है | आधुनिक समय में कंप्यूटर तथा इण्टरनेट जैसे टैक्निकल ज्ञान भी इनके क्षेत्र में आते हैं | पवित्र अथवा धार्मिक स्थल, बुद्धि और ज्ञान, वेद वेदान्त और तर्क शास्त्र का ज्ञान, बड़े भाई तथा पुत्र पौत्र आदि का प्रतिनिधित्व गुरु के पास है | साथ ही जिनका गुरु प्रभावशाली होता है वे लोग कुछ भारी शरीर के होते हैं | यदि किसी व्यक्ति की कुण्डली में गुरु अच्छी स्थिति में नहीं अथवा पीड़ित है तो उसे मधुमेह तथा पेट से सम्बन्धित रोगों की सम्भावना रहती है | सोलह वर्ष की गुरुदेव की दशा होती है तथा ये एक राशि में बारह से तेरह महीने तक भ्रमण करते हैं, किन्तु कभी कभी वक्री, मार्गी अथवा अतिचारी होने की स्थिति में एक राशि में एक या दो माह अधिक भी रुक जाते हैं |

गुरु को बली बनाने अथवा उन्हें प्रसन्न करने के लिए Vedic Astrologer बहुत से मन्त्रों का जाप का सुझाव देते हैं | उन्हीं में से प्रस्तुत हैं कुछ मन्त्रआप अपनी सुविधानुसार किसी भी एक मन्त्र का जाप कर सकते हैं

वैदिक मन्त्र : ॐ बृहस्पते अति यदर्यो अर्हाद् द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु

यद्दीदयच्छवस ऋतुप्रजात तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम्

पौराणिक मन्त्र :

ॐदेवानांचऋषीणांगुरुंकांचनसन्निभम्

बुद्धिभूतंत्रिलोकेशंतंनमामिबृहस्पतिम्

तन्त्रोक्त मन्त्र : ॐ ऎं क्रीं बृहस्पतये नम: अथवा ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरुवे नम: अथवा ॐ श्रीं श्रीं गुरवे नम:

बीज मन्त्र : ॐ बृं बृहस्पतये नम:

गायत्री मन्त्र : ॐअंगिरोजातायविद्महेवाचस्पतेधीमहितन्नोगुरुप्रचोदयात्

अथवा ॐ आंगिरसाय विद्महे दिव्यदेहाय धीमहि तन्नो जीव:प्रचोदयात्

देवगुरु बृहस्पति सभी के ज्ञान का विस्तार करें

अक्षय पर्व और भगवान परशुराम

अक्षय पर्व और भगवान परशुराम

ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्मीनारायणाभ्यां नमः

ॐ जमदग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि तन्नो परशुराम: प्रचोदयात

कल यानी बुधवार 30 मई को वैशाख शुक्ल तृतीय अर्थात अक्षय तृतीया का अक्षय पर्व है, जिसे भगवान् विष्णु के छठे अवतार परशुराम के जन्मदिवस के रूप में भी मनाया जाता है – यद्यपि इस वर्ष आज मनाई जा रही है परशुराम जयन्ती | इस विषय पर आगे बात करेंगे |

आज कन्या लग्न में सायं 5:32 पर तृतीया तिथि का उदय होगा, जो कल यानी 30 मई को दोपहर 2:12 तक रहेगी | तिथ्योदय के समय सूर्य अपनी उच्च राशि में हैं और गुरु तथा शुक्र का राशि परिवर्तन एक बहुत शुभ योग बना रहा है | उधर कन्या लग्न से नवम भाव में उच्च के चन्द्रमा के साथ गुरुदेव गजकेसरी योग बना रहे हैं । यानी अक्षय तृतीया तो होती ही अबूझ है, लेकिन उसके साथ ही आरम्भ से ही अत्यन्त भाग्यवर्द्धक योग बना रही है | अस्तु, सभी के लिए सौभाग्य कामना से सर्वप्रथम सभी को अक्षय तृतीया और परशुराम जयंती की हार्दिक शुभकामनाएँ…

यों तो हर माह की दोनों ही पक्षों की तृतीया जया तिथि होने के कारण शुभ मानी जाती है, किन्तु वैशाख शुक्ल तृतीया स्वयंसिद्ध तिथि मानी जाती है | पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार इस दिन जो भी शुभ कार्य किये जाते हैं उनका अक्षत अर्थात कभी न समाप्त होने वाला शुभ फल प्राप्त होता है | भविष्य पुराण तथा अन्य पुराणों की मान्यता है कि भारतीय काल गणना के सिद्धान्त से अक्षय तृतीया के दिन ही सतयुग और त्रेतायुग का आरम्भ हुआ था जिसके कारण इस तिथि को युगादि तिथि – युग के आरम्भ की तिथि – माना जाता है |

साथ ही पद्मपुराण के अनुसार यह तिथि मध्याह्न के आरम्भ से लेकर प्रदोष काल तक अत्यन्त शुभ मानी जाती है | इसका कारण भी सम्भवतः यह रहा होगा कि पुराणों के अनुसार भगवान् परशुराम का जन्म प्रदोष काल में हुआ था | परशुराम के अतिरिक्त भगवान् विष्णु ने नर-नारायण और हयग्रीव के रूप में अवतार भी इसी दिन लिया था | ब्रह्मा जी के पुत्र अक्षय कुमार का अवतार भी इसी दिन माना जाता है | पवित्र नदी गंगा का धरती पर अवतरण भी इसी दिन माना जाता है | माना जाता है कि भगवान श्री कृष्ण ने पाण्डवों को वनवास की अवधि में अक्षत पात्र भी इसी दिन दिया था – जिसमें अन्न कभी समाप्त नहीं होता था | माना जाता है कि महाभारत के युद्ध और द्वापर युग का समापन भी इसी दिन हुआ था तथा महर्षि वेदव्यास ने इसी दिन महान ऐतिहासिक महाकाव्य महाभारत की रचना आरम्भ की थी |

जैन धर्म में भी अक्षय तृतीया का महत्त्व माना जाता है | प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ को उनके वर्षीतप के सम्पन्न होने पर उनके पौत्र श्रेयाँस ने इसी दिन गन्ने के रस के रूप में प्रथम आहार दिया था | श्री आदिनाथ भगवान ने सत्य व अहिंसा का प्रचार करने एवं अपने कर्म बन्धनों को तोड़ने के लिए संसार के भौतिक एवं पारिवारिक सुखों का त्याग कर जैन वैराग्य अंगीकार किया था | सत्य और अहिंसा के प्रचार करते करते आदिनाथ हस्तिनापुर पहुँचे जहाँ इनके पौत्र सोमयश का शासन था | वहाँ सोमयश के पुत्र श्रेयाँस ने इन्हें पहचान लिया और शुद्ध आहार के रूप में गन्ने का रस पिलाकर इनके व्रत का पारायण कराया | गन्ने को इक्षु कहते हैं इसलिए इस तिथि को इक्षु तृतीया अर्थात अक्षय तृतीया कहा जाने लगा | आज भी बहुत से जैन धर्मावलम्बी वर्षीतप की आराधना करते हैं जो कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी से आरम्भ होकर दूसरे वर्ष वैशाख शुक्ल तृतीया को सम्पन्न होती है और इस अवधि में प्रत्येक माह की चतुर्दशी को उपवास रखा जाता है | इस प्रकार यह साधना लगभग तेरह मास में सम्पन्न होती है |

इस प्रकार विभिन्न पौराणिक तथा लोक मान्यताओं के अनुसार इस तिथि को इतने सारे महत्त्वपूर्ण कार्य सम्पन्न हुए इसीलिए सम्भवतः इस तिथि को सर्वार्थसिद्ध तिथि माना जाता है | किसी भी शुभ कार्य के लिए अक्षय तृतीया को सबसे अधिक शुभ तिथि माना जाता है : “अस्यां तिथौ क्षयमुर्पति हुतं न दत्तम्, तेनाक्षयेति कथिता मुनिभिस्तृतीया | उद्दिष्य दैवतपितृन्क्रियते मनुष्यै:, तत् च अक्षयं भवति भारत सर्वमेव ||”

