Category Archives: Vedic Astrology

शनि का मीन राशि में गोचर

शनि का मीन राशि में गोचर

सिंह तथा कन्या राशियों के लिए शनि का मीन में गोचर

इस वर्ष शनिवार 29 मार्च, चैत्र अमावस्या को रात्रि 9:46 के लगभग किंस्तुघ्न करण और ब्रह्म योग में शनि का गोचर मीन राशि में हो जाएगा, जहाँ 3 जून 2027 तक भ्रमण करने के बाद मंगल की राशि मेष में पहुँच जाएँगे | यद्यपि मेष में वक्री होकर 20 अक्टूबर 2027 को एक बार फिर से रेवती नक्षत्र और मीन राशि में आएँगे और चार दिन बाद 24 दिसम्बर 2027 से मार्गी होते हुए 23 फरवरी 2028 को मेष राशि और अश्वनी नक्षत्र पर वापस पहुँच जाएँगे | धीमी गति के कारण लम्बी यात्रा है शनि की अतः इस बीच शनि कई बार अस्त भी रहेगा और कई बार वक्री चाल भी चलेगा | इन्हीं सब तथ्यों को ध्यान में रखते हुए जानने का प्रयास करेंगे शनि के मीन राशि में गोचर के सिंह तथा कन्या राशि के जातकों पर क्या सम्भावित प्रभाव हो सकते हैं 

किन्तु ध्यान रहे, ये सभी परिणाम सामान्य हैं | किसी कुण्डली के विस्तृत फलादेश के लिए केवल एक ही ग्रह के गोचर को नहीं देखा जाता अपितु उस कुण्डली का विभिन्न सूत्रों के आधार पर विस्तृत अध्ययन आवश्यक है | क्योंकि शनि का जहाँ तक प्रश्न है तोशं करोति शनैश्चरतीति च शनि:” अर्थात, जो शान्ति और कल्याण प्रदान करे और धीरे चले वह शनिअतः शनिदेव का गोचर कहीं भी हो, घबराने की या भयभीत होने की आवश्यकता नहीं हैअपने कर्म की दिशा सुनिश्चित करके आगे बढ़ेंगे तो कल्याण ही होगाअतः धैर्यपूर्वक शनि की चाल पर दृष्टि रखते हुए कर्मरत रहियेनिश्चित रूप से गुरुदेव की कृपा से शनि के इस गोचर में भी कुछ तो अमृत प्राप्त होगा, क्योंकि गुरु की राशियों में स्थित शनि शुभ फल देने में समर्थ होता हैअस्तु,  

सिंहआपके लिए शनि आपकी राशि से छठे और सातवें भाव का स्वामी होकर आपकी राशि से अष्टम भाव में गोचर कर रहा है | अष्टम भाव में गोचर होने के कारण आपकी राशि पर ढैया भी आरम्भ होने जा रही है | अष्टम भाव से शनि की दृष्टियाँ आपकी राशि से दशम भाव पर, द्वितीय यानी धन भाव पर और पञ्चम भाव पर रहेंगी | द्वितीयेश बुध तथा दशमेश शुक्र से शनि की मित्रता है | अतः यद्यपि आपकी राशि के अधिपति सूर्य के साथ शनि की शत्रुता हैकिन्तु सम्भव है उतना अधिक हानिकारक आपके लिए न हो | आर्थिक स्थिति का जहाँ तक प्रश्न है तो शनि का यह गोचर आर्थिक स्थिति में सुधार ला सकता हैयदि सोच समझकर आपने कार्य किया तो | यदि कहीं से किसी प्रकार का क़र्ज़ अथवा बैंक से या अन्य किसी संस्थान से कोई लोन लिया हुआ है तो आप इस अवधि में उसे भी उतारने में समर्थ हो सकते हैं | दीर्घ काल से चली आ रही समस्याओं के समाप्त होने की संभावनाएँ हैं | यदि कहीं से किसी प्रकार का कोई क़र्ज़ लिया हुआ है तो उसे भी आप इस अवधि में चुका सकते हैं | 

किन्तु हमें ढैया को भी ध्यान में रखना होगा | आपके कैरियर में अचानक ही कोई परिवर्तन हो सकता है जो आपके लिए आर्थिक सुधार की दृष्टि से अच्छा रहेगा, किन्तु वक्री शनि की स्थिति में नवीन स्थान पर कुछ समस्याओं का भी आपको सामना करना पड़ सकता है | आर्थिक रूप से भी कुछ उतार चढ़ाव हो सकते हैं जिनके कारण आप तनाव का अनुभव कर सकते हैं | 

स्वास्थ्य में समस्याएँ आ सकती हैं | यही कारण है कि यदि किसी समस्या का अनुभव हो तो तुरन्त चैक अप कराएँ | यदि कोई लीगल केस चल रहा है तो आपके पक्ष में निर्णय आ सकता है, किन्तु उसके लिए आपको धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा करनी होगी |

कन्याआपकी राशि के लिए पञ्चमेश और षष्ठेश होकर शनि का गोचर आपके सप्तम भाव में गोचर करने जा रहा है जहाँ से आपके नवम भाव, लग्न तथा चतुर्थ भाव पर रहेगी | आपकी राशि के स्वामी बुध तथा नबमेश शुक्र शनि के मित्र ग्रह हैं | यदि आप कोई नवीन प्रॉपर्टी ख़रीदना चाहते हैं अथवा कोई नया वाहन ख़रीदना चाहते हैं तो आपका यह सपना इस अवधि में पूर्ण हो सकता है | पार्टनरशिप में कोई कार्य करना चाहते हैं तो उसके लिए अनुकूल समय प्रतीत होता है |  आपकी यह पार्टनरशिप लम्बे समय तक चल सकती है | साथ ही यदि आप किसी आवश्यक कार्य के लिए बैंक से लोन लेना चाहते हैं तो समय अनुकूल प्रतीत होता है | सम्बन्धित कागज़ों का सावधानीपूर्वक अध्ययन आवश्यक है | लम्बी यात्राओं के योग भी बन रहे हैं | इन यात्राओं में एक ओर बहुत अधिक थकान का अनुभव होगा तो वहीं दूसरी ओर आपको आनन्द और मानसिक शान्ति का अनुभव भी होगा |

वक्री शनि की स्थिति में पारिवारिक स्तर पर किसी प्रकार विवाद अथवा मतभेद की समस्या हो सकती है | परिवार का वातावरण तनावपूर्ण हो सकता है | इस समय आपको धैर्य और संयम से काम लेने की आवश्यकता होगी | इस अवधि में वैवाहिक जीवन में भी उतार चढ़ाव सम्भव हैं | रिश्तों में ईमानदारी बनाए रखेंगे तो समस्याओं से बचे रह सकते हैं |

स्वास्थ्य का ध्यान रखने की आवश्यकता निश्चित रूप से होगी |

अन्त में बस इतना ही कि यदि कर्म करते हुए भी सफलता नहीं प्राप्त हो रही हो तो किसी अच्छे ज्योतिषी के पास दिशानिर्देश के लिए अवश्य जाइए, किन्तु अपने कर्म और प्रयासों के प्रति निष्ठावान रहियेक्योंकि ग्रहों के गोचर तो अपने नियत समय पर होते ही रहते हैं, केवल आपके कर्म और उचित प्रयास ही आपको जीवन में सफल बना सकते हैंअगले लेख में तुला और वृश्चिक राशि पर शनि के मीन राशि में गोचर पर वार्ता होगी

शनि का मीन राशि में गोचर

मिथुन तथा कर्क राशियों के लिए शनि का मीन में गोचर

इस वर्ष शनिवार 29 मार्च, चैत्र अमावस्या को रात्रि 9:46 के लगभग किंस्तुघ्न करण और ब्रह्म योग में शनि का गोचर मीन राशि में हो जाएगा, जहाँ 3 जून 2027 तक भ्रमण करने के बाद मंगल की राशि मेष में पहुँच जाएँगे | यद्यपि मेष में वक्री होकर 20 अक्टूबर 2027 को एक बार फिर से रेवती नक्षत्र और मीन राशि में आएँगे और चार दिन बाद 24 दिसम्बर 2027 से मार्गी होते हुए 23 फरवरी 2028 को मेष राशि और अश्वनी नक्षत्र पर वापस पहुँच जाएँगे | धीमी गति के कारण लम्बी यात्रा है शनि की अतः इस बीच शनि कई बार अस्त भी रहेगा और कई बार वक्री चाल भी चलेगा | इन्हीं सब तथ्यों को ध्यान में रखते हुए जानने का प्रयास करेंगे शनि के मीन राशि में गोचर के मिथुन तथा कर्क राशि के जातकों पर क्या सम्भावित प्रभाव हो सकते हैं 

किन्तु ध्यान रहे, ये सभी परिणाम सामान्य हैं | किसी कुण्डली के विस्तृत फलादेश के लिए केवल एक ही ग्रह के गोचर को नहीं देखा जाता अपितु उस कुण्डली का विभिन्न सूत्रों के आधार पर विस्तृत अध्ययन आवश्यक है | क्योंकि शनि का जहाँ तक प्रश्न है तोशं करोति शनैश्चरतीति च शनि:” अर्थात, जो शान्ति और कल्याण प्रदान करे और धीरे चले वह शनिअतः शनिदेव का गोचर कहीं भी हो, घबराने की या भयभीत होने की आवश्यकता नहीं हैअपने कर्म की दिशा सुनिश्चित करके आगे बढ़ेंगे तो कल्याण ही होगाअतः धैर्यपूर्वक शनि की चाल पर दृष्टि रखते हुए कर्मरत रहियेनिश्चित रूप से गुरुदेव की कृपा से शनि के इस गोचर में भी कुछ तो अमृत प्राप्त होगा, क्योंकि गुरु की राशियों में स्थित शनि शुभ फल देने में समर्थ होता हैअस्तु, 

मिथुनआपके लिए राशि से अष्टमेश और नवमेश होकर आपके कर्म स्थान में गोचर कर

मिथुन
मिथुन

रहा है जहाँ से उसकी दृष्टियाँ आपके बारहवें, चतुर्थ और सप्तम भावों पर रहेंगी | आपका राश्यधिपति तथा चतुर्थेश बुध शनि का मित्र है | आरम्भ में शनि आपके योगकारक ग्रह गुरुदेव की राशि पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र पर रहेगा | अतः ये परिस्थितियाँ आपके लिए अत्यन्त भाग्यवर्धक प्रतीत होती है | यदि आपका स्वयं का व्यवसाय है तो उसमें आपको लाभ हो सकता है | यदि नौकरी में हैं तो उसमें भी पदोन्नति और ट्रांसफर की संभावना है | आय में वृद्धि की भी सम्भावना है | कार्यक्षेत्र में आप अपनी क्षमता सिद्ध करने के प्रयास में रहेंगे जिसमें आपको सफलता प्राप्त हो सकती है | यद्यपि ऐसी संभावनाएँ भी हैं कि कार्यभार की अधिकता हो जाए | किन्तु कार्य में प्रगति और सफलता के लिए कठोर परिश्रम की निश्चित रूप से आवश्यकता होती है | साथ ही कार्य पूर्ण निष्ठा और ईमानदारी से करने की आवश्यकता है | विशेष रूप से यदि आपका कार्य विदेश से सम्बन्ध रखता है तो विदेश यात्राओं में वृद्धि की भी सम्भावना है |

इस अवधि में आपके ख़र्चों पर तो नियन्त्रण रहेगा, किन्तु पारिवारिक जीवन में उतार चढ़ाव की सम्भावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता | वक्री शनि की स्थिति में आपको अपने माता पिता के स्वास्थ्य का ध्यान रखने की विशेष रूप से आवश्यकता होगी | साथ ही दाम्पत्य जीवन में कुछ समस्या की सम्भावना प्रतीत होती है | यदि आपने धैर्य से काम लिया और अपने व्यवहार को सन्तुलित रखा तो बहुत सारी समस्याओं से बचे रह सकते हैं | साथ ही, यदि अविवाहित हैं तो इस अवधि में आपका विवाह भी सम्भव है | ऐसी भी सम्भावना है कि आप अपने किसी सहकर्मी  के साथ ही विवाह बन्धन में बँध जाएँ |

स्वास्थ्य इस अवधि में उत्तम रहने की सम्भावना है, किन्तु फिर भी अपनी जीवन शैली में सुधार की आवश्यकता है |

कर्कशनिदेव आपके लिए सप्तमेश तथा अष्टमेश हैं और आपकी राशि से नवम भाव में

कर्क
कर्क

चाँदी के पाए के साथ गोचर कर रहे हैं तथा वहाँ से उनकी दृष्टियाँ आपके लाभ स्थान, तृतीय भाव और छठे भाव पर रहेंगी | नवमेश शुक्र तथा तृतीयेश बुध के साथ शनि की मित्रता है | शनि के इस गोचर शनि की ढैया भी समाप्त हो जाएगी | आपके कार्य में जो बाधाएँ अभी तक ढैया के कारण आ रही थींऐसा प्रतीत होता है वे बाधाएँ भी धीरे धीरे दूर होनी आरम्भ हो जाएँगी और सफलता प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होना आरम्भ हो जाएगा | आर्थिक स्थिति में सुधार की सम्भावना की जा सकती है | जातकों को अचानक ही किसी ऐसे स्थान से धन की प्राप्ति हो सकती है जहाँ के विषय में आपने कल्पना भी नहीं की होगी |

इस अवधि में आपके साहस, पराक्रम और निर्णायक क्षमता में वृद्धि की सम्भावना की जा सकती है जिसके कारण आप अपने कार्य समय पर पूर्ण करके उसका लाभ उठा सकते हैं | आप स्वतः ही अपने विरोधियों को परास्त करने में भी समर्थ होंगे | यदि आप किसी नौकरी में हैं तो उसमें प्रमोशन की सम्भावना की जा सकती है | 

दाम्पत्य जीवन अथवा प्रेम सम्बन्धों में यदि किसी प्रकार की समस्या चल रही है तो वह भी इस अवधि में दूर हो सकती है | यदि अविवाहित हैं तो विवाह के योग भी बन रहे हैं |

स्वास्थ्य का जहाँ तक प्रश्न है, तो किसी पुराने रोग से मुक्ति इस अवधि में सम्भव है | किन्तु वक्री शनि की अवस्था में आपको सावधान रहने की आवश्यकता होगी |

अन्त में बस इतना ही कि यदि कर्म करते हुए भी सफलता नहीं प्राप्त हो रही हो तो किसी अच्छे ज्योतिषी के पास दिशानिर्देश के लिए अवश्य जाइए, किन्तु अपने कर्म और प्रयासों के प्रति निष्ठावान रहियेक्योंकि ग्रहों के गोचर तो अपने नियत समय पर होते ही रहते हैं, केवल आपके कर्म और उचित प्रयास ही आपको जीवन में सफल बना सकते हैंअगले लेख में सिंह तथा कन्या राशि पर शनि के मीन राशि में गोचर पर वार्ता होगी