सांस्कृतिक दृष्टि से इस दिन विवाह आदि माँगलिक कार्यों का आरम्भ किया जाता है | कृषक लोग एक स्थल पर एकत्र होकर कृषि के शगुन देखते हैं साथ ही अच्छी वर्षा के लिए पूजा पाठ आदि का आयोजन करते हैं | ऐसी भी मान्यता है इस दिन यदि कृषि कार्य का आरम्भ किया जाए जो किसानों को समृद्धि प्राप्त होती है | इस प्रकार प्रायः पूरे देश में इस पर्व को हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है | साथ ही, माना जाता है कि इस दिन जो भी कार्य किया जाए अथवा जो भी वस्तु खरीदी जाए उसका कभी ह्रास नहीं होता | किन्तु, वास्तविकता तो यह है कि यह समस्त संसार ही क्षणभंगुर है | ऐसी स्थिति में हम यह कैसे मान सकते हैं कि किसी भौतिक और मर्त्य पदार्थ का कभी क्षय नहीं होगा ? पञ्चतत्वों से निर्मित यह शरीर नाशवान है और अन्त में इसे उन्हीं पाँच तत्वों में मिल जाना है | तो कितनी भी धन सम्पत्ति हम एकत्र कर लें सब यहीं रह जानी है | अभी पहलगाम की आतंकी घटना इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है | इसीलिए यह सोचना भी वास्तव में निरर्थक है कि अक्षय तृतीया पर हम जितना स्वर्ण खरीदेंगे वह हमारे लिए शुभ रहेगा, अथवा हम जो भी कार्य आरम्भ करेंगे उसमें दिन दूनी रात चौगुनी तरक्क़ी होगी |

जिस समय हमारे मनीषियों ने इस प्रकार कथन किये थे उस समय का समाज तथा उस समय की आर्थिक परिस्थितियाँ भिन्न थीं | उस समय भी अर्थ तथा भौतिक सुख सुविधाओं को महत्त्व दिया जाता था, किन्तु चारित्रिक नैतिक आदर्शों के मूल्य पर नहीं | यही कारण था कि परस्पर सद्भाव तथा लोक कल्याण की भावना हर व्यक्ति की होती थी | इसलिए हमारे मनीषियों के कथन का तात्पर्य सम्भवतः यही रहा होगा कि हमारे कर्म सकारात्मक तथा लोक कल्याण की भावना से निहित हों, जिनके करने से समस्त प्राणिमात्र में आनन्द और प्रेम की सरिता प्रवाहित होने लगे तो उस उपक्रम का कभी क्षय नहीं होता अपितु उसके शुभ फलों में दिन प्रतिदिन वृद्धि ही होती है – और यही तो है जीवन का वास्तविक स्वर्ण | किन्तु परवर्ती जन समुदाय ने – विशेषकर व्यापारी वर्ग ने अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए इसे भौतिक वस्तुओं – विशेष रूप से स्वर्ण – के साथ जोड़ लिया | अभी हम देखते हैं कि अक्षय तृतीया से कुछ दिन पूर्व से ही हमारे विद्वान् ज्योतिषी अक्षय तृतीया पर स्वर्ण खरीदने का मुहूर्त बताने में लग जाते हैं | लोग अपने आनन्द के लिए प्रत्येक पर्व पर कुछ न कुछ नई वस्तु खरीदते हैं तो वे ऐसा कर सकते हैं, किन्तु वास्तविकता तो यही है कि इस पर्व का स्वर्ण की ख़रीदारी से कोई सम्बन्ध नहीं है |

एक अन्य महत्त्व इस पर्व का है | यह पर्व ऐसे समय आता है जो वसन्त ऋतु के समापन और ग्रीष्म ऋतु के आगमन के कारण दोनों ऋतुओं का सन्धिकाल होता है | इस मौसम में गर्मी और उमस वातावरण में व्याप्त होती है | सम्भवतः इसी स्थिति को ध्यान में रखते हुए इस दिन सत्तू, खरबूजा, तरबूज, खीरा तथा जल से भरे मिट्टी के पात्र आदि दान देने की परम्परा है अत्यन्त प्राचीन काल से चली आ रही है | साथ ही यज्ञ की आहुतियों से वातावरण स्वच्छ हो जाता है और इस मौसम में जन्म लेने वाले रोग फैलाने वाले बहुत से कीटाणु तथा मच्छर आदि नष्ट हो जाते हैं – सम्भवतः इसीलिए इस दिन यज्ञ करने की भी परम्परा है |

जहाँ तक एक दिन पूर्व परशुराम जयन्ती मनाने का प्रश्न है तो ऐसा इसलिए कि भगवान परशुराम का जन्म प्रदोषकाल में हुआ था | कल दोपहर में ही तृतीया तिथि समाप्त हो जाएगी इसलिए आज प्रदोषकाल में भगवान परशुराम की पूजा अर्चना की जाएगी | किन्तु उदया तिथि के अनुसार अक्षय तृतीया का व्रत कल ही होगा | भगवान परशुराम की कथाएँ जन साधारण को ज्ञात हैं अतः उनके विषय में लिखना पुनरावृत्ति ही होगी | फिर भी कुछ महत्वपूर्ण तथ्य…

भृगुश्रेष्ठ महर्षि जमदग्नि द्वारा सम्पन्न पुत्रेष्टि यज्ञ से प्रसन्न देवराज इन्द्र के वरदान स्वरूप पत्नी रेणुका के गर्भ से वैशाख शुक्ल तृतीया को विश्ववन्द्य महाबाहु परशुराम का जन्म हुआ था | वे भगवान विष्णु के छठे अवतार है | उनका मूल नाम राम है, भगवान शिव ने जब उन्हें परशु अस्त्र प्रदान किया तब उनका नाम परशुराम पड़ा | जमदग्नि ऋषि की सन्तान होने के कारण वे जामदग्न्य कहलाए | जन्म से ब्राह्मण किन्तु कर्म से क्षत्रिय परशुराम भृगु वंश के कारण भार्गव भी कहलाए जाते हैं | उन्होंने केवल ब्राह्मणों को ही शस्त्र शिक्षा प्रदान की – भीष्म और कर्ण इसके अपवाद हैं | भविष्य में भी कल्कि अवतार के समय वे ही कल्कि भगवान को अस्त्र शस्त्र की शिक्षा प्रदान करेंगे ऐसी पौराणिक मान्यता है | भगवान परशुराम एक समाज सुधारक के रूप में भी सामने आते हैं | उन्होंने अत्रि ऋषि की पत्नी अनसूया, अगस्त्य मुनि की पत्नी लोपामुद्रा व अपने प्रिय शिष्य अकृतवण के सहयोग से विराट नारी जागृति अभियान का संचालन भी किया था | उन्होंने 21 बार अहंकारी और धृष्ट हैहेय वंश के क्षत्रियों का संहार करके धरा को उनके आतंक से मुक्त किया | वैदिक संस्कृति के प्रचार प्रसार में उनका अतुलनीय योगदान रहा | माना जाता है कि कोंकण, गोवा और केरल के अधिकांश ग्राम उन्होंने ही बसाए थे |

अस्तु, कथाएँ और दन्त कथाएँ अनेकों हैं, लेकिन…

ॐ श्री महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णु पत्न्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात्,

ऊँ नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो विष्णु प्रचोदयात्…

श्री लक्ष्मी-नारायण की उपासना के पर्व अक्षय तृतीया तथा परशुराम जयन्ती की सभी को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ… सभी के जीवन में सुख-समृद्धि-सौभाग्य-ज्ञान-उत्तम स्वास्थ्य की वृद्धि होती रहे तथा हर कार्य में सफलता प्राप्त होती रहे… यही कामना है…