करवाचौथ व्रत 2024

करवाचौथ व्रत 2024

हम सभी परिचित हैं कि भारत के उत्तरी और पश्चिमी अंचलों में कार्तिक कृष्ण चतुर्थी को करवाचौथ व्रत अथवा करक चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है | करक का अर्थ होता है मिट्टी का पात्र और इसीलिए इस दिन मिट्टी के पात्र से चन्द्रमा को अर्घ्य देने की प्रथा है | इस वर्ष रविवार बीस अक्तूबर को पति, सन्तान तथा परिवार के सभी सदस्यों की दीर्घायु और उत्तम स्वास्थ्य की कामना से महिलाएँ करवाचौथ के व्रत का पालन करेंगी | करवाचौथ के व्रत का पारायण उस समय किया जाता है जब चन्द्र दर्शन के समय चतुर्थी तिथि रहे | इसीलिए यदि प्रातःकाल से चतुर्थी तिथि नहीं भी हो तो प्रायः तृतीया में व्रत रखकर तृतीयाचतुर्थी के सन्धिकालप्रदोष कालमें पूजा अर्चना का विधान है | कुछ स्थानों पर निशीथ कालमध्य रात्रिमें भी करवा चौथ की पूजा अर्चना की जाती है |

इस अवसर पर अन्य देवी देवताओं के साथ शिव परिवार की पूजा अर्चना की जाती है | सबसे पहले अखण्ड सौभाग्यवती माता पार्वती की पूजा की जाती है और फिर उनके पश्चात् श्री गणेश तथा शेष शिव परिवार की अर्चना की जाती है | चतुर्थी तिथि वैसे भी विघ्नहर्ता गणपति के लिए समर्पित होती है | करक चतुर्थी को प्रातःकाल सरगी लेने से पूर्व स्नानादि से निवृत्त होकर महिलाएँ संकल्प लेती हैंमम सुखसौभाग्यपुत्रपौत्रादि सुस्थिरश्रीप्राप्तये करकचतुर्थीव्रतमहं करिष्ये…” अर्थात अपने पति पुत्र पौत्रादि के सुख सौभाग्य की कामना से तथा स्थिर लक्ष्मी प्राप्त करने के उद्देश्य से मैं ये करक चतुर्थी का व्रत कर रही हूँ | इसके पश्चात माता पार्वती की पूजानमः शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं सन्ततिशुभाम्‌प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे ||” मन्त्र से की जाती है | तत्पश्चात गणेश, शंकर, कार्तिकेय आदि की पूजा करने के बाद दुग्ध अथवा जल से पूर्ण करक यानी करवे में कुछ दक्षिणा डालकर परिवार की बुज़ुर्ग महिलाओं अथवा अन्य किसी भी सम्माननीय महिला को दान किया जाता है | करवा दान करते समयकरकं क्षीरसम्पूर्णं तोयपूर्णमथापि वाददामि रत्नसंयुक्तं चिरञ्जीवतु मे पतिः ||” जिसका अर्थ है कि हे शंकरप्रिया, मैं अपने पति की दीर्घायु की कामना से रत्न (अथवा दक्षिणा) सहित दुग्ध अथवा जल से परिपूर्ण करवा यानी मिट्टी का पात्र दान कर रही हूँऔर फिर अन्त में चन्द्र दर्शन करके व्रत का पारायण किया जाता है |

इस वर्ष करवाचौथ के मुहूर्त:

चतुर्थी तिथि का आरम्भरविवार 20 अक्तूबर प्रातः 6:46 पर

चतुर्थी तिथि समाप्त सोमवार 21 अक्तूबर सूर्योदय से पूर्व 4:16 पर

20 अक्तूबर को सूर्योदय – 6:25 पर, सरगी – 6:25 तकबवकरणऔरव्यातिपतयोगमें

सायंकालीन पूजा का मुहूर्तसायं 5:46 से 7:02 तक मेष लग्न, बालवकरणऔरवरीयानयोगमें

अभिजित मुहूर्त मेंप्रातः 11:43 से 12:28 तक

चन्द्र दर्शन दिल्ली और उत्तराखण्ड तथा उसके आस पास के क्षेत्रों में रात्रि 7:54 के लगभग सम्भव है | शेष शहरों में वहाँ के पञ्चांग के अनुसार देखा जाएगा | चन्द्र दर्शन के समय वृषभ लग्न में चन्द्रमा भी अपनी उच्च राशि में रोहिणी नक्षत्र पर विचरण करेगा, साथ ही गुरुदेव के साथ मिलकर गज केसरी योग भी बना रहा है |

सरगी की प्रथा आरम्भ होने का सबसे बड़ा कारण यही है कि पहले छोटी आयु की बच्चियों के विवाह हो जाया करते थे | ऐसे में परिवार के लोगों को लगता था कि सारा दिन इतनी छोटी बच्ची के लिए भूखा प्यासा रहना कठिन होगाजिस कारण से एक ऐसा नियम ही बना दिया गया कि बच्चियाँ सूर्योदय से पूर्व कुछ हल्का भोजन जैसे फल इत्यादि ग्रहण कर लें ताकि सारा दिन उन्हें इस भोजन का पोषण उपलब्ध होता रहे | आज की भाँति अन्न से बने किसी खाद्य पदार्थ का भोजन नहीं किया जाता था क्योंकि ऐसा भोजन इस समय करना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है, साथ ही अन्न आलस्य का कारण भी होता है और व्रत उपवास में आलस्य के लिए कोई स्थान नहीं होता |

ऐसी मान्यता है कि सती ने अपने पति शिव के अपमान का बदला लेने के लिए अपने पिता दक्ष के यज्ञ का विध्वंस करने हेतु उनके यज्ञ की अग्नि में आत्मदाह कर लिया था | उसके बाद वे महाराज हिमालय की पुत्री के रूप में उनकी पत्नी मैना के गर्भ से पार्वती के रूप में उत्पन्न हुईं | उस समय भगवान शंकर को पतिरूप में प्राप्त करने के लिए बहुत से अन्य उपवासों के साथ इस व्रत का भी पालन किया था | अतः यह व्रत और इसकी पूजा शिवपार्वती को समर्पित होती है |

करवाचौथ एक आँचलिक पर्व है और उन अंचलों में इसके सम्बन्ध में बहुत सी कथाएँ प्रचलित हैं, व्रत के दौरान जिनका श्रवण सौभाग्यवती महिलाएँ करती हैं | उन सबमें महाभारत की एक कथा हमें विशेष रूप से आकर्षित करती है | इसके अनुसार अर्जुन शक्तिशाली अस्त्र प्राप्त करने के उद्देश्य से पर्वतों में तपस्या करने चले गए और बहुत समय तक वापस नहीं लौटे | द्रौपदी इस बात से बहुत चिन्तित थीं | तब भगवान कृष्ण ने उन्हें पार्वती के व्रत की कथा सुनाकर कार्तिक कृष्ण चतुर्थी का व्रत करने की सलाह दी थी |

करवाचौथ का पालन उत्तर भारत में प्रायः सभी विवाहित हिन्दू महिलाएँ चिर सौभाग्य की कामना से करती हैं | कुछ स्थानों पर उन लड़कियों से भी यह व्रत कराया जाता है जो विवाह योग्य होती हैं अथवा जिनका विवाह तय हो चुका है | यह व्रत पारिवारिक परम्पराओं तथा स्थानीय रीति रिवाज़ के अनुसार किया जाता है | व्रत की कहानियाँ भी पारिवारिक मान्यताओं के ही अनुसार अलग अलग हैं | लेकिन कहानी कोई भी हो, एक बात हर कहानी में समान है कि बहन को व्रत में भूखा प्यासा देख भाइयों ने नकली चाँद दिखाकर बहन को व्रत का पारायण करा दिया, जिसके फलस्वरूप उसके पति के साथ अशुभ घटना घट गई |

कथा एक लोक कथा ही है | किन्तु इस लोक कथा में इस विशेष दुर्घटना का चित्र खींचकर एक बात पर विशेष रूप से बल दिया गया है कि जिस दिन व्यक्ति नियम संयम और धैर्य का पालन करना छोड़ देगा उसी दिन से उसके कार्यों में बाधा पड़नी आरम्भ हो जाएगी | नियमों का धैर्य के साथ पालन करते हुए यदि कार्यरत रहे तो समय अनुकूल बना रह सकता है | वैसे भी यदि व्यावहारिक दृष्टिकोण से देखा जाए तोसौभाग्यशब्द से तात्पर्य केवलअखण्ड सुहागसे ही नहीं है, अपितु सौभाग्य का अर्थ है अच्छा भाग्य. .. जो प्राप्त होता है अच्छे तथा पूर्ण संकल्प से किये गए कर्मों सेअतः हम सभी नियम संयम की डोर को मज़बूती से थामे हुए सोच विचार कर हर कार्य करते हुए आगे बढ़ते रहें, इसी कामना के साथ सभी महिलाओं को करवाचौथ की हार्दिक शुभकामनाएँ

——-कात्यायनी

गुरु का वृषभ में गोचर

गुरु का वृषभ में गोचर

बुधवार एक मई, वैशाख कृष्ण अष्टमी को दिन में एक बजे के लगभग शुभ योग और बालव करण में देवगुरु बृहस्पति अपने मित्र मंगल की मेष राशि से निकाल कर शत्रु ग्रह शुक्र की वृषभ राशि में प्रस्थान कर जाएँगे, जहाँ 14 मई 2025 तक विश्राम करने का पश्चात एक अन्य शत्रु ग्रह बुध की मिथुन राशि में पहुँच जाएँगे | गुरुदेव इस समय कृत्तिका नक्षत्र पर विचरण कर रहे हैं | वृषभ राशि में भ्रमण करते हुए गुरुदेव 3 मई से 3 जून तक अस्त भी रहेंगे – जिसे सामान्य भाषा में तारा डूबना कहा जाता है और इस समय विवाह जैसे मांगलिक कार्यों की मनाही होती है | इसके अतिरिक्त नौ अक्टूबर 2024 से वक्री होते हुए 28 नवम्बर को रोहिणी नक्षत्र पर वापस आ जाएँगे | यहाँ से 4 फरवरी 2025 से मार्गी होते हुए पुनः दस अप्रैल 2025 को मृगशिर नक्षत्र पर आकर दस मई 2025 को रात्रि में 10:36 के लगभग मिथुन राशि में प्रविष्ट हो जाएँगे | कृत्तिका नक्षत्र के स्वामी सूर्य से गुरु की मित्रता है, रोहिणी नक्षत्र के स्वामी शुक्र और गुरु की परस्पर शत्रुता है तथा मृगशिर नक्षत्र के स्वामी मंगल के साथ गुरुदेव की मित्रता है | इस प्रकार इतना तो स्पष्ट है कि शत्रु ग्रह की राशि में गोचर करते हुए भी गुरुदेव अधिकाँश समय अपने मित्र ग्रहों के नक्षत्रों पर आरूढ़ रहेंगे | साथ ही यह भी सत्य है कि देवगुरु बृहस्पति तथा दैत्यगुरु भार्गव शुक्र दोनों ही ग्रह शुभ ग्रह माने जाते हैं | गुरु जहाँ ज्ञान, विज्ञान, बुद्धि, धर्म और आध्यात्म, राजनीति, कूटनीति के साथ-साथ भाग्य वृद्धि, विवाह तथा सन्तान और पिता के सुख के कारक हैं, तो वहीं शुक्र भौतिक सुख और ऐश्वर्य, भोग विलास, रोमांस, विवाह, सौन्दर्य तथा समस्त प्रकार की कलाओं के स्वामी हैं | अतः व्यावहारिक दृष्टि से देखा जाए तो ये दोनों ग्रह जब किसी न किसी रूप में परस्पर मिल जाएँ अथवा एक दूसरे के प्रभाव में आ जाएँ तो निश्चित रूप से कुछ चमत्कार की सम्भावना तो की ही जा सकती है |

राशियों की यदि बात करें तो, गुरु की एक राशि धनु के लिए वृषभ छठा भाव तथा दूसरी राशि मीन के लिए तीसरा भाव हो जाता है | वृषभ राशि के लिए गुरु अष्टमेश और एकादशेश हो जाता है | यहाँ उपस्थित होने पर गुरु की दृष्टियाँ कन्या, वृश्चिक तथा मकर राशियों पर रहेंगी, इस प्रकार धनु, मीन और वृषभ के साथ साथ ये तीनों राशियाँ भी इस गोचर से प्रभावित होंगी | इन्हीं समस्त तथ्यों के आधार जानने का प्रयास करते हैं कि सभी बारह राशियों के जातकों के लिए गुरु के वृषभ में गोचर के क्या सम्भावित परिणाम रह सकते हैं | “सम्भावित” इसलिए, क्योंकि ये सभी परिणाम चन्द्र राशि पर आधारित हैं, और चन्द्रमा एक राशि में लहभाग सवा दो दिन रहता है और इस अवधि में अनगिनत बच्चों का जन्म हो जाता है – और सबही के लिए तो कोई ग्रह एक समान नहीं हुआ करता | साथ ही, सबसे प्रमुख तो व्यक्ति अपना कर्म होता है जो किसी भी ग्रह दशा को अपने अनुकूल बनाने की सामर्थ्य रखता है…

प्रस्तुत है सभी बारह राशियों के जातकों के लिए गुरु के वृषभ में गोचर के सम्भावित परिणाम…

मेष : आपके लिए गुरु नवमेश तथा द्वादशेश है और आपके दूसरे भाव में गोचर कर रहा है, जहाँ से उसकी दृष्टियाँ आपकी राशि से छठे, आठवें और दशम भावों पर आ रही हैं | आपके लिए यह गोचर भाग्यवर्धक प्रतीत होता है | कार्यक्षेत्र में प्रगति के संकेत प्रतीत होते हैं | किसी जॉब में हैं तो वहाँ कोई प्रमोशन भी सम्भव है | अपने स्वयं का कार्य है तो आपको कुछ नवीन प्रोजेक्ट्स का लाभ हो सकता है जिनके कारण आप वर्ष भर व्यस्त रहते हुए धनोपार्जन कर सकते हैं | बहुत समय से यदि कुछ कार्य रुके हुए हैं अथवा उनमें किन्हीं कारणों से व्यवधान की स्थिति चल रही है तो वे कार्य भी पुनः आरम्भ होकर पूर्णता को प्राप्त हो सकते हैं | यदि कहीं से ऋण लिया हुआ है तो इस अवधि में उससे भी मुक्ति सम्भव है | किसी पुराने रोग से मुक्ति भी इस अवधि में सम्भव है | पैतृक सम्पत्ति का लाभ सम्भव है | कार्य के सिलसिले में दूर पास की यात्राओं के योग भी प्रतीत होते हैं | कलाकारों के लिए, अध्ययन अध्यापन के क्षेत्र से सम्बद्ध व्यक्तियों के लिए तथा राजनीति से सम्बन्ध रखने वाले जातकों के लिए यह गोचर बहुत अनुकूल प्रतीत होता है | माँ सम्मान में वृद्धि के साथ हाई आपको किसी पुरस्कार आदि से भी सम्मानित किया जा सकता है | धार्मिक और आध्यात्मिक गतिविधियों में वृद्धि के संकेत प्रतीत होते हैं |

वृषभ: आपके लिए आपके अष्टमेश और एकादशेश का गोचर आपकी लग्न में ही हो रहा है जहाँ से उसकी दृष्टियाँ आपके पँचम, सप्तम और नवम भावों पर रहेंगी | आपकी सोच इस अवधि में सकारात्मक बनी रहेगी जिसका लाभ आपको पारिवारिक और व्यावसायिक दोनों क्षेत्रों में दिखाई देगा | परिवार में प्रसन्नता का वातावरण बना रहेगा | सुख और भोग विलास के साधनों में वृद्धि की भी सम्भावना है | आप किसी नौकरी में हैं तो आपकी पदोन्नति के साथ हाई अर्थ लाभ और किसी पुरस्कार आदि की प्राप्ति की भी सम्भावना है | आपके साहस और निर्णायक क्षमता में वृद्धि के कारण आप न केवल अपने कार्य समय पर पूर्ण करने में सक्षम होंगे, अपितु अपनें अधीनस्थ कर्मचारियों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बन सकते हैं दूर पास की यात्राओं के भी योग प्रतीत होते हैं जो आपके लिए कार्य की दृष्टि से लाभदायक रहेंगी | नौकरी में अच्छा इंक्रीमेंट और बोनस प्राप्त हो सकता है जिसके कारण आप अपने ऋणों का समय पर भुगतान करके उनसे मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं | साथ ही आप अपनी फ़िज़ूलख़र्ची बन्द करके पैसा कहीं इन्वेस्ट भी कर सकते हैं ताकि भविष्य में उसका लाभ प्राप्त हो सके | दाम्पत्य जीवन में भी प्रगाढ़ता और आनन्द के संकेत प्रतीत होते हैं | धार्मिक और आध्यात्मिक गतिविधियों में वृद्धि के संकेत हैं | शारीरिक और मानसिक समस्याओं से मुक्ति के संकेत हैं |

मिथुन : आपके लिए गुरु आपका सप्तमेश और दशमेश होकर योगकारक हो जाता है और इस समय आपके बारहवें भाव में गोचर करेगा | यहाँ से गुरु की दृष्टियाँ आपके चतुर्थ भाव, छठे भाव तथा आठवें भाव पर होंगी | आपके लिए यह गोचर बहुत अधिक अनुकूल नहीं प्रतीत होता | कार्य स्थल पर कुछ कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है | अचानक हाई विरोध के सवार मुखर हो सकते हैं | अच्छा यही रहेगा कि अपने आँख कान खुले रखकर शान्ति के साथ अपने कार्य करते रहें | पिता अथवा जीवन साथी के साथ किसी प्रकार का माँ मटाव भी सम्भव है | इस अवधि में आपको कार्य के सिलसिले में यात्राएँ करनी पड़ सकती हैं जिनमें थकान बहुत अधिक होगी | यात्राओं के दौरान आपको अपने स्वास्थ्य का भी ध्यान रखने की आवश्यकता होगी | स्वास्थ्य अथवा कोर्ट कचहरी के चक्कर में धन भी बहुत अधिक ख़र्च हो सकता है जिसके कारण आपका बजट गड़बड़ा सकता है अतः इस ओर से सावधान रहने की आवश्यकता है | आपको लीवर तथा पेट से सम्बन्धित कोई बीमारी गम्भीर रूप धारण कर सकती है अतः अपने खान पर नियंत्रण रखने तथा समय पर डॉक्टर को दिखाने की आवश्यकता है | गर्भवती महिलाओं को भी विशेष रूप से सावधान रहने की आवश्यकता है | यदि कोई प्रेम प्रसंग चल रहा है तो उसे अभी विवाह की स्थिति तक न ले जाना ही आपके हित में रहेगा |

कर्क : आपके लिए गुरु आपका षष्ठेश तथा भाग्येश होकर आपके लाभ स्थान में गोचर कर रहा है, जहाँ से उसकी दृष्टियाँ आपके तृतीय भाव, पँचम भाव तथा सप्तम भावों पर हैं | आपके लिए या गोचर अनुकूल तथा भाग्यवर्धक प्रतीत होता है | जीवन में किसी क्षेत्र में यदि बहुत समय से कुछ बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है तो अब उन बाधाओं से मुक्ति का समय प्रतीत होता है | उच्च शिक्षा प्राप्त के रहे छात्रों को अनुकूल परिणाम प्राप्त हो सकते हैं | किसी नौकरी में हैं तो पदोन्नति सम्भव है | अपना स्वयं का व्यवसाय है तो उसमें भी प्रगति और धनलाभ की सम्भावनाएँ हैं | पार्टनरशिप में जिन लोगों का व्यवसाय है उनके लिए विशेष रूप से यह गोचर भाग्यवर्धक प्रतीत होता है | कोई नवीन प्रोजेक्ट भी इस अवधि में आप आरम्भ कर सकते हैं | कार्य से सम्बन्धित यात्राओं में वृद्धि की सम्भावना है | आय के नवीन स्रोत आपके समक्ष उपस्थित हो सकते हैं | सन्तान के जन्म के कारण उत्सव का वातावरण बनेगा | आपको अपने जीवन साथी के माध्यम से भी अर्थ लाभ की सम्भावना है | आपकी सन्तान की ओर से कोई शुभ समाचार इस अवधि में आपको प्राप्त हो सकता है | आध्यात्मिक गतिविधियों में वृद्धि की सम्भावना है |

सिंह : आपके लिए आपके पंचमेश और अष्टमेश का गोचर आपके दशम भाव में हो रहा है, जहाँ से आपके द्वितीय भाव, चतुर्थ भाव तथा छठे भाव पर उसकी दृष्टियाँ हैं | कार्य क्षेत्र में आपको सफलता प्राप्त होने के योग प्रतीत होते हैं | यदि आप एक वक़ील हैं, डॉक्टर हैं अथवा इन दोनों क्षेत्रों में से किसी क्षेत्र में अध्ययनरत हैं तो आपके लिए यह गोचर अत्यन्त भाग्यवर्धक प्रतीत होता है | पोलिटिक्स से सम्बद्ध जातकों के लिए भी यह गोचर अनुकूल फल देने वाला प्रतीत होता है | आपको कुछ विशेष ज़िम्मेदारियाँ आपकी पार्टी की ओर से दी जा सकती हैं जिनके कारण आपकी व्यसत्ताएँ भी बढ़ सकती हैं | जिन लोगों का पैतृक व्यवसाय है अथवा जो लोग प्रॉपर्टी से सम्बद्ध व्यवसाय में हैं उनके लिए भी यह गोचर अनुकूल प्रतीत होता है | आप अपने निवास को Renovate भी करा सकते हैं | सुख सुविधाओं के साधनों में भी रुचि बढ़ सकती है | कोई नवीन प्रॉपर्टी भी आप इस अवधि में ख़रीद सकते हैं | आपकी वाणी प्रभावशाली रहेगी जिसका लाभ आपको अपने कार्य में निश्चित रूप से प्राप्त होगा | किन्तु इसके साथ ही स्वास्थ्य का भी ध्यान रखने की आवश्यकता है | विशेष रूप से पेट और लीवर से सम्बन्धित समस्याएँ गम्भीर रूप धारण कर सकती है, अतः अपने खान पान पर नियंत्रण रखने की विशेष रूप से आवश्यकता है |

कन्या : आपके लिए चतुर्थेश तथा सप्तमेश होकर गुरु योगकारक हो जाता है और इस समय आपके भाग्य स्थान में गोचर करेगा जहाँ से उसकी दृष्टियाँ आपकी लग्न पर, तृतीय भाव पर तथा पँचम भावों पर रहेंगी | आपके लिए, आपकी सन्तान के लिए तथा छोटे भाई बहनों के लिए यह गोचर अत्यन्त भाग्यवर्धक प्रतीत होता है | एक ओर जहाँ आर्थिक स्थिति में सुधार और दृढ़ता की सम्भावना है वहीं प्रॉपर्टी से सम्बन्धित मामलों में भी लाभ की सम्भावना प्रतीत होती है | भौतिक सुख सुविधाओं में वृद्धि के साथ हाई आप कोई नवीन प्रॉपर्टी भी इस अवधि में ख़रीद सकते हैं | नौकरी में हैं तो पदोन्नति की सम्भावना है | अपने स्वयं का व्यवसाय है, अथवा पार्टनरशिप में कोई व्यवसाय कर रहे हैं तो उसमें भी उन्नति और अर्थ लाभ की सम्भावना है | परिवार में आनन्द का वातावरण बना रहेगा | समाज में मान सम्मान तथा प्रतिष्ठा में वृद्धि की सम्भावना है | उच्च शिक्षा के लिए विदेश जा सकते हैं अथवा अपनी सन्तान को भेज सकते हैं | छात्रों को अनुकूल परिणाम की सम्भावना की जा सकती है | आपके जीवन साथी के माध्यम से भी अर्थ लाभ की सम्भावना है | कार्य के सिलसिले में दूर पास की यात्राओं के योग भी प्रतीत होते हैं | नौकरी में हैं तो अधिकारी वर्ग का सहयोग आपको उपलब्ध रहेगा | धार्मिक तथा आध्यात्मिक गतिविधियों में वृद्धि हो सकती है | छोटे भाई बहनों के साथ यदि कुछ समय से मतभेद चल रहा है तो वह भी इस अवधि में दूर हो सकता है |

तुला : आपके लिए गुरु आपका तृतीयेश तथा षष्ठेश है और आपके अष्टम भाव में गोचर कर रहा है, जहाँ से इसकी दृष्टियाँ आपके द्वादश भाव, द्वितीय भाव तथा चतुर्थ भाव पर आ रही हैं | अष्टम भाव से जीवन में आकस्मिक घटनाओं का विचार किया जाता है | आपके लिए यह गोचर कुछ अधिक अनुकूल नहीं प्रतीत होता | सर्वप्रथम तो अचानक ही ऐसी यात्राएँ करनी पड़ सकती हैं जिनके कारण धन की हानि होने के साथ ही कष्ट भी प्राप्त हो सकता है | यदि यात्रा करनी पड़ जाए तो अपने महत्त्वपूर्ण काग़ज़ों को सम्हाल कर रखने की आवश्यकता है | परिवारजनो के साथ सम्पत्ति को लेकर भी किसी प्रकार का वैमनस्य भी सम्भव है | इससे पूर्व कि विवाद कोर्ट तक पहुँचे, बात को सम्हालने का प्रयास आपके हित में होगा, अन्यथा धन और सम्मान दोनों की हानि सम्भव है | नौकरी और व्यवसाय में भी कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है | यदि कहीं पैसा इन्वेस्ट किया हुआ तो उसकी वापसी में सन्देह है | कार्य स्थल पर कुछ गुप्त शत्रु आपकी छवि धूमिल करने का प्रयास कर सकते हैं, अतः अपने आँख और कान खुले रखने की आवश्यकता है | यदि आपने अपनी वाणी पर नियंत्रण नहीं रखा तो आपको उसका परिणाम भुगतना पड़ सकता है | साथ ही खान पान पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है | आपके लिए यह समय आत्म मन्थन का समय है, अतः हर ओर से ध्यान हटाकर बृहस्पति के मन्त्र का जाप करें तथा भविष्य के लिए योजनाएँ तैयार करें |

वृश्चिक : आपके लिए आपके द्वितीयेश तथा पंचमेश का गोचर आपके सप्तम भाव में हो रहा है, जहाँ से आपके लाभ स्थान, लग्न तथा तृतीय भाव पर उसकी दृष्टियाँ हैं | आपके लिए यह गोचर भाग्यवर्धक रहने की सम्भावना है | यदि विवाह की योजना है तो वह इस अवधि में सम्भव है | विवाहित हैं तो दाम्पत्य जीवन में आनन्द रहेगा तथा आप सन्तान के लिए भी प्रयास कर सकते हैं | आपके वर्तमान व्यवसाय में लाभ की आशा की जा सकती है | कोई नवीन कार्य भी आप इस अवधि में आरम्भ कर सकते हैं | आपको अपने कार्य में मित्रों का तथा परिवार जनों का पूर्ण सहयोग प्राप्त रहेगा | बहन भाइयों के साथ सम्बन्धों में मधुरता में वृद्धि होगी | समाज में माँ सम्मान में वृद्धि के योग हैं | आपको तथा आपके जीवन साथी के लिए अर्थलभ सम्भव है | यदि कहीं पैसा इन्वेस्ट किया हुआ तो उसकी वापसी भी इस अवधि में सम्भव है | अध्ययन अध्यापन से सम्बन्धित जिनका कार्य है उनके लिए भी समय अनुकूल प्रतीत होता है | आपकी वाणी इस समय अत्यन्त प्रभावशाली है जिसका लाभ आपको अपने कार्य में निश्चित रूप से प्राप्त होगा | आपका कोई शोध प्रबन्ध इस अवधि में पूर्ण होकर प्रकाशित हो सकता है और उसके कारण आपको कोई पुरस्कार भी प्राप्त हो सकता है | कार्य से सम्बन्धित यात्राएँ सुखकर तथा लाभदायक रहेंगी | सन्तान की ओर से कोई शुभ समाचार प्राप्त हो सकता है | छात्रों के लिए अनुकूल परिणाम की आशा की जा सकती है |

धनु : आपके लिए आपका लग्नेश और चतुर्थेश होकर योगकारक हो जाता है तथा इस समय आपके छठे भाव में गोचर करेगा, जहाँ से इसकी दृष्टियाँ आपके दशम, द्वादश तथा द्वितीय भाव पर रहेंगी | छठे भाव से क़ानूनी समस्याओं, स्वास्थ्य तथा प्रतियोगिता इत्यादि का विचार किया जाता है | आपके लिए यह गोचर मिश्रित फल देने वाला प्रतीत होता है | आपको अपने प्रयासों में सफलता तो प्राप्त होगी, किन्तु उसके लिए आपको अधिक प्रयास करने की आवश्यकता होगी | आपको अपने स्वयं के अथवा परिवार में किसी व्यक्ति के स्वास्थ्य से सम्बन्धित समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है तथा उनके कारण पैसा भी अधिक खर्च हो सकता है | आपको स्वयं को अथवा परिवार में किसी अन्य व्यक्ति को अस्पताल में भी भर्ती होना पड़ सकता है | जिन परिवारजनों के लिए आप पूर्ण रूप से समर्पित हैं उन्हीं के साथ मन मुटाव के चलते आपको मानसिक कष्ट का भी आपको अनुभव हो सकता है | यदि किसी नौकरी में हैं तो अपने अधिकारी वर्ग को प्रसन्न रखने के लिए भी आपको बहुत अधिक प्रयास करना पड़ सकता है | विवाहित हैं तो ससुराल पक्ष की ओर से भी किसी प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है | आय से अधिक ख़र्च होने के कारण आपका बजट भी गड़बड़ा सकता है | आपके लिए आवश्यक है कि कार्य से सम्बन्धित अपनी योजनाओं के विषय में अपने मित्रों से कुछ विचार विमर्श न करें | साथ ही बृहस्पति के मन्त्र का जाप आपके लिए विपरीत प्रभाव को कम करेगा |