परशुराम ने हैहय वंश का नाश 21 बार किया था | जब उन्होंने देखा कि हैहेय वंश के राजा सहस्रार्जुन के ऋषियों और ब्राह्मणों पर अत्याचार रुक नहीं रहे, यहाँ तक कि उनके पिता के आश्रम पर आक्रमण कर उनका भी वध कर दिया – तब उन्होंने सम्पूर्ण हैहेय वंश के क्षत्रियों का समूल नाश करने की सौगन्ध ली और 21 बार पृथिवी को क्षत्रियविहीन किया | एजेस तरह पड़ोसी देश के आतंकी हमारे देश के भोले भाले नागरिकों का इतनी निर्ममता से क्रूरता से वध कर रहे हैं तो हर परिवार से एक परशुराम निकलने की आवश्यकता है |

—– कात्यायनी

श्री हनुमान जन्मोत्सव सँवत् 2082

श्री हनुमान जन्मोत्सव सँवत् 2082

शनिवार 12 अप्रैल को चैत्र पूर्णिमा है – श्री हनुमान जन्मोत्सवजिसे पूरा हिन्दू समाज पूर्ण भक्ति भाव से हर्षोल्लास के साथ मनाता है | विघ्नहर्ता मंगल कर्ता हनुमान जीजिन्हें अन्जनापुत्र होने के कारण आंजनेय भी कहा जाता हैजो लक्ष्मण की मूर्च्छा दूर करने के लिए संजीवनी बूटी का पूरा पर्वत ही उठाकर ले आए थेजिनकी महिमा का कोई पार नहीं है | शनिवार को सूर्योदय से पूर्व तीन बजकर इक्कीस मिनट के लगभग कुम्भ लग्न, विष्टि (भद्रा) करण और व्याघात योग में पूर्णिमा तिथि का आगमन होगा जो रविवार को सूर्योदय से पूर्व 5:51 तक रहेगी | इस प्रकार उदया तिथि होने के कारण शनिवार 12 अप्रैल को हनुमान जयन्ती मनाई जाएगी | पूर्णिमा के सम्पन्न होने के साथ ही चैत्र मास समाप्त होकर वैशाख आरम्भ हो जाएगा | मान्यता है की हनुमान जी का जन्म सूर्योदय काल में हुआ थाअतः सूर्योदय काल में 5:58 से ही पूजा का शुभ मुहूर्त आरम्भ हो जाएगा तो दिन भर रहेगा | अस्तु, सर्वप्रथम सभी को श्री रामदूत हनुमान जी की जयन्ती की हार्दिक शुभकामनाएँइस भावना के साथ कि जिस प्रकार पग पग पर भगवान श्री राम के मार्ग की बाधाएँ उन्होंने दूर कींजिस प्रकार लक्ष्मण को पुनर्जीवन प्राप्त करने में सहायक हुएउसी प्रकार आज भी समस्त संसार को कष्टों से मुक्त होने में सहायता करें

हनुमान जी को वानर का रूप माना जाता है | किन्तु यदि व्यावहारिक दृष्टि से देखें तो वानर एक जनजाति उस समय हुआ करती थी जो वनवासियों का समूह होता था और जिन्होंने भगवान श्री राम की सहायता की | वानर शब्द का अर्थ ही है वन + नर अर्थात्वह मनुष्य जो वन में निवास करे” | वानर सम्भवतः एक अत्यन्त शक्तिशाली क़बीला हुआ करता था जिसके ध्वज पर वानर का चित्र अंकित होता था | इस जनजाति के लोग वानरों की ही भाँति अत्यन्त सक्रिय, फुर्तीले, साहसी, निडर भाव से कहीं भी पहुँच जाने वाले, ईमानदार और दयालु होते थे | ऐसा भी सम्भव है कि इनकी  मुखाकृति वानरों यानी बन्दरों से मिलती जुलती होती हो | कालान्तर में वानर शब्द को केवलमात्र बन्दरों का पर्याय बनाकर छोड़ दिया गया | बहुत से विद्वानों की ऐसी भी मान्यता हैजो हमें भी तथ्यात्मक प्रतीत होती हैकि पूँछ सम्भवतः इनके पुरुषों के परिधान का एक अंग था, क्योंकि महिला वानरों के साथ पूँछ को नहीं जोड़ा गया है |

हनुमान जयन्ती का भी यदि देखें तो भिन्न भिन्न प्रान्तों में उनकी मान्यताओं और कैलेण्डर के अनुसार अलग अलग तिथियों समय पर हनुमान जयन्ती मनाते हैं | जैसे आन्ध्र और तेलंगाना में चैत्र पूर्णिमा से आरम्भ होकर वैशाख कृष्ण दशमी तक 41 दिनों तक हनुमान जन्मोत्सव मनाया जाता है और वैशाख कृष्ण दशमी को इसका समापन किया जाता है | तमिलनाडु में मार्गशीर्ष अमावस्या कोहनुमथ जयन्तीआती है | कर्नाटक में इसेहनुमान व्रतंनाम से मार्गशीर्ष शुक्ल त्रयोदशी को मनाया जाता है |

श्री राम कथा पर सर्वाधिक प्रामाणिक ग्रन्थ वाल्मीकि रामायण के अनुसार हनुमान जी का जन्म कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को सायंकाल के समय मेष लग्न में हुआ था | उस समय स्वाति नक्षत्र था अर्थात चन्द्रमा स्वाति नक्षत्र में था और सूर्य तुला लग्न में में | माना जाता है कि अग्नि तत्व मेष लग्न तथा सूर्य के तुला में होने कारण ही उनमें कष्टों को भस्म कर देने की सामर्थ्य थी | उन्होंने ही श्री गोस्वामी तुलसीदास जी को श्री राम कथा सुनाई थी | चैत्र पूर्णिमा को हनुमान जी का जन्म महोत्सव मनाए जाने के पीछे एक अन्य कथा भी उपलब्ध होती है कि उन्होंने एक बार सूर्य को गेंद समझकर निगल लिया था | उस समय इन्द्र ने अपने वज्र से उन पर प्रहार किया जो उनकी थोड़ी पर जाकर लगा और वे अचेत हो गए | इन्द्र के इस व्यवहार से कुपित होकर हनुमान जी के पिता पवनदेव ने वायु का प्रवाह अवरुद्ध कर दिया | जब हनुमान जी की चेतना लौटी तब देवताओं की प्रार्थना पर पवनदेव ने पुनः वायु का प्रवाह आरम्भ किया | जिस दिन हनुमान जी चेतन हुए उस दिन चैत्र शुक्ल पूर्णिमा थी और इसी तिथि को उनका पुनर्जन्म मानकर हनुमान जयन्ती मनाई जाने लगी | कथाएँ और किम्वदन्तियाँ तथा मान्यताएँ जितनी भी होंहनुमान जी सदा कष्टों का हरण करते हैंऔर इसी निमित्त से इस अवसर प्रस्तुत है श्री हनुमान स्तुति अर्थ सहित

बुद्धिर्बलं यशो धैर्यं निर्भयत्वमरोगता |

अजाड्यं वाक्पटुत्वं च हनूमत्स्मरणाद्भवेत् ||

हनुमान जी का स्मरण करने से हमारी बुद्धि, बल, यश, धैर्य, निर्भयता, आरोग्य, विवेक और वाक्पटुता में वृद्धि हो |

मनोजवं मारुततुल्यवेगम्, जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम् |

वातात्मजं वानरयूथमुख्यं, श्री रामदूतं शरणं प्रपद्ये ||

हम उन वायुपुत्र श्री हनुमान के शरणागत हैं जिनकी गति का वेग मन तथा मरुत के समान है, जो जितेन्द्रिय हैं, बुद्धिमानों में श्रेष्ठ हैं, वानरों की सेना के सेनापति हैं तथा भगवान् श्री राम के दूत हैं |

अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं, दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम् |

सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं, रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि ||

अत्यन्त बलशाली, स्वर्ण पर्वत के समान शरीर से युक्त, राक्षसों के काल, ज्ञानियों में अग्रगण्य, समस्त गुणों के भण्डार, समस्त वानर कुल के स्वामी तथा रघुपति के प्रिय भक्त वायुपुत्र हनुमान को हम नमन करते हैं |

हनुमानद्द्रजनीसूनुर्वायुपुत्रो महाबलः, रामेष्टः फाल्गुनसखः पिङ्गाक्षोऽमितविक्रम: |

उदधिक्रमणश्चैव सीताशोकविनाशनः, लक्ष्मणप्राणदाता च दशग्रीवस्य दर्पहा ||

एवं द्वादशनामानि कपीन्द्रस्य महात्मनः,

स्वापकाले प्रबोधे च यात्राकाले च यः पठेत्‌ |

तस्य सर्वभयं नास्ति रणे च विजयी भवेत्‌ ||

हनुमान, अंजनिपुत्र, वायुपुत्र, महाबली, रामप्रिय, अर्जुन (फाल्गुन) के मित्र, पिंगाक्षभूरे नेत्र वाले, अमित विक्रम अर्थात महान प्रतापी, उदधिक्रमण: – समुद्र को लाँघने वाले, सीता जी के शोक को नष्ट करने वाले, लक्ष्मण को जीवन दान देने वाले तथा रावण के घमण्ड को चूर्ण करने वालेये कपीन्द्र के बारह नाम हैं | रात्रि को शयन करने से पूर्व, प्रातः निद्रा से जागने पर तथा यात्रा आदि के समय जो व्यक्ति हनुमान जी के इन बारह नामों का पाठ करता है उसे किसी प्रकार का भय नहीं रहता तथा विजय प्राप्त होती है |

आज जबकि हर ओर वैश्विक स्तर पर एक अराजकता कायुद्ध कावातावरण बना हुआ हैस्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएँ हैंऔर भी अनेक प्रकार की समस्याओं से मनुष्यों का सामना हो रहा हैहमारी यही कामना है की बजरंगबली सबकी रक्षा करेंइसी भावना के साथ सभी को श्री हनुमान जयन्ती की हार्दिक शुभकामनाएँ

यौगिक चक्र और नवरात्र उपासना

यौगिक चक्र और नवरात्र उपासना

चक्र साधना योग का एक महत्त्वपूर्ण अंग है । चक्रों को समझकर उन्हें सन्तुलित करने से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य अच्छा बना रहता है, और जब शारीरिक तथा मानसिक स्तर पर मनुष्य स्वस्थ रहेगा तो अपने सांसारिक कर्तव्य कर्मों का पूर्ण निष्ठा के साथ निर्वहन करते हुए भी आध्यात्म की दिशा में भी अग्रसर होने में उसे सरलता का अनुभव होगा । चक्र ऊर्जा के केन्द्र माने जाते हैं, और ऊर्जा के सुचारू रूप से प्रवाहित होने के लिए चक्रों का सन्तुलित होना अत्यन्त आवश्यक है । साथ ही चक्रों को यदि समझ लिया जाए तो स्वयं के प्रति जागरूकता में वृद्धि होती है और व्यक्ति अपनी आन्तरिक शक्ति और सामर्थ्य को पहचानना आरम्भ कर देता है । मुख्य रूप से सात चक्र होते हैं

  • मूलाधार चक्रनाम से ही स्पष्ट है मूल आधार – मेरुदण्ड के सबसे नीचे के भाग में गूदा तथा जननेन्द्रिय के मध्य इसकी स्थिति मानी गई है यह पृथ्वी तत्व से सम्बद्ध होता है तथा यह स्थिरता, सुरक्षा और आधार प्रदान करता है । इसी से स्पष्ट होता है कि ध्यान अथवा अन्य किसी भी कार्य में प्रगति के लिए आधार को स्थिर करने की सामर्थ्य प्राप्त होती है ।
  • स्वाधिष्ठान चक्रस्व अर्थात् स्वयं का अधिष्ठानमूलाधार के ऊपर तथा जननेन्द्रिय के पीछे इसकी स्थिति मानी गई है । इसका सम्बन्ध जल तत्व से होता है तथा सम्भवतः इसी कारण से कहा जाता है कि इसके सन्तुलन से रचनात्मकता, भावनात्मकता तथा आनन्द में वृद्धि होती है । 
  • मणिपूर चक्रयह चक्र नाभि के पीछे मेरुदण्ड पर होता है । अग्नि तत्व से इसका सम्बन्ध होने के कारण ही इसके सन्तुलन से व्यक्तिगत शक्ति और सामर्थ्य प्राप्त होती है । साथ ही आत्म शक्ति, इच्छा शक्ति तथा पाचन तन्त्र से भी इसका सम्बन्ध माना जाता है ।
  • अनाहत चक्रहृदय के बीच में वक्ष के मध्य भाग में इसकी स्थिति होती है । यह चक्र वायु तत्व से सम्बन्ध रखता है तथा इसके सन्तुलन से प्रेम, करुणा तथा भावनात्मक सन्तुलन स्थापित होता है ।
  • विशुद्ध चक्रयह चक्र कण्ठ के केन्द्र में स्थित होता है । आकाश तत्व से इसका सम्बन्ध होने के कारण ही संचार, अभिव्यक्ति तथा सत्य से इसका सम्बन्ध होता है ।
  • आज्ञा चक्रदोनों भवों के मध्य मस्तक के केन्द्र में इसकी स्थिति मानी गई है । सभी पाँच तत्वों से ऊपर जो ज्ञान की अवस्था हैजिसे तृतीय नेत्र भी कहा जाता हैउस तत्व से इसका सम्बन्ध होता है तथा ज्ञान, अन्तर्ज्ञान, ध्यान और धारणा शक्ति से इसका सम्बन्ध होता है ।
  • सहस्रार चक्रसिर के सबसे ऊपरी भाग में अर्थात् मूर्धन्य में इसकी स्थिति होती है । सहस्र दल पद्म खिलने जैसा अनुभव योगियों को इसके जागरण से होता है और इसीलिए इस चक्र का सम्बन्ध चेतना, ज्ञान तथा आध्यात्मिक जागृति से होता है ।

यहाँ ध्यान देने की बात है कि ये जो चक्रों की शरीर में स्थिति बताई जाती है यह शरीर के अंगों के रूप में नहीं होते हैंअर्थात् इन्हें देखा अथवा इनका स्पर्श नहीं किया जा सकता है शरीर एक अन्य अवयवों की भाँति, किन्तु इनमें से जो भी चक्र जागृत हो जाते हैं उनके अनुभव साधक को होते हैं । नवरात्रों में भगवती के नौ रूपों की यदि पूर्ण श्रद्धा भक्ति और पूर्ण ध्यान के अभ्यास के साथ उपासना की जाए तो इन चक्रों को जागृत किया जा सकता है ऐसा हमारे मनीषियों का मानना हैक्योंकि नवरात्र के पूरे नौ दिनों में साधक का मन अलग अलग चक्रों में क्रमशः अवस्थित होता जाता है । किन्तु इस स्थिति को प्राप्त करने के लिए गहन साधना की आवश्यकता होती हैऔर यही सबसे कठिन कार्य है सांसारिक बन्धनों में बद्ध व्यक्ति के लिएक्योंकि हम लोग तोव्रत और उपवासके दिन भी साधना के स्थान पर उत्तम प्रकार केफलाहारबनाने और उनके सेवन में व्यतीत कर देते हैं । फिर भी, अपनी अल्प बुद्धि से और ग्रन्थों के अध्ययन से जैसा समझ आया वैसा ही यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं कि नवरात्रों के नौ दिन साधक का मन किस किस चक्र पर अवस्थित होता है ।