मकर : आपके लिए गुरु आपके तृतीय और द्वादश भावों का स्वामी है तथा आपके योगकारक शुक्र की राशि में पँचम भाव में गोचर करेगा, जहाँ से उसकी दृष्टियाँ आपके भाग्य स्थान, लाभ स्थान तथा लग्न पर रहेंगी | परिवार में किसी बच्चे के जन्म के कारण आनन्द और उत्सव का वातावरण बनेगा | यदि जीवन साथी की तलाश है तो वह इस अवधि में पूर्ण हो सकती है | आपकी सन्तान उच्च शिक्षा के लिए कहीं विदेश जा सकती है | आप यदि किसी नौकरी में हैं तो पदोन्नति के साथ ही किसी अन्य स्थान पर ट्रांसफ़र की भी सम्भावना है | आर्थिक दृष्टि से यह ट्रांसफ़र आपके हित में रहेगा | हाथ के कारीगरों के लिए विशेष रूप से यह गोचर अनुकूल प्रतीत होता है | आपकी कलाकृतियों की एग्जीविशन लग सकती हैं जिनमें आपके कार्य की प्रशंसा होगी | इन प्रदर्शनियों के लिए आपको दूर पास की यात्राओं के अवसर भी उपलब्ध हो सकते हैं | आपका अपना स्वयं का व्यवसाय है अथवा आप अपने पैतृक व्यवसाय में हैं या उनके साथ पार्टनरशिप में कोई कार्य कर रहे हैं तो आपके लिए व्यापार में उन्नति और अर्थलाभ की सम्भावना प्रबल है | पिता, बड़े भाई, मित्रों तथा अधिकारी वर्ग का सहयोग आपको उपलब्ध रहेगा | परिवार में माँगलिक कार्यों का आयोजन हो सकता है | आपकी रुचि धार्मिक गतिविधियों में बढ़ सकती है | स्वास्थ्य की दृष्टि से भी यह गोचर अनुकूल प्रतीत होता है |

कुम्भ : गुरु आपके द्वितीय और एकादश भावों का स्वामी है तथा इस समय आपके लिए योगकारक ग्रह शुक्र की राशि में आपके चतुर्थ भाव में गोचर करेगा | यहाँ से गुरु की दृष्टियाँ आपके अष्टम भाव, दशम भाव तथा बारहवें भाव पर रहेंगी | चतुर्थ भाव से मुख्य रूप से मानसिक शक्ति, भौतिक सुख सुविधाओं, परिवार तथा माता का विचार किया जाता है | एक ओर जहाँ किन्हीं कारणों से आप मानसिक अशान्ति का अनुभव कर सकते हैं, वहीं दूसरी ओर आपकी आर्थिक स्थिति में सुधार तथा दृढ़ता आने की भी सम्भावना है | हाँ इतना अवश्य है कि आपको बजट बनाकर चलना होगा ताकि अनावश्यक ख़र्चों से बचा जा सके | जो लोग अध्ययन अध्यापन के क्षेत्र में कार्यरत हैं, मैनेजमेंट जैसे किसी व्यवसाय में हैं अथवा कम्प्यूटर आदि से सम्बन्धित कोई कार्य है तो उनके लिए यह गोचर बहुत अनुकूल रह सकता है | कार्य स्थल पर चली आ रही समस्याओं से मुक्ति की आशा इस अवधि में की जा सकती है | आपकी अपने कार्य से सम्बन्धित कोई पुस्तक इस अवधि में प्रकाशित हो सकती है जिसके कारण आपको कोई पुरस्कार आदि भी प्राप्त हो सकता है | आपका स्वयं का व्यवसाय है तो आप उसका भी विस्तार इस अवधि में कर सकते हैं | यदि आपका कार्य विदेश से सम्बन्धित है तो आपके लिए यह गोचर अत्यन्त अनुकूल फल दे सकता है | साथ ही पोलिटिक्स से सम्बन्ध रखने वाले जातकों के लिए भी यह गोचर अनुकूल प्रतीत होता है | किन्तु जैसा कि पूर्व में लिखा है, सम्भवतः कार्य की अधिकता के कारण अथवा सन्तुष्ट न होने के अपने स्वभाव के कारण आपको मानसिक अशान्ति अथवा तनाव का अनुभव हो सकता है | इसके लिए यदि आप ध्यान और प्राणायाम के अभ्यास करते हैं तो ये आपके लिए उचित रहेंगे |

मीन : आपके लिए गुरु आपका लग्नेश और दशमेश होकर आपके लिए योगकारक हो जाता है और इस समय आपके तृतीय भाव में गोचर करने जा रहा है, जहाँ से इसकी दृष्टियाँ आपके सप्तम भाव, भाग्य स्थान तथा लाभ स्थान पर रहेंगी | आपके तथा आपके जीवन साथी के लिए पराक्रम और उत्साह में वृद्धि के संकेत हैं | यह गोचर आपके लिए भाग्यवर्धक प्रतीत होता है | हाथ के कारीगरों, कलाकारों, मीडिया आदि से सम्बन्ध रखने वाले जातकों तथा लेखन आदि से जुड़े जातकों के लिए तो यह गोचर निश्चित रूप से अत्यन्त अनुकूल प्रतीत होता है | आपके कार्य की प्रशंसा के साथ ही आपकी आर्थिक स्थिति भी सुदृढ़ होने की सम्भावना है | अपना स्वयं का व्यवसाय है और उसमें यदि कुछ समय से समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था तो अब उन समस्याओं से मुक्ति का समय प्रतीत होता है | आपको अधिकारी वर्ग का, पिता का, भाई बहनों, जीवन साथी तथा मित्रों का समुचित सहयोग इस अवधि में उपलब्ध रहेगा | परिवार में आनन्द का वातावरण बना रहेगा जिसके कारण आपक पूर्ण मनोयोग से अपने कार्य पूर्ण करने में सक्षम होंगे | कुछ नवीन प्रोजेक्ट्स भी आपको प्राप्त हो सकते हैं जिनके कारण आप दीर्घ समय तक व्यस्त रहते हुए अर्थ लाभ कर सकते हैं | धार्मिक और आध्यात्मिक गतिविधियों में आपकी रुचि में वृद्धि की सम्भावना है | आप तीर्थाटन के लिए भी जा सकते हैं | किन्तु इतना ध्यान रहे कि पोंग पण्डितों के झाँसे में न आने पाएँ |

अन्त में, सबसे प्रमुख व्यक्ति का अपना कर्म होता है | यदि हम कर्मशील रहते हुए अपने लक्ष्य की ओर हम सभी अग्रसर रहे तो निश्चित रूप से गुरुदेव हमारी सहायता अवश्य करेंगे |

 

 

शीतला सप्तमी और अष्टमी 2024

शीतला सप्तमी और अष्टमी 2024

चैत्र कृष्ण सप्तमी और अष्टमी को उत्तर भारत में – विशेष रूप से राजस्थान और उत्तर प्रदेश में – शीतला माता की पूजा की जाती है | कुछ स्थानों पर यह पूजा सप्तमी को होती है और कुछ स्थानों पर अष्टमी को | वैसे शीतला देवी की पूजा अलग अलग स्थानों पर अलग अलग समय की जाती है | उदाहरण के लिए बंगाली समाज में माघ शुक्ल पँचमी को सरस्वती पूजा के बाद दूसरे दिन यानी माघ शुक्ल षष्ठी को शीतला षष्ठी मनाई जाती है | इस दिन 6 प्रकार की सब्जियों को एक साथ उबालकर खाने का नियम है | शीतला षष्ठी के नाम से सरस्वती पूजा के दिन इस खाने को पकाया जाता है और अगले दिन ठण्डा करके खाया जाता है | आप इसे बासी भोजन कह सकते हैं | अधिकतर बंगाली पर‍िवारों में उस दिन चूल्‍हा नहीं जलता | यहां तक क‍ि‍ सिलबट्टा पर भी कोई चीज पीसी नहीं जा सकती | इस दिन प्रातःकाल विधि-विधान के साथ घरों में सील लोढ़ा (सिलबट्टे) और चूल्हे की भी पूजा की जाती है | ऐसी मान्यता है कि क्योंकि यह यह शीतल षष्ठी होती है, इसलिए गर्म भोजन नहीं, बल्‍क‍ि एक दिन पहले पका हुआ शीतल भोजन ग्रहण करना चाहिए | कहीं वैशाख कृष्ण अष्टमी को तो कहीं चैत्र कृष्ण सप्तमी-अष्टमी को इस पर्व को मनाया जाता है | कुछ स्थानों पर होली के बाद प्रथम सोमवार अथवा बुधवार को शीतला माता की पूजा का विधान है | गुजरात में श्री कृष्ण जन्माष्टमी से एक दिन पूर्व “शीतला सतम” नाम से इस पर्व को मनाया जाता है | किन्तु चैत्र कृष्ण पक्ष की सप्तमी और अष्टमी को शीतला पूजा का विशेष महत्त्व है |

इस वर्ष रविवार 31 मार्च को रात्रि 9:31 के लगभग विष्टि करण (भद्रा) और व्यातिपत योग में सप्तमी तिथि का आगमन हो रहा है जो सोमवार पहली अप्रैल को रात्रि नौ बजकर नौ मिनट तक रहेगी और उसके बाद अष्टमी तिथि लग जाएगी जो मंगलवार रात्रि आठ बजकर आठ मिनट तक रहेगी | गुरूवार को सूर्योदय 6:20 पर तथा सूर्यास्त 6:34 पर हो रहा है | अतः इस मध्य किसी भी समय शीतला सप्तमी की पूजा की जा सकती है | जो लोग अष्टमी को शीतला देवी की पूजा करते हैं वे भी शुक्रवार को प्रातः 6:20 से 6:34 के मध्य किसी भी समय शीतला अष्टमी की पूजा कर सकते हैं | इस प्रकार उदया तिथि होने के कारण सप्तमी को शीतला माता की पूजा सोमवार पहली अप्रैल को की जाएगी और अष्टमी को जो लोग शीतला माता की पूजा करते हैं वे मंगलवार को करेंगे |

हमें स्मरण है कि हमारे श्वसुरालय ऋषिकेश और पैतृक नगर नजीबाबाद में शीतला माता के मन्दिर हैं | जब वहाँ होली के बाद आने वाली शीतलाष्टमी को शीतला माता के मन्दिर पर मेला भरा करता था तथा वहाँ मन्दिर में जो कुछ भी माता को अर्पित किया जाता था वह सफ़ाई कर्मचारी को सम्मानपूर्वक दिया जाता था तथा उनका आशीर्वाद भी लिया जाता था | ये सब एक सामाजिक समभाव की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया तो थी ही, साथ ही यह मेला बड़ों के लिए एक ओर जहाँ शीतला माता की पूजा अर्चना का स्थान होता था वहीं हम बच्चों के लिए मनोरंजन का माध्यम होता था |

शीतला माता का उल्लेख स्कन्द पुराण में उपलब्ध होता है | इसके लिए पहले दिन सायंकाल के समय भोजन बनाकर रख दिया जाता है और अगले दिन उस बासी भोजन का ही देवी को भोग लगाया जाता है और उसी को प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है | इसका कारण सम्भवतः यही रहा होगा कि इसके बाद ऐसा मौसम आ जाता है जब भोजन बासी बचने पर खराब हो जाता है और उसे फिर से उपयोग में नहीं लाया जा सकता | और इसी कारण से कुछ स्थानों पर इसे “बासडा” अथवा “बसौड़ा” भी कहा जाता है | इस दिन लोग लाल वस्त्र, कुमकुम, दही, गंगाजल, कच्चे अनाज, लाल धागे तथा बासी भोजन से माता की पूजा करते हैं | शीतला देवी की पूजा मुख्य रूप से ऐसे समय में होती है जब वसन्त के साथ साथ ग्रीष्म का आगमन हो रहा होता है | चेचक आदि के संक्रमण का भी मुख्य रूप से ऋतु परिवर्तन का यही समय होता है |

शीतला माता का वाहन गर्दभ को माना जाता है तथा इनके हाथों में कलश, सूप, झाड़ू और नीम के पत्ते रहते हैं | इन सबका भी सम्भवतः यही प्रतीकात्मक महत्त्व रहा होगा कि इस ऋतु में प्रायः व्यक्तियों को चेचक खसरा जैसी व्याधियाँ हो जाती थीं | रोगी तीव्र ज्वर से पीड़ित रहता था और उस समय रोगी की हवा करने के लिए सूप ही उपलब्ध रहा होगा | नीम के पत्तों के औषधीय गुण तो सभी जानते हैं – उनके कारण रोगी के छालों को शीतलता प्राप्त होती होगी तथा उनमें किसी प्रकार के इन्फेक्शन से भी बचाव हो जाता होगा | स्कन्द पुराण में शीतला माता की पूजा के लिए शीतलाष्टक भी उपलब्ध होता है | वैसे शीतला देवी की पूजा करते समय निम्न मन्त्र का जाप किया जाता है:

वन्देsहम् शीतलां देवीं रासभस्थान्दिगम्बराम् |

मार्जनीकलशोपेतां सूर्पालंकृतमस्तकाम् ||

अर्थात गर्दभ पर विराजमान, दिगम्बरा, हाथ में झाड़ू तथा कलश और मस्तक पर सूप का मुकुट धारण करने वाली भगवती शीतला की हम वन्दना करते हैं | इस मन्त्र से यह भी प्रतिध्वनित होता है कि शीतला देवी स्वच्छता की प्रतीक हैं – हाथ में झाडू तथा सफ़ाई कर्मचारियों का सम्मान और उन्हें मन्दिर के पुजारी के समान पूजा की वस्तुएँ समर्पित करना इसी तथ्य की पुष्टि करता है कि एक ओर तो हम सबको स्वच्छता के प्रति जागरूक और कटिबद्ध होना चाहिए, क्योंकि चेचक, खसरा तथा अन्य भी सभी प्रकार के संक्रमणों का मुख्य कारण तो गन्दगी ही है, तो वहीं दूसरी ओर पुरुष सूक्त की इस भावना की भी पुष्टि करता है कि सभी मनुष्य ईश्वर का अंश हैं, उनकी सामर्थ्य के अनुसार वे संसार के सकुशल संचालन में अपना अपना योगदान देते हैं अतः सभी एक समान सम्मान के अधिकारी हैं | साथ ही, समुद्रमन्थन से उद्भूत हाथों में कलश लिए आयुर्वेद के प्रवर्तक भगवान धन्वन्तरी की ही भाँति शीतला माता के हाथों में भी कलश होता है, सम्भवतः इस सबका अभिप्राय यही रहा होगा कि स्वच्छता और स्वास्थ्य के प्रति जन साधारण को जागरूक किया जाए, क्योंकि जहाँ स्वच्छता होगी वहाँ स्वास्थ्य उत्तम रहेगा, और स्वास्थ्य उत्तम रहेगा तो समृद्धि भी बनी रहेगी | सूप का भी यही तात्पर्य है कि परिवार धन धान्य से परिपूर्ण रहे |

देवी का नाम भी सम्भवतः इसी लोकमान्यता के कारण शीतला पड़ा होगा कि शीतला देवी की उपासना से दाहज्वर, पीतज्वर, फोड़े फुन्सी तथा चेचक और खसरा जैसे रक्त और त्वचा सम्बन्धी विकारों तथा नेत्रों के इन्फेक्शन जैसी व्याधियों में शीतलता प्राप्त होती है और ये व्याधियाँ निकट भी नहीं आने पातीं | आज के युग में भी शीतला देवी की उपासना स्वच्छता की प्रेरणा तथा उत्तम स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता और सामाजिक समभाव के दृष्टिकोण से सर्वथा प्रासंगिक प्रतीत होती है… अतः हम सभी अपने चारों ओर स्वच्छता का ध्यान रखें, स्वस्थ रहें तथा सभी प्रकार के ऊँच नीच के भेद को दूर कर सबको एक समान समझें… यही कामना है…

 

मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा

मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा

कल समूचा राष्ट्र एक महान और गौरवशाली घटना का साक्षी बनने जा रहा है – भगवान श्री राम की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा – जिसके बाद वह प्रस्तर प्रतिमा “विग्रह” बन जाएगी | लगभग हर व्यक्ति अपनी अपनी सामर्थ्य और योग्यता इत्यादि के अनुसार इस आनन्द का अनुभव कर रहा है | ऐसे ही कुछ लोग तरह तरह से भगवान श्री राम के चित्र, रंगोली, मूर्तियाँ इत्यादि भी गढ़ कर सोशल मीडिया पर पोस्ट कर रहे हैं | आज ही एक मूर्ति सोशल मीडिया पर वायरल हुई जिसमें एक लड़की ने घर में उपलब्ध टीन के कनस्तर इत्यादि से बड़ी ख़ूबसूरती से भगवान श्री राम की मूर्ति बनाकर पोस्ट की और उस पर कुछ लोगों ने उस लड़की की आलोचना भी आरम्भ कर दी कि ऐसा करना भगवान का अपमान करना है और इसकी पूजा नहीं की जा सकती | तो सर्वप्रथम तो हम उन आलोचकों से निवेदन करना चाहेंगे कि वह मूर्ति उस लड़की ने केवल अपने आनन्द की अभिव्यक्ति के लिए बनाई थी और उसकी पूजा करना उसका उद्देश्य था ही नहीं | क्योंकि किसी भी मूर्ति को यदि पूजा अर्चना के लिए उपयुक्त बनाना है तो पहले उसमें प्राण प्रतिष्ठित करने की आवश्यकता होती है – जिसके लिए अनेक प्रकार के यम नियम आदि के मार्ग पर चलने की आवश्यकता होती है – जिस प्रकार इन दिनों हमारे आदरणीय प्रधानमन्त्री जी यम नियम का पालन कर रहे हैं | किसी ने सुझाव दिया इस विषय पर कुछ लिखने का, तो आइए आज इसी विषय पर बात करते हैं | आगे बढ़ने से पूर्व एक बात स्पष्ट कर दें कि इस लेख की लेखिका मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के विधान की ज्ञाता नहीं है, केवल अपने पिताजी और विद्वज्जनों से जो कुछ ज्ञात हुआ है उसे ही यहाँ लिखने का प्रयास कर रही है, अतः यदि कहीं कोई त्रुटि रह गयी हो तो उसके लिए आरम्भ में ही क्षमा याचना करते हैं… |

प्राण प्रतिष्ठा केवल एक रीति अथवा आडम्बर मात्र नहीं है, अपितु यह एक अत्यन्त प्रभावशाली कार्य है क्योंकि प्रतिष्ठा करने वाला व्यक्ति उस मूर्ति में मन्त्र जाप इत्यादि के माध्यम से इतनी अधिक ऊर्जा उत्पन्न कर देता है – यहाँ तक कि अपने प्राणों की ऊर्जा तक उसमें प्रेषित कर देता है कि जब यह अनुष्ठान पूर्ण होता है तो मूर्ति से निसृत ऊर्जा प्रतिष्ठा करने वाले व्यक्ति तथा वहाँ उपस्थित समस्त जन समूह को भी प्रभावित कर देती है | हम जब दुर्गा पूजा अथवा गणपति पूजा के समय अपने घरों में मूर्ति लेकर आते हैं पूजा के लिए तो अनुष्ठान के आरम्भ में यज्ञ में आहुति समर्पित करते हुए मंत्रोच्चार किया जाता है “मनो जूतिर्जुषतामज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं, तनोत्वरितष्टं यज्ञSघ्वँ समिम दधातु विश्वेदेवास इह मादयन्तामोSम्प्रतिष्ठ ||” (यजुर्वेद 2/13 ) अर्थात्, ही सविता देव आपका वेगमान मन इस आज्य अर्थात् घृत का सेवन करे, बृहस्पति देव इस यज्ञ को सभी प्रकार के अनिष्ट से रहित करते हुए इसका विस्तार करें और इसे धारण करें तथा सभी दिव्य शक्तियाँ प्रतिष्ठित होकर आनन्दित और सन्तुष्ट हों | तथा, “अस्यै प्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणाः क्षरन्तु च | अस्यै देवत्वमर्चायै मामहेति च कश्चन ||” अर्थात्, इस देव प्रतिमा के प्राण यहाँ प्रतिष्ठित हों, इसमें नित्य प्राणों का सँचार होता रहे, अर्चना हेतु इसके दैवत्व कि महानता को कम नहीं समझना चाहिए – यह बहुत महान है | इत्यादि मन्त्र बोलकर सर्व प्रथाम उस मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की जाती है ताकि सम्बन्धित देवता की मूर्ति में इतनी ऊर्जा उत्पन्न हो जाए कि वह अनुष्ठान निर्विघ्न सम्पन्न हो सके | और आपने देखा भी होगा कि अनुष्ठान की उस अवधि में साधक के तन मन में ऊर्जा का पूर्ण प्रवाह बना रहता है | और ऐसा केवल मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा तक ही सीमित नहीं है – जब एक गुरु अपने शिष्य को कोई मन्त्र इत्यादि देता है तो उस गुरु और शिष्य को भी उसी प्रकार यम नियम आदि का पालन करना आवश्यक होता है – शिष्य को मन्त्र देते समय गुरु अपनी स्वयं की ऊर्जा भी शिष्य में प्रेषित करता है ताकि वह निर्विघ्न रूप से उस मन्त्र को सिद्ध कर सके | भारत में तो लगभग हर हिन्दू परिवार में और मन्दिरों इत्यादि में इस प्रकार के अनुष्ठान अनादि काल से सम्पन्न होते आ रहे हैं और यही कारण है कि कितनी भी समस्याएँ राष्ट्र के समक्ष उपस्थित हो जाएँ – कितनी भी आपदाएँ उपस्थित हो जाएँ – यहाँ का जन मानस इतना सबल और दृढ़ निश्चयी है कि उन सभी से मुक्ति भी प्राप्त हो जाती है और हमारा देश उसी दृढ़ता के साथ पुनः उठ खड़ा होता है |

प्राण-प्रतिष्ठा के पीछे वैदिक विज्ञान समाहित है | यह समस्त संसार – समस्त प्राणी – पँच महाभूतों से निर्मित हैं | ये पँच महाभूत समस्त सृष्टि के कण कण में विद्यमान हैं | जल, वायु, प्रकाश अर्थात् अग्नि, ध्वनि अर्थात् आकाश तथा पृथिवी अर्थात् मृत्तिका सर्वत्र व्याप्त हैं | ब्रह्माण्ड में व्याप्त इन समस्त ईश्वरीय तत्वों को जब एक स्थान पर एकत्र करके पूर्ण विधि विधान से एक मूर्ति में समाहित कर दिया जाता है तो निश्चित रूप से समस्त ब्रह्माण्ड की ऊर्जा उस ऊरती में सन्निहित हो जाती है और वह मूर्ति एक प्रकार से जीवन्त हो जाती है | कई बार पौरातत्विक धरोहर के रूप में आरक्षित किसी मन्दिर में जाने पर एक विचित्र प्रकार का आध्यात्मिक अनुभव होता होता है, जबकि वहाँ पूजा अर्चना का भी नहीं हो रही होती है, और जब हम वहाँ से बाहर निकलते हैं तो कुछ समय तक कुछ भी बोलने की स्थिति में नहीं होते हैं | इसका कारण यही है कि सदियों पूर्व ऋषि मुनियों ने वहाँ की मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा की थी जिनका प्रभाव वर्तमान समय तक भी विद्यमान है – क्योंकि पँच महाभूतों का जो संगम वहाँ ऋषि मुनियों ने कराया उसका प्रभाव तो कभी नष्ट हो नहीं सकता |

जब हम किसी स्थान पर प्राण प्रतिष्ठा करते हैं तो वहाँ की ऊर्जा इतनी तीव्र हो जाती है कि उससे एक प्रकार का अदृश्य कम्पन सा उत्पन्न होता है और जब हम उस स्थान पर जाते हैं तो उसी ऊर्जा का प्रवाह हमारे शरीर के निम्नतर चक्रों से उच्चतर चक्रों की ओर स्वाभाविक रूप से होना आरम्भ हो जाता है | समस्त आध्यात्मिक साधनाओं का उद्देश्य भी यही है कि साधक ऊर्जा को निम्नतर चक्रों से उच्चतर चक्रों की ओर ले जाए | यही कारण है कि प्राण प्रतिष्ठा एक असाधारण तथा अद्भुत कार्य है और हर कोई इस कार्य को करने और कराने में सक्षम नहीं होता | अन्यथा तो मूर्ति क्या है – एक चट्टान का टुकड़ा भर ही न | और एक बात, प्राण प्रतिष्ठा के द्वारा किसी प्रस्तर प्रतिमा को जीवित मनुष्य नहीं बनाया जाता अपितु उसके जागृत होने का – उसके सिद्ध होने का अनुभव किया जाता है | इस प्रक्रिया में मूर्ति के कई अधिवास कराए जाते हैं – कई अभिषेकों के द्वारा उसके दोषों का शमन किया जाता है, वेदिक मन्त्रों तथा शंख आदि की ध्वनियों का नाद किया जाता है – और जब यह नाद शून्य अर्थात् आकाश में विद्यमान नाद से जाकर मिल जाता है तो वह मूर्ति और वह स्थान समस्त ब्रह्माण्ड की ऊर्जा से सम्पन्न हो जाता है – और यही होता है मूर्ति का जागृत होना | यह अनुष्ठान इतना कठिन होता है कि इसके लिए अनेक प्रकार के यम नियम आदि का भी पालन करने की आवश्यकता होती है |

शास्त्रों के अनुसार अष्टांग योग के आठ भाग है, जिसमें आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, भजन, समाधि, यम और नियम होते हैं | यम नियम में अन्न और बिस्तर पर सोने का त्याग और प्रतिदिन स्नान करना आवश्यक तथा मन्त्र आदि का जाप करना होता है | विद्वज्जनों और शास्त्रों के अनुसार मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के मुख्य यजमान को मूर्ति स्थापना से पूर्व इन समस्त यम नियमों का पालन करके स्वयं को मूर्ति से निसृत ऊर्जा के योग्य बनाने की आवश्यकता होती है | यही कारण है मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा के समय उसके नेत्रों पर वस्त्र बाँध दिया जाता है और एक शीशे को सामने रखकर ही वस्त्र हटाया जाता है | अन्यथा इतने अधिक मन्त्र जाप, अधिवास और तान्त्रिक अनुष्ठान आदि के कारण जो ऊर्जा उत्पन्न होती है उसका प्रवाह इतना तीव्र होता है कि साधारण मनुष्य के लिए हानिकारक भी हो सकता है | ऊर्जा के वेग से कई बार वह शीशा भी टूट कर बिखर जाता है – जिसे एक शुभ संकेत माना जाता है |

और भगवान श्री राम की मूर्ति का तो निर्माण ही एक बहुत प्रभावशाली शिला “शालिग्राम” से हुआ है – जो वास्तव में एक प्रकार का जीवाश्म पत्थर है, जिसके विषय में प्रायः सभी को ज्ञात होगा कि जीवाश्म पौधों और जानवरों के संरक्षित अवशेष होते हैं जिनके शरीर प्राचीन समुद्रों, झीलों और नदियों के नीचे रेत और मिट्टी जैसी तलछट में दबे हुए पाए जाते हैं और प्रायः लाखों करोड़ों वर्ष पुराने होते हैं | भगवान श्री राम की प्रतिमा जिस शालिग्राम से गढ़ी गई है वह भी लगभग 60 करोड़ वर्ष पुराना है | शालिग्राम का प्रयोग परमेश्वर के प्रतिनिधि के रूप में भगवान का आह्वान करने के लिए किया जाता है | प्रायः घरों में गोल अथवा अंडाकार रूप में शालिग्राम का अभिषेक किया जाता है | पद्मपुराण के अनुसार – गण्डकी (नेपाल) अर्थात नारायणी नदी के एक प्रदेश में शालिग्राम स्थल नाम का एक महत्त्वपूर्ण स्थान है; वहाँ से निकलनेवाले पत्थर को शालिग्राम कहते हैं | ऐसी मान्यता है कि इसके स्पर्श मात्र से जन्म जन्मान्तर पाप नष्ट हो जाते हैं | ऐसे प्रभावशाली पत्थर से जिस मूर्ति का निर्माण हुआ हो उसमें जब प्राण प्रतिष्ठा के विधान से ब्रह्मांडीय ऊर्जा समाहित होगी तो सोचने की बात है वह कितनी अधिक तीव्र होगी |

अस्तु, इस विग्रह से निसृत ऊर्जा समस्त जन मानस के मनों को भी चैतन्यता प्रदान करे, इसी कामना के साथ – जय श्री राम…

 

मकर संक्रान्ति 2024

मकर संक्रान्ति 2024

“ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् |” यजु. ३६/३

हम सब उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुख स्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को अपनी अन्तरात्मा में धारण करें, और वह ब्रह्म हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे |

मित्रों, चौदह जनवरी को लोहड़ी का मस्ती भरा पर्व और पन्द्रह जनवरी को परिवर्तन का प्रकाश पर्व मकर संक्रान्ति है… सर्वप्रथम सभी को लोहड़ी और मकर संक्रान्ति की अनेकानेक हार्दिक शुभकामनाएँ…

मकर संक्रान्ति की तारीख़ के विषय में प्रायः लोग प्रश्न करते हैं कि जब 14 जनवरी को मकर संक्रान्ति मनाई जाती थी तो कई बार 15 को क्यों मनाई जाती है | तो इसका कारण है ज्योतिषीय काल गणनाएँ | सूर्य का धनु राशि से मकर राशि में जब संक्रमण होता है तो उसे मकर संक्रान्ति कहा जाता है – और यह संक्रमण प्रति वर्ष कुछ देरी से होता है | जैसे गत वर्ष चौदह जनवरी को रात्रि 8:46 के लगभग हुआ था, उसके पूर्व 2022 में दिन में ढाई बजे के लगभग यह घटना घटित हुई थी | क्योंकि सूर्योदय के समय संक्रमण नहीं हुआ – और संक्रान्ति का पुण्य काल सूर्योदय में ही माना जाता है – अतः दूसरे दिन यानी 15 जनवरी को मकर संक्रान्ति का पर्व मनाया गया | इसी प्रकार इस वर्ष 15 जनवरी को सूर्योदय से पूर्व 2:43 के लगभग पौष शुक्ल चतुर्दशी को सूर्य का मकर राशि में संक्रमण होगा जबकि सूर्योदय 15 को ही 7:15 पर है | अतः इसी दिन संक्रान्ति का पुण्य काल है | भविष्य में भी जैसे 2025 में सूर्य का संक्रमण काल है 15 जनवरी को सूर्योदय से पूर्व 2:44 – और इसी प्रकार आगे बढ़ता जाएगा | इतिहास पर दृष्टि डालें तो सूर्य के संक्रमण के ही कारण किसी समय में दिसम्बर में भी यह पर्व मनाया गया है | और इसी आधार पर कहा जा सकता है कि यह संक्रमण देरी से होते रहने के कारण सम्भव है एक समय ऐसा भी आए कि फ़रवरी में मकर संक्रान्ति मनाई जाए |

यह भी सभी को विदित होगा कि जहाँ कुछ स्थानों पर वहाँ की लोक भाषाओं के अनुसार इस पर्व को मकर संक्रान्ति कहा जाता है, तो कहीं इसे थाई पोंगल, कहीं उत्तरायण, कहीं उत्तरैन, कहीं शिशुर संक्रान्ति, कहीं माघी, कहीं खिचड़ी, कहीं पौष संक्रान्ति इत्यादि अनेक नामों से जाना जाता है | साथ ही नेपाल, बंगला देश, थाईलैंड, लाओस, म्यांमार, कम्बोडिया, श्री लंका इत्यादि देशों में भी इस पर्व को बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है |

हम सभी जानते हैं कि हिन्दू मान्यता में मकर संक्रान्ति का विशेष महत्व है | पौष मास में मकर संक्रान्ति के दिन से सूर्य की उत्तरायण गति प्रारम्भ होती है इसलिये इसको उत्तरायणी भी कहते हैं | जब सूर्य किसी एक राशि को पार करके दूसरी राशि में प्रवेश करता है, तो उसे संक्रान्ति कहते हैं । यह संक्रान्ति काल प्रति माह होता है । भगवान भास्कर वर्ष के 12 महीनों में वह 12 राशियों में चक्कर लगा लेटे हैं | इस प्रकार संक्रान्ति तो हर महीने होती है, किन्तु पौष माह की संक्रान्ति अर्थात् मकर संक्रान्ति का कुछ विशेष कारणों से अत्यन्त महत्व माना गया है |

वेदों में पौष माह को “सहस्य” भी कहा गया है, जिसका अर्थ होता है वर्ष ऋतु, अर्थात् शीतकालीन वर्षा ऋतु | पुनर्वसु और पुष्य नक्षत्रों का उदय इस समय होता है | पुनर्वसु का अर्थ है एक बार समाप्त होने पर पुनः उत्पन्न होना, पुनः नवजीवन का आरम्भ करना | और पुष्य अर्थात् पुष्टिकारक | पौष के अन्य अर्थ हैं शक्ति, प्रकाश, विजय | इसी से अनुमान लगाया जा सकता है कि इस संक्रान्ति का इतना अधिक महत्व किसलिये है | यह संक्रान्ति हमें नवजीवन का संकेत और वरदान देती है | सूर्य का मकर रेखा से उत्तरी कर्क रेखा की ओर जाना उत्तरायण और कर्क रेखा से दक्षिण मकर रेखा की ओर जाना दक्षिणायन कहलाता है । जब सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण होने लगता है तब दिन बड़े और रात छोटी होने लगती है । दिन बड़ा होने से प्रकाश अधिक होगा तथा रात्रि छोटी होने से अंधकार कम होगा | अतः मकर संक्रान्ति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है | प्रकाश अधिक होने से प्राणियों की चेतनता एवं कार्य शक्ति में वृद्धि होगी | यों महत्व तो हर संक्रान्ति का होता है और न केवल मकर राशि का गोचर अपितु हर राशि में सूर्य का गोचर जन साधारण के जीवन में महत्व रखता है | क्योंकि भगवान सूर्यदेव के विभिन्न राशियों में संक्रमण के कारण प्रकृति में कुछ न कुछ परिवर्तन अवश्य ही होते हैं | प्रकृति तो वैसे ही परिवर्तनशील है, किन्तु, क्योंकि प्रति माह के ये परिवर्तन बहुत सूक्ष्म स्तर पर होते हैं इसलिये इनकी ओर ध्यान नहीं जाता | किन्तु कर्क और मकर की संक्रान्तियाँ सबसे अधिक महत्व की मानी जाती हैं | क्योंकि दोनों ही समय मौसमों में बहुत अधिक परिवर्तन होता है, प्रकृति में परिवर्तन होता है, और इस सबका प्रभाव मनुष्य के जीवन पर पड़ता है |

यहाँ हम बात कर रहे हैं सूर्य के मकर राशि में संक्रमण की | सूर्यदेव का समस्त प्राणियों पर, वनस्पतियों पर अर्थात समस्त प्रकृति पर – जड़ चेतन पर – कितना प्रभाव है – इसका वर्णन गायत्री मन्त्र में देखा जा सकता है | इस मन्त्र में भू: शब्द का प्रयोग पदार्थ और ऊर्जा के अर्थ में हुआ है – जो सूर्य का गुण है, भुवः शब्द का प्रयोग अन्तरिक्ष के अर्थ में, तथा स्वः शब्द आत्मा के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है | शुद्ध स्वरूप चेतन ब्रह्म भर्ग कहलाता है | इस प्रकार इस मन्त्र का अर्थ होता है – पदार्थ और ऊर्जा (भू:), अन्तरिक्ष (भुवः), और आत्मा (स्वः) में विचरण करने वाला सर्वशक्तिमान ईश्वर (ॐ) है | उस प्रेरक (सवितु:), पूज्यतम (वरेण्यं), शुद्ध स्वरूप (भर्ग:) देव का (देवस्य) हमारा मन अथवा बुद्धि धारण करे (धीमहि) | वह परमात्मतत्व (यः) हमारी (नः) बुद्धि (धियः) को अच्छे कार्यों में प्रवृत्त करे (प्रचोदयात्) |

सूर्य समस्त चराचर जगत का प्राण है यह हम सभी जानते हैं | पृथिवी का सारा कार्य सूर्य से प्राप्त ऊर्जा से ही चलता है और सूर्य की किरणों से प्राप्त आकर्षण से ही जीवमात्र पृथिवी पर विद्यमान रह पाता है | गायत्री मन्त्र का मूल सम्बन्ध सविता अर्थात सूर्य से है | गायत्री छन्द होने के कारण इस मन्त्र का नाम गायत्री हुआ | इसका छन्द गायत्री है, ऋषि विश्वामित्र हैं और देवता सविता हैं | इस मन्त्र में सूर्य को जगत की आत्मा कहा गया है, जिसके कारण प्राणों का प्रादुर्भाव होता है, पाँचों तत्व और समस्त इन्द्रियाँ सक्रिय हो जाती हैं और लोक में अन्धकार का विनाश हो प्रकाश का उदय होता है | जीवन की चहल पहल आरम्भ हो जाती है | नई नई वनस्पतियाँ अँकुरित होती हैं | एक ओर जहाँ सूर्य से ऊर्जा प्राप्त होती है वहीं दूसरी ओर उसकी सूक्ष्म शक्ति प्राणियों को उत्पन्न करने तथा उनका पोषण करने के लिये जीवनी शक्ति का कार्य करती है | सूर्य ही ऐसा महाप्राण है जो जड़ जगत में परमाणु और चेतन जगत में चेतना बनकर प्रवाहित होता है और उसके माध्यम से प्रस्फुटित होने वाला महाप्राण ईश्वर का वह अंश है जो इस समस्त सृष्टि का संचालन करता है | इसका सूक्ष्म प्रभाव शरीर के साथ साथ मन और बुद्धि को भी प्रभावित करता है | यही कारण है कि गायत्री मन्त्र द्वारा बुद्धि को सन्मार्ग की ओर प्रेरित करने की प्रार्थना सूर्य से की जाती है | अर्थात् सूर्य की उपासना से हम अपने भीतर के कलुष को दूर कर दिव्य आलोक का प्रस्तार कर सकते हैं | इस प्रकार सूर्य की उपासना से अन्धकार रूपी विकार तिरोहित हो जाता है और स्थूल शरीर को ओज, सूक्ष्म शरीर को तेज तथा कारण शरीर को वर्चस्व प्राप्त होता है | सूर्य के इसी प्रभाव से प्रभावित होकर सूर्य की उपासना ऋषि मुनियों ने आरम्भ की और आज विविध अवसरों पर विविध रूपों में सूर्योपासना की जाती है |

मकर राशि में सूर्य के संक्रमण के साथ दिन लम्बे होने आरम्भ हो जाते हैं और ठण्ड धीरे धीरे विदा होने लगती है क्योंकि इसके साथ ही सूर्यदेव छः माह के लिये उत्तरायण की यात्रा के लिये प्रस्थान कर जाते हैं | लोहड़ी और मकर संक्रान्ति पर तिलों की अग्नि में आहुति देने को लोकभाषा में कहा भी जाता है “तिल चटखा जाड़ा सटका |” कहा जाता है कि छः माह के शयन के बाद इन छः माह के लिये देवता जाग जाते हैं | अर्थात् इस दिन से देवताओं के दिवस का आरम्भ होता है जो शरीरी जीवों के छः माह के बराबर होता है | इसे इस प्रकार भी कहा जा सकता है कि सूर्यदेव धीरे धीरे तमस का निवारण करके प्रकाश का प्रस्तार करना आरम्भ कर देते हैं और इस प्रकार यह मकर संक्रान्ति का पर्व अज्ञान के अन्धकार को दूर करके ज्ञान के प्रकाश के प्रस्तार का भी प्रतिनिधित्व करता है |

इस पर्व के पीछे बहुत सी कथाएँ भी प्रचलित हैं | जैसे महाभारत के अनुसार भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण प्रस्थान के समय को ही अपने परलोकगमन के लिये चुना था | क्योंकि ऐसी मान्यता है कि उत्तरायण में जो लोग परलोकगामी होते हैं वे जन्म मृत्यु के बन्धन से मुक्ति पाकर ब्रह्म में लीन हो जाते हैं | यह भी कथा है कि अपने पूर्वजों को महर्षि कपिल के शाप से मुक्त कराने के लिये इसी दिन भगीरथ गंगा को पाताल में ले गए थे और इसीलिये कुम्भ मेले के दौरान मकर संक्रान्ति का स्नान विशेष महत्व का होता है | पुराणों में ऐसी भी कथा आती है कि इसी दिन सूर्यदेव अपने पुत्र शनि से मिलने के लिए भी जाते हैं – और इसका प्रमाण भी है कि मकर और कुम्भ दोनों ही राशियाँ शनि की राशियाँ हैं |

यह पर्व पूर्ण हर्षोल्लास के साथ किसी न किसी रूप में प्रायः सारे भारतवर्ष के हिन्दू सम्प्रदाय में मनाया जाता है और हर स्थान पर भगवान सूर्यदेव की पूजा अर्चना की जाती है | जैसे बंगाल में गंगा सागर मेला लगता है | माना जाता है कि मकर संक्रान्ति पर गंगा के बंगाल की खाड़ी में निमग्न होने से पहले गंगास्नान करना सौभाग्य वर्धक तथा पापनाशक होता है | असम में इस दिन को भोगली बिहू के नाम से मनाया जाता है | उड़ीसा में मकर मेला लगता है | उत्तर भारत में लोहड़ी और खिचड़ी के नाम से जाना जाता है | तमिलनाडु में पोंगल, महाराष्ट्र में तिलगुल तथा अन्य सब स्थानों पर संक्रान्ति के नाम से इस पर्व को मनाते हैं | गुजरात और राजस्थान में उत्तरायण के नाम से इस पर्व को मनाते हैं और पतंग उड़ाई जाती हैं | आजकल तो वैसे समूचे उत्तर भारत में मकर संक्रान्ति को पतंग उड़ाने का आयोजन किया जाता है |

पोंगल यों तो चार दिवसीय पर्व है – जिसका सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण दिन थाई पोंगल होता है जो दूसरे दिन मनाया जाता है और उत्तर भारत के राज्यों में इसे ही मकर संक्रान्ति के रूप में मनाया जाता है | पोंगल के अवसर पर भी अलाव जलाने की प्रथा है | साथ ही एक एक नये मिट्टी के पात्र में कच्चे दूध, गुड़ तथा नयी फसल के चावलों को उबालकर एक विशेष व्यञ्जन पकाया जाता है | इस विशेष व्यञ्जन को ही पोंगल कहा जाता है | पोंगल बनाते समय, लोग बर्तन में दूध को तब तक उबलने देते हैं जब तक वह उस मिट्टी के पात्र से बाहर न गिरने लगे। इस प्रक्रिया को भौतिक सम्पन्नता एवं समृद्धि के शुभ संकेत के रूप में देखा जाता है | ताजा पकाया हुआ पोंगल सर्वप्रथम अच्छी फसल के लिए सूर्यदेव का आभार प्रकट करते हुए उन्हें अर्पित किया जाता है | साथ ही मुट्टू पोंगल के दिन मवेशियों को सजाया जाता है और उनकी पूजा की जाती है | और अन्तिम दिन यानी कानुम पोंगल को पारिवारिक मिलन का समय होता है | इस प्रकार यह पर्व प्रकृति का पर्व है… समस्त जीवों के प्रति सम्मान की भावना का पर्व है… पारिवारिक सौहार्द का पर्व है…

लोहड़ी की यदि बात करें तो सूर्यास्त के बाद मनाया जाने वाला पर्व है | “लोहड़ी” शब्द कुछ सांकेतिक सा लगता है | इसमें मुख्य रूप से लकड़ी, गोहा यानी सूखे उपले और रेवड़ी का प्रयोग होता है – हमें लगता है इन्हीं सब वस्तुओं – ल यानी लकड़ी, ओह यानी गोहा और ड़ी यानी रेवड़ी का मिला जुला सांकेतिक नाम लोहड़ी हुआ होगा | साथ ही माघ-पूस की दांत किटकिटाने वाली सर्दी से बचने का भी अच्छा प्रयास है लोहड़ी पर आग जलाना | और इसी कारण से यह एक महत्त्वपूर्ण ऋतुपर्व भी है | पारम्परिक रूप से इस दिन पूजा करने के लिए लकड़ियों के नीचे गोबर से बनी लोहड़ी की प्रतिमा रखी जाती है जिसमें अग्नि प्रज्वलित करके भरपूर फसल और समृद्धि के लिए उसकी पूजा होती है | इस आग की सभी परिक्रमा करते हैं रेवड़ी, मूँगफली, मक्का की खीलें आदि इसमें अनाज डालते हैं तथा प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं | साथ ही इस अवसर से एक कथा भी जुडी हुई मानी जाती है कि शिवपत्नी सती के पिता दक्ष ने शिव का अपमान किया तो सती ने उसी यज्ञ की अग्नि में अपने प्राणों की आहुति दे दी थी – योगाग्नि में स्वयं को दहन कर दिया था – मान्यता है कि उसी की स्मृति में यह अग्नि प्रज्वलित की जाती है और मकर संक्रान्ति, पोंगल और लोहड़ी उन सभी पर्वों पर बेटियों और बहनों को वस्त्र मिष्टान्न गज़क रेवड़ी मूँगफली (मौसम की वस्तुएँ) भी भेंट की जाती हैं जिन्हें दक्ष प्रजापति के प्रायश्चित के रूप में माना जाता है ताकि हर माता पिता अपनी अन्य सन्तानों के साथ साथ पुत्री का तथा उसके पति का सम्मान करना न भूलें | दुल्ला भट्टी की कहानी से भी लोहड़ी को जोड़ा जाता है | कहा जाता है कि अकबर के समय में दुल्ला भट्टी नाम का कोई अधिकारी पंजाब में रहता था | उस समय वहाँ की लड़कियों को जबरन उठाकर अमीर लोगों को बेच दिया जाता था उनसे गुलामी कराने के लिए | दुल्ला भट्टी ने पूरी योजना बनाकर उन लड़कियों को वहाँ से मुक्त कराया और हिन्दू लड़कों के साथ उनके विवाह की व्यवस्था भी कराई | इसी कहानी से सम्बन्धित एक गीत भी इस अवसर पर गाया जाता है ‘सुंदर मुंदरिये होय, तेरा कौन बेचारा होय, दुल्ला भट्टी वाला होय, दुल्ले धी बिआई होय…”