  • नवरात्रों के प्रथम दिन भगवती के शैलपुत्री रूप की उपासना की जाती है । नवरात्रों से पूर्व योग ध्यान आदि के गहन अभ्यास के द्वारा साधक अनुभव अथवा भावनाओं के उस शिखर तक पहुँच जाता है जहाँ उसे दिव्य चेतना का अनुभव होता है तथा उसका मन हिमालय की भाँति स्थित हो जाता है । यही है शैलपुत्री का वास्तविक अर्थ । और यह स्थिरता तभी सम्भव है जब मूलाधार चक्र को जागृत कर लिया जाए । भगवती के शैलपुत्री रूप की उपासना के माध्यम से हम वास्तव में इस मूलाधार चक्र को ही जागृत करने का प्रयास करते हैं ताकि हमारी व्यक्तिगत क्षमताओं में वृद्धि हो सके और हमारा मन स्थिर होकर हमारी सुरक्षा की भावना भी प्रबल हो सके ।
  • द्वितीय नवरात्र समर्पित होता है भगवती के ब्रह्मचारिणी रूप को । ब्रह्मचारिणी का अर्थ ही है वह जो ब्रह्माण्ड अर्थात् असीम मेंअनन्त में विद्यमान होगतिमान है । एक ऐसी ऊर्जा हो जो जड़ न होकर अनन्त में विचरण करती हो । यही कारण है कि इनकी आराधना से सम्भावनाओं के अनन्त आकाश समक्ष उपस्थित हो सकते हैं । माता का यह स्वरूप ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए एक तापसी का रूप हैब्रह्म अर्थात तप और चारिणी अर्थात् आचरण करने वाली । हम सभी अपने जीवन में किसी ना किसी तप का पालन करते हैंअपने कार्यक्षेत्र की कठिनाइयाँ हों, कार्य में सफलता प्राप्त करनी हो, दिन प्रतिदिन की जीवन की चुनौतियाँ होंहर संघर्ष एक तपस्या ही है । ऐसे में यदि स्वाधिष्ठान चक्र जागृत हो जाए तो व्यक्ति की रचनात्मकता और भावनात्मकता में वृद्धि होगी और उसे अपनी समस्याओं का निर्भीकता से सामना करते हुए उनके निराकरण का उपाय खोजने में दिशा प्राप्त होगी । इसीलिए ब्रह्मचारिणी रूप की उपासना से हम अपना स्वाधिष्ठान चक्र जागृत कर सकते हैं ।
  • चन्द्रघण्टा अर्थात् चन्द्रमा के समान दैदीप्यमान और आकर्षकतथा, चन्द्र हो घण्टा में जिसकेचन्द्रमा जिसे अत्यन्त निर्मल और धवल माना जाता है । शीतलता प्रदान करने वाला माना जाता है । आज जीवन जिस तेज़ गति से भाग रहा है उस स्थिति में मन को शान्त, स्थिर और शीतल रखना अत्यन्त आवश्यक है । मन जब शान्त और स्थिर रहेगा तभी नकारात्मक विचार नष्ट होकर व्यक्ति की आत्म शक्ति और इच्छा शक्ति को बल मिलेगा, और इसी के लिए मणिपुर चक्र को जागृत किया जाता है । भगवती के चन्द्रघण्टा रूप की उपासना के द्वारा इसी मणिपुर चक्र को जागृत किया जाता है । जिससे व्यक्ति को सन्तोष की अनुभूति होती है और उसकी नेतृत्व शक्ति में विकास होता है ।
  • चतुर्थ नवरात्र को भगवती के कूष्माण्डा रूप की उपासना की जाती है । माँ कूष्माण्डा ब्रह्माण्डीय ऊर्जा का स्रोत हैं ।इस दिन साधक का मन अनाहत चक्र में अवस्थित होता है तथा इसके सन्तुलन से प्रेम, करुणा और भावनात्मक सन्तुलन स्थापित होता है । इस सन्तुलन से जीवमात्र के प्रति हमारा समभाव स्थापित होने के कारण हमारा मिलन अपनी स्वयं की आत्मा से होता है । क्योंकि व्यक्ति को समझ आ जाता है कि पिण्डे सो ब्रह्माण्डे अर्थात् जो ब्रह्माण्ड में है वही हमारे शरीर में भी है और इस प्रकार ब्रह्माण्ड के सभी जीवों में एक ही आत्मा का वास है ।
  • पञ्चम नवरात्र समर्पित है भगवती के स्कन्द माता रूप कोजिन्हें कार्तिकेय अर्थात् स्कन्द की जननी होने के कारण  जनन की देवी भी कहा जाता हैफिर चाहे वह प्रकृति हो, मनुष्य हो अथवा अन्य कोई भी प्राणी हो । जन्म ज्ञान शक्ति और कर्म शक्ति के मिलन का परिणाम होता है अतः स्कन्दमाता इन दोनों शक्तियों के मिलन स्वरूप ऐसी दिव्य शक्ति हो जाती हैं जो ज्ञान सेसत्य सत्य से दर्शन कराती हैंक्योंकि यह समस्त दृश्य प्रपञ्च मिथ्या होते हुए भी प्रत्यक्ष होने के कारण सत्य ही प्रतीत होता है । पञ्चम नवरात्र को साधक का मन विशुद्ध चक्र में अवस्थित हो जाता हैजिसके जागृत होने से ईश्वर की सत्ता का अनुभव होने लगता है तथा इस चक्र के आकाश तत्व होने के कारण साधक उस सत्य की अभिव्यक्ति भी कुशलता से कर सकता है ।
  • छठा नवरात्र समर्पित होता है भगवती के कात्यायनी रूप को । इस दिन साधक का मन आज्ञा चक्र में अवस्थित हो जात है जिसके कारण साधक को तत्व का बोध होता है, आत्मज्ञान प्राप्त होता है और इसी कारण अज्ञात भय से मुक्ति प्राप्त होती है तथा ध्यान और धारणा शक्ति के प्रबल हो जाने के कारण व्यक्ति में क्षमा भावना का विकास हो जाता है । आज्ञा चक्र सत् चित् और आनन्द के केन्द्र होता है और इसके जागृत हो जाने से नैतिक तर्क शक्ति तथा विवेक में वृद्धि के साथ ही वाक्सिद्धि भी सम्भव हो जाती है ।
  • सप्तमनवरात्रकोभगवतीकेकालरात्रिरूपकीउपासनाकीजातीहैतथाअष्टमनवरात्रकोमहागौरीरूपकी।इनदोनोंरूपोंकीउपासनासेसहस्रारचक्रजागृतहोताहै।प्रथमनवरात्रसेमूलाधारकोजागृतकरतेहुएसाधकऊर्ध्वकीओरअग्रसरहोताहुआआध्यात्मऔरयोगकेअत्यन्तमहत्त्वपूर्णचक्रसहस्रारचक्रकेअधोभागपरपहुँचजाताहैजहाँसेसहस्रदलकमलप्रस्फुटितहोनेजैसाअनुभवहोनेलगताहै।इसेआज्ञाचक्रकाउच्चतमबलभीकहाजाताहै।यहीकारणहैकिअष्टमनवरात्रकोजबभगवतीकेमहागौरीरूपकीउपासनासाधककरताहैतोउसकीएकाग्रताअपनेचरमपरहोतीहैतथाउसेआलस्यसेमुक्तिप्राप्तहोतीहै।
  • नवम दिन भगवती के सिद्धिदात्री रूप की उपासना की जाती है । नाम से ही स्पष्ट हैसिद्धि प्रदान करने वालामोक्ष प्रदान करने वाला रूप है यह । अथक साधना के फलस्वरूप इस दिन साधक का सहस्रार चक्र जागृत हो जाता है जो अन्तिम चक्र है तथा आत्मज्ञान और परम शान्ति का अनुभव कराता है । इसका सम्बन्ध चेतना, ज्ञान तथा आध्यात्मिक जागृति से होता है । यही कारण है इसके जागृत हो जाने से साधक योगी को अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्वऔरवशित्वआदिवेसमस्तसिद्धियाँप्राप्तहोजातीहैंजोदेवाधिदेवभगवानशिवकोइसउपासनासेप्राप्तहुईथीं।