बहरहाल मान्यताएँ और कथाएँ अनेकों हो सकती हैं… पर्व को मनाने का ढंग भी सबका अलग अलग हो सकता है… अलग रीति रिवाज़ हो सकते हैं… किन्तु सत्य एक ही है कि समस्त उत्तर भारत में सूर्योपासना के इस पर्व को पूर्ण हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है… तो क्यों न हम सब भी अपनी अपनी कामनाओं की, महत्त्वाकांक्षाओं की पतंगे जितनी ऊँची उड़ा सकते हैं उड़ाएँ और भगवान सूर्यदेव की अर्चना करते हुए प्रार्थना करें कि हम सबके जीवन से अज्ञान का, मोह का, लोभ लालच का, ईर्ष्या द्वेष का अन्धकार तिरोहित होकर ज्ञान, निष्काम कर्म भावना, सद्भाव और निश्छल तथा सात्विक प्रेम के प्रकाश से हम सबका जीवन आलोकित हो जाए…

 

अमावस्या और पूर्णिमा व्रत 2024

अमावस्या और पूर्णिमा व्रत 2024

नमस्कार मित्रों ! वर्ष 2023 को विदा करके वर्ष 2024 आने वाला है… सर्वप्रथम सभी को इस नववर्ष की अनेकशः हार्दिक शुभकामनाएँ… हर वर्ष की भाँति इस वर्ष भी नूतन वर्ष के आरम्भ से पूर्व प्रस्तुत है वर्ष 2024 में आने वाली सभी अमावस्याओं और पूर्णिमा व्रत की एक तालिका…

एकादशी और प्रदोष व्रत के बाद पूर्णिमा और अमावस्या आती हैं | वैदिक पञ्चांग के अनुसार मास के तीस दिनों को चन्द्रमा की कलाओं के आधार पर पन्द्रह-पन्द्रह दिनों के दो

अमावस्या 2024
अमावस्या 2024

पक्षों में विभाजित किया गया है – जिनमें शुक्ल प्रतिपदा से लेकर पूर्णिमा तक के पन्द्रह दिन शुक्ल पक्ष कहलाते हैं तथा कृष्ण प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक के पन्द्रह दिन कृष्ण पक्ष के अन्तर्गत आते हैं | इस प्रकार प्रत्येक वर्ष में बारह अमावस्या और बारह ही पूर्णिमा तिथि उदय होती हैं | जो लोग मास को अमान्त मानते हैं उनके अनुसार अमावस्या को मास की समाप्ति होकर उसके दूसरे दिन यानी शुक्ल प्रतिपदा से दूसरे मास का आरम्भ होता है, और जो लोग मास को पूर्णिमान्त मानते हैं उनके अनुसार पूर्णिमा को एक मास पूरा होकर कृष्ण प्रतिपदा से दूसरा मास आरम्भ होता है | इस प्रकार वर्ष भर में बारह पूर्णिमा और बारह ही अमावस्या आती हैं और अमावस्या का स्वामी पितृगणों को माना गया है |

कुछ अमावस्याओं को उनके मास के नाम से ही जाना जाता है, किन्तु कुछ अमावस्याएँ दर्श अमावस्या कहलाती हैं | ऐसा इसलिए कि यों तो हर अमावस्या को पितृगणों के लिए तर्पण किया जाता है, किन्तु कुछ अमावस्याओं को पितृगणों का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है अतः उस अमावस्या को पितरों का तर्पण अत्यन्त शुभ माना जाता है और उसे दर्श अमावस्या कहा जाता है |

इस दिन अन्वाधान की प्रक्रिया भी होती है, जब वैष्णव समाज के लोग उपवास रखकर भगवान विष्णु के सभी रूपों की तथा पितृगणों की पूजा अर्चना करते हैं और एक दूसरे को शान्ति और सुख की प्राप्ति के लिए शुभकामनाएँ देते हैं | माना जाता है कि अन्वाधान और इशिता अथवा इष्टि का उपवास रखने से सुख शान्ति की प्राप्ति तथा सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है |

साथ ही प्रत्येक अमावस्या तिथि माता लक्ष्मी के लिए भी समर्पित होती है अतः इस दिन लक्ष्मी का भी विशेष महत्त्व माना गया है | इसके अतिरिक्त ज्योतिष शास्त्र के अनुसार चन्द्रमा मन का कारक होता है और अमावस्या के दिन चन्द्रमा के दर्शन नहीं होते | साथ ही धर्मग्रन्थों में चन्द्रमा को सोलहवीं कला को “अमा” कहा गया है | इस दिन चन्द्रमा और सूर्य दोनों प्रायः एक ही राशि में होते हैं | इन्हीं सब कारणों से इस दिन सूर्यदेव तथा चन्द्र दोनों की ही उपासना को विशेष महत्त्व दिया गया है | सूर्य ग्रहण की आकर्षक खगोलीय घटना भी जब घटती है तो उस दिन अमावस्या तिथि ही होती है – जब चन्द्रमा के विपरीत दिशा में सूर्य होने के कारण पृथिवी पर चन्द्रमा की छाया पड़ती है और सूर्य हमें दिखाई नहीं पड़ता – अर्थात सूर्य तथा पृथिवी के मध्य में चन्द्रमा आ जाता है |

यों तो धार्मिक दृष्टि से प्रत्येक अमावस्या का ही महत्त्व है, किन्तु उनमें से भी कुछ अमावस्याओं का अधिक महत्त्व माना गया ही – जो हैं – सोमवती अर्थात सोमवार को आने वाली अमावस्या, भौमवती अर्थात मंगलवार को आने वाली अमावस्या, शनि अमावस्या, मौनी अमावस्या, दीपावली अमावस्या तथा पितृविसर्जनी अमावस्या का भी बहुत महत्त्व शास्त्रों में माना गया है |

इसी प्रकार प्रायः सभी हिन्दू परिवारों में पूर्णिमा के व्रत को बहुत महत्त्व दिया जाता है | इसका कारण सम्भवतः यही है कि इस दिन चन्द्रमा अपनी समस्त कलाओं के साथ प्रकाशित होकर जगत का समस्त अन्धकार दूर करने का प्रयास करता है | साथ ही चन्द्रमा का सम्बन्ध भगवान शिव के साथ माना जाने के कारण भी सम्भवतः पूर्णिमा के व्रत को इतना अधिक महत्त्व पुराणों में दिया गया होगा | साथ ही बारह मासों की बारह पूर्णिमा के दिन कोई न कोई विशेष पर्व अवश्य रहता है | जैसे मतावलम्बी पौष पूर्णिमा को पुष्याभिषेक यात्रा आरम्भ करते हैं | वैशाख पूर्णिमा भगवान् बुद्ध के लिए समर्पित है और इस प्रकार बौद्ध मतावलम्बियों के लिए भी इसका महत्त्व बहुत अधिक बढ़ जाता है | कार्तिक पूर्णिमा के दिन समस्त सिख समुदाय गुरु नानक देव का जन्म दिवस प्रकाश पर्व के रूप में बड़ी धूम धाम से मनाता है | अमावस्या की हाई भाँति एक आकर्षक खगोलीय घटना चन्द्रग्रहण भी पूर्णिमा को ही घटित होती है जब चन्द्र राहु और केतु एक समान अंशों पर आ जाते हैं और चन्द्रमा पर पृथिवी की छाया पड़ती है | माना जाता है समुद्र में ज्वार भी पूर्ण चन्द्रमा की रात्रि को ही उत्पन्न होता है |

पूर्णिमा के व्रत की तिथि के विषय में कुछ आवश्यक बातों पर हमारे विद्वज्जन बल देते हैं | सर्वप्रथम तो यह कि पूर्णिमा का व्रत पूर्णिमा के दिन भी किया जा सकता है और चतुर्दशी के दिन भी | किन्तु किस दिन किया जाना है यह निर्भर करता है इस बात पर कि पहले दिन पूर्णिमा किस समय आरम्भ हो रही है और दूसरे दिन किस समय तक रहेगी | यदि चतुर्दशी की मध्याह्न में पूर्णिमा आरम्भ होती है तो उस दिन पूर्णिमा का व्रत किया जाता है | किन्तु यदि मध्याह्न के बाद किसी समय अथवा सायंकाल में पूर्णिमा आरम्भ होती है तो इस दिन पूर्णिमा का व्रत नहीं किया जाता, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस स्थिति में पूर्णिमा में चतुर्दशी का दोष आ गया है | इस स्थिति में दूसरे दिन ही पूर्णिमा का व्रत किया जाता है |

यों प्रत्येक पूर्णिमा का ही धार्मिक दृष्टि से महत्त्व है – किन्तु इनमें भी कार्तिक पूर्णिमा, माघ पूर्णिमा, शरद पूर्णिमा, गुरु पूर्णिमा, श्रावण पूर्णिमा तथा बुद्ध पूर्णिमा का विशेष महत्त्व माना गया है |

अस्तु, प्रस्तुत है वर्ष 2024 में आने वाली सभी अमावस्याओं और पूर्णिमा व्रत की एक तालिका…

  • गुरुवार 11 जनवरी – पौष अमावस्या – दर्श अमावस्या / अन्वाधान
  • गुरुवार 25 जनवरी – पौष पूर्णिमा – शाकम्भरी पूर्णिमा
  • शुक्रवार 9 फरवरी – माघी अमावस्या – मौनी अमावस्या / दर्श अमावस्या/ अन्वाधान
  • शनिवार 24 फरवरी – माघ पूर्णिमा
  • रविवार 10 मार्च – फाल्गुन अमावस्या – दर्श अमावस्या / अन्वाधान
  • सोमवार 25 मार्च – फाल्गुन पूर्णिमा – वसन्त पूर्णिमा / होली / धुलैंडी
  • सोमवार8 अप्रैल – चैत्र अमावस्या – सोमवती अमावस्या / अन्वाधान / दर्श अमावस्या
  • मंगलवार 23 अप्रैल – चैत्र पूर्णिमा – हनुमान जन्मोत्सव
  • मंगलवार 7 मई – वैशाख अमावस्या– अन्वाधान / दर्श अमावस्या /
  • बुधवार 8 मई – वैशाख अमावस्या – इष्टि
  • गुरुवार 23 मई – वैशाख पूर्णिमा – बुद्ध पूर्णिमा / कूर्म जयन्ती
  • गुरुवार 6 जून – ज्येष्ठ अमावस्या– अन्वाधान / दर्श अमावस्या / वट सावित्री अमावस्या / शनि जयन्ती
  • शुक्रवार 21 जून – ज्येष्ठ पूर्णिमा – वट पूर्णिमा व्रत
  • शुक्रवार 5 जुलाई – आषाढ़ अमावस्या– दर्श अमावस्या / अन्वाधान
  • रविवार 21 जुलाई – आषाढ़ पूर्णिमा – गुरु पूर्णिमा / व्यास पूजा
  • रविवार 4 अगस्त – श्रावण अमावस्या – अन्वाधान / दर्श
  • सोमवार 19 अगस्त – श्रावण पूर्णिमा– श्रावणी / रक्षा बन्धन / गायत्री जयन्ती
  • सोमवार 2 सितम्बर – भाद्रपद अमावस्या– सोमवती अमावस्या / अन्वाधान / दर्श अमावस्या / पिठौरी अमावस्या
  • मंगलवार 17 सितम्बर – श्राद्ध पूर्णिमा / गणपति विसर्जन / अनन्त चतुर्दशी
  • बुधवार 18 सितम्बर – भाद्रपद पूर्णिमा / पितृपक्ष आरम्भ
  • बुधवार 2 अक्तूबर – आश्विन अमावस्या – पितृ विसर्जिनी / दर्श अमावस्या / अन्वाधान
  • बुधवार 16 अक्टूबर – शरद पूर्णिमा / कोजागरी व्रत
  • गुरुवार 17 अक्टूबर – आश्विन पूर्णिमा
  • शुक्रवार1 नवम्बर – कार्तिक अमावस्या – अन्वाधान / दर्श अमावस्या दीपावली / लक्ष्मी पूजा
  • शुक्रवार 15 नवम्बर – कार्तिक पूर्णिमा – देव दिवाली / मणिकर्णिका स्नान
  • शनिवार30 नवम्बर – मार्गशीर्ष अमावस्या – दर्श अमावस्या
  • रविवार 1 दिसम्बर – मार्गशीर्ष अमावस्या – अन्वाधान
  • रविवार 15 दिसम्बर – मार्गशीर्ष पूर्णिमा
  • सोमवार 30 दिसम्बर – पौष अमावस्या / सोमवती अमावस्या / दर्श अमावस्या / अन्वाधान

चन्द्रमा प्रतीक है सुख, शान्ति और प्रेम का तथा भगवान समस्त चराचर में ऊर्जा और प्राणों का संचार करते हैं चन्द्रमा की धवल चन्द्रिका सूर्य किरणों के साथ मिलकर सभी के जीवन में सुख, शान्ति और प्रेम का धवल प्रकाश प्रसारित करे इसी कामना के साथ सभी को वर्ष 2024 के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ…

एकादशी व्रत 2024

एकादशी व्रत 2024

नमस्कार मित्रों ! वर्ष 2023 को विदा करके वर्ष 2024 आने वाला है… सर्वप्रथम सभी को आने वाले वर्ष के लिए अनेकशः हार्दिक शुभकामनाएँ… हर वर्ष की भाँति इस वर्ष भी नूतन वर्ष के आरम्भ से पूर्व प्रस्तुत है वर्ष 2024 में आने वाले सभी एकादशी व्रतों की एक तालिका… वर्ष 2024 का आरम्भ ही एकादशी व्रत के साथ हो रहा है… प्रथम एकादशी होगी पौष मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी – जिसे पुत्रदा एकादशी कहा जाता है…

सभी जानते हैं कि हिन्दू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्त्व है | पद्मपुराण के अनुसार भगवान् श्री कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को एकादशी व्रत का आदेश दिया था और इस व्रत का माहात्म्य बताया था | प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशी होती है, और अधिमास हो जाने पर ये छब्बीस हो जाती हैं | किस एकादशी के व्रत का क्या महत्त्व है तथा किस प्रकार इस व्रत को करना चाहिए इस सबके विषय में विशेष रूप से पद्मपुराण में विस्तार से उल्लेख मिलता है | यदि दो दिन एकादशी तिथि हो तो स्मार्त (गृहस्थ) लोग पहले दिन व्रत रख कर उसी दिन पारायण कर सकते हैं, किन्तु वैष्णवों के लिए एकादशी का पारायण दूसरे दिन द्वादशी तिथि में ही करने की प्रथा है | हाँ, यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पूर्व समाप्त होकर त्रयोदशी तिथि आ रही हो तो पहले दिन ही उन्हें भी पारायण करने का विधान है | सभी जानते हैं कि एकादशी को भगवान् विष्णु के साथ त्रिदेवों की पूजा अर्चना की जाती है | यों तो सभी एकादशी महत्त्वपूर्ण होती हैं, किन्तु कुछ एकादशी जैसे षटतिला, निर्जला, देवशयनी, देवोत्थान, तथा मोक्षदा एकादशी का व्रत प्रायः वे लोग भी करते हैं जो अन्य किसी एकादशी का व्रत नहीं करते | इन सभी एकादशी के विषय में हम समय समय पर लिखते रहे हैं | वर्ष 2024 की शुभकामनाओं के साथ प्रस्तुत है सन् 2024 के लिए एकादशी की तारीखों की एक तालिका – उनके नामों तथा जिस हिन्दी माह में वे आती हैं उनके नाम सहित… वर्ष 2024 में प्रथम एकादशी होगी पौष मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी – जिसे पुत्रदा एकादशी कहा जाता है

  • रविवार 7 जनवरी – पौष कृष्ण सफला एकादशी
  • रविवार 21 जनवरी – पौष शुक्ल पुत्रदा एकादशी
  • मंगलवार 6 फ़रवरी – माघ कृष्ण षटतिला एकादशी
  • मंगलवार 20 फरवरी – माघ शुक्ल जया एकादशी
  • बुधवार 6 मार्च – फाल्गुन कृष्ण विजया एकादशी
  • बुधवार 20 मार्च – फाल्गुन शुक्ल आमलकी एकादशी
  • शुक्रवार 5 अप्रैल – चैत्र कृष्ण पापमोचिनी एकादशी
  • शुक्रवार 19 अप्रैल – चैत्र शुक्ल कामदा एकादशी
  • शनिवार 4 मई – वैशाख कृष्ण बरूथिनी एकादशी
  • रविवार 19 मई – वैशाख शुक्ल मोहिनी एकादशी
  • रविवार 2 जून – ज्येष्ठ कृष्ण अपरा एकादशी स्मार्त
  • सोमवार 3 जून – ज्येष्ठ कृष्ण अपरा एकादशी वैष्णव
  • मंगलवार 18 जून – ज्येष्ठ शुक्ल निर्जला एकादशी
  • मंगलवार 2 जुलाई – आषाढ़ कृष्ण योगिनी एकादशी
  • बुधवार 17 जुलाई – आषाढ़ शुक्ल देवशयनी एकादशी
  • बुधवार 31 जुलाई – श्रावण कृष्ण कामिका एकादशी
  • शुक्रवार 16 अगस्त – श्रावण शुक्ल पुत्रदा एकादशी
  • गुरुवार 29 अगस्त – भाद्रपद कृष्ण अजा एकादशी
  • शनिवार 14 सितम्बर – भाद्रपद शुक्ल परिवर्तिनी एकादशी
  • शनिवार 28 सितम्बर – आश्विन कृष्ण इन्दिरा एकादशी
  • रविवार 13 अक्टूबर – आश्विन शुक्ल पापांकुशा एकादशी स्मार्त
  • सोमवार 14 अक्टूबर – आश्विन शुक्ल पापांकुशा एकादशी वैष्णव
  • रविवार 27 अक्टूबर – कार्तिक कृष्ण रमा एकादशी स्मार्त
  • सोमवार 28 अक्टूबर – कार्तिक कृष्ण रमा एकादशी वैष्णव
  • मंगलवार 12 नवम्बर – कार्तिक शुक्ल देवोत्थान एकादशी
  • मंगलवार 26 नवम्बर – मार्गशीर्ष कृष्ण उत्पन्ना एकादशी
  • बुधवार 11 दिसम्बर – मार्गशीर्ष शुक्ल मोक्षदा एकादशी
  • गुरुवार 26 दिसम्बर – पौष शुक्ल सफला एकादशी

त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) की कृपादृष्टि समस्त जगत पर बनी रहे और सभी स्वस्थ व सुखी रहें, इसी भावना के साथ सभी को वर्ष 2023 की हार्दिक शुभकामनाएँ वर्ष 2023 का हर दिनहर तिथिहर पर्व आपके लिए मंगलमय हो यही कामना है

—–कात्यायनी

माँ भगवती की उपासना का पर्व

माँ भगवती की उपासना का पर्व

शारदीय नवरात्र

आश्विन और चैत्र माह की शुक्ल प्रतिपदा से माँ भगवती की उपासना के नवदिवसीय पर्व नवरात्र आरम्भ हो जाते हैं और घट स्थापना के साथ समूचा देश माँ भगवती की आस्था में तल्लीन हो जाता है | आश्विन मास के नवरात्र – जिन्हें शारदीय नवरात्र भी कहा जाता है – महालया और पितृ विसर्जिनी अमावस्या के दूसरे दिन से आरम्भ होते हैं |

ॐ यान्तु पितृगणाः सर्वे, यतः स्थानादुपागताः |

सर्वे ते हृष्टमनसः, सवार्न् कामान् ददन्तु मे ||

ये लोकाः दानशीलानां, ये लोकाः पुण्यकर्मणां |

सम्पूर्णान् सवर्भोगैस्तु, तान् व्रजध्वं सुपुष्कलान ||

इहास्माकं शिवं शान्तिः, आयुरारोगयसम्पदः |

वृद्धिः सन्तानवगर्स्य, जायतामुत्तरोत्तरा ||

समस्त पितृगण हमारे द्वारा किये गए तर्पण से प्रसन्न होकर अपनी सन्तानों को सौभाग्य का आशीष प्रदान कर अपने अपने लोकों को वापस जाएँ – कल भाद्रपद अमावस्या – यानी पितृपक्ष का अन्तिम श्राद्ध – महालया को – गायत्री मन्त्र के साथ इन उपरोक्त मन्त्रों का श्रद्धापूर्वक जाप करते हुए पितृगणों को ससम्मान विदा किया जाता है और उसके साथ ही आरम्भ हो जाता है नवरात्रों का उल्लासमय पर्व | कितनी विचित्र बात है कि एक ओर पितरों को सम्मान के साथ विदा किया जाता है तो दूसरी ओर माँ दुर्गा का आगमन होता है और उनके स्वागत के रूप में आरम्भ हो जाती है महिषासुरमर्दिनी के मन्त्रों के मधुर उच्चारण के साथ नवरात्रों में माँ भगवती के नौ रूपों की पूजा अर्चना और इसका समापन दसवें दिन धूम धाम से देवी की प्रतिमा विसर्जन के साथ होता है | एक ओर मृतात्माओं के प्रति श्रद्धा का पर्व श्राद्धपक्ष के रूप में और दूसरी ओर उसके तुरन्त बाद नवजीवन के रूप में देवी भगवती की उपासना का पर्व नवरात्र के रूप में – मृत्यु और नवजीवन का कितना अनूठा संगम है ये – और ऐसा केवल भारतीय संस्कृति में ही सम्भव है |

महालया अर्थात पितृविसर्जनी अमावस्या को श्राद्ध पक्ष का समापन हो जाता है | महालया का अर्थ ही है महान आलय अर्थात महान आवास – अन्तिम आवास – शाश्वत आवास | श्राद्ध पक्ष के इन पन्द्रह दिनों में अपने पूर्वजों का आह्वान करते हैं कि हमारे असत् आवास अर्थात पञ्चभूतात्मिका पृथिवी पर आकर हमारा आतिथ्य स्वीकार करें, और महालया के दिन पुनः अपने अस्तित्व में विलीन हो अपने शाश्वत धाम को प्रस्थान करें | और उसी दिन से आरम्भ हो जाता है अज्ञान रूपी महिष का वध करने वाली महिषासुरमर्दिनी की उपासना का उत्साहमय पर्व शारदीय नवरात्र | इस समय माँ भगवती से भी प्रार्थना की जाती है कि वे अपने महान अर्थात शाश्वत आवास अर्थात आलय को कुछ समय के लिए छोड़कर पृथिवी पर आएँ और हमारा आतिथ्य स्वीकार करें तथा नवरात्रों के अन्तिम दिन हम उन्हें ससम्मान उनके शाश्वत आलय के लिए उन्हें विदा करेंगे अगले बरस पुनः हमारा आतिथ्य स्वीकार करने की प्रार्थना के साथ | यही कारण है कि नवरात्रों के लिए दुर्गा प्रतिमा बनाने वाले कारीगर महालया के दिन धूम धाम से उत्सव मनाकर भगवती के नेत्रों को आकार देते हैं | वर्तमान का तो नहीं मालूम, लेकिन हमारी पीढ़ी के लोगों को ज्ञात होगा कि महालया यानी पितृविसर्जनी अमावस्या के दिन प्रातः चार बजे से आकाशवाणी पर श्री वीरेन्द्र कृष्ण भद्र के गाए महिषासुरमर्दिनी का प्रसारण किया जाता था और सभी केन्द्र इसे रिले करते थे | हम सभी भोर में ही रेडियो ट्रांजिस्टर ऑन करके बैठ जाते थे और पूरे भक्ति भाव से उस पाठ को सुना करते थे |

वह देवी ही समस्त प्राणियों में चेतन आत्मा कहलाती है और वही सम्पूर्ण जगत को चैतन्य रूप से व्याप्त करके स्थित है | इस प्रकार अज्ञान का नाश होकर जीव का पुनर्जन्म – आत्मा का शुद्धीकरण होता है – ताकि आत्मा जब दूसरी देह में प्रविष्ट हो तो सत्वशीला हो…

“या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभिधीयते, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः |
चितिरूपेण या कृत्स्नमेतद्वाप्य स्थित जगत्, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ||” (श्री दुर्गा सप्तशती पञ्चम अध्याय)

अस्तु, सर्वप्रथम तो, माँ भगवती सभी का कल्याण करें और सभी की मनोकामनाएँ पूर्ण करें, इस आशय के साथ सभी को शारदीय नवरात्र की हार्दिक शुभकामनाएँ…

इस वर्ष रविवार 15 अक्तूबर से शारदीय नवरात्र आरम्भ हो रहे हैं | वास्तव में लौकिक दृष्टि से यदि देखा जाए तो हर माँ शक्तिस्वरूपा माँ भगवती का ही प्रतिनिधित्व करती है – जो अपनी सन्तान को जन्म देती है, उसका भली भाँति पालन पोषण करती है और किसी भी विपत्ति का सामना करके उसे परास्त करने के लिए सन्तान को भावनात्मक और शारीरिक बल प्रदान करती है, उसे शिक्षा दीक्षा प्रदान करके परिवार – समाज और देश की सेवा के योग्य बनाती है – और इस सबके साथ ही किसी भी विपत्ति से उसकी रक्षा भी करती है | इस प्रकार सृष्टि में जो भी जीवन है वह सब माँ भगवती की कृपा के बिना सम्भव ही नहीं | इस प्रकार भारत जैसे देश में जहाँ नारी को भोग्या नहीं वरन एक सम्माननीय व्यक्तित्व माना जाता है वहाँ नवरात्रों में भगवती की उपासना के रूप में उन्हीं आदर्शों को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया जाता है |

इसी क्रम में यदि आरोग्य की दृष्टि से देखें तो दोनों ही नवरात्र ऋतु परिवर्तन के समय आते हैं | चैत्र नवरात्र में सर्दी को विदा करके गर्मी का आगमन हो रहा होता है और शारदीय नवरात्रों में गर्मी को विदा करके सर्दी के स्वागत की तैयारी की जाती है | वातावरण के इस परिवर्तन का प्रभाव मानव शरीर और मन पर पड़ना स्वाभाविक ही है | अतः हमारे पूर्वजों ने व्रत उपवास आदि के द्वारा शरीर और मन को संयमित करने की सलाह दी ताकि हमारे शरीर आने वाले मौसम के अभ्यस्त हो जाएँ और ऋतु परिवर्तन से सम्बन्धित रोगों से उनका बचाव हो सके तथा हमारे मन सकारात्मक विचारों से प्रफुल्लित रह सकें |

आध्यात्मिक दृष्टि से नवरात्र के दौरान किये जाने वाले व्रत उपवास आदि प्रतीक है समस्त गुणों पर विजय प्राप्त करके मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर होने के | माना जाता है कि नवरात्रों के प्रथम तीन दिन मनुष्य अपने भीतर के तमस से मुक्ति पाने का प्रयास करता है, उसके बाद के तीन दिन मानव मात्र का प्रयास होता है अपने भीतर के रजस से मुक्ति प्राप्त करने का और अन्तिम तीन दिन पूर्ण रूप से सत्व के प्रति समर्पित होते हैं ताकि मन के पूर्ण रूप से शुद्ध हो जाने पर हम अपनी अन्तरात्मा से साक्षात्कार का प्रयास करें – क्योंकि वास्तविक मुक्ति तो वही है |

इस प्रक्रिया में प्रथम तीन दिन दुर्गा के रूप में माँ भगवती के शक्ति रूप को जागृत करने का प्रयास किया जाता है ताकि हमारे भीतर बहुत गहराई तक बैठे हुए तमस अथवा नकारात्मकता को नष्ट किया जा सके | उसके बाद के तीन दिनों में देवी की लक्ष्मी के रूप में उपासना की जाती है कि वे हमारे भीतर के भौतिक रजस को नष्ट करके जीवन के आदर्श रूपी धन को हमें प्रदान करें जिससे कि हम अपने मन को पवित्र करके उसका उदात्त विचारों एक साथ पोषण कर सकें | और जब हमारा मन पूर्ण रूप से तम और रज से मुक्त हो जाता है तो अन्तिम तीन दिन माता सरस्वती का आह्वाहन किया जाता है कि वे हमारे मनों को ज्ञान के उच्चतम प्रकाश से आलोकित करें ताकि हम अपने वास्तविक स्वरूप – अपनी अन्तरात्मा – से साक्षात्कार कर सकें |

नवरात्रि के महत्त्व के विषय में विवरण मार्कंडेय पुराण, वामन पुराण, वाराह पुराण, शिव पुराण, स्कन्द पुराण और देवी भागवत आदि पुराणों में उपलब्ध होता है | इन पुराणों में देवी दुर्गा के द्वारा महिषासुर के मर्दन का उल्लेख उपलब्ध होता है | महिषासुर मर्दन की इस कथा को “दुर्गा सप्तशती” के रूप में देवी माहात्म्य के नाम से जाना जाता है | नवरात्रि के दिनों में इसी माहात्म्य का पाठ किया जाता है और यह बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक माना जाता है | जिसमें 537 चरणों में 700 मन्त्रों के द्वारा देवी के माहात्म्य का जाप किया जाता है | इसमें देवी के तीन मुख्य रूपों – काली अर्थात बल, लक्ष्मी और सरस्वती की पूजा के द्वारा देवी के तीन चरित्रों – मधुकैटभ वध, महिषासुर वध तथा शुम्भ निशुम्भ वध का वर्णन किया जाता है | पितृ पक्ष की अमावस्या को महालया के दिन पितृ तर्पण के बाद से आरम्भ होकर नवमी तक चलने वाले इस महान अनुष्ठान का समापन दशमी को प्रतिमा विसर्जन के साथ होता है | इन नौ दिनों में दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है | ये नौ रूप सर्वज्ञ महात्मा वेद भगवान के द्वारा ही प्रतिपादित हुए हैं |

“प्रथमं शैलपुत्रीति द्वितीयं ब्रह्मचारिणी, तृतीयं चन्द्रघंटेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् |

पञ्चमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनी तथा सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ||

नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा प्रकीर्तिता:, उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना ||

अस्तु, माँ भगवती को नमन करते हुए सभी को शारदीय नवरात्र – आश्विन नवरात्र – की हार्दिक शुभकामनाएँ…

जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी

दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोSतु ते…