किन्तु ध्यान रहे, ये सभी हमारे योगीजनों के अनुभवों के सत्य हैंसमय समय पर जिनका अध्ययन करने का सौभाग्य प्रायः हम सभी को प्राप्त होता रहता है । योग की विविध प्रक्रियाओं में निष्णात होने का बाद ही साधक में ऐसी सामर्थ्य उत्पन्न होती है कि वह नवरात्रों के नौ दिनों तक मूलाधार चक्र से आरम्भ करके निरन्तर ऊर्ध्व की ओर अग्रसर होते हुए सहस्रार चक्र को जागृत करके सभी सिद्धियाँ प्राप्त कर मोक्ष प्राप्त कर सकता हैऔर योगीजनों के लिए मोक्ष से अभिप्राय शरीर से मोक्ष नहीं है, अपितु परम ज्ञान की प्राप्ति होता है ।

शनि का मीन में गोचर

शनि का मीन में गोचर

कुम्भ तथा मीन राशियों के लिए शनि का मीन में गोचर

इस वर्ष शनिवार 29 मार्च, चैत्र अमावस्या को रात्रि 9:46 के लगभग किंस्तुघ्न करण और ब्रह्म योग में शनि का गोचर मीन राशि में हो जाएगा, जहाँ 3 जून 2027 तक भ्रमण करने के बाद मंगल की राशि मेष में पहुँच जाएँगे | यद्यपि मेष में वक्री होकर 20 अक्टूबर 2027 को एक बार फिर से रेवती नक्षत्र और मीन राशि में आएँगे और चार दिन बाद 24 दिसम्बर 2027 से मार्गी होते हुए 23 फरवरी 2028 को मेष राशि और अश्वनी नक्षत्र पर वापस पहुँच जाएँगे | धीमी गति के कारण लम्बी यात्रा है शनि की अतः इस बीच शनि कई बार अस्त भी रहेगा और कई बार वक्री चाल भी चलेगा | इन्हीं सब तथ्यों को ध्यान में रखते हुए जानने का प्रयास करेंगे शनि के मीन राशि में गोचर के कुम्भ तथा मीन राशि के जातकों पर क्या सम्भावित प्रभाव हो सकते हैं…

किन्तु ध्यान रहे, ये सभी परिणाम सामान्य हैं | किसी कुण्डली के विस्तृत फलादेश के लिए केवल एक ही ग्रह के गोचर को नहीं देखा जाता अपितु उस कुण्डली का विभिन्न सूत्रों के आधार पर विस्तृत अध्ययन आवश्यक है | क्योंकि शनि का जहाँ तक प्रश्न है तो “शं करोति शनैश्चरतीति च शनि:” अर्थात, जो शान्ति और कल्याण प्रदान करे और धीरे चले वह शनि… अतः शनिदेव का गोचर कहीं भी हो, घबराने की या भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है… अपने कर्म की दिशा सुनिश्चित करके आगे बढ़ेंगे तो कल्याण ही होगा… अतः धैर्यपूर्वक शनि की चाल पर दृष्टि रखते हुए कर्मरत रहिये… निश्चित रूप से गुरुदेव की कृपा से शनि के इस गोचर में भी कुछ तो अमृत प्राप्त होगा, क्योंकि गुरु की राशियों में स्थित शनि शुभ फल देने में समर्थ होता है… अस्तु,

कुम्भ – शनि देव आपके लिए द्वादशेश और लग्नेश होकर आपकी राशि से द्वितीय भाव में चाँदी के पाए के साथ गोचर करने जा रहे हैं, जहाँ से इनकी दृष्टियाँ आपके चतुर्थ भाव, अष्टम भाव तथा लाभ स्थान पर रहेंगी | चतुर्थेश शुक्र, साथ ही साढ़ेसाती का प्रथम चरण भी आरम्भ हो जाएगा | किन्तु आपको साढ़ेसाती के प्रथम चरण में किसी प्रकार भी भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है | आपकी आर्थिक स्थिति में सुधार और दृढ़ता की सम्भावना इस अवधि में की जा सकती है | बहुत समय से यदि कोई कार्य लम्बित पड़ा हुआ है अथवा कार्य में रुकावटें आ रही हैं तो उनके भी आगे बढ़ने और पूर्ण होने की सम्भावना इस अवधि में की जा सकती है | आय के नवीन स्रोत आपके समक्ष उपस्थित हो सकते हैं जिनके कारण आप दीर्घ काल तक धनोपार्जन करते हुए व्यस्त रह सकते हैं |

प्रॉपर्टी अथवा वाहन आदि से सम्बन्धित यदि आपका व्यवसाय है, अथवा किसी प्रकार का मशीनों से सम्बन्धित व्यवसाय है तो आपके लिए विशेष रूप से लाभ की सम्भावना की जा सकती है |  साथ ही, यदि इन क्षेत्रों में आपकी जॉब भी है तो उसमें आपकी प्रमोशन हो सकती है | IT क्षेत्र के जातकों के लिए भी यह गोचर लाभकारी सिद्ध हो सकता है | समाज में आपके मान सम्मान में वृद्धि तथा परिवार की प्रतिष्ठा में वृद्धि की सम्भावना है |  विवाहित हैं तो दाम्पत्य जीवन मधुर बना रहेगा, और यदि अविवाहित हैं तो इस अवधि में जीवन साथी की तलाश भी पूरी हो सकती है |

स्वास्थ्य की दृष्टि से भी यह गोचर अनुकूल प्रतीत होता है, किन्तु अपने खान पान पर ध्यान रखने की तथा जीवन शैली में सुधार की आवश्यकता है |

मीन – आपके लिए आपकी राशि से एकादशेश तथा द्वादशेश होकर शनि का गोचर आपकी राशि में ही हो रहा है, जहाँ से इसकी दृष्टियाँ आपके तृतीय भाव, सप्तम भाव तथा दशम भाव पर रहेंगी | साथ ही साढ़ेसाती का द्वितीय चरण भी आरम्भ हो जाएगा | किन्तु जैसा कि पूर्व में भी लिखा है, गुरुदेव की राशि में स्थित शनि गुरु कृपा से शुभ फल हाई प्रदान कर सकता है | पारिवारिक स्तर पर – विशेष रूप से भाई बहनों के साथ आपके सम्बन्धों में सुधार और दृढ़ता की सम्भावना की जा सकती है | यों वक्री शनि की स्थिति में कुछ उतार चढ़ाव भी सम्भव हैं, किन्तु मूल रूप से यह गोचर आपके लिए अनुकूल हाई रहने वाला प्रतीत होता है | आर्थिक स्थिति में सुधार तथा दृढ़ता की सम्भावना है – विशेष रूप से यदि आपके कार्य का सम्बन्ध विदेश से है तो आपके लिए कार्य में प्रगति तथा अर्थलाभ के साथ हाई विदेश यात्राओं के योग भी प्रतीत होते हैं | व्यापार में नए लोगों के साथ सम्बन्ध स्थापित हो सकते हैं | नौकरी में प्रमोशन की सम्भावना है, किन्तु इसके लिए आपको कठोर परिश्रम तथा समझदारी से काम लेने की आवश्यकता होगी |

विदेश से अथवा किसी दूरस्थ शहर से आपका कोई घनिष्ठ मित्र आपसे मिलने आ सकता है जिसके द्वारा आपको कोई ऐसा प्रोजेक्ट मिल सकता है जिसमें आप बहुत समय समय तक व्यस्त रहकर अर्थ लाभ कर सकते हैं | हाथ के कारीगरों के लिए यह गोचर विशेष रूप से लाभदायक होने की सम्भावना है | उन्हें किसी प्रकार का पुरुस्कार आदि भी प्राप्त हो सकता है |

यों दाम्पत्य जीवन सौहार्दपूर्ण रहने की सम्भावना है, किन्तु जीवन साथी का स्वास्थ्य चिन्ता का विषय हो सकता है | विशेष रूप से वक्री शनि की स्थिति में आपको विशेष रूप से इस ओर से सावधान रहने की आवश्यकता होगी | अपने स्वयं के भी शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के प्रति सावधान रहने की आवश्यकता है |

अन्त में बस इतना ही कि यदि कर्म करते हुए भी सफलता नहीं प्राप्त हो रही हो तो किसी अच्छे ज्योतिषी के पास दिशानिर्देश के लिए अवश्य जाइए, किन्तु अपने कर्म और प्रयासों के प्रति निष्ठावान रहिये – क्योंकि ग्रहों के गोचर तो अपने नियत समय पर होते ही रहते हैं, केवल आपके कर्म और उचित प्रयास ही आपको जीवन में सफल बना सकते हैं…

शनि का मीन में गोचर

शनि का मीन में गोचर

तुला तथा वृश्चिक राशियों के लिए शनि का मीन में गोचर

इस वर्ष शनिवार 29 मार्च, चैत्र अमावस्या को रात्रि 9:46 के लगभग किंस्तुघ्न करण और ब्रह्म योग में शनि का गोचर मीन राशि में हो जाएगा, जहाँ 3 जून 2027 तक भ्रमण करने के बाद मंगल की राशि मेष में पहुँच जाएँगे | यद्यपि मेष में वक्री होकर 20 अक्टूबर 2027 को एक बार फिर से रेवती नक्षत्र और मीन राशि में आएँगे और चार दिन बाद 24 दिसम्बर 2027 से मार्गी होते हुए 23 फरवरी 2028 को मेष राशि और अश्वनी नक्षत्र पर वापस पहुँच जाएँगे | धीमी गति के कारण लम्बी यात्रा है शनि की अतः इस बीच शनि कई बार अस्त भी रहेगा और कई बार वक्री चाल भी चलेगा | इन्हीं सब तथ्यों को ध्यान में रखते हुए जानने का प्रयास करेंगे शनि के मीन राशि में गोचर के तुला तथा वृश्चिक राशि के जातकों पर क्या सम्भावित प्रभाव हो सकते हैं 

किन्तु ध्यान रहे, ये सभी परिणाम सामान्य हैं | किसी कुण्डली के विस्तृत फलादेश के लिए केवल एक ही ग्रह के गोचर को नहीं देखा जाता अपितु उस कुण्डली का विभिन्न सूत्रों के आधार पर विस्तृत अध्ययन आवश्यक है | क्योंकि शनि का जहाँ तक प्रश्न है तोशं करोति शनैश्चरतीति च शनि:” अर्थात, जो शान्ति और कल्याण प्रदान करे और धीरे चले वह शनिअतः शनिदेव का गोचर कहीं भी हो, घबराने की या भयभीत होने की आवश्यकता नहीं हैअपने कर्म की दिशा सुनिश्चित करके आगे बढ़ेंगे तो कल्याण ही होगाअतः धैर्यपूर्वक शनि की चाल पर दृष्टि रखते हुए कर्मरत रहियेनिश्चित रूप से गुरुदेव की कृपा से शनि के इस गोचर में भी कुछ तो अमृत प्राप्त होगा, क्योंकि गुरु की राशियों में स्थित शनि शुभ फल देने में समर्थ होता हैअस्तु,  

तुलाआपके लिए शनिदेव आपकी राशि से चतुर्थेश और पञ्चमेश होकर आपके लिए

तुला
तुला

योगकारक बन जाते हैं तथा इस समय आपकी राशि से छठे भाव में गोचर करने जा रहे हैं | यहाँ से शनि की दृष्टियाँ आपके अष्टम भाव, बारहवें भाव तथा तीसरे भावों पर रहेंगी | छठा भाव शनि के लिए अनुकूल माना जाता है | साथ ही अष्टमेश स्वयं शुक्र है जो शनि का मित्र ग्रह है | द्वादशेश बुध के साथ भी शनि की मित्रता है | अतः योगकारक होकर शनि का छठे भाव में गोचर तुला राशि के जातकों के लिए शुभफलदायी प्रतीत होता है | आप अपने विरोधियों पर विजय प्राप्त करने में सफल होंगे जिसके कारण कार्य क्षेत्र में आपके प्रभाव में वृद्धि होगी | आपने अब तक जितना भी परिश्रम किया है उसका शुभ फल आपको प्राप्त होने की सम्भावना की जा सकती है जिसके कारण आपकी आर्थिक स्थिति में सुधार और दृढ़ता की सम्भावना की जा सकती है | किन्तु आपको आलस्य से बचने की आवश्यकता होगी | आलस्य आपके स्वास्थ्य पर भी विपरीत प्रभाव डाल सकता है |

वक्री शनि की स्थिति में आपको अपने स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएँ और परिवार तथा सम्पत्ति विषयक विवाद उत्पन्न हो सकते हैं | अतः सावधान रहने की आवश्यकता है | 

आपके लिए आगे बढ़ने के लिए अनेक अवसर उपस्थित हो सकते हैं | विद्यार्थियों को प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता प्राप्त हो सकती है, किन्तु उसके लिए उन्हें कठोर परिश्रम की आवश्यकता होगी |

वृश्चिक
वृश्चिक

वृश्चिकआपके लिए शनि आपकी राशि से तृतीयेश और चतुर्थेश होकर आपकी राशि से पञ्चम भाव में चाँदी के पाए से गोचर करने जा रहा है तथा वहाँ से आपके सप्तम भाव पर, एकादश भाव पर तथा द्वितीय भाव पर आएँगी | आपका राशि का अधिपति मंगल से शनि की शत्रुता है, तथा सप्तमेश शुक्र और एकादशेश बुध से शनि की मित्रता है | आपके लिए यह गोचर अनुकूल प्रतीत होता है, कुछ स्थलों को छोड़कर | आपको ढैया से मुक्ति प्राप्त होने जा रही है जो एक शुभ संकेत है | आप जो भी कार्य इस अवधि में करेंगे वह सफल होने की पूरी सम्भावना है | आपको अपने कार्य में लाभ प्राप्त होने की सम्भावना है | कार्यक्षेत्र में आपके कार्यों की सराहना होगी | यदि आप किसी नौकरी में हैं तो आप किसी बहुत उच्च पद पर पहुँच सकते हैं | परिवार में आनन्द का वातावरण बना रहने की सम्भावना है | यदि आप प्रॉपर्टी अथवा वाहन ख़रीदना चाहते हैं तो आपकी यह कामना इस अवधि इन पूर्ण हो सकती है |आपके आत्मविश्वास में वृद्धि की सम्भावना की जा सकती है | सामाजिक गतिविधियों में वृद्धि तथा समाज में मान प्रतिष्ठा में भी वृद्धि की सम्भावना है | 

आपकी सन्तान के लिए भी यह गोचर भाग्यवर्धक प्रतीत होता है | सन्तान का विवाह भी इस अवधि में सम्भव है | विद्यार्थियों के लिए सफलता प्राप्ति के अवसर प्रतीत होते हैं | यदि आप हाथ के कारीगर हैं, इंजीनियर अथवा IT के क्षेत्र से सम्बन्ध रखते हैं अथवा प्रॉपर्टी और वाहन आदि से सम्बन्धित कोई व्यवसाय है तो आपको विशेष रूप से अर्थ लाभ की सम्भावना की जा सकती है | वक्री शनि की स्थिति में कोई महत्त्वपूर्ण निर्णय नहीं लेंगे तो आपके लिए अच्छा रहेगा |

अन्त में बस इतना ही कि यदि कर्म करते हुए भी सफलता नहीं प्राप्त हो रही हो तो किसी अच्छे ज्योतिषी के पास दिशानिर्देश के लिए अवश्य जाइए, किन्तु अपने कर्म और प्रयासों के प्रति निष्ठावान रहियेक्योंकि ग्रहों के गोचर तो अपने नियत समय पर होते ही रहते हैं, केवल आपके कर्म और उचित प्रयास ही आपको जीवन में सफल बना सकते हैंअगले लेख में धनु और मकर राशि पर शनि के मीन राशि में गोचर पर वार्ता होगी

शनि का मीन राशि में गोचर

शनि का मीन राशि में गोचर

सिंह तथा कन्या राशियों के लिए शनि का मीन में गोचर

इस वर्ष शनिवार 29 मार्च, चैत्र अमावस्या को रात्रि 9:46 के लगभग किंस्तुघ्न करण और ब्रह्म योग में शनि का गोचर मीन राशि में हो जाएगा, जहाँ 3 जून 2027 तक भ्रमण करने के बाद मंगल की राशि मेष में पहुँच जाएँगे | यद्यपि मेष में वक्री होकर 20 अक्टूबर 2027 को एक बार फिर से रेवती नक्षत्र और मीन राशि में आएँगे और चार दिन बाद 24 दिसम्बर 2027 से मार्गी होते हुए 23 फरवरी 2028 को मेष राशि और अश्वनी नक्षत्र पर वापस पहुँच जाएँगे | धीमी गति के कारण लम्बी यात्रा है शनि की अतः इस बीच शनि कई बार अस्त भी रहेगा और कई बार वक्री चाल भी चलेगा | इन्हीं सब तथ्यों को ध्यान में रखते हुए जानने का प्रयास करेंगे शनि के मीन राशि में गोचर के सिंह तथा कन्या राशि के जातकों पर क्या सम्भावित प्रभाव हो सकते हैं 

किन्तु ध्यान रहे, ये सभी परिणाम सामान्य हैं | किसी कुण्डली के विस्तृत फलादेश के लिए केवल एक ही ग्रह के गोचर को नहीं देखा जाता अपितु उस कुण्डली का विभिन्न सूत्रों के आधार पर विस्तृत अध्ययन आवश्यक है | क्योंकि शनि का जहाँ तक प्रश्न है तोशं करोति शनैश्चरतीति च शनि:” अर्थात, जो शान्ति और कल्याण प्रदान करे और धीरे चले वह शनिअतः शनिदेव का गोचर कहीं भी हो, घबराने की या भयभीत होने की आवश्यकता नहीं हैअपने कर्म की दिशा सुनिश्चित करके आगे बढ़ेंगे तो कल्याण ही होगाअतः धैर्यपूर्वक शनि की चाल पर दृष्टि रखते हुए कर्मरत रहियेनिश्चित रूप से गुरुदेव की कृपा से शनि के इस गोचर में भी कुछ तो अमृत प्राप्त होगा, क्योंकि गुरु की राशियों में स्थित शनि शुभ फल देने में समर्थ होता हैअस्तु,  

सिंहआपके लिए शनि आपकी राशि से छठे और सातवें भाव का स्वामी होकर आपकी राशि से अष्टम भाव में गोचर कर रहा है | अष्टम भाव में गोचर होने के कारण आपकी राशि पर ढैया भी आरम्भ होने जा रही है | अष्टम भाव से शनि की दृष्टियाँ आपकी राशि से दशम भाव पर, द्वितीय यानी धन भाव पर और पञ्चम भाव पर रहेंगी | द्वितीयेश बुध तथा दशमेश शुक्र से शनि की मित्रता है | अतः यद्यपि आपकी राशि के अधिपति सूर्य के साथ शनि की शत्रुता हैकिन्तु सम्भव है उतना अधिक हानिकारक आपके लिए न हो | आर्थिक स्थिति का जहाँ तक प्रश्न है तो शनि का यह गोचर आर्थिक स्थिति में सुधार ला सकता हैयदि सोच समझकर आपने कार्य किया तो | यदि कहीं से किसी प्रकार का क़र्ज़ अथवा बैंक से या अन्य किसी संस्थान से कोई लोन लिया हुआ है तो आप इस अवधि में उसे भी उतारने में समर्थ हो सकते हैं | दीर्घ काल से चली आ रही समस्याओं के समाप्त होने की संभावनाएँ हैं | यदि कहीं से किसी प्रकार का कोई क़र्ज़ लिया हुआ है तो उसे भी आप इस अवधि में चुका सकते हैं | 

किन्तु हमें ढैया को भी ध्यान में रखना होगा | आपके कैरियर में अचानक ही कोई परिवर्तन हो सकता है जो आपके लिए आर्थिक सुधार की दृष्टि से अच्छा रहेगा, किन्तु वक्री शनि की स्थिति में नवीन स्थान पर कुछ समस्याओं का भी आपको सामना करना पड़ सकता है | आर्थिक रूप से भी कुछ उतार चढ़ाव हो सकते हैं जिनके कारण आप तनाव का अनुभव कर सकते हैं | 

स्वास्थ्य में समस्याएँ आ सकती हैं | यही कारण है कि यदि किसी समस्या का अनुभव हो तो तुरन्त चैक अप कराएँ | यदि कोई लीगल केस चल रहा है तो आपके पक्ष में निर्णय आ सकता है, किन्तु उसके लिए आपको धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा करनी होगी |

कन्याआपकी राशि के लिए पञ्चमेश और षष्ठेश होकर शनि का गोचर आपके सप्तम भाव में गोचर करने जा रहा है जहाँ से आपके नवम भाव, लग्न तथा चतुर्थ भाव पर रहेगी | आपकी राशि के स्वामी बुध तथा नबमेश शुक्र शनि के मित्र ग्रह हैं | यदि आप कोई नवीन प्रॉपर्टी ख़रीदना चाहते हैं अथवा कोई नया वाहन ख़रीदना चाहते हैं तो आपका यह सपना इस अवधि में पूर्ण हो सकता है | पार्टनरशिप में कोई कार्य करना चाहते हैं तो उसके लिए अनुकूल समय प्रतीत होता है |  आपकी यह पार्टनरशिप लम्बे समय तक चल सकती है | साथ ही यदि आप किसी आवश्यक कार्य के लिए बैंक से लोन लेना चाहते हैं तो समय अनुकूल प्रतीत होता है | सम्बन्धित कागज़ों का सावधानीपूर्वक अध्ययन आवश्यक है | लम्बी यात्राओं के योग भी बन रहे हैं | इन यात्राओं में एक ओर बहुत अधिक थकान का अनुभव होगा तो वहीं दूसरी ओर आपको आनन्द और मानसिक शान्ति का अनुभव भी होगा |

वक्री शनि की स्थिति में पारिवारिक स्तर पर किसी प्रकार विवाद अथवा मतभेद की समस्या हो सकती है | परिवार का वातावरण तनावपूर्ण हो सकता है | इस समय आपको धैर्य और संयम से काम लेने की आवश्यकता होगी | इस अवधि में वैवाहिक जीवन में भी उतार चढ़ाव सम्भव हैं | रिश्तों में ईमानदारी बनाए रखेंगे तो समस्याओं से बचे रह सकते हैं |

स्वास्थ्य का ध्यान रखने की आवश्यकता निश्चित रूप से होगी |

अन्त में बस इतना ही कि यदि कर्म करते हुए भी सफलता नहीं प्राप्त हो रही हो तो किसी अच्छे ज्योतिषी के पास दिशानिर्देश के लिए अवश्य जाइए, किन्तु अपने कर्म और प्रयासों के प्रति निष्ठावान रहियेक्योंकि ग्रहों के गोचर तो अपने नियत समय पर होते ही रहते हैं, केवल आपके कर्म और उचित प्रयास ही आपको जीवन में सफल बना सकते हैंअगले लेख में तुला और वृश्चिक राशि पर शनि के मीन राशि में गोचर पर वार्ता होगी